2. महादेवी वमार कर्ा जन्म 26 माच,र, 1907 कर्ो होली कर्े िदन फरुखाबाद (उत्तर
प्रदेश) में हुआ था। उनकर्ी प्रारंभिभिकर् िशक्षा िमशन स्कर्ूल, इंभदौर में हुई। महादेवी
1929 में बौद्ध दीक्षा लेकर्र िभिक्षुणी बनना च,ाहतीं थीं, लेिकर्न महात्मा गांभधी कर्े
संभपर्कर्र में आने कर्े बाद वह समाज-सेवा में लग गईं। 1932 में इलाहाबाद
िवश्वविवद्यालय से संभस्कर्ृत में एम.ए कर्रने कर्े पर्श्चात उन्होने नारी िशक्षा प्रसार कर्े
मंभतव्य से प्रयाग मिहला िवद्यापर्ीठ कर्ी स्थापर्ना कर्ी व उसकर्ी प्रधानाच,ायर कर्े रुपर्
में कर्ायररत रही।
11 िसतंभबर, 1987 कर्ो इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में उनकर्ा िनधन हो गया।
3. िहन्दी कर्ी सवारिधकर् प्रितभिावान कर्वियित्रियों में से हैं। वे िहन्दी
सािहत्य में छायावादी युग कर्े च,ार प्रमुख स्तंभभिों में से एकर् मानी जाती
हैं। आधुिनकर् िहन्दी कर्ी सबसे सशक्त कर्वियित्रियों में से एकर् होने कर्े
कर्ारण उन्हें आधुिनकर् मीरा कर्े नाम से भिी जाना जाता है। कर्िव
िनराला ने उन्हें “हिहन्दी कर्े िवशाल मिन्दर कर्ी सरस्वती” भिी कर्हा है।
महादेवी ने स्वतंभत्रिता कर्े पर्हले कर्ा भिारत भिी देखा और उसकर्े बाद कर्ा
भिी। न कर्ेवल उनकर्ा कर्ाव्य बिल्कर् उनकर्े सामाजसुधार कर्े कर्ायर और
मिहलाओं कर्े प्रित च,ेतना भिावना भिी इस दृिष्टि से प्रभिािवत रहे।
4. जन्म और पर्िरवार
महादेवी कर्ा जन्म 26 माच,र 1907 कर्ो प्रातः 8 बजे फ़र्रुरख़ाबाद
उत्तर प्रदेश, भिारत में हुआ। उनकर्े पर्िरवार में लगभिग 200 वष ों या
सात पर्ीिढ़ियों कर्े बाद पर्हली बार पर्ुत्रिी कर्ा जन्म हुआ था। अतः बाबा
बाबू बाँकर्े िवहारी जी हष र से झूम उठे और इन्हें घर कर्ी देवी —
महादेवी मानते हुए पर्ुत्रिी कर्ा नाम महादेवी रखा।
5. िशका
महादेवी जी की िशका इंदौर में िमशन स्कूल से प्रारम्भ हुई साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, संगीत तथा
िचित्रकला की िशका अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही। 1921 में महादेवी जी ने आठवीं
कका में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त िकया। यहीं पर उन्होंने अपने काव्य जीवन की शुरुआत की।
वे सात वष र्ष की अवस्था से ही किवता िलखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने मैट्रिक ट्रिक की
परीका उत्तीण र्ष की, वे एक सफल कवियत्री के रूप में प्रिसद्ध हो चिुकी थीं।
1932 में जब उन्होंने इलाहाबाद िवश्वविवद्यालय से संस्कृत में एम॰ए॰ पास िकया तब तक उनके
दो किवता ग्रह नीहार तथा रिशम प्रकािशत हो चिुके थे।
6. वैट्रवािहक जीवन
सन् 1916 में उनके बाबा श्री बाँके िवहारी ने इनका िववाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के
िनवासी श्री स्वरूप नारायण वमार्ष से कर िदया, जो उस समय दसवीं कका के िवद्याथी थे। श्रीमती
महादेवी वमार्ष को िववािहत जीवन से िवरिक्ति थी।
महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यािसनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्ववेत वस्त्र पहना,
तख्त पर सोईं और कभी शीशा नहीं देखा। सन् 1966 में पित की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से
इलाहाबाद में रहने लगीं।
7. कायर्षकेत्र
महादेवी का कायर्षकेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग मिहला िवद्यापीठ के
िवकास में महत्वपूण र्ष योगदान िकया। यह कायर्ष अपने समय में मिहला-िशका के केत्र में क्रांितकारी कदम था।
इसकी वे प्रधानाचिायर्ष एवं कुलपित भी रहीं। 1932 में उन्होंने मिहलाओं की प्रमुख पित्रका ‘चिाँद’का
कायर्षभार संभाला। 1930 में नीहार, 1932 में रिशम, 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नामक
उनके चिार किवता संग्रह प्रकािशत हुए। 1939 में इन चिारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृितयों के साथ
वृहदाकार में यामा शीष र्षक से प्रकािशत िकया गया। इसके अितिक रक्ति उनकी 18 काव्य और गद्य कृितयां हैं
िजनमें मेरा पिक रवार, स्मृित की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की किडयाँ और अतीत के चिलिचित्र प्रमुख हैं।
सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में सािहत्यकार संसद की स्थापना की और पंिडित इलाचिंद्र जोशी के
सहयोग से सािहत्यकार का संपादन संभाला।