6. वृषण या टेस्टीज (Testes) शिश्न की मूल के नीचे लटकने
वाली त्वचा की थैली कोवृषण या अण्डकोष कहते हैं जजसकी
त्वचा गहनवणणकता वाली होती है। यह पुरुष की प्रजनन
ग्रंथथयााँ (Gonads) हैं जो िुक्राणुओं का उत्पादन करती हैं।
इसमें इपपडीडडशमस सहहत िुक्रग्रंथथयााँ (Testis) होती हैं।
बाहरसे अण्डकोष (Scrotum) बीच में जस्थत एक कटक
यासीवनी द्वारा दायें एवं बायें दो भागों में पवभाजजत रहता है
7.
8. जो आगे चलकर शिश्न (Penis) के नीचे जस्थत मध्य
रेखातथा पीछे मूलाधार (Perineum) से गुदा तक
जस्थत मध्यरेखा में पवलीन हो जाती है। अण्डकोष का
बायााँ भाग दायेंभाग की अपेक्षा नीचे को अथधक लटका
हुआ होता कु छ है। प्रत्येक भाग में एक िुक्रग्रंथथ
(Testis), एकइपपडीडडशमस (Epididymis) तथा एक
वृषण २०्३(Spermatic cord) का िुक्रग्रंथथ के पास
जस्थत होता है।
9. वृषण या अण्कोष जघन संधानक के नीचे, जंघाओं के
ऊपरी भागों के सामने तथा शिश्न के नीचे जस्थत होता
है। वयस्कों में प्रत्येक वृषण (Testis) अण्डाकार आकृ तत
का होता तथा लगभग 4.5 सेमी. एवं 2.5 सेमी. चौडा
होता है। ये वृषणकोष दोनों ओर वृषण रज्जुओं द्वारा
लटके रहते हैं। वृषण (Testis) के ऊपर इपपडीडडशमस
होती है। ये ऊतक की तनम्न परतों से तघरी होती हैं|
10. यह अण्डकोषों का बाहरी आवरण बनाने वाली दोहरी
सीरमी झिल्ली (Serous membrane) होती है। जब
चोट में लग जाने या अन्य कारण से इन परतों से बनी
गुहातरल संथचत हो जाता है, तो इस दिा को जलवृषण
याहाइड्रोसील (Hydrocele) कहा जाता है।
11.
12. ट्यूतनका वैजाइनाशलस के नीचे जस्थत सफे द तंतुमय
आवरणहोता है। इससे िुक्रग्रंथथयों में भीतर की ओर को
कई पटया सैप्टम (Septum) तनकल कर उन्हें कई
खण्डकों (Lobules) में पवभाजजत कर देते हैं।
13.
14. ट्यूतनका वैस्कु लोसा (Tunica vasculosa ) :-
यह वाहहकामय (Vascular ) परत होती है, जजसमें
कोशिकाओंका जाल पवद्यमान होता है जजसे संयोजी
ऊतक (Connective tissue) सहारा देते हैं।
15. प्रत्येक िुक्रग्रंथथ में 200 से 300 खण्डक (Lobules) होते
हैं ,प्रत्येक खण्डक में एक से तीन कस कर कु ण्डलीकार
शलपटी हुई नशलकाएाँ होती हैं जजन्हें िुक्रजनक
नशलकाएाँ(Semiferous tubules) कहते हैं, जो एक स्वस्थ
व्यजतत में प्रत्येक सेकण्ड में हजारों िुक्राणु उत्पन्न करती
है। िुक्राणु सूक्ष्मदिी द्वारा हदखाई देने वाला पुरुष जनन-
कोशिका होता है। िुक्राणु सूक्ष्म नशलकाओं द्वारा
िुक्रग्रंथथयों सेतनकलकर िुक्रवाहहतनयों (Vas deferenses)
में पहुाँचते हैं। इससे पूवण वे इपपडीडडशमस में इकट्ठा होते हैं
और वहााँ पर एक तरल में शमल जाते हैं।
17. िुक्राणु तथा तरल शमलकर िुक्र-रस कहलाते हैं। यह िुक्र-रस
िुक्रवाहहनी में पहुाँचता है जहााँ से मूत्र- मागण में पहुाँच कर
वीयण के रूप में बाहर तनकल जाता है। िुक्रजनक नशलकाओं
के बीच-बीच में अन्तःस्रावी कोशिकाओं (Endocrine
glands) के गुच्छे होते हैं, जजन्हें लीडडग की अन्तरालीय
कोशिकाएाँ (Interstitial cells of Leydig) कहा जाता है। ये
