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Sithilikaran (Relaxation)

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  1. 1. शिशिलीकरण RELAXATION घंटाली शित्र िंडल घाटकोपर योग साधना के न्द्र
  2. 2. शिशिलीकरण शिशिलीकरण - जरूररयात (गरज) – उपयुक्तता RELAXATION – NECESSITY – UTILITY युक्ताहार शिहारस्य, युक्तचेष्टस्य कर्मसु । युक्त स्िप्नािबोधस्य योगो भिशत दुुःख: ।। (भगिद गीता ६.१७)
  3. 3. शिशिलीकरण “YOU MUST RELAX” नार्के पुस्तक के लेखक डॉ. एडर्ंड जेकब्सन ने अपने पुस्तक र्ेतनाि सेहोनेिाले रोग, आज की पररशस्िशत, दिाइयों की र्यामदा और उसके दुष्पररणार् अयोग्य शनद्रा या अशनद्रा यह सभी बातों की शिस्तृत चचाम करके "िास्त्रीय शिशिलीकरण" (Scientific Relaxation) ,यह क्या है और कै से करना चाशहए यह बहुत ही सुन्दर रूपसे सर्जाया है| औषध रशहत आनंदर्य जीिन जीना हैतो हर्े शिशिल होना ही चाशहए यह भार पूिमक बताया है| शिशिशलकरण के शलए श्रर्हारक और शचत्त शिश्रांशत कारक ििासन करना चाशहए ऐसा हर्ारे ऋशषर्ुशनयों नेभी बताया है|
  4. 4. ििासन िि के जैसी िरीर की शस्िशत. ििासन को ही र्ृतासन, प्रेतासन, शचरशनद्रासन, चेतन शनद्रा, योगशनद्रा, शिश्रार्ासन, आरार्ासन, आनंदासन जैसे नार् शदए गए है. ििासन के शलए योग र्ेएक श्लोक है. उत्तानं िििद्भूर्ौ ियनं तच्छिासनर्् । ििासनं श्राशन्तहरं शचत्त शिश्राशन्त कारकर्् ।। (हठ प्र. १.३२)
  5. 5. योगशनद्रा  ििासन र्ेआंतर र्नको सूचना देकर प्रशिशित करना और शस्िर रहने के शलए तैयार करना यह शिया को योगशनद्रा कहते है|  िुरुआत र्ेयोगशनद्रा अपने आप करना कशठन होता है. ऐसेर्े योग शििेषज्ञ नेदी हुई सूचना के अनुसार र्नको योग्य शदिा र्े और योग्य शिषय की ओर लेजाना-उसे “शनदेशित शिशिलीकरण ” (Guided Relaxation) कहते है|  योगशनद्रा र्ेशििक और साधक के बीच र्ेिारीररक स्तर पर नजदीकी होनी जरुरी नही है. लेशकन िब्दों और ध्िनी के द्वारा आशमर्क सर्ीपता शनर्ामण होनी जरुरी है|  सूचनाकी गशत धीर्ी और भाििाही होनी चाशहए शजससे साधक का र्न यहााँिहााँ भटकने के बदले सूचना की ओर ही आकशषमत हो |
  6. 6. योगशनद्रा इस प्रकार ििासन र्े योगशनद्रा करने की पद्धशत शबहार योग शिद्यालय के स्िापक परर्हंस स्िार्ी समयानंद सरस्िती की िोध है| उन्होने योगशनद्रा के अनेक प्रयोग शकये है | उनके आश्रर् र्ें चार साल के बालक के ऊपर उन्होंनेलगातार पांच िषम योगशनद्रा के प्रयोग शकये | आंतरर्न बाह्यर्न से हजारों गुना सार्र्थयमिाली है, यह बात को घ्यान र्े रखते हुए योगशनद्रा र्े शिशिष्ट पद्धशत का उपयोग करके उस बालक को िेद, उपशनषद, पुराण, योग शिद्या, िरीरिास्त्र, र्ानसिास्त्र जैसे पुरातन िास्त्रों की शिद्या शसखाई और ११ साल की उम्र र्े शिदेि र्े योग प्रचार के शलए भेजा | िो बालक और कोई नही-लेशकन - र्ुंगेर शबहार योग शिद्यालय के आज के प्रर्ुख र्ठाशधपशत परर्हंस स्िार्ी शनरंजनानंद सरस्िती है|
  7. 7. शिशिलीकरण ििासनका िर् ( कै से करते है ) (Stages) १) िारीररक शिशिलीकरण २) र्ानशसक शिशिलीकरण ३) संकल्प ४) भािशनक शिशिलीकरण ५) पुनुः संकल्प
  8. 8. शिशिलीकरण सूचना: १) ििासन के दौरान िारीररक हलन चलन शबलकु ल करना नही है. २) ऑखंेंभी कोर्लता से सहज रूपसे बंध रखनी है. ३) िीशिलता और शिश्रांशत लेनी है, लेशकन सो जाना नहीं है. ४) योग शििक द्वारा दी जानेिाली सूचना को ध्यानपूिमक सुनना है और िैसे र्न की सहाय से प्रिास करना है. ५) सूचना देनेिाले के आिाज के र्ाधुयम की सतत सजगता रखनी है और उससे संपकम रशहत होना नहीं है.
