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Suddhi kriya

  1. 1. शुद्धिक्रिया आजकी आवश्यकता  योग मे शरीर शुद्धि, नाडि शुद्धि, और धित्त शुद्धि का महत्व है.  ववषारी द्रव्य को बाहर ननकालनेकी क्रिया हमारे शररर मे तीन रुपसे होती है. १) उच्छवास के द्वारा - वायु रुप मे. २) मुत्र और पसीने के द्वारा - प्रवाही रुप मे. ३) मल के द्वारा - घन स्वरुप मे. “ सवे रोगा: प्रजायन्ते जायन्ते मल संियात्।"
  2. 2. शुद्धिक्रिया के प्रकार िौनतबबस्स्त स्तथा नेनत लौललकी त्राटकं तथा । कपालभानत श्िैतानन षट्कमाबणि समािरेत ् ।। १.१२ ।। (घेरंि संहहता)  घौनत  बस्स्त  नेनत  लौललकी  त्राट्क  कपालभानत  शुद्धिक्रिया करने से हमे क्या लाभ होते है ? “षटकमब – ननगबत स्थौलय कफदोष मलाहदक: । प्रािायाम तत: कु याबद्नापासेन लसद्द्यनत ॥" ३.३७ ।। (ह. प्र.)
  3. 3. िौतत अर्थ:  िौनत यानन िोना स्वच्छ करना  िौनत को पिन और उत्सजबन क्रिया की संजीवनी के रुपमे माना जाता है ।  िौनतक्रिया से मुंहसे लेकर गुदाद्वार तक संपूिब अन्नमागब और मलमागब को स्वच्छ क्रकया जाता है। िौतत के प्रकार  वमन िौतत  दंि िौनत,  व्याघ्री क्रिया  गजकरिी  वस्त्र िौतत  वाररसार िौतत (शंख प्रक्षालन)
  4. 4. िौतत के लाभ १) अनतररक्त वपत्त बाहर ननकल जाने से लसरददब होना, खट्टी िकारे आना, छाती और पेट मे जलन होना, जैसे एसीिीटी के ववकार दूर होते है. २) अनतररक्त कफ बाहर नीकल जानेसे शदी और खांसी मे राहत होती है. अस्थमा के ववकार मे उपिार के तौर पर की जाती है. ३) जठरास्नन प्रदीप्त होती है । पािक रस का ननमाबि अच्छी तरह से होता है. ४) गैस और कब्ज़ की तकलीफ कम होती है. ५) िमिी के ववकार (SKIN DISEASE), मुहांसे (PIMPLES), फोिे होना उसमे भी राहत होती है. ६) अनैस्च्छक स्नायुओंके उपर हमारा ननयंत्रि आता है. ७) स्थुलता ननयंत्रि के ललए उपयोगी है.
  5. 5. सुचना (िौतत) १) ह्रदय ववकार, उच्ि रक्तदाब, कमजोरी, क्षय की बबमारी और ऎसी कोई स्फ़ोटक बबमारर मे िौनत करनी नही है. २) कभी कभी क्रिया करते समय लसर भारी होना, पसीना होना, िक्कर आना ऎसा कोई भी लक्षि हदखाई दे तो क्रिया बंद करके ववश्ांनत लेनी है. ३) िौनत क्रिया करने के बाद हलका सुपाच्य आहार लेना है.
  6. 6. िौतत िौनत के अन्य प्रकार जो हमे रोज करनी है.  कपाल रंद्र िौनत  किब रंद्र िौनत  स्जव्हा मूल िौनत - स्जव्हा दोहन.  दंतमूल िौनत  तालु रंद्र िौनत शुद्धिक्रिया मे शरीर के स्जस भाग की शुद्धिक्रिया करते है उस भाग की नािीयोंकी शुद्धि अपनेआप हो जाती है.
  7. 7. बस्स्त्त  बस्स्त में बिी आंत (Large Intestine) के अंत के भाग की शुद्धि की जाती है. बस्स्त्त के प्रकार  जल बस्स्त  स्थल बस्स्त  गिेशक्रिया अथवा मूलशोिन क्रिया.
  8. 8. नेतत संपूिब स्वसन मागब को शुद्ि करना यानन नेनत. नेतत के प्रकार  जल नेनत  सूत्र नेनत सूचना: १) शदी हुई हो, नाक बंद हो तब हमे जलनेनत करनी नही है. २) जलनेनत शुरु करने से पहेले स्वासोच््वास की क्रिया मुंहसे िालु करनी है. ३) एक नाकसे जलनेनत करने के बाद तुरंत ही हमे स्वसन मागब शुद्धि करनी है. उसके बाद ही दूसरे नाक से जलनेनत करनी है. ४) नाकमे सूजन हो, मासांकु र बढ रहे हो, नाक के पिदे मे विता हो, गलेमे सूजन हो, ददब हो, टोस्न्सल की तकलीफ हो या क्रकसी भी प्रकार का (infection) हो तब हमे रबर नेनत करनी नही है.
  9. 9. नेतत के लाभ १) संपूिब श्वसन मागब और सायनस के पोलाि स्वच्छ होते है तो स्वसन क्षमता बठती है. २) बार बार होने वाली शदी, खांसी, एलजी और दम अस्थमा के उपर प्रभावशाली है. ३) नाक के अंदर की त्विा की प्रतीकार शस्क्त बठती है. ४) गंि ग्रहि करने की क्षमता बठती है. ५) आंखो के छोटे मोटे ववकार दूर करने के ललए और आंखो की रोशनी बठाने के ललए उपयोगी. ६) आंतररक सजगता का ववस्तार होता है. जलनेनत को हदव्य द्रष्टी प्रदानयनी कहा गया है. ७) लसरददब मे रबरनेनत करने से राहत होती है.
