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गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका                        मार्ा- 2012




                            NON PROFIT PUBLICATION .
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                                   E CIRCULAR
                         गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका मार्ा 2012
िंपादक                सर्ंतन जोशी
                      गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग

िंपका                 गुरुत्व कार्ाालर्
                      92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                      BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन                   91+9338213418, 91+9238328785,
                      gurutva.karyalay@gmail.com,
ईमेल                  gurutva_karyalay@yahoo.in,

                      http://gk.yolasite.com/
वेब                   http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/

पत्रिका प्रस्तुसत     सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
फोटो ग्राफफक्ि        सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टे क इस्डिर्ा सल)




            ई- जडम पत्रिका                       E HOROSCOPE
      अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा            Create By Advanced
         उत्कृ ष्ट भत्रवष्र्वाणी क िाथ
                                  े                      Astrology
                                                    Excellent Prediction
              १००+ पेज मं प्रस्तुत                      100+ Pages
                          फहं दी/ English मं मूल्र् माि 750/-

                               GURUTVA KARYALAY
                      92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
                          BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
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अनुक्रम
                                                         पंर्ांग त्रवशेष
 पंर्ांग गणना की वैज्ञासनक पद्धसत क्र्ा हं ?             6        दे श क त्रवसभडन प्रांतो मं नववषा का प्रारं भ
                                                                        े                                                    25
 कलेण्िर र्ुग की उत्पत्रि कब हुई ?
  ै                                                      13       ज्र्ोसतष क अनुशार शुभ-अशुभ मुहूता का प्रभाव?
                                                                            े                                                26
 पौरास्णक काल मं पंर्ांग गणना किे होती थी?
                               ै                         15       भद्रा त्रवर्ार                                             28
 वैफदक पंर्ांग का इसतहाि?                                18       फदशाशूल त्रवर्ार                                           31
 कलंिर व पंर्ांग मं क्र्ा अंतर हं ?
  ै                                                      21       फदशाशूल महत्वपूणा र्ा कताव्र् महत्वपूणा है ?               32
 पंर्ांग का मूल आधार?                                    24       ितिंग की मफहमा                                             33

                                                        नवराि त्रवशेष
 नव िंवत्िर का पररर्र्                                   35       भवाडर्ष्टकम ्                                              48
 त्रवश्वाविु िंवत्िर मं जडम लेने वालं का भत्रवष्र्       36       क्षमा-प्राथाना                                             48
 फल
 र्ैि नवराि मं नवदगाा आराधना त्रवशेष फलदार्ी
                  ु                                      37       दगााष्टोिर शतनाम स्तोिम ्
                                                                   ु                                                         49
 र्ैि नवराि व्रत त्रवशेष लाभदार्ी होता हं ।              39       त्रवश्वंभरी स्तुसत                                         50
 किे करे नवराि व्रत ?
  ै                                                      42       मफहषािुरमफदासनस्तोिम ्                                     51
 नवराि मं दे वी उपािना िे मनोकामना पूसता                 43       दवाा पूजन मं रखे िावधासनर्ां
                                                                   ु                                                         53
 िप्तश्र्ललोकी दगाा
                ु                                        44       श्रीदगााअष्टोिर शतनाम पूजन
                                                                       ु                                                     54
 दगाा आरती
  ु                                                      44       परशुराम कृ त श्रीदगाास्तोि
                                                                                    ु                                        57
 दगाा र्ालीिा
  ु                                                      45       श्री दगाा कवर्म ् (रुद्रर्ामलोक्त)
                                                                        ु                                                    61
 श्रीकृ ष्ण कृ त दे वी स्तुसत                            46       श्री माकण्िे र् कृ त लघु दगाा िप्तशती स्तोिम ्
                                                                          ा                 ु                                62
 ऋग्वेदोक्त दे वी िूक्तम ्                               46       नव दगाा स्तुसत
                                                                      ु                                                      63
 सिद्धकस्जकास्तोिम ्
       ुं                                                47       नवदगाा रक्षामंि
                                                                     ु                                                       63
 दगााष्टकम ्
  ु                                                      47

                                                         हमारे उत्पाद
 दगाा बीिा र्ंि
  ु                      14 मंि सिद्ध दै वी र्ंि िूसर् 38 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी                   56 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा    79
मंगल र्ंि िे ऋणमुत्रक्त 20 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसर् 38 नवरत्न जफित श्री र्ंि                    64 िवा रोगनाशक र्ंि/        84
 द्वादश महा र्ंि         23 मंि सिद्ध दलभ िामग्री 43 िवा कार्ा सित्रद्ध कवर्
                                          ु ा                                                     65 मंि सिद्ध कवर्           86
मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि 27 दस्क्षणावसता शंख           40 जैन धमाक त्रवसशष्ट र्ंि
                                                                      े                           66 YANTRA                   87
 शसन पीिा सनवारक र्ंि           32 रासश रत्न                 41 अमोद्य महामृत्र्ुंजर् कवर्        68 GEMS STONE               89
 मंि सिद्ध रूद्राक्ष            34 कनकधारा र्ंि              53 राशी रत्न एवं उपरत्न              68
 घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि                         67 मंि सिद्ध िामग्री-                24, 31 77,
                                                     स्थार्ी और अडर् लेख
 िंपादकीर्                                                    4 दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका                         80
 मार्ा मासिक रासश फल                                         69 फदन-रात क र्ौघफिर्े
                                                                          े                                                   81
 मार्ा 2012 मासिक पंर्ांग                                    73 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक                    82
 मार्ा 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार                          75 ग्रह र्लन मार्ा-2012                                          83
 मार्ा 2012 -त्रवशेष र्ोग                                    80 हमारा उद्दे श्र्                                              90
GURUTVA KARYALAY



                                                             िंपादकीर्
    त्रप्रर् आस्त्मर्

               बंधु/ बफहन

                            जर् गुरुदे व
            आज िमाज मं हर क्षेि मं पस्िमी िंस्कृ सत का प्रभाव असधक तीव्र होता जा रहा हं । ऐिा नहीं हं , फक सिफा
    भारतीर् लोग अपनी िंस्कृ सत एवं परं परा िे फकनारा कर पस्िमी िंस्कृ सत को अपना रहे हं ?, बस्ल्क िंपूणा दसनर्ा मं
                                                                                                          ु
    लोग अपनी िंस्कृ सत एवं परं परा को भूलते जा रहे हं । ऐिी त्रवषम पररस्स्थसत मं भी ऐिे कछ िंस्कारी लोग हं , स्जडहं
                                                                                         ु
    ने पूणा दृढ़ता एवं इमानदारी क िाथ अपने पूवजो द्वारा प्राप्तअपनी बहुमल्र् िंस्कृ सत एवं परं परा को िंजोर्े रखा हं ।
                                े            ा                         ू
    िैकिो वषा पूवाा मनुष्र् ने जब अपनी आंखं खोली तो उिे िूर्ा व र्डद्रमा अत्र्सधक प्रकाशमान फदखे होगं। िमर् के
    िाथ िाथ उिक सनरं तर अपने प्रर्ािो एवं अनुभवो िे अपनी स्जज्ञािा िे िमर् का आकलन आफद का कार्ा प्रारं भ
               े
    करफदर्ा था। प्रार्ीन भारतीर् ग्रंथं मं कालगणना क त्रवषर् मं त्रवसभडन उल्लेख समलता है, स्जििे सिद्ध होता है फक
                                                    े
    हजारो वषा पूवा भी भारतीर् ऋषीमुसन अडर् िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत क त्रवद्वानो िे इि त्रवषर् मं उनिे कहीं ज्र्ादा िजग
                                                                  े
    थे।
          ऋग्वेद, ब्रह्मांि पुराण, वार्ु पुराण आफद पौरास्णक ग्रंथो मं कालगणना र्ा िंवत्िर का उल्लेख समलता हं । त्रवद्वानो
    क मत िे ईस्वी िन ् िे कई शतास्ब्दर्ं पूवा ज्र्ोसतष को काल स्वरूप माना जाता था। इि सलए ज्र्ोसतष को वेद िे
     े
    जोिकर वेदांगं मं िस्ममसलत फकर्ा गर्ा था। तब िे लेकर आज तक त्रवसभडन त्रवद्वानो ने कालगणना मं अपना
    महत्वपूणा र्ोगदान फदर्ा स्जिक फलस्वरुप प्रार्ीन काल िे आज तक अनेकं िंवतं का उल्लेख त्रवसभडन ग्रडथं िे
                                 े
    प्राप्त होता है । भारतीर् िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत मं त्रवसभडन धमा एवं िंप्रदार् क लोग बिते हं िबकी अपने धमा र्ा
                                                                                   े
    िमुदार् क त्रवद्वानं र्ा पूवजो पर अटू ट श्रद्धा एवं त्रवश्वाि हं । स्जिक फल स्वरुप वहँ लोग अपनी माडर्ता एवं िंस्कारं
             े                  ा                                           े
    क आधार पर अपनी िंस्कृ सत एवं िभ्र्ता को कार्म रखने क सलए अपनी माडर्ता एवं िंस्कृ सत क अनुशार वषा की
     े                                                  े                                े
    गणना अलग-अलग िंवत ् क रुप मं करते हं ।
                         े
          फहडद ु िंस्कृ सत क त्रवद्वानो क मत िे त्रवक्रम िंवत बहुजत लोगो द्वारा माडर्ता प्राप्त है , इि सलए असधकतर लोग
                            े            े
    त्रवक्रम िंवत को मानते हं । गुजरात मं त्रवक्रम िंवत कासताक शुक्ल प्रसतपदा िे प्रारमभ होता है । लेफकन उिरी भारत मं
    त्रवक्रम िंवत र्ैि शुक्ल प्रसतपदा िे प्रारमभ होता है ।
    इिक अलावा भारत मं
       े
   स्कडद िंवत ् तथा शक् िंवत ् अथाात शासलवाहन िंवत ् तथा िातवाहन िंवत ्, हषा िंवत ्। करल मं काल्लम अथवा
                                                                                       े
    मालाबार िंवत ्। कश्मीर मं िप्तऋत्रष िंवत ् अथाात लौफकक िंवत ्। लक्ष्मण िंवत ्। गौतम बुद्ध िंवत ्। वधामान महावीर
    िंवत ्।सनमबाक िंवत ्। बंगाली आिामी िंवत ्। पारिी शहनशाही िंवत ्। र्हूदी िंवत ्। बहास्पत्र् वषा इत्र्ाफद िंवत ् का
                 ा
    प्रर्लन रहा है ।
           पंर्ांग सनमााण हे तु भारतीत गस्णतज्ञ आर्ाभट्ट ने अपने अनुभवं एवं शोधनकार्ा िे आर्ाभट्ट सिद्धांत नामक
    ग्रंथ की रर्ना की स्जि मं दै सनक खगोलीर् गणना और अनुष्ठानं क सलए शुभ मुहूता इत्र्ाफद का िमावेश फकर्ा गर्ा।
                                                                े
    त्रवद्वानं क मत िे आर्ाभट्ट सिद्धांत को र्ारं ओर िे स्वीकृ सत समली थी। क्र्ोफक आर्ाभट्ट अपने िमर् क िबिे बिे
                े                                                                                      े
    गस्णतज्ञ थे।
आर्ाभट्ट सिद्धांत की लोकत्रप्रर्ता एवं प्रामास्णकता सिद्ध होते ही भारतीर् पंर्ांग की गणना एवं सनधाारण मं
त्रवशेष महत्व एवं र्ोगदान रहा हं । आर्ाभट्ट क िमर् िे लेकर आजक आधुसनक र्ुग मं भी इि सिद्धांत को
                                             े                े
व्र्ावहाररक उद्दे श्र्ं िे भारत एवं त्रवदे शं मं सनरं तर इस्तेमाल मं रहा हं ।
        आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं वस्णात िूर्ा सिद्धांत की प्रामास्णकता सिद्ध होने पर पंर्ांग
गणना मं िुलभता होने लगी। स्जि मं आगेर्लकर आर्ाभट्ट, वराहसमफहर और भास्कर ने अपने र्ोगदान िे पंर्ांग
गणना पद्धसत िे जुिे ग्रंथो मं व्र्ापक िुधार फकए।
त्रवसभडन प्रदे शो एवं िंस्कृ सत की सभडनता क कारण पंर्ांगं की गणनाओं मं अंतर हो जाता है , लेफकन कछ तथ्र् प्रार्ः
                                           े                                                    ु
िभी पंर्ांगं मं िमान होते हं ।
िभी पंर्ांगं क मुख्र् पाँर् अंग: सतसथ, वार, नक्षि, र्ोग और करण।
              े
पंर्ांग क त्रवषर् मं र्जुवद काल मं उल्लेख समलत हं की उि काल मं भारतीर्ं ने मािं क 12 नाम क्रमशः मधु,
         े                े                                                      े
माधव, शुक्र, शुसर्, नभ, नभस्र्, इष, ऊजा, िह, िहस्र, तप तथा तपस्र् रखे थे।
                            मधुि माधवि शुक्रि शुसर्ि नभि नभस्र्िेषिोजाि िहि
                      िहस्र्ि तपि तपस्र्िोपर्ामगृहीतोसि िहं िवोस्र्हं हस्पत्र्ार् त्वा॥ (सतत्रिर िंफहता 1.4.14)

