Jageshwar Temples, also referred to as Jageswar Temples or Jageshwar valley temples, are a group of over 100 Hindu temples dated between 7th and 12th century near Almora, in the Himalayan Indian state of Uttarakhand.
Jageshwar Dham Yatra 2019
उत्तराखंड राज्य देवभूमि के नाि से मवख्यात है यह तो हि सभी जानते ही है। चारो धाि
उत्तराखंड राज्य िें है साथ ही अन्य तीथथ स्थल भी यहां स्स्थत है। आज हि एक ऐसे तीथथ स्थल के
बारे िें बताने जा रहे है जो ज्योमतमलिंग होने के साथ साथ प्राचीन संदरता का धनी भी है। आज
हि मजसके बारे िें वर्थन करने जा रहे है उस पमवत्र स्थल का नाि है श्री जागेश्वर धाि। उत्तराखंड
राज्य के अल्मोड़ा मजले िें स्स्थत है जागेश्वर धाि, अल्मोड़ा से 35 km दू र मपथौरागढ़ िागथ पर
जागेश्वर धाि पड़ता है। जागेश्वर धाि जाने के मलए सीधे कोई हवाई िागथ नहींहै न ही कोई
रेलिागथ है। परन्त यात्री देहरादू न एयरपोर्थ अथवा पंतनगर एयरपोर्थ तक आसानी से पहुँच सकते
है। रेलिागथ भी काठगोदाि स्टेशन तक ही है आगे का सफर आपको बस या प्राइवेर् र्ैक्सी से
करना पड़ेगा।
हिारी जागेश्वर धाि की यात्रा आरम्भ हई देहरादू न से, मशवरामत्र का पावन अवसर था। िै
अक्सर अल्मोड़ा ,नैनीताल, हल्द्वानी की यात्रा करता रहता हुँ। मपछले 4 साल िें लगभग िै हर
िहीने वहां की यात्रा करता रहा हुँ ,िैंने बहत बार जागेश्वर धाि का नाि सना,िैंने इंर्रनेर् के
िाध्यि से वहां की जानकारी ली और मफर िन िें तीवथ इच्छा हई वहां जाने की, िेरे िन की बात
शायद िहादेव तक पहुँच गयी और इस बार मशवरामत्र 4 िाचथ 2019 को जाने का अवसर प्राप्त
हआ। इसके मलए िैंने 10 -15 फरवरी के दौरान ही सारी तयाररयाुँ करनी शरू कर दी थी।
देहरादू न से जागेश्वर तक की यात्रा करने के दो ही रास्ते थे िेरे पास, एक था रेलिागथ से दू सरा था
बस से या मफर अपनी कार से। िै अके ला था इसमलए कार ले जाने की सोच भी नहींपा रहा था
और बस िें आराि से सफर होगा भी नहींये सोच कर िैंने र्रैन से जाने का फै सला मकया और
मर्कर् बक कर दी। देहरादू न से जागेश्वर धाि तक की दरी लगभग 400 KM है। चूुँमक िझे र्रैन से
जाना था तो र्रैन काठगोदाि तक ही जाती है आगे का सफर िझे बस या र्ैक्सी से करना था। िै
अके ला जाने का सोच के पीछे हर् जा रहा था परन्त जाने की इच्छा भी थी क्ोंमक िहादेव का
भक्त हुँ और जाने की र्ाल भी कै से सकता हुँ इसी दौरान िेरे सबसे अच्छे दोस्त की िझे कॉल
आ गयी और िैंने उसे सब जाने का प्लान बता मदया और सयोंग से वो राजी भी हो गया और िेरे
पास देहरादू न चला आया। देहरादू न से काठगोदाि तक का सफर लगभग 330 KM वाया र्रैन है
