5. 1|P age
मल्टीप माइलोमा
मल्टीपल माइलोमा प्लाज्
सेल्स का क�दायक क ैंसरहै
प्लाज्मा सेल्स अिस्थमज्ज
बोनमेरो में पाये जाते हैं औ
हमारे र�ातंत्र के ्रमुख िसप
प
हैं। िविदत रहे िक हड ्िडयों क
अंदर िस्थत गूदे को
अिस्थमज्जा या बोनमेरो कहत
हैं। यह एक कारखाना है जहां
खून में पाई जाने वाली सभी
कोिशकाएं तैयार होती हैं। यह
रोग 1848 में प�रभािषत िकया
गया।
र�ातंत्र में कई तरह
कोिशकाएं होती हैं जो साथ िमल कर संक्रमण या िकसी बाहरी आक्रमण का मुकाबला करती हैं।
िलम्फोसाइट्स प्रमुख हैं। ये मुख्यतः दो तरह क� होती -सेल्स और ब-सेल्स।
जब शरीर पर िकसी जीवाणु का आक्रमण होताहै तो -सेल्स प�रपक्व होकर प्लाज्मा सेल्स बनते हैं। ये प
सेल्स अपनी सतह पर एंटीबॉडीज(िजन्हें इम्युनोग्लोब्युिलन भी कह) बनाते है, जो जीवाणु से युद्ध कर उनक
सफाया करते हैं। िलम्फोसाइट्स शरीर के कई िहस्सों जैसे िलम्, बोनमेरो, आंतों और खून में पाये जाते है
लेिकन प्लाज्मा सेल्स अमूमन बोनमेरो में ही पाए जाते ह
जब प्लाज्मा सेल्स कैंसरग्रस्त , तो वे अिनयंित्रत होकर तेजी िवभािजत होने लगते हैं और गांठ का �प
लेते हैं िजसे प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। यिद एक ही गांठ बनती है तो इसे आइसोलेटेड या सोिल
प्लाज्मासाइटोमा कहते , लेिकन यिद एक से अिधक गांठे बनती हैं तो इसे मल्टीपल माइलोमा कहते हैं। ये गां
मुख्यतः अिस्थमज्जा में बनती
मल्टीपल माइलोमा में तेजी से बढ़ते प्लाज्मा सेल्स बोनमेरोमें फैल जाते हैं और दूसरी कोिशकाओं को ब
िलए पयार ्� जगह नहीं िमल पातीहै। फलस्व�प अन्य कोिशकाओं क� आबादी कम होने लगती है। यि.बी.सी.
का िनमार ्ण कम होने लगे मरीज एनीिमया का िशकार हो जाता ह, उसे कमजोरी व थकान होती है और शरीर सफे द
पड़ जाता है। प्लेटलेट्स कम (Thrombocytopenia) होने पर र��ाव होने का खतरा रहता है। डब्ल्.बी.सी.
कम (Leucopenia) होने पर संक्रमण हो सकते है
6. 2|P age
माइलोमा में हड ्िडयां भी कमजोर होने लगती है। हड ्िडयों को स्वस्थ और मजबूत रखने का कायर् दो तर
कोिशकाएं करती है, जो िमल कर काम करती हैं। जहां ओिस्टयोब्लास्ट कोिशकाएं नये -ऊतक बनाती है,
वहीं ओिस्टयोक्लास्ट कोिशकाएं पुराने -ऊतक को गलाने का काम करती हैं। माइलोमा सेल्
ओिस्टयोक्लास्ट एिक्टवेिटंग फेक्टर का �ाव कर, िजसके प्रभाव से ओिस्टयोक्लास्ट तेजी से हड्डी
गलाने लगते हैं। दूसरी तरफ ओिस्टयोब्लास्ट को नये -ऊतक बनाने के आदेश नहीं िमल पाते हैं फलस्व�
हड्िडयां कमजोर व खोखली होने लगती है, मरीज को ददर ् होती है और अनायास हड ्िडयां चटकने व टूटने लगती
है। हड्िडयां कमजोर होने से उनका कैिल्शयम भी िपघलने लगता है और खून मेंकैिल्शयम का स्तर बढ़ने लगता
असामान्य और क ैंसरग्रस्त प्लाज्मा सेल्स संक्रमण से लड़ने लायक एंटीबॉडीज बनाने में असमथर् होते
शरीर क� र�ा करने में पूरी तरह नाकामयाब रहते हैं। माइलोमा सेल्स एक ही प्लाज्मा सेल क� अनेक क
कॉपीज क� तरह होते हैं और ये एक ही तरह क� मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज यM प्रोटीन बनाते हैं। यह माइलोमा
खास िवकृित है। इस प्रोटीन को पेराप्रोटीन M स्पाइक भी कहते हैं। जब अि-मज्ज, खून में इस प्रोटीन
मात्रा बढ़ने लगतीहै तो मरीज के कई परेशािनयां होती हैं। इम्युनोग्लेब्युिलनेस प्रोट2 लंबी (heavy) और 2
छोटी (light) से बने होते हैं। कई बार गुद� इसM प्रोटीन का पेशाब में िवसजर्न करते हैं। पेशाब में िनकलने वा
प्रोटीन को लाइट चेन या बेन्स जोन्स प्रोटीन कहते हैं। ये िकडनी कोित पह�ँचा स
�
अमे�रकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार अकेले अमे�रका में हर वषर् मल्टीपल माइलोमा20,000 नये रोगी पाये
जाते हैं। अमे�रका में माइलोमा का आघट1% है। अफ्र�क� अमे�रकन्स में आ2% है। यह वद्धावस्था का र
ृ
है, इसके आघटन क� औसत उम्68-70 वषर ् है। ि�यों क� तुलना में यह पु�षों में ज्यादा होता है। यहा5
वष�य जीवन काल लगभग 35% है। इसके युवा रोगी अपे�ाकृत ज्यादा जी पाते हैं। सन2010 में पूरे िव� मे
74000 लोगों क� मृत्यु मल्टीपल माइलोमा से ह�ई है। - होजिकन्स िलंफोमा के बाद यह सबसे आम
िहमेटोलोजी का कैंसर है। िव� में कैंसर 1 % रोगी मल्टीपल माइलोमा के होते हैं और कैंसर से मरने वा2 %
रोगी माइलोमा के होते हैं।
इस रोग का कारण अ�ात है। लेिकन आनुवंिशक, वातावरण और व्यावसाियक संबंधी कुछ जोिखम घटक िचिन्ह
िकये गये हैं।
माइलोमा के िविभन्न �प
मोनोक्लोनल गेमोपेथी ऑफ अनिडटरिमन्ड िसगनीिफ के(MGUS)
इस रोग में असामान्य प्लाज्मा सेल्स बह�त सा मोनोक्लोनल प्रोटीन , लेिकन इन रोिगयों में ट्यूमर या गांठ
नहीं बनती और मल्टीपल माइलोमा क� तरह इन्हें कोई अलामात भी नहीं होते। खासकर इसमें हड्िडयां
