Bachhe kaam par ja rahe hain Class IX Hindi poem

विषय –ह िंदी (कविता)
कक्षा – नौि िं (अ–पाठ्यक्रम)
प्रकरण – “ बच्चे काम पर जा र े ैं ”
Bachhe kaam par ja rahe hain Class IX Hindi poem
• इस कविता के अध्ययन के बाद विद्यार्थी –
(क)कविता की बातों को अपने दैननक जीिन के संदर्भ
में जोड़कर देख सकें गे ।
(ख)कविता में िर्णभत अंतकभ थाओं को स्पष्ट सकें गे ।
(ग)कविता की विषयिस्तु को पूिभ में सुनी हुई घटना से
संबद्ध स्थावपत कर सकें गे ।
(घ)समाज में फै ली बाल मजदूरी समस्या से रूबरू हो
सकते हैं ।
• उपयुभक्त चित्रों में आप क्या देख रहे हो ?
• बच्िे क्या-क्या काम कर रहे हैं?
• बच्िे क्यों काम कर रहे हैं?
उद्देश्य कर्थन
• आज के बच्िे कल के सुनागररक होते हैं। बच्िों के
शारीररक और मानससक विकास पर ही र्ारत का
विकास ननर्भर करता है।बच्िों के सपनों में पंख लगे
होते हैं ।हमें उन्हें खेल ,सशक्षा,तथा बिपन के उमंग से
िचिंत नहीं करना िाहहए । आज हम इसी र्ाि की
कविता बच्चे काम पर जा र े ैं का अध्ययन करेंगे
जो कवि राजेश जोश द्िारा रचित है ।
कवि पररचय
• राजेश जोश (जन्म१९४६) साहहत्य अकादमी द्िारा
पुरस्कृ त हहन्दी साहहत्यकार हैं। उनका जन्म मध्य
प्रदेश के नरससंहगढ़ जजले में हुआ। उन्होंने सशक्षा पूरी करने के बाद
पत्रकाररता शुरू की और कु छ सालों तक अध्यापन ककया। राजेश
जोशी ने कविताओं के अलािा कहाननयााँ, नाटक, लेख और
हटप्पर्णयााँ र्ी सलखीं। राजेश जोशी के िार कविता-संग्रह- एक हदन
बोलेंगे पेड़, ममट्टी का चे रा, नेपथ्य में ँस और दो पिंक्ततयों के
ब च, दो कहानी संग्रह - सोमिार और अन्य कहाननयााँ, कवपल का
पेड़, तीन नाटक - जादू जिंगल, अच्छे आदम , टिंकारा का गाना।
बच्चे काम पर जा र े ैं
को रे से ढँकी सड़क
पर बच्चे काम पर जा र े ैं
सुब – सुब
बच्चे काम पर जा र े ैं
प्रस्तुत पिंक्ततयों में कवि राजेश जोश ज
ने मारे समाज में मौजूद बाल-मजदूरी की
समस्या को हदखाया ै और मारा ध्यान
इस समस्या की ओर आकवषित करने की
कोमशश की ै। कवि ने कविता की प्रर्थम
पिंक्ततयों में ी मलखा ै कक ब ुत ी ठण्ड
का मौसम ै और सुब -सुब का ितत ै।
चारों तरफ को रा छाया ुआ ै। सड़कें भ
को रे से ढकी ुई ैं। परन्तु इतन ठण्ड
में भ छोटे-छोटे बच्चे को रे से ढकी सड़क
पर चलते ुए, अपने-अपने काम पर जाने
के मलए मजबूर ैं, तयोंकक उन् ें अपन
रोज -रोटी का इिंतजाम करना ै। कोई
बच्चा कारखाने में मजदूरी करता ै, तो
कोई चाय के दुकान में काम करने के मलए
मजबूर ै। जबकक इन बच्चों की उम्र तो
अभ खेलने-कू दने की ै।
हमारे समय की सबसे र्यानक पंजक्त है यह
र्यानक है इसे वििरण की तरह सलखा जाना
सलखा जाना िहहए इसे सिाल की तरह
काम पर तयों जा र े ैं बच्चे ?