        र्जुवेद क ऋत्रष थे वैशमपार्न क सशष्र् क सशष्र् सतत्रिर िंफहता (उपसनषर्) मं िंवत्िर क मािं क 13
                 े                    े        े                                            े      े
मफहनो क नाम
       े             क्रमशः– अरुण, अरुणरज, पुण्िरीक, त्रवश्वस्जत ्, असभस्जत ्, आद्रा , त्रपडवमान ्, अडनवान ्, रिवान ्,
इरावान ्, िवौषध, िंभर, महस्वान ् थे। बाद मं र्ही नाम पूस्णामा क फदन र्ंद्रमा क नक्षि क आधार पर र्ैि, वैशाख,
                                                               े              े       े
ज्र्ेष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आस्श्वन, कासताक, मागाशीषा, पौष, माघ तथा फाल्गुन हो गए।
        पंर्ांग त्रवशेष अंक मं त्रवसभडन ग्रंथ एवं धमाशास्त्रों िे उल्लेस्खत प्रामास्णक कालगणना अथाात पंर्ांग िे जुिी
महत्वपूणा जानकारीर्ं क अंश प्रकासशत फकर्े गर्े हं । पाठको की पंर्ांग क त्रवषर् िे जुिी धारणाएं स्पष्ट हं। उनक
                      े                                               े                                      े
ज्ञान की वृत्रद्ध एवं जानकारी क उद्दे श्र् िे पंर्ांग िे िंबंसधत जानकारीर्ं को इि त्रवशेषांक को प्रस्तुत करने का प्रर्ाि
                               े
फकर्ा गर्ा हं ।
नोट: र्ह अंक मं पंर्ंग िे िंबंसधत िारी जानकारी र्ा िामाडर् व्र्त्रक्त को दै सनक जीवन मं उपर्ोगी हो इि उद्दे श्र् िे
दी गई हं । कालगणना िे िंबसधत त्रवषर्ं मं रुसर् रखने वाले पाठक बंधु/बहनो िे त्रवशेष अनुरोध हं की फकिी भी
                         ं
कालगणना र्ा पंर्ांग िे सतसथ सनधाारण र्ा व्रत-त्र्ौहार का सनणार् करने िे पूवा अपने धमा क व्रत, पवा, िंवत्िर र्ा
                                                                                       े
िमप्रदार् क प्रधान आर्ार्ा, गुरु, िुर्ोगर् त्रवद्वान र्ा जानकार िे परामशा करक मनार्ं क्र्ंफक स्थानीर् प्रथाओं एवं
           े                                                                 े
त्रवसभडन पंर्ांगं की गणना करने की पद्धसतर्ं मं भेद होने क कारण कभी-कभी त्रवशेष मं अंतर हो िकता है ।
                                                         े
इि अंक की प्रस्तुसत कवल पाठको क ज्ञानवधान क उद्दे श्र् की गई हं । पत्रिका मं प्रकासशत िभी जानकारीर्ां त्रवसभडन
                     े         े           े
ग्रंथ, वेद, पुराण आफद पुरास्णक माध्र्म िे प्राप्त हं । स्जिे अत्र्ंत िावधानीपूवक िंग्रह कर प्रस्तुत फकर्ा गर्ा हं । फफर
                                                                               ा
भी र्फद पत्रिका मं प्रकासशत फकिी लेख मं फकिी धमा/िंिकृ सत/िभ्र्ता क पवा सनणार्/नववषा को दशााने मं, दशाार्े
                                                                   े
गए क िंकलन, प्रमाण पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, त्रप्रंफटं ग मं, प्रकाशन मं कोई िुफट रह गई हो, तो
    े
उिे त्रवद्वान पाठक स्वर्ं िुधार लं। िंपादक एवं लेखक एवं गुरुत्व कार्ाालर् पररवार क िदस्र्ं की इि िंदभा मं कोई
                                                                                  े
स्जममेदारी र्ा जवाबदे ही नहीं रहे गी।




                                                                                                    सर्ंतन जोशी
6                                           मार्ा 2012




                           पंर्ांग गणना की वैज्ञासनक पद्धसत क्र्ा हं ?
                                                                                             सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
        भारतीर् पंर्ांग का इसतहाि अत्र्ंत प्रासर्न हं ।                      कालज्ञानं प्रर्क्ष्र्ासम लगधस्र् महात्मनः।
                  भारत मं त्रवसभडन प्रादे सशक पंर्ांग मं               कालज्ञान बोधक ज्र्ोसतषशास्त्रो का वतामान त्रवकसित
                     क्रमश सतसथ, वार, नक्षि,         र्ोग और           स्वरुप आर्ार्ा लगध मुसन की दे न हं ।
                     करण र्ह पांर् प्रमुख अंग होते हं ।                        िमर्    के     िाथ-िाथ    आर्ाभट्ट    की   खगोलीर्
                                    क्र्ोफक,        इिी    पांर्       गणना की त्रवसधर्ां भी बहुत प्रभावशाली िात्रबत हुई, फक
                                    अंगं       को       समलाकर         उनक द्वारा प्रर्ोग फकए गए सिद्धांत त्रवश्व की अडर्
                                                                          े
                                    भारतीर्             सतसथपि         िभ्र्ता एवं िंस्कृ सतर्ं मं भी नजर आने लगे थे। 11वीं
                                    अथाात ्         फदनदसशाका          िदी    मं   स्पेन    के   मिहूर   वैज्ञासनक   अल     झकााली
                                    अथाात ्      कलंिर
                                                  ै         को         (Al Zarkali) ने भी अपने कार्ं मं आर्ाभट्ट की
                                    पंर्ांग कहा जाता हं ।              खगोलीर् गणना िे मेलखाती हुई प्रणाली को तोलेिो
                                               पुरातन     काल          (Toledo) नाम फदर्ा। करीब 11वीं- 12वीं िदी िे लेकर
िे लेकर आज क आधुसनक र्ुग मं पंर्ांग की पौरास्णक
            े                                                          कई िदीर्ं तक मं र्ूरोपीर्न दे शं मं तोलेिो प्रणाली को
गणना एवं सनमााण पद्धसत मं िमर्-िमर् पर िुधार र्ा                       िवाासधक िूक्ष्म गणना क तौर पर फकर्ा जाता था।
                                                                                             े
िुक्ष्मता आती रही हं । क्र्ोफक, पंर्ांग का मुख्र् उद्दे श्र्                   भारतीत गस्णतज्ञ आर्ाभट्ट ने अपने अनुभवं एवं
मानव जीवन को प्रभात्रवत करने वाले ग्रह, नक्षि आफद                      शोधनकार्ा िे आर्ाभट्ट सिद्धांत नामक ग्रंथ की रर्ना
ब्रह्मांफिर् शत्रक्त की स्टीक गणना कर मानव िमाज के                     की स्जि मं दै सनक खगोलीर् गणना और अनुष्ठानं के
िममुख प्रस्तुत करना एवं उनको लाभांत्रवत करना हं , इि                   सलए शुभ मुहूता इत्र्ाफद का िमावेश फकर्ा गर्ा। त्रवद्वानं
सलए पंर्ांग मं नए शोध एवं आधुसनक पररक्षण द्वार                         क मत िे आर्ाभट्ट सिद्धांत को र्ारं ओर िे स्वीकृ सत
                                                                        े
पंर्ांग गणना मं स्टीकता आसत रही हं । इि पररणाम हं                      समली थी। क्र्ोफक आर्ाभट्ट अपने िमर् क िबिे बिे
                                                                                                            े
की, आज हमारे पाि पंर्ांग गणना एवं सनमााण क िशक्त
                                          े                            गस्णतज्ञ थे।
माध्र्म उपलब्ध है । आज भारत भर मं राष्ट्रीर् पंर्ांग के                        आर्ाभट्ट सिद्धांत की लोकत्रप्रर्ता एवं प्रामास्णकता
क िाथ-िाथ कई क्षेिीर् पंर्ांग उपलब्ध हं ।
 े                                                                     सिद्ध होते ही भारतीर् पंर्ांग की गणना एवं सनधाारण मं
        अंदाजन ई.500 क करीब आर्ार्ा लगध का
                      े                                                त्रवशेष महत्व एवं र्ोगदान रहा हं । आर्ाभट्ट क िमर् िे
                                                                                                                    े
वेदांग-ज्र्ोसतष (ॠक् व र्ाजुष ्) की रर्ना की थी। स्जि                  लेकर आजक आधुसनक र्ुग मं भी इि सिद्धांत को
                                                                               े
मं वस्णात हं की पांर् वषा का एक र्ुग, 366 फदनं का                      व्र्ावहाररक उद्दे श्र्ं िे भारत एवं त्रवदे शं मं सनरं तर
वषा होता हं ।                                                          इस्तेमाल मं रहा हं ।
        11 वीं िदी िे पूवकाल मं असधकतर भारतीर्
                         ा                                                     आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं
पंर्ांग की गणना आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग                  वस्णात िूर्ा सिद्धांत की प्रामास्णकता सिद्ध होने पर पंर्ांग
ज्र्ोसतष मं उल्लेस्खत तथ्र्ं पर आधाररत होती थी।                        गणना मं िुलभता होने लगी। स्जि मं आगेर्लकर
शास्त्रों मं कहाँ गर्ा हं ।
7                                         मार्ा 2012



आर्ाभट्ट, वराहसमफहर और भास्कर ने अपने र्ोगदान िे                           वैफदक पंर्ांग मं 30 सतसथर्ां होती हं । स्जिमं 15
पंर्ांग गणना पद्धसत िे जुिे ग्रंथो मं व्र्ापक िुधार फकए।            सतसथर्ां कृ ष्ण पक्ष की तथा 15 शुक्ल पक्ष की होती हं ।
त्रवसभडन प्रदे शो एवं िंस्कृ सत की सभडनता क कारण
                                           े                        लेफकन र्ंद्र की गसत मं सभडनता होने क कारण सतसथ क
                                                                                                        े           े
पंर्ांगं की गणनाओं मं अंतर हो जाता है , लेफकन कछ
                                               ु                    मान मं डर्ूना एवं सधकता बनी रहती है ।
तथ्र् प्रार्ः िभी पंर्ांगं मं िमान होते हं ।                               िंपूणा भर्क्र की 360 फिग्री को 30 सतसथर्ं को
िभी पंर्ांगं क मुख्र् पाँर् अंग: सतसथ, वार, नक्षि,
              े                                                     360 ÷ 30 =12 शेष बर्ते हं । र्ंद्र अपने पररक्रमा पथ
र्ोग और करण।                                                        पर एक फदन मं लगभग 13 अंश बढ़ता है । िूर्ा भी पृथ्वी
                                                                    क िंदभा मं एक फदन मं 1° र्ा 60 कला आगे बढ़ता हं ।
                                                                     े
वृहदवकहिार्क्रम, पंर्ांग प्रकरण, श्लोक 1 मं कहा                     इि सलए एक फदन मं र्ंद्र की कल बढ़त 13 अंश िे िूर्ा
                                                                                                ु

गर्ा है -                                                           की बढ़त क 1 अंश घटाने पर 12 अंश (13°-1°=12°)
                                                                            े
                                                                    शेष रह जाते हं । शेष बर्ी बढ़त ही िूर्ा और र्ंद्र की
       सतसथ वाररि नक्षिां र्ोग करणमेव र्।
                                                                    गसत का अंतर होती हं ।
       एतेषां र्िा त्रवज्ञानं पंर्ांग तस्डनगद्यते॥
                                                                           अमावस्र्ा क फदन िूर्ा और र्ंद्र एक िाथ एक
                                                                                      े
                                                                    ही रासश व एक ही अंशं मं स्स्थत होते हं । दोनं क बीर्
                                                                                                                   े
        फकिी भी त्रवशुद्ध पंर्ांग को फकिी स्थान त्रवशेष के
                                                                    का रासश अंतर शूडर् होता हं , इिसलए र्ंद्र फदखाई नहीं
अक्षांश और रे खांश पर सनधााररत फकर्ा जाता हं । फकिी
                                                                    दे ता हं । जब दोनं का अंतर शूडर् िे बढ़ने लगता हं तब
पंर्ांग क सनमााण क सलए फकिी सनधााररत स्थान त्रवशेष
         े        े
                                                                    शुक्ल प्रसतपदा सतसथ का उदर् (प्रारं भ) होने लगता हं ।
क अक्षांश रे खांश का स्पष्ट उल्लेख फकर्ा जाता हं ।
 े
                                                                    िमर् क िाथ जब र्ह अंतर बढ़ते-बढ़ते 12° अंश का हो
                                                                          े
        मुख्र्तः पंर्ांग प्रस्तुसत की दो मुख्र् पद्धसतर्ां
                                                                    जाता है , तब प्रसतपदा सतसथ पूणा होकर फद्वतीर्ा सतसथ का
मानी जाती हं । एक हं सनरर्न और और दिरी हं िार्न।
                                   ू                                उदर् होता है । र्ूंफक प्रसतपदा सतसथ क फदन भी र्ंद्र िूर्ा
                                                                                                         े
भारतीर् क पंर्ांग मं ज्र्ादातर सनरर्न पद्धसत असधक
         े
                                                                    िे कवल 12 अंश ही आगे सनकलता है , इिसलए प्रसतपदा
                                                                        े
प्रर्सलत हं और पािात्र् दे शं मं िार्न पद्धसत असधक
                                                                    सतसथ को भी आकाश मं र्ंद्रदशान नहीं होते हं । इिी
प्रर्सलत हं ।
                                                                    प्रकार िूर्-र्ंद्र क रासश अतर िे फकिी सतसथ त्रवशेष का
                                                                               ा        े
सतसथ :                                                              सनधाारण फकर्ा जाता हं ।   करीबन पंद्रह फदन बाद मं जब
        र्ंद्र की एक कला को सतसथ कहा जाता हं । कला                  र्ंद्र का अंतर िूर्ा िे 180 अंश होता हं   (12 x15=180)
का मान िूर्ा और र्ंद्र क अंतरांशं पर सनधााररत फकर्ा
                        े                                           आगे होता है , तब पूस्णामा सतसथ की िमासप्त होती हं तथा
जाता हं ।                                                           कृ ष्णपक्ष की प्रसतपदा सतसथ का उदर् होता हं । पुनः जब
सतसथ सनधाारण क त्रवषर् मं शास्त्रो मं वस्णात हं ।
              े                                                     िूर्ा और र्ंद्र का अंतर 360 अंश अथाात शूडर् होता हं

