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शिऺा क
े ऺेत्र भें
भहात्भा गाॊधी क
े
मोगदान का
वर्णन कये
महात्मा गाॊधी का ऩररचय
 मोहन दास करमचन्द गाॊधी जजन्हें भहात्भा गाॊधी
क
े नाभ से बी जाना जाता है, बायत एवॊ
बायतीम स्वतन्त्रता आन्दोरन क
े एक प्रभुख
याजनैततक एवॊ आध्माजत्भक नेता थे।
 जन्म की तारीख और समय: 2 अक्तूफय 1869,
ऩोयफन्दय
 हत्या की तारीख और जगह: 30 जनवयी 1948,
Birla House, नई ददल्री
 ऩत्नी: कस्तूयफा गाॊधी (वववा. 1883–1944)
 बच्चे: हरयरार भोहनदास गाॊधी, देवदास गाॊधी,
भणर्रार गाॊधी, याभदास गाॊधी
महात्मा गाॊधी का शिऺा दिशन
1) याष्ट्रवऩता भहात्भा गाॊधी का व्मजक्तत्व औय
कृ ततत्व आदिणवादी यहा है।
2) उनका आचयर् प्रमोजनवादी ववचायधाया से
ओतप्रोत था।
3) सॊसाय क
े अधधकाॊि रोग उन्हें भहान याजनीततऻ
एवॊ सभाज सुधायक क
े रूऩ भें जानते हैं।
4) ऩयन्तु उनका मह भानना था कक साभाजजक
उन्नतत हेतु शिऺा का एक भत्वऩूर्ण मोगदान
होता है।
महात्मा गाॊधी का शिऺा दिशन
5) अत् गाॊधीजी का शिऺा क
े ऺेत्र भें बी वविेष मोगदान
यहा है। उनका भूरभॊत्र था - 'िोषर्-ववहीन सभाज की
स्थाऩना कयना'। उसक
े शरए सबी को शिक्षऺत होना
चादहए।
6) क्मोंकक शिऺा क
े अबाव भें एक स्वस्थ सभाज का
तनभाणर् असॊबव है। अत् गाॊधीजी ने जो शिऺा क
े
उद्देश्मों एवॊ शसद्धाॊतों की व्माख्मा की तथा प्रायॊशबक
शिऺा मोजना उनक
े शिऺादिणन का भूतण रूऩ है।
7) अतएव उनका शिऺादिणन उनको एक शिऺािास्त्री क
े रूऩ
भें बी सभाज क
े साभने प्रस्तुत कयता है।
उनका शिऺा क
े प्रतत जो मोगदान था वह अद्ववतीम था।
आधारभूत शिऺादिशन शसद्धान्त
1) 7 से 14 वषण की आमु क
े फारकों की
तन्िुल्क तथा अतनवामण शिऺा होI
2) शिऺा का भाध्मभ भातृबाषा हो।
3) साऺयता को शिऺा नहीॊ कहा जा सकता।
4) शिऺा फारक क
े भानवीम गुर्ों का ववकास
कयना है।
5) शिऺा ऐसी हो जजससे फारक क
े ियीय,
हृदम, भन औय आत्भा का साभॊजस्मऩूर्ण
ववकास हो।
आधारभूत शिऺादिशन शसद्धान्त
6) सबी ववषमों की शिऺा स्थानीम उत्ऩादन उद्मोगों
क
े भाध्मभ से दी जाए।
7) शिऺा ऐसी हो जो नव मुवकों को फेयोजगायी से
भुक्त कय सक
े ।
8) गाॊधीजी क
े अनुसाय शिऺा का अथण - फारक औय
भनुष्ट्म क
े ियीय, भजस्तष्ट्क औय आत्भा भें
सवोत्तभ गुर्ों का चहुॊभुखी ववकास कयना है।
9) अत् फारक क
े सवाांगीर् ववकास हेतु उसक
े
िायीरयक, भानशसक, फौद्धधक एवॊ आध्माजत्भक
गुर्ों का ववकास कयना।
शिऺादिशन क
े उद्देश्य
1) जीविकोऩाजशन का उद्देश्य: गाॊधीजी क
