7. सूची
तावना
प रचय
अ याय 1
मौन और अ तर-शा त
अ याय 2
वचारवान बु से परे
अ याय 3
अहंकारी व
अ याय 4
वतमान
अ याय 5
तुम वा तव म कौन हो
अ याय 6
वीक
ृ त और समपण
अ याय 7
क
ृ त
अ याय 8
स ब ध
8. अ याय 9
मृ यु और शा त
अ याय 10
ःख और ःख का अ त
लेखक क
े स ब ध म
9. तावना
अ बट आइं ट न ने कहा, “शा त खड़े रहो, तु हारे सामने क
े वे पेड़ और पास म उगी
झा ड़यां लु त न हो जाएं.”
इस युग म, जब क हमारे म त क दशाहीन यं चा लत से दौड़ रहे ह — और वहाँ तेज़ी से
प ंच रहे ह — अ तर-शा त क आवाज़ म ए हाट का संदेश तेज़ और प है.
— गौतम सचदेवा
10. प रचय
एक स चे आ या मक गु क
े लए शा दक प म श ा नह देनी होती, उसे तु ह क
ु छ
देना या फर तुमसे जोड़ना नह होता है, जैसे कोई नई सूचना, व ास, या फर आचरण क
े
नयम. ऐसे गु का क
े वल यह काय होता है क उस कावट को हटाने म तु हारी मदद करे,
जो तु ह स य से र करती है, जब क तुम कौन और या हो, यह अपने अ तर क गहराइय
म पहले से ही जानते हो. आ या मक गु का काय उसे उघारने और अ तर क गहराइय
क सीमाएं बताने का है, जहां शा त बसती है.
य द तुम कसी आ या मक गु क
े पास — या फर इस पु तक क
े क़रीब इस लए आते हो
क तु ह नए वचार, स ा त, व ास या फर बौ क चचा क
े लए ो साहन ा त ह , तो
तु ह नराशा होगी. सरे श द म, य द तुम च तन क भूख शा त करने क से खोज
रहे हो, तो तु ह वह यहां नह मलेगी और तुम इन श ा क
े मूल त व और इस पु तक
का सार, जो, क श द म नह , ब क तु हारे भीतर है, को खो दोगे. यह याद रखना ठ क
रहेगा क तुम जो क
ु छ भी पढ़ते हो, उसे अनुभव करो. श द एक दशा सूचक क
े अलावा
क
ु छ नह . वे जसक ओर इशारा करते ह, वचार क सीमा क
े भीतर वह ा त नह होगा,
ब क तु हारे अ तर क
े व तार म, जो क वचार से भी अ धक व तृत व गहरा है, उसम
ा त होगा. एक जीव त शा त ही उस व तार क व श ता म से एक है. इस लए पढ़ते
समय जब तु ह आ त रक शा त का उदय अनुभव होने लगे, तो समझ लो क पु तक गु
क
े प म अपना काम कर रही है. यह तु ह याद दला रही है क तुम कौन हो और वा पस
घर आने का रा ता बता रही है.
यह पु तक पृ दर पृ पढ़कर एक ओर रख देने क
े लए नह है. इसक
े साथ जयो, इसे
अ सर उठाओ और उससे भी अ धक मह वपूण यह है क इसे बीच-बीच म छोड़ दो, या
फर बजाय पढ़ने क
े , उसे यादा समय तक हाथ म पकड़े रखो. कई पाठक येक लेख
पढ़ते समय स भवतः पढ़ना छोड़ना चाहगे, कना, च तन करना चाहगे, या फर एकदम
क जाना चाहगे. पढ़ते समय बीच-बीच म इसे पढ़ना छोड़ देना अ धक सहायक और
ो े े े ो ो े
11. मह वपूण होगा, बजाय इसक
े क तुम इसे लगातार पढ़ते रहो. पु तक को अपना काय करने
दो, उसे तु हारी पुरानी लीक क
े दोहराव और जड़ वचारधारा से जगाने का काय करने दो.
इस पु तक को हम वतमान युग क
े लए आ या मक श ा क
े ाचीनतम प, ाचीन
भारतीय सू क
े पुनरो ार क
े प म देख सकते ह. स य क ओर इशारा करने वाली छोट
बात अथवा सू य क
े प म ये सू श शाली सूचक ह, जनम ब त थोड़े
आड बरहीन वचार जुड़े ह. वेद और उप नषद सू क
े प म, सबसे ाचीन लखी ई
प व श ाएं ह, जैसे बु क
े श द ह. यीशू क श ा और उदाहरण म से य द
कथा मक भाग नकाल दया जाए, तो वह सू क
े समान ही रह जाएंगी. इसी कार ान
क ाचीन चीनी पु तक ताओ ती चग म भी ग भीर श ाएं सं हीत ह. सू का सं त
होना ही उनका मह व है. दमाग़ को ज़ रत से अ धक सोचने क आव यकता नह होती.
बजाए क
ु छ कहने क
े , जो वे नह कहते, क
े वल उसक ओर संक
े त करते ह, वही मह व
रखता है. सू क तरह लखने क व ध का योग इस पु तक क
े पहले अ याय “मौन और
अ तर-शा त” म वशेष प से कया गया है. इसम सब क
ु छ सं ेप म ही है. यह अ याय
पूरी पु तक का सार है और क
ु छ पाठक क ज़ रत को पूरा भी करेगा, बाक़ अ याय उन
सबक
े लए ह, ज ह क
ु छ और दशा सूचक क ज़ रत है.
ाचीन सू क भां त इस पु तक क
े सभी ल खत अंश प व ह और चेतना क थ त से
उभरे ह, जसे हम अ तर-शा त कह सकते ह. ाचीन सू क भां त ये कसी धम या
आ या मक पर परा से नह जुड़े ह, ब क पूरी मानवता क प ंच क
े भीतर ह. इनम यहां
एक कार का ता का लक का बोध जुड़ा है. मानव चेतना का पा तरण एक वला सता
नह है, मतलब क
े वल क
ु छ गने-चुने लोग क
े लए ही नह , ब क सबक
े लए ज़ री है,
अगर मानवता अपने को न नह करना चाहती. आज क
े युग म ाचीन चेतना न य
और नवीन का ज म, ब त तेज़ी से हो रहे ह. मु कल यह है क सभी व तुएं एक ही समय
पर अ छ और बुरी हो रही ह, हालां क बुरी ही अ धक मुख ह, य क वे यादा “शोर”
मचाती ह.