कोशिकाएाँ पुरुष सेतस हॉमोन्स जजन्हें एण्डोजन्स
(Androgens) कहा जाता है, स्रापवत करती है। 12 से 16
वषण की आयु में इन कोशिकाओं से पुरुष हामोन टैस्टोस्टेरोन
(Testosterone) बनना िुरू हो जाता है।
18. यह पतली, तंग रूप से मुडी हुई कु ण्डशलत नली होती है
जो लम्बी साँकरी रचना के रूप में बंद रहती है और यह
वृषण के पपछले भाग से जुडी रहती है। टेजस्टज की
िुक्रजनक नशलकाएाँ (Semiferous tubules) इसमें खुलती
है। इपीडीडडशमस की लम्बाई लगभग 6 सेमी. और व्यास 1
शममी. होता है। इसमें से होकर िुक्राणु गुजरते हैं। प्रत्येक
इपपडीडडशमस में शसर (Head), काय (Body), एवपुच्छ
(Tail) होती है। शसर, वृषण के िीषण भाग के ऊपरफफट
रहता है, जो सवणशलत अपवाही वाहहकाओं (Convoluted
efferent duct) का बना होता है। काय, वृषणपपछले
पाश्श्वीय फकनारे पर नीचे की ओर को फै ला होता है।
19. पुच्छ, वृषण के तल तक फै ला होता है, जहााँ इसके
संवलन कम हो जाते हैं और अंत में यह पवस्फाररत
(Dilate) हो जाती है तथा ऊपर की ओर मुडकर
िुक्रवाहहका (Vas deferens) में पवलीन हो जाती है।
20.
21. िुक्राणु, िुक्रग्रंथथयों की िुक्रजनक नशलकाओं
(Seminiferous tubules) से उत्पन्न होने वाली पुरुष
जनन कोशिकाएाँ (Germ cells) होते हैं। पररपतव
िुक्राणु (Mature sperm) सूक्ष्म लम्बाकार होता है।
िुक्राणु लगभग 51 माइक्रोन (1 माइक्रोन = 1 मीटर
का दस लाखवााँ भाग = 1 शममी. का 1000 वााँ भाग)
होता है। िुक्राणु के तनम्न तीन भाग होते हैं:
1. शसर (Head)
2. ग्रीवा (Neck)
3. पुच्छ या दुम (Tail)
22.
23. िुक्राणु में सबसे आगे शसर होता है जो अण्डाकार होता
है तथा इसके अगले नुकीले भाग पर एन्जाइम्स वाली
टोपीवाली मेम्रेन रहती है, जजसके द्वारा िुक्राणु स्त्री के
डडब (Ovum ) या अण्ड कोशिका (Egg cell) को वेध कर
उसमें प्रवेि कर जाता है और उस के साथ संयोजजत
होकर गभाणधान की फक्रया को पूरा करता है। शसर के
मध्य भाग में कें द्रक होता है जजसमें गुणसूत्र
(Chromosomes) रहते हैं। गुणसूत्र या क्रोमोसोम
कोशिका के कें द्रक में जस्थत थागे के समान एक रचना
होती है जो आनुवंशिक पवशिष्टताओं को संतान में
संचाररत करती है।
24. ग्रीवा या मध्य भाग शसर के पीछे पतली रचना होती
है, जजसमें कु ण्डशलत सूत्रकझणकाएाँ (Mitochondria)
रहती है, जो इसकी गततिीलता के शलए ऊजाण उपलब्ध
करती है।
3. िुच्छ या दुि (Tail):
ग्रीवा के पीछे बहुत पतली और लम्बी दुम होती है।
जजसकी सहायता सेिुक्राणु िुक्र-रस में इधर-उधर तैरता
हुआ आगेबढ़ता है।
25. िक्राणु अंसख्य होते हैं और यह अनुमान लगाया गया है फक
योतन मागण में एक समय में औसत 300 000,000 िुक्राणु
जमा होते हैं, हालााँफक डडंब को तनषेथचत करने के शलए मात्र
एक आवश्यक होता है। प्रत्येक िुक्राणु पूणणरू पेण पवकशसत
(पररपतव) होने में 2 माह से अथधक का समय लेता है। एक
बार के स्खलन में लगभग 4.5 शमली. वीयण तनकलता है। इस
प्रकार 1 शमली. वीयण में लगभग 10 करोड िुक्राणु होते हैं।