       अकााफद्वसनिृजः प्रार्ीं र्द्यात्र्हरहः शषी।                  तब कृ ष्ण पक्ष की अमावस्र्ा सतसथ िमाप्त होती हं ।

     तच्र्ाडद्रमानमंषैस्तु ज्ञेर्ा द्वादषसभस्स्तसथः॥                  अपनी जडम किली िे िमस्र्ाओं
                                                                                ुं
                       (श्लोक 13:मानाध्र्ार्:िूर्ा सिद्धांत:)
        वैफदक ज्र्ोसतष मं रासशर्ो को 360 फिग्री को 12                 का िमाधान जासनर्े                 माि RS:- 450
भागो मं बांटा गर्ा है स्जिे भर्क्र कहते हं ।                             िंपक करं : Call us: 91 + 9338213418,
                                                                             ा
                                                                                             91 + 9238328785,
8                                             मार्ा 2012



वार:                                                                बृहतिंफहता मं र्ंद्र का नक्षिं िे र्ोग बताते हुए
                                                                        ्
            भारतीर् ज्र्ोसतष मं एक वार एक िूर्ोदर् िे               उल्लेख फकर्ा गर्ा हं :-
दिरे िूर्ोदर् तक रहता हं ।
 ू                                                                    षिनागतासनपौष्णाद् द्वादशरौद्राच्र्मध्र्र्ोगीसन।
वार को पररभात्रषत करते हुए शास्त्रों मं उल्लेख फकर्ा
                                                                       जेष्ठाद्यासननवक्षााण्र्फिु पसतनातीत्र् र्ुज्र्डते॥
गर्ा हं
                                                                             इि श्लोक क अनुिार भी 27 नक्षिं वाला मत
                                                                                       े
                      उदर्ातउदर्ं वारः।
                            ्                                       प्रामास्णक माना जाता हं ।
                                                                             ज्र्ोसतष   मं   27     नक्षिं   को   12   रासशर्ं   मं
वार को पौरास्णक ज्र्ोसतष मं िावन फदन र्ा अहगाण के                   त्रवभास्जत फकर्ा जाता हं । प्रत्र्ेक नक्षि क र्ार र्रण
                                                                                                                े
नाम िे भी जाना जाता हं । वारं का प्रर्सलत क्रम पुरे                 (भाग) फकए गए हं । स्जििे प्रत्र्ेक र्रण का मान 13
त्रवश्व मं एक िमान है ।                                             अंश 20 कला माना गर्ा हं स्जिे उिक र्ार र्रण िे
                                                                                                     े
            िात वारं क नाम िात ग्रहं क नाम पर रखे गए
                      े               े                             भाग दे ने पर 3 अंश 20 कला शेष बर्ती हं । (13 अंश
हं । इन िात वारं का क्रम होरा क्रम क आधार पर रखे
                                    े                               20 ÷ 4 = 3 अंश 20 कला)
गए है और होरा क्रम ब्रह्मांि मं स्स्थत िूर्ााफद ग्रहं के            इि प्रकार 27 नक्षिं मं कल 108 र्रण होते हं ।
                                                                                            ु
कक्ष क्रम क अनुिार सनधााररत फकए गए हं ।
           े                                                                 वृहज्जातकम ् क अनुिार प्रत्र्ेक रासश मं 108
                                                                                           े
                                                                    र्रण को 12 रासश मं भाग दे ने िे 9 र्रण हंगे। (108÷
नक्षि :                                                             12 = 9)     त्रवद्वानो क मत िे र्ंद्र लगभग 27 फदन 7 घंटे
                                                                                            े
            ज्र्ोसतष शास्त्रो मं 12 रासशर्ां अथाात भर्क्र 360       43 समनट मं 27 नक्षि की पररक्रमा पूणा कर लेता हं ।
अंश को 27 नक्षिं क 27
                  े              भागं मं बांटा गर्ा हं ।   हर       इि सलए र्ंद्र लगभग 1 फदन (60 घटी) मं एक नक्षि मं
भाग एक नक्षि का कारक है और हर एक भाग को                             भ्रमण करता हं । लेफकन अपनी गसत कम-ज्र्ादा होने
नक्षिं का एक सनधााररत नाम फदर्ा गर्ा है ।                           कारण र्ंद्र एक नक्षि को अपनी कम िे पार करने मं
            कछ त्रवद्वानो क मतानुशार 27 नक्षिं क असतररक्त
             ु             े                    े                   लगभग 67 घटी एवं अपनी असधकतम गसत िे पार
एक और नक्षि हं स्जिे असभस्जत नक्षि क नाम िे
                                    े                               करने मं लगभग 52 घटी का िमर् लेता हं ।
जाना जाता हं इि सलए उनक मत िे कल समलाकर 28
                       े       ु
                                                                    र्ोग :
होते हं ।
                                                                    पंर्ांग मं मुख्र्तः र्ोग      दो प्रकार क माने गए हं
                                                                                                             े
            िूर्ा सिद्धांत क अनुिार एक नक्षि का मान 360
                            े
                                                                    (१) आनंदाफद र्ोग और
अंश /27 नक्षि अथाात एक नक्षि क सलए 13 अंश 20
                              े
                                                                    (२) त्रवष्कभाफद र्ोग
                                                                               ं
कला शेष रहता हं ।
                                                                             स्जि प्रकार िूर्ा और र्ंद्र क रासश अंतर िे सतसथ
                                                                                                          े
            त्रवद्वानं क कथन अनुिार उिराषाढ़ा नक्षि की
                        े
                                                                    का सनधाारण होता हं , उिी प्रकार िूर्ा और र्ंद्र क रासश
                                                                                                                     े
अंसतम 15 तथा श्रवण नक्षि की प्रथम 4 घफटर्ां क त्रबर्
                                             े
                                                                    अंतर क र्ोग करने िे त्रवष्कभाफद र्ोग का सनधाारण
                                                                          े                    ं
का काल          असभस्जत नक्षि     की होती हं ।     इि तरह
                                                                    होता हं । र्हां स्पष्ट फकर्ा जा रहा हं , की र्ोग ब्रह्मांि के
असभस्जत नक्षि का मान कल समलाकर 19 है । लेफकन
                      ु
                                                                    फकिी प्रकार क तारा िमूह अथाात ग्रह नक्षि नहीं हं ।
                                                                                 े
प्रार्ः पंर्ांगं मं इि नक्षि की गणना दे खने को नहीं
                                                                    वरन र्ंद्र एवं िूर्ा क अंतर का र्ोग सनधाारण की स्स्थती
                                                                                          े
समलती हं ।
                                                                    का नाम हं ।
9                                             मार्ा 2012



       आकाश मं सनरर्न इत्र्ाफद त्रबंदओं िे िूर्ा और
                                     ु                          अंतर शूडर् होता हं , तो प्रसतपदा सतसथ क िाथ ही स्स्थर
                                                                                                       े
र्ंद्र को िंर्ुक्त रूप िे 13 अंश 20 कला अथाात 800               फकस्तुन करण का शुरु होता हं । जब र्ंद्र गसत िूर्ा िे 6
                                                                  ं
कला     का पूरा भोग करने मं स्जतना िमर् लगता है ,               अंश आगे सनकल जाती हं , तब फकस्तुन करण की
                                                                                            ं
वह र्ोग कहलाता है । इि प्रकार क फकिी भी एक र्ोग
                               े                                िमासप्त होती हं । अथाात िूर्ा और र्ंद्र मं 6 अंश का
का मान नक्षि की भांसत 800 कला होता हं ।                         अंतर होने मं जो िमर् लगता हं , उिे फकस्तुन करण
                                                                                                     ं
त्रवष्कभाफद र्ोगं की कल िंख्र्ा 27 हं ।
       ं              ु                                         कहा जाता हं । इिी प्रकार क्रमशः 6-6 अंश क अंतर पर
                                                                                                         े
       र्ोग का दै सनक मान लगभग 60 घटी 13 पल                     करण बदल जाते हं ।
होता है । िूर्ा और र्ंद्र की गसतर्ं की अिमानता के               करण सतसथ का आधा भाग होता हं ।
कारण मध्र्म मान मं डर्ूनता एवं सधकता बनती हं । इन                       सतसथ क पूवााद्धा अथाात पहले आधे भाग मं एक
                                                                              े
र्ोगं मं वैधसत एवं व्र्सतपात नामक र्ोगं को महापातक
            ृ                                                   करण, उिराद्धा अथाात दिरे आधे भाग का एक करण।
                                                                                     ू
कहते हं ।                                                       इि प्रकार एक सतसथ मं 2 करण होते हं ।
       वार और नक्षि क िंर्ोग िे तात्कासलक आनंदाफद
                     े                                                  िूर्ा और र्डद्रमा क बीर् 6º अंश
                                                                                           े                         का अडतर
र्ोग बनते हं । पौरास्णक ग्रथं मं इनकी िंख्र्ा 28 दशााई          होने िे एक करण होता हं । ज्र्ोसतष शास्त्रो क अनुिार
                                                                                                            े
है । इडहं स्स्थर र्ोग भी कहते हं । इनकी गस्णतीर् फक्रर्ा        करण की कल िंख्र्ा 11 होती हं । 11 र्रण को दो भागो
                                                                        ु
नहीं है । र्े र्ोग िूर्ोदर् िे अगले िूर्ोदर् तक रहते हं ।       मं बाटा गर्ा हं र्र करण और स्स्थर करण।
इन र्ोगं का सनधाारण वार त्रवशेष को सनफदा ष्ट नक्षि िे
                                                                र्र करण मं
त्रवद्यमान नक्षि (असभस्जत नक्षि क िाथ) तक की
                                 े
                                                                1) बव
गणना द्वारा होता है ।
                                                                2) बालव
                                                                3) कौलव
करण:
                                                                4) तैसतल
       फकिी भी सतसथ का आधा भाग करण कहलाता हं ।
                                                                5) गर
िूर्ा और र्ंद्र मं 60 अंश का अंतर होने मं स्जतना
                                                                6) वस्णज
िमर् लगता उि अंतर िे करण का सनधाारण फकर्ा
                                                                7) त्रवत्रष्ट का िमावेश फकर्ा गर्ा हं ।
जाता हं । फकिी-फकिी पंर्ांगं मं करण का वणान कवल
                                             े
                                                                स्स्थर करण मं
िूर्ोदर्कालीन िमर् िे फकर्ा जाता हं , तो फकिी-फकिी
                                                                1) शकसन
                                                                     ु
पंर्ांगं मं सतसथ की िंपूणा अवसध को दो िमान भाग
                                                                2) र्तुष्पद
करक त्रवशेश तौर पर करणं का सनधाारण कर दे ते हं ।
   े
                                                                3) नाग
एक सतसथ मं दो करण होते हं । इनकी कल िंख्र्ा ११ है ।
                                  ु
                                                                4) फकस्तुध्न का िमावेश फकर्ा गर्ा हं ।
करण को दो भागं मं बांटा गर्ा हं र्र और स्स्थर।
       बव, बालव, कौलव, तैत्रिल, गर, वस्णज एवं त्रवत्रष्ट                जब िूर्ा और र्डद्रमा की गसत मं 13º-20' का
(भद्रा) र्र और फकस्तुन, शकसन, र्तुष्पद एवं नाग स्स्थर
                 ं        ु                                     अडतर होने िे एक र्ोग होता हं । कल समला कर 27
                                                                                                ु
िंज्ञक करण हं ।                                                 र्ोग होते हं आकाश की स्स्थसत िे इन र्ोगो का कोइ
       करण की शुरुआत स्स्थर करण अथाात फकस्तुन िे
                                        ं                       िमबडध नहीं हं । वैिे भी र्ोगो की आवश्र्कता त्रवशेष
होती हं जब भर्क्र मं िूर्ा और र्ंद्र क बीर् अंश का
                                      े                         रुप िे र्ािा, मुहुता इत्र्ाफद प्रिंगं मं पिती हं ।
10                                       मार्ा 2012