े अनुसाय शिऺा ऐसी हो
जो आधथणक आवश्मकताओॊ की ऩूततण कय सक
े फारक
आत्भतनबणय फन सक
े तथा फेयोजगायी से भुक्त हो।
2) साॊस्कृ ततक उद्देश्य: गाॊधीजी ने सॊस्कृ तत को शिऺा का आधाय
भाना। उनक
े अनुसाय भानव क
े व्मवहाय भें सॊस्कृ तत ऩरयरक्षऺत
होनी चादहए।
3) ऩूर्श विकास का उद्देश्य: उनक
े अनुसाय सच्ची शिऺा वह है
जजसक
े द्वाया फारकों क
े िायीरयक, भानशसक औय आध्माजत्भक
ववकास हो सक
े ।
4) नैततक अथिा चाररत्रिक विकास: गाॊधीजी ने चारयत्रत्रक एवॊ
नैततक ववकास को शिऺा का उधचत आधाय भाना है।
शिऺादिशन क
े उद्देश्य
5) मुक्तत का उद्देश्य: गाॊधीजी का आदिण ‘‘सा ववधा मा ववभुक्तमे’’
अथाणत शिऺा ही हभें सभस्त फॊधनों से भुजक्त ददराती है। अत्
गाॊधीजी शिऺा क
े द्वाया आत्भववकास क
े शरमे आध्माजत्भक
स्वतॊत्रता देना चाहते थे। शिऺा क
े सवोच्च उद्देश्म क
े अॊतगणत वे
सत्म अथवा ईश्वय की प्राजतत ऩय फर देते थे। अत् भनुष्ट्म का
अॊततभ एवॊ सवोच्च उद्देश्म आत्भानुबूतत कयना है।
6) सामाक्जक उद्देश्य: गाॉधी जी क
े वर अॊग्रेजी दासता से
ही भुजक्त नहीॊ चाहते थे वयन् वे भानव का भानव क
े द्वाया
िोषर् की हय सॊबावना को सभातत कयना चाहते थे। इसक
े शरए
वे ग्राभ स्वयाज की स्थाऩना कयना चाहते थे।
इस प्रकाय भहात्भा गाॉधी शिऺा क
े द्वाया न क
े वर व्मजक्त वयन्
सभाज एवॊ याष्ट्र की सभस्त फुयाईमों को सभातत कयना चाहते
थे।
गाॊधीजी की बेशसक अथिा बुतनयादी शिऺा
1) अववनािशरॊगभ क
े िब्दों भें ‘‘फुतनमादी शिऺा
हभाये याष्ट्रवऩता का अॊततभ औय सॊबवत्
भहानतभ ् उऩहाय है।’’
2) सन् 1937 भें गाॊधीजी ने वधाण भें हो यहे
‘अणखर बायतीम याष्ट्रीम शिऺा सम्भेरन’
जजसे ‘वधाण शिऺा सम्भेरन’ कहा गमा था।
3) उसभें अऩनी फेशसक शिऺा की नमी मोजना
को प्रस्तुत ककमा। जो कक भेदरक स्तय तक
अॊग्रेजी यदहत तथा उद्मोगों ऩय आधारयत थी।
गाॊधीजी की बेशसक अथिा बुतनयादी शिऺा
4) जाशभमा शभशरमा क
े तात्काशरक वप्रॊशसऩर डॉ॰
जाककय हुसैन की अध्मऺता भें ‘जाककय हुसैन
सशभतत’ का तनभाणर् ककमा गमा तथा गाॊधीजी क
े
शिऺा सॊफॊधी ववद्मामें तथा सम्भेरन द्वाया ऩारयत
ककमे गमे प्रस्तावों क
े आधाय ऩय ‘नई ताशरभ’
(फुतनमादी शिऺा) की मोजना तैमाय की गई।
5) तथा 1938 भें हरयऩुय क
े अधधवेिन ने इन रयऩोर्ण
को स्वीकृ तत दी। जो कक ‘वधाण-शिऺा-मोजना’ क
े
नाभ से प्रशसद्ध हुआ औय फुतनमादी शिऺा का
आधाय है।
बुतनयादी शिऺा की वििेषताएॉ
1) फेशसक शिऺा क
े ऩाठ्मक्रभ की अवधध 7 वषण की है।
2) 7 से 14 वषण क
