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3. शाक्त
•शाक्त अर्ामत “शक्क्त (देिी) की उपासना”
•उपास्यदेि: शक्क्त (देिी)
•विभभन्न रूपों र्ें शक्क्त (देिी) की उपासना
•शक्क्त को सिोच्च देिता (देिी)
• सृक्टट की तनर्ामता, संहारकताम
4. देिी उपासना क
े उल्लेख
• प्रागैततहाभसक युग र्ें र्ातृदेिी ?
• भसंधु सभ्यता र्ें र्ातृदेिी ?
• िेदों र्ें पुरुष देिताओं की अधधकता होने क
े कारण देिी का
उल्लेख कर् भर्लता है।
• यद्यवप उषा, आहदतत, पृथ्िी, सरस्िती क
े उल्लेख
• र्हवषम अभ्रूण की पुत्री “ िाक्” की स्तुतत र्ें शक्क्त का र्हत्ि
प्रदभशमत होता है।
• शतपर् ब्रा॰: रुद्र की बहन “अक्बबका”
• तैतररय उप॰: रुद्र की पत्नी पािमती का िणमन
• क
े नोपतनषद: हेर्िती उर्ा को विद्या-देिी कहा है।
5. र्हाकाव्यों र्ें देिी उपासना क
े
उल्लेख
• र्हाभारत: दुगाम उपासना (काली, कपाली, उर्ा, विजया, चण्डी
आहद)
• र्हाभारत :र्हहषासुरर्हदमनी, विंध्याचलिभसनी, नारायणवप्रया
• र्हाभारत: अजुमन को कृ टण ने दुगाम उपासना का परार्शम हदया र्ा।
• प्रातःकाल शक्क्त की उपासना करने िाला युद्ध र्ें विजयी होता है
• प्रातःकाल शक्क्त की उपासना करने से लक्ष्र्ी की प्राक्तत होती है।
6. पुराणों र्ें देिी उपासना
• हररिंश, विटणु पुराण: कालरूवपणी योगतनद्रा से यशोदा से जन्र्ी,
विंध्याचलिभसनी
• र्ाक
म ण्डेय: र्हहषासुर का िध करने क
े भलए (ब्रबहा, भशि, विटणु,
इंद्र, चंद्र, िरुण, सूयम आहद) देिताओं क
े तेज से उत्पन्न
र्हहषासुरर्हदमनी।
• र्ाक
म ण्डेय: “दुगामसततशंती” अंश र्ें देिी क
े तीन रूप
1. र्हाकाली
2. र्हालक्ष्र्ी
3. र्हासरस्िती
• र्ाक
म ण्डेय पु॰: देिी का सर्स्त प्राणणयो र्ें शक्क्त, शांतत, दया,
बुद्धध, एिं र्ाता क
े रूप र्ें िास
7. देिी क
े विभभन्न नार्
1. शुबभ –तनशुबभ दैत्यों क
े संहार क
े भलए पािमती क
े
शरीर से उत्पन्न हुई “भशिा”
2. पािमती क
े शरीर-कोश से तनकलने क
े कारण “कौभशकी”
3. भशिा क
े जाने से पािमती का शरीर काला पड गया अंतः
“काभलका”
4. शुबभ –तनशुबभ दैत्यों क
े संहार क
े िक्त कृ टणिणी
ललाट से उत्पन्न “काली”
5. चण्ड-र्ुण्ड दैत्यों क
े संहार ककया इसभलए “चार्ुंडा”
6. अक्बबका से उत्पन्न सततर्ातृका: ब्राह्र्ी, कौर्ारी,
र्ाहेश्िरी, िैटणिी, िाराही, नरभसंही और एंद्री
8. शक्क्त एिं भशि का सबबन्ध
1. शक्क्त भशि की पत्नी ।
2. भशि-उर्ापती ; उर्ा-र्ाहेश्िरी
3. उर्ा-पािमती, भशि-धगरीश
4. शक्क्त-काली; भशि-रुद्र
5. अत: देिी भशि की ही शक्क्त र्ानी गयी।