नहीं पड़त, कैिल्शयम नहीं बढ़, गुद� खराब नहीं होते और र�ाणु भी कम नहीं होते। मरीज सामान्य जीवन जी
है। इस रोग का पता अचानक तभी पड़ता है जब िकसी अन्य बीमारी के िलए ह�ई खून क� जांच में प्रोटीन ज्
आता है और िफर दूसरी जांचों से पता चलता है िक यह प्रोटीन मोनोक्लोनल प्रोटी MGUS में प्लाज्
सेल्स बढ़ते हैं लेिकन इनका प्रि10 से कम ही रहता है।
7. 3|P age
आगे चल कर MGUS के कई रोिगयों को(लगभग 1%) मल्टीपल माइलोम, िलम्फोमा या ऐमायलोडोिसस के
िशकार हो सकते हैं। इन रोिगयों को कोई उपचार नहीं िदया ज, लेिकन िचिकत्सक क� िनगरानी में रखा जात
है।
Parameter
Monoclonal
Proteins
Bone marrow
Plasma cells
Treatment
CRAB
Symptoms
MGUS
Smouldering
Myeloma
Multiple Myeloma
<3g
>3 g
>3 g
< 10%
>10%
> 10%
Wait & Watch
Wait & Watch
Chemo & Bonemarrow
Transplantation
No
No
HyperCalcemia >2.75 mmol/L
Renal insufficiency
Anemia (hemoglobin <10 g/dL)
Bone lesions (lytic lesions with
compression fractures)
स्मोल्ड�रंग माइलो (Smouldering myeloma)
स्मोल्ड�रंग मल्टीपल माइलोमा ल�णहीन माइलोमा है। इसके रोगी को कोई तकलीफ नहीं होती MGUS
और मल्टीपल माइलोमा के बीच क� िस्थितहै। स्मोल्ड�रंग माइलोमा में िनम्न में से एक िवकृित ज�रहो
बोनमेरो में प्लाज्मा स10% या अिधक होते हैं।
खून में प्रोट30 g/L या ज्यादा होते हैं।
स्मोल्ड�रंग मल्टीपल माइलोमा में क्रेब ल�ण ऐ, िकडनी फे ल्य, कैिल्शयम स्तर का बढ़ना और अििवकार नहीं होते। लेिकन इन रोिगयों को कभी भी मल्टीपल माइलोमा हो सकता है। इन्हें उपचार नहीं िदया
लेिकन कड़ी िनगरानी में रखा जाता है।
सोिलटरी प्लाज्मासाइटोम
यह भी असामान्य और िवकृत प्लाज्मा सेल्स का ट्यूमर है। लेिकन मल्टीपल माइलोमा के िवपरीत इसमें
जगह ट्यूमर होता है। इसीिलए इसे सोिलटरी प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। यह प्रायः बोनमेरो में उत्पन्न, तब
इसे आइसोलेटेड प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं। लेिकन यिद इसक� उत्पि� अन्य (जैसे फेफड़ा, साइनस क�
इिपथीिलयम, गला या कोई अन्य अं) में होती है तो इसे एक्सट्रामेड्युलरी प्लाज्मासाइटोमा कहते हैं
उपचार रेिडयेशन या शल्य द्वारा िकया जाता है। सोिलटरी प्लाज्मासाइटोमा के कई रोिगयों को आगे
मल्टीपल माइलोमा हो सकता है। इसिलए इन पर भी पूरी िनगरानी रखी जाती है।
8. 4|P age
िजन्दगी क� भी अजीब दास्तान होती है,
हर गजरता लम्हा मौत का फरमान होती है
ु
व� भी गर दगा दे तो कोई क्य करे,
बहारों में भी चमन वीरान होती है।
ल�ण
मल्टीप माइलोमा में शरीर के कई अंग प्रभािवत होते, इसिलए
मरीज को मुख्तिलफ अलामात हो सकते हैं। के शु�वाती ल�ण
हड्िडयों में ददर् ह, अ चानक हड्िडयां चटक जाना (Pathologic
Fracture), कमजोरी, थकान, खून क� कमी, संक्रम(प्राय
न्युमोकोक), खून में कैिल्शयम बढ़ जा, मे�रज्जु पर दबाव के
ल�ण या िकडनी फे ल्यर हैं। कई बार ऑपरेशन या अन्य तकल
के िलए ह�ई खून क� जांच से इस बीमारी का पता चलता है। कभी
ब्लड कैिमस्ट्री में टोटल प्रोटीन क� और ऐल्ब्युिमन क�
ज्यादा फकर् होना िकसी गंभीर बीमारी होने का शकपैदा करताह
(िविदत रहे िक कुल प्रोटी- ऐल्ब्युिम = ग्लोब्युि)। बोनमेरो में
प्लाज्मा सेल्स क� बढ़ती आबादी के दबाव और आतंक के का
लाल र�ाणु, �ेत र�ाणु और िबंबाणुओ ं का िजंदा रहना मुिश्कल हो
जाता है और बेचारों क� आबादी कम होने लगती है। नतीजा होता है
एनीिमया, न्युट्रोपीिनया और थ्रोम्बोसाइटोपीि
माइलोमा के प्रमुख ल�ण क्( CRAB) नेमोिनक द्वारा याद रख
जा सकते हैं। CRAB का मतलब है : C = Calcium elevated,
R = Renal failure, A = Anemia, B = Bone lesions
हड्िडयों में ददर् और टू
एक ितहाई मरीजों में सबसे पहला ल�ण प्रायः मे�दंड में िकसी ह
का टूटना होता है। यह सबसे प्रमुख ल�णहै औ मल्टीपल माइलोम
के 93% मरीजों में एक से अिधक हड्िडयों मे ं फ्रेक्चर िमल हीजा
यिद िकसी जगह लगातार ददर ् हो रहा है तो यह फ्रेक्चर का संकेत है।
ितहाई मरीज प्रायः क, कूल्ह, खोपड़ी और / या हाथ पैरों क� लंबी
हड्िडयोंमें दद क� िशकायत करते हैं। मरीज को खून गाढ़ा होने और
कैिल्शयम बढ़ने के कारण भी कुछ ल�ण हो सकते हैं।
मे�रज्जु पर दबा
यह एक गंभीर िवकार है, और माइलोमा के 20% रोगी इसका िशकार
9. 5|P age
हो सकते हैं। मे�दंड क� हड ्िडयों में ट्य, अिस्-�य (Lytic Bone Lesions) या नािड़यों पर दबाव पड़ना
इसके कारण हैं। कमजोर होना और कमर में द, कमजोरी, लकवा, संवेदनशून्यता और हा-पैरों में जलन या चुभ
जैसे ल�ण मे�रज्जु पर दबाव क� तरफ इशारा करते हैं। भी हो सकताहै। मे�रज्जु में दबाव कई स्तर प
सकता है, इसिलए मे�दड क� िवस्तृत जांच ज�री है।.
