2. प्रसंग
महाभारत में ऐसे कई प्रसंग ममल जाएंगे जब
ककसी राजकु मारी या महारानी को अपने वंश की
रेखा को आगे बढ़ाने के मलए पतत को छोड़, ककसी
अन्य पुरुष के बच्चों की मााँ बनना पड़ा. आगे
चलकर इन राजकु माररयों से उत्पन्न ये बच्चें पूरे
महाभारत को ही बदल कर रख ददया या यूाँ कहें,
ये बच्चे महाभारत के मुख्य पात्र बनें. आइए आज
महाभारत के उन राजकु माररयों और पटरातनयों को
याद करते हैं जजन्होंने अपने पतत के होने ककसी
अन्य पुरुष के बच्चे की मााँ बनी.
2ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
3. मदहलाओं का पररवार के प्रतत त्याग
महाभारत में एक प्रमुख पात्र हैं
मत््यगंधा, जो बाद में सत्यवती के नाम
से जानी गई. सत्यवती बहुत सुन्दर थी,
इसी कारण शांतनु उनके रूप पर मोदहत
हो गए और वववाह कर मलया. वववाह के
पश्चात दो पुत्र हुए चचत्रांगद और
ववचचत्रवीयय. सत्यवती के पास एक तीसरा
पुत्र भी था जजनका नाम व्यास था. जो
बाद में महवषय व्यास के नाम से जाने गए.
सत्यवती ने व्यास को तब जन्म ददया
जब वह कु मारी थी. महवषय व्यास के वपता
का नाम ऋवष पराशर था.
अंबिका और अंिालिका- युवा अव्था में चचत्रांगद और ववचचत्रवीयय का
वववाह अंबबका और अंबामलका से हुआ, परन्तु वववाह के कु छ ही ददनों
बाद चचत्रांगद और ववचचत्रवीयय की मृत्यु हो गई. भीष्म ने आजीवन
वववाह नहीं करने की प्रततज्ञा की थी. अपनी वंश-रेखा को ममटते देख
सत्यवती ने इन दोनों राजकु माररयों को अपने तीसरे पुत्र व्यास से
संतान उत्पन्न करने के मलए कहा. सत्यवती की आज्ञा से इन दोनों
राजकु माररयों ने महवषय व्यास से गभय धारण ककया जजससे धृतराष्र
और पाण्डु का जन्म हुआ.
3ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
4. दासी पुत्र
गुणवान
महाभारत में एक महाज्ञानी व्यजतत का नाम
था ववदुर. उनकी माता राजमहल में दासी
थी. महवषय व्यास ने सत्यवती से जब कहा
कक एक राजकु मारी का पुत्र अंधा और दूसरी
राजकु मारी का पुत्र रोगी होगा तो सत्यवती ने
व्यास से एक बार और राजकु माररयों को व्यास
के पास भेजना चाहा, लेककन राजकु माररयां डर
गई थी इसमलए उन्होंने अपनी दासी को व्यास
के पास भेज ददया. दासी ने व्यास से
गभयधारण ककया जजससे ्व्थ और ज्ञानी पुत्र
ववदुर का जन्म हुआ.
िुद्दिमान
द्रौपदी के ठु कराए
जाने के बाद ‘कणय’
ने तयों की थी दो
शादी
भारत के इस जगह
पर सददयों से दफन
है 500 नर-कं कालों
का रह्य
पांडवों की बनाई
यह मंददर तयों है
आज तक छत
ववहीन?
मंददर में भालू करते
हैं आरती, लेते हैं
प्रसाद
5ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
5. भुब्रूवाहन
भुब्रूवाहन
त्य-असत्य, बेईमानी-ईमानदारी, पाप-पुण्य
जैसे शब्द एक दूसरे से अलग करके नहीं
समझे जा सकते. एक-दूसरे के बबना इनका
अज्तत्व भी शायद सम्भव नहीं हो सकता.
उसी तरह जयसंदहता यानी महाभारत में
कौरवों के बबना पांडवों की चचाय महज
कल्पना ही कहलाती है. इसी बात को सही
साबबत करते हुए नीचे मलखी पंजततयााँ एक
ऐसे मंददर के बारे में है जो ना ही ककसी
देवता का है और देवी की तो बबल्कु ल नहीं.
भुब्रूवाहन
• इन गााँवों की यह भूमम भुब्रूवाहन
नामक महान योद्धा की धरती है.
मान्यता है कक भुब्रूवाहन पाताल
लोक का राजा था और कौरवों और
पांडवों के बीच कु रूक्षेत्र मेंंं हो रहे
युद्ध का दह्सा बनना चाहता था.
