1. आध्यात्मिक उमथान के इच्छु क लोग याद रखें कक ध्यान ही बीज है। आसनस्थ अथाात स्व—त्स्थत व्यत्तत सहज ही चिदामि सरोवर िें
ननित्जजत हो जाता है और आमि—ननिााण अथाात द्ववजमव को प्राप्त करता है। ववद्या का अववनाश जन्य का ववनाश है। सभी धिों का सार
यही है। एक बार जीसस से उनके शशष्यों ने पूछा, 'प्रभु का राजय कै सा है? तया है उसका पप—नाि? तो जीसस ने कहा, 'प्रभु का राजय
एक बीज की भाांनत है? जीसस उसी बीज की बात कर रहे हैं, त्जसकी इस लेख िें ििाा की जाए।
ध्यान बीज है। बीज अपने—आप िें साथाक नहीां होता। बीज तो एक साधन है। बीज तो वृक्ष होने की सांभावना है। बीज कोई त्स्थनत नहीां,
एक यात्रा है। जैसे वृक्ष बनकर बीज सफल हो जाता है; तयोंकक वृक्ष बनने से ही उसिें फल और फू ल लगते हैं— वही सफलता है; ऐसे ही
ध्यान का बीज जब वृक्ष बन जाता है और फल—फू ल लग जाते हैं—वही परिामिा है।
बीज की त्स्थनत को ठीक से सिझना जपरी है। लोग परिामिा के सांबांध िें ननरांतर प्रश्न पूछते हैं, जानना िाहते हैं। लेककन वह पूछताछ तब
तक बेकार है, जब बीज (ध्यान) ही न सांभाला हो! जैसे बबना बीज को बोये वृक्ष सांभव नहीां है, वैसे ही बबना ध्यान के परिामिा की कल्पना
नहीां की जा सकती है। परिामिा कोई बाह्य घटना नहीां है कक उसे देख ले; वह हिारी पररष्कृ त त्स्थनत है; वही ववकास है। दूसरे के परिामिा
को कै से देखा जा सकता है? परिामिा तो हिारे भीतर नछपा हुआ है। जब बीज टूटेगा (ध्यान लगेगा) और वृक्ष बनेगा (तब अांतरामिा
ववकशसत होगी), तभी उसे देखना सांभव हो सके गा।
बुद्ध, िहावीर, कृ ष्ण, भी लाख उपाय करें, तो भी हिें परिामिा को ददखा नहीां सकते, तयोंकक परिामिा भीतर नछपा है। और, अभी बीज है,
वृक्ष नहीां बना है। बीज िें कुछ भी ददखाई नहीां पड़ता। जब बीज फू टेगा, ववकशसत होगा, हि प्रकट होंगे, खखलेंगे, हिारा दीया जलेगा—तभी
हि परिामिा को देख सकें गे। इसशलए नात्स्तक को हराना बहुत िुत्श्कल है। वस्तुत: नात्स्तक को कोई कभी नहीां हरा पाया। इसका कारण
यह नहीां कक नात्स्तक सही है। वह प्रश्न ही गलत पूछता है। अत: जो भी जवाब ददए जाएांगे, वे व्यथा होंगे। वह पूछता है, ' ईश्वर को
ददखाओ; कहाां है ईश्वर? ईश्वर तो हििें नछपा है। ईश्वर पूछनेवाले िें भी नछपा 'है। और दूसरे का ईश्वर उसे नहीां ददखाया जा सकता; वह
आांतररक घटना है। जब बीज टूटेगा, तभी उसे जाना जा सके गा।
अभी हि बीज की भाांनत हैं। लेककन हि इसे सिझते नहीां। हि खुद को ही बाहर खोजते हैं। और जब तक बाहर खोज िलती रहेगी, कोई
पायदा नहीां होगा। तयोंकक उससे भीतर पड़ा बीज यथावत रहेगा, अांकुररत नहीां होगा; तयोंकक बीज के शलए पानी िादहए, भूशि िादहए, प्रकाश
2. िादहए, प्रेि िादहए। जब हि भीतर आांख िोड़ेंगे, जब ध्यान भीतर बरसेगा, और जीवन—ऊजाा भीतर की तरफ िुड़ेगी, तभी बीज को प्राण
शिलेंगे; तभी बीज जीवांत होगा, अांकुररत होगा। ध्यान ही बीज है।
श ांति कै से मिले
एक ददन सुबह—सुबह िुल्ला नसरुद्दीन आया। उसे देखकर पड़ोसी कुछ कहने को था, लेककन इसके पहले ही उसने सवाल ककया। उसने कहा
कक अब िेरी सहायता आपको करनी ही पड़ेगी। पड़ोंसी ने पूछा, 'तया सिस्या है? उसने कहा, 'बड़ी जदटल सिस्या है। ददन िें कोई दस—
बीस—पच्िीस बार, कभी और भी जयादा, स्नान करने की बड़ी तीव्र आकाांक्षा पैदा होती है। िैं पागल हुआ जा रहा हूां। बस, यही धुन सवार