े फारकों एवॊ फाशरकाओॊ को तन्िुल्क एवॊ
अतनवामण शिऺा दी जाए।
3) शिऺा का भाध्मभ भातृबाषा है। दहॊदी बाषा का अध्ममन फारकों
तथा फाशरकाओॊ क
े शरए अतनवामण है।
4) सॊऩूर्ण शिऺा का सॊफॊध आधायबूत शिल्ऩ से होता है।
5) चुने हुए शिल्ऩ की शिऺा देकय अच्छा शिल्ऩी फनाकय
स्वावरम्फी फनामा जाए।
6) शिल्ऩ की शिऺा इस प्रकाय दी जाए कक फारक उसक
े साभाजजक
एवॊ वैऻातनक भहत्व को सभझ सक
े ।
बुतनयादी शिऺा की वििेषताएॉ
7) िायीरयक श्रभ को भहत्व ददमा गमा ताकक सीखे हुए शिल्ऩ क
े
द्वाया जीववकोऩाजणन कय सक
े ।
8) शिऺा फारकों क
े जीवन, घय, ग्राभ तथा ग्राभीर् उद्मोगों, हस्त
शिल्ऩों औय व्मवसाम घतनष्ट्ठ रूऩ से सॊफॊधधत हों।
9) फारकों द्वाया फनाई गई वस्तुएॊ जजनका प्रमोग कय सक
े एवॊ उनको
फेचकय ववद्मारम क
े ऊऩय क
ु छ व्मम कय सक
ें ।
10) फारकों एवॊ फाशरकाओॊ का सभान ऩाठ्मक्रभ यखा जाए।
11) छठवीॊ औय सातवीॊ कऺाओ भें फाशरकाएॉ आधायबूत शिल्ऩ क
े स्थान
ऩय गृहववऻान रे सकती हैं।
12) ऩाठ्मक्रभ का स्तय वतणभान भैदरक क
े सभकऺ हो।
13) ऩाठ्मक्रभ भें अॊग्रेजी औय धभण की शिऺा नहीॊ दी गई है।
शिऺा का ऩाठ्यक्रम
1) अऩने शिऺा-शसद्धान्त क
े अनुरूऩ ही भहात्भा गाॉधी ने फुतनमादी
शिऺा क
े ऩाठ्मक्रभ का तनभाणर् ककमा। फच्चे, सभाज औय देि क
े
आवश्मकता को देखते हुए उन्होंने कक्रमािीर ऩाठ्मक्रभ का
तनभाणर् ककमा।
2) अऩने द्वाया प्रस्ताववत नमी तारीभ मा फुतनमादी शिऺा क
े शरए
उन्होंने तनम्नशरणखत ववषमों को अऩनी ऩाठ्मचचाण भे स्थान ददमा-
3) शिल्ऩ मा हस्त उद्मोग (कताई-फुनाई, फागवानी, कृ वष, काष्ट्ठ
करा, चभणकामण, शभट्र्ी का काभ आदद भे से कोई एक)
4) भातृबाषा दहन्दी मा दहन्दुस्तानी
5) व्मवहारयक गणर्त ( अॊकगणर्त, फीजगणर्त, येखागणर्त,
नाऩतौर आदद)
6) साभाजजक ववषम (सभाज का अध्ममन, नागरयक िास्त्र,
इततहास, बूगोर आदद)
शिऺा का ऩाठ्यक्रम
7) साभान्म ववऻान (फागवानी मा वनस्ऩतत ववऻान,
प्राणर् ववऻान, यसामन एवॊ बौततक ववऻान)
8) सॊगीत एवॊ धचत्रकरा
9) स्वास््म ववऻान (सपाई, व्मामाभ एवॊ खेरक
ू द)
10) आचयर् शिऺा (नैततक शिऺा, सभाज सेवा आदद)
11) महाॉ मह त्म ध्मान देने मोग्म है कक गाॉधी जी क
े
ऩाठ्मक्रभ भें क्राफ्र् (शिल्ऩ) औय शिऺा नहीॊ है वयन्
मह शिल्ऩ क
े भाध्मभ से शिऺा है।
12) इस तयह क
े ऩाठ्मक्रभ से फच्चे क
े भजस्तष्ट्क, हृदम
औय हाथ का सभजन्वत ववकास होना सॊबव है।

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शिक्षा के क्षेत्र में महात्मा गांधी के योगदान का वर्णन करे animation.pdf

