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  1. हिन्दू धर्म December 10, 2021 संस्कृ त: सनातन धर्म हिन्दू धर्म (संस्कृ त सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसक े अनुयायी अधिकांशतः भारत ,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृ तियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या क े आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या क े आधार पर इसक े अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत क े आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एक े श्वरवादी धर्म है।. इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू क े वल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। इतिहास सनातन धर्म पृथ्वी क े सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है; हालाँकि इसक े इतिहास क े बारे में अनेक विद्वानों क े अनेक मत हैं। आधुनिक इतिहासकार हड़प्पा, मेहरगढ़ आदि पुरातात्विक अन्वेषणों क े आधार पर इस धर्म का इतिहास क ु छ हज़ार वर्ष पुराना मानते हैं। जहाँ भारत (और आधुनिक पाकिस्तानी क्षेत्र) की सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म क े कई चिह्न मिलते हैं। इनमें एक अज्ञात मातृदेवी की मूर्तियाँ, भगवान शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएँ, शिवलिंग, पीपल की पूजा, इत्यादि प्रमुख हैं। इतिहासकारों क े एक दृष्टिकोण क े अनुसार इस सभ्यता क े अन्त क े दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृ त नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण क े अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता क े लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। आर्यों की सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहते हैं। पहले दृष्टिकोण क े अनुसार लगभग १७०० ईसा पूर्व में आर्य अफ़्ग़ानिस्तान, कश्मीर, पंजाब और हरियाणा में बस गए। तभी से वो लोग (उनक े विद्वान ऋषि) अपने देवताओं को प्रसन्न करने क े लिए वैदिक संस्कृ त में मन्त्र रचने लगे। पहले चार वेद रचे गए, जिनमें ऋग्वेद प्रथम था। उसक े बाद उपनिषद जैसे ग्रन्थ आए। हिन्दू मान्यता क े अनुसार वेद, उपनिषद आदि ग्रन्थ अनादि, नित्य हैं, ईश्वर की कृ पा से अलग-अलग मन्त्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिन्होंने फिर उन्हें लिपिबद्ध किया। बौद्ध और धर्मों क े अलग हो जाने क े बाद वैदिक धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। नये देवता और नये दर्शन उभरे। इस तरह आधुनिक हिन्दू धर्म का जन्म हुआ। दूसरे दृष्टिकोण क े अनुसार हिन्दू धर्म का मूल कदाचित सिन्धु सरस्वती परम्परा (जिसका स्रोत मेहरगढ़ की ६५०० ईपू संस्कृ ति में मिलता है) से भी पहले की भारतीय परम्परा में है। विष्णु - शांति व वैभव। शिव - ज्ञान व विद्या। शक्ति - शक्ति व सुरक्षा। गणेश - बुद्धि व विवेक।[9] देवताओं क े गुरु
  2. देवताओं क े गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं क े अनुसार वे महर्षि अंगिरा क े पुत्र थे। भगवान शिव क े कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृ पा से ये गुरु ग्रह क े रूप में भी पूजनीय हैं। गुरुवार, गुरु बृहस्पतिदेव की उपासना का विशेष दिन है।[9][10] दानवों क े गुरु दानवों क े गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव क े पुत्र महर्षि भृगु इनक े पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फ ूं क देते थे। ब्रह्मदेव की कृ पा से यह शुक्र ग्रह क े रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है।[9] आत्मा हिन्दू धर्म क े अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म क े मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृ ष्ण द्वारा आत्मा क े लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं: न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय:। अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २-२०॥ http://humanthingss.blogspot.com/2020/05/blog-post.html?m=1 (यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर क े मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।) किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों क े मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण क े चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे हिन्दू धर्म क े अनुसार हर चेतन प्राणी में एक अभौतिक आत्मा होती है, जो सनातन, अव्यक्त, अप्रमेय और विकार रहित है। हिन्दू धर्म क े मुताबिक मनुष्य में ही नहीं, बल्कि हर पशु और पेड़-पौधे, यानि कि हर जीव में आत्मा होती है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृ ष्ण द्वारा आत्मा क े लक्षण इस प्रकार बताए गए हैं: न जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय:। अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥ २-२०॥ http://humanthingss.blogspot.com/2020/05/blog-post.html?m=1 (यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न तो मरता ही है तथा न ही यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है; क्योंकि यह अजन्मा, नित्य सनातन, पुरातन है; शरीर क े मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।) किसी भी जन्म में अपनी आज़ादी से किये गये कर्मों क े मुताबिक आत्मा अगला शरीर धारण करती है। जन्म-मरण क े चक्र में आत्मा स्वयं निर्लिप्त रह्ते हुए अगला शरीर धारण करती है। अच्छे कर्मफल क े प्रभाव से मनुष्य क ु लीन घर अथवा योनि में जन्म ले सकता है जबकि बुरे कर्म करने पर निकृ ष्ट योनि में जन्म लेना पड़ता है। जन्म मरण का सांसारिक चक्र तभी ख़त्म होता है जब व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। उसक े बाद आत्मा अपने वास्तविक सत्-चित्-आनन्द स्वभाव को सदा क े लिये पा लेती है। मानव योनि ही अक े ला ऐसा जन्म है जिसमें मनुष्य क े कर्म, पाप और पुण्यमय फल देते हैं और सुकर्म क े द्वारा मोक्ष की प्राप्ति मुम्किन है। आत्मा और पुनर्जन्म क े प्रति यही धारणाएँ बौद्ध धर्म और सिख धर्म का भी आधार है।
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