1. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
परिचय
मध्य प्रदेश मे तिल की खेिी खरीफ मौसम में 315 हजार हे. में की जािी
है।प्रदेश मे तिल की औसि उत्पादकिा 500 तक.ग्रा. /हेक्टेयर ळें प्रदेश क
े
छिरपुर, टीकमगढ़, सीधी, शहडोल, मुरैना, तशवपुरी सागर, दमोह,
जबलपुर, मण्डला, पूवी तनमाड़ एवं तसवनी तजलो में इसकी खेिी होिी है
भूति का प्रकाि
हल्की रेिीली, दोमट भूतम तिल की खेिी हेिु उपयुक्त होिी हैं। खेिी हेिु
भूतम का पी.एच. मान 5.5 से 7.5 होना चातहए। भारी तमटटी में तिल को जल
तनकास की तवशेष व्यवस्था क
े साथ उगाया जा सकिा है।
प्रदेश िें काष्ि हेिु अनुशंतिि तकस्मं का तिििण
प्रदेश िें काष्ि हेिु अनुशंतिि तकस्मं का तििि
उन्नि तकस्ें
2. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
तकस्
तििमचन
िशश
पकने
की
अिति
(तदिि)
उपज
(तक.ग्रा./हे.)
िेल की
िात्रा
(प्रतिशि) अन्य तिशेषिायें
टी.क
े .जी. 308 2008 80-85 600-700 48-50 िना एवं जड सड़न रोग
क
े तलये सहनशील।
जे.टी-11
(पी.क
े .डी.एस.-
11)
2008 82-85 650-700 46-50 गहरे भूरे रंग का दाना
होिा है। मैक्रोफोतमना
रोग क
े तलए सहनशील।
गीष्म कालीन खेिी क
े
तलए उपयुक्त।
जे.टी-
12(पी.क
े .डी.एस.-
12)
2008 82-85 650-700 50-53 सफ
े द रंग का दाना ,
मैक्रोफोतमना रोग क
े तलए
सहनशील, गीष्म कालीन
खेिी क
े तलए उपयुक्त।
जवाहर तिल 306 2004 86-90 700-900 52.0 पौध गलन, सरकोस्पोरा
पत्ती घब्बा, भभूतिया एवं
फाइलोड़ी क
े तलए
सहनशील ।
जे.टी.एस. 8 2000 86 600-700 52 दाने का रंग सफ
े द,
फाइटोफ्थोरा अंगमारी,
आल्टरनेररया पत्ती धब्बा
िथा जीवाणु अंगमारी क
े
प्रति सहनशील।
टी.क
े .जी. 55 1998 76-78 630 53 सफ
े द बीज, फाइटोफ्थोरा
अंगमारी, मेक्रोफोतमना
िना एवं जड़ सड़न
3. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
जे टी -55 (टी.क
े .जी-55)
टी क
े जी -306
टी.क
े .जी -308
जे टी - 8 (टी.क
े .जी-8)
बीमारी क
े तलये
सहनशील।
4. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
तिल की बोनी मुख्यिः खरीफ मौसम में की जािी है तजसकी बोनी
जून क
े अन्तिम सप्ताह से जुलाई क
े मध्य िक करनी चातहये। ग्रीष्मकालीन
तिल की बोनी जनवरी माह क
े दू सरे पखवाडे से लेकर फरवरी माह क
े दू सरे
पखवाडे िक करना चातहए । बीज को 2 ग्राम थायरम+1 ग्रा. काबेन्डातजम ,
2:1 में तमलाकर 3 ग्राम/तक.ग्रा. फफ
ूं दनाशी क
े तमश्रण से बीजोपचार करें।
बोनी किार से किार की दू री 30 से.मी. िथा किारों में पौधो से पौधों की
दू री 10 से.मी. रखिे हुये 3 से.मी. की गहराई पर करे ।
उिशिक प्रबंिन
मध्य प्रदेश में तिल उत्पादन हेिु नत्रजन,स्फ
ु र एवं पोटाश की अनुशंतसि मात्रा इस
प्रकार मात्रा (तक.ग्राम./है.) है ।
अिस्था नत्रजन स्फ
ु ि पमटाश
तसंतचि 60 40 20
अतसंतचि/वषाा आधाररि 40 30 20
स्फ
ु र एवं पोटाश की पूरी मात्रा िथा नत्रजन की आधी मात्रा बोनी करिे
समय आधार रूप में दें। िथा शेष नत्रजन की मात्रा खड़ी फसल में