  • 1. शिऺा क े ऺेत्र भें भहात्भा गाॊधी क े मोगदान का वर्णन कये
  • 2. महात्मा गाॊधी का ऩररचय  मोहन दास करमचन्द गाॊधी जजन्हें भहात्भा गाॊधी क े नाभ से बी जाना जाता है, बायत एवॊ बायतीम स्वतन्त्रता आन्दोरन क े एक प्रभुख याजनैततक एवॊ आध्माजत्भक नेता थे।  जन्म की तारीख और समय: 2 अक्तूफय 1869, ऩोयफन्दय  हत्या की तारीख और जगह: 30 जनवयी 1948, Birla House, नई ददल्री  ऩत्नी: कस्तूयफा गाॊधी (वववा. 1883–1944)  बच्चे: हरयरार भोहनदास गाॊधी, देवदास गाॊधी, भणर्रार गाॊधी, याभदास गाॊधी
  • 3. महात्मा गाॊधी का शिऺा दिशन 1) याष्ट्रवऩता भहात्भा गाॊधी का व्मजक्तत्व औय कृ ततत्व आदिणवादी यहा है। 2) उनका आचयर् प्रमोजनवादी ववचायधाया से ओतप्रोत था। 3) सॊसाय क े अधधकाॊि रोग उन्हें भहान याजनीततऻ एवॊ सभाज सुधायक क े रूऩ भें जानते हैं। 4) ऩयन्तु उनका मह भानना था कक साभाजजक उन्नतत हेतु शिऺा का एक भत्वऩूर्ण मोगदान होता है।
  • 4. महात्मा गाॊधी का शिऺा दिशन 5) अत् गाॊधीजी का शिऺा क े ऺेत्र भें बी वविेष मोगदान यहा है। उनका भूरभॊत्र था - 'िोषर्-ववहीन सभाज की स्थाऩना कयना'। उसक े शरए सबी को शिक्षऺत होना चादहए। 6) क्मोंकक शिऺा क े अबाव भें एक स्वस्थ सभाज का तनभाणर् असॊबव है। अत् गाॊधीजी ने जो शिऺा क े उद्देश्मों एवॊ शसद्धाॊतों की व्माख्मा की तथा प्रायॊशबक शिऺा मोजना उनक े शिऺादिणन का भूतण रूऩ है। 7) अतएव उनका शिऺादिणन उनको एक शिऺािास्त्री क े रूऩ भें बी सभाज क े साभने प्रस्तुत कयता है। उनका शिऺा क े प्रतत जो मोगदान था वह अद्ववतीम था।
  • 5. आधारभूत शिऺादिशन शसद्धान्त 1) 7 से 14 वषण की आमु क े फारकों की तन्िुल्क तथा अतनवामण शिऺा होI 2) शिऺा का भाध्मभ भातृबाषा हो। 3) साऺयता को शिऺा नहीॊ कहा जा सकता। 4) शिऺा फारक क े भानवीम गुर्ों का ववकास कयना है। 5) शिऺा ऐसी हो जजससे फारक क े ियीय, हृदम, भन औय आत्भा का साभॊजस्मऩूर्ण ववकास हो।
  • 6. आधारभूत शिऺादिशन शसद्धान्त 6) सबी ववषमों की शिऺा स्थानीम उत्ऩादन उद्मोगों क े भाध्मभ से दी जाए। 7) शिऺा ऐसी हो जो नव मुवकों को फेयोजगायी से भुक्त कय सक े । 8) गाॊधीजी क े अनुसाय शिऺा का अथण - फारक औय भनुष्ट्म क े ियीय, भजस्तष्ट्क औय आत्भा भें सवोत्तभ गुर्ों का चहुॊभुखी ववकास कयना है। 9) अत् फारक क े सवाांगीर् ववकास हेतु उसक े िायीरयक, भानशसक, फौद्धधक एवॊ आध्माजत्भक गुर्ों का ववकास कयना।