इन पंजक्तयों में कवि ने समाज में
व्याप्त बाल-मजदूरी जैसी समस्या
पर चिंतन करते हुए कहा है कक
हमारे समय की सबसे र्यानक बात
यह है कक छोटे-छोटे बच्िों को काम
पर जाना पड़ रहा है। इस बात को
हम जजस सरलता से कह रहे हैं, यह
कवि को और र्यानक लग रहा है।
जबकक हमें इसकी ओर ध्यान देना
िाहहए और यह जानना या पता
लगाना िाहहए कक पढ़ने-खेलने की
उम्र में बच्िों को अपना पेट पालने
के सलए यूाँ काम पर क्यों जाना पड़
रहा है। इसे हमें समाज से एक प्रश्न
की तरह पूछना िाहहए कक इन छोटे
बच्िों को काम पर क्यों जाना पड़
रहा है? जबकक इनकी उम्र अर्ी
खेलने-कू दने और पढ़ने-सलखने की
है।
तया अिंतररक्ष में
गगर गई ैं
सारी गेंदे ?
तया दीमकों ने खा मलया ै सारी रिंग –
बबरिंग ककताबों को ?
तया काले प ाड़ के न चे दब गए ैं
सारे खखलौने
क्या ककसी र्ूकं प के नीिे ढह गई हैं सारे मदरसों
की इमारतें?
शब्दाथभ :
मदरसा – इस्लासमक
पाठशाला
ढह जाना-ध्िस्त होना
मकान का चगरना
इमारत - महल
तया सारे मैदान, सारे बग चे और घरों के
आँगन खत्म ो गए ैं एकाएक
कवि बाल मजदूरों को सुबह र्ीषण ठण्ड एिं कोहरे के बीि अपने-अपने
काम पर जाते देखता है, जजससे कवि हताशा एिं ननराशा से र्र जाता
है। इसी कारणिश कवि के मन में कई तरह के सिाल उठने लगते हैं।
कवि को यह समझ नहीं आ रहा है कक क्यों ये बच्िे अपना मन मारकर
इतनी सुबह-सुबह ठण्ड में काम पर जाने के सलए वििश हैं। कवि सोिता
है कक क्या खेलने के सलए सारी गेंदें खत्म हो िुकी है या आकाश में
िली गई हैं? क्या बच्िों के पढ़ने के सलए एक र्ी ककताब नहीं बिी है?
क्या सारी ककताबों को दीमकों ने खा सलया है? क्या बाकी सारी र्खलौने
कहीं ककसी काले पहाड़ के नीिे दब गए हैं? जो अब इन बच्िों के सलए
कु छ नहीं बिा? क्या इन बच्िों को पढ़ाने िाले मदरसे एिं विद्यालय
र्ूकं प में टूट िुके हैं, जो ये बच्िे पढ़ाई एिं खेल-कू द को छोड़कर काम
पर जा रहे हैं?
र्ािाथभ
तो कफर बिा ही क्या है इस दुननया में ?