ं
र��ाव
प्लेटलेट्स क� कमी के कारण र��ाव हो सकता है। कभी कभार
मोनोक्लोनल प्रोटीन खून को जमा( Clotting) में सहायक तत्वों
सोख कर िनिष्क्रय कर देते हैं और र��ाव का सबब बन सकते
खून में कैिल्शयम बढ़न(Hypercalcemia)
खून में कैिल्शयम बढ़ने से अफ-तफरी, सुस्त, हड्डी में दद, कब्,
मतली, बार-बार पेशाब लगना और प्यास अिधक लगना जैसे ल�ण हो
सकते हैं।30% मरीजों में यह तकलीफ हो सकतीहै
संक्रम
र�ातंत्र के असंयत होने और �ेताणुओं में कमी आने से संक्रमण होन
संभावना प्रबल रहतीहै। मल्टीपल न्युमोकोकस रोगाणु सबसे अहम हमल
है, लेिकन हप�ज़ जोस्टर और िहमोिफलस भी संक्रमण फैला सकते ह
माइलोमा में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण संक्रमण ही माना गया है। क
उपचार के शु�वाती 2-3 महीनें में मौत का खतरा सबसे ज्यादा रहता ह
खून का गाढ़ापन (Hyperviscosity)
ु
खून गाढ़ा होने से बेचैनी, इन्फेक्, बुखार, िसरददर , िनद्, सन्नत, खंरोच ( bruises), नजर में धुंधलापन आिद
ल�ण हो सकते हैं। खून का गाढ़ापन अमूमन चार गुना बढ़ जाने पर मरीज को ये तकलीफें होती हैं। कई ब
नकसीर हो सकती है। खून गाढ़ा होने का कारण मोनोक्लोनल प्रोटीन का बढ़ना है जो कभी कभार स,
मायोकािडर ्यल इस्क�िमया या इन्फाक्शर्न का सबब भी बन सकता
नाड़ी िवकार
कापर ्ल टनल िसंड्, मेिनन्जाइिटस और पेरीफ्रल न्युरोपेथी भी माइलोमा के सामान्य ल�ण
एनीिमया
हीमोग्लोिबन कम होना भी कमजोरी का प्रमुख कारण बनता ह
10. 6|P age
भौितक परी�ण
आंखों में ऐग्जुडेिटव मेक्युलर िडटे, रेटाइनल हेमरेज या कॉटन वूल पेचेज देखे जा सकते हैं। एनीिमया के
कारण शरीर सफे द पड़ सकता है। प्लेटलेट कम होने से परुरा या एकाइमोसेस हो सकते हैं
प
मल्टीपल माइलोमा में हड्िडयों में
असामान्य नहींहै। हड्िडयों का गलना
टूटना (Pathologic fractures) इसके
खास सबब हैं। ितल्ली और िजगर ब
सकता है। प्रोटीन जमा होने के कारण िद
का आकार भी बढ़ सकता है।
माइलोमा के कुछ मरीजों को
ऐमाइलोयडोिसस हो सकता है। इनको
िनम्न ल�ण हो सकते हैं
कं धे में सूजन- एमाइलोयड जमा होने से दोनों कंधे के जोड़ों में सख्त और लच (rubbery) सूजन हो
सकती है। कापर ्ल टनल िसंड्रोम और त्वचा में गांठें भी हो सकत
मेक्रोग्लोिस(जीभ बड़ी हो जाना)
त्वचा के िवकार– हों, कान या धड़ क� त्वचा पर
पेप्यूल और नोड ्यूल हो सकते हैं
पोस्ट प्रोटोस्कोिपक पे�रपेलपेब्रल प (Postprotoscopic peripalpebral purpura) –
नाक बंद करके जोर से सांस िनकालने पर आँखों
के चारों तरफ डाकर् सकर्ल्स बन जाते हैं।
ऐमाइलोयडोिसस का खास संकेत है।
िकडनी फे ल्य
मल्टीप माइलोमा गुद� पर सीधा प्रहार करताहै। इसमें बनने वाला प्रोटीन गुद� में जाकर जमा होने लगता
नुकसान पह�ँचाता है। कैिल्शयम का बढ़ता स्तर भी गुद� को खराब करताहै। इसमें दी जाने वाली दवाइयां जा
िबसफोस्फोनेट्स आिद भी गुद� को नुकसान पह�ँचाती है। यिद रोगी को ब्लडप्रेशर या डायिबटीज है तो इ
सुचा� इलाज भी ज�री है तािक इनसे गुद� को बचाया जा सके । प्रारंिभक अवस्था में गुद� क� खराबी को ठीक ि
जा सकता है। मल्टीप माइलोमा के 25% मरीजों में अमूमन गुद� क� तकलीफ या फेल्यर होता है। माइलोमा
साथ ही िनम्न िवकार हो सकते हैं
माइलोमा िकडनी िसंड्रो(मुख्तिलफ कारणों )
ऐमाइलोयडोिसस लाइट चेन्स के साथ
िकडनी स्टोन्– खून में कैिल्शयम बढ़ने के का
11. 7|P age
िनदानीय कायर्
मल्टीपल माइलोमा के िनदान का प्रमुख आधार िचिकत्क�य (Clinical) और खून व मोनमेरो क� जांच है।
िकडनी फे ल्यर क� संभावना को सदैव ध्यान में रखना चािहये। इसिलए मरीज का एक्सरे य.वी.पी. करते
समय कॉन्ट्रास्ट मीिडयम के इंजेक्शन क� मात्रा और एक्सरे के एक्सपोजर को िसिमत रखना चािहये और
पानी क� कमी न होने दें।
सीबी.सी.