यह पु तक वा तव म ऐसे श द का योग करती है, ज ह पढ़ने से ही यह आपक
े म त क
म वचार म बदल जाए. ले कन दोहराए गए, शोर मचाने वाले, जड़, अपने म समाए, यान
आक षत करने क
े लए कोलाहल करने वाले कोई मामूली वचार नह ह. येक
आ या मक गु क तरह, ाचीन सू क भां त, इस पु तक क
े वचार यह नह कहते,
“मेरी तरफ़ देखो”, ब क “मुझसे परे देखो”. चूं क ये वचार अ तर-शा त से उपजे ह,
इस लए इनम श है, ऐसी श जो तु ह वा पस उसी अ तर-शा त म ले जाती है, जसम
से ये उ प ए ह. यह शा त ही अ तर क शा त है और यह शा त और शा त ही
े ै ी औ
12. तु हारे अ त व का सार है. यह अ तर-शा त ही नया का पा तरण और उसक सुर ा
करेगी.
13. अ याय 1
मौन और अ तर-शा त
जब तुम अपने भीतर क अ तर-शा त से स पक खो देते हो, तो अपने आपसे भी स पक
तोड़ लेते हो. जब तुम अपने आपसे स पक खो देते हो, तो वयं को भी संसार म खो देते हो.
तु हारा अ तरतम का बोध जो क तुम वयं हो, अ तर-शा त से अलग नह हो सकता. यही
म ं , जो क नाम और आकार से भी अ धक गहरा है.
अ तर-शा त तु हारा मूल वभाव है. अ तर-शा त या है? यह अ तर का व तार है या
फर ऐसी जाग कता है, जसम इस पृ पर लखे श द प दखाई पड़ते ह और वचार
म बदल जाते ह. इस जाग कता क
े बना क
ु छ भी बोध नह , न ही वचार और न ही यह
संसार है.
वचार का बाहरी शोर अ तर क
े शोर क
े समान होता है. बाहरी मौन क
े समान ही अ तर क
शा त होती है.
ी े ी ौ ो े ो े ो
14. जब भी तु हारे चार तरफ़ कसी कार का मौन हो — उसे सुनो. मतलब उसे अनुभव करो.
उस पर यान दो. मौन को सुनने से तु हारे अ तर क शा त का व तार तुम म ही जाग
उठेगा, य क अ तर-शा त ारा ही तुम मौन को पहचान सकते हो.
यान रखो क अपने चार ओर फ
ै ले मौन को देखते ए तुम सोच नह रहे हो. तुम चेतन हो,
पर तु सोच नह रहे हो.
जब तुम मौन को पहचान लेते हो, तब अचानक एक अंद नी अ तर-शा त क चेतना क
थ त हो जाती है. तुम वतमान हो. हज़ार वष क
े सामू हक मानवीय सं कार से तुम बाहर
आ जाते हो.
एक पेड़, फ
ू ल और पौधे को देखो. अपनी चेतना को उस पर क
े त कर दो. वे कतने शा त
ह, अपने अ त व म कतने गहरे धंसे ए ह. क
ृ त से अ तर-शा त का पाठ सीखो.
जब तुम एक पेड़ क ओर देखते हो और उसक अ तर-शा त को जान जाते हो, तुम वयं
भी शा त हो जाते हो. तुम उसक
े साथ एक गहराई क
े तर तक जुड़ जाते हो. जो क
ु छ भी
तुम उसक
े भीतर और अ तर-शा त क
े ारा देखते हो तुम उसक
े साथ एका म हो जाने का
अनुभव करते हो. सभी व तु क
े साथ एका म हो जाने का अनुभव ही स चा ेम है.
मौन हमारे लए सहायक है, पर तु अ तर-शा त पाने क
े लए तु ह उसक ज़ रत नह .
अगर चार तरफ़ शोर भी हो, तो तुम शोर क
े नीचे छपी अ तर-शा त को जान सकते हो,
उस व तार को पहचान सकते हो, जहां से शोर पैदा होता है. स ची जाग कता का यही
अ तरतम व तार वयं क चेतना है.
अपने सभी वचार और ाने य क पृ भू म म तुम इसी चेतना क
े त सचेत हो सकते
हो. चेतना क
े त सचेत हो जाना ही अ तर क शा त का जाग जाना है.
15. कसी कार का परेशान करने वाला शोर भी मौन क भां त सहायक हो सकता है. क
ै से?
अपने अ दर क
े तरोध को शोर क
े सामने झुका दो और वह जैसा है, वैसा ही रहने दो. यही
वीक
ृ त तु ह अ तर क शा त क
े देश म ले जाएगी, जो क शा त है.
जब भी तुम इस ण को गहराई म वीकार करते हो, वह चाहे कसी भी प म य न हो
— तुम थर हो जाते हो और तु ह शा त मल जाती है.
बीच क
े ख़ाली थान पर यान दो — दो वचार क
े बीच क
े ख़ाली थान पर. यह बातचीत
म श द क
े बीच का सं त मौन व तार है. यानो या बांसुरी क
े वर क
े बीच या फर
ास- ास क
े बीच का खाली थान है.
जब तुम इन बीच क
े ख़ाली थान पर यान देते हो, तो यही “क
ु छ का” बोध चेतना बन
जाता है. स ची चेतना का आकारहीन व तार तु हारे भीतर जाग उठता है और आकार क
पहचान को हटा देता है.
स ची बु चुपचाप काय करती है. अ तर-शा त वह पर होती है, जहां सृजना मकता हो
और सम या का हल पाया जाता हो.
या शोर और अ तव तु क अनुप थ त ही अ तर-शा त है? नह , यह वयं बु ही है —
हमारे भीतर क छपी ई चेतना, जससे सभी आकार ज म लेते ह. जससे तुम हो, उसी से
अलग क
ै से हो सकते हो?
जसे तुम अपना आकार समझते हो, वह उसी से आया है और इसी क
े सहारे जी वत है.
ी े े ी औ ी
16. यह सभी आकाश-गंगा का, घास क
े तनक , फ
ू ल, पेड़, प ी और अ य सभी आकार
का मूल है.
इस संसार म क
े वल अ तर-शा त ही ऐसी चीज़ है, जसका कोई आकार नह . यह वा तव
म कोई व तु भी नह है और इस संसार क भी नह है.
जब तुम कसी मनु य या वृ को अ तर-शा त म देखते हो, तब उसे कौन देख रहा होता
है? कोई चीज़ जो एक से भी अ धक गहरी है. चेतना ही अपने सृजन को देख रही
होती है.
बाई बल म लखा है क परमा मा ने इस जगत को बनाया और देखा क यह अ छा है. तुम
भी यही देखते हो, जब तुम बना वचार क
े अ तर-शा त क
े साथ देखते हो.
या तु ह और जानकारी क आव यकता है? या और भी अ धक सूचनाएं अथवा तेज़
र तार क यूटर, अ धक वै ा नक और बौ क गणनाएं संसार क र ा कर सकते ह? या
ऐसा नह है क मानवता को इस समय क
े वल समझदारी या स य ान क आव यकता है?
