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वार्ाा
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Prachi Virag Sontakke
अर्ा
• धार्ुगर् उत्तपत्तत्त : वृत्त = वृत्तत्त
• वार्ाा : मानव समूह क
े आर्र्ाक-भौतर्क पक्ष से जुड़ी.
• उत्पाद, त्तवर्रण, वाणणज्य का अध्ययन
• त्रिआयामी अर्ा
वर्ण
व्यवसाय क
े
रूप मे
ज्ञान क
े
रूप मे
जीवनयापन
क
े साधन
क
े रूप मे
वार्ाा : जीवनयापन क
े साधन क
े रूप मे
• प्रारंभ में , वार्ाा = कृ त्ति, पशुपालन, वाणणज्य संबंर्धर् जीवन यापन का साधन
• शशल्प /हस्र् कौशल / कारुक कमा से त्तवलग
• कालांर्र में, वार्ाा में शशल्प शाशमल ककया गया
• महाभारर् : कारुकशशल्प = वार्ाा का अंग
• अर्ाशास्ि : राज्य वार्ाा क
े माध्यम से अन्न, पशु, धन र्र्ा अन्य संसाधन की
प्राप्तर् करर्ी है
• वार्ाा = राजकोि भरने का एक साधन
वार्ाा ज्ञान की शाखा क
े रूप में
• ज्ञान की शाखा क
े रूप में वार्ाा क
े मुख्य र्रीक
े , उनकी र्कनीक र्र्ा वार्ाा क
े मागों का अध्ययन
• A.N.Benerjee: वार्ाा का अध्ययन करने वालों को धन की प्राप्तर् होर्ी र्ी
• कौटिल्य : ज्ञान की 4 शाखाएँ = आणवीिकी (Philosophy), ियी (Three Vedas), वार्ाा , दंडननीतर्
• ब्रहस्पतर् : ज्ञान की 2 शाखाएँ = वार्ाा व दंडननीतर्.
• शुक्रनीतर् : वार्ाा लाभ एवं हातन का त्तवज्ञान
• देवी भागवर् पुराण : देवी को जानने क
े 4 साधन – उनमे वार्ाा एक
• भागवर् पुराण : चर्ुत्तवाद्याओं में से एक वार्ाा = Agriculture, commerce, cow security, interest taking.
• गौर्म धमासूि + मत्स्य पुराण + मनुस्मृतर् : ज्ञान की शाखा क
े रूप में वार्ाा का अध्ययन.
• भागवर् पुराना : कृ ष्ण ने वार्ाा का अध्ययन ककया
• नीतर्सार + शुक्रनीतर् + याजनवल््य स्मृतर् : राजा को वार्ाा का अध्ययन करना आवश्यक
वार्ाा वणा व्यवसाय क
े रूप में
• वार्ाा : प्रारंभ में वैश्य वणा क
े व्यवसाय क
े रूप में र्चप्न्हर्
• महाभारर् : ियी , दंड़नीतर् , वार्ाा – ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हेर्ु
• कौटिल्य : वैश्य क
े र्ीन प्रमुख व्यवसाय – कृ त्ति, पशुपालन एवं वार्ाा.
• Kamandak + Vishnupurana : वार्ाा = वैश्यों का जीवन यापन
• कालांर्र में वार्ाा को शूद्रों क
े व्यवसाय क
े रूप में भी देखा गया
वार्ाा की उत्पत्तत्त
• मत्स्य पुराण : वार्ाा की उत्पत्तत्त हृदय, मप्स्र्ष्क र्र्ा कमा द्वारा प्रतर्पाटदर्
व्यवधानों क
े तनवाकरण हेर्ु
• जैन कल्पसूि : र्ीर्ंकर ऋिभदेव ने 3 व्यवसायों की स्र्ापना की जो वार्ाा
क
े रूप में जाने गए
• प्रारंभ में वार्ाा को शशल्प से त्तवलग रखा गया
• संभवर्ः वार्ाा की अवधारणा का उद्गम उस समय हुआ जब समाज में
शशल्प महत्वपूणा नहीं र्े .
