नैतिकता_का_सुख_Joy_of_Ethics_हिंदी.pdf

Jahanzeb Khan
Jahanzeb KhanDeputy Manager (Polypropylene Production) at Brahmaputra Cracker and Polymer Limited

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नै तकता का सुख
परम पावन दलाई लामा
अनुवादक: त जन र व वमा
Bharati Prakashan
Banaras, India
Contents
तावना 3
अनुवादक क
े दो श द 5
अ याय १ - आधु नक समाज एवं मनु य क खुशी क तलाश 7
अ याय २ - न जा न रह य 14
अ याय ३ - ती यसमु पाद एवम् यथाथ का व प 21
अ याय ४ - ल य का पुन नधारण 28
अ याय ५ - एक सव म भावना 36
अ याय ६ - संयम क नै तकता 44
अ याय ७ - स ण क नै तकता 53
अ याय ८ - क णा क नै तकता 63
अ याय 9 - नै तकता एवं ःख 67
अ याय १० - ववेक क आव यकता 72
अ याय ११ - वै क उ रदा य व 78
अ याय १२ - न ा क
े सोपान 83
अ याय १३ - समाज म नै तकता 86
अ याय १४ - शां त एवं नःश ीकरण 96
अ याय १५- आधु नक समाज म धम क भू मका 103
अ याय १६ - एक वन आ ह 107
तावना
सोलह वष क अव ा म अपना देश खो कर एवं चौबीस वष क अव ा म शरणाथ बन
मने अपने जीवन म बड़ी क ठनाइय का सामना कया है । जब म उनक
े वषय म सोचता
ँ तो लगता है क उनसे बचने का मेरे पास न तो कोई साधन था न ही उनका कोई अ ा
समाधान संभव था । फर भी, जहाँ तक मेरी मान सक शां त एवं वा य का है, म
दावा कर सकता ँ क मने उनका सामना भली भां त कया है । इसक
े फल व प म अपने
सारे साधन --मान सक, शारी रक, एवं आ या मक--क
े साथ उन क ठनाइय का सामना
करने म सफल रहा ँ। अगर म चता से धराशायी हो जाता, तो मेरे वा य पर इसका
बुरा असर होता। मेरे काय म भी बाधा होती ।
[1]
जब अपने आसपास देखता ँ तो पाता ँ क सफ हम त बत क
े शरणाथ और व ा पत
समुदाय क
े लोग ही नह क ठनाइय का सामना करते ह। हर जगह एवं हर समाज म लोग
क एवं वपदा झेलते ह, वे भी जो वतं ता एवं भौ तक समृ का आन द लेते ह। वा तव
म, मुझे ऐसा लगता है क हम मनु य का अ धकांश ःख हमारे वयं का कया है।
इसी लए एक स ा त क
े प म कम से कम इससे बचना संभव है। म यह भी देखता ँ
क सामा यतया ऐसे जनका वहार नै तक प से सकारा मक होता है, वे
यादा स एवम् स तु रहते ह उन लोग क तुलना म जो नै तकता क अवहेलना करते
ह। इससे मेरी धारणा क पु है क अगर हम अपने वचार एवं अपने वहार म बदलाव
ला सक, तो हम न तो सफ क का सामना यादा आसानी से करना सीखगे, हम ब त
सारे ख को उ प होने से भी रोक सकगे।
[2]
म इस पु तक म यह दखाने का यास क ँ गा क पा रभा षक पद “सकारा मक नै तक
वहार” से मेरा या ता पय है। ऐसा करने म म मानता ँ क नै तकता एवं सदाचार क
सफलता से सामा यीकरण करना अथवा एकदम न त ा या क ठन है। ब त ही
वरले, अगर कभी हो भी तो, कोई घटना एकदम ेत या याम होती है । एक ही काय भ
प र तय म भ नै तकता एवं सदाचार क
े रंग एवं मा ा का होता है। उसी समय, यह
आव यक है क इसम हम इस बात पर एकमत ह क सकारा मक काय या है और
नकारा मक काय या है, सही या है और गलत या है, उ चत या है और अनु चत या
है। पहले लोग म धम क
े लए जो आदर था उसका अथ था क एक या सरे धम क
े
अ यास से ब सं यक लोग नै तक आचार बनाये रखते थे। ले कन अब ऐसा नह है ।
इस लए हम मूलभूत नै तक स ांत क ापना करने क
े लए न य ही कोई सरा
उपाय ढूंढना चा हए ।
[3]
पाठक गण यह नह सोच क दलाई लामा क
े प म मेरे पास देने क
े लए कोई वशेष
समाधान है। इन पृ म ऐसा क
ु छ नह है जो पहले नह कहा गया हो । वा तव म मुझे
लगता है क जो चतन एवं वचार यहाँ तुत कये गये ह, उ ह वे ब त सारे लोग मानते ह
जो हम मनु य क सम या एवं क क
े समाधान क
े बारे म सोचते ह और यास करते
ह। मेरे क
ु छ म क
े सुझाव क
े उ र म एवं पाठक को यह पु तक तुत करने म मेरी
आशा है क उन करोड़ लोग को आवाज़ मलेगी ज ह सावज नक प से अपने वचार
को कट करने का मौका नह मलता है तथा ज ह म मूक ब सं यक मानता ँ ।
[4]
ले कन पाठक यह भी याद रख क मेरी व धवत श ा पूण प से धा मक एवं
आ या मक रही है। बचपन से ही मेरी श ा का मुख (और नर तर) वषय बौ दशन
एवं मनो व ान रहा है। खास तौर से मने गेलुक था क
े धा मक, दाश नक व ान क
े काय
का अ ययन कया है, जस पर रा से सारे दलाई लामा आते रहे ह। धा मक ब लवाद म
पूणतया व ास होने क
े कारण मने अ य बौ पर रा क
े मु य शा का भी अ ययन
कया है । पर तु इसक तुलना म मुझे आधु नक धम नरपे दशन को जानने का कम मौका
मला है। फर भी यह एक धा मक पु तक नह है । यह बौ धम क
े बारे म भी नह है।
मेरा ल य नै तकता क
े लए एक ऐसे माग का आ ान करना है, जो वै क स ांत पर
आधा रत हो, न क धा मक स ांत पर।
[5]
इस कारण वश, सामा य पाठक गण क
े लए पु तक लखना बना चुनौ तय क
े नह आ
है, एवं यह एक समूह क
े प र म का फल है। एक खास सम या इस कारण से ई क
त बती भाषा क
े कई अ नवाय श द का आधु नक भाषा म अनुवाद करना क ठन है। इस
पु तक का उ े य एक दशनशा का आलेख बनना नह था, इस लए मने यास कया है
क म इन त य का ऐसे वणन क ँ ता क जो वशेष पाठक नह ह वे भी समझ सक
एवं उनका अ य भाषा म भी अनुवाद हो सक
े । ऐसा करने म, एवं उन लोग क
े
लए सु ा या करने म जनक भाषा एवं सं क
ृ त मेरे से काफ भ हो, यह संभव
है क त बती भाषा क गूढ़ता खोयी हो, और क
ु छ अनचाहे अथ जुड़ गये ह । मेरा व ास
है क सतक संपादन ने ऐसा यूनतम कर दया हो । जब भी कोई ऐसी गलती सामने आती
है, मुझे आशा है क आने वाले सं करण म म उनका सुधार क ँ गा । इस बीच म, इस
वषय म उनक सहायता क
े लए, इसे इं लश म अनुवाद करने क
े लए, एवं उनक
े
अन गनत सुझा क
े लए म डॉ टर थु टेन ज पा को ध यवाद देता ँ। म ी ए आर
नामन को भी संशोधन क
े लए ध यवाद देता ँ। यह ब मू य रहा है। अंत म, म उन सब
को ध यवाद देना चाहता ँ ज ह ने इस पु तक को सफल बनाने म सहायता क है।
[6]
धमशाला, फ़रवरी १९९९
मनन यो य
१. “सकारा मक नै तक वहार” से लेखक का या ता पय है?
२. आप नै तकता क
े ऐसे माग क स ावना क
े बारे म या सोचते ह जो वै क स ांत
पर आधा रत हो, न क धा मक स ांत पर।
अनुवादक क
े दो श द
मेरा इस पु तक से स ब पं ह साल से यादा हो गया है, पहले पाठक क
े प म फर
अनुवाद क
े दौरान। बौ माग और परम पावन दलाई लामा जी से प रचय, दोन ही
सौभा य मुझे इस पु तक क
े ारा मला। जीवन क
े क का सामना करने म इस पु तक से
इतनी मदद मली है क अफसोस होता क यह मुझे वष पहले य नह मली। अनुवादन
म यास लगाने क पीछे मेरी कामना है क मेरी मातृ भू म म ब त से लोग को इससे वही
लाभ मलेगा जो मुझे मला है।
इस पु तक से मुझे जो पहली सीख मली वह यह क, नै तक आचरण मेरे ही हत म है।
यह वा य शायद काफ सामा य लगे ले कन इस पु तक को पढ़ने क
े पहले मेरी यह धारणा
थी क नै तकता अ बात है, पर तु नै तक वहार से कता क क
ु छ न क
ु छ हा न ही
होती है। शायद क
ु छ लोग ऐसे को मूख भी समझ। इस वषय पर हद क
े यात
ंगकार ी ह र शंकर परसाई जी का नबंध “बेचारा भला आदमी” पढ़ने यो य है। परम
पावन दलाई लामा जी क इस कालजयी रचना क
े तुत ह द अनुवाद क
े स ब म मेरा
वचार है क य द लोग नै तक आचरण म स ः न हत अपने हत-लाभ को समझगे तो
इससे लोग म नै तक आचरण क
े त उ साह बढ़ेगा और जगत का क याण होगा।
मुझे सरी समझ यह मली क नै तकता एक ज टल एवम् सू म वचार का वषय है।
सफ यह कह देना पया त नह है क “झूठ बोलना पाप है” अथवा “चोरी करना अनु चत
है”। ी दलाई लामा जी नै तकता क ववेचना, हमारे आचरण क
े सर पर पड़ने वाले
भाव क
े संग म करक
े , हम सब को इस वषय पर नवीन कोण से सोचने समझने का
अवसर देते ह।
मने एक बार ी दलाई लामा जी से सुना था क, वाथ दो तरह को होता है - बु मानी
वाला वाथ एवं मूखता वाला वाथ । नै तक आचरण का अ यास बु मानी वाला वाथ है
। चूँ क वाथ सुनने म थोड़ा कठोर लगता है, अतः मेरे एक म ने सुझाव दया क हम इसे
जाग कता स हत वयम् का हत करने का भाव कह ।
यादातर लोग ी दलाई लामा जी को एक धमगु क
े प म जानते ह एवं अ सर
धमगु क पु तक वचन वाली होती ह क तु यह पु तक वचन नह है । म इस
पु तक को अपनी भौ तक शा , रासायन शा एवं ग णत आ द वषय क पु तक क
े
साथ रखता ँ । इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने अपने अनुभव क
े आधार पर मानव
मा को जीवन जीने क शैली सखाई है जसका हम अपने दै नक जीवन म योग करक
े
वयम् इस न कष पर प ँच सकते ह क हम इससे या लाभ हो रहा है, या नह ।
इस पु तक को पढ़ने से यह होता है क जस का आचरण नै तकता, नेह एवं
क णा यु होता है वह उन लोग से यादा सुखी होता है जो इन धारणा क अवहेलना
करते ह । साथ ही यह त य भी होता है क, नै तक वहार ारा और क
े क याण म
ही हमारा वयम् का क याण भी न हत है ।
इस पु तक म आप ःख एवं पीड़ा का कई बार उ लेख देखगे । सामा यतया हम इन श द
को पयायवाची समझते ह । पर तु इस पु तक म दोन का ता पय भ है । पीड़ा का अथ
है, अ नवाय शारीरक क जैसे ज म, रोग, वृ ाव ा, घटना इ या द एवं ःख का ता पय
मान सक अव ा से है । ःख वह है जो ऐसे को भी होता है जसका पेट भरा होता
है, जसक
े तन पर अ े व होते ह, बक म पया त धन होता है। ःख ऐसी चीज़ है जो
वातानुक
ू लत क म बैठने वाले को भी थत करती है । ी दलाई लामा जी इस
मान सक ःख को थ का लेश कहते ह । इस पु तक म उ ह ने वह सारे उपाय बताय ह
जसक सहायता से हम अपने इन थ ःख का उ मूलन कर सकते ह । ी दलाई लामा
जी ने एक बार कहा था पीड़ा अ नवाय है ले कन ःख क
ृ म है । इस पु तक म उ ह ने
एक जीवन शैली का वणन कया है जससे हम ःख क स ावना को यूनतम कर सकते
ह ।
म श ा एवं वसाय से इंजी नयर ँ एवं हम इंजी नयर का वभाव है क हम कसी भी
श ा को बना तक क
े वीकार नह कर सकते। इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने सफ
उ चत एवं अनु चत क प रभाषा ही नह द है, ब क उ ह ने उ चत को सट क तक व
उदाहरण ारा समझाया भी है। मेरे लए यह पु तक उपयोगी रही है य क उ चत एवं
अनु चत क प रभाषा क
े साथ उ ह ने एक अ य त सहज जीवन शैली क श ा द है
जससे हम सभी अपने मान सक ःख को कम कर सकते ह ।
ी दलाई लामा जी पूरे व म अ य त लोक य ह । मने उ ह पहली बार सैन ां स को,
अमे रका म देखा था । म दशक म उनक
े लए नेह एवं आदर को देख कर अच त था ।
यह भले हा य द लगे, मने कई लोग म इस बात को लेकर ई या का भाव देखा एवं कई
लोग को ी दलाई लामा जी जैसे स बनने का यास करते ये भी देखा है । इस
पु तक म उ ह ने वह सारे रह य बताये ह जनक
े कारण उनका व इतना चुंबक य ह
। लोग छोट से छोट बात पर भी उनक
े ठहाक
े लगाकर हंसने क मता से आ यच कत
रहते ह । इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने वह सारे सुझाव दये ह जनका पालन करने
से जीवन क सारी क ठनाइय क
े प ात भी उनक तरह स च रह सकता है ।
ी दलाई लामा जी ने अपने जीवन म जन वराट क ठनाईय का सामना कया है वह हम
सबको पता है, इन सब क
े बावजूद उनक स ः व मान हँसी सभी को मं मु ध कर
देती है।
वतं ता क
े प ात भारतवष म समृ बढ़ है । म बहार क
े पछड़े इलाक म काफ समय
तीत करता ँ एवं देखता ँ क वहां भी लोग क
े रहन सहन क
े तर म काफ बदलाव
आ है । बड़े शहर म यह बदलाव और भी अ धक है । आज भारत क
े बड़े नगर म
अमे रका एवं यूरोप क
े सुख-साधन आसानी से उपल ह । भा यवश शारी रक या
भौ तक सुख एवं मान सक सुख म ब त गहरा स ब नह है । यह य काफ क द
होता है क एक सारी शारी रक व भौ तक सुख सु वधा क
े बावज़ूद मन से च तत एवं
खी रहता है ।
आज भारत क
े हर ऐसे समृ , जसे पया त शारी रक व भौ तक सुख ा त है, को
नै तकता क समझ क ब त आव यकता है ता क वह मान सक प से भी सुखी हो सक
। परम पावन ी दलाई लामा जी क यह पु तक हर आधु नक भारतीय क
े लए
अ नवाय होनी चा हए ।
मुझे इस यास म कई लोग से बड़ी मदद मली है। उसमे से मु य ह भारतीय ौ ो गक
सं ान, कानपुर क
े ोफ
े सर अ ण क
ु मार शमा जी, सारनाथ त क
े य त बती
अ ययन व व ालय क
े ोफ
े सर नवांग समतेन जी एवं राजेश क
ु मार म जी, क टहार
क
े नभ क प कार राजर न कमल जी एवं भारती काशन, वाराणसी क
े अ ध ाता ी
आशुतोष पा डेय जी। ोफ
े सर अ ण शमा जी ल बे समय से मेरे मागदशक, म एवं
भाई क तरह रहे ह। उ ह ने एवं ोफ
े सर नवांग समतेन जी ने अपना ब मू य समय देकर
मेरे अनुवाद क गल तय को सुधारा है। क टहार क
े नभ क प कार ी राजर न कमल
जी को म अपना काय सबसे पहले भेजता था और म डरता थे क वे मेरी हद क
अशु य से परेशान होते ह गे, ले कन उ ह ने मुझे कभी ऐसा महसूस नह होने दया।
सारनाथ त क
े य त बती अ ययन व व ालय क
े ंथालय क
े मुख ी राजेश
क
ु मार म क
े लए अपनी क
ृ त ता करने क
े लए मेरे पास श द नह ह । उनक
े पता
ी शव साद म जी एवं उ ह ने इस यास म काफ सहायता क है। राजेश जी ने ही
मेरा प रचय भारती काशन क
े अ ध ाता ी आशुतोष पा डेय जी से करवाया । ी
आशुतोष पा डेय जी से मेरा स ब होना म अपना सौभा य समझता ँ। उनक
े नर तर
तकाज़ा करने क
े कारण म यह काय समय से पूण कर पाया। ऐसी पु तक क
े काशक
आशुतोष जी जैसे लोग ही हो सकते ह जनक
े लए काशन सफ वसाय नह है ब क
वह इस मा यम से देश का क याण भी करना चाहते ह ।
अंत म म परम पावन ी दलाई लामा जी को नमन करता ँ । स ूण मानवता क
े लए
नै तकता का ऐसा नेहपूण एवं धम नरपे ा यान उनक
े जैसा महापु ष ही कर सकता
है।
र व वमा
क टहार, बहार, भारत एवं रॉक लन, क
ै लफ़ो नया, संयु गणरा य अमे रका
अ याय १ - आधु नक समाज एवं मनु य क खुशी क तलाश
अ य लोग क तुलना म म आधु नक समाज का नवागंतुक ँ। य प म अपनी मातृभू म
को एक लंबे समय पूव 1959 म छोड़ चुका ँ, और य प भारत म एक शरणाथ क
अव ा मुझे वतमान समाज क
े काफ पास लायी है। अपने जीवन क
े आर क
े वष म
म बीसव शता द क
े यथाथ से अलग थलग ही रहा। क
ु छ हद तक इसक वजह रही है
मेरी दलाई लामा क
े प म नयु । म ब त छोट उ म भ ु बन गया था। इस से यह
भी दखता है क हम त बत क
े लोग को अपने देश को बाक नया से अलग-थलग
पहाड़ क ऊ
ँ ची ृंखला क
े पीछे रखने का नणय मेरी म गलत था।
[1]
क तु आज क
े दन म काफ या ा करता ँ और म इसे अपना सौभा य समझता ँ क म
लगातार नये लोग से मलता रहता ँ। इसक
े अ त र यह भी है क जीवन क
े अनेक े
क
े लोग मुझसे मलने आते ह। ब त से लोग ब त क उठाकर, क
ु छ ढूंढते ए, धमशाला
आते ह जो एक पवतीय पयटन ल है और वास क अव ध म मेरा नवास ल है। इन
लोग म ऐसे भी होते ह ज ह ने बड़े क सहे ह, क
ु छ लोग क
े माता पता का देहांत
हो चुका होता है; क
ु छ क
े प रवार क
े सद य अथवा म ने आ मह या क होती है; क
ु छ
कसर अथवा एड्स जैसी बीमा रय से त होते ह। इसक
े अलावा, वभावतः मेरे साथी
त बत क
े लोग होते ह जनक क ठनाइयाँ एवं परेशा नय क अपनी एक दा ताँ होती है।
भा य से, कई लोग क यह अवा त वक अपे ा होती है क मेरे पास क
ु छ अ त श है
या म क
ु छ वरदान दे सकता ँ। ले कन म सफ एक साधारण मनु य ँ। म यादा से यादा
यह कर सकता ँ क म उनक
े ःख म ह सा ले उनक मदद करने का य न कर सक
ूँ ।
[2]
जहाँ तक मेरा है, सारी नया एवं जीवन क
े अनेक े क
े ब त से लोग से मल कर
मुझे यह एहसास होता क हम सभी मनु य एक जैसे ह। यह स य है क म जतना यादा
नया को देखता ँ उतनी ही यह बात साफ दखती है क हमारी त जो भी हो, हम
समृ ह या गरीब, श त ह या अ श त, हमारी जा त, लग, धम जो भी हो, हम सभी
चाहते ह क हम खुश रह एवं हम ःख न हो। हमारे सारे सोच समझ कर कये गए काय
को और एक कार से अपनी वतमान त क सीमा क
े प र े य म हमारे जीवनयापन
क
े सारे नणय को हम इस वृहत क
े प म देख सकते ह जो हम सभी क
े सामने है,
“म क
ै से सुखी रह सकता ँ?”