रहती है। कुछ िेरी सहायता करो। पड़ोसी ने पूछा, 'तुिने पहले कब स्नान ककया था? उसने कहा, ' जब तक िुझे याद आता है, िैं स्नान के
झांझट िें कभी पड़ा ही नहीां।
स्नान न करोगे और स्नान करने की आकाांक्षा पकड़ेगी, तो सिस्या स्नान नहीां है, सिस्या व्यत्तत खुद होता है। जीव अशाांत है; उसे पता
नहीां कक उसने ध्यान कभी नहीां ककया। वह उस झांझट िें कभी पड़ा ही नहीां और अशाांनत शिटाना िाहता है। ध्यान के स्नान के बबना वह
कभी नहीां शिटेगी; वह तलब है।
ध्य न भीिर क स्न न है
जैसे स्नान से शरीर ताजा हो जाता है। धूल, कूड़ा—करकट शरीर से बह जाता है, स्वच्छता आ जाती है, ऐसे ही ध्यान भीतर का, अांतरामिा
का स्नान है। और, भीतर जब सब ताजा हो जाता है, तब कै सी अशाांनत, तब कै सा दुख, कै सी चिांता! तब जीव पुलककत होते है, प्रफु त्ल्लत
होता है! उसका जीवन एक नृमय हो जाता है! उसके पहले वह उदास, थका और परेशान होता है और वह सोिते है कक उसकी अशाांनत के
कारण बाहर हैं। अशाांनत का एक ही कारण है कक ध्यान के बीज को हिने वृक्ष नहीां बनाया। हि हजार उपाय करें, धन शिल जाए तो
अशाांनत ठीक हो जाएगी; पुत्र हो जाए, यश शिल जाए, कीनता शिल जाए, अच्छा स्वास््य हो, अच्छा शरीर हो, लम्बी उम्र हो, तो सब कुछ हो
जाएगा, लेककन अशाांनत नहीां शिटेगी। वस्तुत: ये त्जतनी भी िीजें हिें शिलेंगी, उतनी ही अशाांनत और भी सघन होकर ददखाई पडऩे लगी।
गरीब आदिी कि अशाांत होता है। अिीर जयादा अशाांत हो जाता है। अिीरी से अशाांनत तयों बढ जाती है? होता तो गरीब भी अशाांत हैं;
लेककन शरीर की ही भूख, शरीर की क्षुधा को ननपटाने िें इतनी ऊजाा िली जाती है कक अपने भीतर की अशाांनत को देखने योग्य शत्तत भी
नहीां बिती। अिीर की बाहर की जपरतें पूरी हो जाती हैं, तो सारी शत्तत बिती है। और भीतर की जपरत खयाल िें आती है। गरीब भी
उतना ही अशाांत है, लेककन अशाांनत को जानने की सुववधा नहीां है। अिीर को अशाांनत काांटे की तरह िुभने लगती है, वही वही ददखाई पड़ती
है।
ध्य न बीज है
जीवन की िहत यात्रा िें, जीवन की खोज िें, समय के िांददर तक पहुांिने िें ध्यान ही बीज है। ध्यान का इतना िूल्य है कक खखल जाएगा
तो जीव परिामिा हो जाएगा; जो सड़ जाएगा तो नारकीय जीवन व्यतीत करेगा। ध्यान ननववािार िैतन्य की वह अवस्था है, जहाां होश तो
पूरा हो और वविार बबलकुल न हों; जीव तो रहे, लेककन िन न बिे। दूसरे शब्दों िें िन की िृमयु ही ध्यान है। हि अभी हि नहीां हैं। अभी
तो िन ही िन है। इससे उलटा हो जाए कक हि ही तुि बिें और िन बबलकुल न बिे। सारी ऊजाा िन पी लेता है। अभी त्जतनी भी
जीवन की शत्तत है, वह िन िूस लेता है। जैसे-अिरबेल जब वृक्ष को पकड़ लेती है तो वह सूखने लगता है और बेल जीने लगती है और
बेल फै लने लगती है। िन भी ठीक वैसा ही है। िन की तरह अिरबेल की कोई जड़ नहीां; तयोंकक उसे जड की जपरत ही नहीां है; वह दूसरे
के शोषण से जीती है। वृक्ष को सुखाने लगती है, खुद जीने लगती है। लोगों ने उसे अच्छा नाि ददया—अिरबेल! वह िरती नहीां है। जब तक
उसे पोषण शिलता रहेगा, वह अनांत काल तक जी सकती है। ठीक उसी तरह िन भी िरता नहीां; वह अनांत काल तक जी सकता है; जन्िों—
जन्िों तक जीव का पीछा करेगा। और िजा यह है कक उसकी कोई जड़ नहीां, कोई बीज नहीां। उसे इसी वतत िर जाना िादहए, लेककन वह