पर तु यह स य ान या है और कहां मलेगा? शा त रहने क मता से ही ान ा त होता
है. क
े वल देखो और सुनो. और क
ु छ भी करने क ज़ रत नह है. शा त रहने, देखने और
सुनने से तु हारे भीतर का भावना वहीन ान जा त हो जाता है. अ तर-शा त को ही
अपने श द और काय को दशा बताने दो.
17. अ याय 2
वचारशील बु क
े परे
मनु य क थ त : वचार म गुम.
ब त से लोग अपना पूरा जीवन अपने वचार क सीमा म ही क़
ै द रखकर जीते ह. वे
संक
ु चत, मान सक उपज और गत धारणा से कभी बाहर नह आते और अतीत
ारा प रचा लत रहते ह.
तु हारे भीतर और येक मनु य क
े भीतर चेतना का आयाम वचार से भी अ धक गहरा
होता है, तुम जो भी हो, यह उसी का सार है. हम इसे उप थ त, जाग कता, अ नयं त
चेतना कह सकते ह. ाचीन श ा म, यही अ तर का यीशू अथवा तु हारी बु क
ृ त है.
इस आयाम को खोजना, तु ह और ःख क नया को, जसे तुम अपने और सर पर लाद
लेते हो, उससे आज़ाद कर देता है, जब क बु से उपजे “न हे से म” को ही क
े वल तुम
जानते हो और यही तु हारे जीवन को चलाया करता है. ेम, ख़ुशी, रचना मक व तार और
असीम अ तर-शा त सफ़ चेतना क उस अ तबं धत सीमा ारा तु हारे जीवन म आ
सकते ह.
ी ी े े े े
18. अगर कभी-कभी अपने दमाग़ म से गुज़रते ए साधारण वचार क
े समान वचार तुम
पहचान सको, य द तुम अपनी दमागी भावना क त या करने वाली णाली को वयं
घटते ए देख सको, तो उस समय यह व तार तु हारे भीतर पहले से ही उ प हो रहा होता
है, जैसे जाग कता क
े समय जब वचार एवं भावना उ प होते ह — वह असमय अ तर
व तार, जसक
े भीतर तु हारे जीवन क घटनाएं घटती ह.
सोचने क
े ोत म तेज़ ग त होती है, जो तु ह आसानी से अपने साथ बहाकर ले जा सकती
है. येक वचार यही भाव उ प करता है क वह ख़ास है. वह तु हारा यान पूरी तरह से
अपनी ओर ख चना चाहता है.
तु हारे लए अब एक नया आ या मक अ यास है क अपने वचार को ब त ग भीरता से
मत लो.
मनु य क
े लए अपनी धारणा क क़
ै द म फ
ं स जाना कतना आसान है.
मनु य का म त क जानने, समझने और क़ाबू करने क इ छा म वचार और अपने
कोण क ग़लती को स य मान लेता है. वह कहता है क यह ऐसा ही है. तु ह वचार से
भी बड़ा होना होगा, ता क तुम “अपना जीवन” या फर कसी अ य क
े जीवन या वहार
क
े बारे म ा या करते समय, चाहे तुम कसी भी प र थ त को जांचो, यह क
े वल एक
कोण से अ धक क
ु छ नह है, ब त सारे होने वाले कोण म से क
े वल एक. यह
क
े वल वचार क पोटली से अ धक क
ु छ नह है, पर तु स य तो एक संयु पूणता है,
जसम सभी क
ु छ आपस म गुंथा आ है, जहां अपने आप म क
ु छ नह है और क
ु छ होता
भी नह है. मनु य क सोच यथाथ क
े टुकड़े कर देती है — उसे धारणा क
े न हे-न हे
टुकड़ म काट देती है.
वचार करने वाला म त क एक लाभदायक व श शाली औज़ार है, पर तु यह ब त
सी मत भी है, जब यह तु हारे जीवन को पूरी तरह लपेट लेता है, जब तुम इस बात का भी
अहसास नह करते क यह तु हारी चेतना का एक छोटा-सा प है.
19. बु मानी वचार का ज म नह है. ग भीर जानकारी , बु मानी है, जो कसी को क
ु छ देने
या कसी व तु पर पूरा यान देने क
े सरल काय से उ प होती है. यान ाक
ृ तक है,
बु मानी अपने आप म वयं क चेतना है. जड़ वचार ारा उ प कावट को यह मटा
देती है, इसक
े साथ यह पहचान आती है क अपने आप म क
ु छ भी मौजूद नह . यह देखने
वाले और देखे जा चुक
े को जाग कता क एक हो जाने क थ त म जोड़ देता है. यह
अलगाव का उपचारक है.
जब भी तुम ववशता भरी सोच म डूबे ए होते हो, तुम जो है, उसक उपे ा करते हो. तुम
जहां हो, वहां नह होना चाहते. यहां, वतमान म.
धा मक, राजनै तक, वै ा नक स ा त इस ग़लत व ास म से पैदा होते ह क वचार स य
या वा त वकता को समेट सकते ह. स ा त सामू हक मन क
े भाव क क़
ै द होते ह. हैरानी
क बात यह है क लोग अपने क़
ै दख़ान से ेम करते ह, य क वह उसे सुर ा का भाव
और “म जानता ँ” का झूठा भरोसा दान करते है.
मानवता को इन स ा त से अ धक पीड़ा कसी ने नह द . यह सच है क हरेक स ा त
आज या कल बखर जाता है, य क अ त म स चाई उसका पदाफ़ाश कर देती है,
हालां क जब तक उसका बु नयाद म दखाई दे क वह या है, कोई और उसका थान ले
लेता है.
यह बु नयाद म या है? वचार क
े साथ पहचान होना.
वचार क
े सपन से जा त हो जाना ही आ या मक जागना है.
20. जतना क वचार भी पकड़ नह सकते, चेतना का े उससे कह अ धक बड़ा है. जब
तुम अपने हर वचार पर व ास करना छोड़ देते हो, तब तुम वचार से बाहर आ जाते हो
और साफ़ देख सकते हो क जो वचारक है, वह तुम नह हो.
बु हमेशा “काफ़ नह ” क थ त म रहती है, इस लए हमेशा और पाने का लालच
करती है. जब तुम बु क
े साथ प र चत हो जाते हो, तो तुम ब त आसानी से बैचेन होते हो
और ऊब जाते हो. ऊबने का मतलब है क बु और ो साहन क
े लए भूखी है, वह
सोचने क
े लए और भोजन चाहती है, उसक भूख शा त नह हो पा रही है.
जब तुम अपने म त क क भूख को अनुभव करते हो, तो कोई प का उठाकर, फोन
करक
े , ट .वी. चलाकर या वेबसाइट खोलकर अथवा बाज़ार म ख़रीदारी करक
े उसे शा त
कर सकते हो और यह असामा य नह है क मान सक समझ म कमी और अ धक क
ज़ रत को थोड़े समय क
े लए शरीर क आव यकता क
े प म अ धक भोजन करने क
े
लए अ त हण कर लेते हो.