[3]
मुझे लगता है क हम सुख क एक वृहत खोज म आशा क
े सहारे टक
े ए ह। हम जानते
ह भले हम इस बात को वीकार ना कर, इस बात क कोई न तता नह है क हमारे
भ व य क
े दन हमारे वतमान क तुलना म अ े ह गे। एक पुरानी त बती कहावत है
अगला दन या अगला ज म, हम कभी न त नह हो सकते क पहले या आयेगा।
ले कन हम ल बे समय तक जी वत रहने क आशा करते ह। हम आशा वत रहते ह क
हमारे इस काय अथवा उस काय से हम सुख ा त होगा। हम जो भी करते ह--न ही सफ
गत तर पर, सामा जक तर पर भी--उसे हम मौ लक आकां ा क
े तौर पर देख
सकते ह। वा तव म, हम सभी ाणी इस कामना क
े साझीदार ह। खुशी रहने क एवं ःख
से बचने क कामना या इ ा वै क है। यह हमारी क
ृ त म है। इस बात को यायो चत
ठहराने क
े लए कसी तक क ज रत नह है और यह सामा य त य से मा य होता है क
हम वाभा वक प से खुशी चाहते ह और यह उ चत भी है।
[4]
चाहे अमीर देश हो या गरीब देश, हम हर जगह बलक
ु ल ऐसा ही दखाई देता है। हर
जगह, हर स व साधन से, लोग अपने जीवन को सुधारने म लगे ए ह। फर भी आ य
से मुझे ऐसा लगता है क आ थक प से वक सत रा म रहने वाले लोग, तमाम
कारखान क
े साथ, क
ु छ मामल म पछड़े ए देश क तुलना म कम संतु , कम खुश, एवं
क
ु छ हद तक यादा क भोगते ह। सच तो यह है, जब हम अमीर क तुलना गरीब लोग
से करते ह, तो लगता है क जनक
े पास क
ु छ नह है, वा तव म वे सबसे कम च तत होते
ह, जब क वह शारी रक पीड़ा और क से सत रहते ह। जहाँ तक अमीर लोग का
है, उनम से क
ु छ लोग को अव य ही अपने धन का बु मानी से उपयोग करना आता है
अथात वला सता म ल त रहने क
े बजाय ज रतमंद लोग क सहायता क
े लए,
यादातर को ऐसा करना नह आता है। वे और धन जमा करने क
े च कर म ऐसे उलझे
रहते ह क उनक
े जीवन म कसी अ य चीज़ क
े लए ान ही नह होता है। वे ऐसे डूबे
रहते ह क वे अपने उन खुशी क
े सपन को ही भूल जाते ह जो उ ह समृ दान करते ।
इसक
े फल व प, भ व य म होने वाली घटना क आशंका और यादा धन क
े लालच म
फ
ं स कर वे हमेशा उ पी ड़त रहते ह एवं मान सक और भावा मक क से सत होते ह
भले ही बाहर से वे सफल एवं आरामदायक जीवन तीत करते ए दखते ह । इसका
माण यह है क हम आ थक प से वक सत देश क जनता म ापक प से तनाव,
असंतु , क
ुं ठा, अ न तता, मान सक वषाद, एवं नराशा मलती है। इसक
े अ त र
इस अंदर क पीड़ा का सीधा स बंध सदाचार क
े अथ एवं बु नयाद क
े बारे म बढ़ती ई
ा त से है।
[5]
मुझे इस वरोधाभास का बोध अ सर होता है जब म वदेश मण पर जाता ँ। ायः
ऐसा होता है क जब म कसी नये देश म प ँचता ँ, पहले तो सब क
ु छ काफ अ ा और
सु दर लगता है। म जनसे भी मलता ँ वे काफ सौहाद से पेश आते ह। कसी बात क
े
लए शकायत करने का कारण नह होता। ले कन दनानु दन जैसे म लोग से मलता ँ, म
लोग क सम या , उनक परेशा नय एवं चता क
े बारे म सुनता ँ। ऊपरी सतह क
े
नीचे अनेकानेक लोग अपने जीवन से असंतु एवं परेशान होते ह। उ ह अक
े लापन लगता
है जसक
े बाद मान सक वषाद आता है । इसका प रणाम है लेश का वातावरण, जो
वक सत रा का वशेष ल ण सा हो गया है।
[6]
शु म मुझे यह सब देख कर बड़ा आ य होता था। हालाँ क, मने कभी ऐसा नह सोचा
था क सफ भौ तक धन से सभी ख का नवारण हो सकता है, त बत, जो भौ तक प
से सवदा गरीब रहा है, म रहकर म वीकार करता ँ क म सोचता था क समृ ने मनु य
क पीड़ा को कम करने म यादा योगदान दया होगा, जो वा तव म सही नह नकला। मेरी
आशा थी क शारी रक क ठनाइय क
े कम होने से, जैसा क हर वक सत रा म रहने
वाले यादातर लोग क
े लए वा त वकता है, सुख क ा त आसानी से होती होगी,
ब न बत उन लोग क
े जो काफ वकट प र त म रहते ह। इसक
े बजाय, ऐसा लगता है
क
े व ान एवम् तं क अ त ग त से सफ सां यक य सुधार से यादा क
ु छ नह आया
है। कई उदाहरण म ग त का मतलब सफ यह आ क शहर म शानदार भवन और
उनक
े बीच चलने वाले वाहन क सं या बढ़ है। यक नन, क
ु छ तरह क
े क म कमी ई
है, खासकर क
े क
ु छ ा धयाँ कम ई ह। ले कन मुझे लगता है क सब मलाजुला कर
हमारा ःख कम नह आ है।
[7]
इस स दभ म मुझे अपनी शु क प म क या ा क एक बात अ तरह याद है। म
एक ब त समृ प रवार का मेहमान था जो एक बड़े वैभवशाली घर म रहते थे। हर
काफ सौ य और वन था। हर क हर ज रत क
े लए नौकर तैनात थे और म
सोचने लगा क यही सही माण है क धन खुशी का ोत हो सकता है। मेरे मेजबान
वाकई तनाव मु एवं आ म व ासी दखते थे। ले कन जब मने उनक
े नानागार म
आलमारी क
े थोड़े से खुले ए दरवाजे से न द एवं दमाग को शांत करने वाली दवाइय क
कतार देखी, तब मुझे इस बात का जोर से आभास आ क जो बाहर से दखता है और जो
अंदर क स ाई है, उनक
े बीच अ सर काफ बड़ी खाई होती है।
[8]
यह वरोधाभास पूरे प म क
े रा म प से व मान है जनम भौ तक संप ता क
े
रहते ए आंत रक ःख--या जसे हम मान सक अथवा भावा मक ःख कह सकते ह--
इतना यादा पाया जाता है। वा तव म, यह इतना ापक है क हम संदेह कर सकते ह क
पा ा य स यता म क
ु छ ऐसी बात है जससे वहाँ रहने वाले लोग क
े ऐसे क म होने क
वृ है? म इसम संदेह करता ँ। इसम कई बाते ह। है क भौ तक ग त ही का
इसम थोड़ा हाथ है। हम यह भी कह सकते ह क आधु नक समाज क
े बढ़ते शहरीकरण
क वजह से यादा तादाद म लोग एक सरे क
े काफ पास पास रहने लगे ह। इस स दभ
म यह सो चये क हम एक सरे पर नभर होने क
े बजाय, आज, जहाँ तक स व होता है,
हम मशीन अथवा बाहरी मदद का सहारा लेते ह। जब क पहले कसान फसल काटने म
मदद क
े लए अपने प रवार क
े सद य को बुला लेते थे, आज क
े दन वे टेलीफोन कर
कसी ठे क
े दार को बुला लेते ह। वे पाते ह क हमारा आधु नक जीवन ऐसे सु नयो जत है
क यह सर पर कम से कम सीधी नभरता क मांग करता है। कमोबेश ापक
मह वाकां ा यही लगती है क हर क
े पास अपना घर हो, अपनी कार हो, अपना
क
ं यूटर हो, ता क हर जहाँ तक स व हो आ म नभर हो जाए। यह वाभा वक है
और आसानी से समझ म आ जाती है। व ान एवं तकनीक ग त से जो हम वाय ता
मली है, उसक
े कई फायदे ह। वा तव म वतमान समय म यह संभव है क हम पहले क
अपे ा कह अ धक आ म नभर हो सकते ह । ले कन इस ग त क
े साथ ऐसी
मान सकता भी पैदा ई है क मेरा भ व य मेरे पड़ोसी पर नह ब क मेरी नौकरी पर, ब त
यादा आ तो मेरे नयो ा पर नभर है। यह हम यह मानने क
े लए ो साहन देती है क
सरे लोग हमारी खुशी क
े लए ज री नह ह और सर क खुशी हमारे लए कोई मायने
नह रखती।
[9]
मेरे वचार म हम लोग ने ऐसा समाज बना लया है, जसम लोग क
े लए एक सरे क
ओर साधारण नेह दखाना भी क ठन एवं क ठनतर हो गया है। सामू हकता एवं अपनेपन
क जगह, जो कम समृ वाले समाज (जो यादातर ामीण होते ह ) का आ त करने
वाला वभाव हम पाते ह, समृ देश म काफ अक
े लापन और उदासीनता पाते ह। करोड़
लोग क
े एक सरे क
े बलक
ु ल पास पास रहने क
े बावजूद, देखने म आता है क ब त से
लोग क
े लए, वशेषकर बूढ़े लोग क
े लए, उनसे बात करने वाला, उनक
े क
ु े ब लय
क
े अलावा कोई नह है। मुझे अ सर आधु नक समाज एक वशाल खुद-ब-खुद चलने
वाली मशीन क तरह लगता है। बजाय इसक
े क एक मानव इसका नयं ण करे, हर
मनु य इसका अदना सा मह वहीन ह सा बन गया है, जसक
े पास मशीन क
े साथ-साथ
चलने क
े अलावा और कोई चारा नह है।
[10]
वतमान समय म वकास और आ थक वकास क बात, जो लोग क
े अंदर त धा एवं
ई या को बढ़ावा देती है, ने इस सम या को और भी वकराल बना दया है। इसक
े साथ
आती है दखावे को बनाये रखने क ज रत--जो खुद ही सम या, तनाव, एवं ःख का बड़ा
कारण है। फर भी मान सक एवम् भावा मक क जो हम पा ा य स यता म ा त पाते
ह, एक सां क
ृ तक खामी से यादा मूलभूत मानवीय वृ त को त ब बत करता है।
वा तव म मने ऐसे आंत रक क पा ा य रा से बाहर भी देखा है। द ण-पूव ए शया क
े
कई ह स म ऐसा देखा गया है क जैसे जैसे लोग क
े पास संप बढ़ है, पार रक
वचार प तय का लोग पर भाव कम हो रहा है। इसक
े साथ हम पाते ह क प मी
रा म अव त लेश से मलते जुलते ल ण यहाँ भी उभर रहे ह। यह सुझाव देता है क
यह स ावना हम सभी म व मान है, जैसे शारी रक ा धयां अपने प रवेश को
त ब बत करती ह वैसे ही मान सक एवं भावना से संबं धत लेश भी खास प र त क
े
स दभ म उ प होते ह। इस कार से हम द ण, अ वक सत, अथवा “तृतीय व ” क
े
रा म वे सम याएँ पाते ह जो यादातर उसी नया क
े उसी ह से तक सी मत होती ह,
जैसे व ता का अभाव। वक सत देश म हम गंदे पानी से पैदा होने वाली बीमारी क
े
बदले, तनाव संबं धत रोग अ धक पाते ह। इनका संक
े त यह है और ऐसा मानने का बल
तक है क बाहरी ग त पर अ य धक यान दये जाने एवं आधु नक समाज म ा त ःख,
चता , और असंतोष क
े बीच एक गहरा स ब है।
[11]
यह सुनने म एक नराशावाद मू यांकन लग सकता है। ले कन जबतक हम लोग अपनी
सम या क
े प रमाण एवं क
ृ त को वीकार नह करगे, हमलोग उनका सामना करने क
शु आत भी नह कर सकते।
[12]
है क आधु नक समाज क
े भौ तक वकास से उ प तृ णा का मु य कारण व ान
एवं तकनीक क सफलता ही है। अब मनु य क
े इन यास क शंसनीय बात यह है क
ये अ वल ब संतु देते ह। यह ाथना क तरह नह ह जनका प रणाम यादातर
अ य होता है--वह भी जब ाथनाएँ सफल होती ह । हम फल से भा वत होते ह। इससे
सामा य बात और या हो सकती है? भा य से, यह तृ णा हम यह मानने क
े लए
ो सा हत करती है क खुशी क क
ुं जी एक तरफ तो भौ तक समृ म है, एवं सरी तरफ
उस श म जो ान से ा त होती है। इस सब म यह साफ है क जो भी इस बात पर
सावधानीपूवक गौर करता है, पाता है क पहली वाली बात अपने आप ही खुशी नह दे
सकती है और सरी वाली बात का भाव उतना यादा नह है। स ाई तो यह है क
ान अपने आप वह खुशी नह दे सकता जो आंत रक वकास से आती है और जो बाहरी
चीज पर नभर नह करती। वा तव म, बाहरी त य क
े बारे म हमारा व तृत ान एक
ब त बड़ी सफलता है, क तु इसी म सी मत रह जाने क चाह हम खुशी देने क
े बजाय
वा तव म काफ खतरनाक हो सकती है। यह हम मानव क
े अनुभव क
े एक वृहत स य से
र कर सकती है, खास करक
े हमारी पार रक नभरता क
े बोध से।
[13]
हम यह भी समझना चा हये क जब हम व ान क बाहरी उपल य पर ब त यादा
नभर होते ह तब इसका प रणाम या होता है। उदाहरण क
े लए, जैसे जैसे हम पर धम
का भाव कम होने लगता है, वैसे वैसे अपने आचरण क
े को लेकर हमारे म त क म
एक म क त बढ़ती जाती है। पहले क
े दन म धम एवं नै तकता क
े बीच म काफ
घ न स ब था। आज क
े दन कई लोग ऐसा मानकर क व ान ने धम क
े अ त व को
नकार दया है, यह पूवधारणा करते ह क आ या मक स ा का कोई सु न त माण नह
है और नै तकता को सफ एक गत नणय मा होना चा हए। जब क पूव म वै ा नक
एवं दाश नक लोग एक ऐसी ठोस न व को ढूंढने क बड़ी ज रत समझते थे जस पर
अप रवतनशील नयम एवं परम स य क ापना क जा सक
े । आज क
े दन ऐसी खोज
को बेकार समझा जाता है। इसक वजह से अब हम एक वपरीत, अ तवाद दशा म चले
गए ह जहां पर अंततः क
ु छ नह बचता है, और जहां स य क
े वचार पर ही उठने लगता
है। यह त हम क
े वल एक अ व ा क ओर ही ले जा सकती है।
[14]
ऐसा कह कर मेरा उ े य वै ा नक उ ोग क आलोचना करना नह है। वै ा नक से मल
कर मने ब त क
ु छ सीखा है और म उनसे वातालाप करने म कोई सम या नह देखता ँ,
चाहे उनका कोण अ तवाद भौ तकवाद वाला ही य न हो। वा तव म जहाँ तक मुझे
याद है, म व ान क
े प र ान से हमेशा मं मु ध रहा ँ। जब म छोटा ब ा था, धा मक एवं
दाश नक पढ़ाई से भी यादा, म दलाई लामा क
े ी म गृह क
े भंडार घर म पड़े ए पुराने
फ म ोजे टर को चलाने क
े बारे म जानने का अ धक इ ुक था। मेरी चता क
े वल इस
बात को लेकर है क हम लोग म व ान क सीमा को नजरंदाज करने क वृ है।
धम को ान क
े परम ोत क
े ान से हटाने क
े यास म व ान वयं समाज म एक अ य
धम जैसा दखने लगता है। इसक
े साथ फर वैसा ही खतरा सामने आता है जब व ान क
े
क
ु छ अनुयायी इसक
े स ांत पर आँख मूँद कर व ास करने लग जाते ह तथा सरे
वचार क तरफ अस ह णु हो जाते ह। व ान क अ त उपल य को देख कर, धम का
व ान ारा व ा पत होना आ य क बात नह लगती है। आदमी को चाँद पर प ँचाने
क साम य से कौन भा वत नह होगा? फर भी यह सच है क अगर, उदाहरण क
े लए,
हम एक परमाणु वै ा नक क
े पास जाएँ और पूछ, म एक नै तक वधा से गुजर रहा ँ,
या आप बता सकते ह क मुझे या करना चा हए, तो वह क
े वल अपना सर हला देगा
और हम एक जवाब क
े लए कह और देखने का सुझाव देगा। सामा य प से, वै ा नक
इस संबंध म एक वक ल से कसी बेहतर त म नह है। व ान और कानून, दोन ही
हम अपने काय क
े स ा वत प रणाम क भ व यवाणी करने म मदद कर सकते ह, क तु
दोन म से कोई भी हम यह नह बता सकता क हम नै तक प से क
ै से काय कर। इसक
े
अलावा, हम वै ा नक अनुस ान क खुद क सीमा को पहचानने क ज रत है।
उदाहरण क
े लए, हालाँ क हम स दय से मानव क चेतना क
े बारे म पता है, और यह पूरे
इ तहास म जांच का वषय रही है, वै ा नक क
े सबसे अ े यास क
े बावजूद, वे अभी
भी यह नह समझ सक
े ह क वा तव म यह या है, यह य मौजूद है, यह क
ै से काय
करती है और इसक मूलभूत क
ृ त या है। न तो व ान हम यह बता सकता है क
चेतना का मूलभूत कारण या है, न ही यह क इसका भाव या है। न य ही चेतना
ऐसे त व क
े वग म आती है जसका कोई प, , या रंग नह है। यह कसी बाहरी
मा यम से जांच करने क
े लायक नह ह। ले कन इसका मतलब यह नह है क इसका
अ त व नह है, सफ इतना है क व ान इसे ढूंढने म असफल रहा है।
[15]
तब या इस लए क वै ा नक जांच नाकाम रही है, हम इसका प र याग कर देना चा हए?