ककतना र्यानक होता अगर ऐसा होता
र्यानक है लेककन इससे र्ी ज्यादा यह
कक हैं सारी िीज़ें हस्बमामूल
पर दुननया की जारों सड़कों से गुजरते ुए बच्चे ,
ब ुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा र े ैं।
बच्चे काम पर जा र े ैं
कवि ने अचधक र्यानक उस जस्थनत को मना है ।
जब सर्ी सुख–सुविधाएाँ मनोरंजन के साधनों की
उपलब्धता के बािजूद बच्िों को वििशतापूिभक
मजदूरी करने के सलए जाना पड़ है ।बाल मजदूरी
की समस्या लगर्ग पूरे विश्ि की समस्या है
हमें सर्ी देशों में बाल श्रसमक देखने को समल जाते हैं
अतः यह ककसी एक विशेष देश की नहीं ,िरन पूरे
विश्ि की एिं पूरी मानि जानत की समस्या है ।
कविता का भािार्थि
ककसी र्ी बच्िे की बिपन को न नछनने की र्ािना
को कविता में महत्ि हदया गया है । पररिार और
समाज से उसे र्रपूर प्यार, संरक्षण ,और सुविधाएाँ
समलनी िाहहए ।देश और समाज में सर्ी कु छ होते
हुए ककसी र्ी बच्िे द्िारा मजदूरी करना उनकी
वििशता को दशाभता है ।अगर गंर्ीरतापूिभक चिंतन
ककया जाए तो बाल मजदूरी हमारे देश की एक
र्यानक जस्थनत है ।बच्िों के प्रनत संिेदना के साथ-
साथ समाज को इस जजम्मेदारी से पररचित कराना
कवि का मुख्य उद्देश्य है ।
गृह - कायभ
• काम पर जाते ककस बच्चे के स्र्थान पर अपने-आप
को रखकर देखखए। आपको जो म सूस ोता ै उसे
मलखखए।
• ककस कामकाज बच्चे से सिंिाद कीक्जए और पता
लगाइए कक –
• (क) ि अपने काम करने की बात को ककस भाि से
लेता/लेत ै?
• (ख) जब ि अपने उम्र के बच्चों को खेलने-पढ़ने
जाते देखता/देखत ै तो कै सा म सूस करता/करत
ै ?
Bachhe kaam par ja rahe hain Class IX Hindi poem
“ बच्चे काम पर जा र े ैं ”
• https://docs.google.com/forms/d/1RGGjQA7s
3VIVRlbrDXEFVD0iYeIyCSbIP3tqON676k8/edit
?usp=sharing
प्रस्तुनत
हदलीप कु मार बाड़त्या
स्नतकोत्तर मशक्षक (ह िंदी)
जिा र निोदय विद्यालय ,पालझर,
बौध ,ओडडशा
Prepared By-
DILLIP KUMAR BADATYA
PGT (HINDI)
Jawahar Navodaya Vidyalaya ,Paljhar,
Boudh, Odisha.
1 de 22

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  • 1. विषय –ह िंदी (कविता) कक्षा – नौि िं (अ–पाठ्यक्रम) प्रकरण – “ बच्चे काम पर जा र े ैं ”
  • 3. • इस कविता के अध्ययन के बाद विद्यार्थी – (क)कविता की बातों को अपने दैननक जीिन के संदर्भ में जोड़कर देख सकें गे । (ख)कविता में िर्णभत अंतकभ थाओं को स्पष्ट सकें गे । (ग)कविता की विषयिस्तु को पूिभ में सुनी हुई घटना से संबद्ध स्थावपत कर सकें गे । (घ)समाज में फै ली बाल मजदूरी समस्या से रूबरू हो सकते हैं ।
  • 4. • उपयुभक्त चित्रों में आप क्या देख रहे हो ? • बच्िे क्या-क्या काम कर रहे हैं? • बच्िे क्यों काम कर रहे हैं?