र्ोगो क नाम
       े                                                       एक ही स्थान परहोते हं अथाात 0º का अडतर होता हं तो
1) त्रवष्कमभ
          ु                     15) वज्र                       अमावस्र्ा सतसथ कहते हं ।    भर्क्र का कलमान 360º हं ,
                                                                                                      ु
2) प्रीसत                       16) सित्रद्ध                   तो एक सतसथ= 360÷ 30=12º अथाात िूर्-र्डद्र मं 12º
                                                                                                 ा
3) आर्ुष्मान                    17) व्र्तीपात                  का अडतर पिने पर एक सतसथ होती हं ।
4) िौभाग्र्                     18) वरीर्ान
5) शोभन                         19) पररध                       उदाहरण स्वरुप:
6) असतगि                        20) सशव                        0º िे 12º तक शुक्ल पक्ष की प्रसतपदा 12º िे 24º तक
7) िुकमाा                       21) सिद्ध                      फद्वतीर् तथा क्रमशः सतसथ वृत्रद्ध होकर अंत मं 330º िे
8) घृसत                         22) िाध्र्                     360º तक कृ ष्ण पक्ष की अमावस्र्ा को अंत होती हं ।
9) शूल                          23) शुभ                               भारतीर् ज्र्ोसतष की परमपरा मं सतसथ की वृत्रद्ध
10) गंि                         24) शुक्ल                      एवं सतसथ का क्षर् भी होता हं । र्फद फकिी सतसथमं दो
11) वृत्रद्ध                    25) ब्रह्म                     बार िूर्ोदर् हो जाता हं , तो उिे सतसथ वृत्रद्ध कहलाती हं
12) ध्रुव                       26) ऎडद्र                      तथा स्जि सतसथ मं िूर्ोदर् न हो तो उिे सतसथका क्षर्
13) व्र्ाघात                    27) वैधसत
                                       ृ                       हो जाना कहा जाता हं ।
14) हषाण                                                              उदाहरण क सलए एक सतसथ िूर्ोदर् िे पूवा
                                                                              े
                                                               प्रारमभ होती हं तथा िंपूणा फदन रहकर अगले फदन
र्ाडद्र माि
                                                               िूर्ोदर् क 2 घंटे पिात तक भी रहती हं तो र्ह सतसथ
                                                                         े
र्ाडद्र माि मं कल 30 सतसथर्ाँ होती हं स्जनमं 15
                ु
                                                               दो िूर्ोदर् को स्पशा कर लेती हं ।
सतसथर्ाँ शुक्ल पक्ष की और 15 कृ ष्ण पक्ष की होती हं ।
                                                                      इिसलए इि सतसथमं वृत्रद्ध हो जाती हं । इिी प्रकार
सतसथर्ाँ सनमन प्रकार की हं ।
                                                               एक अडर् सतसथ िूर्ोदर् क पिात प्रारमभ होती है तथा
                                                                                      े
1) प्रसतपदा                     9) नवमी
                                                               दिरे फदन िूर्ोदर् िे पहले िमाप्त हो जाती हं , तो र्ह
                                                                ू
2) फद्वतीर्ा                    10) दशमी                       सतसथ एक भी िूर्ोदर् को स्पशा नहीं करती इि कारण
3) तृतीर्ा                      11) एकादशी                     उिे क्षर् होने िे सतसथक्षर् कहा जाता हं ।
4) र्तुथी                       12) द्वादशी
5) पंर्मी                       13) िर्ोदशी
                                                                         रत्न-उपरत्न एवं रुद्राक्ष
6) षष्टी                        14) र्तुदाशी                   हमारे र्हां िभी प्रकार क रत्न-उपरत्न एवं रुद्राक्ष
                                                                                       े

7) िप्तमी                       15) पूस्णामा                   व्र्ापारी मूल्र् पर उपलब्ध हं । ज्र्ोसतष कार्ा िे

8) अष्टमी                       30) अमावस्र्ा                  जुिे़ बधु/बहन व रत्न व्र्विार् िे जुिे लोगो के
           सतसथर्ाँ शुक्लपक्ष की प्रसतपदा िे सगनी जाती हं ।    सलर्े त्रवशेष मूल्र् पर रत्न व अडर् िामग्रीर्ा व
पूस्णामा को 15 तथा अमावस्र्ा को 30 सतसथ कहते हं ।              अडर् िुत्रवधाएं उपलब्ध हं ।
स्जि फदन िूर्ा व र्डद्रमा मं 180º अंश का अडतर (दरी)
                                                ू
                                                                           गुरुत्व कार्ाालर् िंपक:
                                                                                                 ा
होता हं अथाात िूर्ा व र्डद्र आमने-िामने हो जाते हं तो
                                                                                91+ 9338213418,
उिे पूस्णामा सतसथ कहा जाता हं और जब िुर्ा व र्डद्रमा                            91+ 9238328785,
11                                     मार्ा 2012




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12                       मार्ा 2012




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                                         Power By: GURUTVA KARYALAY




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13                                          मार्ा 2012




                              कलेण्िर र्ुग की उत्पत्रि कब हुई ?
                               ै
                                                                                              स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
       िाधारणतः कलेण्िर का उपर्ोग फदनांकं (तारीखं)
                 ै                                       तो उिक बाद वे फिलं की बोआई करते थे। बाढ़ आने
                                                               े
मफहने, वषा का फहिाब रखने क सलए फकर्ा जाता हं ।
                          े                              क बाद जब नील नदी मं दबारा बाढ़ आती थी तो उडहंने
                                                          े                   ु
कलेण्िर का उद्गम कब हुवा और कलेण्िर का उपर्ोग
 ै                           ै                           दे खा फक उि दौरान र्ांद 12 बार उगता था। र्ानी, 12
मानव िमाज कब िे कर रहा हं र्ह दावे क िाथ कोई
                                    े                    र्ंद्र-माहं क बाद बाढ़ आती थी और तब वे फिल की
                                                                      े
नहीं कह िकता! क्र्ोफक, जब पौरास्णक काल मं जब             बोआई करते थे। समस्र क कछ त्रवद्वानो ने दे खा फक जब
                                                                              े ु
आफद मानव वन-बीहिं और गुफाओं मं रहते थे तो, र्हं          बाढ़ आती है तो आिमान मं एक तेज र्मकदार तारा भी
दे ख कर अवश्र् आिर्ार्फकत हुए हंगे फक, प्रसतफदन          फदखाई दे ने लगता है । उडहंने गणना की तो पता लगा
िूरज उदर् होता हं और शाम को अस्त हो जाता हं , र्ांद      फक 365 फदन-रात क बाद फफर ऐिा ही होता है । फफर
                                                                         े
सनकलता है और छप जाता हं । कभी भर्ंकर गमी पिती
              ू                                          तारा र्मकने लगता है । समस्र क सनवासिर्ं ने 365 फदन
                                                                                      े
हं , तो कभी जोरं की वषाा होने लगती हं । और फफर,          क वषा को 30 फदन क 12 महीनं मं बांट फदर्ा। वषा क
                                                          े               े                             े
कभी फहला कर रख दे ने वाली ठं ि पिने लगती हं। उिने        अंत मं पांर् फदन बर् गए। इि तरह समस्र क सनवासिर्ं
                                                                                                े
जरूर िोर्ा होगा फक प्रकृ सत मं िमर्-िमर् पर ऐिे          ने कलंिर का आत्रवष्कार कर सलर्ा होगा।
                                                             ै
बदलाव क्र्ं होते हं ? क्र्ं ऋतुएं आती-जाती हं ?                  अभी तक हुए ऐसतहासिक शोध िे जुसलर्न और
       जब आफद मानव ने खेती करना शुरू फकर्ा होगा          ग्रेगोरीर्न कलंिर
                                                                      ै        महत्वपूणा माने जाते हं । जुसलर्न
तब, उिने जमीन मं बीज बोर्े हंगे तो उिने दे खा होगा       कलंिर
                                                          ै        रोम क शािक जुसलर्ि िीजर ने तैर्ार फकर्ा
                                                                        े
फक फिल उगती हं , बढ़ती है और िमर् क िाथ-िाथ
                                  े                      था। आगे र्ल कर पोप ग्रेगोरी तेरहवं ने इि कलेण्ि मं
                                                                                                   ै
पक जाती है । फफर उि फिल की कटाई कर लेता होगा।            िुधार करक ग्रेगोरीर्न कलंिर तैर्ार फकर्ा था।
                                                                  े             ै
पुनः बीज बोने का िमर् आने पर फफर िे बीज बोए                      45 ईस्वी पूवा िे अथाात इि िमर् िे पहले तक
हंगे। इि तरह फिल की बोआई-कटाई का क्रम र्लता              रोम िाम्राज्र् मं रोमन कलंिर
                                                                                 ै               प्रर्सलत था। रोमन
रहा होगा। इि क्रम िे शार्द उिने पहली बार इि बात          कलंिर
                                                          ै        मं वषा का प्रारं भ 1 मार्ा िे होता था। प्रारं भ मं
का अंदाजा लगाना शुरू फकर्ा होगा फक फिल बोने के           रोमन कलंिर
                                                               ै         मं वषा 10 माह का होता था फफर उिे 12
फकतने िमर् बाद फफर िे नई फिल क बीज बोने हं ।
                              े                          मफहनो का फकर्ा गर्ा।
धीरे -धीरे आफद मानव नं इि तरह शार्द पहली बार पूरे                जब रोमन कलंिर
                                                                          ै           मं 10 माह होते थे तो उि मं
वषा का फहिाब लगार्ा होगा।      आफद काल िे ही फकिी        10 माह क्रमशः माफटा अि, एत्रप्रसलि, मेअि, जूसनअि,
भी तरह त्रवश्व की त्रवसभडन िभ्र्ताओं ने सनस्ित तौर पर    स्क्वंफटसलि, िैस्क्िफटसलि, िेप्टं बर, अक्टू बर, नवंबर तथा
अपने-अपने ढं ग िे िमर् का फहिाब लगार्ा होगा।             फदिंबर।
                                                                 रोमन कलंिर
                                                                       ै         को 10 माह िे जब 2 माह समला
समस्रवािीर्ं क मत िे:
              े                                          कर उिे 12 मफहनो का फकर्ा गर्ा तो उि मं 12 माह

अनुमासनक तौर पर एिा माना जाता हं की वषा का               क्रमशः लाडर्ुआरीअि, फब्रुआरीअि, माफटा अि, एत्रप्रसलि,
                                                                              े

पहला फहिाब िबिे 6,000 वषा पहले समस्र क सनवासिर्ं
                                      े                  मेअि,     जूसनअि,    स्क्वंफटसलि,    िैस्क्िफटसलि,   िेप्टं बर,

ने लगार्ा था। हर िाल जब नील नदी मं बाढ़ आती थी            अक्टू बर, नमबबर तथा फदिबबर थे।
14                                           मार्ा 2012



        रोमन कलंिर
              ै           क 10 महीनं क वषा मं कवल
                           े          े        े                पूवा मं िम्राट ऑगस्टि क नाम पर िेक्िफटसलि माह
                                                                                       े
304 फदन होते थे। एिा माना जाता है फक रोम क िम्राट
                                          े                     का नाम ‘अगस्त’ रख फदर्ा गर्ा।
‘नुमा पोस्मपसलअि’ ने फदिंबर और मार्ा महीनं क बीर्
                                            े                           माना जाता हं की जूसलर्न कलंिर
                                                                                                 ै               क अनुशार
                                                                                                                  े
फरवरी और जनवरी माह जोिे । स्जििे वषा 354 र्ा 355                ईस्टर का त्र्ौहार और अडर् धासमाक सतसथर्ां िंबंसधत
फदनं का हो गर्ा। हर दो वषा बाद असधमाि             जोि कर        ऋतुओं मं िही िमर् पर नहीं आती थीं। स्जििे कलंिर
                                                                                                           ै
366 फदन का वषा मान सलर्ा जाता था। िमर् क िाथ-
                                        े                       मं असतररक्त फदन जमा हो गए थे। पोप ग्रेगोरी 1572 िे
िाथ इिमं िुधार होते रहे ।                                       1585 तक तेरहवं पोप रहे । िन ् 1582 तक वनाल
        स्जििे कलंिर
                ै           की गणनाएं र्ंद्रमा क बजार्
                                                े               इस्क्वनॉक्ि 10 फदन त्रपछि र्ुका था।
फदनं क आधार पर होने लगीं। पृथ्वी द्वारा िूर्ा की
      े                                                                 पोप ग्रेगोरी तेरहवं ने जूसलर्न कलंिर
                                                                                                        ै            की 10
पररक्रमा की गणना क आधार पर वषा मं फदनं की
                  े                                             फदनं की िुफट को िुधारने क सलए उि वषा 5 अक्टू बर
                                                                                         े
िंख्र्ा 365.25 हो गई। इि िवा अथाात ् एक र्ौथाई                  की सतसथ को 15 अक्टू बर मानने का िुझाव फदर्ा।
फदन िे गणना मं बिा भ्रम पैदा होने लगा।                          स्जिक फलस्वरुप जूसलर्न कलंिर
                                                                     े                  ै               मं िे 10 फदन घटा
        उि िमर् रोम क शािक जुसलर्ि िीजर ने
                     े                                          फदए गए। उि िमर् लीप वषा शताब्दी क अंत मं रखा
                                                                                                 े
रोमन कलंिर
      ै         मं त्रवशेष िुधार फकर्ा। ईस्वी पूवा 44 मं        गर्ा बशते वह 400 की िंख्र्ा िे त्रवभास्जत होता हो।
स्क्वंफटसलि माह का नाम बदल कर जूसलर्ि िीजर के                   इिीसलए 1700, 1800 और 1900 लीप वषा नहीं थे
िममान मं ‘जुलाई’ रख फदर्ा गर्ा। जुसलर्ि िीजर ने                 जबफक वषा 2000 लीप वषा था। इि िंशोधन िे ग्रेगोरीर्
कलंिर
 ै       को िुधारने मं समस्र क खगोलत्रवद िोसिजेनीज
                              े                                 कलंिर
                                                                 ै        की शुरूआत हुई स्जिे आज त्रवश्व क असधकांश
                                                                                                          े
की मदद ली। फफर वषा 1 जनवरी िे शुरू फकर्ा गर्ा।                  दे शं मं अपनार्ा जा रहा है ।
स्जि मं हर र्ौथे वषा को छोि कर प्रत्र्ेक वषा 365 फदन                    इिक बावजूद त्रवश्व क कई दे श िमर् की गणना
                                                                           े                े
का होगा। र्ौथा वषा लीप वषा होगा और उिमं 366 फदन                 क सलए अभी भी अपने परं परागत पंर्ांग र्ा कलंिर
                                                                 े                                       ै                   का
हंगे। फरवरी को छोि कर प्रत्र्ेक माह मं 31 र्ा 30                उपर्ोग कर रहे हं । फहडद , र्ीनी, इस्लामी र्ा फहजरी और
                                                                                        ु
फदन हंगे। फरवरी मं 28 फदन हंगे लेफकन लीप वषा मं                 र्हूदी कलंिर इिक प्रमुख उदाहरण हं ।
                                                                        ै       े
फरवरी मं 29 फदन माने जाएंग। अनुमान है फक 8 ईस्वी
                          े