बलक
ु ल नह । न ही मेरा सुझाव समृ क
े ल य को नकारने का है। हमारी क
ृ त ही ऐसी
है क हमारे शारी रक एवं भौ तक अनुभव हमारे जीवन म अहम भू मका नभाते ह।
प से व ान एवम तकनीक उपल यां हमारी बेहतर एवं आरामदायक अ त व क
कामना को दशाती ह। यह ब त अ ा है। कौन आधु नक च क सा क ग त क सराहना
करने से वयं को रोक सकता है?
[16]
इसक
े साथ ही, म सोचता ँ यह न त प से स य है क पारंप रक ामीण समुदाय क
े
सद य क
े पास आधु नक शहर म बसे लोग क तुलना म स ाव और शां त का अ धक
आनंद है। उदाहरण क
े लए, उ री भारत क
े ी त े म ानीय लोग म यह रवाज है
क वे बाहर जाने क
े समय अपने घर पर ताला नह लगाते । ऐसी आशा क जाती है क घर
को खाली पाने वाले आगंतुक मेजबान का इंतजार करते समय घर क
े अंदर जा कर क
ु छ खा
और पी सकते ह। पहले क
े दन त बत म भी ऐसा पाया जाता था। ऐसा नह क ऐसे
ान पर अपराध क घटनाएं नह होती थी। त बत क
े अ त मण क
े पहले ऐसी घटनाएं
कभी कभी होती थी, और जब ऐसा होता था, लोग आ यच कत होते थे। ऐसी घटनाएं
वरले और असामा य होती थी। इसक
े वपरीत, क
ु छ आधु नक शहर म अगर एक दन भी
ह या न हो तो यह असाधारण बात होती है। शहरीकरण क
े साथ आपसी झगड़े बढ़े ह।
[17]
हम पुरानी जीवन शैली क यादा शंसा करने म सावधानी बरतनी चा हए। अ वक सत
गाँव म रहने वाले समुदाय क
े बीच गहरे सहयोग का कारण स ावना से यादा उनक
आव यकता थी। लोग को यह मालूम था क पार रक सहयोग क
े अभाव म जीवन
यादा क द होगा। इसक
े साथ, जसे हम संतु समझते ह शायद उसका मु य कारण
अ ानता हो। जीवन यापन का कोई सरा रा ता भी है, यह लोग शायद न समझ सकते ह
और न ही शायद इसक कोई क पना ही कर सकते ह । अगर वो ऐसा कर पाते काफ
स व था तो क वे ऐसे जीवन को उ साह से अपनाते। इस लए चुनौती हमारे सामने यह है
क हम ऐसे उपाय ढूंढ़ जनसे हम नया क इस सह ा द क
े आर क
े भौ तक वकास
का पूरा फायदा उठाते ए उसी सौहा ता एवं शां त का आनंद ले सक, जो पार रक
समाज क
े लोग को उपल है। क
ु छ और कहने का अथ तो यही होगा क अ वक सत
समाज म रहने वाले लोग अपने जीवन तर को सुधारने क कोई को शश नह कर।
उदाहरण क
े लए, म एकदम न त मत ँ क त बत क खानाबदोश जा त म यादातर
लोग जाड़ क
े लए आधु नक गरम कपड़े, खाना बनाने क
े लए बना धुंएँ वाला धन,
आधु नक दवाइयाँ, एवं अपने त बू म उठा ले जाने वाले टेली वजन को पा कर खुश ह गे।
म तो बलक
ु ल ऐसा नह चा ंगा क
े वे इन सु वधा से वं चत रह जाएँ।
[18]
आधु नक समाज, अपनी सारी सु वधा एवं दोष क
े साथ, अन गनत कारण एवं
प र तय क वजह से गट आ है। ऐसा सोचना गलत होगा क सफ भौ तक वकास
को याग कर हम अपनी सभी सम या का समाधान कर लगे। ऐसा करना उसक
े
मूलभूत कारण को अनदेखा करना होगा। इसक
े अलावा, आधु नक नया म भी ब त
क
ु छ ऐसा है, जससे हम आशा वत हो सकते ह।
[19]
सबसे वक सत रा म भी अन गनत ऐसे लोग ह जो सर क
े हत क चता म स य ह।
अपने देश म ही, मेरी जानकारी म ब त से ऐसे लोग ह जनक खुद क अव ा ब त ठ क
नह होते ए भी उ ह ने हम त बत क
े लोग क
े त बड़े उपकार कये ह। उदाहरण क
े तौर
पर, हमारे ब को उन भारतीय श क क नः वाथ सेवा से ब त फायदा आ है,
जनम से कई को ब को पढ़ाने क
े लए काफ क ठन अव ा म अपने प रवार से र
रहना पड़ा है। बड़े पैमाने पर, हम व म मौ लक मानवा धकार क बढ़ती सराहना को भी
यान म रख सकते ह। मेरी धारणा है क यह एक ब त अ ग त है। जस तरह से
अंतरा ीय समाज ाक
ृ तक आपदा क
े उ र म शी ा तशी पी ड़त लोग क मदद
करता है वह इस आधु नक व क
े लए एक शंसनीय बात है। ऐसे ही इस बात क बढ़ती
ई समझदारी क हम अपने ाक
ृ तक पयावरण क
े साथ बना इसक
े प रणाम भुगते
लगातार यादती नह कर सकते ह, एक आशा का कारण है। इसक
े अलावा, मेरा मानना है
क बढ़ते ए संचार क वजह से शायद लोग म मानव क व वधता को वीकार करने क
मता म वृ ई है, और स ूण व म आज सा रता एवं श ा क
े मानक पहले से
कह यादा है। इन सभी सकारा मक वकास क
े काय को म हम मनु य क मता क
े
प म देखता ँ।
[20]
हाल म मुझे इं लड म रानी माँ (रानी ए लजाबेथ) से मलने का मौका मला। वह मेरे पूरे
जीवन म एक प र चत रह ह, इस लए उनसे मल कर म ब त खुश आ। ले कन
सबसे उ सा हत करने वाली बात यह लगी क, एक ऐसी ी, जनक आयु बीसव
शता द क
े ही बराबर है, क
े वचार म आजकल क
े लोग सर क
े बारे म काफ जाग क
ह, ब न बत उस समय क
े जब वह युवती थ । उ ह ने कहा क उन दन लोग यादातर
अपने ही रा क भलाई क सोचते थे, जब क वतमान म लोग अ य देश म रहने वाले
लोग क
े हत क
े बारे म काफ यादा चता करने लगे ह। जब मने उनसे पूछा क या वह
भ व य को लेकर आशावाद ह, उ ह ने बना हचक क
े हाँ म उ र दया।
[21]
अव य ही यह वा त वकता है क वतमान समाज म हम नतांत नकारा मक वाह क
तरफ संक
े त कर सकते ह। इसम संदेह का कोई कारण नह है क ह या, हसा,एवं
बला कार क घटना क सं या म हर साल बढ़ो री हो रही है। इसक
े अ त र , हम
नर तर समाज एवम् प रवार म हो रहे अ याचार, सामा जक शोषण, युवा लोग म बढती
म दरा एवं अ य मादक क लत, एवं अ धका धक सं या म वैवा हक स ब क
े
संबंध व ेद क
े कारण ब पर हो रहे भाव क
े बारे म सुनते ह । यहाँ तक क हमारा
छोटा सा शरणाथ समुदाय भी इससे नह बच सका है। उदाहरण क
े लए जब क पूव म
त बत म आ मह या क घटनाएँ नह क
े बराबर थ , क
ु छ समय से हमारे शरणाथ समाज
म भी एक दो आ मह या क खद घटनाएँ ई ह। ऐसे ही जब क पछली पीढ़ म त बत
क
े युवक क
े बीच नशे क लत नह थी, अब क
ु छ नशे क घटनाएँ भी देखने को मलती ह,
जो अ धकतर उन ान पर आधु नक शहरी जीवन क
े भाव क
े कारण उ प ई ह।
[22]
फर भी, रोग, वृ ाव ा, एवं मृ यु क
े क को छोड़कर इनम से कोई भी सम या वभाव
से अप रहाय नह है। न ही इनका कारण ान का अभाव है। जब हम इन पर यानपूवक
वचार करते ह तो पाते ह क ये सभी नै तकता क सम याएं ह। इनम से हर एक--सही या
गलत या है, सकारा मक या नकारा मक या है, तथा उ चत या अनु चत या है--क
समझ को दशाती ह। ले कन इसक
े आगे हम एक मूलभूत त य क तरफ इशारा कर सकते
ह जो है एक ऐसी चीज़ क अवहेलना जसे म आंत रक आयाम कहता ँ।
[23]
मेरा इससे या ता पय है? मेरी समझ क
े अनुसार भौ तक साम य पर ब त यादा यान
देना हमारी इस धारणा को दशाता है क हम जो खरीद सकते ह, वह अपने आप
हम ऐसी सारी संतु दे सकता है जसक हम आव यकता है। ले कन वा तव म
वभावानुसार भौ तक व तुएँ हम उतना ही सुख दान कर सकती ह, जतना इं य से
ा है। अगर ऐसा होता क हम मनु य पशु से भ नह ह तो फर यह ठ क था।
ले कन हमारी जा त क ज टलता को लेकर, वशेषकर इस स य को देखने से क हमारे
अंदर वचार एवं भावना क
े साथ साथ क पना एवम व ेषण करने क भी मता है, यह
हो जाता है क हमारी आव यकताएँ इ य सीमा से कह परे है। जन लोग क
मौ लक आव यकताएँ पूरी हो चुक ह, उनम ा त तनाव, चता, ाक
ु लता, अ न तता,
एवं नराशा क ब लता इसका संक
े त है। हमारी दोन कार क सम याएँ, ज ह हम
बाहर से अनुभव करते ह जैसे यु , अपराध, एवं हसा एवं वे ज ह हम आंत रक प से
भुगतते ह जैसे हमारे भावा मक एवं मान सक ःख, उन सभी का समाधान तब तक स व
नह होगा जब तक हम इस भूल को नह सुधार लेते ह। यही कारण है क पछले सौ या
उससे भी अ धक वष क महान ां तयाँ-- जातं , उदारवाद, समाजवाद --सभी अ त
वचार क
े बावजूद व यापी क याण दान करने म असफल रही ह, जैसी क उनसे
आशा क जाती थी। न य ही एक नवीन ा त क आव यकता है। ले कन वह ां त
राजनै तक-आ थक नह होगी, यहाँ तक क ौ ो गक य भी नह होगी। पछली सद म
हम इसका काफ अनुभव आ क मनु य क ग त क
े लए पूणतः भौ तक माग पया त
नह है। म आपक
े सम एक आ या मक ां त का ताव रखना चाहता ँ।
[24]
मनन यो य
१. लेखक का उन लोग क
े बारे म या राय है जनक
े पास भौ तक समृ है तथा जो
आराम वाली ज़ दगी जीते दखाई देते ह?
२ लेखक क धारणा म धम एवं नै तकता म या स ब है?
३. लेखक क धारणा म “नै तक सम या” का या फल होता है?