वार्ाा का स्वरूप
• कौटिल्य + मनुस्मृतर् + शमशलंदपनह + नीतर्सार : वार्ाा = कृ त्ति, पशुपालन व वाणणज्य
• अर्ाशास्ि : वार्ाा क
े साधन दशान एवं पुरुक्षसर्ा क
े समर्ुल्य
• काशलदास : वार्ाा का अर्ा है कृ त्ति एवं पशुपालन
• शुक्र नीतर् : क
ु सीवद व वाणणज्य वार्ाा का अंग
• देवी भागवर् पुराण : वार्ाा में कमांर् = उद्योग भी शाशमल
• त्तवल्सन : वार्ाा में शशल्प, यांत्रिकी, र्क्षण, आयुवेद भी संलग्न
• हेमचन्द्र : जीवनयापन हेर्ु वार्ाा महत्वपूणा.
• अर्ाशास्ि : राजकोि भरने का प्रमुख साधन = वार्ाा
• रामायण : वार्ाा सुख समृद्र्ध पाने का साधन
वार्ाा
• वायु + ब्रह्मांडन पुराण : िेर्ा युग में वार्ाा की उत्पत्तत्त हुई .
• महाभारर् : नारद का युर्धप्ष्िर से प्रश्न: ‘ ्या र्ुम वार्ाा पर ध्यान दे रहे हो?’.
• रामायण : राम द्वारा वार्ाा में संलग्न लोगों का हाल चाल पूछनना भरर् से .
• अर्ाशास्ि : राज्य क
े त्तवकास में वार्ाा की भूशमका .
• मनुस्मृतर् : वार्ाा का उल्लेख .
• अमरकोश : वार्ाा जीवनयापन का पयााय है .
• पुराण : वार्ाा अर्ा की धुरी है .
वार्ाा क
े घिक र्त्व
कृ त्ति
पशुपालन
वाणणज्य
क
ु सीद
कारूशशल्प
वार्ाा संबंधी तनयम
• ज्ञान की शाखा क
े रूप में वार्ाा का अध्ययन
• वार्ाा क
े मुख्य तनयमों की चचाा
• व्यवसाय गर् तनयम, वार्ाा व्यवहार क
े तनयम इत्याटद
• Mahabharata: जब र्क वार्ाा क
े तनयमों का पालन होगा, समाज समृद्ध रहेगा .
• Arthashastra: राजा राज्य में स्वयं को वार्ाा क
े तनयमों से पररर्चर् रखे र्र्ा वार्ाा
में होने वाले पररवर्ानों पर भी दृप्ष्ि रखे.
• Other texts: वार्ाा का पालन ना होने पर समाज का पर्न सुतनप्श्चर् .
वार्ाा का महत्व
• मानुिीय जीवन यापन क
े साधनों की पहचान एवं गणना वार्ाा क
े रूप में
• जीवन यापन क
े साधनों का महत्व = वार्ाा का महत्व
• वार्ाा पर बल क
े फलस्वरूप व्यापारों क
े त्तवकास पर बल : बेहर्र सुत्तवधाएँ एवं अवसर
प्रदान करने की व्यवस्र्ा राज्य द्वारा
• प्राचीन भारर्ीय अध्ययन क
े त्तवियों मे वार्ाा का समावेश = वैकप्ल्पक शशक्षा
• वार्ाा क
े माध्यम से जीवन यापन एवं व्यापाररक गतर्त्तवर्धयाँ सुस्पष्ि एवं सुपररभात्तिर्
• वगा त्तवशेि का वार्ाा से संबंध : आर्र्ाक गतर्त्तवर्धयों क
े कक्रयान्वयन में पारदशशार्ा
• वार्ाा और श्रेणी का उदय
वार्ाा की महत्ता
• मानव समाज एक आधार
• जीवन यापन का साधन
• भौतिक समृद्धध हेिु आवश्यक
• समाज, राज्य क
े उन्नयन हेिु अहम
• वािाण क
े अध्ययन से बेहिर अर्णव्यस्र्ा की प्राप्ति

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  • 2.
