Publicidad
Publicidad

Más contenido relacionado

Publicidad
Publicidad

Mudra and bandh

  1. Mudra and Bandh (मुद्रा और बंध)
  2. मुद्रा
  3. इतिहास • मुद्रा का सबसे पहेले उल्लेख िंत्र शास्त्र मे तमलिा है, िंत्र शास्त्र का ज्ञान भगवान तशव ने अपनी प्रथम तशष्या देवी पावविी को तदया: • मत्स्येन्द्द्रनाथ > गोरक्ष नाथ > • हठयोग प्रदीतपका में १० मुद्रा ओ का वर्वन तकया गया है| • ये प्रमुख मुद्राए मानी गयी है, िथा घेरंड संतहिा २५ और गोरक्ष सिक जैसे हठयोग के ग्रंथो में भी इनका वर्वन तकया गया है| • मुद्राए अन्द्नमय कोष और प्रार्मय कोषोको एक साथ जोडिी है तजससे हमारा मनोमय कोष प्रभातवि होिा है |
  4. मुद्रा : मुदम् आनन्द्दम् ददाति इति मुद्रा तित्तको तदव्य आनंद देनेवाली तवतशष्ट मनोकातयक अव्था The practice which induces an internal experience of external bliss शातददक अथव – तिह्न, प्रतिक, मोहर (मुद्रा का शाब्दिक अर्थ है मोहर। चूँब्क यह मन को आत्मा के सार् जोड़कर मुहरबंि कर िेता है, इसब्िए इस अभ्यास को मुद्रा कहा जाता है।) नृत्सयशास्त्रानुसार – भावनाओंका प्रकटीकरर्, तित्त का तवशेष भाव योगशास्त्रानुसार – शरीर की सजगिापूववक ली हुई आसनसदृश तवतशष्ट त्थति
  5. क्रम ग्रंथ लेखक समय मुद्रा और बंध अंग १ हठयोग प्रदीतपका ििुरंग योग ्वात्समाराम मुनी १४०० १० १.आसन २.कुं भक ३.मुद्रा और बंध ४.नादानुसंधान २ घेरंड संतहिा सप्ांग योग घेरंड मुनी १८०० २५ १.षट्कमव २.आसन ३.मुद्रा और बंध ४.प्रत्सयाहार ५.प्रार्ायाम ६. ध्यान ७.समातध हठ योग के प्रमुख ग्रंथ
  6. क्रम ग्रंथ लेखक समय मुद्रा और बंध अंग ३. तशव संतहिा श्री आतदनाथ बी.सी. ११०० १३ -- ४. गोरक्ष शिक श्री गोरक्षनाथ ११०० ५ -- ५. तसद्ध तसद्धांि पद्धति श्री गोरक्षनाथ ११०० -- -- ६. अमन्क योग श्री गोरक्षनाथ ११०० -- --
  7. पररभाषा सं्कृ ि शदद मुद + द्रा से बनिा है मुद्रा. मुद का मिलब है -आनंद (bliss), द्रा का मिलब है (Generate). तित्त को प्रकट करने वाले तकसी तवशेष भाव को मुद्रा कहिे है. शाररररक अंगो की तवशेष आनंददायक त्थति, तजसके द्वारा मानतसक तविार और भावनाओ को व्यक्त तकया जािा है . भारिीय नृत्सय मे मुद्रा, हाथो की तवशेष अव्था है, जो आंिररक भावो या संवेदनाओ को दशाविी है . 7
  8. उद्देश्य•मुद्रा की प्राथतमकिा तवतभन्द्न कें द्रों की तक्रयाशील सूक्ष्म शतक्तयों पर मन को एकाग्र करना है। प्रार्ों के तनयंत्रर् से मन का तनयंत्रर् होिा है और मानतसक तनयंत्रर् ईश्वरसाक्षात्सकार के तलए राजमागव है। •मुद्राएं एक सूक्ष्म शारीररक हलन िलन का संयोजन है जो हमारे मूड, मनोवृतत्त और धारर्ा बदलने और एकाग्रिा बढ़ाने में सहायक होिा है. •हर एक मुद्रा के अभ्यास का असर हमारे शरीर, मन, प्रार् और भावना ओ पर होिा है. और ये हमारे अन्द्नमय कोष, प्रार्मय कोष, और मनोमय कोष को प्रभातवि करिा है. •हठ योग के अनुसार मुद्रा और बंध का उद्देश्य प्रार्मय कोष और मनोमय कोष में संिुलन लाना, प्रातर्क ऊजाव को संिुतलि करना और िक्रों को सतक्रय कर के कु ण्डतलनी शतक्त का जागरर् करना है।