अ याय २ - न जा न रह य
तो या आ या मक ा त क बात कर आ खर म एक अपनी सम या क
े धा मक
समाधान क बात कर रहा ँ? एक ऐसा मनु य जसक आयु स र साल क
े पास है, मने
इतना अनुभव अव य ा त कर लया है क म पूण व ास क
े साथ कह सकता ँ क
भगवान बु क श ा मनु य क
े लए ासं गक और उपयोगी है। अगर कोई इस
श ा को वहार म लाता है तो यह न त है क ना सफ वह अपना क याण करेगा
ब क सरे लोग भी इससे लाभा वत ह गे। नया भर क
े व भ लोग से मलकर मुझे
यह समझने म सहायता मली है क नया म कई धम ह, कई सं क
ृ तयां ह , जो लेाग
को एक सकारा मक एवम् संतोषजनक जीवनयापन करने क दशा म ले जाने क
े लये मेरी
सं क
ृ त से कसी कार से कम नह है। इसक
े अ त र म इस नतीजे पर प ंचा ं क
मनु य कसी धम म आ ा रखता है या नह इससे यादा फक नह पड़ता है। सबसे
मह वपूण बात यह है क वह अ ा मनु य हो।
[1]
म यह बात इस त य को वीकार करते ए कहता ँ क इस धरती क
े छह सौ करोड़ लोग
भले इस या उस धम को मानने का दावा करते ह , क तु धम का लोग क ज दगी पर
भाव काफ कम है, खास कर क
े वक सत रा म । मुझे स देह है क इस नया म
शायद एक सौ करोड़ भी ऐसे ह ज ह म सम पत धा मक अनु ाता कह सक
ूं , जो अपने
दै नक जीवन म धम क
े स ा त एवम् नयम का पालन न ा पूवक करते ह । इस अथ म
बाक क
े लोग धम का पालन नह करने वाले लोग म से ह । जो सम पत अनु ाता ह, वे
ब त से धम का पालन करते ह। इससे यह बात साफ होती है क हमारी व वधता क
े
कारण कोई एक धम सारे मनु य क
े लये पया त नह हो सकता है। हम यह न कष भी
नकाल सकते ह क मनु य बना कसी धम का सहारा लये भी अपना जीवनयापन भली
भां त कर सकता है।
[2]
ऐसी बात एक धा मक क
े मुख से अटपट लग सकती ह, ले कन दलाई लामा से
थम म एक त बती ं, एवम् त बती होने क
े पूव म एक मनु य ँ । एक तरफ दलाई
लामा क
े प म मेरे ऊपर त बत क
े लोग क
े लये खास ज मेदारी है, सरी ओर एक
भ ु क
े प म सभी धम क
े बीच म स ावना बढ़ाने क भी मेरी वशेष ज मेदारी है।
इसक
े साथ एक मनु य होने क
े नाते भी मुझ पर पूरे मानव प रवार क एक और भी बड़ी
ज मेदारी है, जो वा तव म हम सभी का उ रदा य व है। य क ब सं यक लोग कसी
धम का पालन नह करते ह, मेरा उ े य एक ऐसा रा ता ढूंढने का है, जससे म कसी
धा मक आ ा का सहारा लए बना सारी मानवता का क याण कर सक
ूँ ।
[3]
वा तव म मेरा व ास है क अगर हम लोग व क
े मुख धम को बड़े नज रये से देख तो
हम पायगे क उन सभी - बौ , ईसाई, ह , इ लाम, य द , सख, पारसी एवं अ य - का
ल य मनु य को एक सतत सुख क ा त करने म सहायता करना है। उसक
े साथ मेरे
वचार से उनम से हर एक इस ल य को ा त कराने म स म है । इन प र तय म हम
यह कह सकते ह क धम क ( जन सबम एक ही आधारभूत मू य ह) व वधता अभी
एवं उपयोगी है।
[4]
ऐसा नह है क म हमेशा ऐसा ही सोचता था। जब म छोटा था और त बत म रहता था, म
अपने मन म सोचता था क बौ धम सबसे उ म माग है। म खुद से कहता था क कतना
सुंदर होगा अगर पूरा व धमा त रत हो कर बौ धम का पालन करने लगे। ले कन यह
मेरी अ ानता थी। हम त बती लोग ने अव य ही अ य धम क
े बारे म सुना था। ले कन
उनक
े बारे म हम जो भी थोड़ा ब त जानते थे, उसका आधार बौ धम क
े ही त बती
भाषा म अनू दत तीय ोत थे। वाभा वक प से उनका यान उन त य पर था, जन
पर बौ कोण से वाद ववाद संभव था। ऐसा नह था क बौ व ान जानबूझकर कर
अपने पूवप का उपहास करना चाहते थे। वा तव म इससे यह बात द शत होती है क
उनक
े लये उन त य को स बो धत करने क आव यकता नह थी, जन पर उनक
े बीच म
कोई ववाद नह था य क जन शा पर चचा होती थी वे भारत म, जहाँ उन क रचना
यी थी, पूण प से उपल थे। भा य से त बत म यह बात नह थी। अ य शा क
े
अनुवाद त बती भाषा म उपल नह थे।
[5]
जैसे जैसे म बड़ा आ, धीरे धीरे म अ य धम क
े बारे म जानने लगा। खासकर क
े वास म
जाने क
े बाद म ऐसे लोग से मलने लगा, जो अपना जीवन व भ धम को सम पत कर-
क
ु छ लोग ाथना करते ए, क
ु छ यान करते ए, क
ु छ लोग और क सेवा करते ए,
अपनी अपनी पर रा का ग ीर अनुभव ा त कर चुक
े थे। ऐसे गत संपक से
मुझे यह सहायता मली क म सारी मुख पर रा क
े वृहत मू य से अवगत आ
जससे मुझम उनक
े लये गहरे आदर क भावना पैदा ई। मेरे लये बौ धम सबसे
मह वपूण माग है। यह मेरे व से मेल खाता है। ले कन इसका मतलब यह नह है क
म इसे सब क
े लए सव म माग मानता ँ, उससे भी यादा न ही म यह सोचता ँ क हर
को कसी न कसी धम का अनुयायी होना चा हए।
[6]
अव य ही एक त बती एवं एक भ ु क
े प म मेरा पालन पोषण, मेरी श ा, बौ धम क
े
स ांत एवं नयम तथा अनुशीलन क
े अनुसार ई है। इस लये म इस बात को नकार नह
सकता ँ क मेरी सोच पर भगवान बु क
े अनुयायी होने का भाव नह पड़ा है। फर भी
इस पु तक म मेरा यास यह है क म अपने धम क औपचा रक सीमा क
े बाहर जा कर
लोग तक प ंचूँ। म यह दखाना चाहता ँ क नया म वाकई ऐसे वै ीय नै तक स ांत
ह, जो हर मनु य को वही सुख देने म सफल हो सकते ह, जनक हम सभी कामना करते
ह। क
ु छ लोग यह स देह कर सकते है क म परो प से बौ धम क
े चार का यास कर
रहा ँ । जहाँ यह मेरे लए नकारना मु कल है, ले कन यह स य नह है।
[7]
वा तव म मेरा व ास है क धम एवं आ या मकता म गंभीर अंतर है। मेरा धम क
े बारे म
यह सोचना है क इसका स ब एक या सरे धा मक परंपरा क
े मु क
े दावे म व ास
से है, जो कसी प म वग या नवाण जैसी अभौ तक अथवा अलौ कक त य को
वीकार करता है तथा इसक
े साथ म जुड़ी ई ह धा मक श ा, ढ़याँ, री तयां, ाथनाएँ
इ या द। मेरा मानना है क आ या मकता का संबंध मै ी, क णा, धैय, सहनशीलता,
माशीलता, संतु , उ रदा य व क भावना, एवं सौहा ता क भावना जैसे मानवीय
गुण से है, जनसे वयं क
े साथ अ य लोग को भी सुख क ा त होती है। री तयां,
ाथनाएं, नवाण एवं मु क बात धम वशेष म व ास से स बं धत ह, पर तु मै ी एवं
क णा जैसे आंत रक गुण का धम से स ब होने क आव यकता नह है। इस लए
इसका कोई कारण नह है क इन गुण को उ तर तक बना कसी धा मक या
अलौ कक व ास का सहारा लये अपने अंदर बढ़ाने का यास नह करे। इस लए म कभी
कभी कहता ँ क धम एक ऐसी चीज है, जसक
े बना शायद हम अपना काम चला
सकते है। ले कन इन मूल आ या मक गुण क
े बना नह ।
[8]
जो कसी धम क
े अनुयायी ह, वाभा वक प से ऐसा कह सकते ह क ये गुण धम को
स े मन से पालन करने का फल ह और इस लए इन आंत रक गुण को वक सत करना
धम से ही संभव है, जसे हम आ या मक यास कह सकते ह। ले कन हम इस त य को
प से समझना चा हए। धम क
े अवल बी होने पर आ या मक अनुशीलन आव यक
है। फर भी ऐसा लगता है क धम क
े अनुया यय एवं धम क
े अ व ासी, दोन म इस बात
को लेकर असहम त रहती है क वा तव म इसका मतलब या है। जन गुण क ा या
मने “आ या मक” प से क उनको संयु प से प रल त कर क
ु छ हद तक अ य
लोग क
े हत क च ता करने को कह सकता ँ । त बती भाषा म हम इसे शेन फ
े न क
सेम कहते ह, जसका अथ है सर का क याण करने क कामना । जब हम इनक
े बारे म
सोचते ह तो पाते ह क इन पूव नै तक गुण क प रभाषा म परो प से सर क
े
क याण क भावना व मान है। इससे भी यादा जो क णामय, नेहशील,
धैयवान, सहनशील, माशील आ द ह वे क
ु छ हद तक अपने काय का और पर होने वाले
भाव को देखते ए अपने वहार क व ा करते ह। अतः आ या मक अनुशीलन क
प रभाषा एक ओर यह होती है क हमारे काय और क
े हत को यान म रखते ए ह एवम
सरी ओर यह हम तब करता है क हम अपने म वह प रवतन लाय जससे ऐसा
करना हमारे लये सहज हो जाए। आ या मक अनुशीलन क प रभाषा अ य कसी कार
से करना थ है।
[9]
इस कार मेरी आ या मक ां त का आ ान धा मक ां त का आ ान नह है। ना ही यह
कसी पारलौ कक जीवन क
े बारे म है और कोई जा या रह य तो कतई नह है। ब क
यह वयं क
े अंदर एक ां तकारी प रवतन का आ ान है, जो हम सदैव वाथ पूण चतन
म ल त रहने क आदत से र करे । जन ा णय क
े वृहत समाज से हम जुड़े ए ह,
उसक
े त यह हमारा यान मोड़ने का आ ान है एवं अपने हत क
े साथ और क
े हत का
भी यान रखने का आ ान है।
[10]
यहां पर पाठकगण यह आप कर सकते ह क च र म ऐसा प रवतन न त प से
वांछनीय है एवं यह भी अ ा है क लोग अपने अंदर क णा एवं नेह को वक सत कर
परंतु आधु नक व क व वध एवम बड़ी सम या को हल करने म आ या मक ां त
शायद ही पया त हो। इसक
े अलावा यह भी तक दया जा सकता है क सम याएं जैसे
घरेलू हसा, नशे एवं शराब क आदत, प रवार का बखरना आ द को समझने का उ म
उपाय यह है क हम उ ह एक एक कर समझ एवं उनका नदान ढूंढ। फर भी जब हम
ऐसा देखते ह क ऐसी सम या का समाधान इससे हो सकता है क लोग एक सरे से
यादा नेह कर और अ य जीव क
े त यादा क णा रख - भले ही यह बात कतनी भी
असंभव लगे - हम उ ह आ या मक सम या क
े प म देख सकते ह जनका समाधान
आ या मक यास से हो सकता है। इसका मतलब यह नह है क हम सफ आ या मक
मू य का वकास कर और ये सम याएं वतः गायब हो जायगी। इसक
े वपरीत ऐसी
येक सम या क
े लये वशेष समाधान क आव यकता है। ले कन हम पाते ह क
आ या मक आयाम क अवहेलना करने से हम इन सम या क
े ायी समाधान क
आशा नह कर सकते ह।
[11]
जरा वचार कर क ऐसा य है। बुरी खबर मलना जीवन क स ाई है। जब भी हम
अखबार उठाते ह या टेलीवीजन अथवा रे डयो लगाते ह, हम अनेक खद खबर का
सामना करना पड़ता है। एक दन भी ऐसा नह जाता है जब इस नया म कह पर कोई
ऐसी घटना न ई हो, जसे सभी एक मत से भा यपूण मानते ह, भले हम लोग कह क
े
रहने वाले ह , भले हमारा जीवनदशन कोई हो, कम और यादा, हम सर का ख
सुनकर खी होते ह।
[12]
इन घटना को दो ापक वभाग म बांटा जा सकता है। ऐसी घटनाएं जो मु यतः
ाक
ृ तक कारण से होती ह - भूक , सूखा, बाढ़ इ या द, एवं ऐसी जो मानव क
ृ त ह।
यु , अपराध, हर तरह क हसा, ाचार, गरीबी, धेाखा, एवं सामा जक, राजनै तक, एवं
आ थक अ याय सभी नकारा मक मानवीय वहार का प रणाम ह। और कौन इन कम
का उ रदायी है? हम ह। राजा, रा प त, धानमं ी, एवं राजनेता से लेकर शासन क
े
लोग, वै ा नक, च क सक, वक ल, अकाद मक, छा , पुजारी, भ ु णयां एवं मेरे जैसे
भ ु से लेकर उ ोगप त, कलाकार, कानदार, तकनीक कमचारी, बढ़ई, मज र, और
बेरोजगार, कोई ऐसा वग अथवा समाज का ह सा नह है, जसका इन त दन क बुरी
खबर म योगदान न हो।
[13]
सौभा य से ाक
ृ तक वपदा से भ , जन पर हमारा ब त कम अथवा कोई नयं ण
नह है, मानव क
ृ त सम याएं, जो वा तव म नै तकता क सम याएं ह, सबका समाधान
संभव है। वा तव म यह त य क समाज क
े हर वग एवं तर क
े तमाम लोग इसका
समाधान ढूंढने क दशा म कायरत ह, मानव क वृ को दशाता है। ऐसे तमाम लोग ह,
जो याय क
े प धर सं वधान को बनाने क
े लये राजनी तक पा टय म ह सा लेते ह, ऐसे
लोग ह, जो याय क
े लए वक ल बनते है, ऐसे लेाग ह , जो ऐसी सं ा म ह सा लेते ह
जो गरीबी र करने क
े लए काम करती ह, ऐसे लोग ह जो पैसे क
े लए अथवा बना पैसे
क
े लए पी ड़त लोग क
े हत क
े लये काम करते ह। वा तव म, हम सभी अपनी समझ
और अपने तरीक क
े अनुसार इस व को, जहाँ हम रहते ह, पहले से बेहतर बनाने का
यास करते ह।
[14]
भा य से हम पाते ह क भले ही हमारी या यक व ा कतनी ही अ हो और भले
ही बाहरी वषय पर वक सत नयं ण क
े कतने भी साधन य न ह , अपने आप यह
सब सभी सम या का समाधान नह कर सकते। दे खये क आजकल हमारे
पु लसक मय क
े पास ऐसे आधु नक यं ह जनक पचास साल पहले हम क पना भी
नह कर सकते थे। इनक
े पास नगरानी क
े ऐसे तकनीक साधन है, जनसे इ ह वह सब
दख जाता है, जो पहले गोचर नह होता था। इनक
े पास डीएनए मलाने क मता है,
परी ण क योगशालाएं ह, सूंघने वाले क
ु े ह, एवम् अव य ही इनक
े साथ काफ
श त कमचारी ह। ले कन इन क
े साथ साथ अपराध करने क
े तरीक
े भी इतने ही
वक सत हो गए ह क हम कसी बेहतर प र त म नह ह। जहां पर नै तक नयं ण का
अभाव हो, वहाँ पर बढ़ते ए अपराध जैसी सम या क
े समाधान क कोई आशा नह है।
वा तव म हम पाते ह क ऐसे आंत रक अनुशासन क
े बना जन साधन का योग हम इन
सम या क
े समाधान क
े लए करते ह, वही समाधान हमारी सम या का कारण बन जाते
ह। अपरा धय एवं पु लस दोन क
े नरंतर वक सत हो रहे साधन एक दोषपूण च क
तरह एक सरे को बढ़ावा देते ह।
[15]
फर आ या मकता एवं नै तक आचार म या संबंध है? य क नेह, क णा एवं इसी
तरह क
े गुण अपनी प रभाषा क
े अनुसार सरेां क
े हत क चता करने क क
ु छ तर तक
अपे ा करते ह एवम् इन सब म नै तक संयम अपे त है। हमलोग वनाशकारी वृ य
एवं इ ा पर नयं ण कये बना नेहशील एवं क णामय नह हो सकते ह।
[16]
जहां तक नै तक आचरण क न व का है, ऐसा माना जा सकता है कम से कम यहां म
धम क
े माग क वकालत करता ँ। सच है क हर मुख धा मक पर रा म एक वक सत
नै तक प त व मान है। फर भी हमारी सही और गलत क समझ को धम से जोड़ने क
सम या यह है क हम पूछना पड़ता है, ‘ कस धम से जोड़?‘ कस धम क
े पास एक संपूण
नै तकता क प त है, जो आसानी से उपल है एवं जो सबसे यादा वीकाय है? यह
एक ऐसा ववाद है जो कभी ख म नह हो सकता है। इसक
े अलावा ऐसा करना इस बात
को अनदेखा करना होगा क ऐसे ब त सारे लोग ह जो धम को अ वीकार करते ह सोच
समझ कर ढ न य से, न क इस लए क उनक
े मन म मनु य क
े अ तव क
े बारे म गूढ़