सीबी.सी. में िहमोग्लोि, लाल र�ाणु, �ेत
र�ाणु और िबंबाणुओ क� गणना क� जाती है,
ं
िजनसे हमें एनीिमय, न्युट्रोपीिनया
थ्रोम्बोसाइटोपीिनया क� उपिस्थित का पता
जाता है। सीबी.सी. और डी.एल.सी. से
कोएगुलेशन समेत कई जानका�रयां िमल जाती
हैं। माइलोमा में.एस.आर. काफ� बढ़ा रहता है।
रेिटकुलोसाइट काउंट काफ� कम रहता है। खून
क� स्लाइड में लाल र�ाणुओं में रोलो फोरमे
िदखाई देता है। खून में M प्रोटीन बढ़ने से लाल र�ाण M प्रोटीन से िचपक कर लिड़यों क� तरह िदखाई देते,
इसे ही रोलो फोरमेशन (rouleaux formation) कहते हैं।
बॉयोकै िमस्ट्
में टोटल प्रो, ऐल्बयुिम, ग्लोबयुिल, यू�रया, िक्रयेिटनीन और यू�रक एिसड क� जांच क� जातीहै। यिद यू�र
एिसड बढ़ जाता है।
पेशाब क� जांच
24 घंटे का पेशाब इकट्ठा िकया जाताहै औ
इसमें बेन्स जोन्स प्रो (lambda light
chains), प्रोटीन क� मात्रा और िक्रये
िक्लयरेंस क� गणना क� जातीहै। पेशाब म
प्रोटीन क� गणन मल्टीप माइलोमा के िनदान
और दवाओं का प्रभाव पर िनगरानी रखने क
िलए बह�त ज�री मापदंड है। 24 घंटे के पेशाब
में1 ग्राम से ज्यादा प्रोटीन माइलोमा का स
है। िक्रयेिटनीन िक्लयरेंस से िकडनी
कायर ्�मता का अनुमान लग जाता है।
12. 8|P age
इलेक्ट्रोफोरेिसस और इम्युनोिफक
सीरम प्रोटीन इलेक्ट्रोफो (SPEP) से प्रोटीन क� श्रेणी का पता लगाया जाता है और यह एक खास ग
(Mस्पाइ) बना कर देता है। यूरीन प्रोटीन इलेक्ट्रोफोर (UPEP) से पेशाब में बेन्स जोन्स प्रो(लाइट
चेन) क� मात्रा का पता चलताहै। इम्युनोिफक्सेशन से प्रोटीन क� उ(जैसे IgA लेम्बड) का पता चलता है।
कैिल्शयम और िक्रयेिटनीन समेत अन्य बायोकैिमस्ट्, SPEP, इम्युनोिफक्सेशन और इम्युनोग्लोब्युिल
मात्रात्मक जांच से ऐजोटीिम(खून में नाइट्रोजनयु� तत्वों जैसे यू�रया और िक्रयेिटनीन आिद का स),
खून में कैिल्शयम का स्तर बढ़ ज, एल्केलाइन फोस्फेटेज का स, और खून में ऐल्ब्युिमन क� कमी का प
चलता है।
SPEP से M प्रोटीन्स क� उपिस्थित क� जानकारी िमलती M
घटक प्रायः हाई �रजोल्यु SPEP द्वारा पहचाना जाताहै।
M घटक िवकार संबंधी
कप्पा और लेम्बडा के अनुपात स
जानकारी िमलती है। खून मेंM घटक क� 30 g/L मात्रमल्टीप
माइलोमा के िनदान का न्यूनतम मापदंड है। है।मल्टीप माइलोमा
के 25% मरीजों मे SPEP द्वार M प्रोटीन्स को पहचानना सं
नहीं हो पाता है।
पेशाब क� साधारण जांच से बेन्स जोन्स प्रोटीन्स का पता
UPEP या
चलता है। इसिलए 24 घंटे के पेशाब क�
इम्युनोइलेक्ट्रोफोरेिसस जांच क� जाती ह
UPEP या
इम्युनोइलेक्ट्रोफोर जांच से M घटक और कप्पा या लेम्बडा लाइट चेन्स को भी पहचान िलया जाता है।
तरह मल्टीप माइलोमा के िनदान हेतु सबसे प्रमुख जांच खून और पेशाब में इम्युनोग्लोब्युिलन क� इल्क्
गणना है।
इम्युनोग्लोब्युिलन के स्तर क� मात्रात् (IgG, IgA, IgM)
मल्टीप माइलोमा के िनदान हेतु नॉन-माइलोमेटोिसस इम्युनोग्लोब्युिलन का कम होना एक छोटा मापदंड
लेिकन M प्रोटीन क� मात्रा दवाओं के असर को देखने का अच्छा माकर्र
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्य
यह ट्यूमर के औसत दबाव का एक सहायक मापदंड है। बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युिलन का स्तर िकडनी फेल्यर म
बढ़ जाता है, भले मरीज को मल्टीप माइलोमा नहीं ह�आ हो। लेिकन बीट-2 माइक्रोग्लोब्युिलन मल्टीप
माइलोमा के फलानमान का सूचक माना जाता है।
ु
सी-�रयेिक्टव प्रो
यह इंटरल्युिकन IL-6 का सहायक माक्र (surrogate marker) माना जाता है। IL-6 को प्रायः प्लाज्मा
र
फे क्टर भी माना जाता है। बीट-2 माइक्रोग्लोब्युिलन क� IL-6 भी फलानमान का सूचक माना जाता है।
ु
13. 9|P age
खून का गाढ़ापन (Serum Viscosity)
िजन मरीजों में नकस, नाड़ी रोग के ल�ण या खून में M प्रोटीन बह�त ज्यादा हो तो खून के गाढ़ेपन क� जांच
जाती है।
एक्सरे िचत्र
मल्टीप माइलोमा का संदेह होने पर खोपड़ी, मे�दड और हाथ-पैरों के एक्सरे िलए जाते हैं। हड्िडयों के िनर
ं
के िलए यह बह�त अहम जांच है। माइलोमा में हड ्िडयां गलने लगती हैं। ऐसा लगताहैजैसे इनको दीमक लग गई हो
हड्िडयों में जगह जगह गोल और गहरे िनशान िदखाई देते है
लेिकन सी.टी.स्केन से ज्यादा स्प� और िवस्तृत तस्वीरें प्रा� होती हैं। .टी.स्केन से हमें पता चल जात
है िक हड्डी में िकस जगह फ्रेक्चर होने क� संभावना है। हड्िडयों का घनत्व कम हो रहा हो तो समझ में आता
हड्िडयां कमजोर होने वाली हैं। एक्सरे से ऐसी जानका�रया
नहीं िमल पाती है।
एम. आर. आई.
एम. आर. आई. से छाती और कमर वाले िहस्से में स्पाइन
�यन (Lytic lesions) और स्पाइनल कोडर् के दबाव क
जानकारी प्रारंिभक अवस्था में ही हो जाती है.आर.आई.
