2. जिस प्रकार आभूषणों के प्रयोग से स्त्री का
लावण्य (सौंदयय) बढ़ िाता है, उसी प्रकार काव्यों
में अलंकारों के प्रयोग से काव्यों की शोभा बढ़
िाती है, अर्ायत ्अलंकारों का प्रयोग काव्य में
चमत्कार व प्रभाव उत्पन्न करने के ललए ककया
िाता है।
4. १.शब्दालंकार :- जिस अलंकार मेंशब्दों के प्रयोग
के कारण कोई चमत्कार उपजस्त्र्त हो िाता हैऔर
उन शब्दों के स्त्र्ान पर समानार्ी दूसरे शब्दों के
रख देनेसेवह चमत्कार समाप्त हो िाता है,वह
पर शब्दालंकार माना िाता है।
िब शब्दों के द्वारा काव्य के सौंदययमेंवृद्धि
की िाती है, तो उसे शब्दालंकार कहतेहैं।
शब्दालंकार मेंयदद शब्द की िगह उसके
पयाययवाची शब्द का प्रयोग ककया िाता है, तो
वहााँयह अलंकार नह ंरहता है।
5. िैसे−तुम तुुंग दहमालयश्गंृ
यदद इस पंजतत मेंतुंग के स्त्र्ान पर उसका
पयाययवाची शब्द पवयत रख ददया िाए, तो यहााँ
शब्दालंकार नह ंरहेगा।
यह इस प्रकार होगा-
तुम पवतयदहमालय श्ंगृ
इस प्रकार इस पंजतत का चमत्कार समाप्त हो
गया है और इसका सौंदयय भी नह ंरहा है
7. 1. अनुप्रास अलंकार:- कववता
में िब ककसी एक वणय की
आवृवि एक से अधिक बार
होती है, तो उसे अनुप्रास
अलंकार कहते हैं। चाहे पंजतत
में वह शब्द में शुरु के वणय हो
या अंततम वणय हो;
8. अवधि अिार आस आवन की, तन मन बबर्ा सह ।
(यहााँ'अ', 'आ' तर्ा 'न' वणय की आवृवि एक से अधिक बार हुई है
इसललए यहााँ अनुप्रास अलंकार है।)
अनुप्रास के अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं-
(i) मिुर-मिुर मुसकान मनोहर मनुि वेश का उजियाला।
(यहां 'म' वणय की आवृवि एक से अधिक बार हुई है इसललए यहााँ
अनुप्रास अलंकार है।)
(ii) भुिबल भूलम भूप बबनु कीन्ह ं।
(यहााँ'भ' वणय की आवृवि बार-बार हुई है इसललए यहााँ अनुप्रास
अलंकार है।)
9.
10. कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए िग, या पाए बौराय।।
(यहााँ एक कनक का अर्य, 'ितूरा' व दूसरे कनक का अर्य
'सोना' है। (ितूरा खाकर व सोना पाकर लोग पागल हो िाते
हैं।) अत: हम कह सकते हैं कक यहााँ यमक अलंकार है।
अन्य उदाहरण-
(i) तीन बेर खाती र्ी, वो तीन बेर खाती र्ी।
(यहााँ'बेर' का अर्य'बेर (फल)' व 'बार ' से हुआ है।)
(ii) ऊाँचे छोर मन्दर के अन्दर रहन वार ,
ऊाँचे छोर मन्दर के अन्दर रहती है।
यहााँ पर एक मन्दर का अर्य'गुफा' से है और दूसरा
'अट्टाललका' से, इसललए यहााँ यमक अलंकार है।
11.
12. पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।
इस पंजतत में पानी शब्द एक ह बार प्रयोग ककया गया
है। परन्तु उसके तीन लभन्न-लभन्न अर्य तनकल रहे हैं।
एक पानी का अर्यचमक, दूसरे पानी का
अर्यइज़्ज़त (सम्मान) तर्ा तीसरे पानी का
अर्यजल (पानी) से ललया गया है। अत: हम कह सकते हैं
कक यहााँ श्लेष अलंकार है।
अन्य उदाहरण -
(i) मेर भव बािा हरौ, रािा नागरर सोय।
िा तन की झांई परै, स्त्याम हररत दुतत होय।।
यहााँ हररत शब्द के तीन अर्य तनकलते हैं:- 'खुश होना',
'हर लेना' (चुरा लेना) तर्ा 'हरा रंग'। इसललए यहााँ श्लेष
अलंकार है।
(ii) चरन िरत धचतंा करत धचतवत चहुाँ ओर।
सुबरन को ढूाँढ़त कफरत कवव, व्यलभचार चोर
यहााँसुबरन के तीन अर्य हैं(1) अच्छे शब्द (सुवणय) (2)
अच्छा रुपरंग (3) स्त्वणय(सोना)।
13. जब ककसी कविता में अर्थ के कारण
चमत्कार उत्पन्न होता है, उसे
अर्ाथलुंकार कहते हैं। इसके अुंदर शब्द
चमत्कार उत्पन्न नह ुं करता बल्कक
उसका अर्थ चमत्कार उत्पन्न करता
है।
15. उपमा:- जब ककन्ह ुं दो अलग-
अलग प्रससद्ध व्यल्ततयों या
िस्तुओुं में आपस में तुलना की
जाती है, तो िहााँ उपमा अलुंकार
होता है।
16. (i) उपमेय:- कववता में जिस व्यजतत व वस्त्तु का वणयन करते
हैं, उसे उपमेय कहते हैं(जिसकी उपमा द िाए)। जिसके
सम्बन्ि में बात की िाए या उसको ककसी अन्य के समान
बताया िाए, वह उपमेय कहलाता है।
िैसे- चााँद सा सुंदर मुख (मुख उपमेय है।)
(ii)उपमान:- उपमेय कक समानता ककसी प्रलसद्ि व्यजतत या
वस्त्तु से की िाए, उसे उपमेय के समान बताया िाए वह
उपमान होता है; िैसे- चााँद सा सुंदर मुख (चााँद उपमान है।)
(iii) वाचक शब्द:- जिस शब्द के द्वारा उपमेय व उपमान में
समानता दशाययी (बताया) िाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं।
जिन शब्दों से उपमा अलंकार की पहचान हो; िैसे– से, सा, सी,
सम, िैसा, सररस, तुल्य आदद।
(iv) सािारण िमय:- िहााँ उपमेय व उपमान में गुण-रुप समान
पाए िाते हैं, उसे सािारण िमय कहते हैं; िैसे- चााँद सा सुंदर
मुख। यहााँ सुंदर चााँद के ललए भी है और मुख के ललए भी।
17. (क) कोटि कुलस सम बचन तुम्हारा।
(यहााँ परशुराम िी के द्वारा बोले गए वचनों की तुलना
करोडों व्रिों से की गई है। अत: यहााँ उपमा अलंकार हैं।
सार् ह यहााँ'सम' उपमा का वाचक शब्द है, िो इस बात
की पृजटट करता है कक यहााँ उपमा अंलकार है।)
(ख) सीता का मुख चन्रमा के समान सुंदर है।
(यहााँ सीता का मुख चन्रमा के समान सुंदर बताया गया है।
अत: यहााँ उपमा अलंकार है।
(ग) ललपट जिससे रवव की ककरणें,
चााँद की-सी उिल िाल !