6. सौर पुराण: देिी को भशि की “ज्ञानर्यी शक्क्त” कहा है, जो विभभन्न
कायों हेतु भभन्न रूप धारण करती है।
7. र्हाभारत: शक्क्त को नारायण एिं भशि की पत्नी
• शक्क्त का स्िरूप :
a) परर्शक्क्त
b) सिमव्यापी
c) र्ाया
14. देिी का स्िरूप
1. कल्याणकारी स्िरूप : भशि की पत्नी
2. उग्र स्िरूप : दुगाम
3. कार्प्रधान स्िरूप : त्रत्रपूरसुंदरी
15. शक्क्त का कल्याणकारी स्िरूप
• भशि की पत्नी, देिी की पूजा भशि क
े सार्
• नार्: भशिा, र्ाहेश्िरी, उर्ा,रुद्राणी भिानी,पािमती
• रूप: सौबय, कल्याणकारी, दयािती,
• तुलना: देिी की तुलना सरस्िती,सावित्री से
• र्त: देिी ही परर्ात्र्ा है
• भशि-परर्वपता एिं देिी-जगतर्ाता
• उपासकों की रक्षिता एिं शत्रुओं की विनाभशका
• विश्ि(भशि) की परर् शक्क्त
• अधम-नारीश्िर की कल्पना
• देिी भागित: देिी की कृ पा से ब्रह्र्ा, विटणु एिं र्हेश
विश्ि का सजमन, पालन एिं संहार करते है।
• जन साधारण र्ें लोकवप्रय
• पािमती क
े रूप र्ें पूजनीय
16. शक्क्त का उग्र स्िरूप
• शक्क्त का स्ितंत्र व्यक्क्तत्ि
• नार्: जया, विजया, काली, कराली,चार्ुण्डा,
र्हहषार्हदमनी, र्हाकाली
• रूप: सौबय (भशि-पत्नी), उग्र (दुगाम), कार्प्रधान
• स्िरूप: बहुर्ुखी, बहुभुजी, नेत्र एिं र्ुख रक्तिणम,
शरीर पर रक्त लेप, हार् र्ें पाश अस्त्र-शस्त्र से
सुसक्जजत
• उपासना : विजय हेतु
• र्हाभारत: कालरात्रत्र रूप र्ें िणमन ; कृ टणिणम
• कापाभलक सबप्रदाय र्ें पूजनीय
• कापाभलक रुद्र की सहचरी क
े रूप र्ें िणमन
• बभल, सुरा से पूजा से प्रसन्न
17. शक्क्त का कार्प्रधान रूप
• कार्प्रधान रूप शाक्त धर्म का र्ूल भसद्धांत
• इसक
े उपासकों को शाक्त एिं इस सबप्रदाय को शाक्त
सबप्रदाय कहते है।
• उपासना विधध: तांत्रत्रक साधन (ईसा सातिी शताब्दी)
• कई शक्क्तयों, सबप्रदाय, धर्म का प्रभाि
• अिैहदक प्रभाि, बौद्ध धर्म (तारा),
• नार्: आनंदभैरिी, त्रत्रपूरसुंदरी, लभलता, उपांग-लभलता,
र्हा भैरिी
• साहहत्य: शाक्त सबप्रदाय क
े साहहत्य को “तंत्रसाहहत्य”
कहते है।
• त्रत्रपूररहस्य, काभलतंत्र, प्रपंचसारतंत्र, र्ाभलनी-विजय,
तंत्रराजतंत्र आहद प्रर्ुख ग्रंर्
• इस रूप र्ें देिी सौंदयमिती है
• तांत्रत्रक साधना से देिी से एकात्र् स्र्ावपत करना
उपासक का ध्येय
• कापाभलक स्िरूप र्ें देिी का रूप भयािह, क्र
ू र, क
े श
विर्ुक्त, र्ुख कराल, कृ टणिणम, नरर्ुण्डधाररणी, रक्त-
र्ांस-र्द्य वप्रय
18. देिी का स्िरूप
विनम्र स्त्िरूप उग्र स्त्िरूप कामप्रधान रूप
देिों क
े सार् उपासना स्ितंत्र व्यक्क्तत्ि कार्प्रधान रूप शाक्त धर्म का