ल�णहीन गेमोपेथी (Asymptomatic Gammopathies)
के रोिगयों में स्पाइन 40 % खराबी को पकड़ लेता है, जब
िक उनके एक्सरे सामान्य होते हैं। यह स्पाइन कोडर् के िवकार और स्पाइन के महीन फ्रेक्चर भी प्रार
को पकड़ लेता है।
एिस्परेशन और बायोप्स
मल्टापल माइलोमा में अिस्थ मज्जा के प्लाज्मा से
जाते हैं। प्लाज्मा सेल्स के प्रसार और िवस्तार क� ग
लेबिलंग इंडेक्स द्वारा आंक� जाती है। यह इंडेक्स माइलोमा
िनदान का िव�सनीय मापदंड है। लेबिलंग इंडेक्स के बढ़ने का
बीमारी के िवस्तार से सीधा संबंध है।
बोनमेरो से द्रव्य िनकाल कर एिस्परेट और बायोप्सी जां
14. 10 | P a g e
जाती है और बोनमेरो मे प्लाज्मा सेल्स का प्रितशत िनकाला जात(स्वस्थ बोनमेरो म 3% तक प्लाज्मा सेल
होते है)। बायोप्सी में प्लाज्मा सेल्स परतों या गुच्छों में िदखाई देते हैं। बोनमेरो बायोप्सी ज्यादा स
िमलती है।
िहस्टोलोजी के नतीज
प्लाज्मा सेल्स आकार में िलम्फोसाइ2-3 गुना बड़ा होता है, इनका न्युिक्लय उत्केन् (Eccentric), गोल
या अंडाकार, सतह िचकनी, क्रोमेिटन गुच्छेद (Clumped) और चारों तरफ हल्के रंग का घेर (Perinuclear
Halo) होता है। इसका साइटोप्लाज्म नील(Basophilic) होता है।
कई माइलोमा सेल्स के साइटोप्लाज्म में इम्युनोग्लोब्युिलन से बने िविश� (Cytoplasmic Inclusions)
िदखाई देते हैं। ये कई �प जैसे मोट से, �जल बॉडीज, ग्रेप सेल्स और मोयुर्ला सेल्स में हो सकत
हड्डी क� बायोप्सी के नमूनों में प्लाज्मोल(औसत जीवन काल 39.7 महीने), िमिश्र(औसत जीवन काल
16.1 महीने) और प्लाज्मोब्लािस्टक स(औसत जीवन काल 9.8 महीने) गितिविध िदखाई पड़ सकती है।
साइटोजेनेिटक जांच
इससे मल्टीपल माइलोमा के फलानुमान के संबंध में अह
जानका�रयां िमलती हैं। सबसे महत्वपूणर् िवकृ 17p13
का लोप होना है। इस िवकृित के होने का मतलब है
बोनमेरो के अलावा अन्यत्र भी गांठे हो
(extramedullary disease), खून में कैिल्शयम बढ़न
(hypercalcemia) और जीवन काल कम होना। यह
TP53 ट्यूमर सप्रेसर जीन पर िस्थत रहती है। क्रोम
1 और c-myc िवकृितयां भी अथर्पूणर् मानी गई है
स्टेिजंग िसस्टम
इंटरनेशनल स्टेिजंग िसस्टISS
इंटरनेशनल माइलोमा विक� ग ग्रुप न2005 में इंटरनेशनल स्टेिजंग िसस्टम के तीन चरण प�रभािषत िकये ह
स्टेजI
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्यु3.5 mg/L से कम और एल्ब्युिम3.5 g/dL या अिधक
स्टेजII
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्यु3.5 mg/L से कम और एल्ब्युिम3.5 g/dL से कम या
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्यु3.5 से 5.5 mg/L के बीच भले सीरम एल्ब्युिमन कुछ भी ह
15. 11 | P a g e
स्टेज III
बीटा-2 माइक्रोग्लोब्यु5.5 mg/L या अिधक हो
ध्यान रहे िक ISS िसफ् मल्टीपल माइलोमा के उन मरीजो में ही प्रयोग करें जो मल्टीपल माइल
र
डायग्नोिस्टक क्राइटे�रया में आते MGUS और ल�णहीन माइलोमा के उन मरीजों को स्टे III में नही
रखा जा सकता िजनका बीटा-2 माइक्रोग्लोब्युिलन डायिबटीज या ब्लडप्रेशर आिद केकारण ह�ए िकडनी
क� वजह से बढ़ा ह�आ हो। यह ISS क� कमजोरी है। इसीिलए ISS के साथ ड्यूरी-सामन स्टेिजंग िसस्टम भी प्र
िकया जाता है।
ड्यूरी-सामन स्टेिजंग िसस्
यह 1975 में िवकिसत गिठत िकया गया और अभी तक प्रयोग में िलया जा रहा है। इसमें एक कमीयह है िक
अिस्थ िवकार के िवस्तार संबंधी जानकारी नहीं िमल पात
स्टेजI
हीमोग्लोिबन10g/dL से अिधक हो
कैिल्शयम सामान्य ह
अिस्थ िनरी�ण– सामान्य या िसंगल प्लाज्मासाइटोमा या ऑिस्टयोपोर
पेराप्रोटीन स्5 g/dL से कम यिद IgG, , 3 g/dL से कम यिद IgA
पेशाब में लाइट चेन्स का िवसजर4 g/24h से कम
स्टेज II जो न स्टे I क� प�रभाषा में आते हों और न स्टIII क� प�रभाषा में आते हो
स्टे III
िहमोग्लोिबन8.5 g/dL से कम हो
कैिल्शयम12 mg/dL से अिधक हो
अिस्थ िनरी�ण– तीन या अिधक लीिटक लीजन हो
पेराप्रोटीन स्7 g/dL से ज्यादा यि IgG, , 5 g/dL से ज्यादा यिदIgA
पेशाब में लाइट चेन्स का िवत्सज12 g/24h से ज्याद
ड्यूरी-सामन स्टेिजंग िसस्टम के स्ट I, स्टेज II और स्टेज III को िक्रयेिटनीन के स्तर के अनुसा A या B में
भी वग�कृत िकया जाता है।
A – िक्रयेिटनी2 mg/DL से कम हो (< 177 μmol/L)
B – िक्रयेिटनी2 mg/dLसे अिधक हो (> 177 μmol/L)
16. 12 | P a g e
उपचार
मल्टीपल माइलोमा के िनदान और चरण िनधार्रण करने के बाद उपचार क� �परेखातैयार क� जातीहै।वैस
माइलोमा क्योर करना संभव नहींहै लेिकन यह बह�त कािबले इलाज बीमारीहै। क्योंिक िप15 वष� में इस रोग
के िनदान और उपचार में बह�त शोध और प्रगित ह�ई है। आज हमारे िपटारे में बह�त अच्छी और नई दवाइय, जो
ज्यादा बेहतर तरीके से काम करती है। हड ्िडयों क� गलन औ
फ्रेक्चसर् के िलए नये उपचार हैं। इसक� पेचीदिगयों के इ ल
िलए नये संसाधन हैं। जहां पहले यह रोग आदमी को अपािहज व
लाचार बना देता था, उसका हंसता खेलता जीवन व्हील चेयर मे
िसमट कर रह जाता था और वह मुिश्कल से2-3 साल जी पाता
था। वहीं आज मल्टीपल माइलोमा का मरीज इलाज लेतेह�10
साल या उससे भी ज्यादा जी रहा है और सुकून से जी रहा है।
मरीज क� जीवनशैली खुशहाल और उन्दा होती जारह है। मरीजो
को इलाज संबंधी िनणर ्य बड़े इित्मनान से सोच समझ कर लेन