(यहााँ पर सूयय की ककरणों की तुलना चााँद िातु से की िा
रह है। कवव के अनुसार सूयय की ककरणें चााँद िातु के
समान चमकील तर्ा उज्िवल लग रह हैं। अत: यहााँ
उपमा अलंकार है।)
18. (2) रूपक अलुंकार:- िहााँ गुण में बहुत
अधिक समानता होने से उपमेय
(ÎeÉxÉMüÐ iÉÑsÉlÉÉ MüÐ eÉÉ UWûÏ WûÉå ) और
उपमान (ÎeÉxÉ sÉÉåMü mÉëÍxÉkS –uÉxiÉÑ xÉå
iÉÑsÉlÉÉ MüÐ eÉÉL) के बीच में अंतर नह ं
रहता, वहााँ रूपक अलंकार होता है|
19. (क) िदटल तानों के िंगल में
(यहााँजटिल तानों को िंगल के समान बताया गया है। जिस
प्रकार िंगल में िाकर मनुटय खो िाता है, वैसे ह गायक
िदटल तानों में फंसकर खो िाता है। इसललए दोनों में गुण
के आिार पर समानता होने के कारण इनके मध्य का अंतर
समाप्त हो गया है। अत: हम कह सकते हैं कक यहााँरूपक
अलंकार है।)
(ख) िाने कब सुन मेर पुकार, करें देव भवसागर पार।
(यहााँ रूपक अंलकार है। कारण भव का अर्य होता है; िन्म
लेता हुआ या सांसाररक िीवन। जिस प्रकार सागर का क्षेर
बहुत ववशाल होता है और उसकी गहराई अर्ाह होती है, वैसे
ह सांसाररक िीवन भी होता है। यहााँ गुण की बहुत अधिक
समानता के कारण मान ललया गया है कक संसार सागर के
समान है। इस कारण से इनके बीच का अंतर समाप्त हो
िाने से वे एक हो गए हैं।)
20. (3) उत्प्रेक्षा अलुंकार:- िहााँ उपमेय में उपमान की
कल्पना या संभावना व्यतत की िाए, वहााँ उत्प्रेक्षा
अलंकार होता है। रूपक अलंकार में गुण के आिार पर
दो वस्त्तुओं के मध्य अंदर समाप्त हो िाता है तर्ा वे
एक हो िाते हैं। परन्तु उत्प्रेक्षा में कल्पना या संभावना
की िाती है कक वह एक हैं या लग रहे हैं। इसके
वाचक शब्दों द्वारा इसे पहचाना सरल होता है। इसके
वाचक शब्द इस प्रकार हैं- मनो, मानो, िानो, िनु,
मनहु, मनु, िानहु, ज्यों, त्यों आदद हैं। पर यह आवश्यक
नह ं है कक हर िगह वाचक शब्दों का प्रयोग हुआ ह
हो।
21. (क) छू गया तुमसे कक झरने लग पडे शेफाललका के फूल
(इसमें बच्चे का छूना अर्ायत उसके स्त्पशय की संभावना
शेफाललका के फूलों के झरने के समान की गई है।)
(ख) सोहत ओढ़े पीत पट, स्त्याम सलोने गात।
मनहुाँनील मणण सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।
(इसमें श्ीकृटण के श्याम वणय शर र की कल्पना नीलमणण
पवयत के समान की गई है। ऐसे ह उनके पीले वस्त्रों की
कल्पना सुबह की िूप के समान गई है। कवव कहता है कक
संवाले शर र पर पीले वस्त्र ऐसे सुशोलभत हो रहे हैं मानो
सुबह की पील िूप नीलमणण पवयत पर पड रह हो। )
(ग) कहती हुई यों उिरा के, नेर िल से भर गए।
दहम के कणों से पूणय मानो, हो गए पंकि नए।।
(इसमें उिरा के आाँखों से तनकलने वाले आाँसुओं की
संभावना ओस की बूंदों से णखल उठे कमल से की गई है।)
22. 4.अततशयोल्तत अलुंकार:- िहााँ ककसी
वस्त्तु, पदार्य अर्वा कर्न के ववषय में
बढ़ा-चढ़ा कर इस प्रकार कहा िाए कक
लोक सीमा की हदें पार हो िाएाँ, वहााँ
अततशयोजतत अलंकार होता है।
23. (1) तुम्हार यह दंतुररत मुसकान
मृतक में भी डाल देगी िान