र्ूल भसद्धांत
भशि की पत्नी,
भशिा, र्ाहेश्िरी, उर्ा,रुद्राणी
भिानी,पािमती
जया, विजया, काली,
कराली,चार्ुण्डा, र्हहषार्हदमनी,
र्हाकाली
इसक
े उपासकों को शाक्त
सबप्रदाय कहते है।
तांत्रत्रक साधन
सौबय, कल्याणकारी, दयािती, सौबय (भशि-पत्नी), उग्र (दुगाम),
कार्प्रधान
आनंदभैरिी, त्रत्रपूरसुंदरी,
लभलता, उपांग-लभलता, र्हा
भैरिी
देिी की तुलना सरस्िती,
सावित्री से
भसंह िाहन, अस्त्र-शस्त्र से
सुसक्जजत
शाक्त सबप्रदाय क
े साहहत्य को
“तंत्रसाहहत्य” कहते है।
देिी ही परर्ात्र्ा है
देिी की पूजा भशि क
े सार्
भशि-परर्वपता
देिी
कापाभलक सबप्रदाय र्ें बभल,
सुरा से पूजा
तांत्रत्रक साधना से देिी से
एकात्र् स्र्ावपत करना उपासक
का ध्येय
कापाभलक स्िरूप र्ें देिी का रूप
भयािह, क्र
ू र, क
े श विर्ुक्त, र्ुख
कराल, कृ टणिणम,
नरर्ुण्डधाररणी, रक्त-र्ांस-
र्द्य वप्रय
19.
20.
21. शाक्त सबप्रदाय उपासना विधध
• देिी क
े कार्प्रधान रूप की उपासना
• देिी एकर्ात्र सिोच्च देिता, सृक्टट की तनर्ामता,पालनकताम, संहारकताम
• देिी उपासना क
े विविध स्िरूप : तंत्र साधना
• भशि क
े कापाभलक रूप से सर्ानता
1. विर्ुक्त क
े श,
2. कृ टणिणी,
3. नरर्ुण्ड धाररणी,
4. स्र्शांन विहाररनी,
5. रक्त-र्ांस वप्रय
6. नरबभल वप्रय,
7. र्द्य वप्रय
• देिी क
े सार् अंतरंगता स्र्ावपत करना
• उपाभसका: उपासना का र्ाध्यर्
• उपाभसका: देिी का रूप
• उपाभसका: देिी से एकरूपता क
े भलए अंतरंगता
22. त्रत्रपूरसुंदरी
1. अलौककक सौंदयमिती
2. देिी सिोच्च स्र्ान र्ें प्रततक्टठत
3. ब्रह्र्ा, हरी, रुद्र एिं ईश्िर देिी क
े र्ंच क
े चार पैर
4. नार्: परा, लभलता, भट्टाररका
5. आनंदभैरि या र्हाभैरि देिी की आत्र्ा
6. देिी क
े ९ व्यूह: काल, क
ु ल, नार्, ज्ञान, धचत्त, अहंकार, बुद्धध, र्हत एिं र्न
7. इन्ही क
े सक्बर्लन से विश्ि का तनर्ामण
8. तांत्रत्रक साधना से त्रत्रपूरसुंदरी ऐकात्र् स्र्ावपत करना शाक्त उपासक का
उद्देश्य
9. त्रत्रपूरसुंदरी की प्राक्तत क
े भलए स्त्री बनने की कल्पना
10. त्रत्रपूरसुंदरी: काभलतंत्र, प्रपंचसारतंत्र क
े अनुसार:
a) क्र
ू र एिं भयािह
b) क
े श विर्ुक्त
c) र्ुख कराल
d) कृ टणिणम
e) हदगंबरी
f) नरर्ुण्डधाररणी
g) श्र्शान विहाररणी
h) रक्त, र्ांस, नरबली, र्द्य वप्रय
23. शाक्त सबप्रदाय उपासना र्त
• र्ास-र्द्य की उपासना क
े कारण पुराणों र्ें तनंदा
• ब्रह्र्िैितम पुराण: ज्ञान प्राक्तत र्ें बाधक, योग-र्ागम अिरुद्ध
करनेिाली, अज्ञानरूपा कहा है।