                                                  दगाा बीिा र्ंि
                                                   ु
  शास्त्रोोक्त मत क अनुशार दगाा बीिा र्ंि दभााग्र् को दर कर व्र्त्रक्त क िोर्े हुवे भाग्र् को जगाने वाला माना
                   े        ु              ु           ू                े
  गर्ा हं । दगाा बीिा र्ंि द्वारा व्र्त्रक्त को जीवन मं धन िे िंबंसधत िंस्र्ाओं मं लाभ प्राप्त होता हं । जो व्र्त्रक्त
             ु
  आसथाक िमस्र्ािे परे शान हं, वह व्र्त्रक्त र्फद नवरािं मं प्राण प्रसतत्रष्ठत फकर्ा गर्ा दगाा बीिा र्ंि को स्थासप्त
                                                                                          ु
  कर लेता हं , तो उिकी धन, रोजगार एवं व्र्विार् िे िंबंधी िभी िमस्र्ं का शीघ्र ही अंत होने लगता हं । नवराि
  क फदनो मं प्राण प्रसतत्रष्ठत दगाा बीिा र्ंि को अपने घर-दकान-ओफफि-फक्टरी मं स्थात्रपत करने िे त्रवशेष
   े                            ु                         ु         ै
  लाभ प्राप्त होता हं , व्र्त्रक्त शीघ्र ही अपने व्र्ापार मं वृत्रद्ध एवं अपनी आसथाक स्स्थती मं िुधार होता दे खंगे। िंपूणा
  प्राण प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा र्ैतडर् दगाा बीिा र्ंि को शुभ मुहूता मं अपने घर-दकान-ओफफि मं स्थात्रपत करने िे
                                       ु                                       ु
  त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं ।                                           मूल्र्: Rs.550 िे Rs.8200 तक
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  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका मार्ा- 2012 NON PROFIT PUBLICATION .
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका मार्ा 2012 िंपादक सर्ंतन जोशी गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग िंपका गुरुत्व कार्ाालर् 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA फोन 91+9338213418, 91+9238328785, gurutva.karyalay@gmail.com, ईमेल gurutva_karyalay@yahoo.in, http://gk.yolasite.com/ वेब http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ पत्रिका प्रस्तुसत सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी फोटो ग्राफफक्ि सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टे क इस्डिर्ा सल) ई- जडम पत्रिका E HOROSCOPE अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा Create By Advanced उत्कृ ष्ट भत्रवष्र्वाणी क िाथ े Astrology Excellent Prediction १००+ पेज मं प्रस्तुत 100+ Pages फहं दी/ English मं मूल्र् माि 750/- GURUTVA KARYALAY 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. अनुक्रम पंर्ांग त्रवशेष पंर्ांग गणना की वैज्ञासनक पद्धसत क्र्ा हं ? 6 दे श क त्रवसभडन प्रांतो मं नववषा का प्रारं भ े 25 कलेण्िर र्ुग की उत्पत्रि कब हुई ? ै 13 ज्र्ोसतष क अनुशार शुभ-अशुभ मुहूता का प्रभाव? े 26 पौरास्णक काल मं पंर्ांग गणना किे होती थी? ै 15 भद्रा त्रवर्ार 28 वैफदक पंर्ांग का इसतहाि? 18 फदशाशूल त्रवर्ार 31 कलंिर व पंर्ांग मं क्र्ा अंतर हं ? ै 21 फदशाशूल महत्वपूणा र्ा कताव्र् महत्वपूणा है ? 32 पंर्ांग का मूल आधार? 24 ितिंग की मफहमा 33 नवराि त्रवशेष नव िंवत्िर का पररर्र् 35 भवाडर्ष्टकम ् 48 त्रवश्वाविु िंवत्िर मं जडम लेने वालं का भत्रवष्र् 36 क्षमा-प्राथाना 48 फल र्ैि नवराि मं नवदगाा आराधना त्रवशेष फलदार्ी ु 37 दगााष्टोिर शतनाम स्तोिम ् ु 49 र्ैि नवराि व्रत त्रवशेष लाभदार्ी होता हं । 39 त्रवश्वंभरी स्तुसत 50 किे करे नवराि व्रत ? ै 42 मफहषािुरमफदासनस्तोिम ् 51 नवराि मं दे वी उपािना िे मनोकामना पूसता 43 दवाा पूजन मं रखे िावधासनर्ां ु 53 िप्तश्र्ललोकी दगाा ु 44 श्रीदगााअष्टोिर शतनाम पूजन ु 54 दगाा आरती ु 44 परशुराम कृ त श्रीदगाास्तोि ु 57 दगाा र्ालीिा ु 45 श्री दगाा कवर्म ् (रुद्रर्ामलोक्त) ु 61 श्रीकृ ष्ण कृ त दे वी स्तुसत 46 श्री माकण्िे र् कृ त लघु दगाा िप्तशती स्तोिम ् ा ु 62 ऋग्वेदोक्त दे वी िूक्तम ् 46 नव दगाा स्तुसत ु 63 सिद्धकस्जकास्तोिम ् ुं 47 नवदगाा रक्षामंि ु 63 दगााष्टकम ् ु 47 हमारे उत्पाद दगाा बीिा र्ंि ु 14 मंि सिद्ध दै वी र्ंि िूसर् 38 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी 56 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 79 मंगल र्ंि िे ऋणमुत्रक्त 20 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसर् 38 नवरत्न जफित श्री र्ंि 64 िवा रोगनाशक र्ंि/ 84 द्वादश महा र्ंि 23 मंि सिद्ध दलभ िामग्री 43 िवा कार्ा सित्रद्ध कवर् ु ा 65 मंि सिद्ध कवर् 86 मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि 27 दस्क्षणावसता शंख 40 जैन धमाक त्रवसशष्ट र्ंि े 66 YANTRA 87 शसन पीिा सनवारक र्ंि 32 रासश रत्न 41 अमोद्य महामृत्र्ुंजर् कवर् 68 GEMS STONE 89 मंि सिद्ध रूद्राक्ष 34 कनकधारा र्ंि 53 राशी रत्न एवं उपरत्न 68 घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि 67 मंि सिद्ध िामग्री- 24, 31 77, स्थार्ी और अडर् लेख िंपादकीर् 4 दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका 80 मार्ा मासिक रासश फल 69 फदन-रात क र्ौघफिर्े े 81 मार्ा 2012 मासिक पंर्ांग 73 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 82 मार्ा 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार 75 ग्रह र्लन मार्ा-2012 83 मार्ा 2012 -त्रवशेष र्ोग 80 हमारा उद्दे श्र् 90
  • 4. GURUTVA KARYALAY िंपादकीर् त्रप्रर् आस्त्मर् बंधु/ बफहन जर् गुरुदे व आज िमाज मं हर क्षेि मं पस्िमी िंस्कृ सत का प्रभाव असधक तीव्र होता जा रहा हं । ऐिा नहीं हं , फक सिफा भारतीर् लोग अपनी िंस्कृ सत एवं परं परा िे फकनारा कर पस्िमी िंस्कृ सत को अपना रहे हं ?, बस्ल्क िंपूणा दसनर्ा मं ु लोग अपनी िंस्कृ सत एवं परं परा को भूलते जा रहे हं । ऐिी त्रवषम पररस्स्थसत मं भी ऐिे कछ िंस्कारी लोग हं , स्जडहं ु ने पूणा दृढ़ता एवं इमानदारी क िाथ अपने पूवजो द्वारा प्राप्तअपनी बहुमल्र् िंस्कृ सत एवं परं परा को िंजोर्े रखा हं । े ा ू िैकिो वषा पूवाा मनुष्र् ने जब अपनी आंखं खोली तो उिे िूर्ा व र्डद्रमा अत्र्सधक प्रकाशमान फदखे होगं। िमर् के िाथ िाथ उिक सनरं तर अपने प्रर्ािो एवं अनुभवो िे अपनी स्जज्ञािा िे िमर् का आकलन आफद का कार्ा प्रारं भ े करफदर्ा था। प्रार्ीन भारतीर् ग्रंथं मं कालगणना क त्रवषर् मं त्रवसभडन उल्लेख समलता है, स्जििे सिद्ध होता है फक े हजारो वषा पूवा भी भारतीर् ऋषीमुसन अडर् िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत क त्रवद्वानो िे इि त्रवषर् मं उनिे कहीं ज्र्ादा िजग े थे। ऋग्वेद, ब्रह्मांि पुराण, वार्ु पुराण आफद पौरास्णक ग्रंथो मं कालगणना र्ा िंवत्िर का उल्लेख समलता हं । त्रवद्वानो क मत िे ईस्वी िन ् िे कई शतास्ब्दर्ं पूवा ज्र्ोसतष को काल स्वरूप माना जाता था। इि सलए ज्र्ोसतष को वेद िे े जोिकर वेदांगं मं िस्ममसलत फकर्ा गर्ा था। तब िे लेकर आज तक त्रवसभडन त्रवद्वानो ने कालगणना मं अपना महत्वपूणा र्ोगदान फदर्ा स्जिक फलस्वरुप प्रार्ीन काल िे आज तक अनेकं िंवतं का उल्लेख त्रवसभडन ग्रडथं िे े प्राप्त होता है । भारतीर् िभ्र्ता एवं िंस्कृ सत मं त्रवसभडन धमा एवं िंप्रदार् क लोग बिते हं िबकी अपने धमा र्ा े िमुदार् क त्रवद्वानं र्ा पूवजो पर अटू ट श्रद्धा एवं त्रवश्वाि हं । स्जिक फल स्वरुप वहँ लोग अपनी माडर्ता एवं िंस्कारं े ा े क आधार पर अपनी िंस्कृ सत एवं िभ्र्ता को कार्म रखने क सलए अपनी माडर्ता एवं िंस्कृ सत क अनुशार वषा की े े े गणना अलग-अलग िंवत ् क रुप मं करते हं । े फहडद ु िंस्कृ सत क त्रवद्वानो क मत िे त्रवक्रम िंवत बहुजत लोगो द्वारा माडर्ता प्राप्त है , इि सलए असधकतर लोग े े त्रवक्रम िंवत को मानते हं । गुजरात मं त्रवक्रम िंवत कासताक शुक्ल प्रसतपदा िे प्रारमभ होता है । लेफकन उिरी भारत मं त्रवक्रम िंवत र्ैि शुक्ल प्रसतपदा िे प्रारमभ होता है । इिक अलावा भारत मं े  स्कडद िंवत ् तथा शक् िंवत ् अथाात शासलवाहन िंवत ् तथा िातवाहन िंवत ्, हषा िंवत ्। करल मं काल्लम अथवा े मालाबार िंवत ्। कश्मीर मं िप्तऋत्रष िंवत ् अथाात लौफकक िंवत ्। लक्ष्मण िंवत ्। गौतम बुद्ध िंवत ्। वधामान महावीर िंवत ्।सनमबाक िंवत ्। बंगाली आिामी िंवत ्। पारिी शहनशाही िंवत ्। र्हूदी िंवत ्। बहास्पत्र् वषा इत्र्ाफद िंवत ् का ा प्रर्लन रहा है ।  पंर्ांग सनमााण हे तु भारतीत गस्णतज्ञ आर्ाभट्ट ने अपने अनुभवं एवं शोधनकार्ा िे आर्ाभट्ट सिद्धांत नामक ग्रंथ की रर्ना की स्जि मं दै सनक खगोलीर् गणना और अनुष्ठानं क सलए शुभ मुहूता इत्र्ाफद का िमावेश फकर्ा गर्ा। े त्रवद्वानं क मत िे आर्ाभट्ट सिद्धांत को र्ारं ओर िे स्वीकृ सत समली थी। क्र्ोफक आर्ाभट्ट अपने िमर् क िबिे बिे े े गस्णतज्ञ थे।