।रात 2 िाचथ को 10:35 pm पर हिारी र्रैन थी। बाररश का िौसि हो रहा था कभी भी बाररश आ
सकती थी। िैंने OLA र्ैक्सी समवथस को कॉल कर के लगभग 9 PM तक र्ैक्सी बला ली और हि
सीधे स्टेशन पहुँच गए। र्रैन प्लेर्फॉिथ पर खड़ी थी हिने अपने-अपने रेज़वेशन के अनसार
अपनी सीर् पर बैठ गए। िन िें बहत प्रसन्नता थी िहादेव के दशथन करने के मलए वो भी
िहामशवरामत्र के पावन अवसर पर साथ ही िेरा मप्रय दोस्त िेरे साथ इस यात्रा पर जा रहा था।
मदन िें बहत सफर करना है यह सोचकर हि दोनों जल्दी सो गये।
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Almora to Jageshwar[/caption]
सबह लगभग 6:45 AM पर हि हल्द्वानी स्टेशन पर पहुँच गए। वहां से बाहर आकर बस स्टैंड के
मनकर् िेरा िनपसन्द एक ब्रेकफास्ट रेस्टॉरेंर् है। िैंने अपने दोस्त शेखर से कहा के नाश्ता
snacks रेस्टॉरेंर् पर करेंगे उसने कहा ठीक है। हि स्टेशन से आकर िेरे एक दोस्त के घर चले
गए जोमक हल्द्वानी िें ही रहता है। उससे मिलने के बाद हि नहा धो कर वापस बस स्टैंड आ गए
और नाश्ता मकया। नाश्ता करने के बाद हिने आगे की यात्रा के बारे िें सोचा और एक र्ैक्सी
मकराये पर कर ली। हल्द्वानी से आप सीधे अल्मोड़ा जा सकते है वो 300-350 रुपये एक आदिी
का लेते है। हल्द्वानी बस स्टैंड पर आपको नैनीताल अल्मोड़ा की र्ैक्सी आराि से मिल जाती है।
साथ ही आप चाहे तो बस से भी यात्रा कर सकते है परन्त बस का सिय मनधाथररत होता है तो हो
सकता है आपको प्रतीक्षा करनी पड़े। हिे जागेश्वर जल्दी जाना था क्ोंमक रात भर र्रैन का सफर
मकया तो थक चके थे हि दोनों इसमलए हिने र्ैक्सी से ही जाने का मनर्थय मलया और हि
अल्मोड़ा तक जाने वाली र्ैक्सी िें बैठ गए।
हिारा सफर शरू हो चका था, हल्द्वानी से हि काठगोदाि आये मफर वहां से रानीबाग़ होते हए
भीिताल की और िड़ गए। ऊुँ चे और हरे भरे पहाड़ रानीबाग़ से ही शरू हो चके थे। हलकी
हलकी बाररश हो रही थी। कछ सिय बाद हि भीिताल पहुँच गए थे। हल्द्वानी से अल्मोड़ा का
सफर 2:30-3 घंर्े का था। हल्द्वानी से अल्मोड़ा के बीच की दरी लगभग 96-100 km है। भीिताल
िें हिने झील को देखा और आगे बढ़ गए, कछ देर चलने के बाद हि भवाली नाि के एक छोर्े
शहर िें पहुँच गए थे यहां से एक रास्ता नैनीताल और दू सरा रास्ता अल्मोड़ा जाता है। हि दायीं
और जाने वाले जोमक अल्मोड़ा जाता है उस रस्ते पर चल मदए। पहाड़ धीरे धीर ऊुँ चे होते जा रहे
थे और मबलकल हरे भरे थे बाररश का िौसि था तो सफ़े द रंग के बदल हरे रंग के पहाड़ो पर
सफ़े द चादर की तरह मलपर्े थे। कार िें हिे ठण्ड लग रही थी क्ोंमक डर ाइवर की साइड का
थोड़ा सा सीसा खला हआ था। तब हिने अपने बैग से कम्बल मनकाले और ओढ़ कर बैठ