अपने हृदय में युद्ध की चाहत मलये
वह धरती पर तो आ गया लेककन
भगवान कृ ष्ण ने बड़ी ही चालाकी
से उसे युद्ध से वंचचत कर ददया.
कृ ष्ण को यह भय था कक भुब्रूवाहन
अजुयन को परा्त कर सकता है
इसमलये उन्होंने उसे एक चुनौती दी.
•
6ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
6. यह चुनौती भुब्रूवाहन को एक ही तीर से एक पेड़ के सभी
पत्तों को छेदने की थी. उसकी नजर बचाकर कृ ष्ण ने एक
पत्ता तोड़कर अपने पैर के नीचे दबा मलया. लेककन भुब्रूवाहन की
तरकश से तनकला तीर पेड़ पर मौजूद सभी पत्तों को छेदने के बाद
कृ ष्ण के पैर की ओर बढ़ने लगा. भी उन्होंने अपना पैर पत्ते पर से
हटा मलया. इसके बावजूद कृ ष्ण भुब्रूवाहन को युद्ध से दूर रखना
चाहते थे. अपनी बुद्चध का इ्तेमाल करते हुए उन्होंने उसे तनष्पक्ष
रहने को कहा जजसका अथय युद्ध से दूर रहना था जो भुब्रूवाहन की
चाहत के बबल्कु ल ववपरीत था. अपनी बात न बनते देख उन्होंने
भुब्रूवाहन का मसर उसके धड़ से अलग कर ददया.
7ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
7. इस तरह कृ ष्ण ने युद्ध शुरू होने से पहले ही भुब्रूवाहन
का मसर धड़ से अलग कर ददया. लेककन उसकी चाहत
अभी भी नहीं मरी थी. उसने कृ ष्ण से युद्ध देखने की
इच्छा जादहर की और भगवान कृ ष्ण ने उसकी यह इच्छा
पूरी कर दी. उन्होंने भुब्रूवाहन के मसर को वहााँ पास के
एक पेड़ पर टांग ददया जजससे वह महाभारत का पूरा
युद्ध देख सके . बड़े-बुजुगों का मानना है कक जब भी
महाभारत के युद्ध में कौरवों की रणनीतत ववफल होती
तब भुब्रूवाहन जोर-जोर से चचल्लाकर उनसे रणनीतत
बदलने के मलए कहता था. हालांकक यह कहानी घटोत्कच
पुत्र बबयरीक की कहानी से ममलती जुलती है. दुयोधन और
कणय भुब्रूवाहन के प्रशंसक थे लेककन वो उसके कहे
अनुसार रणनीतत बदलने में सफल नहीं हो पाये. इस
प्रकार पांंंडव वह युद्ध जीतने में सफल रहे
8ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
8. कुं ती-पुत्र कणय
कुं ती-पुत्र कणय के वल एक महारथी, कु शल सेनापतत ही नहीं बजल्क एक
सच्चा ममत्र और दानवीर भी था. लेककन महाभारत के इस पात्र के बारे
में पूरी जानकारी न होने के कारण मानव मज्तष्क में उनकी जो छवव
बनी वो अधूरी है जजसमें उनका सम्पूणय व्यजततत्व उभर कर सामने नहीं
आ पाया है. कु रूक्षेत्र के युद्ध में कौरवों के पक्ष में होने के कारण भी
उनके चररत्र को वो ्थान नहीं ममल पाया जो उन्हें ममलनी चादहए थी.
कणय के व्यजततत्व को जानने के मलए उनसे जुड़ी महाभारत के उन अंशों
को जानना जरूरी है जो अचधकांश लोगों के संज्ञान में नहीं आई है.
पदढ़ए महारथी कणय के व्यजततत्व से जुड़ी महाभारत में वर्णयत उनकी
तनजी जीवन की वो बातें जो बहुत कम कही-सुनी गई है…
9ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
9. व्रूशाली
धृतराष्र के ज्येष्ठ पुत्र दुयोधन के रथ का
सारथी सत्यसेन हुआ करता था जो दुयोधन
का ववश्वासपात्र भी था. कणय के दत्तक वपता
अचधरथ चाहते थे कक कणय सत्यसेन की बहन
से शादी कर ले. सत्यसेन की बहन व्रूशाली भी
साधारण नहीं बजल्क बेहद चररत्रवान और
इसमलए कणय की मृत्यु होने पर उसने भी
उसकी चचता में ही समाचध ले ली.
10ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
10. महाभारत में कौन था कणय से भी बड़ा
दानवीर
कणय की दूसरी पत्नी सुवप्रया थी. उसे दुयोधन की पत्नी भानुमती
की सहेली के रूप में जाना जाता है. महाभारत में इन दोनों पात्रों
के बारे में अचधक वणयन नहीं ममलता. ्त्री पवय की जलप्रदातनका
पवय में यह वणयन है कक जब गांधारी युद्ध के बाद कु रूक्षेत्र में
पहुाँची तो उसने चार श्लोक पढ़े. इन श्लोकों में कणय की पत्नी के
नाम का ज़िक्र था लेककन उसका नाम नहीं था. उन्हीं श्लोकों में
सुवप्रया से उत्पन्न उनके दोनों पुत्रों वृशषेण और सुषेण के नामों
का भी ज़िक्र है. इसके अलावा भी कई कथाओं में कणय की पत्नी
के नामों में ववमभन्नताएाँ हैं.
11ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
11. पृथ्वी माता से श्राप
लोक कथाओं के अनुसार एक बार कणय कहीं जा रहे थे, तब रा्ते
में उन्हें एक कन्या ममली जो अपने घडे
े़
से घी के बबखर जाने के
कारण रो रही थी. जब कणय ने उसके सन्त्रास का कारण जानना
चाहा तो उसने बताया कक उसे भय है कक उसकी सौतेली मां उसकी
इस असावधानी पर रुष्ट होंगी. कृ पालु कणय ने तब उससे कहा कक
बह उसे नया घी लाकर देंगे. तब कन्या ने आग्रह ककया कक उसे
वही ममट्टी में ममला हुआ घी ही चादहए और उसने नया घी लेने से
मना कर ददया. तब कन्या पर दया करते हुए कणय ने घी युतत
ममट्टी को अपनी मुठ्ठी में मलया और तनचोड़ने लगा ताकक ममट्टी
से घी तनचुड़कर घड़े में चगर जाए. इस प्रकक्रया के दौरान उसने
अपने हाथ से एक मदहला की पीड़ायुतत ध्वतन सुनी. जब उसने
अपनी मुठ्ठी खोली तो धरती माता को पाया. पीड़ा से क्रोचधत
धरती माता ने कणय को श्राप ददया कक एक दिन उसके जीवन के
ककसी ननणाायक युद्ध में वह भी उसके रथ के पदहए को वैसे ही
पकड़ िेंगी जैसे उसने उन्हें अपनी मुठ्ठी में पकड़ा है, जजससे वह
उस युद्ध में अपने शत्रु के सामने असुरक्षित हो जाएगा.
कणय की पत्नी व्रूशाली के बारे में
एक कथा यह भी प्रचमलत है कक
वो एक बार द्रौपदी से ममलने आई
थी. और उसने उससे कु रू राजाओं
के राजमहल को छोड़ उसके भाई
के पास चले जाने की ववनती की
थी. लेककन द्रौपदी ने वहीं रहने
का फै सला ककया. इसके कु छ
समय बाद ही युचधजष्ठर जुए में
द्रौपदी को हार बैठे और भरी सभा
में उसका चीर-हरण हुआ.
12ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
12. परशुरामजी के आश्रम से मशक्षा ग्रहण करने के बाद, कणय
कु छ समय तक भटकते रहे. इस दौरान वह शब्दभेदी ववद्या
सीख रहे थे. अभ्यास के दौरान कणय ने एक गाय के बछड़े को
कोई वनीय पशु समझ मलया और उस पर शब्दभेदी बाण
चला ददया और बछडा े़ मारा गया. तब उस गाय के ्वामी
ब्राह्मण ने कणय को श्राप ददया कक जजस प्रकार उसने एक
असहाय पशु को मारा है, वैसे ही एक ददन वह भी मारा
जाएगा जब वह सबसे अचधक असहाय होगा और जब उसका
सारा ध्यान अपने शत्रु से कहीं अलग ककसी और काम पर
होगा.
इसके अलावा कणय ने अपने ममत्र दुयोधन के साथ रहकर कई अधमय कृ त्य
ककए जो कु रुक्षेत्र के तनणाययक युद्ध में असहाय और अ्त्र ववहीन होने की
वजह बन गए.
13ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
13. द्रौपिी व पांडव
द्रौपदी का पांडवों के साथ वववाह हुआ
और वववाह के बाद उसने हर एक पतत
से बराबर ्नेह रखा व ककसी को भी
उदास होने का या तनराश होने का मौका
नहीं ददया. वहीं पांडवों ने भी अपनी
पत्नी द्रौपदी को हर समय खुश रखने
का पूणय प्रयास ककया
14ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
14. द्रौपिी व पांडव
दहंदुओं का महान धाममयक ग्रंथ और सादहत्य की
सबसे अनुपम कृ ततयों में से एक ‘महाभारत’ आज भी
लोगों के मलए जजज्ञासा का ववषय है. इस महान
काव्य में न्याय, मशक्षा, चचककत्सा, ज्योततष,
युद्धनीतत, योगशा्त्र, अथयशा्त्र, वा्तुशा्त्र,
मशल्पशा्त्र, कामशा्त्र, खगोलववद्या तथा धमयशा्त्र
आदद के बारे में लोग आज भी जानना चाहते हैं. इस
महान ग्रंथ के भीतर जजतनी भी रचनाएं हैं वे
जानकारी से पूणय हैं व इनके बारे में जजतना भी पढ़ा
जाए वो कम है. महाभारत की यह कथाएं हमें उस
युग की सभी जानकारी देती हैं लेककन उन्हीं पन्नों के
बीच कु छ बातें ऐसी भी हैं जो आमतौर पर चचाय का
ववषय नहीं होती. ये हैं महाभारत के जाने माने चेहरों
की प्रेम कथाएं जजनमें से कु छ तो लोगों के बीच
प्रचमलत है और अन्य अभी भी इन पौरार्णक
इततहास के पन्नों में तछपी हुई है.
15ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
15. श्री कृ ष्ण की 16,108 पजननयां
श्री कृ ष्ण अपने बाल अवतार से ही
सबके वप्रय थे इसमलए तो वे हरदम
गोवपयों से तघरे रहते थे. इसी के
फल्वरूप श्री कृ ष्ण की 100 या 200
नहीं बजल्क कु ल 16,108 पजत्नयां थी
जजनमें से 16,00 पजत्नयों ने उनका
साथ पाने के मलए बार-बार नया
अवतार मलया था.
16ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
16. हज्तनापुर के राजा धृतराष्र
गांधारी व धृतराष्र
ताउम्र पट्टी
हज्तनापुर के राजा धृतराष्र व उनकी
पत्नी गांधारी के बीच का ्नेह उनके
वववाह के पश्चात ही उतपन्न हुआ.
जब गांधारी ने पहली बार धृतराष्र के
बारे में जाना तो उन्हें आभास हुआ
कक उनके पतत नेत्रहीन हैं व आंखों से
दुतनया को देखने का सुख प्राप्त नहीं
कर सकते, तो वह ्वंय कै से यह
सुख अके ले भोग सकती हैं. ऐसा
अनुभव करते ही गांधारी ने भी अपनी
आंखों पर ताउम्र पट्टी बांधने की
तनश्चय कर मलया था.
17ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
17. अजुान व उिूपी
उलूपी एक नाग की पुत्री थी अजुान व उिूपी
उलूपी एक नाग की पुत्री थी और
वह राजकु मार अजुयन की ओर काफी
आकवषयत हुई, उसने राजकु मार का
अपहरण कर मलया. यह तब कक
बात है जब अजुयन अज्ञातवास भोग
रहे थे और अपने नगर से दूर थे.
अपहरण के दौरान एक ्त्री के साथ
अवववादहत ररश्ते को अंजाम देना
उस समय पाप के बराबर था जजस
कारणवश अजुयन व उलूपी ने वववाह
कर मलया.
18ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
18. अजुान व चित्रांगिा
अजुान व चित्रांगिा
चचत्रांगदा मणीपुर की राजकु मारी व राजा चचत्रवाहन
की पुत्री थी जो कक बेहद खूबसूरत थी. जब वनवासी
अजुयन मर्णपुर पहुंचे तो उसके रूप पर मुग्ध हो गये.
उन्होंने नरेश से उसकी कन्या का हाथ मांगा, लेककन
राजा की एक शतय थी. राजा चचत्रवाहन ने अजुयन से
चचत्रांगदा का वववाह करना इस शतय पर ्वीकार कर
मलया कक उसका पुत्र चचत्रवाहन के पास ही रहेगा
तयोंकक पूवय युग में उसके पूवयजों में प्रभंजन नामक
राजा हुए थे. अजुयन इस बात के मलए सहमत हो गए
व वववाह के पश्चात पुत्र होने के कु छ सालों के बाद
अपनी पत्नी व पुत्र को मर्णपुर में ही छोड़कर वावपस
इंद्रप्र्थ लौट आए.
अजुान व चित्रांगिा
19ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
19. सुभद्रा व अजुान
सुभद्रा व अजुान
सुभद्रा को महाभारत में श्री कृ ष्ण की
बहन के नाम से ही जाना गया है.
सुभद्रा व अजुयन दोनों ही एक दूसरे को
बहुत प्रेम करते थे लेककन सुभद्रा के बड़े
भाई बलराम उनका ब्याह दुयोधन से
करना चाहते थे पर कृ ष्ण के प्रोत्साहन
से अजुयन इन्हें द्वारका से भगा लाए.