  • 5. आर्ाभट्ट सिद्धांत की लोकत्रप्रर्ता एवं प्रामास्णकता सिद्ध होते ही भारतीर् पंर्ांग की गणना एवं सनधाारण मं त्रवशेष महत्व एवं र्ोगदान रहा हं । आर्ाभट्ट क िमर् िे लेकर आजक आधुसनक र्ुग मं भी इि सिद्धांत को े े व्र्ावहाररक उद्दे श्र्ं िे भारत एवं त्रवदे शं मं सनरं तर इस्तेमाल मं रहा हं । आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं वस्णात िूर्ा सिद्धांत की प्रामास्णकता सिद्ध होने पर पंर्ांग गणना मं िुलभता होने लगी। स्जि मं आगेर्लकर आर्ाभट्ट, वराहसमफहर और भास्कर ने अपने र्ोगदान िे पंर्ांग गणना पद्धसत िे जुिे ग्रंथो मं व्र्ापक िुधार फकए। त्रवसभडन प्रदे शो एवं िंस्कृ सत की सभडनता क कारण पंर्ांगं की गणनाओं मं अंतर हो जाता है , लेफकन कछ तथ्र् प्रार्ः े ु िभी पंर्ांगं मं िमान होते हं । िभी पंर्ांगं क मुख्र् पाँर् अंग: सतसथ, वार, नक्षि, र्ोग और करण। े पंर्ांग क त्रवषर् मं र्जुवद काल मं उल्लेख समलत हं की उि काल मं भारतीर्ं ने मािं क 12 नाम क्रमशः मधु, े े े माधव, शुक्र, शुसर्, नभ, नभस्र्, इष, ऊजा, िह, िहस्र, तप तथा तपस्र् रखे थे। मधुि माधवि शुक्रि शुसर्ि नभि नभस्र्िेषिोजाि िहि िहस्र्ि तपि तपस्र्िोपर्ामगृहीतोसि िहं िवोस्र्हं हस्पत्र्ार् त्वा॥ (सतत्रिर िंफहता 1.4.14) र्जुवेद क ऋत्रष थे वैशमपार्न क सशष्र् क सशष्र् सतत्रिर िंफहता (उपसनषर्) मं िंवत्िर क मािं क 13 े े े े े मफहनो क नाम े क्रमशः– अरुण, अरुणरज, पुण्िरीक, त्रवश्वस्जत ्, असभस्जत ्, आद्रा , त्रपडवमान ्, अडनवान ्, रिवान ्, इरावान ्, िवौषध, िंभर, महस्वान ् थे। बाद मं र्ही नाम पूस्णामा क फदन र्ंद्रमा क नक्षि क आधार पर र्ैि, वैशाख, े े े ज्र्ेष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद, आस्श्वन, कासताक, मागाशीषा, पौष, माघ तथा फाल्गुन हो गए। पंर्ांग त्रवशेष अंक मं त्रवसभडन ग्रंथ एवं धमाशास्त्रों िे उल्लेस्खत प्रामास्णक कालगणना अथाात पंर्ांग िे जुिी महत्वपूणा जानकारीर्ं क अंश प्रकासशत फकर्े गर्े हं । पाठको की पंर्ांग क त्रवषर् िे जुिी धारणाएं स्पष्ट हं। उनक े े े ज्ञान की वृत्रद्ध एवं जानकारी क उद्दे श्र् िे पंर्ांग िे िंबंसधत जानकारीर्ं को इि त्रवशेषांक को प्रस्तुत करने का प्रर्ाि े फकर्ा गर्ा हं । नोट: र्ह अंक मं पंर्ंग िे िंबंसधत िारी जानकारी र्ा िामाडर् व्र्त्रक्त को दै सनक जीवन मं उपर्ोगी हो इि उद्दे श्र् िे दी गई हं । कालगणना िे िंबसधत त्रवषर्ं मं रुसर् रखने वाले पाठक बंधु/बहनो िे त्रवशेष अनुरोध हं की फकिी भी ं कालगणना र्ा पंर्ांग िे सतसथ सनधाारण र्ा व्रत-त्र्ौहार का सनणार् करने िे पूवा अपने धमा क व्रत, पवा, िंवत्िर र्ा े िमप्रदार् क प्रधान आर्ार्ा, गुरु, िुर्ोगर् त्रवद्वान र्ा जानकार िे परामशा करक मनार्ं क्र्ंफक स्थानीर् प्रथाओं एवं े े त्रवसभडन पंर्ांगं की गणना करने की पद्धसतर्ं मं भेद होने क कारण कभी-कभी त्रवशेष मं अंतर हो िकता है । े इि अंक की प्रस्तुसत कवल पाठको क ज्ञानवधान क उद्दे श्र् की गई हं । पत्रिका मं प्रकासशत िभी जानकारीर्ां त्रवसभडन े े े ग्रंथ, वेद, पुराण आफद पुरास्णक माध्र्म िे प्राप्त हं । स्जिे अत्र्ंत िावधानीपूवक िंग्रह कर प्रस्तुत फकर्ा गर्ा हं । फफर ा भी र्फद पत्रिका मं प्रकासशत फकिी लेख मं फकिी धमा/िंिकृ सत/िभ्र्ता क पवा सनणार्/नववषा को दशााने मं, दशाार्े े गए क िंकलन, प्रमाण पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, त्रप्रंफटं ग मं, प्रकाशन मं कोई िुफट रह गई हो, तो े उिे त्रवद्वान पाठक स्वर्ं िुधार लं। िंपादक एवं लेखक एवं गुरुत्व कार्ाालर् पररवार क िदस्र्ं की इि िंदभा मं कोई े स्जममेदारी र्ा जवाबदे ही नहीं रहे गी। सर्ंतन जोशी
  • 6. 6 मार्ा 2012 पंर्ांग गणना की वैज्ञासनक पद्धसत क्र्ा हं ?  सर्ंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी भारतीर् पंर्ांग का इसतहाि अत्र्ंत प्रासर्न हं । कालज्ञानं प्रर्क्ष्र्ासम लगधस्र् महात्मनः। भारत मं त्रवसभडन प्रादे सशक पंर्ांग मं कालज्ञान बोधक ज्र्ोसतषशास्त्रो का वतामान त्रवकसित क्रमश सतसथ, वार, नक्षि, र्ोग और स्वरुप आर्ार्ा लगध मुसन की दे न हं । करण र्ह पांर् प्रमुख अंग होते हं । िमर् के िाथ-िाथ आर्ाभट्ट की खगोलीर् क्र्ोफक, इिी पांर् गणना की त्रवसधर्ां भी बहुत प्रभावशाली िात्रबत हुई, फक अंगं को समलाकर उनक द्वारा प्रर्ोग फकए गए सिद्धांत त्रवश्व की अडर् े भारतीर् सतसथपि िभ्र्ता एवं िंस्कृ सतर्ं मं भी नजर आने लगे थे। 11वीं अथाात ् फदनदसशाका िदी मं स्पेन के मिहूर वैज्ञासनक अल झकााली अथाात ् कलंिर ै को (Al Zarkali) ने भी अपने कार्ं मं आर्ाभट्ट की पंर्ांग कहा जाता हं । खगोलीर् गणना िे मेलखाती हुई प्रणाली को तोलेिो पुरातन काल (Toledo) नाम फदर्ा। करीब 11वीं- 12वीं िदी िे लेकर िे लेकर आज क आधुसनक र्ुग मं पंर्ांग की पौरास्णक े कई िदीर्ं तक मं र्ूरोपीर्न दे शं मं तोलेिो प्रणाली को गणना एवं सनमााण पद्धसत मं िमर्-िमर् पर िुधार र्ा िवाासधक िूक्ष्म गणना क तौर पर फकर्ा जाता था। े िुक्ष्मता आती रही हं । क्र्ोफक, पंर्ांग का मुख्र् उद्दे श्र् भारतीत गस्णतज्ञ आर्ाभट्ट ने अपने अनुभवं एवं मानव जीवन को प्रभात्रवत करने वाले ग्रह, नक्षि आफद शोधनकार्ा िे आर्ाभट्ट सिद्धांत नामक ग्रंथ की रर्ना ब्रह्मांफिर् शत्रक्त की स्टीक गणना कर मानव िमाज के की स्जि मं दै सनक खगोलीर् गणना और अनुष्ठानं के िममुख प्रस्तुत करना एवं उनको लाभांत्रवत करना हं , इि सलए शुभ मुहूता इत्र्ाफद का िमावेश फकर्ा गर्ा। त्रवद्वानं सलए पंर्ांग मं नए शोध एवं आधुसनक पररक्षण द्वार क मत िे आर्ाभट्ट सिद्धांत को र्ारं ओर िे स्वीकृ सत े पंर्ांग गणना मं स्टीकता आसत रही हं । इि पररणाम हं समली थी। क्र्ोफक आर्ाभट्ट अपने िमर् क िबिे बिे े की, आज हमारे पाि पंर्ांग गणना एवं सनमााण क िशक्त े गस्णतज्ञ थे। माध्र्म उपलब्ध है । आज भारत भर मं राष्ट्रीर् पंर्ांग के आर्ाभट्ट सिद्धांत की लोकत्रप्रर्ता एवं प्रामास्णकता क िाथ-िाथ कई क्षेिीर् पंर्ांग उपलब्ध हं । े सिद्ध होते ही भारतीर् पंर्ांग की गणना एवं सनधाारण मं अंदाजन ई.500 क करीब आर्ार्ा लगध का े त्रवशेष महत्व एवं र्ोगदान रहा हं । आर्ाभट्ट क िमर् िे े वेदांग-ज्र्ोसतष (ॠक् व र्ाजुष ्) की रर्ना की थी। स्जि लेकर आजक आधुसनक र्ुग मं भी इि सिद्धांत को े मं वस्णात हं की पांर् वषा का एक र्ुग, 366 फदनं का व्र्ावहाररक उद्दे श्र्ं िे भारत एवं त्रवदे शं मं सनरं तर वषा होता हं । इस्तेमाल मं रहा हं । 11 वीं िदी िे पूवकाल मं असधकतर भारतीर् ा आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग ज्र्ोसतष मं पंर्ांग की गणना आर्ार्ा लगध द्वारा रसर्त ग्रंथ वेदांग वस्णात िूर्ा सिद्धांत की प्रामास्णकता सिद्ध होने पर पंर्ांग ज्र्ोसतष मं उल्लेस्खत तथ्र्ं पर आधाररत होती थी। गणना मं िुलभता होने लगी। स्जि मं आगेर्लकर शास्त्रों मं कहाँ गर्ा हं ।
  • 7. 7 मार्ा 2012 आर्ाभट्ट, वराहसमफहर और भास्कर ने अपने र्ोगदान िे वैफदक पंर्ांग मं 30 सतसथर्ां होती हं । स्जिमं 15 पंर्ांग गणना पद्धसत िे जुिे ग्रंथो मं व्र्ापक िुधार फकए। सतसथर्ां कृ ष्ण पक्ष की तथा 15 शुक्ल पक्ष की होती हं । त्रवसभडन प्रदे शो एवं िंस्कृ सत की सभडनता क कारण े लेफकन र्ंद्र की गसत मं सभडनता होने क कारण सतसथ क े े पंर्ांगं की गणनाओं मं अंतर हो जाता है , लेफकन कछ ु मान मं डर्ूना एवं सधकता बनी रहती है । तथ्र् प्रार्ः िभी पंर्ांगं मं िमान होते हं । िंपूणा भर्क्र की 360 फिग्री को 30 सतसथर्ं को िभी पंर्ांगं क मुख्र् पाँर् अंग: सतसथ, वार, नक्षि, े 360 ÷ 30 =12 शेष बर्ते हं । र्ंद्र अपने पररक्रमा पथ र्ोग और करण। पर एक फदन मं लगभग 13 अंश बढ़ता है । िूर्ा भी पृथ्वी क िंदभा मं एक फदन मं 1° र्ा 60 कला आगे बढ़ता हं । े वृहदवकहिार्क्रम, पंर्ांग प्रकरण, श्लोक 1 मं कहा इि सलए एक फदन मं र्ंद्र की कल बढ़त 13 अंश िे िूर्ा ु गर्ा है - की बढ़त क 1 अंश घटाने पर 12 अंश (13°-1°=12°) े शेष रह जाते हं । शेष बर्ी बढ़त ही िूर्ा और र्ंद्र की सतसथ वाररि नक्षिां र्ोग करणमेव र्। गसत का अंतर होती हं । एतेषां र्िा त्रवज्ञानं पंर्ांग तस्डनगद्यते॥ अमावस्र्ा क फदन िूर्ा और र्ंद्र एक िाथ एक े ही रासश व एक ही अंशं मं स्स्थत होते हं । दोनं क बीर् े फकिी भी त्रवशुद्ध पंर्ांग को फकिी स्थान त्रवशेष के का रासश अंतर शूडर् होता हं , इिसलए र्ंद्र फदखाई नहीं अक्षांश और रे खांश पर सनधााररत फकर्ा जाता हं । फकिी दे ता हं । जब दोनं का अंतर शूडर् िे बढ़ने लगता हं तब पंर्ांग क सनमााण क सलए फकिी सनधााररत स्थान त्रवशेष े े शुक्ल प्रसतपदा सतसथ का उदर् (प्रारं भ) होने लगता हं । क अक्षांश रे खांश का स्पष्ट उल्लेख फकर्ा जाता हं । े िमर् क िाथ जब र्ह अंतर बढ़ते-बढ़ते 12° अंश का हो े मुख्र्तः पंर्ांग प्रस्तुसत की दो मुख्र् पद्धसतर्ां जाता है , तब प्रसतपदा सतसथ पूणा होकर फद्वतीर्ा सतसथ का मानी जाती हं । एक हं सनरर्न और और दिरी हं िार्न। ू उदर् होता है । र्ूंफक प्रसतपदा सतसथ क फदन भी र्ंद्र िूर्ा े भारतीर् क पंर्ांग मं ज्र्ादातर सनरर्न पद्धसत असधक े िे कवल 12 अंश ही आगे सनकलता है , इिसलए प्रसतपदा े प्रर्सलत हं और पािात्र् दे शं मं िार्न पद्धसत असधक सतसथ को भी आकाश मं र्ंद्रदशान नहीं होते हं । इिी प्रर्सलत हं । प्रकार िूर्-र्ंद्र क रासश अतर िे फकिी सतसथ त्रवशेष का ा े सतसथ : सनधाारण फकर्ा जाता हं । करीबन पंद्रह फदन बाद मं जब र्ंद्र की एक कला को सतसथ कहा जाता हं । कला र्ंद्र का अंतर िूर्ा िे 180 अंश होता हं (12 x15=180) का मान िूर्ा और र्ंद्र क अंतरांशं पर सनधााररत फकर्ा े आगे होता है , तब पूस्णामा सतसथ की िमासप्त होती हं तथा जाता हं । कृ ष्णपक्ष की प्रसतपदा सतसथ का उदर् होता हं । पुनः जब सतसथ सनधाारण क त्रवषर् मं शास्त्रो मं वस्णात हं । े िूर्ा और र्ंद्र का अंतर 360 अंश अथाात शूडर् होता हं अकााफद्वसनिृजः प्रार्ीं र्द्यात्र्हरहः शषी। तब कृ ष्ण पक्ष की अमावस्र्ा सतसथ िमाप्त होती हं । तच्र्ाडद्रमानमंषैस्तु ज्ञेर्ा द्वादषसभस्स्तसथः॥ अपनी जडम किली िे िमस्र्ाओं ुं (श्लोक 13:मानाध्र्ार्:िूर्ा सिद्धांत:) वैफदक ज्र्ोसतष मं रासशर्ो को 360 फिग्री को 12 का िमाधान जासनर्े माि RS:- 450 भागो मं बांटा गर्ा है स्जिे भर्क्र कहते हं । िंपक करं : Call us: 91 + 9338213418, ा 91 + 9238328785,