या फर तुम अनुभव करक
े पता लगा सकते हो क बैचेनी व ऊब क हालत म क
ै सा लगता
है? जब तुम इन भावना पर जाग कता का आभास लाते हो, तब अचानक ही उसक
े
चार ओर थान और अ तर-शा त हो जाती है. शु म थोड़ा कम, पर तु जैसे ही अ तर क
े
थान क अनुभू त बढ़ती है, ऊब का अहसास ग भीरता और वा त वकता म कम होने
लगता है. इस कार यह ऊब भी तु ह यह सखा सकती है क तुम कौन हो और कौन नह
हो.
तु ह पता चल जाएगा क “ऊबा आ ” जो है, वह तुम नह हो. ऊब तु हारे भीतर क
क
े वल एक प र थ त से उपजी ऊजा है. न ही तुम ोधी, ःखी अथवा डरे ए हो.
ऊब, ोध, ःख अथवा डर “तु हारे” अपने नह ह. ये क
े वल मानव मन क थ तयां ह. ये
आती और जाती रहती ह.
जो भी आता और जाता है, वह तुम नह हो.
“ ” े
21. “म ऊब गया ं” यह कसे मालूम?
“म ोधी, ःखी और डरा आ ं” यह कसे मालूम?
तुम वह थ त, जो मालूम है, नह हो, ब क तुम वयं जानकारी हो.
कसी भी कार का पूवा ह यह बताता है क तुम सोचने वाले म त क क
े साथ प र चत
हो. इसका अथ यह है क तुम सरे कसी और को अब ब क
ु ल नह देख रहे हो,
ब क उस क
े वषय म यह तु हारी अपनी धारणा ही है. कसी सरे क
सजीवता कम करक
े , उसे धारणा से जोड़कर तुम एक कार क हसा करते हो.
वचार जो क जाग कता से जुड़ा आ नह है, क
े वल आ मलीन और अ याशील हो
जाता है. बना बु क चतुराई ब त ख़तरनाक और वनाशकारी होती है. आज मानवता
क अ धकतर यही थ त है. वचार को व ान एवं तकनीक म ढालना वा त वकता म न
तो अ छा है, न ही बुरा. यह भी व वंसक बन गया है, य क जस वचारधारा से यह
उ प आ है, उसक जड़ जाग कता म नह ह.
मानव मू यांकन का अगला पग वचार से आगे बढ़ना है. अब यही हमारा ब त ज़ री
काय है. इसका मतलब यह नह क और वचार पूरी तरह न कर, ले कन आसानी से ही
वचार क
े साथ न जुड़े, वचार से त न हो जाएं.
अपने शरीर क
े अ दर क ऊजा को अनुभव करो. मान सक शोर एकदम कम या समा त हो
जाएगा. इस ऊजा को अपने हाथ म, अपने पैर म, अपने पेट म, अपनी छाती म अनुभव
करो. जीवन को अनुभव करो जो क वयं तुम हो. यही जीवन या ाण शरीर का प
धारण करता है.
ी े े े े ी े े ो े े ी े
22. इस कार सजीवता क
े गहरे अथ म, भावना क
े पंदन क
े नीचे, तु हारे सोचने क
े नीचे
शरीर तब एक दरवाज़ा बन जाता है.
तु हारे भीतर एक सजीवता है, जसे क
े वल म त क म ही नह , तुम अपने पूरे अ त व क
े
साथ अनुभव कर सकते हो. उस उप थ त म येक अणु सजीव है, जसम तु ह सोचने क
आव यकता नह हो. फर भी उस थ त म य द कसी ावहा रक उद्दे य क
े लए वचार
क आव यकता है, तो वह वहां मौजूद है. बु फर भी काय कर सकती है और वह
अ धक सु दरता क
े साथ काय कर सकती है, जब क महानतम बु , जो क तुम वयं हो,
उसका योग करती है और उसी क
े ारा होती है.
तुमने उन छोटे-छोटे ण को अनदेखा कर दया होगा, जनम “ वचार र हत चेतना”
वभा वक तौर पर व वे छा से, तु हारे जीवन म पहले से ही घट रही है. तुम चाहे कसी भी
शारी रक या म त हो, या फर कमरे म चहलक़दमी कर रहे हो, या हवाईअड्डे क
े
काउ टर पर इंतज़ार कर रहे हो और पूरी तरह ऐसी मौजूदगी हो क सोचने क वभा वक
थरता दब जाए और उसका थान एक जाग क उप थ त ले ले, या फर बना कसी
कार क भीतर क मान सक ट का- ट पणी क
े तुम अपने को आकाश क ओर देख पाते
हो, या फर कसी को सुन रहे होते हो. तु हारा य ान वचार ारा बना धुंधला ए
एकदम प हो जाता है.
म त क क
े लए यह मह वपूण नह है, य क उसक
े सोचने क
े लए और भी “अ धक
मह वपूण” चीज ह. यह याद करने यो य भी नह है, इस लए तुमने उसक उपे ा कर द ,
जब क वह अपने आप घट रहा है.
सच तो है क सबसे मह वपूण बात यह है, जो तु हारे साथ घट सकती है. वचार से
जाग क उप थ त क
े थाना तरण क यह शु आत है.
“ े” ो े े े ी
23. “क
ु छ न जानने” क थ त म न त रहो. यह तु ह बु से परे ले जाएगी, य क बु
हमेशा नतीजे नकालने और ा या करने क को शश करती है. यह अ ान से डरती है.
इस लए तुम जब अ ान म भी न त हो जाते हो, तो तुम पहले से ही बु से परे हो जाते
हो. एक गहरा ान जो क धारणा र हत है, उस थ त म से पैदा हो जाता है.
कला मक सृजन, खेल, नृ य, श ण, सलाहकारी — कसी े म द ता — यह बताता
है क सोचने वाली बु या तो उसम ब क
ु ल शा मल नह है या फर वह सरा थान ले
रही है. एक श और बु मानी जो तुमसे बड़ी है और अब तक तु हारे साथ एका म है,
अ धकार जमा लेती है. यहां नणय लेने क या अब और नह रहती. सही या तुरंत
अपने आप होती है, जब क “तुम” उसे नह कर रहे होते हो. जीवन का कौशल नयं ण का
उलट होता है. तुम महानतम चेतना से जुड़ जाते हो. यह अ भनय करता, बोलता, काय
करता है.
ख़तरे का एक ण वचार क
े बहाव म अ थायी कावट ला सकता है और इस कार तु ह
उप थत, सावधान और जाग क होने का वाद अनुभव करा सकता है.