क परवाह नह है। ऐसा मानना गलत होगा क ऐसे लोग म सही और गलत एवम
नै तक प से या उ चत है क समझ नह है, सफ इस लए क क
ु छ धम वरोधी लोग
अनै तक ह । इसक
े अलावा धम म व ास रखना नै तकता क कोई गारंट नह है। जब
हम अपनी जा त का इ तहास देखते ह, हम अपने बीच ब त बड़े वनाशकारी लोग म
ऐसे ह ज ह ने अपने साथी मनु य क
े साथ हसक, ू र एवम वनाशकारी वहार
कया। इनम से कई ऐसे रहे ह ज ह ने अ सर काफ जोर से धम म अपना व ास
जताया था। धम मूलभूत नै तक स ांत क ापना म मदद कर सकता है। ले कन
हमलोग नै तकता एवं सदाचार क बात बना धम का सहारा लये कर सकते ह।
[17]
पुनः इस पर आप हो सकती है क अगर हमलोग धम को नै तकता का ोत नह मानते
तो फर हम यह वीकार करना होगा क या सही है या गलत है, या अ ा है, या बुरा
है, या नै तक प से उ चत है एवम या अनु चत है, या सदाचार है एवम या राचार
है, क समझ प र तय क
े अनुसार भ हो सकती है एवं यहाँ तक क भ य क
े
लए भी भ हो सकती है। ले कन यहां पर म कहना चा ँगा क कसी को ऐसा नह
समझना चा हए क कभी ऐसा संभव हो पाएगा क ऐसे कानून या नयम क व ा क
जा सक
े जससे हर नै तक वधा का उ र मल सक
े , चाहे हम धम को नै तकता का
आधार य न मान ल। मनु य क
े समृ एवम् व वध अनुभव को समझने क
े लये ऐसे
सू ब उपाय क कभी क पना नह क जा सकती है। इससे ऐसे तक को भी सहारा
मलेगा क हमारा उ रदा य व सफ कानून का श दशः पालन करने का है एवं हम अपने
आचरण क
े लये उ रदायी नह ह।
[18]
मेरे कहने का ता पय यह नह है क ऐसे स ांत को समझाना थ है, जो नै तक प से
बा यकारी ह । इसक
े वपरीत अगर हम अपनी सम या क
े समाधान क कोई आशा है
तो यह आव यक है क हम ऐसा करने का माग ढूंढ। हम कोई ऐसा उपाय अव य ढूंढना
चा हए जससे हम, उदाहरण व प, राजनै तक सुधार क
े लए आतंकवाद एवं महा मा
गांधी क
े शां तपूवक वरोध क
े स ांत क
े बीच उ चत-अनु चत का नणय कर सक। हम
इसक
े लये स म होना चा हए क सर क
े त हसा का योग गलत है। फर भी हम
कोई ऐसा रा ता ढूंढना चा हए जो एक तरफ अस य तानाशाही से एवं सरी ओर तु
सापे तावाद क अ तवाद सीमा से बचे।
[19]
मेरा अपना वचार जो न तो पूणतया धा मक व ास पर आधा रत है और न ही कोई
मौ लक दशन है ब क जो सामा य वहा रक ान पर आधा रत है, वह यह है क ऐसे
बा यकारी नै तक स ांत क ापना तब संभव है जब हम अपने वचार क शु आत
इस अवधारणा से करते ह क हम सभी सुख चाहते ह और ख से र रहना चाहते ह।
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  • 5. नै तकता का सुख परम पावन दलाई लामा अनुवादक: त जन र व वमा Bharati Prakashan Banaras, India
  • 6. Contents तावना 3 अनुवादक क े दो श द 5 अ याय १ - आधु नक समाज एवं मनु य क खुशी क तलाश 7 अ याय २ - न जा न रह य 14 अ याय ३ - ती यसमु पाद एवम् यथाथ का व प 21 अ याय ४ - ल य का पुन नधारण 28 अ याय ५ - एक सव म भावना 36 अ याय ६ - संयम क नै तकता 44 अ याय ७ - स ण क नै तकता 53 अ याय ८ - क णा क नै तकता 63 अ याय 9 - नै तकता एवं ःख 67 अ याय १० - ववेक क आव यकता 72 अ याय ११ - वै क उ रदा य व 78 अ याय १२ - न ा क े सोपान 83 अ याय १३ - समाज म नै तकता 86 अ याय १४ - शां त एवं नःश ीकरण 96 अ याय १५- आधु नक समाज म धम क भू मका 103 अ याय १६ - एक वन आ ह 107
  • 7. तावना सोलह वष क अव ा म अपना देश खो कर एवं चौबीस वष क अव ा म शरणाथ बन मने अपने जीवन म बड़ी क ठनाइय का सामना कया है । जब म उनक े वषय म सोचता ँ तो लगता है क उनसे बचने का मेरे पास न तो कोई साधन था न ही उनका कोई अ ा समाधान संभव था । फर भी, जहाँ तक मेरी मान सक शां त एवं वा य का है, म दावा कर सकता ँ क मने उनका सामना भली भां त कया है । इसक े फल व प म अपने सारे साधन --मान सक, शारी रक, एवं आ या मक--क े साथ उन क ठनाइय का सामना करने म सफल रहा ँ। अगर म चता से धराशायी हो जाता, तो मेरे वा य पर इसका बुरा असर होता। मेरे काय म भी बाधा होती । [1] जब अपने आसपास देखता ँ तो पाता ँ क सफ हम त बत क े शरणाथ और व ा पत समुदाय क े लोग ही नह क ठनाइय का सामना करते ह। हर जगह एवं हर समाज म लोग क एवं वपदा झेलते ह, वे भी जो वतं ता एवं भौ तक समृ का आन द लेते ह। वा तव म, मुझे ऐसा लगता है क हम मनु य का अ धकांश ःख हमारे वयं का कया है। इसी लए एक स ा त क े प म कम से कम इससे बचना संभव है। म यह भी देखता ँ क सामा यतया ऐसे जनका वहार नै तक प से सकारा मक होता है, वे यादा स एवम् स तु रहते ह उन लोग क तुलना म जो नै तकता क अवहेलना करते ह। इससे मेरी धारणा क पु है क अगर हम अपने वचार एवं अपने वहार म बदलाव ला सक, तो हम न तो सफ क का सामना यादा आसानी से करना सीखगे, हम ब त सारे ख को उ प होने से भी रोक सकगे। [2] म इस पु तक म यह दखाने का यास क ँ गा क पा रभा षक पद “सकारा मक नै तक वहार” से मेरा या ता पय है। ऐसा करने म म मानता ँ क नै तकता एवं सदाचार क सफलता से सामा यीकरण करना अथवा एकदम न त ा या क ठन है। ब त ही वरले, अगर कभी हो भी तो, कोई घटना एकदम ेत या याम होती है । एक ही काय भ प र तय म भ नै तकता एवं सदाचार क े रंग एवं मा ा का होता है। उसी समय, यह आव यक है क इसम हम इस बात पर एकमत ह क सकारा मक काय या है और नकारा मक काय या है, सही या है और गलत या है, उ चत या है और अनु चत या है। पहले लोग म धम क े लए जो आदर था उसका अथ था क एक या सरे धम क े अ यास से ब सं यक लोग नै तक आचार बनाये रखते थे। ले कन अब ऐसा नह है ।
  • 8. इस लए हम मूलभूत नै तक स ांत क ापना करने क े लए न य ही कोई सरा उपाय ढूंढना चा हए । [3] पाठक गण यह नह सोच क दलाई लामा क े प म मेरे पास देने क े लए कोई वशेष समाधान है। इन पृ म ऐसा क ु छ नह है जो पहले नह कहा गया हो । वा तव म मुझे लगता है क जो चतन एवं वचार यहाँ तुत कये गये ह, उ ह वे ब त सारे लोग मानते ह जो हम मनु य क सम या एवं क क े समाधान क े बारे म सोचते ह और यास करते ह। मेरे क ु छ म क े सुझाव क े उ र म एवं पाठक को यह पु तक तुत करने म मेरी आशा है क उन करोड़ लोग को आवाज़ मलेगी ज ह सावज नक प से अपने वचार को कट करने का मौका नह मलता है तथा ज ह म मूक ब सं यक मानता ँ । [4] ले कन पाठक यह भी याद रख क मेरी व धवत श ा पूण प से धा मक एवं आ या मक रही है। बचपन से ही मेरी श ा का मुख (और नर तर) वषय बौ दशन एवं मनो व ान रहा है। खास तौर से मने गेलुक था क े धा मक, दाश नक व ान क े काय का अ ययन कया है, जस पर रा से सारे दलाई लामा आते रहे ह। धा मक ब लवाद म पूणतया व ास होने क े कारण मने अ य बौ पर रा क े मु य शा का भी अ ययन कया है । पर तु इसक तुलना म मुझे आधु नक धम नरपे दशन को जानने का कम मौका मला है। फर भी यह एक धा मक पु तक नह है । यह बौ धम क े बारे म भी नह है। मेरा ल य नै तकता क े लए एक ऐसे माग का आ ान करना है, जो वै क स ांत पर आधा रत हो, न क धा मक स ांत पर। [5] इस कारण वश, सामा य पाठक गण क े लए पु तक लखना बना चुनौ तय क े नह आ है, एवं यह एक समूह क े प र म का फल है। एक खास सम या इस कारण से ई क त बती भाषा क े कई अ नवाय श द का आधु नक भाषा म अनुवाद करना क ठन है। इस पु तक का उ े य एक दशनशा का आलेख बनना नह था, इस लए मने यास कया है क म इन त य का ऐसे वणन क ँ ता क जो वशेष पाठक नह ह वे भी समझ सक एवं उनका अ य भाषा म भी अनुवाद हो सक े । ऐसा करने म, एवं उन लोग क े लए सु ा या करने म जनक भाषा एवं सं क ृ त मेरे से काफ भ हो, यह संभव है क त बती भाषा क गूढ़ता खोयी हो, और क ु छ अनचाहे अथ जुड़ गये ह । मेरा व ास है क सतक संपादन ने ऐसा यूनतम कर दया हो । जब भी कोई ऐसी गलती सामने आती है, मुझे आशा है क आने वाले सं करण म म उनका सुधार क ँ गा । इस बीच म, इस
  • 9. वषय म उनक सहायता क े लए, इसे इं लश म अनुवाद करने क े लए, एवं उनक े अन गनत सुझा क े लए म डॉ टर थु टेन ज पा को ध यवाद देता ँ। म ी ए आर नामन को भी संशोधन क े लए ध यवाद देता ँ। यह ब मू य रहा है। अंत म, म उन सब को ध यवाद देना चाहता ँ ज ह ने इस पु तक को सफल बनाने म सहायता क है। [6] धमशाला, फ़रवरी १९९९ मनन यो य १. “सकारा मक नै तक वहार” से लेखक का या ता पय है? २. आप नै तकता क े ऐसे माग क स ावना क े बारे म या सोचते ह जो वै क स ांत पर आधा रत हो, न क धा मक स ांत पर।
  • 10. अनुवादक क े दो श द मेरा इस पु तक से स ब पं ह साल से यादा हो गया है, पहले पाठक क े प म फर अनुवाद क े दौरान। बौ माग और परम पावन दलाई लामा जी से प रचय, दोन ही सौभा य मुझे इस पु तक क े ारा मला। जीवन क े क का सामना करने म इस पु तक से इतनी मदद मली है क अफसोस होता क यह मुझे वष पहले य नह मली। अनुवादन म यास लगाने क पीछे मेरी कामना है क मेरी मातृ भू म म ब त से लोग को इससे वही लाभ मलेगा जो मुझे मला है। इस पु तक से मुझे जो पहली सीख मली वह यह क, नै तक आचरण मेरे ही हत म है। यह वा य शायद काफ सामा य लगे ले कन इस पु तक को पढ़ने क े पहले मेरी यह धारणा थी क नै तकता अ बात है, पर तु नै तक वहार से कता क क ु छ न क ु छ हा न ही होती है। शायद क ु छ लोग ऐसे को मूख भी समझ। इस वषय पर हद क े यात ंगकार ी ह र शंकर परसाई जी का नबंध “बेचारा भला आदमी” पढ़ने यो य है। परम पावन दलाई लामा जी क इस कालजयी रचना क े तुत ह द अनुवाद क े स ब म मेरा वचार है क य द लोग नै तक आचरण म स ः न हत अपने हत-लाभ को समझगे तो इससे लोग म नै तक आचरण क े त उ साह बढ़ेगा और जगत का क याण होगा। मुझे सरी समझ यह मली क नै तकता एक ज टल एवम् सू म वचार का वषय है। सफ यह कह देना पया त नह है क “झूठ बोलना पाप है” अथवा “चोरी करना अनु चत है”। ी दलाई लामा जी नै तकता क ववेचना, हमारे आचरण क े सर पर पड़ने वाले भाव क े संग म करक े , हम सब को इस वषय पर नवीन कोण से सोचने समझने का अवसर देते ह। मने एक बार ी दलाई लामा जी से सुना था क, वाथ दो तरह को होता है - बु मानी वाला वाथ एवं मूखता वाला वाथ । नै तक आचरण का अ यास बु मानी वाला वाथ है । चूँ क वाथ सुनने म थोड़ा कठोर लगता है, अतः मेरे एक म ने सुझाव दया क हम इसे जाग कता स हत वयम् का हत करने का भाव कह । यादातर लोग ी दलाई लामा जी को एक धमगु क े प म जानते ह एवं अ सर धमगु क पु तक वचन वाली होती ह क तु यह पु तक वचन नह है । म इस पु तक को अपनी भौ तक शा , रासायन शा एवं ग णत आ द वषय क पु तक क े साथ रखता ँ । इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने अपने अनुभव क े आधार पर मानव मा को जीवन जीने क शैली सखाई है जसका हम अपने दै नक जीवन म योग करक े वयम् इस न कष पर प ँच सकते ह क हम इससे या लाभ हो रहा है, या नह ।
  • 11. इस पु तक को पढ़ने से यह होता है क जस का आचरण नै तकता, नेह एवं क णा यु होता है वह उन लोग से यादा सुखी होता है जो इन धारणा क अवहेलना करते ह । साथ ही यह त य भी होता है क, नै तक वहार ारा और क े क याण म ही हमारा वयम् का क याण भी न हत है । इस पु तक म आप ःख एवं पीड़ा का कई बार उ लेख देखगे । सामा यतया हम इन श द को पयायवाची समझते ह । पर तु इस पु तक म दोन का ता पय भ है । पीड़ा का अथ है, अ नवाय शारीरक क जैसे ज म, रोग, वृ ाव ा, घटना इ या द एवं ःख का ता पय मान सक अव ा से है । ःख वह है जो ऐसे को भी होता है जसका पेट भरा होता है, जसक े तन पर अ े व होते ह, बक म पया त धन होता है। ःख ऐसी चीज़ है जो वातानुक ू लत क म बैठने वाले को भी थत करती है । ी दलाई लामा जी इस मान सक ःख को थ का लेश कहते ह । इस पु तक म उ ह ने वह सारे उपाय बताय ह जसक सहायता से हम अपने इन थ ःख का उ मूलन कर सकते ह । ी दलाई लामा जी ने एक बार कहा था पीड़ा अ नवाय है ले कन ःख क ृ म है । इस पु तक म उ ह ने एक जीवन शैली का वणन कया है जससे हम ःख क स ावना को यूनतम कर सकते ह । म श ा एवं वसाय से इंजी नयर ँ एवं हम इंजी नयर का वभाव है क हम कसी भी श ा को बना तक क े वीकार नह कर सकते। इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने सफ उ चत एवं अनु चत क प रभाषा ही नह द है, ब क उ ह ने उ चत को सट क तक व उदाहरण ारा समझाया भी है। मेरे लए यह पु तक उपयोगी रही है य क उ चत एवं अनु चत क प रभाषा क े साथ उ ह ने एक अ य त सहज जीवन शैली क श ा द है जससे हम सभी अपने मान सक ःख को कम कर सकते ह । ी दलाई लामा जी पूरे व म अ य त लोक य ह । मने उ ह पहली बार सैन ां स को, अमे रका म देखा था । म दशक म उनक े लए नेह एवं आदर को देख कर अच त था । यह भले हा य द लगे, मने कई लोग म इस बात को लेकर ई या का भाव देखा एवं कई लोग को ी दलाई लामा जी जैसे स बनने का यास करते ये भी देखा है । इस पु तक म उ ह ने वह सारे रह य बताये ह जनक े कारण उनका व इतना चुंबक य ह । लोग छोट से छोट बात पर भी उनक े ठहाक े लगाकर हंसने क मता से आ यच कत रहते ह । इस पु तक म ी दलाई लामा जी ने वह सारे सुझाव दये ह जनका पालन करने से जीवन क सारी क ठनाइय क े प ात भी उनक तरह स च रह सकता है । ी दलाई लामा जी ने अपने जीवन म जन वराट क ठनाईय का सामना कया है वह हम सबको पता है, इन सब क े बावजूद उनक स ः व मान हँसी सभी को मं मु ध कर देती है।