  • 5. उद्देश्य कर्थन • आज के बच्िे कल के सुनागररक होते हैं। बच्िों के शारीररक और मानससक विकास पर ही र्ारत का विकास ननर्भर करता है।बच्िों के सपनों में पंख लगे होते हैं ।हमें उन्हें खेल ,सशक्षा,तथा बिपन के उमंग से िचिंत नहीं करना िाहहए । आज हम इसी र्ाि की कविता बच्चे काम पर जा र े ैं का अध्ययन करेंगे जो कवि राजेश जोश द्िारा रचित है ।
  • 6. कवि पररचय • राजेश जोश (जन्म१९४६) साहहत्य अकादमी द्िारा पुरस्कृ त हहन्दी साहहत्यकार हैं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के नरससंहगढ़ जजले में हुआ। उन्होंने सशक्षा पूरी करने के बाद पत्रकाररता शुरू की और कु छ सालों तक अध्यापन ककया। राजेश जोशी ने कविताओं के अलािा कहाननयााँ, नाटक, लेख और हटप्पर्णयााँ र्ी सलखीं। राजेश जोशी के िार कविता-संग्रह- एक हदन बोलेंगे पेड़, ममट्टी का चे रा, नेपथ्य में ँस और दो पिंक्ततयों के ब च, दो कहानी संग्रह - सोमिार और अन्य कहाननयााँ, कवपल का पेड़, तीन नाटक - जादू जिंगल, अच्छे आदम , टिंकारा का गाना।
  • 7. बच्चे काम पर जा र े ैं को रे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा र े ैं सुब – सुब बच्चे काम पर जा र े ैं प्रस्तुत पिंक्ततयों में कवि राजेश जोश ज ने मारे समाज में मौजूद बाल-मजदूरी की समस्या को हदखाया ै और मारा ध्यान इस समस्या की ओर आकवषित करने की कोमशश की ै। कवि ने कविता की प्रर्थम पिंक्ततयों में ी मलखा ै कक ब ुत ी ठण्ड का मौसम ै और सुब -सुब का ितत ै। चारों तरफ को रा छाया ुआ ै। सड़कें भ को रे से ढकी ुई ैं। परन्तु इतन ठण्ड में भ छोटे-छोटे बच्चे को रे से ढकी सड़क पर चलते ुए, अपने-अपने काम पर जाने के मलए मजबूर ैं, तयोंकक उन् ें अपन रोज -रोटी का इिंतजाम करना ै। कोई बच्चा कारखाने में मजदूरी करता ै, तो कोई चाय के दुकान में काम करने के मलए मजबूर ै। जबकक इन बच्चों की उम्र तो अभ खेलने-कू दने की ै।
  • 8. हमारे समय की सबसे र्यानक पंजक्त है यह र्यानक है इसे वििरण की तरह सलखा जाना सलखा जाना िहहए इसे सिाल की तरह काम पर तयों जा र े ैं बच्चे ? इन पंजक्तयों में कवि ने समाज में व्याप्त बाल-मजदूरी जैसी समस्या पर चिंतन करते हुए कहा है कक हमारे समय की सबसे र्यानक बात यह है कक छोटे-छोटे बच्िों को काम पर जाना पड़ रहा है। इस बात को हम जजस सरलता से कह रहे हैं, यह कवि को और र्यानक लग रहा है। जबकक हमें इसकी ओर ध्यान देना िाहहए और यह जानना या पता लगाना िाहहए कक पढ़ने-खेलने की उम्र में बच्िों को अपना पेट पालने के सलए यूाँ काम पर क्यों जाना पड़ रहा है। इसे हमें समाज से एक प्रश्न की तरह पूछना िाहहए कक इन छोटे बच्िों को काम पर क्यों जाना पड़ रहा है? जबकक इनकी उम्र अर्ी खेलने-कू दने और पढ़ने-सलखने की है।
  • 9. तया अिंतररक्ष में गगर गई ैं सारी गेंदे ?
  • 10. तया दीमकों ने खा मलया ै सारी रिंग – बबरिंग ककताबों को ?
