http://spiritualworld.co.in श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - ज्योति ज्योत समाना:
बाबक रबाबी और मलिक जाती के परलोक सिधार जाने के कुछ समय बाद गुरु हरि गोबिंद जी ने अपने शरीर त्यागने का समय नजदीक अनुभव करके श्री हरि राये जी को गुरुगद्दी का विचार कर लिया|इस मकसद से आपने दूर - नजदीक सभी सिखों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|
गुरु हरिगोबिंद जी ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी को गद्दी देने का विचार किया| वे श्री हरि राय जी से कहने लगे कि तुम गुरु घर की रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना| शोक को त्याग देना व धैर्य रखना| सिखों को उपदेश देना और उनका जीवन सफल करना| बाबा जी के ऐसे वचन सुनकर श्री हरि राय जी कहने लगे महाराज! देश के तुर्क हमारे शत्रु है, उनके पास हकूमत है, उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? गुरु जी कहने लगे कि तुम चिंता ना करो, जो तुम्हारे ऊपर चढ़कर आएगा, वह कोहरे के बादल कि तरह उड़ जायेगा| तुम्हे कोई भी हानि नहीं पहुँचायेगा| यह बात सुनकर श्री हरि राय जी ने गुरु जी के चरणों में माथा टेका और शांति प्राप्त की|
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1.
2. बाबक रबाबी और मलिलिक जाती के परलिोक
िसिधार जाने के कुछ सिमलय बाद गुर हरिर
गोिबद जी ने अपने शरीर त्यागने का सिमलय
नजदीक अनुभव करके श्री हरिर राये जी को
गुरगद्दी का िवचार कर िलिया|इसि मलकसिद सिे
आपने दूर - नजदीक सिभी िसिखो को
करतारपुर पहुँचने के िलिए पत िलिखे|
गुर हरिरगोिबद जी ने अपना अंतितमल सिमलय
नजदीक पाकर श्री हरिर राय जी को गद्दी देने
का िवचार िकया|
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3. वे श्री हरिर राय जी सिे कहरने लिगे िक तुमल गुर घर
की रीित के अनुसिार िपछलिी रात जागकर शौच
स्नान करके आत्मलज्ञान को धारण करके भिक मलागर
को ग्रहरण करना| शोक को त्याग देना व धैर्यर रखना|
िसिखो को उपदेश देना और उनका जीवन सिफलि
करना| बाबा जी के ऐसिे वचन सिुनकर श्री हरिर राय
जी कहरने लिगे मलहराराज! देश के तुकर हरमलारे शतु हरैर्,
उनके पासि हरकूमलत हरैर्, उनके सिाथ कैर्सिा व्यवहरार
करना चािहरए? गुर जी कहरने लिगे िक तुमल िचता
ना करो, जो तुम्हरारे ऊपर चढ़कर आएगा, वहर
कोहररे के बादलि िक तरहर उड जायेगा| तुम्हरे कोई
भी हरािन नहरी पहुँचायेगा|
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4. यह बात सुनकर श्री हिर राय जी ने गुर जी के
चरणो मे माथा टेका और शांतित प्राप की|
गुर जी ने अपने अिन्तम समय के िलिए एक कमरा
तैयार कराया और उसका नाम पातालिपुरी रखा|
इसके पश्चात अपनी दोनो मिहलिाओ माता
मरवाही और माता नानकी जी और तीनो पुत्रो श्री
सूरज मलि जी, श्री अणी राय जी और श्री तेग
बहादर जी और पोत्र श्री हिर राय जी को मसंतदो व
िसक्ख सेवको को अपने पास िबठाकर वचन िकया
िक अब हमारी स्वगर िसधारने की तैयारी है| यह
कोई नई बात नही है| संतसार का प्रवाह नदी की
तरह चलिता रहता है|
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5. यहाँ सब कुछ नाशवान और अिस्थर है| प्रभु का हुकम
मानना और उसपर चलिना चिहए| यही जरूरी है|
िसक्खो और पिरवार को आजा:
इसके पश्चात गुर जी ने भाई भाने को आजा की िक तुमने
अपने पुत्र को श्री हिर राय जी की सेवा मे रहने देना|
जोध राय को कहा िक तुम अपने घर कांतगड चलिे जाना
और सितनाम का स्मरण करके सुख भोगना और गुर का
लिंतगर जारी रखना|
बीबी वीरो को धैयर िदया और कहा िक तेरी संततान बडा
यश पायेगी| तुम्हे सारे सुखो की प्रािप होगी|
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6. िबधीचंतद के पुत्र लिालिचंतद को कहा, तुमने अपने घर सुर
िसह चलिे जाना| और िफिर जब गुर घर को जररत होगी,
तन मन के साथ हािजर होकर सेवा करनी|
इस तरह बाबा सुन्दर और परमानन्द को भी अपने घर
गोइंतदवालि भेज िदया| िफिर माता नानकी की तरफि
देखकर कहा िक तुम अपने पुत्र श्री तेग बहादर को लिेकर
अपने मायके बकालिे चलिे जाओ|
श्री सूरज मलि जी को कहा िक तुम पानी इच्छा के
अनुसार श्री हिर राय जी के पास अथवा यहाँ तुम्हे सुख
प्रतीत हो िनवास कर लिेना| तेरा वंतश बहुत बडेगा| श्री
अणी राय जी को आपने कुछ नही कहा क्योिक उनका
ध्यान ब्रह जान मे िटका हुआ था|
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7. संगत के पित वचन:
संगत और मसंदो आप ने संबोिधित करके वचन
िकया िक आज से श्री हरिर राय जी को हरमारा हरी
स्वरूप जानना और मानना| जो इनके िवरुद
चलेगा,उसका लोक व परलोक िबगड़ेगा| वहर
यहराँ वहराँ दुःख पायेगा| वाणी पड़नी, सितनाम
का स्मरण करना और शोक िकसी ने नहरी करना
हरोगा| हरम अपने िनज धिाम स्वगर को जा रहरे हरै|
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8. इस तरहर सब को धिैर्यर और आदेश देकर गुरु
जी ने पाताल पुरी नाम के कमरे मे घी का
दीया जलाकर कुश और नरम िबछौना
करवाया और सारी संगत को धिैर्यर व
सांत्वना देकर भाई जोधि राय और भाई
भाने को कहरा तुम इस कमरे का सात िदन
पहररा रखना और सातवे िदन इसका
दरवाजा श्री हरिर राय जी से खुलवाना|
पहरले कोई िनकट आकर िवघ ना डाले|
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9. यहर वचन करके आपजी ने कमरे के अंदर
जाकर दरवाजा बन्द कर िलया और कुश के
आसन पर समािधि लगाकर बैर्ठ गए| संगत
बाहरर बैर्ठकर अखंड कीर्तरन करने लगी|
सातवे िदन सवा पहरर िदन चढ़े श्री हरिर राय
जी ने अरदास करके दरवाजा खोला और गुरु
जी के मृत शरीर को स्नान कराकर और नवीन
वस पहरना कर एक सुन्दर िवमान मे रखकर
चन्दन व घी िचता के पास ले गए और िचता
मे रखकर संस्कार कर िदया|
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इसके पश्चात सबने सतलुज नदी मे स्नान िकया
और डेरे आकर कड़ाह प्रसाद की देघ तैयार
करके बाँटी|
इस तरह श्री गुर हिर गोबिबद जी चेत सुिध
पंचमी संवत 1701 िवक्रमी कोब ज्योबित ज्योबत
समाए|