चािहये। वे िकसी दूसरे िवशेष� क� राय भी ले सकते हैं। आजकम
माइलोमा के िलए िनम्न उपचार िदये जाते हैं
क�मोथेरेपी व अन्य दवाइया
िबसफोस्फोनेट्
स्टेम सेल ट्रांसप्ल
रेिडयेशन
शल्
बायोलोिजकल थेरेपी
प्लाज्माफरीि
मैं क़तरा होकर भी ूफां से जंग लेती ह �, मेरा बचना समंदर क� िजम्मेदारी ,ह
त
ह
दुआ करो िक सलामत रहे मेरी िहम्म, यह एक िचराग कई आंिधयों पर भारी ै
�लजा रे
प्रारंिभक उपचा
मल्टीपल माइलोमा का शु�आती इलाज मरीज क� उम्र व मजर् क� गंभीरता और पेचीदिगयों पर िनभर्र करत65
वषर ् से कम उम्र के मरीजों में आजकल हाई डोज क�मोथेरेपी और ऑटोलोगस स्टेमसेल ट्रांसप्
िचिकत्सकों का पसंदीदा उपचारहै। स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के पहले इंडक्शन क�मो दीजाती है। इसके िलए
�रजीम्स में थेिलडोमा-डेक्सािमथेजो, बोट�जुमेब या लेनोिलनेमाइड - डेक्सािमथेजोन प्रयोग क� जाती ह
ऑटोलोगस स्टेमसेल ट्रांसप्लांट (ASCT) में क�मोथेरेपी देने के बाद मरीज के पहले िनकाले ह�ए स्टेमसेल
खून में छोड़ कर िदये जाते हैं। आजकल यह बह�त प्रभावशाली और प्रिचत उपचार माना जाता है। लेिकन
17. 13 | P a g e
खतरे भी हैं और5-10 % मरीज उपचार के दौरान ही मर जाते हैं। इस उपचार में मरीजों को फायदा होता, वह
शत प्रितशत रेिमश (complete remission) में आ सकता है और उनका जीवन काल बढ़ता है। इस अविध मे
बीमारी िनयंत्रण में रहती, बढ़ती नहीं है और कुछ समय तक वह लगभग सुकून से जी लेता है।
65 साल से बड़े या िजन्हें कई जिटलताएं हो चुक� हैं अमूमन स्टेमसेल ट्रांसप्लांटेशन सहन नहीं कर पाते
मरीजों को साधारण उपचार और क�मो(मेलफेलान और प्रेडिनसोल) दी जाती है। नई दवाओं जैसे बोिटर ्जोिमब
के अच्छे प�रणाम िमल रहे हैं। बोिटर्जो, मेलफेलान और प्रेडिनसोलोन या लेनोिलनोमाइड और डेक्सािमथेज
या मेलफेलान, प्रेडिनसोलोन और लेनोिलनोमाइड अच्छे प�रणाम दे रहे ह
मेंटेनेंस थेरेपी और �रले
कई बार शु�आती इलाज के बाद थेिलडोमाइड, लेनािलनोमाइड या बोट�जोिमब मेंटेनेंस थेरेपी के �प में दी जा
है। कैंसर ऐसा रोग है जो थोड़े समय बाद लौट कर आता है। ऐसी िस्थित में दोबारा से वही उपचार िदया जाता है
मेलफेलान, साइक्लोफोस्फेमा, थेिलडोमाइड िदया जाता है। डेक्सािमथेजोन को अकेले या संयु� �प में िदय
जाता है। दूसरे स्टेमसेल ट्रांसप्लांट का िवकल्प भी खुला रखा जाता
क�मोथेरपी
े
इसमें क ैंसर कोिशकाओं को मारने क� दवाइयां दी जाती हैं। लेिकन ये हमारी स्वस्थ कोिशकाओं को भी
नुकसान पह�ँचाती हैं और इनके कुप्रभाव भी तकलीफदेह होते हैं। प्रायः ये दवाइयां संयु� �प में दी जाती
तब ये ज्यादा असर करती हैं। इन्हें अक्सर िस्टरॉयड्स या इम्युनोमोड्यूलेट्री दवाओं के साथ िदया ज
पारंप�रक क�मो
मल्टीपल माइलोमा में आजकल िनम्न दवाइयां प्रयोग क� जा रही
मेलफेलान
िवनिक्रस् (Oncovin)
साइक्लोफोस्फेमाइ(Cytoxan)
इटोपोसाइड (VP-16)
डोक्सो�िबिसन(Adriamycin)
लाइपोजोमल डोक्सो�िबिस(Doxil)
बेंडामस्टी (Treanda)
क�मो के साइड इफे क्
ज्यादातर साइड इफेक्ट कुछ िदनों तक रहते हैं और दवाइयां बंद होने पर चले जाते हैं। लेिकन आपका ड
साइड इफे क्ट्स पर पूरी िनगाह रखता है और इनको रोकने के िलए यथासंभव दवा या अन्य उपाय भी बताताहै
कुछ दवाइयां शरीर के अहम अंगों जैसे �दय या गुद� को स्थाई नुकसान पह�ँचा सकती हैं। ऐसी िस्थित में दवा त
बंद कर दी जाती है और उसक� जगह दूसरी दवा दी जाती है।
18. 14 | P a g e
बाल उड़ना
मुँह में छाल
भूख न लगना
िमतली और उबकाई
र�ाणुओ क� कमी
ं
कमजोर र�ातंत्र और संक्र(�ेत र�ाणुओं क� कमी)
र��ाव (िबंबाणुओं क� कमी)
कमजोरी और थकान (लाल र�ाणु क� कमी)
कोिटर्कोस्टीरॉयड्
Chemotherapy of Multiple Myeloma
Primary therapy (transplant candidates)
Bortezomib (Velcade)/Cyclophosphamide/Dexamethasone VCD
Bortezomib/Dexamethasone
Doxorubicin/Bortezomib/Dexamethasone DVD
Bortezomib/Lenalidomide(Revlimid))/Dexamethasone
Bortezomib/Thalidomide/Dexamethasone
Lenalidomide/dexamethasone
Primary treatment (non-transplant candidates)
Bortezomib/ Melphalan/Prednisone (VMP)
Melphalan/ Prednisone/Thalidomide (MPT)
Lenalidomide/Dexamethasone
Bortezomib/Dexamethasone
Melphalan/ prednisone (MP)
Lenalidomide/ Melphalan and Dexamethasone
Treatment recommendations for maintenance therapy
Lenalidomide
Thalidomide
Treatment recommendations for salvage therapy
Lenalidomide/Dexamethasone RD
Pomalidomide
Lenalidomide or Thalidomide
माइलोमा में स्टीरॉयड्स बह�त महत्वपूणर् हैं। इन्हे अकेले या अन्य दवाओं के साथ िदयाजाता है। ये दूसरी दव
कारण होने वाली मतली और उबकाई में भी फायदा करते हैं। ब्लड शुगर बढ़ ज, भूख लगना और अिनद्रा इसक
साइड इफे क्ट है। लंबे समय तक देने पर ये र�ातंत्र को भी कमजोर बनाते हैं िजससे गंभीर संक्रमण हो सकत
अिधकांश साइड इफे क्ट समय के साथ कम होने लगते हैं। डेक्सामीथेजोन और प्रेडिनसोलोन प्रचिलत स्ट
हैं।
19. 15 | P a g e
इम्युनोमोड्यूलेट्री ड
हम अभी पूरी तरह स्प� नहीं हैं िक ये िकस तरह र�ातंत्र पर असर करते हैं। आजकल इस श्रेणी में त