  • 8. 8 मार्ा 2012 वार: बृहतिंफहता मं र्ंद्र का नक्षिं िे र्ोग बताते हुए ् भारतीर् ज्र्ोसतष मं एक वार एक िूर्ोदर् िे उल्लेख फकर्ा गर्ा हं :- दिरे िूर्ोदर् तक रहता हं । ू षिनागतासनपौष्णाद् द्वादशरौद्राच्र्मध्र्र्ोगीसन। वार को पररभात्रषत करते हुए शास्त्रों मं उल्लेख फकर्ा जेष्ठाद्यासननवक्षााण्र्फिु पसतनातीत्र् र्ुज्र्डते॥ गर्ा हं इि श्लोक क अनुिार भी 27 नक्षिं वाला मत े उदर्ातउदर्ं वारः। ् प्रामास्णक माना जाता हं । ज्र्ोसतष मं 27 नक्षिं को 12 रासशर्ं मं वार को पौरास्णक ज्र्ोसतष मं िावन फदन र्ा अहगाण के त्रवभास्जत फकर्ा जाता हं । प्रत्र्ेक नक्षि क र्ार र्रण े नाम िे भी जाना जाता हं । वारं का प्रर्सलत क्रम पुरे (भाग) फकए गए हं । स्जििे प्रत्र्ेक र्रण का मान 13 त्रवश्व मं एक िमान है । अंश 20 कला माना गर्ा हं स्जिे उिक र्ार र्रण िे े िात वारं क नाम िात ग्रहं क नाम पर रखे गए े े भाग दे ने पर 3 अंश 20 कला शेष बर्ती हं । (13 अंश हं । इन िात वारं का क्रम होरा क्रम क आधार पर रखे े 20 ÷ 4 = 3 अंश 20 कला) गए है और होरा क्रम ब्रह्मांि मं स्स्थत िूर्ााफद ग्रहं के इि प्रकार 27 नक्षिं मं कल 108 र्रण होते हं । ु कक्ष क्रम क अनुिार सनधााररत फकए गए हं । े वृहज्जातकम ् क अनुिार प्रत्र्ेक रासश मं 108 े र्रण को 12 रासश मं भाग दे ने िे 9 र्रण हंगे। (108÷ नक्षि : 12 = 9) त्रवद्वानो क मत िे र्ंद्र लगभग 27 फदन 7 घंटे े ज्र्ोसतष शास्त्रो मं 12 रासशर्ां अथाात भर्क्र 360 43 समनट मं 27 नक्षि की पररक्रमा पूणा कर लेता हं । अंश को 27 नक्षिं क 27 े भागं मं बांटा गर्ा हं । हर इि सलए र्ंद्र लगभग 1 फदन (60 घटी) मं एक नक्षि मं भाग एक नक्षि का कारक है और हर एक भाग को भ्रमण करता हं । लेफकन अपनी गसत कम-ज्र्ादा होने नक्षिं का एक सनधााररत नाम फदर्ा गर्ा है । कारण र्ंद्र एक नक्षि को अपनी कम िे पार करने मं कछ त्रवद्वानो क मतानुशार 27 नक्षिं क असतररक्त ु े े लगभग 67 घटी एवं अपनी असधकतम गसत िे पार एक और नक्षि हं स्जिे असभस्जत नक्षि क नाम िे े करने मं लगभग 52 घटी का िमर् लेता हं । जाना जाता हं इि सलए उनक मत िे कल समलाकर 28 े ु र्ोग : होते हं । पंर्ांग मं मुख्र्तः र्ोग दो प्रकार क माने गए हं े िूर्ा सिद्धांत क अनुिार एक नक्षि का मान 360 े (१) आनंदाफद र्ोग और अंश /27 नक्षि अथाात एक नक्षि क सलए 13 अंश 20 े (२) त्रवष्कभाफद र्ोग ं कला शेष रहता हं । स्जि प्रकार िूर्ा और र्ंद्र क रासश अंतर िे सतसथ े त्रवद्वानं क कथन अनुिार उिराषाढ़ा नक्षि की े का सनधाारण होता हं , उिी प्रकार िूर्ा और र्ंद्र क रासश े अंसतम 15 तथा श्रवण नक्षि की प्रथम 4 घफटर्ां क त्रबर् े अंतर क र्ोग करने िे त्रवष्कभाफद र्ोग का सनधाारण े ं का काल असभस्जत नक्षि की होती हं । इि तरह होता हं । र्हां स्पष्ट फकर्ा जा रहा हं , की र्ोग ब्रह्मांि के असभस्जत नक्षि का मान कल समलाकर 19 है । लेफकन ु फकिी प्रकार क तारा िमूह अथाात ग्रह नक्षि नहीं हं । े प्रार्ः पंर्ांगं मं इि नक्षि की गणना दे खने को नहीं वरन र्ंद्र एवं िूर्ा क अंतर का र्ोग सनधाारण की स्स्थती े समलती हं । का नाम हं ।
  • 9. 9 मार्ा 2012 आकाश मं सनरर्न इत्र्ाफद त्रबंदओं िे िूर्ा और ु अंतर शूडर् होता हं , तो प्रसतपदा सतसथ क िाथ ही स्स्थर े र्ंद्र को िंर्ुक्त रूप िे 13 अंश 20 कला अथाात 800 फकस्तुन करण का शुरु होता हं । जब र्ंद्र गसत िूर्ा िे 6 ं कला का पूरा भोग करने मं स्जतना िमर् लगता है , अंश आगे सनकल जाती हं , तब फकस्तुन करण की ं वह र्ोग कहलाता है । इि प्रकार क फकिी भी एक र्ोग े िमासप्त होती हं । अथाात िूर्ा और र्ंद्र मं 6 अंश का का मान नक्षि की भांसत 800 कला होता हं । अंतर होने मं जो िमर् लगता हं , उिे फकस्तुन करण ं त्रवष्कभाफद र्ोगं की कल िंख्र्ा 27 हं । ं ु कहा जाता हं । इिी प्रकार क्रमशः 6-6 अंश क अंतर पर े र्ोग का दै सनक मान लगभग 60 घटी 13 पल करण बदल जाते हं । होता है । िूर्ा और र्ंद्र की गसतर्ं की अिमानता के करण सतसथ का आधा भाग होता हं । कारण मध्र्म मान मं डर्ूनता एवं सधकता बनती हं । इन सतसथ क पूवााद्धा अथाात पहले आधे भाग मं एक े र्ोगं मं वैधसत एवं व्र्सतपात नामक र्ोगं को महापातक ृ करण, उिराद्धा अथाात दिरे आधे भाग का एक करण। ू कहते हं । इि प्रकार एक सतसथ मं 2 करण होते हं । वार और नक्षि क िंर्ोग िे तात्कासलक आनंदाफद े िूर्ा और र्डद्रमा क बीर् 6º अंश े का अडतर र्ोग बनते हं । पौरास्णक ग्रथं मं इनकी िंख्र्ा 28 दशााई होने िे एक करण होता हं । ज्र्ोसतष शास्त्रो क अनुिार े है । इडहं स्स्थर र्ोग भी कहते हं । इनकी गस्णतीर् फक्रर्ा करण की कल िंख्र्ा 11 होती हं । 11 र्रण को दो भागो ु नहीं है । र्े र्ोग िूर्ोदर् िे अगले िूर्ोदर् तक रहते हं । मं बाटा गर्ा हं र्र करण और स्स्थर करण। इन र्ोगं का सनधाारण वार त्रवशेष को सनफदा ष्ट नक्षि िे र्र करण मं त्रवद्यमान नक्षि (असभस्जत नक्षि क िाथ) तक की े 1) बव गणना द्वारा होता है । 2) बालव 3) कौलव करण: 4) तैसतल फकिी भी सतसथ का आधा भाग करण कहलाता हं । 5) गर िूर्ा और र्ंद्र मं 60 अंश का अंतर होने मं स्जतना 6) वस्णज िमर् लगता उि अंतर िे करण का सनधाारण फकर्ा 7) त्रवत्रष्ट का िमावेश फकर्ा गर्ा हं । जाता हं । फकिी-फकिी पंर्ांगं मं करण का वणान कवल े स्स्थर करण मं िूर्ोदर्कालीन िमर् िे फकर्ा जाता हं , तो फकिी-फकिी 1) शकसन ु पंर्ांगं मं सतसथ की िंपूणा अवसध को दो िमान भाग 2) र्तुष्पद करक त्रवशेश तौर पर करणं का सनधाारण कर दे ते हं । े 3) नाग एक सतसथ मं दो करण होते हं । इनकी कल िंख्र्ा ११ है । ु 4) फकस्तुध्न का िमावेश फकर्ा गर्ा हं । करण को दो भागं मं बांटा गर्ा हं र्र और स्स्थर। बव, बालव, कौलव, तैत्रिल, गर, वस्णज एवं त्रवत्रष्ट जब िूर्ा और र्डद्रमा की गसत मं 13º-20' का (भद्रा) र्र और फकस्तुन, शकसन, र्तुष्पद एवं नाग स्स्थर ं ु अडतर होने िे एक र्ोग होता हं । कल समला कर 27 ु िंज्ञक करण हं । र्ोग होते हं आकाश की स्स्थसत िे इन र्ोगो का कोइ करण की शुरुआत स्स्थर करण अथाात फकस्तुन िे ं िमबडध नहीं हं । वैिे भी र्ोगो की आवश्र्कता त्रवशेष होती हं जब भर्क्र मं िूर्ा और र्ंद्र क बीर् अंश का े रुप िे र्ािा, मुहुता इत्र्ाफद प्रिंगं मं पिती हं ।
  • 10. 10 मार्ा 2012 र्ोगो क नाम े एक ही स्थान परहोते हं अथाात 0º का अडतर होता हं तो 1) त्रवष्कमभ ु 15) वज्र अमावस्र्ा सतसथ कहते हं । भर्क्र का कलमान 360º हं , ु 2) प्रीसत 16) सित्रद्ध तो एक सतसथ= 360÷ 30=12º अथाात िूर्-र्डद्र मं 12º ा 3) आर्ुष्मान 17) व्र्तीपात का अडतर पिने पर एक सतसथ होती हं । 4) िौभाग्र् 18) वरीर्ान 5) शोभन 19) पररध उदाहरण स्वरुप: 6) असतगि 20) सशव 0º िे 12º तक शुक्ल पक्ष की प्रसतपदा 12º िे 24º तक 7) िुकमाा 21) सिद्ध फद्वतीर् तथा क्रमशः सतसथ वृत्रद्ध होकर अंत मं 330º िे 8) घृसत 22) िाध्र् 360º तक कृ ष्ण पक्ष की अमावस्र्ा को अंत होती हं । 9) शूल 23) शुभ भारतीर् ज्र्ोसतष की परमपरा मं सतसथ की वृत्रद्ध 10) गंि 24) शुक्ल एवं सतसथ का क्षर् भी होता हं । र्फद फकिी सतसथमं दो 11) वृत्रद्ध 25) ब्रह्म बार िूर्ोदर् हो जाता हं , तो उिे सतसथ वृत्रद्ध कहलाती हं 12) ध्रुव 26) ऎडद्र तथा स्जि सतसथ मं िूर्ोदर् न हो तो उिे सतसथका क्षर् 13) व्र्ाघात 27) वैधसत ृ हो जाना कहा जाता हं । 14) हषाण उदाहरण क सलए एक सतसथ िूर्ोदर् िे पूवा े प्रारमभ होती हं तथा िंपूणा फदन रहकर अगले फदन र्ाडद्र माि िूर्ोदर् क 2 घंटे पिात तक भी रहती हं तो र्ह सतसथ े र्ाडद्र माि मं कल 30 सतसथर्ाँ होती हं स्जनमं 15 ु दो िूर्ोदर् को स्पशा कर लेती हं । सतसथर्ाँ शुक्ल पक्ष की और 15 कृ ष्ण पक्ष की होती हं । इिसलए इि सतसथमं वृत्रद्ध हो जाती हं । इिी प्रकार सतसथर्ाँ सनमन प्रकार की हं । एक अडर् सतसथ िूर्ोदर् क पिात प्रारमभ होती है तथा े 1) प्रसतपदा 9) नवमी दिरे फदन िूर्ोदर् िे पहले िमाप्त हो जाती हं , तो र्ह ू 2) फद्वतीर्ा 10) दशमी सतसथ एक भी िूर्ोदर् को स्पशा नहीं करती इि कारण 3) तृतीर्ा 11) एकादशी उिे क्षर् होने िे सतसथक्षर् कहा जाता हं । 4) र्तुथी 12) द्वादशी 5) पंर्मी 13) िर्ोदशी रत्न-उपरत्न एवं रुद्राक्ष 6) षष्टी 14) र्तुदाशी हमारे र्हां िभी प्रकार क रत्न-उपरत्न एवं रुद्राक्ष े 7) िप्तमी 15) पूस्णामा व्र्ापारी मूल्र् पर उपलब्ध हं । ज्र्ोसतष कार्ा िे 8) अष्टमी 30) अमावस्र्ा जुिे़ बधु/बहन व रत्न व्र्विार् िे जुिे लोगो के सतसथर्ाँ शुक्लपक्ष की प्रसतपदा िे सगनी जाती हं । सलर्े त्रवशेष मूल्र् पर रत्न व अडर् िामग्रीर्ा व पूस्णामा को 15 तथा अमावस्र्ा को 30 सतसथ कहते हं । अडर् िुत्रवधाएं उपलब्ध हं । स्जि फदन िूर्ा व र्डद्रमा मं 180º अंश का अडतर (दरी) ू गुरुत्व कार्ाालर् िंपक: ा होता हं अथाात िूर्ा व र्डद्र आमने-िामने हो जाते हं तो 91+ 9338213418, उिे पूस्णामा सतसथ कहा जाता हं और जब िुर्ा व र्डद्रमा 91+ 9238328785,