  • 3. अर्ा • धार्ुगर् उत्तपत्तत्त : वृत्त = वृत्तत्त • वार्ाा : मानव समूह क े आर्र्ाक-भौतर्क पक्ष से जुड़ी. • उत्पाद, त्तवर्रण, वाणणज्य का अध्ययन • त्रिआयामी अर्ा वर्ण व्यवसाय क े रूप मे ज्ञान क े रूप मे जीवनयापन क े साधन क े रूप मे
  • 4. वार्ाा : जीवनयापन क े साधन क े रूप मे • प्रारंभ में , वार्ाा = कृ त्ति, पशुपालन, वाणणज्य संबंर्धर् जीवन यापन का साधन • शशल्प /हस्र् कौशल / कारुक कमा से त्तवलग • कालांर्र में, वार्ाा में शशल्प शाशमल ककया गया • महाभारर् : कारुकशशल्प = वार्ाा का अंग • अर्ाशास्ि : राज्य वार्ाा क े माध्यम से अन्न, पशु, धन र्र्ा अन्य संसाधन की प्राप्तर् करर्ी है • वार्ाा = राजकोि भरने का एक साधन
  • 5. वार्ाा ज्ञान की शाखा क े रूप में • ज्ञान की शाखा क े रूप में वार्ाा क े मुख्य र्रीक े , उनकी र्कनीक र्र्ा वार्ाा क े मागों का अध्ययन • A.N.Benerjee: वार्ाा का अध्ययन करने वालों को धन की प्राप्तर् होर्ी र्ी • कौटिल्य : ज्ञान की 4 शाखाएँ = आणवीिकी (Philosophy), ियी (Three Vedas), वार्ाा , दंडननीतर् • ब्रहस्पतर् : ज्ञान की 2 शाखाएँ = वार्ाा व दंडननीतर्. • शुक्रनीतर् : वार्ाा लाभ एवं हातन का त्तवज्ञान • देवी भागवर् पुराण : देवी को जानने क े 4 साधन – उनमे वार्ाा एक • भागवर् पुराण : चर्ुत्तवाद्याओं में से एक वार्ाा = Agriculture, commerce, cow security, interest taking. • गौर्म धमासूि + मत्स्य पुराण + मनुस्मृतर् : ज्ञान की शाखा क े रूप में वार्ाा का अध्ययन. • भागवर् पुराना : कृ ष्ण ने वार्ाा का अध्ययन ककया • नीतर्सार + शुक्रनीतर् + याजनवल््य स्मृतर् : राजा को वार्ाा का अध्ययन करना आवश्यक
  • 6. वार्ाा वणा व्यवसाय क े रूप में • वार्ाा : प्रारंभ में वैश्य वणा क े व्यवसाय क े रूप में र्चप्न्हर् • महाभारर् : ियी , दंड़नीतर् , वार्ाा – ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हेर्ु • कौटिल्य : वैश्य क े र्ीन प्रमुख व्यवसाय – कृ त्ति, पशुपालन एवं वार्ाा. • Kamandak + Vishnupurana : वार्ाा = वैश्यों का जीवन यापन • कालांर्र में वार्ाा को शूद्रों क े व्यवसाय क े रूप में भी देखा गया
  • 7. वार्ाा की उत्पत्तत्त • मत्स्य पुराण : वार्ाा की उत्पत्तत्त हृदय, मप्स्र्ष्क र्र्ा कमा द्वारा प्रतर्पाटदर् व्यवधानों क े तनवाकरण हेर्ु • जैन कल्पसूि : र्ीर्ंकर ऋिभदेव ने 3 व्यवसायों की स्र्ापना की जो वार्ाा क े रूप में जाने गए • प्रारंभ में वार्ाा को शशल्प से त्तवलग रखा गया • संभवर्ः वार्ाा की अवधारणा का उद्गम उस समय हुआ जब समाज में शशल्प महत्वपूणा नहीं र्े .