गए। उस सिय वहां का तापिान 8 मडग्री था। कछ दू र चलने के बाद कैं ची धाि जो की एक
धामिथक स्थल है हि वहां पहुँचे पर सिय के आभाव के कारर् हि दशथन नहींकर सके और
बाहार से ही हाथ जोड़कर आगे बढ़ गए। अल्मोड़ा िै दो साल के बाद जा रहा था तो परानी यादे
ताज़ा होती जा रही थी। िन िें उत्सकता थी की जल्दी से िें जागेश्वर धाि के दशथन कर सकू जो
िैंने पढ़ा या सना है क्ा सच िें वहां ऐसा ही है। चलते रहने के बाद हि आमिरकार अल्मोड़ा िें
प्रवेश कर गए। अल्मोड़ा को देखकर आुँखों िें अलग ही चिक सी आ गयी थी िेरी ,इतना सन्दर
शहर,इतना शांत पूरा शहर बस पहाड़ पर है। दू र से देखकर लगता रंग मबरंगे छोर्े छोर्े
प्लास्स्टक के मडब्बे िानो एक र्ीले पर रखे हो। वहां की ठं डी हवा अपने आप िें बहत कछ कह
रही थी। खैर हि व्हा ज्यादा रुके नहीं हिने पास िें ही कोई सलभ शौचालय देखना शरू मकया
और हिे थोड़े प्रयास के बाद मिल भी गया। उसके बाद हिने जागेश्वर जाने के मलए पूछा के आगे
जाने के मलए क्ा साधन मिल सकता है। पास की ही मिठाई की दकान पर हिने पता मकया
उन्ोंने हिे बताया के वहां जाने के मलए आपको र्ैक्सी ही मिलेगी,आप चाहे तो पस्िक जो र्ैक्सी
है उसिे जा सकते है या मफर पसथनल र्ैक्सी भी कर के जा सकते है। जो वहां जाने के मलए र्ैक्सी
रेगलर जाती है उसके आने िें अभी 1 घंर्ा बाकी था और हि थक चके थे तो इन्तजार करने की
स्स्थमत िें हि नहींथे तो हिने पास के ही र्ैक्सी स्टैंड जाकर बात की और हिे र्ैक्सी मिल गयी।
अल्मोड़ा से जागेश्वर जाने के मलए मकराया 1000-1200 रुपए देना होता है।हि लोग अल्मोड़ा से
जागेश्वर के मलए मनकल गए थे। अल्मोड़ा से जागेश्वर धाि की दरी लगभग 35 km है। वहां जाने
के मलए रास्ता मबलकल साफ़ सथरा है।
धीरे धीरे हि जागेश्वर की और बढ़ रहे थे। क्ा मवहंगि दृश्य थे वहां के शब्ोंिें सायद ही िैं कभी
बता पाऊ पर कोमशश जरूर करूुँ गा। एक तरफ हरे भरे ऊुँ चे पहाड़ एक तरफ बलखाती,
मगरती और पहाड़ो को चीरती हई नदी ,साफ़ सथरी सड़क और सड़क मकनारे ऊुँ चे लम्बे चीड़ के
पेड़। प्रकृ मत ने ऐसा श्रृंगार मकया था उस जगह का,हि लोग उनको देखते ही रहे एक पल के मलए
भी हिने आुँखे बंद नहींकी। बीच बीच िें छोर्े छोर्े गांव हिे मिले वहां के लोगो का रहन सहन
अच्छा लगा िझे ,कोई शोर शराबा नहींबस शांमत थी वहां। 2 घंर्े के सफर के बाद हि जागेश्वर
धाि पहुँच ही गए 2 KM पहले से ही वहा के िंमदरो का झण्ड मदखना शरू हो जाता है। क्ा
सन्दर स्थान था वह चारो और हररयाली ही हररयाली िौसि अब कछ साफ़ हो गया था। चीड़ के
पेड़ो का स्थान अब देवदार के लम्बे और घने वनो ने ले मलया था। बीच िें एक छोर्ी सी नदी थी
और नदी के उस पार िंमदरो का झण्ड। गाडी से उतरने के बाद हि छोर्ा सा पल जोमक नदी के