  • 12. वतं ता क े प ात भारतवष म समृ बढ़ है । म बहार क े पछड़े इलाक म काफ समय तीत करता ँ एवं देखता ँ क वहां भी लोग क े रहन सहन क े तर म काफ बदलाव आ है । बड़े शहर म यह बदलाव और भी अ धक है । आज भारत क े बड़े नगर म अमे रका एवं यूरोप क े सुख-साधन आसानी से उपल ह । भा यवश शारी रक या भौ तक सुख एवं मान सक सुख म ब त गहरा स ब नह है । यह य काफ क द होता है क एक सारी शारी रक व भौ तक सुख सु वधा क े बावज़ूद मन से च तत एवं खी रहता है । आज भारत क े हर ऐसे समृ , जसे पया त शारी रक व भौ तक सुख ा त है, को नै तकता क समझ क ब त आव यकता है ता क वह मान सक प से भी सुखी हो सक । परम पावन ी दलाई लामा जी क यह पु तक हर आधु नक भारतीय क े लए अ नवाय होनी चा हए । मुझे इस यास म कई लोग से बड़ी मदद मली है। उसमे से मु य ह भारतीय ौ ो गक सं ान, कानपुर क े ोफ े सर अ ण क ु मार शमा जी, सारनाथ त क े य त बती अ ययन व व ालय क े ोफ े सर नवांग समतेन जी एवं राजेश क ु मार म जी, क टहार क े नभ क प कार राजर न कमल जी एवं भारती काशन, वाराणसी क े अ ध ाता ी आशुतोष पा डेय जी। ोफ े सर अ ण शमा जी ल बे समय से मेरे मागदशक, म एवं भाई क तरह रहे ह। उ ह ने एवं ोफ े सर नवांग समतेन जी ने अपना ब मू य समय देकर मेरे अनुवाद क गल तय को सुधारा है। क टहार क े नभ क प कार ी राजर न कमल जी को म अपना काय सबसे पहले भेजता था और म डरता थे क वे मेरी हद क अशु य से परेशान होते ह गे, ले कन उ ह ने मुझे कभी ऐसा महसूस नह होने दया। सारनाथ त क े य त बती अ ययन व व ालय क े ंथालय क े मुख ी राजेश क ु मार म क े लए अपनी क ृ त ता करने क े लए मेरे पास श द नह ह । उनक े पता ी शव साद म जी एवं उ ह ने इस यास म काफ सहायता क है। राजेश जी ने ही मेरा प रचय भारती काशन क े अ ध ाता ी आशुतोष पा डेय जी से करवाया । ी आशुतोष पा डेय जी से मेरा स ब होना म अपना सौभा य समझता ँ। उनक े नर तर तकाज़ा करने क े कारण म यह काय समय से पूण कर पाया। ऐसी पु तक क े काशक आशुतोष जी जैसे लोग ही हो सकते ह जनक े लए काशन सफ वसाय नह है ब क वह इस मा यम से देश का क याण भी करना चाहते ह । अंत म म परम पावन ी दलाई लामा जी को नमन करता ँ । स ूण मानवता क े लए नै तकता का ऐसा नेहपूण एवं धम नरपे ा यान उनक े जैसा महापु ष ही कर सकता है। र व वमा
  • 13. क टहार, बहार, भारत एवं रॉक लन, क ै लफ़ो नया, संयु गणरा य अमे रका
  • 14. अ याय १ - आधु नक समाज एवं मनु य क खुशी क तलाश अ य लोग क तुलना म म आधु नक समाज का नवागंतुक ँ। य प म अपनी मातृभू म को एक लंबे समय पूव 1959 म छोड़ चुका ँ, और य प भारत म एक शरणाथ क अव ा मुझे वतमान समाज क े काफ पास लायी है। अपने जीवन क े आर क े वष म म बीसव शता द क े यथाथ से अलग थलग ही रहा। क ु छ हद तक इसक वजह रही है मेरी दलाई लामा क े प म नयु । म ब त छोट उ म भ ु बन गया था। इस से यह भी दखता है क हम त बत क े लोग को अपने देश को बाक नया से अलग-थलग पहाड़ क ऊ ँ ची ृंखला क े पीछे रखने का नणय मेरी म गलत था। [1] क तु आज क े दन म काफ या ा करता ँ और म इसे अपना सौभा य समझता ँ क म लगातार नये लोग से मलता रहता ँ। इसक े अ त र यह भी है क जीवन क े अनेक े क े लोग मुझसे मलने आते ह। ब त से लोग ब त क उठाकर, क ु छ ढूंढते ए, धमशाला आते ह जो एक पवतीय पयटन ल है और वास क अव ध म मेरा नवास ल है। इन लोग म ऐसे भी होते ह ज ह ने बड़े क सहे ह, क ु छ लोग क े माता पता का देहांत हो चुका होता है; क ु छ क े प रवार क े सद य अथवा म ने आ मह या क होती है; क ु छ कसर अथवा एड्स जैसी बीमा रय से त होते ह। इसक े अलावा, वभावतः मेरे साथी त बत क े लोग होते ह जनक क ठनाइयाँ एवं परेशा नय क अपनी एक दा ताँ होती है। भा य से, कई लोग क यह अवा त वक अपे ा होती है क मेरे पास क ु छ अ त श है या म क ु छ वरदान दे सकता ँ। ले कन म सफ एक साधारण मनु य ँ। म यादा से यादा यह कर सकता ँ क म उनक े ःख म ह सा ले उनक मदद करने का य न कर सक ूँ । [2] जहाँ तक मेरा है, सारी नया एवं जीवन क े अनेक े क े ब त से लोग से मल कर मुझे यह एहसास होता क हम सभी मनु य एक जैसे ह। यह स य है क म जतना यादा नया को देखता ँ उतनी ही यह बात साफ दखती है क हमारी त जो भी हो, हम समृ ह या गरीब, श त ह या अ श त, हमारी जा त, लग, धम जो भी हो, हम सभी चाहते ह क हम खुश रह एवं हम ःख न हो। हमारे सारे सोच समझ कर कये गए काय को और एक कार से अपनी वतमान त क सीमा क े प र े य म हमारे जीवनयापन क े सारे नणय को हम इस वृहत क े प म देख सकते ह जो हम सभी क े सामने है, “म क ै से सुखी रह सकता ँ?” [3]
  • 15. मुझे लगता है क हम सुख क एक वृहत खोज म आशा क े सहारे टक े ए ह। हम जानते ह भले हम इस बात को वीकार ना कर, इस बात क कोई न तता नह है क हमारे भ व य क े दन हमारे वतमान क तुलना म अ े ह गे। एक पुरानी त बती कहावत है अगला दन या अगला ज म, हम कभी न त नह हो सकते क पहले या आयेगा। ले कन हम ल बे समय तक जी वत रहने क आशा करते ह। हम आशा वत रहते ह क हमारे इस काय अथवा उस काय से हम सुख ा त होगा। हम जो भी करते ह--न ही सफ गत तर पर, सामा जक तर पर भी--उसे हम मौ लक आकां ा क े तौर पर देख सकते ह। वा तव म, हम सभी ाणी इस कामना क े साझीदार ह। खुशी रहने क एवं ःख से बचने क कामना या इ ा वै क है। यह हमारी क ृ त म है। इस बात को यायो चत ठहराने क े लए कसी तक क ज रत नह है और यह सामा य त य से मा य होता है क हम वाभा वक प से खुशी चाहते ह और यह उ चत भी है। [4] चाहे अमीर देश हो या गरीब देश, हम हर जगह बलक ु ल ऐसा ही दखाई देता है। हर जगह, हर स व साधन से, लोग अपने जीवन को सुधारने म लगे ए ह। फर भी आ य से मुझे ऐसा लगता है क आ थक प से वक सत रा म रहने वाले लोग, तमाम कारखान क े साथ, क ु छ मामल म पछड़े ए देश क तुलना म कम संतु , कम खुश, एवं क ु छ हद तक यादा क भोगते ह। सच तो यह है, जब हम अमीर क तुलना गरीब लोग से करते ह, तो लगता है क जनक े पास क ु छ नह है, वा तव म वे सबसे कम च तत होते ह, जब क वह शारी रक पीड़ा और क से सत रहते ह। जहाँ तक अमीर लोग का है, उनम से क ु छ लोग को अव य ही अपने धन का बु मानी से उपयोग करना आता है अथात वला सता म ल त रहने क े बजाय ज रतमंद लोग क सहायता क े लए, यादातर को ऐसा करना नह आता है। वे और धन जमा करने क े च कर म ऐसे उलझे रहते ह क उनक े जीवन म कसी अ य चीज़ क े लए ान ही नह होता है। वे ऐसे डूबे रहते ह क वे अपने उन खुशी क े सपन को ही भूल जाते ह जो उ ह समृ दान करते । इसक े फल व प, भ व य म होने वाली घटना क आशंका और यादा धन क े लालच म फ ं स कर वे हमेशा उ पी ड़त रहते ह एवं मान सक और भावा मक क से सत होते ह भले ही बाहर से वे सफल एवं आरामदायक जीवन तीत करते ए दखते ह । इसका माण यह है क हम आ थक प से वक सत देश क जनता म ापक प से तनाव, असंतु , क ुं ठा, अ न तता, मान सक वषाद, एवं नराशा मलती है। इसक े अ त र इस अंदर क पीड़ा का सीधा स बंध सदाचार क े अथ एवं बु नयाद क े बारे म बढ़ती ई ा त से है। [5]
  • 16. मुझे इस वरोधाभास का बोध अ सर होता है जब म वदेश मण पर जाता ँ। ायः ऐसा होता है क जब म कसी नये देश म प ँचता ँ, पहले तो सब क ु छ काफ अ ा और सु दर लगता है। म जनसे भी मलता ँ वे काफ सौहाद से पेश आते ह। कसी बात क े लए शकायत करने का कारण नह होता। ले कन दनानु दन जैसे म लोग से मलता ँ, म लोग क सम या , उनक परेशा नय एवं चता क े बारे म सुनता ँ। ऊपरी सतह क े नीचे अनेकानेक लोग अपने जीवन से असंतु एवं परेशान होते ह। उ ह अक े लापन लगता है जसक े बाद मान सक वषाद आता है । इसका प रणाम है लेश का वातावरण, जो वक सत रा का वशेष ल ण सा हो गया है। [6] शु म मुझे यह सब देख कर बड़ा आ य होता था। हालाँ क, मने कभी ऐसा नह सोचा था क सफ भौ तक धन से सभी ख का नवारण हो सकता है, त बत, जो भौ तक प से सवदा गरीब रहा है, म रहकर म वीकार करता ँ क म सोचता था क समृ ने मनु य क पीड़ा को कम करने म यादा योगदान दया होगा, जो वा तव म सही नह नकला। मेरी आशा थी क शारी रक क ठनाइय क े कम होने से, जैसा क हर वक सत रा म रहने वाले यादातर लोग क े लए वा त वकता है, सुख क ा त आसानी से होती होगी, ब न बत उन लोग क े जो काफ वकट प र त म रहते ह। इसक े बजाय, ऐसा लगता है क े व ान एवम् तं क अ त ग त से सफ सां यक य सुधार से यादा क ु छ नह आया है। कई उदाहरण म ग त का मतलब सफ यह आ क शहर म शानदार भवन और उनक े बीच चलने वाले वाहन क सं या बढ़ है। यक नन, क ु छ तरह क े क म कमी ई है, खासकर क े क ु छ ा धयाँ कम ई ह। ले कन मुझे लगता है क सब मलाजुला कर हमारा ःख कम नह आ है। [7] इस स दभ म मुझे अपनी शु क प म क या ा क एक बात अ तरह याद है। म एक ब त समृ प रवार का मेहमान था जो एक बड़े वैभवशाली घर म रहते थे। हर काफ सौ य और वन था। हर क हर ज रत क े लए नौकर तैनात थे और म सोचने लगा क यही सही माण है क धन खुशी का ोत हो सकता है। मेरे मेजबान वाकई तनाव मु एवं आ म व ासी दखते थे। ले कन जब मने उनक े नानागार म आलमारी क े थोड़े से खुले ए दरवाजे से न द एवं दमाग को शांत करने वाली दवाइय क कतार देखी, तब मुझे इस बात का जोर से आभास आ क जो बाहर से दखता है और जो अंदर क स ाई है, उनक े बीच अ सर काफ बड़ी खाई होती है। [8]
  • 17. यह वरोधाभास पूरे प म क े रा म प से व मान है जनम भौ तक संप ता क े रहते ए आंत रक ःख--या जसे हम मान सक अथवा भावा मक ःख कह सकते ह-- इतना यादा पाया जाता है। वा तव म, यह इतना ापक है क हम संदेह कर सकते ह क पा ा य स यता म क ु छ ऐसी बात है जससे वहाँ रहने वाले लोग क े ऐसे क म होने क वृ है? म इसम संदेह करता ँ। इसम कई बाते ह। है क भौ तक ग त ही का इसम थोड़ा हाथ है। हम यह भी कह सकते ह क आधु नक समाज क े बढ़ते शहरीकरण क वजह से यादा तादाद म लोग एक सरे क े काफ पास पास रहने लगे ह। इस स दभ म यह सो चये क हम एक सरे पर नभर होने क े बजाय, आज, जहाँ तक स व होता है, हम मशीन अथवा बाहरी मदद का सहारा लेते ह। जब क पहले कसान फसल काटने म मदद क े लए अपने प रवार क े सद य को बुला लेते थे, आज क े दन वे टेलीफोन कर कसी ठे क े दार को बुला लेते ह। वे पाते ह क हमारा आधु नक जीवन ऐसे सु नयो जत है क यह सर पर कम से कम सीधी नभरता क मांग करता है। कमोबेश ापक मह वाकां ा यही लगती है क हर क े पास अपना घर हो, अपनी कार हो, अपना क ं यूटर हो, ता क हर जहाँ तक स व हो आ म नभर हो जाए। यह वाभा वक है और आसानी से समझ म आ जाती है। व ान एवं तकनीक ग त से जो हम वाय ता मली है, उसक े कई फायदे ह। वा तव म वतमान समय म यह संभव है क हम पहले क अपे ा कह अ धक आ म नभर हो सकते ह । ले कन इस ग त क े साथ ऐसी मान सकता भी पैदा ई है क मेरा भ व य मेरे पड़ोसी पर नह ब क मेरी नौकरी पर, ब त यादा आ तो मेरे नयो ा पर नभर है। यह हम यह मानने क े लए ो साहन देती है क सरे लोग हमारी खुशी क े लए ज री नह ह और सर क खुशी हमारे लए कोई मायने नह रखती। [9] मेरे वचार म हम लोग ने ऐसा समाज बना लया है, जसम लोग क े लए एक सरे क ओर साधारण नेह दखाना भी क ठन एवं क ठनतर हो गया है। सामू हकता एवं अपनेपन क जगह, जो कम समृ वाले समाज (जो यादातर ामीण होते ह ) का आ त करने वाला वभाव हम पाते ह, समृ देश म काफ अक े लापन और उदासीनता पाते ह। करोड़ लोग क े एक सरे क े बलक ु ल पास पास रहने क े बावजूद, देखने म आता है क ब त से लोग क े लए, वशेषकर बूढ़े लोग क े लए, उनसे बात करने वाला, उनक े क ु े ब लय क े अलावा कोई नह है। मुझे अ सर आधु नक समाज एक वशाल खुद-ब-खुद चलने वाली मशीन क तरह लगता है। बजाय इसक े क एक मानव इसका नयं ण करे, हर मनु य इसका अदना सा मह वहीन ह सा बन गया है, जसक े पास मशीन क े साथ-साथ चलने क े अलावा और कोई चारा नह है।