बोनी क
े 30-35 तदन बाद तनंदाई करने उपराि खेि में पयााप्त नमी
हाने पर दे।
स्फ
ु र ित्व को तसंगल सुपर फास्फ
े ट क
े माध्यम से देने पर गंधक ित्व
की पूतिा (20 से 30 तक.ग्रा./है. ) स्वमेव हो जािी है।
तसंचाई एवं जल प्रबंधन- तिल की फसल खेि में जलभराव क
े प्रति
संवेदनषील होिी है। अिः खेि में उतचि जल तनकास की व्यवस्था
सुतनतिि करें। खरीफ मौसम में लम्बे समय िक सूखा पड़ने एवं अवषाा
की न्तस्थति में तसंचाई क
े साधन होने पर सुरक्षात्मक तसंचाई अवष्य करे।
5. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने क
े तलये तसंचाई हेिु क्रान्तिक
अवस्थाओं यथा फ
ू ल आिे समय एवं फन्तियों में दाना भरने क
े समय
तसंचाई करे।
नीदा तनयंत्रण
बोनी क
े 15-20 तदन पिाि् पहली तनंदाई करें िथा इसी समय आवश्यकिा से अतधक पौधों को तनकालना चातहये ।
तनंदा की िीव्रिा को देखिे हुये दू सरी तनंदाई आवश्यकिा होने पर बोनी क
े 30-35 तदन बाद नत्रजनयुक्त उवारकों का
खडी फसल में तछडकाव करने क पूवा करना चातहये।
िािायतनक तििी िे नींदा तनयंत्रण
क्र
नींदा नाशक
दिा का नाि
दिा की
व्यापारिक
िात्रा/है.
उपयमग का
ििय
>उपयमग किने की
तिति
1 फ्लूक्लोरोलीन
(बासालीन)
1 ली./है बुवाई क
े ठीक
पहले तमट्टी में
तमलायें।
रसायन क
े
तछडकाव क
े बाद
तमट्टी में तमला दें।
2 पेन्डीतमतथलीन 500-700
तम.ली./है.
बुआई क
े िुरि
बाद तकिु
अंक
ु रण क
े पहले
500 ली. पानी में
तमलाकर तछड़काव
करे।
3 क्यूजोलोफाप
इथाईल
800 तम.ली./है. बुआई क
े 15 से
20तदन बाद
500 ली. पानी में
तमलाकर तछड़काव
करे।
6. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
िमग प्रबंिन
क्र
िमग का
नाि लक्शण
तनयंत्रण
हेिु
अनुशंति
ि दिा
दिा की
व्यापारिक िात्रा
उपयमग किने का
ििय एं ि तिति
1
.
फाइटोफ
्
थोरा
अंगमारी
प्रारंभ में पतत्तयों व िनों
पर जलतसक्त धब्बे
तदखिे हैं, जो पहले
भूरे रंग क
े होकर बाद
में काले रंग क
े हो जािे
हैं।
तिल की फाइटोप्थोरा
बीमारी
थायरम
अथवा
टराइकोड
माा
तवररडी से
बीजोपचा
र
तनयंत्रण हेिु
थायरम (3 ग्राम)
अथवा टराइकोडमाा
तवररडी (5
ग्रा./तक.ग्रा.)
तनयंत्रण हेिु थायरम (3
ग्राम) अथवा टराइकोडमाा
तवररडी (5 ग्रा./तक.ग्रा.)
द्वारा बीजोपचार करें।
खड़ी फसल पर रोग
तदखने पर ररडोतमल एम
जेड (2.5 ग्रा./ली.) या
कवच या कापर
अक्सीक्लोराइड की 2.5
ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी
में घोलकर 10 तदन क
े
अंिर से तछड़काव करें।
2
.
भभूतिया
रोग
45 तदन से फसल
पकने िक इसका
संक्रमण होिा है। इस
रोग में फसल की
पतत्तयों पर सफ
े द चूणा
तदखाई देिा हैं
गंधक घुलनशील गंधक
(2 ग्राम/लीटर) का
तछड़काव करे
रोग क
े लक्शण प्रकट होने
पर घुलनशील गंधक (2
ग्राम/ लीटर) का खडी
फसल में 10 तदन क
े अंिर
पर 2-3 बार तछड़काव
करे।
7. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
क्र
िमग का
नाि लक्शण
तनयंत्रण
हेिु
अनुशंति
ि दिा
दिा की
व्यापारिक िात्रा
उपयमग किने का
ििय एं ि तिति
3
.