  9. मुद्रा के प्रकार १. म्िकीय मुद्रा २. ह्ि मुद्रा ३. काया मुद्रा ४. अधो मुद्रा
  10. I - म्िकीय मुद्रा यह मुद्राए मस्तक के ब्िब्िन्न संिेिनीय अियिो जैसे की नाक,आंख, कान, ब्जव्हा और होठ के उपयोग से की जाती है. इन मुद्राओ का मुख्य उद्देश्य मन को एकाग्र कर के संिेिनीय अियिो पे अंकुश (कं ट्रोि) िाना और मन (ब्िचारो) को अंतमुथख करके प्रत्याहार की और िे जाना है. उदा. ब्संहमुद्रा, ब्रह्ममुद्रा, शांििी मुद्रा, खेचरी मुद्रा
  11. मुद्रा के प्रकार II ह्ि मुद्रा हाथो की उंगतलयों के अग्र भाग पर हलका सा दबाव बनाकर उसके ्पंदन द्वारा सुखद सकारात्समक अनुभूति प्राप् करना उदा. द्रोर् मुद्रा, नम्कार मुद्रा, ध्यान मुद्रा, वायू मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, िीन्द्मुद्रा अंगुष्ठ: अतनन िजवनी: वायु मध्यमा: आकाश अनातमका: पृथ्वी कतनष्ठा: जल
  12. पृथ्वी मुद्राआकाश मुद्रा जल मुद्रा ज्ञान मुद्रा अतनन मुद्रा वायु मुद्रा िीन्द्मुद्राध्यान मुद्राद्रोर् मुद्रा नम्कार मुद्रा
  13. मुद्रा के प्रकार III काया मुद्रा: •आसनो के समान तदखने वाली शरीर की तवशेष त्थिी को काया मुद्रा कहिे है उदा: तवपरीि करर्ी मुद्रा, योगमुद्रा, िडागी मुद्रा, वज्रॊली मुद्रा etc.. तवपरीि करर्ी मुद्रा योगमुद्रा िडागी मुद्रा वज्रॊली मुद्रा
  14. •IV - अधोमुद्रा •इन में शरीर के नीिले भाग का समावेश होिा है | •उदा. अतश्वनीमुद्रा, वज्रोली मुद्रा अश्विनी मुद्रा • श्वास अंदर लेिे समय गुदा द्वार के ्नायुओंका आंकु िन तकया जािा है और श्वास छोड़िे समय ्नायुओंका प्रसारर् तकया जािा है | • तनत्सय अभ्यास से गुदा द्वार के ्नायु मजबूि होिे है और बद्धकोष्ठिा , मुलव्याध की िकलीफ दूर होिी है • इस मुद्रा का अभ्यास तवपरीि करर्ी और सवाांगासन में करने से अतधक लाभ होिा है | • घेरंडसंतहिा – गुह्यरोग तवनातशनी
  15. वज्रोली मुद्रा •इस मुद्रा में मूत्रमागव को उपर की िरफ तखंिाव तदया जािा है | इसके तनत्सय अभ्यास से मूत्र तवसजवन और प्रजनन सं्था सक्षम होिी है और उनका कायव तनयतमि होिा है | •वज्र नाड़ी पर दबाव आिा है जो प्रजननं सं्था के अवयव और मेंदू को जोड़ने का कम करिी है
  16. बंध बंध का शाब्दिक अर्थ है- 'गाूँठ', बंधन या तािा । इसके अभ्यास से प्राणों को शरीर के ब्कसी एक िाग पर बाूँधा जाता है । इसके अभ्यास से योगी प्राणों को ब्नयंब्ित कर सफिता पिथक कुं लब्िनी जाग्रत करता है। शरीर के ब्िन्न ब्िन्न अंग को धीरे से, परंतु शब्िपिथक संकुब्चत (contract) एिं कला करके बंध ब्कया जाता है ताकी हमारी प्राब्णक उजाथ को हमारे अंिर रोक सके . बंध का अभ्यास प्राणायाम मे कुं िक के सार् ब्कया जाता है.