स य चार ओर से और अ धक घेर लेता है, जतना बु कभी सोच भी नह सकती. कोई
भी वचार स य को मुट्ठ म ब द नह कर सकता. यादा से यादा उसक ओर इशारा कर
सकता है. उदाहरण क
े लए वह कह सकता है — “सभी व तुएं बु नयाद तौर पर एक ह.”
यह क
े वल इशारा ह, ा या नह . इन श द को समझने का अथ है, अपने भीतर क
गहराई म से उस स य को अनुभव करना, जसक ओर वे इशारा करते ह.
24. अ याय 3
अहंकारी व
बु लगातार क
े वल वचार क
े लए ही भोजन नह खोजती, ब क अपने अ त व क
े
लए भी भोजन खोजती है, अपने व क पहचान क
े लए भी. इस कार अहंकार अ त व
म आता है और लगातार अपनी फर से रचना करता जाता है.
जब तुम अपने बारे म सोचते और बोलते हो, जब तुम कहते हो “म” तो तुम वभावतः “म
और मेरी कहानी” क
े संग म कहते हो. तु हारा यह “म” ही पस द-नापस द करता है,
डरता और इ छा करता है, “म” कभी ल बे अस क
े लए स तु नह रहता. तुम या हो,
यह बु क उपज का बोध है. यह अतीत ारा भा वत होता और भ व य म अपनी
पूणता खोजता है.
या तुम देख सकते हो क यह “म” ण-भंगुर है, एक अ थायी संरचना है. यह पानी क
सतह पर लहर ारा बनाए गए नमून क तरह है.
वह कौन है, जो यह देखता है? वह कौन है, जो तु हारे इस शारी रक और मनोवै ा नक प
क ण-भंगुरता को जानता है? म ं. यह गहनतम “म” अहंकार है. इसका अतीत और
भ व य दोन से ही कोई स ब ध नह .
25. तु हारे सम या से भरे जीवन क
े हालात से जुड़े डर और चाहत तु हारे यान को हर घड़ी
अपने ऊपर क
े त रखते ह. या ये शेष रहगे? तु हारी क पर लगे प थर पर ज म और
मृ यु क तारीख क
े बीच का एक ख़ाली थान, एक या दो इंच ल बी लक र.
अहंकारी व क
े लए यह एक नराशा म डूबा वचार है और तु हारे लए मु देने वाला है.
जब येक वचार तु हारे यान को अपने ऊपर पूरी तरह क
े त कर लेता है, तब इसका
मतलब है क तुम अपने म त क क आवाज़ क
े साथ जुड़ गए हो. वचार तब व क
े बोध
से घर जाते ह. यही अहंकार है, बु ारा उपजा “म” है. बु ारा उपजा अहंकार अपने
को अधूरा व अ थर महसूस करता है. इसी लए डर और चाहत इसको ग त देने वाली मु य
श यां होती ह.
जब तुम यह पहचान लेते हो क तु हारे म त क म कोई आवाज़ है, जो तु हारे अ त व का
दावा करती है और लगातार पुकारती रहती है, तो तुम वचार क
े बहाव क
े साथ अपनी
अनजानी पहचान से जाग रहे होते हो. जब तुम उस आवाज़ पर यान देते हो, तब तु ह ान
हो जाता है क तुम वह आवाज़ नह , ब क वचारक हो, जो इसे पहचानता है.
अपने आपको आवाज़ क
े पीछे क जाग कता समझना ही मु है.
अहंकारी व हमेशा खोजने म जुटा रहता है. वह अ धकतर इस और उसको अपने साथ
जोड़ने क
े लए, अपने आपको और भी अ धक पूण अनुभव करने क
े लए को शश करता
है. यही अहंकार का भ व य क
े साथ बा यकारी गठजोड़ है.
जब भी तुम अपने बारे म जाग क हो जाते हो — “अगले ण क
े लए जी वत रहते हो”
— तुम उसी समय अहंकारी बु क बनावट से बाहर आ जाते हो और उस ण पर यान
क
े त करने क स भावना भी साथ-साथ उ प हो जाती है.
े े े ी े ी ी े
26. इस ण पर पूरा यान क
े त करने से अहंकारी बु से भी अ धक समझदारी तु हारे
जीवन म वेश कर जाती है.
जब तुम अहंकार क
े सहारे जीते हो, तो तुम वतमान ण को अ त क
े एक अथ म हमेशा
कम कर देते हो. तुम भ व य क
े लए जीते हो और जब अपने ल य को ा त कर लेते हो,
तो वे तु ह स तु नह कर पाते, कम से कम ल बे समय तक नह .
जब तुम काय पर अ धक यान देते हो, बजाय भ व य क
े नतीजे क
े और ज ह तुम उसक
े
ारा ा त करना चाहते हो, तो तुम पछले अहंकारी पूवा ह को तोड़ देते हो. तु हारा यह
काय न क
े वल और अ धक भावशाली हो जाता है, ब क असीम आन द और स तोष देने
वाला बन जाता है.
येक अहंकार म अ सर एक त व अव य होता है, जसे हम “उ पी ड़त अ त व” कह
सकते ह. क
ु छ लोग अपने बारे म इतनी कठोर और ःख भरी क पना बना लेते ह क वह
उनक
े अहंकार क
े बीच क धुरी बन जाता है. पछतावा और शकायत उसक
े अ त व क
े
बोध का ज़ री ह सा बन जाते ह.
चाहे तु हारी शकायत पूरी तरह “तकसंगत” ह , तुमने अपने लए पहचान क रचना कर
ली है. यह एक क़
ै दखाने क तरह है, जसक सलाख़ वचार क
े प म ह. यह देखो क
तुम अपने आप या कर रहे हो या फर तु हारी बु तुमसे या करवा रही है? अपने ःख
क दा तान से अपने भावना क
े लगाव को अनुभव करो और उसक
े बारे म ज़बरद ती
सोचने व बोलने म जाग क बने रहो. अपने अ तर क
े े क
े उप थत सा ी क
े प म
वहां मौजूद रहो. तु ह क
ु छ भी करने क ज़ रत नह . जाग कता क
े साथ पा तरण और
मु आती है.
शकायत और त या पस द दा मान सक नमूने ह. इनक
े ारा अहंकार अपने को मज़बूत
करता है. ब त से लोग क
े लए उनक मान सक भावना क याएं इस या उसक
शकायत अथवा त या करने क होती ह. ऐसा करक
े तुम सर को या प र थ त को
“ग़लत” और अपने को “सही” ठहराते हो. “सही” बताकर तुम अपने को बेहतर समझते
ो औ े ो े े े ो ो े ो
27. हो और अपने को बेहतर मानकर, तुम वयं क
े अ त व क
े बोध को मजबूत करते हो.
असल म तुम क
े वल अहंकार क
े म को मज़बूत करते हो.
या तुम इस या क अपने भीतर जांच कर सकते हो और अपने म त क से शकायत
क आवाज़ को पहचान सकते हो क वह या है?
