2. जीवन में जब सब कछ ु
एक साथ और जल्दी
जल्दी करने की इच्छा
होती है , सब कछ तेजी से
ु
ऩा ऱेने की इच्छा होती है ,
और हमें ऱगने ऱगता है
कक ददन क चौबीस घॊटे
े
भी कम ऩड़ते हैं !
उस समय ये बोध कथा,
"काॉच की बरनी और दो
कऩ चाय" हमें याद आती
है !
3. दर्शनर्ास्त्त्र क एक प्रोफसर कऺा में
े े
आये और उन्होंने छात्रों से कहा कक वे
आज जीवन का एक महत्वऩणश ऩाठ ू
ऩढाने वाऱे हैं ! उन्होंने अऩने साथ
ऱाई एक काॉच की बडी बरनी (जार)
टे बऱ ऩर रखा और उसमें टे बऱ टे ननस
की गें दे डाऱने ऱगे और तब तक
डाऱते रहे जब तक कक उसमें एक भी
गें द समाने की जगह नहीॊ बची.
उन्होंने छात्रों से ऩछा - क्या बरनी ऩरी भर गई?
ू ू
आवाज आई... हाॉ जी...!
4. कफर प्रोफसर साहब ने छोटे -
े
छोटे ककर उसमें भरने र्ुरु
ॊ
ककये, धीरे -धीरे बरनी को
दहऱाया तो काफी सारे ककर
ॊ
उसमें जहाॉ जगह खाऱी थी,
समा गये.
कफर से प्रोफसर साहब ने ऩूछा, क्या अब
े
बरनी भर गई है ,
छात्रों ने एक बार कफर हाॉ जी.. कहा !
5. अब प्रोफसर साहब ने रे त की
े
थैऱी से हौऱे-हौऱे उस बरनी में
रे त डाऱना र्रु ककया, वह रे त
ु
भी उस जार में जहाॉ सॊभव था
बैठ गई, अब छात्र अऩनी नादानी
ऩर हॉसे...!
कफर प्रोफसर साहब ने ऩछा, क्यों अब तो यह
े ू
बरनी ऩूरी भर गई ना ?
हाॉ जी.. अब तो ऩरी भर गई है ..सभी ने एक स्त्वर
ू
में कहा..
6. अब सर ने टे बऱ क े
नीचे से चाय क दो कऩे
ननकाऱकर उसमें की
चाय जार में डाऱी,
चाय भी रे त क बीच में
े
स्स्त्थत थोडी ी़ सी जगह
में सोख ऱी गई...!
7. प्रोफसर साहब ने गॊभीर आवाज में समझाना
े
र्रु ककया - इस काॉच की बरनी को तुम
ु
ऱोग अऩना जीवन समझो... टे बऱ टे ननस की
गें दे सबसे महत्वऩूणश भाग अथाशत भगवान,
ऩररवार, बच्चे, ममत्र, स्त्वास्त््य और र्ौक हैं,
छोटे ककर मतऱब तुम्हारी नौकरी, कार,
ॊ
बडा ी़ मकान आदद हैं, और रे त का मतऱब
और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें ,
मनमुटाव, झगडे है …!
8. अब यदद तुमने काॉच की बरनी में सबसे ऩहऱे रे त
भरी होती तो टे बऱ टे ननस की गें दों और ककरों क
ॊ े
मऱये जगह ही नहीॊ बचती, या ककर भर ददये
ॊ
होते तो गें दे नहीॊ भर ऩाते, रे त जरूर आ सकती
थी...!
ठीक यही बात जीवन ऩर ऱागू होती है ... यदद
तुम छोटी-छोटी बातों क ऩीछे ऩडे रहोगे और
े
अऩनी ऊजाश उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे ऩास
मख्य बातों क मऱये अधधक समय नहीॊ
ु े
रहे गा...मन क सख क मऱये क्या जरूरी है ये
े ु े
तुम्हें तय करना है ।
9. अपने बच्चों क स थ खेऱो, बगीचे में प नी
े
ड ऱो, सबह पत्नी क स थ घमने ननकऱ
ु े ू
ज ओ, घर क बेक र स म न को ब हर
े
ननक ऱ फको, मेडडकऱ चेक-अप
ें
करव ओ..टे बऱ टे ननस गें दों की फफक्र पहऱे
करो, वही महत्वपर्ण है ... पहऱे तय करो फक
ू
क्य जरूरी है ... ब की सब तो रे त है …
छ त्र बडे ध्य न से सुन रहे थे…!
10. अचानक एक ने ऩूछा, सर ऱेककन आऩने यह नहीॊ
बताया कक "चाय क दो कऩ" क्या हैं ?
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प्रोफसर मुस्त्कराये, बोऱे.. मैं सोच ही रहा था कक अभी
े ु
तक ये सवाऱ ककसी ने क्यों नहीॊ ककया ... इसका उत्तर
यह है कक, जीवन हमें ककतना ही ऩररऩणश और सॊतष्ट
ू ु
ऱगे, ऱेककन अऩने खास ममत्र क साथ दो कऩ चाय ऩीने
े
की जगह हमेर्ा होनी चादहये ।
11. Sincere Thanks to all
Authors, Writers,
Teachers and Friends
who inspired me in
compiling this
presentation.
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