ऊपर बना था बहत पराना परन्त िजबूत था उसे पार कर के उस िंमदर के झण्ड िें पहंचे। उन
िंमदरो को देखकर हि आश्चयाथचमकत हो गए थे।
चारो और घने वन और वनो के बीच से गजरती साफ़ जल की छोर्ी सी नदी ,उस नदी के पानी
की आवाज दू र तक साफ़ सनाई दे रही थी, वह आवाज कानो िें एक िीठे गीत की तरह लग रही
थी। मकतना शांत िाहौल था वहां दमनया की भीड़ से दू र मबलकल शांत और साफ़।उसके बाद
डर ाइवर ने बताया के यहां 250 से ज्यादा छोर्े और बड़े िंमदर है। जो जागेश्वर िंमदर है वो थोड़ा
आगे है तो हिने बोला ठीक है हि आगे चलते है।
लगभग 1-2 km चलने के बाद हिने जागेश्वर धाि िें प्रवेश मकया। एक छोर्ा सा गांव जोमक
पहाड़ पर बसा था और आगे हिारे िंमदरो का एक बड़ा सा झण्ड था जो हिे दू र से ही मदख जा
रहा था। हिने बहार से िंमदर देखा और र्ैक्सी वाले को पैसे देखर भेज मदया हिने रात वही
रुकना था तो हि रूि देखने के मलए बढे। थकान बहत होरी थी परन्त वहा का नजारा देख कर
सब थकान दू र हो गयी थी।
िंमदर के मबलकल सािने मकराये के मलए एक लड़का आवाज लगा रहा था तो हिने किरे के
मलए हाुँ कर दी। उसने एक रात के मलए 1800 रूपए हिसे िांगे क्ूंमक अगले मदन मशवरामत्र थी
और हि 12:30 PM व्हा पहुँच चके थे हिे पता था के अगर हिने नहींमलया तो शाि तक यहां
कछ नहींमिलेगा। बाद िें हि किरे की और गए और सिान रख कर खाना खाया। वहां
मशवरामत्र और सावन के मदनों िें किरों और खाने का दाि बढ़ जाता है ,नािथल मदनों िें वहां 500
-1000 रूपए िें किरा और 40-50 रूपए िें खाना मिल जाता है। खाना खाने के बाद हिने सोचा
थोड़ा आराि कर लेते है शाि को िंमदर िें दशथन के मलए जायेंगे और आरती देख लेंगे। िेरे दोस्त
ने भी यही बोला और मफर हि सो गए।
हि लोग शाि के पांच बजे उठे और नहाकर हि िंमदर की और बढे। सदी बहत थी उस र्ाइि
वहां का तापिान 8-9 मडग्री थी आसिान िें हल्के बादल छाये हए थे और हल्की धप भी मनकल
रही थी। बाहर आते ही हिे िंमदर की प्राचीन इिारते नजर आने लगी। मफर हि दोनों िंमदर के
प्रांगर् िें प्रवेश कर गए। प्रवेश करते ही वहां बहत सारे िंमदरो के झण्ड हिे मदखाई मदए मजसिे
कछ िंमदर बड़े और बामक सब उनसे छोर्े थे। ठं डे फशथ पर हि पैर नहींरख पा रहे थे, वहां पर
ठण्ड काफी थी। सवथप्रथि हिने ने वहां के िख्य िंमदर श्री ज्योमतमलिंग जागेश्वर िंमदर के दशथन
मकये वहाुँ के पजारी ने हिे बताया के यह ज्योमतमलिंग िहादेव के 12 ज्योमतमलिंगों िें से आठवे
स्थान पर है। िंमदर के बहार 2 िमतथया थी और अंदर जाकर हिने ज्योमतमलिंग के दशथन मकये।
अंदर का नजारा िनिोहक था धप और घी की खशबू बहत ही िनभावक थी। उसके बाद हिने
श्री िृत्ंजय िंमदर के दशथन मकये बाद िें श्री के दारनाथ िंमदर के दशथन कर हि आगे बढे और