काम में ली जा रही हैं
थेिलडोमाइड (Thalomid)
थेिलडोमाइड कुछ दशकों पहले गभर्वती ि�यों को उबकाई रोकने के िलए दी जाती थी। लेिकन इससे उन
िशशुओ ं में बथर् िडफेक्ट होने लगे तो इसे बाजार से उठा िलया गया। लेिकन बाद में इसे मल्टीपल माइलोमा के
प्रयोग िकया जाने लगा। सुस, थकावट, कब्, और नाड़ी शूल (neuropathy) इसके साइड इफे क्ट हैं। न्युरोपे
गंभीर िवकार है और कई बार दवा बंद करने पर भी ददर् नहीं जाताहै। कई बार टांग में थ्रोम्बोिसस हो स, जो
फे फड़े में जाकर पल्मोनरी एम्बोिलज्म का कारण बन सकता
लेनािलनोमाइड (Revlimid)
लेनािलनोमाइड थेिलडोमाइड क� तरह ही है,
लेिकन माइलोमा में बह�त बेहतरीन सािबत हो रही
है। इसका मुख्य साइड इफेक्ट प्लेटलेट्स और �
र�ाणुओ ं का कम हो जाना है। इससे न्युरोपेथी हो
सकती है। इसमें थ्रोम्बोिसस का खतरा तो रहत,
परंतु थेिलडोमाइड िजतना गंभीर नहीं।
पोमेिलनोमाइड (Pomalyst)
पोमेिलनोमाइड भी अन्य इम्युनोमोड्यूलेट्री ड्रग्स क� तरह ही है। इसके प्रमुख साइड इफेक्ट्स लाल
िबंबाणुओ का कम हो जाता है। इसमें न्युरोपेथी क� तकलीफ मामूली होतीहै और थ्रोम्बोिसस का खतरा भी
ं
ही है।
प्रोटीएजोम इिन्हबीट
ये प्रोटीएजोम नामक एंजाइम कॉम्पेक्स को िनिष्क्रय करते हैं। यह एंजाइम कॉम्पेक्स कोिशका िवभाजन क
रखने वाले प्रोटीन्स को तोड़ देता है। इनके भी
साइड इफे क्ट होते हैं
बोट�जुमब (Velcade) इस श्रेणी क� पहली दव
े
है, जो माइलोमा के िलए अनमोिदत क� गई। यह
ु
माइलोमा के कारण ह�ए िकडनी िवकार के मरीजों के
उपचार में खासतौर पर फायदेमंद है। इसे नस में य
त्वचा के नीचे इंजेक्शन द्वारा स�ाह में एक या दो
िदया जाता है।
20. 16 | P a g e
इसके प्रमुख साइड इफेक्ट िम, उबकाई, थकान, दस्त लगन, कब्, बुखार, भूख नहीं
लगना और र�ाणुओ ं (�ेत र�ाणु और िबंबाणु) का कम होना है। इससे संक्रमण औ
र��ाव का खतरा रहता है। बोट�जुमेब से दूरस्थ नाड़ी शूल(हाथ पैरं क� अगुिलयों में ददर्
ं
िसरहन होना और सन्न हो जान) भी हो सकता है। बोट�जुमेब से कुछ मरीजों को हरपीज
ु
जोस्टर हो जाती है। इससे बचने के िलए साथ में ऐसाइक्लोिवर दी जाती ह
कािफर्लजुिम
(Kyprolis) इस श्रेणी क� नई दवाहै। इसे उन मरीजों के ि
अनमोिदत िकया गया है जो पहले बोट�जुिमब और इम्युनोमोड ्यूलेट्री ड्रग्स ले चुके हैं
ु
इंजेक्शन प्रा4 हफ्ते क� साइकल में िदये जाते हैं। ऐलिजर्क �रयेक्शन से बचने के
पहली साइिकल में इसके हर इन्फ्युजन से पहले डेक्सािमथेजोन का इंजेक्शन िदया जाता है। , उबकाई,
दस्त लगन, �ासक�, बुखार और र�ाणुओ ं में कमी इसके साइड इफेक्ट हैं। इससे िनमोि, िदल, िजगर या गुद�
में खराबी जैसे गंभीर साइड इफेक्ट भी हो सकते ह
िबसफोस्फोनेट्स
माइलोमा में हड ्िडयां गलने लगती ह, कमजोर हो
जाती है और टूट भी जाती हैं। िबसफोस्फोनेट्स इ
प्रिक्रया को रोकते हैं और हड्िडयों को मजबूत
रखते हैं। पेिमड्रोन (Aredia) और जोलीड्रोिन
एिसड (Zometa) इस श्रेणी क� ्रमुख दवाइयां
प
इनके इंजेक्शन हर महीने नस में िदये जाते है
आजकल इन्हें दो वषर् तक िदया जाता है। िपछले व
में ह�ई शोध में देखा गयाहै िक ये उन रोिगयों में
बह�त फायदा करते हैं िजन्हें हड्िडयों क�
तकलीफ नहीं होती है। इनका एक गंभीर साइड
इफे क्ट ऑिस्टयो नेक्रोिसस ऑफ (ONJ) है। लेिकन यह तकलीफ िबसफोस्फोनेट्स लेने वाले3 % मरीजों मे
ही होती है। इसमें जबड़े का कुछ िहस्सा िनज�व हो जाताहै और द, संक्रमण व फोड़ा हो जाताहै जो जल्दी ठ
भी नहीं होता। जबड़े क� हड ्डी में भी संक्रमण हो सकता है। कोई दांत भी खराब हो सकता है। यह तकलीफ ह
पर दवा बंद कर दी जाती है।
जिटलताओं के उपचार
ऐनीिमया
ऐनीिमया के िलए �रकोिम्बनेंट इरेथ्रोप्(40 ,000 यूिनट्स sc प्रित स�) िदया जाता है। गंभीर प�रिस्थित मे
पेक सेल ट्रांसफ्यूजन िदया जाता है। यिद लोहे क� कमी है तो आयरन के इंजेक्शन िदये जाते हैं। समय सम
मरीज का आयरन, ट्रांसफे�रिटन और फे�रिटन चेक िकया जाना चािहये
21. 17 | P a g e
हाइपरकै ल्सीिमया
के िलए डाययुरेिटक्, पयार ्� पान, के िल्सटोिनन या प्रेड्िनसोलोन के साथ िबसफोस्फोन्ट्स िदये जाते
हाइपरयू�रसीिमया – यू�रक एिसड बह�त ज्यादा हो तो एलोप्यू�रनोल िदया जा
सकताहै
िकडनी फे ल्यर
िकडनी फे ल्यर में पानी और तरल पयार्� लेना चािहये। शरीर में जल क� मात्र ा पयार्� बनी रहे। यिद पेशाब क
2 लीटर तक बनी रहे तो बेन्स जोन्स प्रोटीन्यू (≥ 10 to 30 g/day) के बावजूद भी गुदार् अपने अिस्तत्व
बचा लेता है। हमें पूरी कौिशश करना चािहये िक गुद� को खराब होने से बचाया जा सके। कुछ मरीजों में प्ला
एक्सचेंज प्रभावशाली प�रणाम देता है। क्रोिनक िकडनी फेल्यर होने पर डायलीिसस करनापड़ता
संक्रम
इन्फेक्शन कई बार कुछ दवाओंजैसे बोट्रेजोमेब क� वजह से न्युटेरोपीिनया और हरपीज जोस्टर इन्फे
जाता है। इन मरीजों को ऐसाइक्लोि, वल्गानसाइक्लोिवर या फेमसाइक्लोिवर दी जाती है
ली के साथ कैंसर के उपचार का तरीका िवकिसत िकय, जो बुडिवग प्रोटोकोल के नाम से िवख्यात ह
फलानुमान
मल्टीपल माइलोमा के रोगी1 से 10 या अिधक वषर ् तक जी पाते हैं। त जीवनकाल 3 वषर ् है इस रोग के
फलानमान ट्यूमर का दबाव और कैंसर कोिशकाओं के िवभाजन क� दर के आधार पर िकया जाता है। स.आर.पी.