यहद प्रतत शमली. वीयण में 6 करोड से कम िुक्राणु पाए जाते हैं
तो इस दिा को अल्पिुक्राणुता (Oligospermia) कहा जाता
है।
26. िुक्राणुओं की पूणण अभाववाली दिा अिुक्राणुता (A
zoospermia) कहा जाताहै। अिुक्राणुता रॉजजत रोगों
(Sexually transmitted diseases) के पररणाम
स्वरूप हो सकती है, जो िुक्राणु को उत्पादन में बाधा
होने से होता है, अथवा मम्पस (Mumps) जैसे रोगों के
कारण होती है, जजसमें िुक्राणु जनक नशलकाओं की
आंतररक कला नष्ट हो जाती है। अल्पिुक्राणुता सग्रस्त
व्यजतत में सम्भोग िजतत तो होती है परंतु उस से
संतानोत्पतत नहीं होती।
27. िुक्राणुओं का उत्पादन िुक्रजनक नशलकाओं में तनरंतर
होता रहता है, परंतु इस की पररपतवता इपपडीडडशमस में
होती हैं। िुक्राणुओं को स्त्री के डडम्ब को गशभणत करने
के शलए गभाणिय ग्रीवा से चलकर डडम्बवाहहनी में पहुाँचने
के शलए गततिील होना चाहहए। वीयण में 80% िुक्राणु
सामान्य आकृ तत के होने चाहहए। 20% से अथधक
पवकृ त रूप हों तो ऐसा वीयण पवकृ त माना जाता है।
28. (Vas deferens or Ductus deferens) यह इपपडीडडशमस
की वाहहका की तनरंतरता में पवस्फाररत नली होती है। जो
संख्या में दो होती हैं। प्रत्येक वृषण की इपपडीडडशमस एवं
स्खलनीय वाहहका के बीच में जस्थत होती हैं। वृषणकोष से
तनकलने के बाद ऊपर की ओर बढ़कर िुक्र वाहहकाएाँ वंक्षणीय
नाल (Inguinal canal) के रास्ते से होकर उदरीय शभपि के
तनचले भाग में प्रवेि करती हैं, जहााँ िुक्र वाहहकाएाँ स्पमेहटक
कॉडण (Spermatic cord) से स्वतंत्र हो जाती हैं तथा मूत्रािय
के पीछे गुजरकर प्रोस्टेट ग्रंथथ के पास जस्थत िुक्रािय की
वाहहका (Seminal vesicle) की वाहहका से जुड जाती है।
29.
30. और स्खलनीय या तनक्षेपणी वाहहका (Ejaculatory
duct) कहलाती है। पररवार तनयोजन के ऑपरेिन में
दोनोंओर की िुक्रवाहहकाओं को बीच से काट कर उनके
दोनोंसे शसरों को बााँध हदया जाता है। इससे िुक्राणु,
िुक्रग्रंथथयों सेतनकल कर िुक्रािय में एकत्रत्रत नहीं हो
पाते औरमूत्र-मागण द्वारा िरीर से बाहर नहीं तनकल
पाते।
31. वृषण रज्जु, एक रज्जु जो उदरीय वक्षणीय नाल
(Lingual canal) को िुक्रग्रंथथ से जोडती है तथा िुक्र
वाहहका,रतत वाहहतनयों, लसीका वाहहतनयों, संयोजी
ऊतक एवंतंत्रत्रकाओं से शमलकर बनती है जो िुक्रग्रंथथ
एवं अथधवृषणकी पूततण करती है। अण्डकोष में दोनों ओर
एक-एकवृषण रज्जु द्वारा एक-एक िुक्रग्रंथथ लटकी
होती है। यहछोटी अाँगुली के बराबर मोटी होती है।
32.
33.
34. ये िुक्रािय की वाहहतनयों और िुक्र वाहहतनयों के
तुजम्बकाया एम्पूला (Ampulla) के शमलने से बनती हैं।
प्रत्येकस्खलनीय वाहहका लगभग 2 सेमी. (1 इंच) लम्बी
होतीहै। ये प्रोस्टेट ग्रंथथ से होकर गुजरती हैं और
उसके मूत्र-मागण (Prostatic urethra) में खुल जाती हैं
जजससेहोकर िुक्रािय-तरल एवं िुक्राणु मूत्र- मागण में पहुाँच
जातेहैं।|
शुक्राशय रस (Seminal Fluid)
यह वृषण, स्खलनीय वाहहकाओं एवं प्रोस्टेट द्वारा
स्त्रपवतपदाथों का बना होता है, इसमें िुक्राणु रहते हैं।
35.