सुभद्रा व अजुान
20ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
20. दहडडंिा व भीम
दहडडंिा व भीम दहडडंिा व भीम
दहडडंबा एक राक्षसी थी जो इंसानों को खाती
थी. उसे कुं ती पुत्र भीम जो कक महाभारत के
बलशाली योद्धाओं में से एक हैं उनसे प्रेम हो
गया और उन्हीं के प्रेम ने दहडडंबा को
बबलकु ल बदल ददया. कहा जाता है कक दोनों
का वववाह हुआ लेककन भीम के वल कु छ ही
समय के मलए दहडडंबा के पास रहे और कफर
उन्हें अके ला छोड़कर आए गए. दहडडंबा ने एक
पुत्र को जन्म ददया था जजसका नाम घटोकच
था.
21ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
21. सनयवती व पराशर
महाभारत युग के ववख्यात गुरुओं
में से एक थे पराशर ऋवष जजनके
पास ज्ञान का भंडार था. सत्यवती
एक मछु वारे की पुत्री थी जो लोगों
को नदी पार करने में नाव के
सहारे मदद करती थी. तभी संत
पराशर की नजर उनपर पड़ी और
वो उनकी खूबसूरती में लीन हो
गए उनसे प्रेम संबंधों की आग्रह
कर बैठे.
22ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
22. सनयवती व पराशर
सत्यवती ने पराशर के प्र्ताव को ्वीकार ककया लेककन तीन
शतें रखी, पहली शतय कक दोनों को प्रेम संबंधों में लीन होते हुए
कोई ना देखे, तो पराशर ने आसपास एक धुंध उत्पन्न कर दी.
दूसरी शतय यह थी कक पराशर के करीब आने पर भी सत्यवती का
कौमायय ना टूटे जजसके मलए पराशर ने उन्हें वरदान ददया कक पुत्र
को जन्म देने के बाद भी सत्यवती का कौमायय वावपस लौट
आएगा. और तीसरी शतय यह थी कक अपने शरीर से मछली की
आती दुगंध से परेशान सत्यवती ने इसका अंत मांगा तो पराशर
ने यह वरदान ददया कक तुम्हारे शरीर से ताउम्र एक ददव्य सुगंध
आती रहेगी. सत्यवती व पराशर की एक संतान भी हुई जो वेदों
में ‘वेद व्यास’ के नाम से प्रमसद्ध है.
23ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
23. सनयवती व शांतनु
संत पराशर से ममले वरदान जजसकी बदौलत सत्यवती के शरीर
से ददव्य सुगंध आती थी उसने शांतनु को अपनी ओर आकवषयत
ककया. सत्यवती की खूबसूरती में मगन शांतनु ने उससे वववाह
करने का प्र्ताव रखा, तो सत्यवती ने बताया कक उसके वपता
इस बात के मलए कभी भी राजी नहीं होंगे और हुआ भी यही.
शांतनु की लाख कोमशशों के बाद भी सत्यवती के वपता ना माने
लेककन अंत में गंगा पुत्र ने इस कायय को आसान बनाया व
शांतनु व सत्यवती का वववाह हुआ.
24ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
24. महाभारत से जजसका ततनक भी संपकय होगा वह इस बात को भलीभांतत जानता होगा कक भीष्म ने वववाह
नहीं ककया था और जीवन पयंत ब्रह्मचयय का पालन ककया, पर तया अपने वपछले जन्म में भी भीष्म
अवववादहत ही थे. धाममयक ग्रंथों को खंगाले तो पता चलता है कक भीष्म अपने वपछले जन्म में एक वासु थे
और वववादहत थे. आइए जानते हैं कक वह कौन सा शाप था जजसके कारण भीष्म को इस धरती पर मानव
रूप में जन्म लेना पड़ा.
भारतीय मान्यताओं के अनुसार वासु वे देवता थे जो इंद्र के पररचर का कायय करते थे. वासु बाद में ववष्णु के
पररचर बन गए थे. इंद्र की सभा में कु ल आठ वासु हुआ करते थे जो अलग-अलग प्रकृ तत के पहलूओं का
प्रतततनचधत्व करते थे. बृहदअरण्यक उपतनषद के अनुसार इन वासुओं के तनम्नमलर्खत नाम थे- अजग्न, पृथ्वी,
वायु, अंतररक्ष, आददत्य, द्यौस, चंद्रमास और नक्षत्र. हालांकक महाभारत में वासुओं के नाम अलग मलखे गए
हैं. ये नाम हैं अनल, धार, अतनल, अह, प्रत्युष, प्रभाष, सोम और ध्रुव.
25ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
25. भीष्म अवववादहत तयों रहे?
संभव है कक इसके पीछे तनम्नमलर्खत कारण हों
1) वह एक वासु थे और धरती पर वे मसफय अपने पाप की सजा भुगतने के मलए आए थे.
वे धरती पर अचधक ददन रुकने के इच्छु क नहीं थे.
2) अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के उनके लालच के कारण ही उन्हें शाप ममला था.