िना एवं
जड़
सड़न
संक्रतमि पौधे की जड़ों
का तछलका हटाने पर
नीचे का रंग कोयले क
े
समान घूसर काला
तदखिा हैं जो फफ
ूं द
क
े स्क्लेरोतषयम होिे
है।
थायरम
अथवा
टराइकोड
रमा
तवररडी
तनयंत्रण हेिु
थायरम +
काबेन्डातजम (2:1
ग्राम) अथवा
टराइकोडमाा
तवररडी ( 5
ग्रा./तक.ग्रा.) द्वारा
बीजोपचार करें।
तनयंत्रण हेिु
थायरम +
काबेन्डातजम
(2:1 ग्राम)
अथवा
टराइकोडमाा
तवररडी (5
ग्रा./तक.ग्रा.) द्वारा
बीजोपचार करें।
खड़ी फसल पर
रोग प्रारंभ होने
पर थायरम 2
ग्राम+
काबेन्डातजम 1
ग्राम. इस िरह
क
ु ल 3 ग्राम
मात्रा/ली. की दर
से पानी मे घोल
बनाकर पौधो की
जड़ों को िर
करें। एक सप्ताह
पिाि् पुनः
तछडकाव दोहर
4
.
पणािाभ
रोग
(फायलो
डी)
फ
ू ल आने क
े समय
इसका संक्रमण
तदखाई देिा हैं । फ
ू ल
क
े सभी भाग हरे
पतत्तयों समान हो जािे
हैं। संक्रतमि पौधे में
पतत्तयााँ गुच्छों में छोटी
-छोटी तदखाई देिी हैं।
फोरेट फोरेट 10 जी की
10 तकलोग्राम मात्रा
प्रति हैक्टेयर
तनयंत्रण हेिु
रोगग्रस्त पौधों
को उखाड़कर
नष्ट करें िथा
फोरेट 10 जी की
10 तकलोग्राम
मात्रा प्रति
हैक्टेयर क
े मान
से खेि में पयााप्त
नमी होने पर
तमलाये िातक
रोग फ
े लाने वाला
कीट फ
ु दका
तनयंतत्रि हो
जाये।
नीम िेल
(5तमली/ली.) या
डायमेथोयेट (3
8. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
क्र
िमग का
नाि लक्शण
तनयंत्रण
हेिु
अनुशंति
ि दिा
दिा की
व्यापारिक िात्रा
उपयमग किने का
ििय एं ि तिति
तमली/ली.) का
खडी फसल में
क्रमषः 30,40
और 60 तदन पर
बोनी क
े बाद
तछड़काव कर
5
.
जीवाणु
अंगमारी
पतत्तयों पर जल कण
जैसे छोटे-छोटे तबखरे
हुए धब्बे धीरे-धीरे
बढ़कर भूरे रंग क
े हो
जािे हैं। यह बीमारी
चार से छः पतत्तयों की
अवस्था में देखने को
तमलिी हैं।
स्ट्रेप्टोसाइ
न्तक्लन
स्ट्रेप्टोसाइन्तक्लन
(500 पी.पी.एम.)
पतत्तयों पर
तछड़काव करें
बीमारी नजर आिे ही
स्ट्रेप्टोसाइन्तक्लन (500
पी.पी.एम.) $ कॉपर
आक्सी क्लोराईड (2.5
तम.ली./ली.) का पतत्तयों पर
15 तदन क
े अिराल पर दो
बार तछड़काव करें।
तिल पत्ती िमड़क एिं फल्ली बेिक कीट
फसल क
े
प्रारंतभक
अवस्था
में
इिीयां
पतत्तयों क
े
अंदर
रहकर
खािी हैं।
प्रोफ़
े नोफॉस
या
तनबौलीकाअर्
क
प्रोफ़
े नोफॉस
50 ईसी 1
ली./हे. या
तनबौली का
अक
ा 5
तमली/ली.
500 से
600 लीटर
पानी में
घोलकर
फसल पर
तछड़काव
करें
9. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
कली
मक्खी
प्रारन्तिक
अवस्था
में अण्डे
देिी है
अण्डों से
तनकली
इन्तियां
फ
ू ल क
े
अण्डाष्य
में जािी
है तजससे
कतलयां
तसक
ु ड़
जािी है
न्तिनॉलफॉस
या
टरायजफॉस
न्तिनॉलफॉस
25 ईसी
(1.5तम.ली./ली.
)या टरायजफॉस
40ईसी
(1
तम.ली./ली.