िरता नहीां; वह शोषण से जीता है। िन जीव को िारों तरफ से घेरे हुए है। हि तो बबलकुल दब ही गये हैं अिरबेल िें। सारी जीवन—ऊजाा
िन ले लेता है, कुछ बिता नहीां। हि दीन, हीन, दररद्र, सूखे—सूखे जीते हैं। िन हिें उतना ही जीने देता है, त्जतना जपरी है िन के शलए।
बेल भी वृक्ष को पूरा नहीां िारती; तयोंकक पूरा िारेगी तो खुद िर जाएगी। उतना बिाकर िलती है, त्जतना जपरी है। िाशलक भी गुलाि को
पूरा नहीां िार डालता; उतना भोजन देता है, त्जतना गुलाि के त्जांदा रहने के शलए जपरी हो।
3. तुम्हारा िन तुम्हें बस उतना ही देता है, त्जतना तुि बने रहो; अन्यथा ननन्यानबे प्रनतशत पी लेता है। एक प्रनतशत हि हैं, ननन्यानबे
प्रनतशत िन है। यह गैर— ध्यान की अवस्था है। ध्यान की अवस्था िें हि ननन्यानबे प्रनतशत हो जाते हैं, एक प्रनतशत िन होगा। और
अगर सौ प्रनतशत हि हो गये और िन शून्य हो गया—यह सिाचध की अवस्था है; हि िुतत हो गये; बीज पूरा वृक्ष हो गया; अब कुछ पाने
को नहीां बिा; जो भी पाया जा सकता था, पा शलया; सब सांभावनाएां समय हो गयीां, जो भी नछपा था, वह प्रगट हो गया। तब पूरा अत्स्तमव
सुगांध से भर जाता है। तब आमिा का नतान दूर—दूर कोनों तक, िाांद—तारों तक सुना जाता है। तब हि ही पुलककत नहीां होते; पूरे ववश्व की
प्राण—धारा पुलककत होती है। तब अत्स्तमव िें एक उमसव आ जाता है। जब भी कोई एक बुद्ध पैदा होता है, सारा अत्स्तमव उमसव से भर
जाता है; तयोंकक सारा अत्स्तमव बीज को वृक्ष बनाने के शलए आतुर है।
सि धि िें िन शून्य हो ज ि है
ध्यान का अथा है, जहाां िन न के बराबर रह जाए। सिाचध का अथा है. जहाां िन बबलकुल शून्य हो जाए, हि ही हि बिें। शशव का सूत्र
कहता है : ध्यान बीज है। इसशलए ध्यान से शुप करना पड़ेगा अभी तो होश—बेहोश, जागते—सोते, िन ही हिें पकड़े हुए है। रात िें सपने
और ददन िें वविार िलते हैं। उठते—बैठते िन का ऊहापोह िलता रहता है। और बड़े आश्रया की बात तो यह है कक सार उसिें कुछ भी नहीां।
ककतना ही यह ऊहापोह िले, िन से कुछ शिलता नहीां। वविार करें कक तया हिने पाया है? इतने ददन सोिकर कहाां पहुांिे? इसे भी तो
सोिें। इस तरफ भी ध्यान दें कक इतनी यात्रा करने के बाद कौन—सी िांत्जल शिली है।
एक दाशाननक थे—इिानुएल काांट। साांझ को घर की तरफ जा रहे थे। एक छोटे—से लड़के ने उन्हें रास्ते िें रोका और कहा, 'अांकल, िै आपके
घर गया था। कल हि वपकननक पर जा रहे हैं। िुझे आपका कै िरा िादहए। आप तो घूिने गये थे, नौकर शिला। उसने बबलकुल िना कर
ददया। तया यह उचित है कक नौकर िना कर दे? बच्िा क्रोध िें था। काांट ने कहा, 'बबलकुल अनुचित है। िेरे रहते नौकर िना करनेवाला
कौन होता है! आओ िेरे साथ। बहुत प्रसन्न हुआ पहुांिे घर। काांट ने बड़ी डाांट—डपट की नौकर पर और वह बच्िा पुलककत होता रहा। काांट ने
कहा कक िेरे रहते तू िना करनेवाला कौन होता है। उस बच्िे से भी कहा कक तू बोल, िेरे रहते नौकर िना करनेवाला कौन होता है। उस
बच्िे ने कहा, 'बबलकुल, नहीां, अांकल। और इस आदिी ने बड़ी बेहूदगी से इनकार ककया।
और, तब इिानुएल काांट ने उस बच्िे से कहा कक अब तुझे िैं बताता हूां कक कै िरा िेरे पास नहीां है। यह सुनते ही बच्िे की सारी खुशी,
सारी पुलक, कै िरा शिलने की आशा सब खमि हो गई। इतना सारा शोरगुल-हांगािा और आखखर िें पता िलता है कक कै िरा उसके पास नहीां
है!