अपनी अहंकारी भावना को संघष क ज़ रत है, य क उसक अलग पहचान इसक
े और
उसक
े ख़लाफ़ संघष करने और यह बताने म क “म” यह ं और “म” वह नह ं, इसम
और भी श शाली हो जाती है.
श ु क मौजूदगी म अ सर जा तयां, रा और धम, सामू हक पहचान क श शाली
भावना को महसूस करते ह. “अ व सनीय” क
े बना “ व सनीय” कौन हो सकता है?
य क
े साथ वहार करते समय या तुम उनक
े लए अपने भीतर े तर अथवा
न नतर का ती भाव महसूस करते हो? अगर ऐसा है, तो तुम अहंकार क तरफ़ ताकते हो,
जो इस तरह क तुलना म ही लगा रहता है.
ई या अहंकार का ही एक उ पाद है और वह अपने को न न समझ लेता है, य द कसी
सरे क
े साथ क
ु छ भी अ छा घट रहा हो फर सरे क
े क
ु छ यादा ही हो, उसक
े पास
अ धक जानकारी हो अथवा वह तुमसे क
ु छ अ धक कर सकता हो. अहंकार क पहचान
तुलना पर नभर करती है और वह अ धक पर जी वत है. वह कसी भी चीज़ को पकड़
लेगा. य द क
ु छ भी न मले, तो तुम अपने साथ ए जीवन क
े अ धक अ याय या कसी और
से अपने को अ धक बीमार या पी ड़त समझकर अपनी पहचान क
े मनगढ़ त भाव को श
दान करते हो.
वह कहा नयां, कथा-सा ह य कौनसा है, जससे तुम अपने अ त व का बोध ा त करते
हो?
28. अहंकारी व क
े ही ढांचे म वरोध, तरोध और अलग रहने क इ छा अलगाव क भावना
है, जसको बनाए रखने म ही उसका अ त व नभर करता है. इस कार यहां “म” “ सरे”
क
े और “हम” “उनक
े ” क
े वरोध म ह.
अहंकार को कसी चीज़ या कसी क
े साथ संघष क आव यकता होती है. इससे
साफ़ होता है क तुम शा त, आन द और ेम क खोज म हो, पर तु उ ह ल बे समय तक
बदा त नह कर पाते हो. तुम कहते हो क तु ह ख़ुशी चा हए, पर तु तु ह ःखी रहने क
आदत पड़ी ई है.
तु हारा ःख तु हारे जीवन क प र थ तय क
े कारण नह , ब क तु हारे म त क क शत
क
े कारण पैदा आ है.
या तुम पहले कभी कसी कए गए या नह कए गए काम क
े लए पछतावे क भावना
रखते हो? यह तो तय है क तुमने उस समय अपनी चेतना क
े तर क
े अनुसार या कसी
अचेतन अव था म ही यह काय कया होगा. य द तुम और अ धक जाग क और सचेत
होते, तब तुमने अलग तरह का वहार कया होता.
व क
े बोध क
े लए ला न अहंकार ारा अपनी पहचान क
े सृजन क को शश है. अहंकार
क
े लए इस बात से कोई भी फ़क़ नह पड़ता क यह व सकारा मक है या नकारा मक. जो
भी तुमने कया या करने म असफ़ल रहे, वह अ ान मानवीय अचेतनता का ही दशन था,
ले कन अहंकार उसे गत बनाता है और कहता है “मने वह कया” और इस कार तुम
अपने “बुरे” होने क एक का प नक त वीर बना लेते हो.
इ तहास म मनु य ने अन गनत हसाएं, ू र और एक सरे को चोट प ंचाने वाले काम कए
ह और ऐसा करना जारी है. या उन सबको दोषी ठहराया जाए. या वे सब श मदा ह? या
फर वे सब काय अचेतनता का आसान-सा दशन है, एक ऐसी वकास क ओर बढ़ने
वाली थ त है, जसम से हम आज गुज़र रहे ह?
ी “ ो े े े े ”
29. यीशू का कथन क “उ ह माफ़ कर दो, य क वे नह जानते क वे या कर रहे ह”, यह
अपने आप पर भी लागू होता है.
य द अपनी मु क
े उद्दे य से अहंकार क
े ल य को चुनते हो, अपनी मह ा क या फर
वयं को ऊ
ं चा करने क भावना रखते हो और उ ह ा त कर भी लेते हो, तो वे तु ह संतोष
दान नह करगे.
ल य चुन लो, पर तु यह जान लो क वहां प ंचना ही मह वपूण नह है. जब वतमान म से
क
ु छ उभरता है, तो इसका मतलब है क यह ण अंतःसमा त का साधन नह है, ब क हर
ण अपने आप म काय करते रहना है. तुम अब वतमान को अंतःसमा त क
े साधन क
े प
म कम नह करते, जो क अहंकारी चेतना है.
“ व नह , सम या नह ” एक बौ गु ने तब कहा, जब बौ धम क गहराई क ा या
करने क
े लए उनसे कहा गया.
30. अ याय 4
वतमान
ऊपरी तौर पर देखने पर ऐसा महसूस होता है क वतमान ण अनेक ण म से एक है.
तु हारे जीवन क
े हर दन म हज़ार ण होते ह, जनम अलग-अलग घटनाएं घटती ह,
ले कन अगर तुम यान से देखो, तो या सदा यहां एक ही ण नह रहता? या जीवन
सदा “यही ण” नह है?
यह एक ण — वतमान — ही एक ऐसा त य है, जससे तुम कभी छुटकारा नह पा
सकते, यह तु हारे जीवन का न बदलने वाला त य है. चाहे क
ु छ भी हो जाए, बेशक तु हारा
जीवन बदल जाए, एक त य तय है, वह है वतमान.
चूं क वतमान से कभी छु टकारा नह मल सकता, तो फर य न उसका वागत कर, उसक
े
साथ म ता य न रख?
जब तुम वतमान ण क
े साथ म ता कर लेते हो, तो तुम कह भी य न हो, तुम अपने
आपको सहज अनुभव करोगे. जब तुम वतमान म सहज अनुभव नह करते, तो फर तुम
कह भी चले जाओ, तुम अपने साथ बैचेनी ले जाओगे.
31. वतमान ण जैसा है, वैसा ही हमेशा रहेगा, या तुम उसे रहने दोगे?
जीवन का वभाजन भूत, वतमान और भ व य बु ारा बना है. वा तव म यह का प नक
है. भूत और भ व य वचार से उपजे प ह, मान सक अमू तकरण ह. भूत क
े वल वतमान
म ही याद कया जा सकता है. जो क
ु छ तुम याद रखते हो, वह एक घटना है, जो वतमान म
घट है और तुम उसे वतमान म ही याद करते हो. भ व य जब आता है, तो वह वतमान ही
है, इस लए यह बात स य है क क
े वल वतमान ही है, जो सदा हमारे साथ रहता है.