एक बार यह सब भुगत लेने के बाद वे दुबारा पाररवाररक बंधनों में नहीं उलझना चाहते थे.
3) वे संसार में अपना अनुवांमशक अंश नहीं छोड़ना चाहते थे.
4) वे इस संसार में अपने कमों के चक्र को पूरा कर लेना चाहते थे और ऐसा कु छ भी शेष
नहीं छोड़ना चाहते थे जो उन्हें वापस पीछे छोड़े.
26ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
26. वासुओं
रामायण में जहां वासुओं को कश्यप ऋवष और अददतत का पुत्र बताया गया है वहीं महाभारत में वासुओं को प्रजापतत का पुत्र बताया गया है.
महाभारत में उल्लेर्खत एक घटना के अनुसार ‘पृथु’ के साथ अन्य वासु जंगल में घुमने का आनंद ले रहे थे. इस दौरान द्यौस की पत्नी ने
एक सुंदर गाय देखी और अपने पतत को उस गाय को चुराने के मलए राजी कर मलया. द्यौस ने पृथु और अपने अन्य भाईयों के साथ ममलकर
उस गाय को चुरा मलया. दुभायग्य से वासुओं ने जजस गाय को चुराया था वह ऋवष वमशष्ठ की थी.
वमशष्ठ ने अपनी शजततयों से यह मालूम कर मलया की वासुओं ने उनकी गाय चुराई है. उन्होंने सभी वासुओं को धरती पर इंसान के रूप में
जन्म लेने का शाप ददया. वासुओं की क्षमा याचना पर वमशष्ठ ने उनसे वादा ककया की 7 वासु एक साल के भीतर अपने शाप से मुजतत पा
लेंगे पर द्यौस को लंबे समय तक सांसाररक जीवन का कष्ट उठाना पड़ेगा.
वासुओं ने गंगा नदी को धरती पर अपनी मां बनने के मलए राजी ककया. गंगा धरती पर मानव रूप में अवतीणय हुईं और राजा शांतनु की पत्नी
बनीं. उन्होंने राजा शांतनु के समक्ष यह शतय रखी की वे उन्हें कभी भी ककसी भी बात के मलए नहीं रोकें गे. गंगा ने लगातार अपने सात बच्चों
को पैदा होते ही अपने ही पानी में डुबो ददया ताकक वे अपने शाप से मुतत हो सकें . इस दौरान शांतनु ने गंगा का ववरोध नहीं ककया पर जब
गंगा ने अपने आठवें बच्चे को भी डुबोना चाहा तो शांतनु ने उनका ववरोध ककया. इसके बाद गंगा ने शांतनु को छोड़ ददया. गंगा के आठवें पुत्र
द्यौस ही थे जो जीवीत रह गए और आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रमसद्ध हुए.
यानी भीष्म वपतामह एक वासु थे और चोरी के पाप की सजा भुगतने के मलए धरती पर पैदा हुए थे. भीष्म से जुड़ा महाभारत में एक भावुक
क्षण तब आता है जब श्रीकृ ष्ण अजुयन के असफल रहने पर ्वंय ही भीष्म को मारने के मलए दौड़ पड़ते हैं. भीष्म कृ ष्ण के आगे हांथ जोड़कर
घुटनों पर बैठ जाते हैं और उनसे पूछते हैं कक, “तया मैने अपनी चोरी के पाप का उचचत कीमत चुका ददया है?”
27ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
27. लशखंडी
महाभारत के युद्ध में
आर्खरकार भीष्म मशखंडी के
हाथों से मरे. भीष्म का नाम
शौयय, भजतत और बमलदान का
प्रयाय है. भीष्म ने असीम
प्रनतभाओं से संपन्न होने के
बावजूद एक कष्टप्रद और
अके लापन भरा सांसाररक जीवन
जजया. वपछले जन्म की अपनी
एक लालच की सजा भुगत रहे
भीष्म को इस जन्म में ककसी
भी प्रकार का लालच, मोह आदद
अन्हें उनके भीषण प्रततज्ञाओं
और कमों से डडगा नहीं पाए.
28ककशन गोपाल मीना के वी सवाई माधोपुर
28. महाभारत में कुं ती को दिया गया यह श्राप आज के युग में िररताथा होता नजर आ रहा है.
इस बात की जजज्ञासा मलए जब ज्येष्ठ पुत्र
युचधजष्ठर ने अपनी माता से पूछा तो माता
कुं ती ने बेटे की मृत्यु से उत्पन्न क्रोध और
करुणा वश युचधजष्ठर को जवाब ददया कक
अंगराज कणय उनका वा्तववक पुत्र था जजसका
जन्म पाण्डु के साथ वववाह होने से पूवय हुआ
था. यह जानकर युचधजष्ठर को काफी दुख
पहुंचा. उन्होंने युद्ध का जजम्मेदार अपनी माता
को बताया और समूल नारी जातत को श्राप
ददया कक आज के बाद कोई भी नारी अपना
भेद नहीं छु पा पाएगी. महाभारत में कुं ती को
दिया गया यह श्राप आज के युग में िररताथा
होता नजर आ रहा है.