36. पुरुष में मूत्रािय के पीछे प्रोस्टेट ग्रंथथ के पास जस्थत
दोझिल्लीनुमा थेली, जो 4 से 5 सेमी. लम्बी होती है।
इनमेंिुक्रग्रंथथयों से िुक्रवाहहतनयों द्वारा आने वाला
िुक्र-रसजमा होता है तथा इनसे भी एक तरल उत्पन्न
होता है जोथचपथचपा होता है और िुक्र-रस में पवद्यमान
िुक्राणुओं|के शलए पोषक का कायण करता है। यह द्रव
(Seminal fluid) वीयण का अथधकाि भाग बनाता है।
प्रत्येक िुक्राियअपने तनचले शसरे पर एक छोटी-सी
वाहहका मेंजो अपनी ओर की िुक्र वाहहका में खुलकर
स्खलनीयया तनक्षेपणी वाहहका (Ejaculatory duct) का
तनमाणणकरती है।
37.
38. यह श्रोझण-गुहा में मलािय के सामने तथा जघन संधानकके
पीछे मूत्रािय की ग्रीवा और मूत्र-मागण के प्रथम भागको चारों
ओर से घेरने वाली पेिीय एवं ग्रंथथल ऊतक सेबनी तीन
खण्डों वाली एक कठोर ग्रंथथ होती है, जोतंतुमय ऊतक एवं
थचकनी पेिी के पतले, मजबूत सम्पुट (Capsule) से ढाँकी
रहती है। इसका एक आधार औरशिखर होता है।
आधार ऊपर की ओर को होता है तथाशिखर नीचे की ओर
जस्थत होता है। प्रोस्टेट अंदर से तीनतरह की ग्रंथथयों से
शमलकर तनशमणत होती है, जो अपनेस्रावों को अलग-अलग
वाहहकाओं से होकर मूत्र-मागण के प्रोस्टेहटक भाग में पहुाँचाती
हैं। इसमें सबसे अंदर कीश्लेष्मल ग्रंथथयााँ (Mucosal
glands) श्लेष्मा स्रापवत करती हैं: बीच की अनश्लेजष्मक
ग्रंथथयााँ (Sub mucosal glands)
39.
40. होती है तथा बाहरी प्रोस्टेहटक ग्रंथथयााँ पत जा,
थचकना,अम्लीय द्रव स्रापवत करती है जजसमें-जल,
कॉलेस्रॉल,लवण, एशसड एवं फॉस्फोशलपपड्स पवद्यमान
रहते हैं।प्रोस्टेट ग्रंथथ का स्राव भी वीयण का एक भाग
होता है। यहवीयण को दूथधया बना देता है जजसमें िुक्राणु
तैरते रहते हैं।वीयण प्रोस्टेट की थचकनी पेशियों के
संकु थचत होने से बहुतसे सूक्षम तछद्रों से होकर मूत्र-मागण
में पहुाँचता है । वृद्धावस्थामें प्रोस्टेट ग्रंथथ अतसर बढ़
जाती है जजससे मुत्र-मागण के संकरा हो जाने के कारण
मूत्र पवसजणन में बाधा उत्पन्न होजाती है।
41.
42. काउपर ग्रंथथयााँ (Cowper's Glands) प्रोस्टेट ग्रंथथ के
नीचे तथा मूत्र-मागण के दोनों ओर एक-एकछोटी ग्रंथथ
होती है, जो पीले रंग की एवं मटर के पररमाणमें होती
है। इन ग्रंथथयों को काउपर की ग्रंथथयााँ कहते हैं।प्रत्येक
ग्रंथथ में नशलका होती है जो मागण के शिश्नीय (Penile)
भाग में खुलती है। इन ग्रंथथयों से भी एक तरलस्रपवत
होता है और यह भी वीयण के तनमाणण में भाग लेताहै।
43.