अपना यान वतमान म बनाए रखने का मतलब यह नह क तु ह जीवन म जो चा हए,
उससे इनकार करो. इसका मतलब यह है क जो भी ाथ मक है, उसे पहचानो. फर तुम
उसक
े बाद तीय जो भी सामने आए, उससे आसानी से नपट सकते हो. इसका मतलब
यह कहना नह है क “म आगे कसी और बात या चीज़ से स ब ध नह रखूंगा, य क
अब यहां क
े वल वतमान है”. नह , जो ाथ मक है, उसे पहले खोजो और वतमान को
अपना म बनाओ, अपना श ु नह . उसे वीकार करो, उसका आदर करो. जब वतमान
तु हारे जीवन का ाथ मक क
े और आधार बन जाता है, तो तु हारा जीवन आसानी से
गुज़रने लगता है.
बतन समेटना, ापार क
े लए नी त बनाना, या ा क तैयारी करना — इनम सबसे अ धक
मह वपूण या है : कम या प रणाम, जसे तुम कम ारा ा त करना चाहते हो? यह ण
या भ व य का कोई ण?
या तुम इस ण को ऐसा मानते हो, जैसे वह एक बाधा है, जसे पार करना चा हए? या
तुम यह महसूस करते हो क तु हारे पास भ व य म कोई ऐसा ण होगा, जसे ा त करना
अ धक ज़ री होगा?
ी ी ै े
32. लगभग हर इसी कार जीवन गुज़ारता है. चूं क भ व य, सवाय वतमान क
े प म
कभी नह आता, इस तरह जीना, ग़लत ढ़ंग से जीना है. इसम लगातार एक बैचेनी, तनाव
और अस तोष क अ तधारा बहती रहती है. यह जीवन का स मान नह करता, जो अभी
वतमान है और हमेशा वतमान ही रहेगा.
अपनी भीतरी सजीवता को अनुभव करो. यह तु ह वतमान म थरता दान करती है.
तुम अपने जीवन का भार तब तक नह उठा पाओगे, जब तक तुम इस ण यानी वतमान
का दा य व नह उठाओगे, य क वतमान ही वह थान है, जहां जीवन को पाया जा
सकता है.
इस ण का दा य व लेने का अथ यही है क वतमान का “इस कार” अ तर से भी वरोध
न करो, वह जो भी है, उससे बहस न करो. इसका मतलब है, जीवन क
े साथ शा मल होकर
चलो.
वतमान ऐसा ही है, य क वह और कसी भी कार का नह हो सकता. बौ धम को
मानने वाले यह सब हमेशा से ही जानते थे, अब भौ तकवाद भी इसे वीकार करते ह :
यहां अलग व तुएं या घटनाएं कभी नह होत . सतह क
े नाचे सभी व तुएं आपस म जुड़ी
ई ह, ा ड क पूणता का अंश ह, जो क यही प लेता है और जसे यह ण ा त
करता है.
जब तुम जो भी है, उसे “हाँ” कहते हो, तो तुम वयं ही जीवन क ऊजा एवं बु से जुड़
जाते हो. तभी तुम जगत म सकारा मक प रवतन क
े त न ध बन जाते हो.
एक सरल, पर तु त व प आ या मक अ यास तो यही है क वतमान म जो भी पैदा हो,
उसक
े भीतर व बाहर से — उसे वीकार करो.
33. जब तु हारा यान वतमान से जुड़ जाता है, तो वहां सजगता आ जाती है. यह ऐसा है, जैसे
तुम सपने से जाग रहे हो, वचार क
े सपने, अतीत और भ व य क
े सपने से. कतनी प ता
और कतनी सरलता है. इसम सम या क
े पैदा होने क
े लए कोई जगह नह है. बस, यह
ण, जैसा है, वैसा ही है.
जैसे ही तुम वतमान म यान क
े साथ वेश करते हो, तुम अनुभव करते हो क जीवन द
है. जब तुम उप थत होते हो, येक व तु, जसे तुम देखते हो, उसम द ता आ जाती है.
जतना अ धक तुम वतमान म रहते हो, उतना ही अ धक तुम अपने अ त व और स पूण
जीवन क द ता म सरल, पर तु अ य धक आन द अनुभव करते हो.
अ धकतर लोग वतमान को और इस समय जो घ टत हो रहा है , उसको एक समान समझने
क ग़लती कर बैठते ह, पर तु यह ऐसा नह है. वतमान म जो घट रहा है, वह उससे अ धक
गहरा है. यह तो थान है, जसम वह घट रहा है.
इस लए इस ण क वषयव तु को वतमान से मत मत समझो. उन सब वषयव तु म
से जो पैदा होता है, वतमान उससे कह अ धक गहरा है.
जब तुम वतमान म वेश करते हो, तो तुम अपने म त क क वषय-व तु से बाहर आ
जाते हो. वचार का नरंतर वाह क जाता है. वचार तु हारे यान को अब और नह
ख चते और तु ह पूणता म नह ले जाते. वचार क
े बीच म ख़ाली थान पैदा हो जाता है —
व तार और अ तर-शा त. तुम यह अनुभव करना शु कर देते हो क अपने वचार क
े
मुक़ाबले म तुम कतने अ धक वशाल और गहन हो.
औ ो ी े ो ी े ी
34. वचार, भावनाएं, इ य ान और जो क
ु छ भी तुम अनुभव करते हो, वही तु हारे जीवन क
वषयव तु बन जाती है. “मेरा जीवन” वही है, जो तुम अपने व क
े ान से ा त करते हो
और “मेरा जीवन” ही वषयव तु है, इसी म तुम व ास करते हो.
तुम लगातार एक मौजूदा स चाई को अनदेखा कर देते हो. म ं क
े तु हारे अ तर-बोध का
तु हारे जीवन क घटना से क
ु छ लेना-देना नह , उसे वषयव तु से क
ु छ मतलब नह . म
ं का बोध ‘वतमान’ क
े साथ है. यह हमेशा ऐसा ही रहता है. बचपन और बुढ़ापे म, वा य
और बीमारी म, सफलता या असफ़लता म — म ं — वतमान का थान — अपने
गहनतम तर तक बना बदले रहता है. अ सर वषयव तु से म हो जाता है, इस लए
अपने जीवन क वषयव तु ारा म ं या फर वतमान को ब त ही धुंधला और अ य
अनुभव करते हो. सरे श द म तु हारे अ त व का बोध तु हारे वचार क
े वाह और इस
जगत क अ य ब त-सी बात से ढक जाता है. वतमान समय म खो जाता है.
इस कार आप भूल जाते हो, अपने अ त व का अपनी जड़ से जुड़ा होना, अपनी द
वा त वकता और संसार म अपने आपको खो देते हो. जब मानव यह भूल जाता है क वह
कौन है, तब म, ोध, नराशा, हसा और संघष पैदा हो जाते ह.