  • 8. वार्ाा का स्वरूप • कौटिल्य + मनुस्मृतर् + शमशलंदपनह + नीतर्सार : वार्ाा = कृ त्ति, पशुपालन व वाणणज्य • अर्ाशास्ि : वार्ाा क े साधन दशान एवं पुरुक्षसर्ा क े समर्ुल्य • काशलदास : वार्ाा का अर्ा है कृ त्ति एवं पशुपालन • शुक्र नीतर् : क ु सीवद व वाणणज्य वार्ाा का अंग • देवी भागवर् पुराण : वार्ाा में कमांर् = उद्योग भी शाशमल • त्तवल्सन : वार्ाा में शशल्प, यांत्रिकी, र्क्षण, आयुवेद भी संलग्न • हेमचन्द्र : जीवनयापन हेर्ु वार्ाा महत्वपूणा. • अर्ाशास्ि : राजकोि भरने का प्रमुख साधन = वार्ाा • रामायण : वार्ाा सुख समृद्र्ध पाने का साधन
  • 9. वार्ाा • वायु + ब्रह्मांडन पुराण : िेर्ा युग में वार्ाा की उत्पत्तत्त हुई . • महाभारर् : नारद का युर्धप्ष्िर से प्रश्न: ‘ ्या र्ुम वार्ाा पर ध्यान दे रहे हो?’. • रामायण : राम द्वारा वार्ाा में संलग्न लोगों का हाल चाल पूछनना भरर् से . • अर्ाशास्ि : राज्य क े त्तवकास में वार्ाा की भूशमका . • मनुस्मृतर् : वार्ाा का उल्लेख . • अमरकोश : वार्ाा जीवनयापन का पयााय है . • पुराण : वार्ाा अर्ा की धुरी है .
  • 10. वार्ाा क े घिक र्त्व कृ त्ति पशुपालन वाणणज्य क ु सीद कारूशशल्प
  • 11. वार्ाा संबंधी तनयम • ज्ञान की शाखा क े रूप में वार्ाा का अध्ययन • वार्ाा क े मुख्य तनयमों की चचाा • व्यवसाय गर् तनयम, वार्ाा व्यवहार क े तनयम इत्याटद • Mahabharata: जब र्क वार्ाा क े तनयमों का पालन होगा, समाज समृद्ध रहेगा . • Arthashastra: राजा राज्य में स्वयं को वार्ाा क े तनयमों से पररर्चर् रखे र्र्ा वार्ाा में होने वाले पररवर्ानों पर भी दृप्ष्ि रखे. • Other texts: वार्ाा का पालन ना होने पर समाज का पर्न सुतनप्श्चर् .
  • 12. वार्ाा का महत्व • मानुिीय जीवन यापन क े साधनों की पहचान एवं गणना वार्ाा क े रूप में • जीवन यापन क े साधनों का महत्व = वार्ाा का महत्व • वार्ाा पर बल क े फलस्वरूप व्यापारों क े त्तवकास पर बल : बेहर्र सुत्तवधाएँ एवं अवसर प्रदान करने की व्यवस्र्ा राज्य द्वारा • प्राचीन भारर्ीय अध्ययन क े त्तवियों मे वार्ाा का समावेश = वैकप्ल्पक शशक्षा • वार्ाा क े माध्यम से जीवन यापन एवं व्यापाररक गतर्त्तवर्धयाँ सुस्पष्ि एवं सुपररभात्तिर् • वगा त्तवशेि का वार्ाा से संबंध : आर्र्ाक गतर्त्तवर्धयों क े कक्रयान्वयन में पारदशशार्ा • वार्ाा और श्रेणी का उदय
  • 13. वार्ाा की महत्ता • मानव समाज एक आधार • जीवन यापन का साधन • भौतिक समृद्धध हेिु आवश्यक • समाज, राज्य क े उन्नयन हेिु अहम • वािाण क े अध्ययन से बेहिर अर्णव्यस्र्ा की प्राप्ति