  • 11. तया काले प ाड़ के न चे दब गए ैं सारे खखलौने
  • 12. क्या ककसी र्ूकं प के नीिे ढह गई हैं सारे मदरसों की इमारतें? शब्दाथभ : मदरसा – इस्लासमक पाठशाला ढह जाना-ध्िस्त होना मकान का चगरना इमारत - महल
  • 13. तया सारे मैदान, सारे बग चे और घरों के आँगन खत्म ो गए ैं एकाएक
  • 14. कवि बाल मजदूरों को सुबह र्ीषण ठण्ड एिं कोहरे के बीि अपने-अपने काम पर जाते देखता है, जजससे कवि हताशा एिं ननराशा से र्र जाता है। इसी कारणिश कवि के मन में कई तरह के सिाल उठने लगते हैं। कवि को यह समझ नहीं आ रहा है कक क्यों ये बच्िे अपना मन मारकर इतनी सुबह-सुबह ठण्ड में काम पर जाने के सलए वििश हैं। कवि सोिता है कक क्या खेलने के सलए सारी गेंदें खत्म हो िुकी है या आकाश में िली गई हैं? क्या बच्िों के पढ़ने के सलए एक र्ी ककताब नहीं बिी है? क्या सारी ककताबों को दीमकों ने खा सलया है? क्या बाकी सारी र्खलौने कहीं ककसी काले पहाड़ के नीिे दब गए हैं? जो अब इन बच्िों के सलए कु छ नहीं बिा? क्या इन बच्िों को पढ़ाने िाले मदरसे एिं विद्यालय र्ूकं प में टूट िुके हैं, जो ये बच्िे पढ़ाई एिं खेल-कू द को छोड़कर काम पर जा रहे हैं? र्ािाथभ
  • 15. तो कफर बिा ही क्या है इस दुननया में ? ककतना र्यानक होता अगर ऐसा होता र्यानक है लेककन इससे र्ी ज्यादा यह कक हैं सारी िीज़ें हस्बमामूल
  • 16. पर दुननया की जारों सड़कों से गुजरते ुए बच्चे , ब ुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा र े ैं।
  • 17. बच्चे काम पर जा र े ैं कवि ने अचधक र्यानक उस जस्थनत को मना है । जब सर्ी सुख–सुविधाएाँ मनोरंजन के साधनों की उपलब्धता के बािजूद बच्िों को वििशतापूिभक मजदूरी करने के सलए जाना पड़ है ।बाल मजदूरी की समस्या लगर्ग पूरे विश्ि की समस्या है हमें सर्ी देशों में बाल श्रसमक देखने को समल जाते हैं अतः यह ककसी एक विशेष देश की नहीं ,िरन पूरे विश्ि की एिं पूरी मानि जानत की समस्या है ।
  • 18. कविता का भािार्थि ककसी र्ी बच्िे की बिपन को न नछनने की र्ािना को कविता में महत्ि हदया गया है । पररिार और समाज से उसे र्रपूर प्यार, संरक्षण ,और सुविधाएाँ समलनी िाहहए ।देश और समाज में सर्ी कु छ होते हुए ककसी र्ी बच्िे द्िारा मजदूरी करना उनकी वििशता को दशाभता है ।अगर गंर्ीरतापूिभक चिंतन ककया जाए तो बाल मजदूरी हमारे देश की एक र्यानक जस्थनत है ।बच्िों के प्रनत संिेदना के साथ- साथ समाज को इस जजम्मेदारी से पररचित कराना कवि का मुख्य उद्देश्य है ।
  • 19. गृह - कायभ • काम पर जाते ककस बच्चे के स्र्थान पर अपने-आप को रखकर देखखए। आपको जो म सूस ोता ै उसे मलखखए। • ककस कामकाज बच्चे से सिंिाद कीक्जए और पता लगाइए कक – • (क) ि अपने काम करने की बात को ककस भाि से लेता/लेत ै? • (ख) जब ि अपने उम्र के बच्चों को खेलने-पढ़ने जाते देखता/देखत ै तो कै सा म सूस करता/करत ै ?
  • 21. “ बच्चे काम पर जा र े ैं ” • https://docs.google.com/forms/d/1RGGjQA7s 3VIVRlbrDXEFVD0iYeIyCSbIP3tqON676k8/edit ?usp=sharing
  • 22. प्रस्तुनत हदलीप कु मार बाड़त्या स्नतकोत्तर मशक्षक (ह िंदी) जिा र निोदय विद्यालय ,पालझर, बौध ,ओडडशा Prepared By- DILLIP KUMAR BADATYA PGT (HINDI) Jawahar Navodaya Vidyalaya ,Paljhar, Boudh, Odisha.