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29. पांचों पाण्डु पुत्रों की भायाय बनीं.
माता कुं ती की वजह से द्रौपदी पांचों पाण्डु पुत्रों
की भायाय बनीं. दरअसल ्वयंवर रचाने के बाद
जब अजुयन अपनी पत्नी द्रौपदी को साथ लेकर
माता कुं ती के पास पहुंचे और द्वार से ही अजुयन
ने पुकार कर अपनी माता से कहा, ‘माते! आज
हम लोग आपके मलए एक अद्भुत मभक्षा लेकर
आए हैं’. इस पर कुं ती ने भीतर से ही कहा,
‘पुत्रों! तुम लोग आपस में ममल-बांट उसका
उपभोग कर लो.’ बाद में यह ज्ञात होने पर कक
मभक्षा वधू के रूप में है, कुं ती को अत्यन्त दुख
हुआ ककन्तु बाद में माता के वचनों को सत्य
मसद्ध करने के मलए द्रौपदी ने पांचों पांडवों को
पतत के रूप में ्वीकार कर मलया.
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30. गीता के तनष्काम कमययोग
पौरार्णक कथा के अनुसार जजस समय भगवान
श्री कृ ष्ण कु रुक्षेत्र की रणभूमम में पाथय (अजुयन)
को गीता के तनष्काम कमययोग का उपदेश दे रहे
थे उस समय धनुधायरी अजुयन के अलावा इस
उपदेश को ववश्व में चार और लोग सुन रहे थे
जजसमें पवन पुत्र हनुमान, महवषय व्यास के
मशष्य तथा धृतराष्र की राजसभा के सम्मातनत
सद्य संजय और बबयरीक शाममल थे. आपको
बताते चलें बबयरीक घटोत्कच और अदहलावती के
पुत्र तथा भीम के पोते थे. जब महाभारत का
युद्ध चल रहा था उस दौरान उन्हें भगवान श्री
कृ ष्ण से वरदान प्राप्त था कक कौरवों और
पाण्डवों के इस भयंकर युद्ध को देख सकते हैं.
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31. श्रीकृ ष्ण को ववश्वरूप के रूप
जब गीता का उपदेश चल रहा उस दौरान पवन पुत्र
हनुमान अजुयन के रथ पर बैठे थे जबकक संजय,
धृतराष्र से गीता आख्यान कर रहे थे. धृतराष्र ने पूरी
गीता संजय के मुख से सुनी वह वही थी जो कृ ष्ण
उस समय अजुयन से कह रहे थे. भगवान श्रीकृ ष्ण की
मंशा थी कक धृतराष्र को भी अपने कत्तयव्य का ज्ञान
हो और एक राजा के रूप में वो भारत को आने वाले
ववनाश से बचा लें. यही नहीं यही वह चार व्यजतत थे
जजन्होंने भगवान श्रीकृ ष्ण को ववश्वरूप के रूप में
देखा.
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32. भततों को दशयन
कहते हैं भगवान अपने सच्चे भततों को दशयन
देने के मलए ्वयं भी प्रकट हो जाते हैं, बस
उन्हें पहचानने की शजतत होनी चादहए. वो
कभी भी, कहीं भी और ककसी भी रूप में
अपने भतत के सामने प्रकट हो सकते हैं.
कु छ इसी तरह के चमत्कारों का साक्षी रहा है
द्वापर युग, यातन की महाभारत का युग,
जहां भगवान ववष्णु के अवतार कृ ष्ण ने
युवराज अजुयन को दशयन ददए थे. ऐसा ही
वातया महाबली भीम के साथ भी हुआ,
लेककन उन्हें ववष्णु ने नहीं ककसी और ने ही
दशयन ददए थे… कौन थे वो?
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33. महाभारत का कािा अध्याय
महाभारत का अध्याय तब बेहद
संजीदा मोड़ पर खड़ा हो गया था जब
पाण्डु पुत्रों ने जुए में कौरवों के हाथों
अपना सब कु छ गवा ददया था. यहां
तक कक उन्हें इस खेल में अपनी
पत्नी की इज्जत की आहुतत भी देनी
पड़ी थी. छल और कपट की बमल
चढ़ने के बाद सभी पाण्डवों को द्रौपदी
समेत 12 वषों के मलए जंगलों में
अज्ञातवास भुगतना पड़ा था.