• र्त प्रदभशमत करने हेतु “सांख्य दशमन” का उपयोग
• प्रकृ तत+पुरुष का भसद्धांत
• शक्क्त-प्रकृ तत का स्िरूप तर्ा परर्पुरुष-आहद शक्क्त बताया
गया।
• पूजा-अचाम र्ें क
ु छ सुधार ककए गए।
• व्यिहार, र्द्यपान का तनषेध
24. शाक्त भसद्धांत
• भशि-शक्क्त को आद्य तत्ि र्ाना गया
• शाक्त भसद्धांत क
े अनुसार
• शक्क्त र्ें ब्रबहा,विटणु और भशि क
े अंश सक्बर्भलत है।
• शक्क्त सिमव्यापक है।
• शक्क्त भशि का कक्रयाशील रूप है।
• उपासक शक्क्त क
े ककसी एक रूप को उपास्यदेिी र्ानक
े उपासना करते है।
• शाक्त र्त र्ें “क
ुं डभलनी शक्क्त” जो रहस्यर्यी है, सबपूणम ब्रबहाण्ड र्ें व्यातत
है, र्ंत्रो-योग साधना से प्रातत की जा सकती है।
शिि
-शक्क्त
शाक्त
भसद्धांत
25. शाक्त भसद्धांत
• आचारों क
े आधार पर शाक्त सबप्रदाय क
े दो िगम
1. सर्ायाचारी:
2. कौलर्ागी:
समायाचारी कौलमार्गी
सार्ाक्जक िार्र्ागी
अन्त साधन पे अधधक बल साधक श्रेटठ र्ाने जाते है।
सर्य क
े अनुसार साधना यह अद्िेतिादी होते है
(पााँच “र्”: र्द्य, र्ांस, र्त्स्य, र्ुद्रा, र्ैर्ुन)
सर्ाज र्ें र्ान्यता सर्ाज र्ान्यता नही
लोकवप्रय अलोकवप्रय: त्िचा-चंदन, शत्रु-भर्त्र, स्र्शान –घर
र्ें कोई भेद नही।
26. र्ातृकायें
• पुराणो र्ें उल्लेख : तनन्र् कोहट की स्त्री देिताए
• र्त्स्य पुराण: दैत्यों क
े विनाश क
े भलए भशि ने उन्हें उत्पन्न ककया
• िराह पुराण: र्ातृकायें देिी क
े अट्टहास से उत्पन्न हुयी
• संभितः स्र्ानीय, लोक प्रचभलत देिी क्जन्हें धर्म र्ें सर्ाहहत
ककया गया
• र्ातृकायें की संख्या सात र्ानी गयी है।
• क
ु षाण काल र्ें सतत र्ातृकायें का अंकन प्रातत होता है।
• अर्रकोश: सतत र्ातृकाओं का उल्लेख
• पूिम र्ध्यकाल क
े अनेक र्ंहदरो र्ें प्रदभशमत
27. योधगनी
• भेडाघाट का ६४ योधगनी र्ंहदर योधगनी पूजा का प्रभसद्ध क
ें द्र
• इन योधगतनयों को र्ातृका कहा जाता र्ा
• आरंभ र्ें इनकी संख्या तनक्श्चत नही र्ी
• इनकी पूजा पृर्क अर्िा संयुक्त रूप से होती र्ी।
• इनकी संख्या, ७, बाद र्ें ९ एिं कालांतर र्ें ६४ और ८४ हो गयी
• योधगनी पूजा शाक्त सबप्रदाय का ही एक रूप है
• योधगनी पूजा क
े सैधाक्न्तक पि की वििेचना र्त्सेंद्रनार् क
े
कौलज्ञानतनणमय ग्रंर् र्ें प्रातत होती है।
• योधगनीयों की पूजा गुतत पद्धतत से क्स्त्रयों की संततत क
े भलए होता
र्ा।
• योधगनी सूची र्ें धीरे-धीरे ६४ योधगतनयों का अंतभामि हुआ
• इस सूची र्ें ब्राह्र्ी, र्ाहेश्िरी, िैटणिी आहद र्ातृकाओं का सर्ािेश
28. योधगनी
• इनकी तांत्रत्रक रूप से पूजा-विधध होती र्ी