  • 11. 11 मार्ा 2012 पत्रिका िदस्र्ता (Magazine Subscription) आप हमारे िाथ जुि िकते हं । आप हमारी मासिक पत्रिका आप हमारे िाथ त्रवसभडन िामास्जक नेटवफकग िाइट क माध्र्म िे भी जुि िकते हं । ं े सनशुल्क प्राप्त करं । हमारे िाथ जुिने क सलए िंबंसधत सलंक पर स्क्लक करं । े र्फद आप गुरुत्व ज्र्ोसतष मासिक पत्रिका अपने ई-मेल We Are Also @ पते पर प्राप्त करना र्ाहते हं ! तो आपना ई-मेल पता नीर्े Google Group दजा करं र्ा इि सलंक पर स्क्लक करं Google Plus GURUTVA JYOTISH Groups yahoo क िाथ जुिं. े Yahoo Group Orkut Community If You Like to Receive Our GURUTVA JYOTISH Monthly Magazine On Your E-mail, Enter Your E- Twitter mail Below or Join GURUTVA JYOTISH Groups Facebook yahoo Wordpress Scribd Click to join gurutvajyotish उत्पाद िूर्ी हमारी िेवाएं आप हमारे िभी उत्पादो आप हमारी िभी भुगतान िेवाएं की जानकारी एवं िेवा की िूसर् एक िाथ दे ख शुल्क िूसर् की जानकारी दे ख िकते हं और िाउनलोि िकते और िाउनलोि कर कर िकते हं । िकते हं । मूल्र् िूसर् िाउनलोि करने क सलए कृ प्र्ा इि सलंक पर े मूल्र् िूसर् िाउनलोि करने क सलए कृ प्र्ा इि सलंक पर े स्क्लक करं । Link स्क्लक करं । Link Please click on the link to download Price List. Link Please click on the link to download Price List. Link
  • 12. 12 मार्ा 2012 Shortly GURUTVA JYOTISH Weekly E-Magazine Publishing In English Power By: GURUTVA KARYALAY Don’t Miss to Collect Your Copy Book Your Copy Now For More Information Email Us GURUTVA JYOTISH Weekly E-Magazine Fully Designed For People Convenience who may interested in Astrology, Numerology, Gemstone, Yantra, Tantra, Mantra, Vastu ETC Spiritual Subjects. You can now Send Us Your articles For Publish In Our Weekly Magazine For More Information Email Us Contect: GURUTVA KARYALAY gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 13. 13 मार्ा 2012 कलेण्िर र्ुग की उत्पत्रि कब हुई ? ै  स्वस्स्तक.ऎन.जोशी िाधारणतः कलेण्िर का उपर्ोग फदनांकं (तारीखं) ै तो उिक बाद वे फिलं की बोआई करते थे। बाढ़ आने े मफहने, वषा का फहिाब रखने क सलए फकर्ा जाता हं । े क बाद जब नील नदी मं दबारा बाढ़ आती थी तो उडहंने े ु कलेण्िर का उद्गम कब हुवा और कलेण्िर का उपर्ोग ै ै दे खा फक उि दौरान र्ांद 12 बार उगता था। र्ानी, 12 मानव िमाज कब िे कर रहा हं र्ह दावे क िाथ कोई े र्ंद्र-माहं क बाद बाढ़ आती थी और तब वे फिल की े नहीं कह िकता! क्र्ोफक, जब पौरास्णक काल मं जब बोआई करते थे। समस्र क कछ त्रवद्वानो ने दे खा फक जब े ु आफद मानव वन-बीहिं और गुफाओं मं रहते थे तो, र्हं बाढ़ आती है तो आिमान मं एक तेज र्मकदार तारा भी दे ख कर अवश्र् आिर्ार्फकत हुए हंगे फक, प्रसतफदन फदखाई दे ने लगता है । उडहंने गणना की तो पता लगा िूरज उदर् होता हं और शाम को अस्त हो जाता हं , र्ांद फक 365 फदन-रात क बाद फफर ऐिा ही होता है । फफर े सनकलता है और छप जाता हं । कभी भर्ंकर गमी पिती ू तारा र्मकने लगता है । समस्र क सनवासिर्ं ने 365 फदन े हं , तो कभी जोरं की वषाा होने लगती हं । और फफर, क वषा को 30 फदन क 12 महीनं मं बांट फदर्ा। वषा क े े े कभी फहला कर रख दे ने वाली ठं ि पिने लगती हं। उिने अंत मं पांर् फदन बर् गए। इि तरह समस्र क सनवासिर्ं े जरूर िोर्ा होगा फक प्रकृ सत मं िमर्-िमर् पर ऐिे ने कलंिर का आत्रवष्कार कर सलर्ा होगा। ै बदलाव क्र्ं होते हं ? क्र्ं ऋतुएं आती-जाती हं ? अभी तक हुए ऐसतहासिक शोध िे जुसलर्न और जब आफद मानव ने खेती करना शुरू फकर्ा होगा ग्रेगोरीर्न कलंिर ै महत्वपूणा माने जाते हं । जुसलर्न तब, उिने जमीन मं बीज बोर्े हंगे तो उिने दे खा होगा कलंिर ै रोम क शािक जुसलर्ि िीजर ने तैर्ार फकर्ा े फक फिल उगती हं , बढ़ती है और िमर् क िाथ-िाथ े था। आगे र्ल कर पोप ग्रेगोरी तेरहवं ने इि कलेण्ि मं ै पक जाती है । फफर उि फिल की कटाई कर लेता होगा। िुधार करक ग्रेगोरीर्न कलंिर तैर्ार फकर्ा था। े ै पुनः बीज बोने का िमर् आने पर फफर िे बीज बोए 45 ईस्वी पूवा िे अथाात इि िमर् िे पहले तक हंगे। इि तरह फिल की बोआई-कटाई का क्रम र्लता रोम िाम्राज्र् मं रोमन कलंिर ै प्रर्सलत था। रोमन रहा होगा। इि क्रम िे शार्द उिने पहली बार इि बात कलंिर ै मं वषा का प्रारं भ 1 मार्ा िे होता था। प्रारं भ मं का अंदाजा लगाना शुरू फकर्ा होगा फक फिल बोने के रोमन कलंिर ै मं वषा 10 माह का होता था फफर उिे 12 फकतने िमर् बाद फफर िे नई फिल क बीज बोने हं । े मफहनो का फकर्ा गर्ा। धीरे -धीरे आफद मानव नं इि तरह शार्द पहली बार पूरे जब रोमन कलंिर ै मं 10 माह होते थे तो उि मं वषा का फहिाब लगार्ा होगा। आफद काल िे ही फकिी 10 माह क्रमशः माफटा अि, एत्रप्रसलि, मेअि, जूसनअि, भी तरह त्रवश्व की त्रवसभडन िभ्र्ताओं ने सनस्ित तौर पर स्क्वंफटसलि, िैस्क्िफटसलि, िेप्टं बर, अक्टू बर, नवंबर तथा अपने-अपने ढं ग िे िमर् का फहिाब लगार्ा होगा। फदिंबर। रोमन कलंिर ै को 10 माह िे जब 2 माह समला समस्रवािीर्ं क मत िे: े कर उिे 12 मफहनो का फकर्ा गर्ा तो उि मं 12 माह अनुमासनक तौर पर एिा माना जाता हं की वषा का क्रमशः लाडर्ुआरीअि, फब्रुआरीअि, माफटा अि, एत्रप्रसलि, े पहला फहिाब िबिे 6,000 वषा पहले समस्र क सनवासिर्ं े मेअि, जूसनअि, स्क्वंफटसलि, िैस्क्िफटसलि, िेप्टं बर, ने लगार्ा था। हर िाल जब नील नदी मं बाढ़ आती थी अक्टू बर, नमबबर तथा फदिबबर थे।
  • 14. 14 मार्ा 2012 रोमन कलंिर ै क 10 महीनं क वषा मं कवल े े े पूवा मं िम्राट ऑगस्टि क नाम पर िेक्िफटसलि माह े 304 फदन होते थे। एिा माना जाता है फक रोम क िम्राट े का नाम ‘अगस्त’ रख फदर्ा गर्ा। ‘नुमा पोस्मपसलअि’ ने फदिंबर और मार्ा महीनं क बीर् े माना जाता हं की जूसलर्न कलंिर ै क अनुशार े फरवरी और जनवरी माह जोिे । स्जििे वषा 354 र्ा 355 ईस्टर का त्र्ौहार और अडर् धासमाक सतसथर्ां िंबंसधत फदनं का हो गर्ा। हर दो वषा बाद असधमाि जोि कर ऋतुओं मं िही िमर् पर नहीं आती थीं। स्जििे कलंिर ै 366 फदन का वषा मान सलर्ा जाता था। िमर् क िाथ- े मं असतररक्त फदन जमा हो गए थे। पोप ग्रेगोरी 1572 िे िाथ इिमं िुधार होते रहे । 1585 तक तेरहवं पोप रहे । िन ् 1582 तक वनाल स्जििे कलंिर ै की गणनाएं र्ंद्रमा क बजार् े इस्क्वनॉक्ि 10 फदन त्रपछि र्ुका था। फदनं क आधार पर होने लगीं। पृथ्वी द्वारा िूर्ा की े पोप ग्रेगोरी तेरहवं ने जूसलर्न कलंिर ै की 10 पररक्रमा की गणना क आधार पर वषा मं फदनं की े फदनं की िुफट को िुधारने क सलए उि वषा 5 अक्टू बर े िंख्र्ा 365.25 हो गई। इि िवा अथाात ् एक र्ौथाई की सतसथ को 15 अक्टू बर मानने का िुझाव फदर्ा। फदन िे गणना मं बिा भ्रम पैदा होने लगा। स्जिक फलस्वरुप जूसलर्न कलंिर े ै मं िे 10 फदन घटा उि िमर् रोम क शािक जुसलर्ि िीजर ने े फदए गए। उि िमर् लीप वषा शताब्दी क अंत मं रखा े रोमन कलंिर ै मं त्रवशेष िुधार फकर्ा। ईस्वी पूवा 44 मं गर्ा बशते वह 400 की िंख्र्ा िे त्रवभास्जत होता हो। स्क्वंफटसलि माह का नाम बदल कर जूसलर्ि िीजर के इिीसलए 1700, 1800 और 1900 लीप वषा नहीं थे िममान मं ‘जुलाई’ रख फदर्ा गर्ा। जुसलर्ि िीजर ने जबफक वषा 2000 लीप वषा था। इि िंशोधन िे ग्रेगोरीर् कलंिर ै को िुधारने मं समस्र क खगोलत्रवद िोसिजेनीज े कलंिर ै की शुरूआत हुई स्जिे आज त्रवश्व क असधकांश े की मदद ली। फफर वषा 1 जनवरी िे शुरू फकर्ा गर्ा। दे शं मं अपनार्ा जा रहा है । स्जि मं हर र्ौथे वषा को छोि कर प्रत्र्ेक वषा 365 फदन इिक बावजूद त्रवश्व क कई दे श िमर् की गणना े े का होगा। र्ौथा वषा लीप वषा होगा और उिमं 366 फदन क सलए अभी भी अपने परं परागत पंर्ांग र्ा कलंिर े ै का हंगे। फरवरी को छोि कर प्रत्र्ेक माह मं 31 र्ा 30 उपर्ोग कर रहे हं । फहडद , र्ीनी, इस्लामी र्ा फहजरी और ु फदन हंगे। फरवरी मं 28 फदन हंगे लेफकन लीप वषा मं र्हूदी कलंिर इिक प्रमुख उदाहरण हं । ै े फरवरी मं 29 फदन माने जाएंग। अनुमान है फक 8 ईस्वी े दगाा बीिा र्ंि ु शास्त्रोोक्त मत क अनुशार दगाा बीिा र्ंि दभााग्र् को दर कर व्र्त्रक्त क िोर्े हुवे भाग्र् को जगाने वाला माना े ु ु ू े गर्ा हं । दगाा बीिा र्ंि द्वारा व्र्त्रक्त को जीवन मं धन िे िंबंसधत िंस्र्ाओं मं लाभ प्राप्त होता हं । जो व्र्त्रक्त ु आसथाक िमस्र्ािे परे शान हं, वह व्र्त्रक्त र्फद नवरािं मं प्राण प्रसतत्रष्ठत फकर्ा गर्ा दगाा बीिा र्ंि को स्थासप्त ु कर लेता हं , तो उिकी धन, रोजगार एवं व्र्विार् िे िंबंधी िभी िमस्र्ं का शीघ्र ही अंत होने लगता हं । नवराि क फदनो मं प्राण प्रसतत्रष्ठत दगाा बीिा र्ंि को अपने घर-दकान-ओफफि-फक्टरी मं स्थात्रपत करने िे त्रवशेष े ु ु ै लाभ प्राप्त होता हं , व्र्त्रक्त शीघ्र ही अपने व्र्ापार मं वृत्रद्ध एवं अपनी आसथाक स्स्थती मं िुधार होता दे खंगे। िंपूणा प्राण प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा र्ैतडर् दगाा बीिा र्ंि को शुभ मुहूता मं अपने घर-दकान-ओफफि मं स्थात्रपत करने िे ु ु त्रवशेष लाभ प्राप्त होता हं । मूल्र्: Rs.550 िे Rs.8200 तक