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Mahbharat by Harshal Bhatt

  1. Name Roll no. Harshal Bhatt 04
  2.  गीता को हिन्दु धर्म र्े बिुत खास स्थान हदया गया िै। गीता अपने अंदर भगवान कृष्ण के उपदेशो को सर्ेटे िुए िै। गीता को आर् संस्कृत भाषा र्े हिखा गया िै, संस्कृत की आर् जानकारी रखना वािा भी गीता को आसानी से पढ़ सकता िै। गीता र्े चार योगों के बारे हवस्तार से बताया िुआ िै, कर्म योग, भहि योग, राजा योग और जन योग।  गीता को वेदों और उपहनषदों का सार र्ाना जाता, जो िोग वेदों को पूरा निी पढ़ सकते, हसर्म गीता के पढ़ने से भी आप को ज्ञान प्राहि िो सकती िै। गीता न हसर्म जीवन का सिी अथम सर्झाती िै बहकक परर्ात्र्ा के अनंत रुप से िर्े रुबरु कराती िै। इस संसाररक दुहनया र्े दुख, क्रोध, अंिकार ईष्याम आहद से हपह़ित आत्र्ाओंको, गीता सत्य और आध्यात्र् का र्ागम हदखाकर र्ोक्ष की प्राहि करवाती िै। गीता सार: संहक्षि र्े गीता रिस्य
  3.  अन्याय का सदा हवरोध िोना चाहिए।  श्रीकृष्ण की शांहतहप्रयता कायर की निीं बहकक एक वीर की थी।  उन्िोंने अन्याय कभी स्वीकार निीं हकया।  शांहतहप्रय िोने के बावजूद शत्रु अगर गित िै तो उसके  शर्न र्ें पीछे निीं िटें।
  4.  कर्जोर व हनबमि का सिारा बनो।  हनधमन बाि सखा सुदार्ा िो या षड्यंत्र का हशकार पांडव, श्रीकृष्ण ने सदा हनबमिों का साथ हदया और उन्िें र्ुसीबत से उबारा।
  5. किा से प्रेर् करो  संगीत व किाओंका िर्ारे जीवन र्ें हवहशष्ट स्थान िै।  भगवान ने र्ोरपंख व बांसुरी धारण करके किा, संस्कृहत व पयामवरण के प्रहत अपने िगाव को दशामया।  इनके जररए उन्िोंने संदेश हदया हक जीवन को सुंदर बनाने र्ें संगीत व किा का भी र्ित्वपूणम योगदान िै।
  6.  र्हििाओंके प्रहत सम्र्ान व उन्िें साथ िेकर चिने का भाव िो।  भगवान कृष्ण की रासिीिा दरअसि र्ातृशहि को अन्याय के प्रहत जागृत करने का प्रयास था और इसर्ें राधा उनकी संदेशवािक बनीं।
  7.  व्यहिगत जीवन र्ें िर्ेशा सिज व सरि बने रिो। हजस तरि शहि संपन्न िोने पर भी श्रीकृष्ण को न तो युहधहिर का दूत बनने र्ें संकोच िुआ और न िी अजुमन का सारथी बनने र्ें। एक बार तो दुयोधन के छप्पन व्यंजन को छो़ि कर हवदुरानी (हवदुर की पत्नी) के घर उन्िोंने सादा भोजन करना पसंद हकया।
  8.  गिन वन से तृषातम पाण्डव गुजर रिे थे। पानी की तिाश र्ें वे इधर-उधर घूर् िी रिे थे हक अकस्र्ात उन्िें एक सरोवर हदखाई हदया। भीर्, अजुमन, नकुि और सिदेव जि पीने के पूवम िी र्ृत्यु का ग्रास बन गए।  कारण यि था हक एक यक्ष ने उनसे प्रश्न हकए थे, हकं तु उन्िोंने उस ओर ध्यान निीं हदया और हबना जवाब हदए िी पानी पीने िगे। िेहकन वे यक्ष का कोपभाजन बने और उन्िें र्ृत्यु प्राि िुई।  इतने र्ें युहधहिर आए और पानी पीने की कोहशश करने िगे। उनसे भी यक्ष ने प्रश्न हकए, हजनके युहधहिर ने सर्ुहचत उत्तर दे हदए।  तब यक्ष ने प्रसन्न िोकर किा, 'तुर् जि पीने के अहधकारी िो। र्ेरी इच्छा िै हक तुम्िारे चारों भ्राताओंर्ें से हकसी एक को जीवन दान दूं। बोिो, र्ैं हकसे पुनजीहवत करं ?'  प्रश्न ब़िा िी हवहचत्र था और साथ िी कहिन भी, क्योंहक युहधहिर को चारों भाई एक सर्ान हप्रय थे, तथाहप एक क्षण भी सोचे हबना वे बोिे, 'यक्षश्रेि आप नकुि को िी जीवन दान दें।'  यक्ष िंस प़िा और बोिा, 'धर्मराज, कौरवों से युद्ध र्ें भीर् की गदा और अजुमन का गांडीव ब़िा िी उपयोगी हसद्ध िोगा। इन दो सगे भाइयों को छो़िकर नकुि का जीवन क्यों चािते िो।'  धर्मराज बोिे, 'यक्षश्रेि िर् पांचों भ्राता िी र्ाताओंके स्नेि हचह्न िैं। र्ाता कुं ती के पुत्रों से र्ैं शेष िं, हकं तु र्ाद्री र्ां के तो दोनों िी पुत्र र्र चुके िैं। अतः यहद एक के िी जीवन का प्रश्न िै, तो र्ाद्री र्ां के नकुि का िी पुनजीवन इष्ट िै। 'यक्ष ने सुना, तो भावहवह्वि िो बोिा, 'युहधहिर तुर् धर्मतत्व के ज्ञाता िो, र्ैं तो हसर्म तुम्िारी परीक्षा िे रिा था हक तुर् वास्तव र्ें धर्म के अवतार िो या निीं। अतएव र्ैं चारों भाईयों को जीवन देता िं।'
  9. THE END
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