  17. बंध के प्रकार 1. मूल बंध 2. उड्डीयान बंध 3. जालंधर बंध (महा बंध) 4. तजव्हा बंध 3 2 1 •मिबंध के द्वारा प्राणों का कें द्रीकरण pelvic plexus में होता है। •उल्लीयान बंध के द्वारा Epigastric plexus में होता है। •जािंधरबंध के द्वारा carotid plexus में होता है।
  18. •मिबंध - अपान वायु, (जो उत्सजथन की ब्िया संपाब्ित करती है, को ब्नयंब्ित करता है। ) •उल्लीयान बंध - समान वायु (जो अिशोषण ब्िया संपाब्ित करती है, को ब्नयंब्ित करता है। •जािंधर बंध - उदान वायु (जो िोजन ब्नगिने और स्र्ि शरीर को सक्ष्म शरीर से पथर्क करने की ब्िया संपाब्ित करती है, को ब्नयंब्ित करता है। ) 18
  19. लाभ मुद्रोओंका तवशेष उद्देश आध्यातत्समक उन्द्नति है . शारीररक ्वा्थ्य की दृतष्ट से अंिस्त्रातव ग्रंतथया का स्त्राव सही मात्रा में होने से मानतसक और शारीररक लाभ होिा है (See Slide No.20) कुं डतलनी शक्ती के जागरर् के तलए मुद्रा और बंध का अभ्यास बहुि उपयोगी है नाडी िंत्र का तवकास होिा है िक्रो का जागरर् होिा है मुद्रा के अभ्यास से योगी का व्यतक्तत्सव अत्सयंि आकषवक हो जािा है। उसे ब्रह्मियव में दृढ़िा प्राप् होिी है। संकल्प बढ़िा है। िेहरे पर अद्भुि कांति प्राप् होिी है, संिुतलि मन और जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलिा प्राप् होिी है। 19
  20. अंि: स्त्रातव ग्रंतथया १. शीषव्थ ग्रंतथ २. कं ठ्थ ग्रंतथ (थाईरोड़ ग्रंतथ ) ३. उर्थ ग्रंतथ ४. उध्वव तपंड ५. ्वादुतपंड ६. रज: तपंड ७. शुक्र ग्रंतथ ८. पेराथाईरोड़ ग्रंतथ १ २ ३ ४ ६ ७ ५ ८
  21. “महामुद्रा महाबंधो महावेधश्च खेिरी । उड्डीयानं मूलबंध्ििो जालंधरातभध: ॥ करर्ी तवपरीिाख्या, वज्रोली शक्तीिालनम् । इदं तह मुद्रा-दशकं जरामरर्नाशनम् ॥” ह.प्र. ३.६-३.७
  22. सावधानी गुरु के मागथिशथन से ब्ह मुद्रा और बंध का अभ्यास ब्कया जाता है
  23. सारांश •मुद्रा के प्रकार तकिने है ? अंि:स्त्रातवय ग्रतन्द्थयों का तनयमन होिा है. मुद्रा का अभ्यास करने से मुख्यिह क्या लाभ होिा है? योगमुद्रा , तवपरीि करर्ी मुद्रा, िडागी मुद्रा, ब्रम्हा मुद्रा, वज्रॊर्ी मुद्रा कोई भी िीन काया मुद्राओ के नाम बिाए ? म्िकीय मुद्रा, ह्ि मुद्रा , काया मुद्रा , अधो मुद्रा कौनसे िार प्रकार है ? ४
  24. सारांश •बंध के प्रकार तकिने है ? िक्रो और कुं डतलनी शतक्त का जागरर् होिा है. बंध का अभ्यास करने से मुख्यिह क्या लाभ होिा है? बंध का अभ्यास ________मे ________ के साथ तकया जािा है. कौनसे िार प्रकार है ? मूल बंध, उड्डीयान बंध, जालंधर बंध, तजव्हा बंध ४ प्रार्ायाम कुं भक
  25. 27
Publicidad