  9. 9. शिशिलीकरण र्हमि बहुत कर् लोगों को ििासन का र्हमि सर्जता है| आधुशनक र्ानि, तान तनाि सेर्ुक्त होने के शलए रेशडयो, टी.िी., पीड़ा िार्क औषध र्द्याकम ये सारे साधनों का उपयोग करता है. ये सारे साधनों से हर्े तमपुरती शिश्रांशत शर्लती है. लेशकन उसका दूरगार्ी पररणार् हाशनकारक है. िो तान तनाि का शनर्मूलन करनेकेबदलेहर्ेिा केशलएआंतर र्न र्ेंद्रढ़ हो जाते है| आजके यांशिक युग र्े र्ानि को यकीनन सही र्ायने र्े शिश्रांशत लेनेका साधन प्राप्त हुआ नही है| यन्ि िशक्त सेसार्र्थयम बढ़ा है लेशकन र्नुःिशक्त कर्जोर हो रही है| हर्ारे जीिन र्ेंसेसुख-िांशत संतोष अद्रश्य हो गए है | जीिन र्ेंहर्ने बहुत प्रगशत की है. हर् modern होते जा रहे है, advanced हो रहे है. जीिन र्ेंपररितमन आ रहा है. लेशकन हर्ारे संस्कार जा रहे है | ऐसे र्े हर्े संतुलन बनाये रखना जरुरी है| योगिास्त्र की व्याख्या अनुसार िारीररक र्ानशसक और भािशनक ये तीनों स्तर पर तनाि का संपूणम शनर्मूलन यानी सही शिश्रांशत और उसकेशलए सरल और उत्तर् उपाय हैशिशिलीकरण अिामत् ििासन |
  10. 10. शिशिलीकरण के लाभ िारीररक लाभ १)ििासन र्ेर्ानिीय िरीर रचना और व्यशक्तर्मि र्ेंहर्ेिा के शलए शिशिलता आती है | िरीर के सभी स्नायुओं को शिश्रांशत शर्लती है| िारीररक स्िास्र्थय सुधरता है. िरीर को नि जीिन शर्लता है. २)जो लोग कर्जोर है,शजसे िारीररक और र्ानशसक िकान ज्यादा होती हैउन्हेंये आसन नयी िशक्त और उमसाह प्रदान करता है.
  11. 11. शिशिलीकरण के लाभ र्ानशसक लाभ १) र्ानशसक दुबमलता, लघुता ग्रंशि, गुरुता ग्रंशि, पूिमग्रह, अज्ञात भय, (phobia) दूर करने के शलए और आमर् शिश्वास प्राप्त करने के शलए र्ानसिास्त्र की द्रशष्टसे यह एक शिकशसत साधन है| २) र्न र्ेंद्रढ़ तान और तनाि के ऊपर ििासन प्रभाििाली उपाय है.| हररोज ििासन करने सेतनाि रशहत जीिन जी सकते है| ३) र्न की सुप्त िशक्त ििासन करने सेजागृत होती है.| इच्छा िशक्त, आज्ञा िशक्त, कल्पना िशक्त , संकल्प िशक्त, प्रज्ञान िशक्त, शिज्ञान िशक्त, स्र्ृशत िशक्त, धृशत िशक्त (धैयम), बोधन िशक्त, ऐसी र्नकी सोलह िशक्तयों के बारे र्ेंऐतरेय उपशनषद र्ेंबताया गया है| िशिस्ठ कहेते है = र्नोयमकरोशत तमकृ तं भिशत | यन्नकरोशत तन्नकृ तं भिशत अतुः र्न एिशह कताम न देह: || ४) अपने आप ध्यान लगाने की यह एक सरल प्रशिया है | ििासन र्े आसन और ध्यान दोनों का सर्न्िय होता है| शसर्म िरीर को ही िांशत नही शर्लती लेशकन र्न को भी िांशत शर्लती है |
  12. 12. शिशिलीकरण लाभ र्नोदैशहक आशधव्याशध १) ह्रदय शिकार, हायपरटेंिन, एशसशडटी, शसरददम, डायशबटीस जैसे र्नोकाशयक रोग शजसका र्ूल कारण र्न है उसके ऊपर ििासन प्रशतबंधक के रूप र्ेंउपयोगी है | ििासन र्ेंह्रदय रोग का पुनिमसन अदभुत रूपसे मिररत होता है| २) अनेक कारणो की िजह सेकई लोगोंको आरार्दायक नींद नही आती है | अशनद्रा का दोष होता है. उन्हे ििासनर्े शिश्रांती शर्लती है|
  13. 13. बौशधक लाभ ििासन र्ें योगशनद्रा होने से स्र्रण िशक्त, सर्ज ज्ञान और र्न की ग्रहण करने की िर्ता बढ़ती है| चाहे शकतने भी कशठन शिषय हो, लेशकन योगशनद्रा र्ें सूचना देकर शसखाते है तो र्न तुरंत ही ग्रहण कर लेता है | आज के जर्ाने र्ें योगशनद्रा एक अशतिय प्रभाििाली शििण पद्धशत है | योगशनद्रा र्ें र्न िांत और शस्िर होकर ज्ञान प्राप्त करता है| इस तरह शिशिलीकरण एक संपूणम िैज्ञाशनक और शसद्ध साधना है और आजके युग्र्े जरुरी है |
  14. 14. शिशिलीकरण सारांि  समयकर्ामनंद हर्ारे गुरूजी कहेते है “One who can relax the mind, can repair, recover, recharge and revitalize the target organs”  शिशिलीकरण की इतनी ताकत हैयह ध्यान र्ेरखते हुए िुरुआत र्ेयोग्य र्ागमदिमन के साि और शर्र अपने आप ििासन (योगशनद्रा) करना चाशहए | अभ्यास र्ें शनयशर्तता और आमर्ीयता र्हमिकी है|
  15. 15. शिशिलीकरण सर्ाधानाय सौख्याय शनरोगमिाय जीिने । योगर्ेिाऽभ्यसेत् प्राज्ञ: यिािशक्त शनरन्तरर्् ।। हरी ॐ तमसत्

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