ु
और बीटा-2 प्रोटीन के स्तर के आधार पर फलानुमान इस प्रकार
यिद दोनों प्रोटीन क� मात6 mg/L से कम हो तो औसत जीवन काल 54 माह होता है।
यिद दोनों में से एक प्रोटीन क� मा6 mg/L से कम हो तो औसत जीवन काल 27 माह होता है।
यिद दोनों प्रोटीन क� मात6 mg/L से अिधक हो तो औसत जीवन काल 6 माह होता है।
खराब फलानमान के िनम्न कारण िचिन्हत िकये गये है
ु
ट्यूमर मास
खून में कैिल्शयम का स्तर बढ़ा ह�आ
पेशाब में बेन्स जोन्स प्रोटीन क� उप
िकडनी में खराबी(स्टेज बी रोग– िनदान के समय िक्रयेिटनी>2 mg/dL से अिधक हो)
उपचार के आधार पर फलानमान इस प्रकारहै
ु
पारंप�रक उपचार (Conventional therapy) लेने पर औसत जीवनकाल तो 3 वषर ् ह, लेिकन िबना
िकसी तकलीफ के जीवनकाल 2 वषर ् ही है।
हाई डोज क�मोथेरेपी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट लेने लेने व50% से ज्यादा रोगी5 साल जी लेते हैं। ।
22. 18 | P a g e
कै ंसर का वैकिल्पक उपचा
डॉ बडिवग का कै ंसर उपचार
ु
जमर ्नी क� डॉ जॉहाना बुडिवग(30 िसतम्ब , 1908 - 19 मई 2003) िव� िवख्यात जीव रसायन िवशेष� और
िचिकत्सक थी। उन्होंने भौ , जीवरसायन तथा भेषज िव�ान में मास्टसर् क� िडग्री हािसल क� थी
प्राकृि-िचिकत्सा िव�ान में .एच.डी. भी क�। तत्�ात वे जमर ्न सरकार के खाद्य और भेषज िवभाग में सव
पद पर कायर ्रत रही। वे जमर्नी व यूरोप क� िवख्यात वसा और तेल िवशेष� मानी जाती थी
1923 में ड. ओटो वारबगर ् ने क ैंसर के मुख्य कारण क� खोज , िजसके िलये उन्हे1931 में नोबल ुरस्का
प
िदया गया। उन्होंने पता लगाया था िक कैंसर का मुख्य कारण कोिशकाओं ऑक्सीजन क� कमी हो जाना है।
सामान्य कोिशकाएं ऑक्सीजन क� उपिस्थित में ग्लूकोज के दहन द्वारा ऊजार् पैदाकरती है। जबि
कोिशकाएं ग्लूकोज को फम�ट करके ऊजार् प्रा� करत , िजससे लेिक्टक एिसड बनता है और शरीर में अम्ल
बढ़ती है। वारबगर ् ने संभावना जताई थी िक सेल्स म ऑक्सीजन को आकिषर्त करने के िलए सल्फरयु� प्र
और एक अ�ात फैट ज�री होता है। उन्होंने कैंसर कोिशका ऑक्सीजन क� आपूितर् बढ़ाने के िलए कई परी�
िकये परन्तु वे असफल रहे
1949 में बुडिवग ने पहली बार फैट क पहचानने क� पेपर क्रोमेटोग्राफ� तकनीक िवकिसत क�। इस तकनीक द
यह स्प� हो गया था िक वह अ�ात फैट इलेक्ट्रोन यु� अत्यंत असंतृ� िलनोिलक ओर अल्फा िलनोलेिनक
(िजनका भरपूर �ोत अलसी का तेल है) है। इस खोज से कैंसर उपचार को नई िदशा िमल चुक� थी। ड. जॉहाना
िसद्ध कर चुक� थी िक इलेक्ट्रो , अत्यन्त असंतृ� िलनोलेिनक और िलनोिलक एिसड कोिशकाओं में
ऊजार ् भरतेहै, और कोिशकाओं मेंऑक्सीजन को आकिषर्त करते है
इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और सीधे बीमार लोगों के र� के नमूने िलये और उनको अलसी
तेल तथा पनीर िमली खुराक देना शु� कर िदया। तीन महीने बाद िफर से उनके र� के नमूनो क� जांच क�। नतीजे
सचमुच चैंका देने वाले थे। बुडिवग द्वारा एक महान खोज हो चुक� थी। कैंसर के इलाज में सफलता क�
पताका लहराई जा चुक� थी।
लोगों के र� में फोस्फेटाइड और लाइपोप्रोटीन क� मात्रा काफ� बढ़ गई थी और अस्वस्थ हरे पीले
जगह लाल हीमोग्लोिबन ने ले ली थी। कैंसर के रोगी ऊजार्वान और स्वस्थ िदख र , उनक� गांठे छोटी हो
गई थी, वे कै ंसर को परास्त कर रहे थे। उन्होंने अलसी के तेल और पनीर के जादुई और आ�यर्जनक
दुिनया के सामने िसद्ध कर िदये थे। इस तर1952 में ड. जॉहाना ने ठंडी िविध से िनकले अलसी के तेल व
पनीर के िमश् , अपक्व जैिवक आहार और अच्छी जी शैधी� भाई ने माइलोमा पर िवजय प्रा
क�
कांदीवली, मम्बई के िनवासी श्री धी� भाई बोहरा 89 वषर ् को7 साल पहले हिनर ्या के आपरेशन के िलए ह�ई
ु
जांच से पता चला िक उनके पेट में प्लाजा िसस्टोमा नामक खतरनाक कैंसर क� गांठ है। हिनर्या के आपरेश
साथ उनके पेट क� गांठ भी िनकाली गई। रेिडयोथेरेपी भी दी गई लेिकन दो महीने बाद उनके कं धे में एक गांठ िफर
23. 19 | P a g e
हो गई। डाक्टरों ने उन्हें बताया िक उन्हें जो प्लाज्मा िसस्टोमा नामक कैंसर था वह मल्टीपल मा
कैंसर में प�रवितर्त हो गया है और उन्हें क�मोथेरेपी भी दी गई। परंतु क�मोथेरेपी से उनके िदल में खराबी
िजस कारण क�मोथेरेपी बंद करनी पड़ी। िफर उनके एक डॉ. िमत्र नजॉहाना के उपचार लेने क� सलाह दी। जॉहाना
के उपचार से उनक� बीमारी ठीक होती चली गयी। वे आज पूणर् स्वस्थ है व फैक्टरी जाते कुछ अरसे पहले मेरी
उनसे बात ह�ई तब वे अपनी फैक्टरी में ही काम देख रहे थ