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शायद इसी को

Director at IT Can Do It Pvt. Ltd en New Media Information Technologies
27 de Mar de 2016
शायद इसी को
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शायद इसी को

  1. शायद इसी को --- ! रात अधीर हो रही थी, अंधेरे का आवरण हटने लगा था, आसमान में अरुणणमा आच्छाददत होने लगी थी | शायद इसे ही कवव–कु ल उषा का आगमन कहता है | चित्रकार इसे अंककत करते हैं, सादहत्यकार सराहते हैं, कहते हैं ददवा–शशशु का जन्म हुआ है | समझे बिना ही सुननेवाले स्व सुध भुला पुलककत हो उठते हैं | मैंने भी आसमान को देखा, मुझे तो और ही कु छ वहााँ नज़र आया | घोर संघषष और क्रू रतांड़व दृष्टटगोिर हुआ | सूरज ददष्ववजय पर ननकला हुआ था, उसके रष्मम – सैननक तारों पर तलवार िला रहे थे | ष्जन िेिारों ने रात भर प्रकाश प्रदान ककया वे समर में अमर हो रहे थे | लहू का लाल रंग आकाश से धरा की ओर टपकने लगा | तरुवर उन िूाँदों को ले अपने सुकोमल सुमनों की पंखुड़ड़यों पर रंग िढ़ाने लगे | पास के पत्तों ने आाँसू छलकाए | इतने में सूरज ववजय लालसा शलए आकाश में और भी िढ़ आया | वनस्पनत ने झट से आाँसू पोंछ हाँसी बिखेर दी | अि सिको उसी की दया पर िाकी जीवन जीना है | सूखा पत्ता हवा के संग उछला, अपनी मौजूदगी िताने | आज की कोपलों ने कल के िूढ़े पत्तों पर व्यंवय ककया | शायद इसी को संसार कहते हैं ! आकाश में अि कोई िंिलता नहीं रही | पर कु छ देर िाद वहााँ एक कु रुक्षेत्र पुनख खड़ा होगा | सूरज को मारकर तारे ववजयोत्सव मनाएाँगे | कभी िााँद भी उनके संग हो लेगा | इनके स्वागत में पाररजात रक्त वणष – ड़ंठल पर मवेत पंखुड़ियााँ णखलाएगा | किर से एक िार रात का राज्य होगा | शायद इसी को संसार कहते हैं ! औरों का मामला तो लोगों के शलए अनत स्वाददटट दावत है, रोिक भोज है | वे िोले, “ददन के ताप से िहुत िेिैन हो गए | सूरज िूिा तो सुख – सा शमलता है |” ककसी के िूिने में ही उन्हें सुख शमलता है | ननशा की समाचध पर खड़े उषा की राह देखेंगे उसके िाद | नाटक की कला तो उनकी नसों में समाई हुई है | शायद इसी को संसार कहते हैं ! मैंने सुना है कक लोगों में अन्तखकरण नाम की कोई िीज़ होती है | कौन जाने है भी कक नहीं -- ? पर ष्जह्वा तो ज़रूर है | दान्तों के िीि रहकर भी जयगान करती है, जमन मनाती है | उसी के िल िूते अपना जीवन जीते हैं सि, वही लोगों को िनाती है, दटकाए रखती है, शमटाती है | शायद इसी को संसार कहते हैं ! अरे .. अरे ! आप कहााँ िल ददए ? वविल को ठुकराकर सिल का साथ देने ? हारे का हाथ छोड़ जीते का पााँव छू ने ... ? अच्छा ! तो यही संसार है! नहीं तो िोशलए सच्िा संसार है कहााँ ? ज़रा पता तो दीष्जए मुझे पहुाँिना है वहााँ !
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