पीछे बहती हई नदी को देखते ही वहां की खूबसूरती से हि बहत ही अच्छा िहशस कर रहे थे।
शाि का सिय हो गया था सूरज लगभग मछप चका था और और मफर हि व्हा के छोर्े बड़े
लगभग 100 से ज्यादा िंमदरो के दशथन कर के आरती के मलए िख्य िंमदर की और बढ़ गए। शाि
की आरती से िन को इतनी शांमत मिली और खद को हि बहत भाग्यशाली िहसूस कर रहे थे।
वहाुँ हिने बहत सारी फोर्ो ली और आरती के बाद हि अपने होर्ल की और बढ़ने लगे। शाि के
8 बज चके थे भूख भी लग रही थी। शाि होते होते वहां लोगो की भरी भीड़ लगनी शरू हो गयी
थी। हिने अपने होर्ल के रेस्टोरेंर् िें खाना खाया और र्हलने मनकल गए। थोड़ी दू र चलने के
बाद वहां हिे परास्िक मवभाग का संग्राहलय मदखाई मदया चूुँमक उस मदन रमववार था और रात
हो चकी थी तो हि उसे अंदर से नहीं देख पाए। नदी पार कर के हिे वहां भण्डारे के आयोजन
के मलए कछ र्ेंर् मदखाई मदए और वहां उन लोगो ने कमसथयां मबछाई हई थी और आग जला रखी
थी। िैंने और िेरे दोस्त ने सोचा क्ों न हि वहां जाकर आग सेंके क्ोंमक ठण्ड हिे काफी लग
रही थी। वहां हि गए और बैठ कर आग सेकने लगे और उन लोगो से बाते करने लगे। बातो ही
बातो िें उन्ोंने बह बहत अच्छी जानकर दी। िंमदर का इमतहास हिने उनसे पूछा ,कब कब लोग
यहां आते है और एक बहत ही हैरान करने वाली बात उन्ोंने बताया के यहां से लगभग 4.5 km
दू र जंगल िें िहादेव जी के पैरो के मनशान है। यह सनकर हि दोनों ने एक दू सरे की और देखा
और सोचा क्ू न कल सबह दशथन के बाद वहां चला जाये। उसके बाद हि करीब 10 बजे रात को
अपने होर्ल के रूि िें आ गए और कल सबह की प्लामनंग करने लग गए। हिे सबह 4 बजे उठ
कर नहा कर िंमदर िें जाना था क्ोंमक हिे बताया गया उसके बाद बहत भरी भीड़ श्रद्धालओं
की वहाुँ दशथन के मलए आती है। हिने अपने िोबाइल िें अलािथ लगाया और सो गए।
सबह के 4 बजे हि उठ कर और सब कािोंसे मनमवथत्त होकर बाहर आये। सबह का तापिान 5
मडग्री था। हि ठण्ड से काुँप रहे थे परन्त िन िें िहादेव के दशथन की अमभलाषा थी तो उस और
हिारा ध्यान नहींगया। चारो और अुँधेरा था आसिान िें तारे मर्िमर्िा रहे थे। कोहरा भी था या
वो बदल थे हि सिझ नहींपाए और िंमदर के िख्य वार से होते हए अंदर प्रवेश कर गए। िंमदर
को फू लो और पमत्तयोंसे सजाया गया था। रंग मबरंगी लाईर्ो से पूरा िंमदर प्रांगर् िनिोहक
नजर आ रहा था। अंदर से वहां के सांस्कृ मतक ढोल और नगाड़ो से आरती की जा रही थी।
उसके बाद हिने प्रसाद मलया और अंदर िहादेव के दशथन के मलए गए। हिने पूजा की और जल
चढ़ाया और प्रसाद लेकर हि बाहर आ गए। उस सिय वहाुँ इतनी भीड़ नहीं थी। हि िंमदर िें
मफर से घूिे और उसके बाद हि वापस होर्ल िें आकर नाश्ता करने चले गए। जब तक हि