44. कामोिेजना (Sexual excitement) होने पर ये
ग्रथथयााँमूत्र-मागण में एक स्वच्छ, गंधहीन, रंगहीन, कु छ
गाढ़ा-साथचपथचपा तरल स्रापवत करती हैं जो मूत्रमागण की
अम्लीयताको उदासीन कर देता है जजससे इस मागण से
गुजरने वालेिुक्राणु नष्ट नहीं होते। मूत्र - मागण अम्लीय
होता है औरसम्भोग के समय इस अम्लीय मागण से
होकर गुजरने वालेवीयण में पवद्यमान-िुक्राणु नष्ट हो
जाते हैं। िुक्रग्रंथथयों सेतनकलने वाला िुक्र-रस जब
शिश्न में पहुाँचता है तो मागणमें िुक्राियों, प्रोस्टेट ग्रंथथ
तथा काउपर ग्रंथथयों के स्रावउसमें आकर शमल जाते हैं
जो िुक्र-रस में पवद्यमानिुक्राणुओं का पोषण करते हैं।
45. वीयण, पुरुष में स्खलन (Ejaculation) में मूत्र- मागण
सेतनकलने वाला एक गाढ़ा, दूथधया पत्थर जैसा,
थचपथचपास्राव होता है। सामान्य वीयण हल्का क्षारीय होता है।
यहमूत्र प्रजनन-पथ से संबद्ध बहुत सी ग्रंथथयों (प्रोस्टेट
आहद) के स्रावों से बनता है और इसमें िुक्राणु होते हैं जो
िुक्रग्रंथथयों में बनते हैं तथा िुक्रािय में संथचत होते हैं। वयण
में लगभग 90 प्रततित जल, 5 प्रततित िुक्राणु तथािेष
भाग में पवटाशमन C एवं इनोशसटॉल, फ्रे तटोज़, कै जल्सयम,
मैग्नीशियम, जजंक, कॉपर एवं सल्फर जैसे लवण रहते हैं।
एक बार के स्खलन में लगभग 4.5 शमली. वीयण तनकलता
है। 2 शमली. से कम वीयण स्खशलत होने पर संतानोत्पतत
नहीं हो सकती।
46.
47. पुरुष का सम्भोग अथवा मैथून (Copulation) तथा
मूत्रण(Urination) का अंग शिश्न या शलंग कहलाता है।
यहउदर के नीचे मूलाधार (Perineum) लटका रहने
वाला3 से 3.5 इंच लम्बा एक कोमल, लचीला एवं
स्पंजी अंगहोता है। शिश्न में तनम्न तीन भाग होते हैं:
(1) िूल (Root): यह शिश्न का सबसे नीचे कामूलाधार
से संलग्न रहने वाला भाग होता है।
48.
49. यह शिश्न के अगलेभाग, शिश्नमुण्ड (Glans penis)
एवं मूल (Root)के बीच का लम्बा भाग होता है। यह
हषणण याउच्छायी ऊतक (Erectile tissue) एवं
अनैजच्छकपेिी की तीन बेलनाकार दजण्डकाओं से
बनाहोता है। दो पाश्वीय दजण्डकाएाँ कापोरा
कै वरनोसा(Corpora caver nosa) तथा इनके बीच
कीदजण्डका कापणस स्पाजन्जयोसम (Corpus
spongiosum) कहलाती है। बीच की दण्डकाके भीतर
एक नली होती है जो शिश्न के अगलेभाग शिश्नमुण्ड
(Glans penis) पर खुलती है।
50.
51. इसे मूत्र-मागण या यूरेथ्रा कहते हैं जजससे होकर| मूत्र
बाहर आता है तथा इसी से वीयण बाहरतनकलता है, परंतु
मूत्र तथा वीयण एक साथ बाहरनहीं आते। दजण्डकाओं के
भीतर बहुत से कोष्ठहोते हैं, जजन्हें शिरीय साइनुसॉयड्स
(Venous sinusoids) कहा जाता है। जो शिश्न की
शिथथलनकी अवस्था में तो खाली रहते हैं परंतु
लैंथगकउिेजना के दौरान रतत से भरकर फू ल जाते हैं।
जजसके पररणामस्वरूप तीनों दजण्डकाएाँ खडी होकरलम्बी,
मोटी एवं कठोर हो जाती हैं जजससे शिश्नतन कर खडा
हो जाता है, जजसे हषणण यास्तम्भन (Erection) कहते
हैं।
52.