  10. 10. लौललकी (नौलल)  पेट के दोनो स्नायुओं को स्स्थनतस्थापक और शस्क्तशाली बनाने की क्रिया यानी नौलल. नौलल के प्रकार  दक्षक्षि नौलल  वाम नौलल  मध्य नौलल  नौलल की क्रिया करने से पहेले उड्िीयान और अस्ननसार का अभ्यास करना आवश्यक है. सूचना: उच्ि रक्त दाब हो, ह्रदय ववकार हो, छाती कमजोर हो, LUNGS कमजोर हो, आंत कमजोर हो, पेट मे क्रकसी भी प्रकार की तकलीफ़ हो, पेट के ओपरेशन हुए हो तो छे महहने तक, स्त्रीयो को मासीकिमब के दौरान, गभाबवस्था के दौरान और प्रसुनत के बाद छे महहने तक करना नहह है.
  11. 11. नौलल के लाभ १) पेट की अनेक तकलीफ़ो के उपर प्रनतबंिक के रुपमे उपयोगी है. २) स्त्रीओ के मालसकिमब के दोष और पुरुषों के ववयबदोष, शीघ्र ववयबपतन कायाबत्मक नपुंसकता जैसे दोष दूर होते है. ३) पेट की िरबी कम होती है. ४) अस्थमा की व्याधि मे उपिार के तौर पर की जाती है.
  12. 12. राटक (नेर शुद्धि) अटात् रायते ईतत राटकं ।  त्राटक क्रकसे कहते है ? तनरीक्षेस्ननश्चलद्रुशा सूक्ष्मलक्ष्यं समाहित: । अश्रुसंपात पयथनतम् आचाये राटकं स्त्रुतम् ॥ ि.प्र. २.३२ राटक के प्रकार  सुदूर त्राटक  समीप त्राटक राटक के उप प्रकार  बाह्य त्राटक  आंतर त्राटक
  13. 13. राटक (नेर शुद्धि) सूचना: १) क्षमता से बाहर जाके आंखो को खींिके त्राटक करना नहह है. २) लसरददब हो आखो के ववकार हो तभ भी करना नहह है. ३) िश्मा पहेन ते है तो िश्मा ननकाल के त्राटक करना, लेक्रकन अननवायब है तो पहेन के करना लाभ: १)आंखो के ववकार दूर होते है.। नेत्र शुद्धि होती है । दूरकी द्रष्टी तेज होती है. २) मनकी एकाग्रता बढती है । मनकी ग्रहि करने की क्षमता बढ्ती है. याद्शस्क्त बढती है । ववध्याथीयो के ललए उपयोगी है । ३) Anxiety, Depression, Insomania, जैसे ववकार दूर करने के ललए उपयोगी है। ४) अंतरंग सािना, प्रत्याहार, िारिा और ध्यान के ललए उपयोगी है ।
  14. 14. कपालभातत  कपाल यानन कपाल, भानत यानन िमकना. जो क्रिया कपाल को िमकाती है, तेजस्वी बनाती है वो क्रिया है कपालभानत. कपालभातत के प्रकार  वातिम  शीतिम  व्युतिम सूचना: १) सदी हुई हो, नाक बंद हो तब कपालभानत करनी नहह है। २) नाक मे हड्िी बढती हो, नाक के पिदे मे विता हो, नाकमे मासांकु र बठ रहे हो तो योग लशक्षक की सलाह अनुसार करना।
  15. 15. कपालभातत लाभ: १) संपूिब स्वसन मागब और सायनस के पोलाि स्वच्छ होते है तो स्वसन क्षमता बठती है. २) बार बार होने वाली सदी, खांसी, एलजी और दम अस्थमा के उपर प्रभावशाली है. ३) गैस और कब्ज़ की तकलीफ कम होती है. ४) पेट की िरबी कम होती है. ५) वकता, वकील, गायक, अलभनेता को स्वरयंत्र की ताि से ननमाबि होनेवाला त्रास दूर होता है. ६) रमतवीर, दौि वीर, तरवैया जैसे णखलािीयों के ललए और दम अस्थमाकी व्याधि मे उपयोगी है. ७) प्रािायाम करने से पहेले कपालभानत करने से प्रािायाम सहज साध्य होता है. ८) िहेरे और कपाल का तेज बठाता है.
  16. 16. सारांश मेद: श्लेष्माधिक: पूवथ षटकमाथणि समाचरेत् । अनयस्त्तु नाचरेतातन दोषािां समभावत् : ॥ ि.प्र. २.२१ १) कपालभानत और नौलल क्रिया को छोड्कर बाकीकी शुद्धिक्रिया आवश्यकता अनुसार करनी िाहहये. । २) उपिार के तौर पर अगर शुद्धिक्रिया करते है तो ननष्िात की सलाह के अनुसार ही करनी िाहहये. ३) “मुझसे होगा नहह " ऐसे नकारात्मक भाव रखना नहह है. ४) शुद्धिक्रिया के सािनों को (Sterilize) करके जंतुरहीत करना है. ५) हाथ के नाखुनो को काटकर मुलायम करना है. ६) क्रकसी भी प्रकार का स्पिाबत्मक भाव न रखते हुए सहजता से क्रिया करनी है. इस तरह से स्वस्थ और ननरोगी स्जवन जीने के ललए हमे ननयलमत रुपसे शुद्धिक्रिया करनी िाहहए ।
  17. 17. सवे भवनतु सुखीना: । सवे सनतु तनरामया: । सवे भद्राणि पश्यनतु । मा कस्श्चत ् दु:ख भाग भवेत ् ॥

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