यही हिारे िन की दशा है! जीवन भर दौडऩा, चिल्लाना, आशा बाांधना, श्रि करना और आखखर िें िन कहेगा कक त्जसकी तुि तलाश कर
रहे हो, वह िेरे पास नहीां है। िन ने सदा यही कहा है। उसके पास है भी नहीां। इसशलए िन सदा आशा बांधाता है और िन सदा कहता है—
'आज तो नहीां तो कल।कल नहीां तो परसो। िन से जयादा आश्वासन देनेवाला और कोई भी नहीां। िन के पास होता तो आज ही दे देता। वह
कल की कह रह है और हि िान लेते हैं। हि ककतनी बार िान िुके हैं। और हर बार कल आता है और िन कफर कल पर टाल देता है।
लेककन हिारी बेहोशी की आदत हो गयी है। हि कल की बात सुनने के आदी हो गये हैं। यह आदत इतनी गहरी हो गयी है कक इस पर पुन:
वविार नहीां करते। बेहोशी िें भी, रात के सपने िें भी, िन कल पर टालता रहता है।
िुल्ला नसरुद्दीन बीिार था। पमनी ने खबर की तो पड़ोसी उसके घर गया। भारी बेहोशी िें था। बुखार तेज था। लगता था एक सौ पाांि,
एक सौ छह डडग्री बुखार होगा। हकीि ने कहा, िुांह िें थिाािीटर लगाकर देखो। िुांह िें थिाािीटर लगाया। उस बेहोश अवस्था िें भी उसने
कहा, 'िाचिस प्लीज! ' िेन स्िोकर था। एक शसगरेट से दूसरी जलाकर पीता रहा। एक सौ पाांि डडग्री बुखार िें भी और कुछ तो याद नहीां,
कोई सुध नहीां थी, लेककन िुांह िें थिाािीटर डालते ही उसे शसगरेट की ही याद आयी। जीव भी िर रहा है, तो भी उसकी दशा ऐसी ही है—
िाचिस प्लीज! हिारा िन पुरानी आदत के अनुसार अपनी बेहोशी िें भी ताने—बाने बुनता रहता है। िरते क्षण भी िन से ही भरा रहता है।
हि पूजा करें, प्राथाना करें, िांददर जाएां, तीथायात्रा करें—िन साथ रहता है। और, जहाां भी िन हिारे साथ है, वहाां धिा से हिारा सांबांध नहीां
जुड़ पाता है।
प्रदशशन की चीज नह ां है ििश
एक िुसलिान फकीर हाजी िोहम्िद थे। एक रात उन्होंने सपना देखा कक वह िर गए हैं और एक िौराहे पर खड़े हैं, जहाां से एक रास्ता
स्वगा, एक नका , एक पृ्वी और एक िोक्ष की ओर जाता है। िौराहे पर एक देवदूत खड़ा है—एक फररश्ता, और वह हर आदिी को उसके
किों के अनुसार रास्ते पर भेज रहा है। हाजी िोहम्िद जरा भी डरे नहीां; जीवनभर सात्मवक जीवन जो जीया था। हर ददन की निाज पाांि
4. बार पूरी पढी थी। साठ बार हज की, इसीशलए उनका नाि हाजी िोहम्िद हो गया। जाकर खड़े हो गए देवदूत के सािने। देवदूत ने इशारा
ककया, 'नरक की तरफ यह रास्ता है। हाजी िोहम्िद ने कहा, ' आप सिझे नहीां शायद। कुछ भूल—िूक हो रही है। साठ बार हज ककये हैं
िैंने।
देवदूत ने कहा, 'वह व्यथा गयी; तयोंकक जब भी कोई तुिसे पूछता तो तुि कहते, हाजी िोहम्िद! तुिने उसका काफी फायदा जिीन पर ले
शलया। कुछ और ककया है?