(बच्चे की मुसकान को इतना प्रभावी बताया गया है
कक वह मृत व्यजतत को भी िीववत कर सकती है।
कवव ने इतनी बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा की है कक वह
लोक-सीमा की हद को पार कर गई है। अत: यह
अततशयोजतत अंलकार का उदाहरण है।)
(2) हनुमान की पाँूछ में, लग न पाई आग।
लंका सार िल गई, गए तनसाचर भाग।।
(हनुमान की पाँूछ में आग लगने से पहले ह लंका िल
गई।)
(3) छुअत टूट रघुपततहु न दोसू।
(लक्ष्मण िी के अनुसार राम के स्त्पशय करते ह िनुष
टूट गया है, िो कक संभव नह ं है। स्त्पशय मार से ह
िनुष टूट िाएगा यह लोक-सीमा से परे की बात है।
अत: यहााँ अततशयोजतत अलंकार है।)
24. 5.मानिीकरण अलुंकार:- िहााँ प्रकृतत को
मनुटय के समान कियाकलाप करते हुए या
उसके समान भावना से युतत ददखाया िाता
है, वहााँ मानवीकरण अलंकार होता है। प्रकृतत
िड है। वह मनुटय के समान कायय, व्यवहार
तर्ा भावनाओं का आदान-प्रदान नह ंकर
सकती है। परन्तु मानवीकरण अलंकार में
प्रकृतत को मनुटय के समान ह व्यवहार, कायय,
तर्ा भावनाओं से युतत ददखाया िाता है।
25. गाकर गीत ववरह के तदटनी
वेगवती बहती िाती है,
ददल हलका कर लेने को
उपलों से कुछ कहती िाती है।
तट पर एक गुलाब सोचता,
"देते स्त्वर यदद मुझे वविाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी िग को गीत सुनाता।"
इस काव्यांश में नद को तर्ा गुलाब
को मनुटय के समान व्यवहार करते
हुए ददखाया गया है। अत: यहााँ
मानवीकरण अंलकार है।
26. 6.अन्योल्तत अलुंकार:- इसका संधि-
ववच्छेद इस प्रकार है अन्य+उजतत
अर्ायत कहने वाला व्यजतत अपनी
बात ककसी और उदाहरण (उजतत) के
द्वारा समझाता है। वह व्यंग्य के
माध्यम से भी अपनी बात रख
सकता है। इस अलंकार को अप्रस्त्तुत
प्रशंसा के रूप भी पहचाना िाता है।
27. नदह पराग नदह मिुर मिु, नदहं ववकास इदह काल।
अल कल ह सो बाँध्यो, आगे कौन हवाल।।
(इसमें भौंरे को बुरा भला कह कर रािा ियलसहं को
उनकी रानी के सार् समय बबताने और रािकाि का
काम न देखने पर व्यंग्य ककया गया है। इस प्रकार
कवव ने भंवरे के माध्यम से व्यंग्य कसकर रािा को
अपनी बात समझा द है और रािा के िोि से भी बच
गए हैं। तयोंकक उन्होंने कह ं भी रािा का नाम नह ं
ललया परन्तु रािा समझ गए यह बात उनके ललए ह
कह गई है।)
28. 7.पुनरुल्तत प्रकाश अलुंकार :- इस
अंलकार में एक ह शब्द की उसी
अर्य में पुनः आवृवि होती है। अर्ायत
एक ह शब्द एक से अधिक बार
आता है परन्तु हर बार उसका अर्य
वह रहता है। इसललए इसे पुनरुजतत
प्रकाश अंलकार कहते हैं।
29. 1. प्रभु िी, तुम चंदन हम पानी, िाकी
अाँग-अाँग बास समानी।
ऊपर ददए काव्यांश में अाँग शब्द की दो
बार उसी रूप में आवृवि हुई है। अतः यहााँ
पुनरुजतत प्रकाश अलंकार है।
2. इन नए बसते इलाकों में
िहााँ रोज़ बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्त्ता भूल िाता हूाँ
ऊपर ददए काव्यांश में नए शब्द की दो
बार उसी रूप में आवृवि हुई है। अतः यहााँ
पुनरुजतत प्रकाश अलंकार है।