योग शब्द का अर्थ
योग की उत्पत्ति संस्कृ त शब्द ‘युज’ से हुई है।
उसका अर्थ जोड़ना, संयोग, इकट्ठा करना होता है ।
योग की पररभाषा
जीवात्म परमात्म संयोगो योग ।
आत्मा का परमात्मा से जो संयोग होता है उसे
योग कहते है |
योग की पररभाषा
‘योगेनात्मदशथनम्’ ।
सतत आत्मा का दशथन करने को ही योग
कहते है|
गीता में योग की पररभाषा
समत्वं योग उच्यते । (2-48)
सम भाव मेंजब बुत्ति ठहरती है उसे योग
कहते है|
गीता में योग की पररभाषा
योग कमथसु कौशलम् । (2-50)
कमथ करने की कु शलता को योग कहते है |
गीता में योग की पररभाषा
योगो भवत्तत दु:खहा । (6-17)
दु ख के नाश को योग कहते है |
पातंजल योग सूत्र
‘योगत्तििवृत्ति त्तनरोध:’ । (1-2)
त्तिि में जब वत्तृिओ ंका त्तनमाथण होना बंद होता है
उसे योग कहते है |
योग वाससष्ठ
मन: प्रशमन उपाय: इत्तत योग: ।
मन को शांत करने का उपाय यत्तद हमें आ जाये तो
उसे योग कहते है |
योग वाससष्ठ
संसारोिरणे युत्त तयोगशब्देन कययते ।
संसार में रहते भी उसे पार करने अगर त्तशख लेते है
तो उसे योग कहते है |
(कठोपसिषद )
तां योगत्तमती मन्यन्ते त्तस्र्रत्तमत्तन्िय धारणाम ।
ईत्तन्ियााँ, मन और बुत्ति की त्तस्र्र अवस्र्ा को ही योग
कहते है |
(व्यास भाष्य )
योग: समात्तध ।
समात्तध अवस्र्ा प्राप्त करने को योग कहते है |
(व्यास भाष्य )
योगेन योग: ज्ञातव्य: ।
योग को योग सेही जाना जा सकता है|
साधन भी योग हैसाध्य भी योग है|
स्वामी सत्यािंद सरस्वती
Yoga is usually defined as union, union
between the limited self (jiva) and cosmic self
(Atman) actually speaking, we are not
separated from cosmic consciousness. We
actually are cosmic consciousness. So we can
say that yoga is not really union it is in fact
realization of the union already existing.