• इनर्े चार, आठ, बारह, चौसठ एिं अधधक कोणों से बने रहस्यर्य चक्रों क
े र्ध्य र्ें
भशि प्रततक्टठत रहते र्े।
• ये कोण भशि-शक्क्त का आंतर-संबंध बताते है।
• कर्ासररतसागर,राजतरंधगणी, रुद्रोपषद, प्रबोधचंद्रोदय, िेतालपंच्चविशंतत आहद
ग्रंर्ो र्ें योधगतनयों की कर्ाए पायी जाती है।
• इसक
े अनुसार
1. योधगनी तनन्र् श्रेणी की देिता है
2. क्र
ू र एिं भयािह रूप
3. रक्त की तयासी
4. नरबली का विधान
5. नरर्ुण्ड की र्ाला का पररधान
6. कपाल र्ें भोजन
7. र्ृत व्यक्तीयों को जीवित कर सकती र्ी
8. इच्छा तृक्तत क
े भलए र्नुटय िध
9. युद्ध िेत्र र्ें नृत्य
29. ६४ योधगतनयों क
े र्ंहदर
• भारत र्ें चौसठ योधगनी र्ंहदर ओडडशा तर्ा ३ र्ध्य प्रदेश र्ें हैं।
• इन योधगतनयों को चक्र क
े आकार र्ें प्रदभशमत ककया जाता है।
• कदाधचत यही कारण है कक उनक
े र्ंहदर भी चक्र क
े आकार र्ें तनभर्मत
होते हैं।
• प्रत्येक योधगनी इस चक्र अर्ामत पहहये क
े एक आरे पर स्र्ावपत होती
है।
• प्रत्येक र्ंहदर र्ें इन योधगतनयों की सूची र्ें भभन्नता होती है।
• प्रत्येक योधगनी का एक विशेष नार् होता है तर्ा ककसी भी दो र्ंहदरों र्ें
इन नार्ों की सूची सर्ान नहीं होती।
• इन योधगतनयों र्ें क
ु छ दयालु तो क
ु छ क्र
ू र प्रतीत होती हैं।
• प्रत्येक योधगनी की एक विशेष शक्क्त होती है क्जसक
े आधार पर ही
अपनी इच्छा पूततम क
े भलए भक्तगण संबंधधत योधगनी की आराधना
करते हैं।
• ये इच्छाएं संतान प्राक्तत से लेकर शत्रु क
े विनाश तक क
ु छ भी हो सकती
हैं।
30. यह चौसठ योधगनी र्ंहदर र्ुरैना क्जले र्ें भर्तािली गााँि र्ें है। 1323 ईस्िी पूिम क
े एक भशलालेख क
े
अनुसार, यह र्ंहदर कच्छप राजा देिपाल द्िारा बनाया गया र्ा। यह बाहरी रूप से 170 फीट की
त्रत्रजया क
े सार् आकार र्ें गोलाकार है और इसक
े आंतररक भाग क
े भीतर 64 छोटे कि हैं।
31.
32.
33. यह र्हदर हीरापुर भुिनेश्िर से लगभग १५ ककलोर्ीटर की दूरी पर है।
इस र्ंहदर का तनर्ामण संभितः भौर् िंश की साम्राज्ञी हीरादेिी ने करिाया र्ा।
34.
35. यह चौसठ योधगनी र्ंहदर उडीसा क
े रानीपुर झारल, बलांगीर क्जले र्ें क्स्र्त है।
44. उपसंहार
• भारत का प्राचीन धर्म सबप्रदाय
• शाक्त दशमन र्ें ज्ञान, भक्क्त और कर्म का सर्न्िय है।
• शाक्त धर्म र्ें अिैहदक तत्िों का प्रभाि प्रदभशमत होता है।
• शक्क्त पूजा हहंदू धर्म का अभभन्न अंग है।
• सीभर्त स्िरूप र्ें शाक्त-सबप्रदाय की तांत्रत्रक उपासना
प्रचभलत है।
• ितमर्ान सर्य र्ें देिी पूजा अत्यधधक लोकवप्रय