  • 7. शिऺादिशन क े उद्देश्य 1) जीविकोऩाजशन का उद्देश्य: गाॊधीजी क े अनुसाय शिऺा ऐसी हो जो आधथणक आवश्मकताओॊ की ऩूततण कय सक े फारक आत्भतनबणय फन सक े तथा फेयोजगायी से भुक्त हो। 2) साॊस्कृ ततक उद्देश्य: गाॊधीजी ने सॊस्कृ तत को शिऺा का आधाय भाना। उनक े अनुसाय भानव क े व्मवहाय भें सॊस्कृ तत ऩरयरक्षऺत होनी चादहए। 3) ऩूर्श विकास का उद्देश्य: उनक े अनुसाय सच्ची शिऺा वह है जजसक े द्वाया फारकों क े िायीरयक, भानशसक औय आध्माजत्भक ववकास हो सक े । 4) नैततक अथिा चाररत्रिक विकास: गाॊधीजी ने चारयत्रत्रक एवॊ नैततक ववकास को शिऺा का उधचत आधाय भाना है।
  • 8. शिऺादिशन क े उद्देश्य 5) मुक्तत का उद्देश्य: गाॊधीजी का आदिण ‘‘सा ववधा मा ववभुक्तमे’’ अथाणत शिऺा ही हभें सभस्त फॊधनों से भुजक्त ददराती है। अत् गाॊधीजी शिऺा क े द्वाया आत्भववकास क े शरमे आध्माजत्भक स्वतॊत्रता देना चाहते थे। शिऺा क े सवोच्च उद्देश्म क े अॊतगणत वे सत्म अथवा ईश्वय की प्राजतत ऩय फर देते थे। अत् भनुष्ट्म का अॊततभ एवॊ सवोच्च उद्देश्म आत्भानुबूतत कयना है। 6) सामाक्जक उद्देश्य: गाॉधी जी क े वर अॊग्रेजी दासता से ही भुजक्त नहीॊ चाहते थे वयन् वे भानव का भानव क े द्वाया िोषर् की हय सॊबावना को सभातत कयना चाहते थे। इसक े शरए वे ग्राभ स्वयाज की स्थाऩना कयना चाहते थे। इस प्रकाय भहात्भा गाॉधी शिऺा क े द्वाया न क े वर व्मजक्त वयन् सभाज एवॊ याष्ट्र की सभस्त फुयाईमों को सभातत कयना चाहते थे।
  • 9. गाॊधीजी की बेशसक अथिा बुतनयादी शिऺा 1) अववनािशरॊगभ क े िब्दों भें ‘‘फुतनमादी शिऺा हभाये याष्ट्रवऩता का अॊततभ औय सॊबवत् भहानतभ ् उऩहाय है।’’ 2) सन् 1937 भें गाॊधीजी ने वधाण भें हो यहे ‘अणखर बायतीम याष्ट्रीम शिऺा सम्भेरन’ जजसे ‘वधाण शिऺा सम्भेरन’ कहा गमा था। 3) उसभें अऩनी फेशसक शिऺा की नमी मोजना को प्रस्तुत ककमा। जो कक भेदरक स्तय तक अॊग्रेजी यदहत तथा उद्मोगों ऩय आधारयत थी।
  • 10. गाॊधीजी की बेशसक अथिा बुतनयादी शिऺा 4) जाशभमा शभशरमा क े तात्काशरक वप्रॊशसऩर डॉ॰ जाककय हुसैन की अध्मऺता भें ‘जाककय हुसैन सशभतत’ का तनभाणर् ककमा गमा तथा गाॊधीजी क े शिऺा सॊफॊधी ववद्मामें तथा सम्भेरन द्वाया ऩारयत ककमे गमे प्रस्तावों क े आधाय ऩय ‘नई ताशरभ’ (फुतनमादी शिऺा) की मोजना तैमाय की गई। 5) तथा 1938 भें हरयऩुय क े अधधवेिन ने इन रयऩोर्ण को स्वीकृ तत दी। जो कक ‘वधाण-शिऺा-मोजना’ क े नाभ से प्रशसद्ध हुआ औय फुतनमादी शिऺा का आधाय है।