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34. पाण्डवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ जंगल में रहना आरंभ ककया
मन में हार की तनराशा मलये सभी
पाण्डवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ
जंगल में रहना आरंभ ककया. एक ददन
द्रौपदी को जंगल में अपनी कु दटया में
बैठे मनभावन सुगंध आई. उसने भीम
से पता करने को कहा कक ये सुगंध
कहां से आ रही है व साथ ही भीम से
उन फू लों को ढूंढने का भी आग्रह ककया.
यह सुन भीम क्रोचधत हो उठा और बोला
कक मेरे पास तुच्छ फू लों को ढूंढने का
समय बबलकु ल नहीं है और ना ही मैं
उन्हें ढूंढने जाऊं गा.
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35. पाण्डवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ जंगल में रहना आरंभ ककया
कु छ समय के पश्चात जब भीम
को यह अहसास हुआ कक उसे
अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करनी
चादहए तो वो घने जंगलों में उस
सुगंध को ढूंढने तनकल गया. यह
जंगल इतना घना था कक यहां से
गुजरने के मलए भी भीम को
अपने हचथयार की मदद से रा्ता
बनाना पड़ा जजससे आसपास के
सभी जानवर तक परेशान हो गए.
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36. ये ककसने ििकारा भीम के क्रोध को
फू लों को ढूंढते हुए जब भीम एक जगह पहुंचे
तो उन्होंने देखा कक कु छ सुंदर पुष्पों का ढेर
लगा है. जैसे ही वो आगे बढ़े, उन्होंने रा्ते
में एक बंदर को सोते हुए देखा, जजसे हटाए
बबना वो आगे नहीं बढ़ सकते थे. भीम ने उस
वृद्ध बंदर से रा्ते से हट जाने को कहा
लेककन शायद उनके आदेश को बंदर ने
सुनकर भी अनसुना कर ददया. यह देख भीम
को गु्सा आया और उन्होंने कहा, “मूखय
बंदर, मेरे रा्ते से हट जाओ. मैं एक
शजततशाली योद्धा हूं, यदद तुम नहीं हटे तो
मैं तुम पर अपनी गदा से वार करुंगा”.
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37. मेरे मागय से हट जाओ
यह सुन बंदर ने धीरे से आंख खोली और कहा, “तुम युवराज भीम हो ना? वही
युवराज जो महान योद्धा होते हुए भी दुष्ट कौरवों से अपनी पत्नी की रक्षा ना
कर सका. वही युवराज जो खुद को योद्धा कहता है लेककन संकट के समय में
उसके श्त्र काम ना आए.”
यह सुन भीम और क्रोचधत हो गए और उन्होंने बंदर को ललकारते हुए कहा,
“मुझे युद्ध के मलए मत उकसाओ. मैं उन लोगों में से हूं जो अपने रा्ते में
बाधा बनने वाली प्रत्येक व्तु को नष्ट कर देता हूं, लेककन मैं तुम्हे मारना नहीं
चाहता तयोंकक तुम एक बूढ़े बंदर हो. इसमलए तुम्हें कह रहा हूं की आसानी से
मेरे मागय से हट जाओ.”
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38. जि भीम का िि कु छ ना कर सका
भीम को इस दशा में देख वह बंदर मागय
से हट जाने को राजी तो हो गया लेककन
उसने एक शतय रखी कक वो हट तो
जाएगा पर भीम को उसकी लंबी पूंछ
को उठाकर मागय से हटाना होगा. कु छ
ही क्षण में भीम राजी हो गया और वो
पूंछ को हटाने के मलए आगे बढ़ा. भीम
की ताकत देखते हुए हुए उसके मलए
एक पूंछ को हटाना एक तुच्छ कायय था
लेककन अचंभा तब हुआ जब लाख
कोमशशों के बाद भी भीम पूंछ को एक
इंच भी दहला ना सका.
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39. ववनम्रता से सवाल पूछा,
उस क्षण भीम को यह ज्ञात हुआ कक जजस
बंदर पर वो इतनी देर से क्रोचधत हो रहे थे
वो कोई मामूली बंदर नहीं है. यह देख भीम
ने बेहद ववनम्रता से सवाल पूछा, “आप कौन
हैं? आप कोई साधारण जीव तो नहीं हैं”
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40. क्या था उस जीव का रहस्य
यह सवाल सुनते ही वह
मु्काराए और अचानक से
उन्होंने एक इंसान रूपी बंदर का
रूप धारण ककया. वो कोई और
नहीं बजल्क पवनपुत्र ‘हनुमान’
थे. उन्होंने भीम से कहा कक मैं
के वल अपने भाई भीम से
ममलना चाहता था तथा उसका
अहंकार नष्ट करना चाहता था.
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