) 500 से
600 लीटर
पानी में
घोलकर
फसल पर
तछड़काव
करें
तनबौली का अक
ा बनाने की तवतध- तनबौंली 5 प्रतिशि घोल क
े तलये एक
एकड़ फसल हेिु 10 तकलो तनंबौली को क
ू टकर 20 लीटर पानी में
गला दे िथा 24 घंटे िक गला रहने दे। ित्पिाि् तनंबौली को कपड़े
अथवा दोनों हाथों क
े बीच अच्छी िरह दबाऐं िातक तनंबौली का सारा
रस घोल में चला जाय। अवषेश को खेि में फ
ें क दे िथा घोल में इिना
पानी डालें तक घोल 200 लीटर हो जायें। इसमें लगभग 100 तमली.
ईजी या अन्य िरल साबुन तमलाकर डंडे से चलाये िातक उसमें झाग
आ जाये। ित्पिाि् तछड़काव करें।
कटाई गहाई एवं भडारण - पौधो की फतलयााँ पीली पडने लगे एवं
पतत्तयााँ झड़ना प्रारि हो जाये िब कटाई करे। कटाई करने उपराि
फसल क
े गट्ठे बाधकर खेि में अथवा खातलहान में खडे रखे। 8 से 10
तदन िक सुखाने क
े बाद लकड़ी क
े ड़न्डो से पीटकर तिरपाल पर
झड़ाई करे। झडाई करने क
े बाद सूपा से फटक कर बीज को साफ
करें िथा धूप में अच्छी िरह सूखा ले। बीजों में जब 8 प्रतिशि नमी हो
िब भंडार पात्रों में /भंडारगृहों में भंडाररि करें।
10. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
संभातवि उपज- उपरोक्तानुसार बिाई गई उन्नि िकनीक अपनािे हुऐ
काष्ि करने एवं उतचि वषाा होने पर अतसंतचि अवस्था में उगायी गयी
फसल से 4 से 5 न्ति. िथा तसंतचि अवस्था में 6 से 8 न्ति./है. िक उपज
प्राप्त होिी है।
आतथशक आय - व्यय एिं लाभ अनुपाि
उपरोक्तानुसार तिल की काष्ि करने पर लगभग 5 ि./ हे उपज प्राप्त
होिी है। तजसपर लागि -व्यय रु 16500/ हे क
े मान से आिा है।
सकल आतथाक आय रु 30000 आिी है। शुद्व आय रु 13500/ हे क
े
मान से प्राप्त हो कर लाभ आय-व्यय अनुपाि 1.82 तमलिा है।
अतिक उपज प्राप्त किने हेिु प्रिुख तबंदु-
o कीट एवं रोग रोधी उन्नि तकस्ों क
े नामें टीक
े .जी. 308,टीक
े .जी.
306, जे.टी-11, जे.टी-12, जे.टी.एस.-8 ऽ बीजोपचार-बीज को
2 ग्राम थायरम$1 ग्रा. काबेन्डातजम 2:1 में तमलाकर 3
ग्राम/तक.ग्रा.द्ध नामक फफ
ूं दनाशी क
े तमश्रण से बीजोपचार करें।
o बोनी किार से किार की दू री 30 से.मी. िथा किारों में पौधों से
पौधों की दू री 10 से.मी. रखिे हुये 3 से.मी. की गहराई पर करे ।
o अिविीय फसल तिल$उड़द/मूंग 2:2, 3:3द्ध तिल$ सोयाबीन
2:1, 2:2 द्ध को अपनायें।
o तसंचाई एवं जल प्रबंधन- तिल की फसल खेि में जलभराव क
े
प्रति संवेदनषील होिी है। अिः खेि में उतचि जल तनकास की
व्यवस्था सुतनतिि करें। खरीफ मौसम में लम्बे समय िक सूखा
पड़ने एवं अवषाा की न्तस्थति में तसंचाई क
े साधन होने पर
सुरक्षात्मक तसंचाई अवष्य करे।
o फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने क
े तलये तसंचाई हेिु क्रान्तिक
अवस्थाओं यथा फ
ू ल आिे समय एवं फन्तियों में दाना भरने क
े
समय तसंचाई करे।
o बोनी क
े 15-20 तदन पिाि् पहली तनंदाई करें िथा इसी समय
आवश्यकिा से अतधक पौधों को तनकालना चातहये । तनंदा की
िीव्रिा को देखिे हुये दू सरी तनंदाई आवश्यकिा होने पर बोनी क
े
11. तिल की उन्नि उत्पादन िकनीक
30-35 तदन बाद नत्रजनयुक्त उवारकों का खडी फसल में
तछडकाव करने क
े पूवा करना चातहये ।
5