  • 11. बुतनयादी शिऺा की वििेषताएॉ 1) फेशसक शिऺा क े ऩाठ्मक्रभ की अवधध 7 वषण की है। 2) 7 से 14 वषण क े फारकों एवॊ फाशरकाओॊ को तन्िुल्क एवॊ अतनवामण शिऺा दी जाए। 3) शिऺा का भाध्मभ भातृबाषा है। दहॊदी बाषा का अध्ममन फारकों तथा फाशरकाओॊ क े शरए अतनवामण है। 4) सॊऩूर्ण शिऺा का सॊफॊध आधायबूत शिल्ऩ से होता है। 5) चुने हुए शिल्ऩ की शिऺा देकय अच्छा शिल्ऩी फनाकय स्वावरम्फी फनामा जाए। 6) शिल्ऩ की शिऺा इस प्रकाय दी जाए कक फारक उसक े साभाजजक एवॊ वैऻातनक भहत्व को सभझ सक े ।
  • 12. बुतनयादी शिऺा की वििेषताएॉ 7) िायीरयक श्रभ को भहत्व ददमा गमा ताकक सीखे हुए शिल्ऩ क े द्वाया जीववकोऩाजणन कय सक े । 8) शिऺा फारकों क े जीवन, घय, ग्राभ तथा ग्राभीर् उद्मोगों, हस्त शिल्ऩों औय व्मवसाम घतनष्ट्ठ रूऩ से सॊफॊधधत हों। 9) फारकों द्वाया फनाई गई वस्तुएॊ जजनका प्रमोग कय सक े एवॊ उनको फेचकय ववद्मारम क े ऊऩय क ु छ व्मम कय सक ें । 10) फारकों एवॊ फाशरकाओॊ का सभान ऩाठ्मक्रभ यखा जाए। 11) छठवीॊ औय सातवीॊ कऺाओ भें फाशरकाएॉ आधायबूत शिल्ऩ क े स्थान ऩय गृहववऻान रे सकती हैं। 12) ऩाठ्मक्रभ का स्तय वतणभान भैदरक क े सभकऺ हो। 13) ऩाठ्मक्रभ भें अॊग्रेजी औय धभण की शिऺा नहीॊ दी गई है।
  • 13. शिऺा का ऩाठ्यक्रम 1) अऩने शिऺा-शसद्धान्त क े अनुरूऩ ही भहात्भा गाॉधी ने फुतनमादी शिऺा क े ऩाठ्मक्रभ का तनभाणर् ककमा। फच्चे, सभाज औय देि क े आवश्मकता को देखते हुए उन्होंने कक्रमािीर ऩाठ्मक्रभ का तनभाणर् ककमा। 2) अऩने द्वाया प्रस्ताववत नमी तारीभ मा फुतनमादी शिऺा क े शरए उन्होंने तनम्नशरणखत ववषमों को अऩनी ऩाठ्मचचाण भे स्थान ददमा- 3) शिल्ऩ मा हस्त उद्मोग (कताई-फुनाई, फागवानी, कृ वष, काष्ट्ठ करा, चभणकामण, शभट्र्ी का काभ आदद भे से कोई एक) 4) भातृबाषा दहन्दी मा दहन्दुस्तानी 5) व्मवहारयक गणर्त ( अॊकगणर्त, फीजगणर्त, येखागणर्त, नाऩतौर आदद) 6) साभाजजक ववषम (सभाज का अध्ममन, नागरयक िास्त्र, इततहास, बूगोर आदद)
  • 14. शिऺा का ऩाठ्यक्रम 7) साभान्म ववऻान (फागवानी मा वनस्ऩतत ववऻान, प्राणर् ववऻान, यसामन एवॊ बौततक ववऻान) 8) सॊगीत एवॊ धचत्रकरा 9) स्वास््म ववऻान (सपाई, व्मामाभ एवॊ खेरक ू द) 10) आचयर् शिऺा (नैततक शिऺा, सभाज सेवा आदद) 11) महाॉ मह त्म ध्मान देने मोग्म है कक गाॉधी जी क े ऩाठ्मक्रभ भें क्राफ्र् (शिल्ऩ) औय शिऺा नहीॊ है वयन् मह शिल्ऩ क े भाध्मभ से शिऺा है। 12) इस तयह क े ऩाठ्मक्रभ से फच्चे क े भजस्तष्ट्क, हृदम औय हाथ का सभजन्वत ववकास होना सॊबव है।