  • 18. [10] वतमान समय म वकास और आ थक वकास क बात, जो लोग क े अंदर त धा एवं ई या को बढ़ावा देती है, ने इस सम या को और भी वकराल बना दया है। इसक े साथ आती है दखावे को बनाये रखने क ज रत--जो खुद ही सम या, तनाव, एवं ःख का बड़ा कारण है। फर भी मान सक एवम् भावा मक क जो हम पा ा य स यता म ा त पाते ह, एक सां क ृ तक खामी से यादा मूलभूत मानवीय वृ त को त ब बत करता है। वा तव म मने ऐसे आंत रक क पा ा य रा से बाहर भी देखा है। द ण-पूव ए शया क े कई ह स म ऐसा देखा गया है क जैसे जैसे लोग क े पास संप बढ़ है, पार रक वचार प तय का लोग पर भाव कम हो रहा है। इसक े साथ हम पाते ह क प मी रा म अव त लेश से मलते जुलते ल ण यहाँ भी उभर रहे ह। यह सुझाव देता है क यह स ावना हम सभी म व मान है, जैसे शारी रक ा धयां अपने प रवेश को त ब बत करती ह वैसे ही मान सक एवं भावना से संबं धत लेश भी खास प र त क े स दभ म उ प होते ह। इस कार से हम द ण, अ वक सत, अथवा “तृतीय व ” क े रा म वे सम याएँ पाते ह जो यादातर उसी नया क े उसी ह से तक सी मत होती ह, जैसे व ता का अभाव। वक सत देश म हम गंदे पानी से पैदा होने वाली बीमारी क े बदले, तनाव संबं धत रोग अ धक पाते ह। इनका संक े त यह है और ऐसा मानने का बल तक है क बाहरी ग त पर अ य धक यान दये जाने एवं आधु नक समाज म ा त ःख, चता , और असंतोष क े बीच एक गहरा स ब है। [11] यह सुनने म एक नराशावाद मू यांकन लग सकता है। ले कन जबतक हम लोग अपनी सम या क े प रमाण एवं क ृ त को वीकार नह करगे, हमलोग उनका सामना करने क शु आत भी नह कर सकते। [12] है क आधु नक समाज क े भौ तक वकास से उ प तृ णा का मु य कारण व ान एवं तकनीक क सफलता ही है। अब मनु य क े इन यास क शंसनीय बात यह है क ये अ वल ब संतु देते ह। यह ाथना क तरह नह ह जनका प रणाम यादातर अ य होता है--वह भी जब ाथनाएँ सफल होती ह । हम फल से भा वत होते ह। इससे सामा य बात और या हो सकती है? भा य से, यह तृ णा हम यह मानने क े लए ो सा हत करती है क खुशी क क ुं जी एक तरफ तो भौ तक समृ म है, एवं सरी तरफ उस श म जो ान से ा त होती है। इस सब म यह साफ है क जो भी इस बात पर सावधानीपूवक गौर करता है, पाता है क पहली वाली बात अपने आप ही खुशी नह दे सकती है और सरी वाली बात का भाव उतना यादा नह है। स ाई तो यह है क
  • 19. ान अपने आप वह खुशी नह दे सकता जो आंत रक वकास से आती है और जो बाहरी चीज पर नभर नह करती। वा तव म, बाहरी त य क े बारे म हमारा व तृत ान एक ब त बड़ी सफलता है, क तु इसी म सी मत रह जाने क चाह हम खुशी देने क े बजाय वा तव म काफ खतरनाक हो सकती है। यह हम मानव क े अनुभव क े एक वृहत स य से र कर सकती है, खास करक े हमारी पार रक नभरता क े बोध से। [13] हम यह भी समझना चा हये क जब हम व ान क बाहरी उपल य पर ब त यादा नभर होते ह तब इसका प रणाम या होता है। उदाहरण क े लए, जैसे जैसे हम पर धम का भाव कम होने लगता है, वैसे वैसे अपने आचरण क े को लेकर हमारे म त क म एक म क त बढ़ती जाती है। पहले क े दन म धम एवं नै तकता क े बीच म काफ घ न स ब था। आज क े दन कई लोग ऐसा मानकर क व ान ने धम क े अ त व को नकार दया है, यह पूवधारणा करते ह क आ या मक स ा का कोई सु न त माण नह है और नै तकता को सफ एक गत नणय मा होना चा हए। जब क पूव म वै ा नक एवं दाश नक लोग एक ऐसी ठोस न व को ढूंढने क बड़ी ज रत समझते थे जस पर अप रवतनशील नयम एवं परम स य क ापना क जा सक े । आज क े दन ऐसी खोज को बेकार समझा जाता है। इसक वजह से अब हम एक वपरीत, अ तवाद दशा म चले गए ह जहां पर अंततः क ु छ नह बचता है, और जहां स य क े वचार पर ही उठने लगता है। यह त हम क े वल एक अ व ा क ओर ही ले जा सकती है। [14] ऐसा कह कर मेरा उ े य वै ा नक उ ोग क आलोचना करना नह है। वै ा नक से मल कर मने ब त क ु छ सीखा है और म उनसे वातालाप करने म कोई सम या नह देखता ँ, चाहे उनका कोण अ तवाद भौ तकवाद वाला ही य न हो। वा तव म जहाँ तक मुझे याद है, म व ान क े प र ान से हमेशा मं मु ध रहा ँ। जब म छोटा ब ा था, धा मक एवं दाश नक पढ़ाई से भी यादा, म दलाई लामा क े ी म गृह क े भंडार घर म पड़े ए पुराने फ म ोजे टर को चलाने क े बारे म जानने का अ धक इ ुक था। मेरी चता क े वल इस बात को लेकर है क हम लोग म व ान क सीमा को नजरंदाज करने क वृ है। धम को ान क े परम ोत क े ान से हटाने क े यास म व ान वयं समाज म एक अ य धम जैसा दखने लगता है। इसक े साथ फर वैसा ही खतरा सामने आता है जब व ान क े क ु छ अनुयायी इसक े स ांत पर आँख मूँद कर व ास करने लग जाते ह तथा सरे वचार क तरफ अस ह णु हो जाते ह। व ान क अ त उपल य को देख कर, धम का व ान ारा व ा पत होना आ य क बात नह लगती है। आदमी को चाँद पर प ँचाने क साम य से कौन भा वत नह होगा? फर भी यह सच है क अगर, उदाहरण क े लए,
  • 20. हम एक परमाणु वै ा नक क े पास जाएँ और पूछ, म एक नै तक वधा से गुजर रहा ँ, या आप बता सकते ह क मुझे या करना चा हए, तो वह क े वल अपना सर हला देगा और हम एक जवाब क े लए कह और देखने का सुझाव देगा। सामा य प से, वै ा नक इस संबंध म एक वक ल से कसी बेहतर त म नह है। व ान और कानून, दोन ही हम अपने काय क े स ा वत प रणाम क भ व यवाणी करने म मदद कर सकते ह, क तु दोन म से कोई भी हम यह नह बता सकता क हम नै तक प से क ै से काय कर। इसक े अलावा, हम वै ा नक अनुस ान क खुद क सीमा को पहचानने क ज रत है। उदाहरण क े लए, हालाँ क हम स दय से मानव क चेतना क े बारे म पता है, और यह पूरे इ तहास म जांच का वषय रही है, वै ा नक क े सबसे अ े यास क े बावजूद, वे अभी भी यह नह समझ सक े ह क वा तव म यह या है, यह य मौजूद है, यह क ै से काय करती है और इसक मूलभूत क ृ त या है। न तो व ान हम यह बता सकता है क चेतना का मूलभूत कारण या है, न ही यह क इसका भाव या है। न य ही चेतना ऐसे त व क े वग म आती है जसका कोई प, , या रंग नह है। यह कसी बाहरी मा यम से जांच करने क े लायक नह ह। ले कन इसका मतलब यह नह है क इसका अ त व नह है, सफ इतना है क व ान इसे ढूंढने म असफल रहा है। [15] तब या इस लए क वै ा नक जांच नाकाम रही है, हम इसका प र याग कर देना चा हए? बलक ु ल नह । न ही मेरा सुझाव समृ क े ल य को नकारने का है। हमारी क ृ त ही ऐसी है क हमारे शारी रक एवं भौ तक अनुभव हमारे जीवन म अहम भू मका नभाते ह। प से व ान एवम तकनीक उपल यां हमारी बेहतर एवं आरामदायक अ त व क कामना को दशाती ह। यह ब त अ ा है। कौन आधु नक च क सा क ग त क सराहना करने से वयं को रोक सकता है? [16] इसक े साथ ही, म सोचता ँ यह न त प से स य है क पारंप रक ामीण समुदाय क े सद य क े पास आधु नक शहर म बसे लोग क तुलना म स ाव और शां त का अ धक आनंद है। उदाहरण क े लए, उ री भारत क े ी त े म ानीय लोग म यह रवाज है क वे बाहर जाने क े समय अपने घर पर ताला नह लगाते । ऐसी आशा क जाती है क घर को खाली पाने वाले आगंतुक मेजबान का इंतजार करते समय घर क े अंदर जा कर क ु छ खा और पी सकते ह। पहले क े दन त बत म भी ऐसा पाया जाता था। ऐसा नह क ऐसे ान पर अपराध क घटनाएं नह होती थी। त बत क े अ त मण क े पहले ऐसी घटनाएं कभी कभी होती थी, और जब ऐसा होता था, लोग आ यच कत होते थे। ऐसी घटनाएं
  • 21. वरले और असामा य होती थी। इसक े वपरीत, क ु छ आधु नक शहर म अगर एक दन भी ह या न हो तो यह असाधारण बात होती है। शहरीकरण क े साथ आपसी झगड़े बढ़े ह। [17] हम पुरानी जीवन शैली क यादा शंसा करने म सावधानी बरतनी चा हए। अ वक सत गाँव म रहने वाले समुदाय क े बीच गहरे सहयोग का कारण स ावना से यादा उनक आव यकता थी। लोग को यह मालूम था क पार रक सहयोग क े अभाव म जीवन यादा क द होगा। इसक े साथ, जसे हम संतु समझते ह शायद उसका मु य कारण अ ानता हो। जीवन यापन का कोई सरा रा ता भी है, यह लोग शायद न समझ सकते ह और न ही शायद इसक कोई क पना ही कर सकते ह । अगर वो ऐसा कर पाते काफ स व था तो क वे ऐसे जीवन को उ साह से अपनाते। इस लए चुनौती हमारे सामने यह है क हम ऐसे उपाय ढूंढ़ जनसे हम नया क इस सह ा द क े आर क े भौ तक वकास का पूरा फायदा उठाते ए उसी सौहा ता एवं शां त का आनंद ले सक, जो पार रक समाज क े लोग को उपल है। क ु छ और कहने का अथ तो यही होगा क अ वक सत समाज म रहने वाले लोग अपने जीवन तर को सुधारने क कोई को शश नह कर। उदाहरण क े लए, म एकदम न त मत ँ क त बत क खानाबदोश जा त म यादातर लोग जाड़ क े लए आधु नक गरम कपड़े, खाना बनाने क े लए बना धुंएँ वाला धन, आधु नक दवाइयाँ, एवं अपने त बू म उठा ले जाने वाले टेली वजन को पा कर खुश ह गे। म तो बलक ु ल ऐसा नह चा ंगा क े वे इन सु वधा से वं चत रह जाएँ। [18] आधु नक समाज, अपनी सारी सु वधा एवं दोष क े साथ, अन गनत कारण एवं प र तय क वजह से गट आ है। ऐसा सोचना गलत होगा क सफ भौ तक वकास को याग कर हम अपनी सभी सम या का समाधान कर लगे। ऐसा करना उसक े मूलभूत कारण को अनदेखा करना होगा। इसक े अलावा, आधु नक नया म भी ब त क ु छ ऐसा है, जससे हम आशा वत हो सकते ह। [19] सबसे वक सत रा म भी अन गनत ऐसे लोग ह जो सर क े हत क चता म स य ह। अपने देश म ही, मेरी जानकारी म ब त से ऐसे लोग ह जनक खुद क अव ा ब त ठ क नह होते ए भी उ ह ने हम त बत क े लोग क े त बड़े उपकार कये ह। उदाहरण क े तौर पर, हमारे ब को उन भारतीय श क क नः वाथ सेवा से ब त फायदा आ है, जनम से कई को ब को पढ़ाने क े लए काफ क ठन अव ा म अपने प रवार से र रहना पड़ा है। बड़े पैमाने पर, हम व म मौ लक मानवा धकार क बढ़ती सराहना को भी
  • 22. यान म रख सकते ह। मेरी धारणा है क यह एक ब त अ ग त है। जस तरह से अंतरा ीय समाज ाक ृ तक आपदा क े उ र म शी ा तशी पी ड़त लोग क मदद करता है वह इस आधु नक व क े लए एक शंसनीय बात है। ऐसे ही इस बात क बढ़ती ई समझदारी क हम अपने ाक ृ तक पयावरण क े साथ बना इसक े प रणाम भुगते लगातार यादती नह कर सकते ह, एक आशा का कारण है। इसक े अलावा, मेरा मानना है क बढ़ते ए संचार क वजह से शायद लोग म मानव क व वधता को वीकार करने क मता म वृ ई है, और स ूण व म आज सा रता एवं श ा क े मानक पहले से कह यादा है। इन सभी सकारा मक वकास क े काय को म हम मनु य क मता क े प म देखता ँ। [20] हाल म मुझे इं लड म रानी माँ (रानी ए लजाबेथ) से मलने का मौका मला। वह मेरे पूरे जीवन म एक प र चत रह ह, इस लए उनसे मल कर म ब त खुश आ। ले कन सबसे उ सा हत करने वाली बात यह लगी क, एक ऐसी ी, जनक आयु बीसव शता द क े ही बराबर है, क े वचार म आजकल क े लोग सर क े बारे म काफ जाग क ह, ब न बत उस समय क े जब वह युवती थ । उ ह ने कहा क उन दन लोग यादातर अपने ही रा क भलाई क सोचते थे, जब क वतमान म लोग अ य देश म रहने वाले लोग क े हत क े बारे म काफ यादा चता करने लगे ह। जब मने उनसे पूछा क या वह भ व य को लेकर आशावाद ह, उ ह ने बना हचक क े हाँ म उ र दया। [21] अव य ही यह वा त वकता है क वतमान समाज म हम नतांत नकारा मक वाह क तरफ संक े त कर सकते ह। इसम संदेह का कोई कारण नह है क ह या, हसा,एवं बला कार क घटना क सं या म हर साल बढ़ो री हो रही है। इसक े अ त र , हम नर तर समाज एवम् प रवार म हो रहे अ याचार, सामा जक शोषण, युवा लोग म बढती म दरा एवं अ य मादक क लत, एवं अ धका धक सं या म वैवा हक स ब क े संबंध व ेद क े कारण ब पर हो रहे भाव क े बारे म सुनते ह । यहाँ तक क हमारा छोटा सा शरणाथ समुदाय भी इससे नह बच सका है। उदाहरण क े लए जब क पूव म त बत म आ मह या क घटनाएँ नह क े बराबर थ , क ु छ समय से हमारे शरणाथ समाज म भी एक दो आ मह या क खद घटनाएँ ई ह। ऐसे ही जब क पछली पीढ़ म त बत क े युवक क े बीच नशे क लत नह थी, अब क ु छ नशे क घटनाएँ भी देखने को मलती ह, जो अ धकतर उन ान पर आधु नक शहरी जीवन क े भाव क े कारण उ प ई ह। [22]
  • 23. फर भी, रोग, वृ ाव ा, एवं मृ यु क े क को छोड़कर इनम से कोई भी सम या वभाव से अप रहाय नह है। न ही इनका कारण ान का अभाव है। जब हम इन पर यानपूवक वचार करते ह तो पाते ह क ये सभी नै तकता क सम याएं ह। इनम से हर एक--सही या गलत या है, सकारा मक या नकारा मक या है, तथा उ चत या अनु चत या है--क समझ को दशाती ह। ले कन इसक े आगे हम एक मूलभूत त य क तरफ इशारा कर सकते ह जो है एक ऐसी चीज़ क अवहेलना जसे म आंत रक आयाम कहता ँ। [23] मेरा इससे या ता पय है? मेरी समझ क े अनुसार भौ तक साम य पर ब त यादा यान देना हमारी इस धारणा को दशाता है क हम जो खरीद सकते ह, वह अपने आप हम ऐसी सारी संतु दे सकता है जसक हम आव यकता है। ले कन वा तव म वभावानुसार भौ तक व तुएँ हम उतना ही सुख दान कर सकती ह, जतना इं य से ा है। अगर ऐसा होता क हम मनु य पशु से भ नह ह तो फर यह ठ क था। ले कन हमारी जा त क ज टलता को लेकर, वशेषकर इस स य को देखने से क हमारे अंदर वचार एवं भावना क े साथ साथ क पना एवम व ेषण करने क भी मता है, यह हो जाता है क हमारी आव यकताएँ इ य सीमा से कह परे है। जन लोग क मौ लक आव यकताएँ पूरी हो चुक ह, उनम ा त तनाव, चता, ाक ु लता, अ न तता, एवं नराशा क ब लता इसका संक े त है। हमारी दोन कार क सम याएँ, ज ह हम बाहर से अनुभव करते ह जैसे यु , अपराध, एवं हसा एवं वे ज ह हम आंत रक प से भुगतते ह जैसे हमारे भावा मक एवं मान सक ःख, उन सभी का समाधान तब तक स व नह होगा जब तक हम इस भूल को नह सुधार लेते ह। यही कारण है क पछले सौ या उससे भी अ धक वष क महान ां तयाँ-- जातं , उदारवाद, समाजवाद --सभी अ त वचार क े बावजूद व यापी क याण दान करने म असफल रही ह, जैसी क उनसे आशा क जाती थी। न य ही एक नवीन ा त क आव यकता है। ले कन वह ां त राजनै तक-आ थक नह होगी, यहाँ तक क ौ ो गक य भी नह होगी। पछली सद म हम इसका काफ अनुभव आ क मनु य क ग त क े लए पूणतः भौ तक माग पया त नह है। म आपक े सम एक आ या मक ां त का ताव रखना चाहता ँ। [24] मनन यो य १. लेखक का उन लोग क े बारे म या राय है जनक े पास भौ तक समृ है तथा जो आराम वाली ज़ दगी जीते दखाई देते ह? २ लेखक क धारणा म धम एवं नै तकता म या स ब है?
  • 24. ३. लेखक क धारणा म “नै तक सम या” का या फल होता है?