बाहर आये तब तक पूरा जागेश्वर धाि िेले िें बदल चूका था। हि िेले िें घूिे और कछ सािान
घर के मलए मलया उसके बाद हिने चलने की तयारी शरू कर दी। वहाुँ से वापस आने के मलए
हिे प्राइवेर् र्ैक्सी के आलावा कछ साधन नजर नहींआ रहा था। हि लोगो ने वापस अल्मोड़ा
आने का सोचा और मफर वहां से कौसानी जाने का प्लान मकया।
िंमदर का इमतहास
उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा मजले से 35 km दू र इस महन्दू तीथथस्थल के इमतहास भी अपने आप
िें एक भव्य है। ऐसा िाना जाता है के आमद शंकराचायथ ने इस िंमदर की स्थपना की थी परन्त
इसका कोई ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहींहैं। इस िंमदर का मनिाथर् गप्त काल िें हआ था। यहां
िौजूद िंमदरो की शैली को देखकर अनिान लगाया जाता है मक यह िंमदर 7वी शताब्ी से लेकर
18वी शताब्ी तक इन िंमदरो का मनिाथर् हआ है। भारतीय परास्िक सवेक्षर् के अनसार इन
िंमदरो का मनिाथर् 7वी शताब्ी िें और कछ िंमदरो का मनिाथर् दू सरी शताब्ी िें हआ है। ऐसा
भी िाना जाता है जागेश्वर धाि भगवन मशव की तपस्थली है यहां भगवन मशव और सप्त ऋमषयों
ने तपस्या की थी। इस िागथ पर चलते हए पांडवो को भगवन मशव ने दशथन मदए थे। यहां से 4.5
km दू र जंगल िें भगवान मशव के पैरो के मनशान होने की भी बाते कही जाती है।
जागेश्वर जाने से पहले रखे इन बातो का ध्यान
अगर आप जागेश्वर धाि जा रहे है तो सबसे पहले आपको जानना चामहए मक जाने के मलए क्ा
समवधाएं है। अगर आप उत्तराखंड राज्य से बाहार से आ रहे है, तो आपको यहां के साधन का
मवशेष ध्यान रखना होगा।
1 अगर आप हवाई यात्रा करने की इच्छा रखते है तो आप जॉली ग्रांर् एयरपोर्थ देहरादू न या मफर
पंतनगर एयरपोर्थ तक आ सकते है। उससे आगे अभी हवाई यात्रा करना संभव नहींहै। पंतनगर
एयरपोर्थ िात्र 150 KM दू र है जागेश्वर धाि से वही जॉली ग्रांर् एयरपोर्थ लगभग 380 KM है।
2 यमद आप रेल से यात्रा कर रहे है तो नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाि है। यहां से जागेश्वर
धाि की दरी लगभग 130-150 KM है।
3 बस से यात्रा कर रहे है तो आपको पहले हल्द्वानी बस स्टैंड तक आना होगा। आगे जाने के
मलए आप अल्मोड़ा तक र्ैक्सी या बस से यात्रा कर सकते है। अल्मोड़ा से जागेश्वर तक की दरी
35 KM है और यहां से आपको बस की समवधा मिलना िस्िल है आगे की यात्रा आपको र्ैक्सी
से ही करनी होगी, जो मक 24 घंर्े उपलब्ध है
4 िौसि का ध्यान रखते हए नवंबर से अप्रैल तक अपने साथ गिथ कपड़े जरूर लाये।
आशा करता हुँ आपको जानकारी अच्छी लगी होगी। आगे भी हि आपको उत्तराखंड के पयथर्क
स्थलों की जानकारी देते रहेंगे।
धन्यवाद्
हर हर िहादेव