53. शिश्न के शसरे परएक गोलाकार वृद्थध रहती है जजसे
शिश्नमुण्ड याग्लान्स पीतनस कहते हैं। यह शिश्न का
सबसेआगे का मोटा सुपारी जैसा हदखायी देने वालाभाग
होता है। इस भाग में अनेकों तजन्त्रकान्त (Nerve endings)
पवद्यमान रहते हैं अत: यह अत्यथधक संवेदनिील क्षेत्र होता
है तथा लैंथगकउिेजना का महत्त्वपूणण स्रोत होता है।
शिश्नमुण्डत्वचा से आच्छाहदत हुआ होता है। सामान्यत:
त्वचा का यह आच्छाहदत करने वाला भाग शिश्नमुण्डच्छद
(Prepuce) कहलाता है। शिश्नीयतजन्त्रकान्त (Penile nerve
endings) पविेष तौरके समीपस्थ फकनार, जजसे
कॉरोनासेमुण्ड(Corona) कहते हैं, में अथधक रहते हैं।
54.
55. शिश्नके ऊपर की त्वचा बहुत पतली होती है
तयोंफकइसके नीचे च्बी त्रबल्कु ल नहीं होती जजससेत्वचा
में जस्थत रतत वाहहतनयााँ नीली नसों के रूप में उभरी
हुई हदखायी देती हैं।तनरूद्ध प्रकाि या फाइमोशसस
(Phimosis -शिश्न मुण्डच्छद के तछद्र का संकु थचत हो
जाना जजससे यह शिश्नमुण्ड के ऊपर नहीं खींचा
जासकता) की दिा में अथवा धाशमणक उद्देश्यों के शलए
शिश्न मुण्डच्छद को काटकर अलग करहदया जाता है।
इस फक्रया को आम भाषा में खतना करवाना या सुन्नत
(Circumcission) कहा जाता है।
56. मूत्र-मागण से मूत्र एवं वीयण दोनों ही पवसजजणत होते हैं।
यहपुरुषों में जस्त्रयों की अपेक्षा लम्बा होता है जो
लगभग 16 से 18 सेमी. लम्बा होता है। यह मूत्रािय
से तनकल करप्रोस्टेट ग्रंथथ से होता हुआ शिश्न के
बाह्य मूत्रमागीय तछद्रमें आतररक एवं बाह्य दो
संकोथचतनयााँ (Sphincters) होती हैं। आतंररक संकोथचनी
थचकनी पेिीपर खुलता है।
57. पुरुष ऊतक की बनी होती है और प्रोस्टेट ग्रंथथ के ऊपर
मूत्रािय की ग्रीवा के चारों और जस्थत होती है। बाह्य
संकोथचनी रेझखत पेिी ऊतक की बनी होती है औरमूत्र-
मागण के कलामय भाग के चारों ओर जस्थत होती है।|मूत्र
त्याग एवं स्खलन की फक्रया एक साथ करना संभव नहीं
है, तयोंफक स्खलन के एकदम पहले आंतररक संकोथचनी
मूत्रािय के तछद्र को बंद कर देती है।
58. आंतररक संकोचनीके बंद होने से न तो मूत्र उतर सकता है
और न ही वीयणमूत्रािय में को वापस जा सकता है। पुरुष
मूत्र-मागण के तनम्न तीन भाग होते हं:
1. मूत्र-मागण का मूत्रािय के मूत्रमागीय तछद्र सेआरंभ होकर
प्रोस्टेट ग्रंथथ में से गुजरते हुएउसके अंत तक पहुाँचने वाला
भाग प्रोस्टेहटकभाग (Prostatic portion) कहलाता है।
यहलगभग 3 सेमी. लम्बा होता है। यहााँ इसे प्रोस्टेटग्रंथथ की
सूक्ष्म वाहहकाओं एव दो स्खलनीयवाहहकाओं से स्राव प्राप्त
होते हैं।
2. प्रोस्टेट ग्रंथथ से शिश्न के बल्ब तक का मूलाधाररयकला
(Perineal membrane) से होकर गुजरन वाला भाग सबसे
छोटा और सकीण होता है। इसे कलामय भाग
(Membranous portion) कहाजाता है।
59. 3. मूत्र-मागण का अंततम शिश्नीय भाग (Penile
portion), शिश्न के भीतर रहने वाले संपूणणस्पन्जी
भाग से लेकर शिश्नमुण्ड पर बाह्य मूत्रमागीयतछद्र तक
होता है, जो 90° का कोण बनाकर मूलाधार से होता
हुआ शिश्न में प्रवेि करता है।यह मूत्र-मागण का सबसे
लम्बा लगभग 12 से 14 सेमी. भाग होता है। इसका
पश्चज भाग पवस्फाररत होता है जो मूत्र-मागण का
कजन्दल भाग (Bulbous part) कहलाता है।