हाजी िोहम्िद के पैर थोडे डगिगा गए। जब साठ बार की हज व्यथा हो गयी, तो अब आशा टूटने लगी। उन्होंने कहा- हाां, रोज पाांि बार की
निाज पूरी—पूरी पढता था। देवदूत ने कहा, 'वह भी व्यथा गयी; तयोंकक जब कोई देखने वाला होता था तो तुि जयादा देर तक निाज पढते
थे। जब कोई नहीां होता तो तुि जल्दी खमि कर देते थे। तुम्हारी नजर परिामिा पर नहीां, देखने वालों पर थी। एक बार तुम्हारे घर कुछ
लोग बाहर से आये थे, तो तुि बड़ी देर तक निाज पढते रहे। वह निाज झूठी थी। ध्यान िें परिामिा न था, लोग थे। ताकक लोगों को
पता िले कक िैं धाशिाक आदिी हूां—हाजी िोहम्िद; वह बेकार गयी; कुछ और ककया है? अब तो हाजी िोहम्िद घबड़ा गए और घबड़ाहट िें
उनकी नीांद टूट गयी। सपने के साथ त्जांदगी बदल गयी। उस ददन से उन्होंने अपने नाि के साथ हाजी बोलना बांद कर ददया। निाज नछपकर
पढऩे लगे। वह निाज साथाक होने लगी। कहते है, िरकर हाजी िोहम्िद स्वगा गए।
अहांक र सबसे बड शत्रु
यही कारण है कक आदिी जब प्राथाना भी करता है, तो सफल नहीां होता। उसका िन प्राथाना से भी अहांकार को भरने लगता है। अपने ध्यान
की ििाा लोगों से बढ-िढ कर करता है। जबकक होना यह िादहए कक उसे इस तरह से सांभाला जाए, जैसे कोई बहुिूल्य हीरा शिल गया हो
और उसे नछपाते हैं, उछालते नहीां कफरते। जैसे लोग धन-सांपदा का जयादा प्रदशान नहीां करते, वैसे ही ध्यान को भी गुप्त रखना िादहए। यह
तो धन-सांपवि से भी जयादा बहुिूल्य है। उसकी ििाा से िन िें अहांकार आने लगता है। अथाात िन की बेल वहाां भी पहुांि कर उसे िूस
लेती है। और जहाां िन पहुांि जाता है, वहाां धिा नहीां है। और जहाां िन नहीां पहुांिता, वहाां धिा है। िन बाहतृखा है। उसका ध्यान दूसरे पर
होता है, अपने पर नहीां होता। ध्यान अांतिुाखता है।
ध्यान का अथा है—अपने पर ध्यान है, दूसरे पर नहीां। िन का अथा है—दूसरे पर ध्यान। ध्यान करो, तुि अगर दो पैसे गरीब को देते भी हो,
तो तुि देखते हो कक लोग देखते है या नहीां। तुि िांददर बनाते हो, तो बड़ा पमथर लगाते हो अपने नाि का; तुि दान करते हो तो अखबार
िें खबर छपवाते हो। सब व्यथा हो जाता है। तुिने ककतने उपवास ककये, ककतने व्रत ककये, इस सब की फे हररश्त सांभाल कर ित रखना।
परिामिा की दुननया दुकानदार की दुननया नहीां है; वहााँ दहसाब काि नहीां आता। वहाां तुि दहसाब लेकर गये तो हारोगे। दहसाब सांसार िें काि
आता है।
ब हर की धचांि न करें
बाहर की चिांता ित करो, यह ित सोिो कक दूसरे लोग तुम्हें धाशिाक सिझते हैं या नहीां। दूसरे लोग तया कहते हैं, यह बात वविारणीय नहीां
है; तयोंकक दूसरे लोगों से हिारे िन का सांबांध है, हिारा नहीां। त्जस ददन िन सिाप्त हो जाएगा, उस ददन जीव असांग हो जाता है। िन ही
दूसरों से हिें जोड़े हुए है। और जब तक िन सांसार से जोड़े हुये है, तब तक हि परिामिा से टूटे रहोगे। त्जस ददन हि सांसार से टूट
जाएांगे, िन खो जाएगा—उसी ददन हि परिामिा से जुड़ जाएांगे। इधर हुए असांग, वहाां हुआ सांग। यहाां टूटा नाता, वहाां जुड़ा नाता। यहाां से हुई
आांख बांद, वहाां खुली। खुद (अहां) को शिटाओगे तो सब कुछ (ब्रह्िाांड को) पाओगे।