Bacchey kaam par ja rahe hain by Rajesh joshi

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बच्चे काम पर जा रहे हैं
- राजेश जोशी
राजेश जोशी (जन्म १९४६) साहहत्य अकादमी द्वारा
पुरस्कृ त हहन्दी साहहत्यकार हैं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के नरससिंहगढ़
जजले में हुआ। उन्होंने सशक्षा पूरी करने के बाद पत्रकाररता शुरू की और कु छ
सालों तक अध्यापन ककया। राजेश जोशी ने कववताओिं के अलावा कहाननयााँ,
नाटक, लेख और हटप्पणियााँ भी सलखीिं। साथ ही उन्होंने कु छ नाट्य रूपािंतर
तथा कु छ लघु किल्मों के सलए पटकथा लेखन का कायय भी ककया। उनके
द्वारा भतृहरर की कववताओिं की अनुरचना भूसमका "कल्पतरू यह भी" एविं
मायकोवस्की की कववता का अनुवाद "पतलून पहहना बादल" नाम से ककए
गए है। कई भारतीय भाषाओिं के साथ-साथ अाँग्रेजी, रूसी और जमयन में भी
उनकी कववताओिं के अनुवाद प्रकासशत हुए हैं।
राजेश जोशी के चार कववता-सिंग्रह- एक हदन बोलेंगे पेड़, समट्टी का
चेहरा, नेपथ्य में हाँसी और दो पिंजततयों के बीच, दो कहानी सिंग्रह -
सोमवार और अन्य कहाननयााँ, कवपल का पेड़, तीन नाटक - जादू
जिंगल, अच्छे आदमी, टिंकारा का गाना। इसके अनतररतत
आलोचनात्मक हटप्पणियों की ककताब - एक कवव की नोटबुक
प्रकासशत हुए हैं।उन्हें शमशेर सम्मान, पहल सम्मान, मध्य प्रदेश
सरकार का सशखर सम्मान और माखनलाल चतुवेदी पुरस्कार के
साथ के न्र साहहत्य अकादमी के प्रनतजठित सम्मान से सम्माननत
ककया गया है। राजेश जोशी की कववताएाँ गहरे सामाजजक असभप्राय
वाली होती हैं। वे जीवन के सिंकट में भी गहरी आस्था को उभारती
हैं। उनकी कववताओिं में स्थानीय बोली-बानी, समजाज़ और मौसम
सभी कु छ व्याप्त है। उनके काव्यलोक में आत्मीयता और
लयात्मकता है तथा मनुठयता को बचाए रखने का एक ननरिंतर सिंघषय
भी। दुननया के नठट होने का खतरा राजेश जोशी को जजतना प्रबल
हदखाई देता है, उतना ही वे जीवन की सिंभावनाओिं की खोज के सलए
बेचैन हदखाई देते हैं।
कोहरे से ढाँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पिंजतत है यह
भयानक है इसे वववरि के तरह सलखा जाना
सलखा जाना चाहहए इसे सवाल की तरह
काम पर तयों जा रहे हैं बच्चे?
तया अिंतररक्ष में गगर गई हैं सारी गेंदें
तया दीमकों ने खा सलया हैं
सारी रिंग बबरिंगी ककताबों को
तया काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे णखलौने
तया ककसी भूकिं प में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
तया सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के
आाँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो किर बचा ही तया है इस दुननया में?
ककतना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेककन इससे भी ज्यादा यह
कक हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुननया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' यह कववता बाल मजदूरी की ओर हमारा
ध्यान आकवषयत करती है। भारत एक ववशाल जनसमूह वाला देश है।
यहााँ पर गरीबी और असशक्षा का ववस्तार है। लोग गरीबी के कारि
भूखे मरने के सलए वववश हैं। धन का अभाव असशक्षा को बढ़ावा देता
है। गरीब बच्चों को खेलने-कू दने और पढ़ने की उम्र में मजदूरी करने
के सलए वववश होना पड़ता है। गरीबी के कारि माता-वपता बच्चों से
उनका बचपना छीनकर उनके हाथों में काम सौंप देते हैं। कवव राजेश
जोशी हमारे समाज में व्याप्त इस समस्या से आहत हैं। अपनी कववता
के माध्यम से वह समाज को जागृत करना चाहते हैं ताकक बच्चों के
बचपन को काम की भट्टी में झौंकने से रोका जा सके । यह हमारे देश
के सलए बड़ी शोचनीय बात है। लेखक पूरी कोसशश करता है कक इस
कववता के माध्यम से देश और समाज के सम्मुख प्रश्न रख सके कक
यह बच्चे तयों काम पर जा रहे हैं। कहीिं न कहीिं इसमें देश और
समाज का दोष है जो कक यह बच्चे काम पर जा रहे हैं। इनके बचपने
को नठट होने से रोकने के सलए कवव ने इस कववता की रचना की है।
बाल श्रम एक भयानक सचाई
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