  • 25. अ याय २ - न जा न रह य तो या आ या मक ा त क बात कर आ खर म एक अपनी सम या क े धा मक समाधान क बात कर रहा ँ? एक ऐसा मनु य जसक आयु स र साल क े पास है, मने इतना अनुभव अव य ा त कर लया है क म पूण व ास क े साथ कह सकता ँ क भगवान बु क श ा मनु य क े लए ासं गक और उपयोगी है। अगर कोई इस श ा को वहार म लाता है तो यह न त है क ना सफ वह अपना क याण करेगा ब क सरे लोग भी इससे लाभा वत ह गे। नया भर क े व भ लोग से मलकर मुझे यह समझने म सहायता मली है क नया म कई धम ह, कई सं क ृ तयां ह , जो लेाग को एक सकारा मक एवम् संतोषजनक जीवनयापन करने क दशा म ले जाने क े लये मेरी सं क ृ त से कसी कार से कम नह है। इसक े अ त र म इस नतीजे पर प ंचा ं क मनु य कसी धम म आ ा रखता है या नह इससे यादा फक नह पड़ता है। सबसे मह वपूण बात यह है क वह अ ा मनु य हो। [1] म यह बात इस त य को वीकार करते ए कहता ँ क इस धरती क े छह सौ करोड़ लोग भले इस या उस धम को मानने का दावा करते ह , क तु धम का लोग क ज दगी पर भाव काफ कम है, खास कर क े वक सत रा म । मुझे स देह है क इस नया म शायद एक सौ करोड़ भी ऐसे ह ज ह म सम पत धा मक अनु ाता कह सक ूं , जो अपने दै नक जीवन म धम क े स ा त एवम् नयम का पालन न ा पूवक करते ह । इस अथ म बाक क े लोग धम का पालन नह करने वाले लोग म से ह । जो सम पत अनु ाता ह, वे ब त से धम का पालन करते ह। इससे यह बात साफ होती है क हमारी व वधता क े कारण कोई एक धम सारे मनु य क े लये पया त नह हो सकता है। हम यह न कष भी नकाल सकते ह क मनु य बना कसी धम का सहारा लये भी अपना जीवनयापन भली भां त कर सकता है। [2] ऐसी बात एक धा मक क े मुख से अटपट लग सकती ह, ले कन दलाई लामा से थम म एक त बती ं, एवम् त बती होने क े पूव म एक मनु य ँ । एक तरफ दलाई लामा क े प म मेरे ऊपर त बत क े लोग क े लये खास ज मेदारी है, सरी ओर एक भ ु क े प म सभी धम क े बीच म स ावना बढ़ाने क भी मेरी वशेष ज मेदारी है। इसक े साथ एक मनु य होने क े नाते भी मुझ पर पूरे मानव प रवार क एक और भी बड़ी ज मेदारी है, जो वा तव म हम सभी का उ रदा य व है। य क ब सं यक लोग कसी
  • 26. धम का पालन नह करते ह, मेरा उ े य एक ऐसा रा ता ढूंढने का है, जससे म कसी धा मक आ ा का सहारा लए बना सारी मानवता का क याण कर सक ूँ । [3] वा तव म मेरा व ास है क अगर हम लोग व क े मुख धम को बड़े नज रये से देख तो हम पायगे क उन सभी - बौ , ईसाई, ह , इ लाम, य द , सख, पारसी एवं अ य - का ल य मनु य को एक सतत सुख क ा त करने म सहायता करना है। उसक े साथ मेरे वचार से उनम से हर एक इस ल य को ा त कराने म स म है । इन प र तय म हम यह कह सकते ह क धम क ( जन सबम एक ही आधारभूत मू य ह) व वधता अभी एवं उपयोगी है। [4] ऐसा नह है क म हमेशा ऐसा ही सोचता था। जब म छोटा था और त बत म रहता था, म अपने मन म सोचता था क बौ धम सबसे उ म माग है। म खुद से कहता था क कतना सुंदर होगा अगर पूरा व धमा त रत हो कर बौ धम का पालन करने लगे। ले कन यह मेरी अ ानता थी। हम त बती लोग ने अव य ही अ य धम क े बारे म सुना था। ले कन उनक े बारे म हम जो भी थोड़ा ब त जानते थे, उसका आधार बौ धम क े ही त बती भाषा म अनू दत तीय ोत थे। वाभा वक प से उनका यान उन त य पर था, जन पर बौ कोण से वाद ववाद संभव था। ऐसा नह था क बौ व ान जानबूझकर कर अपने पूवप का उपहास करना चाहते थे। वा तव म इससे यह बात द शत होती है क उनक े लये उन त य को स बो धत करने क आव यकता नह थी, जन पर उनक े बीच म कोई ववाद नह था य क जन शा पर चचा होती थी वे भारत म, जहाँ उन क रचना यी थी, पूण प से उपल थे। भा य से त बत म यह बात नह थी। अ य शा क े अनुवाद त बती भाषा म उपल नह थे। [5] जैसे जैसे म बड़ा आ, धीरे धीरे म अ य धम क े बारे म जानने लगा। खासकर क े वास म जाने क े बाद म ऐसे लोग से मलने लगा, जो अपना जीवन व भ धम को सम पत कर- क ु छ लोग ाथना करते ए, क ु छ यान करते ए, क ु छ लोग और क सेवा करते ए, अपनी अपनी पर रा का ग ीर अनुभव ा त कर चुक े थे। ऐसे गत संपक से मुझे यह सहायता मली क म सारी मुख पर रा क े वृहत मू य से अवगत आ जससे मुझम उनक े लये गहरे आदर क भावना पैदा ई। मेरे लये बौ धम सबसे मह वपूण माग है। यह मेरे व से मेल खाता है। ले कन इसका मतलब यह नह है क
  • 27. म इसे सब क े लए सव म माग मानता ँ, उससे भी यादा न ही म यह सोचता ँ क हर को कसी न कसी धम का अनुयायी होना चा हए। [6] अव य ही एक त बती एवं एक भ ु क े प म मेरा पालन पोषण, मेरी श ा, बौ धम क े स ांत एवं नयम तथा अनुशीलन क े अनुसार ई है। इस लये म इस बात को नकार नह सकता ँ क मेरी सोच पर भगवान बु क े अनुयायी होने का भाव नह पड़ा है। फर भी इस पु तक म मेरा यास यह है क म अपने धम क औपचा रक सीमा क े बाहर जा कर लोग तक प ंचूँ। म यह दखाना चाहता ँ क नया म वाकई ऐसे वै ीय नै तक स ांत ह, जो हर मनु य को वही सुख देने म सफल हो सकते ह, जनक हम सभी कामना करते ह। क ु छ लोग यह स देह कर सकते है क म परो प से बौ धम क े चार का यास कर रहा ँ । जहाँ यह मेरे लए नकारना मु कल है, ले कन यह स य नह है। [7] वा तव म मेरा व ास है क धम एवं आ या मकता म गंभीर अंतर है। मेरा धम क े बारे म यह सोचना है क इसका स ब एक या सरे धा मक परंपरा क े मु क े दावे म व ास से है, जो कसी प म वग या नवाण जैसी अभौ तक अथवा अलौ कक त य को वीकार करता है तथा इसक े साथ म जुड़ी ई ह धा मक श ा, ढ़याँ, री तयां, ाथनाएँ इ या द। मेरा मानना है क आ या मकता का संबंध मै ी, क णा, धैय, सहनशीलता, माशीलता, संतु , उ रदा य व क भावना, एवं सौहा ता क भावना जैसे मानवीय गुण से है, जनसे वयं क े साथ अ य लोग को भी सुख क ा त होती है। री तयां, ाथनाएं, नवाण एवं मु क बात धम वशेष म व ास से स बं धत ह, पर तु मै ी एवं क णा जैसे आंत रक गुण का धम से स ब होने क आव यकता नह है। इस लए इसका कोई कारण नह है क इन गुण को उ तर तक बना कसी धा मक या अलौ कक व ास का सहारा लये अपने अंदर बढ़ाने का यास नह करे। इस लए म कभी कभी कहता ँ क धम एक ऐसी चीज है, जसक े बना शायद हम अपना काम चला सकते है। ले कन इन मूल आ या मक गुण क े बना नह । [8] जो कसी धम क े अनुयायी ह, वाभा वक प से ऐसा कह सकते ह क ये गुण धम को स े मन से पालन करने का फल ह और इस लए इन आंत रक गुण को वक सत करना धम से ही संभव है, जसे हम आ या मक यास कह सकते ह। ले कन हम इस त य को प से समझना चा हए। धम क े अवल बी होने पर आ या मक अनुशीलन आव यक है। फर भी ऐसा लगता है क धम क े अनुया यय एवं धम क े अ व ासी, दोन म इस बात
  • 28. को लेकर असहम त रहती है क वा तव म इसका मतलब या है। जन गुण क ा या मने “आ या मक” प से क उनको संयु प से प रल त कर क ु छ हद तक अ य लोग क े हत क च ता करने को कह सकता ँ । त बती भाषा म हम इसे शेन फ े न क सेम कहते ह, जसका अथ है सर का क याण करने क कामना । जब हम इनक े बारे म सोचते ह तो पाते ह क इन पूव नै तक गुण क प रभाषा म परो प से सर क े क याण क भावना व मान है। इससे भी यादा जो क णामय, नेहशील, धैयवान, सहनशील, माशील आ द ह वे क ु छ हद तक अपने काय का और पर होने वाले भाव को देखते ए अपने वहार क व ा करते ह। अतः आ या मक अनुशीलन क प रभाषा एक ओर यह होती है क हमारे काय और क े हत को यान म रखते ए ह एवम सरी ओर यह हम तब करता है क हम अपने म वह प रवतन लाय जससे ऐसा करना हमारे लये सहज हो जाए। आ या मक अनुशीलन क प रभाषा अ य कसी कार से करना थ है। [9] इस कार मेरी आ या मक ां त का आ ान धा मक ां त का आ ान नह है। ना ही यह कसी पारलौ कक जीवन क े बारे म है और कोई जा या रह य तो कतई नह है। ब क यह वयं क े अंदर एक ां तकारी प रवतन का आ ान है, जो हम सदैव वाथ पूण चतन म ल त रहने क आदत से र करे । जन ा णय क े वृहत समाज से हम जुड़े ए ह, उसक े त यह हमारा यान मोड़ने का आ ान है एवं अपने हत क े साथ और क े हत का भी यान रखने का आ ान है। [10] यहां पर पाठकगण यह आप कर सकते ह क च र म ऐसा प रवतन न त प से वांछनीय है एवं यह भी अ ा है क लोग अपने अंदर क णा एवं नेह को वक सत कर परंतु आधु नक व क व वध एवम बड़ी सम या को हल करने म आ या मक ां त शायद ही पया त हो। इसक े अलावा यह भी तक दया जा सकता है क सम याएं जैसे घरेलू हसा, नशे एवं शराब क आदत, प रवार का बखरना आ द को समझने का उ म उपाय यह है क हम उ ह एक एक कर समझ एवं उनका नदान ढूंढ। फर भी जब हम ऐसा देखते ह क ऐसी सम या का समाधान इससे हो सकता है क लोग एक सरे से यादा नेह कर और अ य जीव क े त यादा क णा रख - भले ही यह बात कतनी भी असंभव लगे - हम उ ह आ या मक सम या क े प म देख सकते ह जनका समाधान आ या मक यास से हो सकता है। इसका मतलब यह नह है क हम सफ आ या मक मू य का वकास कर और ये सम याएं वतः गायब हो जायगी। इसक े वपरीत ऐसी येक सम या क े लये वशेष समाधान क आव यकता है। ले कन हम पाते ह क
  • 29. आ या मक आयाम क अवहेलना करने से हम इन सम या क े ायी समाधान क आशा नह कर सकते ह। [11] जरा वचार कर क ऐसा य है। बुरी खबर मलना जीवन क स ाई है। जब भी हम अखबार उठाते ह या टेलीवीजन अथवा रे डयो लगाते ह, हम अनेक खद खबर का सामना करना पड़ता है। एक दन भी ऐसा नह जाता है जब इस नया म कह पर कोई ऐसी घटना न ई हो, जसे सभी एक मत से भा यपूण मानते ह, भले हम लोग कह क े रहने वाले ह , भले हमारा जीवनदशन कोई हो, कम और यादा, हम सर का ख सुनकर खी होते ह। [12] इन घटना को दो ापक वभाग म बांटा जा सकता है। ऐसी घटनाएं जो मु यतः ाक ृ तक कारण से होती ह - भूक , सूखा, बाढ़ इ या द, एवं ऐसी जो मानव क ृ त ह। यु , अपराध, हर तरह क हसा, ाचार, गरीबी, धेाखा, एवं सामा जक, राजनै तक, एवं आ थक अ याय सभी नकारा मक मानवीय वहार का प रणाम ह। और कौन इन कम का उ रदायी है? हम ह। राजा, रा प त, धानमं ी, एवं राजनेता से लेकर शासन क े लोग, वै ा नक, च क सक, वक ल, अकाद मक, छा , पुजारी, भ ु णयां एवं मेरे जैसे भ ु से लेकर उ ोगप त, कलाकार, कानदार, तकनीक कमचारी, बढ़ई, मज र, और बेरोजगार, कोई ऐसा वग अथवा समाज का ह सा नह है, जसका इन त दन क बुरी खबर म योगदान न हो। [13] सौभा य से ाक ृ तक वपदा से भ , जन पर हमारा ब त कम अथवा कोई नयं ण नह है, मानव क ृ त सम याएं, जो वा तव म नै तकता क सम याएं ह, सबका समाधान संभव है। वा तव म यह त य क समाज क े हर वग एवं तर क े तमाम लोग इसका समाधान ढूंढने क दशा म कायरत ह, मानव क वृ को दशाता है। ऐसे तमाम लोग ह, जो याय क े प धर सं वधान को बनाने क े लये राजनी तक पा टय म ह सा लेते ह, ऐसे लोग ह, जो याय क े लए वक ल बनते है, ऐसे लेाग ह , जो ऐसी सं ा म ह सा लेते ह जो गरीबी र करने क े लए काम करती ह, ऐसे लोग ह जो पैसे क े लए अथवा बना पैसे क े लए पी ड़त लोग क े हत क े लये काम करते ह। वा तव म, हम सभी अपनी समझ और अपने तरीक क े अनुसार इस व को, जहाँ हम रहते ह, पहले से बेहतर बनाने का यास करते ह। [14]
  • 30. भा य से हम पाते ह क भले ही हमारी या यक व ा कतनी ही अ हो और भले ही बाहरी वषय पर वक सत नयं ण क े कतने भी साधन य न ह , अपने आप यह सब सभी सम या का समाधान नह कर सकते। दे खये क आजकल हमारे पु लसक मय क े पास ऐसे आधु नक यं ह जनक पचास साल पहले हम क पना भी नह कर सकते थे। इनक े पास नगरानी क े ऐसे तकनीक साधन है, जनसे इ ह वह सब दख जाता है, जो पहले गोचर नह होता था। इनक े पास डीएनए मलाने क मता है, परी ण क योगशालाएं ह, सूंघने वाले क ु े ह, एवम् अव य ही इनक े साथ काफ श त कमचारी ह। ले कन इन क े साथ साथ अपराध करने क े तरीक े भी इतने ही वक सत हो गए ह क हम कसी बेहतर प र त म नह ह। जहां पर नै तक नयं ण का अभाव हो, वहाँ पर बढ़ते ए अपराध जैसी सम या क े समाधान क कोई आशा नह है। वा तव म हम पाते ह क ऐसे आंत रक अनुशासन क े बना जन साधन का योग हम इन सम या क े समाधान क े लए करते ह, वही समाधान हमारी सम या का कारण बन जाते ह। अपरा धय एवं पु लस दोन क े नरंतर वक सत हो रहे साधन एक दोषपूण च क तरह एक सरे को बढ़ावा देते ह। [15] फर आ या मकता एवं नै तक आचार म या संबंध है? य क नेह, क णा एवं इसी तरह क े गुण अपनी प रभाषा क े अनुसार सरेां क े हत क चता करने क क ु छ तर तक अपे ा करते ह एवम् इन सब म नै तक संयम अपे त है। हमलोग वनाशकारी वृ य एवं इ ा पर नयं ण कये बना नेहशील एवं क णामय नह हो सकते ह। [16] जहां तक नै तक आचरण क न व का है, ऐसा माना जा सकता है कम से कम यहां म धम क े माग क वकालत करता ँ। सच है क हर मुख धा मक पर रा म एक वक सत नै तक प त व मान है। फर भी हमारी सही और गलत क समझ को धम से जोड़ने क सम या यह है क हम पूछना पड़ता है, ‘ कस धम से जोड़?‘ कस धम क े पास एक संपूण नै तकता क प त है, जो आसानी से उपल है एवं जो सबसे यादा वीकाय है? यह एक ऐसा ववाद है जो कभी ख म नह हो सकता है। इसक े अलावा ऐसा करना इस बात को अनदेखा करना होगा क ऐसे ब त सारे लोग ह जो धम को अ वीकार करते ह सोच समझ कर ढ न य से, न क इस लए क उनक े मन म मनु य क े अ तव क े बारे म गूढ़ क परवाह नह है। ऐसा मानना गलत होगा क ऐसे लोग म सही और गलत एवम नै तक प से या उ चत है क समझ नह है, सफ इस लए क क ु छ धम वरोधी लोग अनै तक ह । इसक े अलावा धम म व ास रखना नै तकता क कोई गारंट नह है। जब
  • 31. हम अपनी जा त का इ तहास देखते ह, हम अपने बीच ब त बड़े वनाशकारी लोग म ऐसे ह ज ह ने अपने साथी मनु य क े साथ हसक, ू र एवम वनाशकारी वहार कया। इनम से कई ऐसे रहे ह ज ह ने अ सर काफ जोर से धम म अपना व ास जताया था। धम मूलभूत नै तक स ांत क ापना म मदद कर सकता है। ले कन हमलोग नै तकता एवं सदाचार क बात बना धम का सहारा लये कर सकते ह। [17] पुनः इस पर आप हो सकती है क अगर हमलोग धम को नै तकता का ोत नह मानते तो फर हम यह वीकार करना होगा क या सही है या गलत है, या अ ा है, या बुरा है, या नै तक प से उ चत है एवम या अनु चत है, या सदाचार है एवम या राचार है, क समझ प र तय क े अनुसार भ हो सकती है एवं यहाँ तक क भ य क े लए भी भ हो सकती है। ले कन यहां पर म कहना चा ँगा क कसी को ऐसा नह समझना चा हए क कभी ऐसा संभव हो पाएगा क ऐसे कानून या नयम क व ा क जा सक े जससे हर नै तक वधा का उ र मल सक े , चाहे हम धम को नै तकता का आधार य न मान ल। मनु य क े समृ एवम् व वध अनुभव को समझने क े लये ऐसे सू ब उपाय क कभी क पना नह क जा सकती है। इससे ऐसे तक को भी सहारा मलेगा क हमारा उ रदा य व सफ कानून का श दशः पालन करने का है एवं हम अपने आचरण क े लये उ रदायी नह ह। [18] मेरे कहने का ता पय यह नह है क ऐसे स ांत को समझाना थ है, जो नै तक प से बा यकारी ह । इसक े वपरीत अगर हम अपनी सम या क े समाधान क कोई आशा है तो यह आव यक है क हम ऐसा करने का माग ढूंढ। हम कोई ऐसा उपाय अव य ढूंढना चा हए जससे हम, उदाहरण व प, राजनै तक सुधार क े लए आतंकवाद एवं महा मा गांधी क े शां तपूवक वरोध क े स ांत क े बीच उ चत-अनु चत का नणय कर सक। हम इसक े लये स म होना चा हए क सर क े त हसा का योग गलत है। फर भी हम कोई ऐसा रा ता ढूंढना चा हए जो एक तरफ अस य तानाशाही से एवं सरी ओर तु सापे तावाद क अ तवाद सीमा से बचे। [19] मेरा अपना वचार जो न तो पूणतया धा मक व ास पर आधा रत है और न ही कोई मौ लक दशन है ब क जो सामा य वहा रक ान पर आधा रत है, वह यह है क ऐसे बा यकारी नै तक स ांत क ापना तब संभव है जब हम अपने वचार क शु आत इस अवधारणा से करते ह क हम सभी सुख चाहते ह और ख से र रहना चाहते ह।