इस कार स य को याद रखना कतना आसान है और इससे घर वापस लौटना भी.
म अपने वचार, भावनाएं, इ य-बोध और अनुभव नह ं. म अपने जीवन क वषयव तु
नह ं. म जीवन ं. म वह थान ं, जसम सब क
ु छ घटता है. म चेतना ं. म ही वतमान
ं. म ं.
35. अ याय 5
वा तव म तुम कौन हो
तु हारे भीतर क गहराइय से वतमान को अलग नह कया जा सकता.
यूं तो तु हारे जीवन म ब त सी व तुएं ज़ री होती ह, पर तु क
े वल एक ही व तु स पूण
होती है.
तुम जीवन म सफ़ल हो या असफ़ल, यह संसार क नज़र म मह वपूण हो सकता है. तुम
तंद त हो या बीमार, श त हो या अ श त यह भी मह व रखता है. तुम अमीर हो या
ग़रीब, यह भी मह व रखता ह — वा तव म ये सब तु हारे जीवन को भा वत करते ह. जी
हां, ये सब बात मह व रखती ह — पर तु तुलना करक
े देख, तो ब क
ु ल भी मह व नह
रखत .
यहां ऐसा भी है, जो उन सबसे अ धक मह व रखता है और वह है, इस त व को खोजना क
इस ण-भंगुर जीवन क
े परे तुम कौन हो, वही ण-भर का परक व का बोध.
अपने जीवन क प र थ तय को फरसे व थत करक
े तुम शा त ा त नह कर सकते,
ब क ‘तुम कौन हो’ का बोध अपने जीवन क गहराइय म समझकर ा त कर सकते हो.
36. पुनज म अगले ज म म भी तु हारी मदद नह कर सकता, य द तुम अभी तक यह नह
जानते क तुम कौन हो.
इस धरती पर सभी ःख “म” और “हम” क
े गत बोध से ही उ प होते ह. तुम कौन
हो, इसका पूरा सार इसी म आ जाता है. जब तुम अपने अ तर क
े इस त व से अनजान रहते
हो, तो अ त म तुम सदा ःख ही पाते रहते हो. यह बात उतनी ही सरल है. जब तुम यह
नह जानते क तुम कौन हो, तुम अपने सु दर और द अ त व को बु ारा रचे गए व
क
े बदले म रख देते हो और उस भयभीत और लोभी व से चपट जाते हो.
उस नकली व क
े बोध क र ा करना और उसे बढ़ाना ही तब तु हारी पहली ेरक श
बन जाता है.
ब त सी अ भ यां जो क आम बोलचाल म ह और अ सर भाषा क ही बनावट बन
जाती ह — यही बताती ह क मनु य यह नह जानता क वह या है. तुम कहते हो
“उसका जीवन समा त हो गया” या फर “मेरा जीवन”, मानो यह जीवन क
ु छ ऐसा है,
जसे पाया या खोया जा सकता है. स य तो यह है क जीवन तु हारे पास नह है , तुम ही
जीवन हो . एक पूण जीवन, क
े वल एक चेतना, जो पूरे जगत म फ
ै ल जाती है और अनुभव
क
े लए एक प थर, घास का तनका, पशु, एक , तारे का ह का अ थायी आकार
ा त कर लेती है.
या अपने भीतर गहराई से तुम यह अनुभव करते हो क तुम पहले से ही यह जानते हो?
या तु ह इस बात का ान है क तुम वह पहले से ही हो?
ी े ै ै े ी ौ
37. जीवन म अ धकतर काय क
े लए तु ह समय क ज़ रत है, जैसे कसी नए कौशल,
मकान नमाण, वशेष बनने, एक कप चाय बनाने क
े लए. समय बेकार है, पर तु जीवन
क सबसे मह वपूण घटनाएं, जो तुमसे स ब धत ह, उनम एक बात जो सबसे अ धक
ज़ री है, वह है, व का ान, जसका मतलब है, यह जानना क ऊपरी तौर पर दखाई
देने क
े अलावा, तु हारा नाम, तु हारा शारी रक प, तु हारा इ तहास, तु हारी कहानी क
े
अलावा तुम या हो.
तुम अपने को भूत या भ व य म नह पा सकते. क
े वल एक थान जहां तुम अपने को पा
सकते हो, वह है वतमान.
अ या म क खोज करने वाले ‘ व’ को पहचानने या ान ा त करने क
े लए भ व य म
झांकते ह. खोजने वाले का अथ है क तु ह भ व य क ज़ रत है. य द इसी पर तुम
व ास करते हो, तो तु हारे लए यही स य बन जाता है. तु ह समय क ज़ रत होती है,
जब तक तु ह वयं पता नह चल जाता क अपने अ त व क
े लए तु ह समय क ज़ रत
नह है.
जब तुम एक पेड़ देखते हो, तो तुम पेड़ को पहचानते हो. जब तु हारे मन म कोई वचार या
संवेदना उ प होती है, तुम उस वचार अथवा संवेदना को जानते हो. जब तु ह कोई
ःखदायक अथवा आन ददायक अनुभव होता है, तो तुम उस अनुभव को पहचानते हो.
ये सभी प और सही बात ह, फर भी य द तुम उ ह यान से देखोगे, तो तुम पाओगे क
ब त बारीक से इस संरचना म म है. एक ऐसा म, जो भाषा क
े योग क
े समय एकदम
थ हो जाता है. वचार और भाषा दोहरेपन और अलग व को ज म देते ह, जब क
स चाई म वहां कोई भी नह होता. स य यह है क वृ , वचार, संवेदना अथवा अनुभव को
जानने वाले तुम कोई नह हो. तुम तो वह चेतना अथवा जाग कता हो, जसम व जसक
े
ारा सब व तुएं दखाई देती ह.
जब तुम अपने जीवन क तरफ़ देखते हो, तो या तुम अपने को एक चेतना क
े प म जान
सकते हो, जसम तु हारे पूरे जीवन क वषयव तु प हो जाती है?
े ो “ े ो ” ो ी ो ी
38. तुम कहते हो “म अपने को जानना चाहता ं.” तुम इसम म हो . तुम ही ान हो . तुम ही
वह चेतना हो , जसक
े ारा सभी क
ु छ जाना जाता है. चेतना अपने आपको नह जान
सकती , ब क वह अपने आप है .
इसक
े परे क
ु छ भी नह जानना है, फर भी सभी जानना उससे पैदा होता है. “म” ान का,
चेतना का वषय अपने आप नह बन सकता है.
इस लए तुम अपनी ही वषयव तु खुद नह बन सकते. यही कारण है क अहंकारी ‘ व’ का
म पैदा हो जाता है — य क मान सक प से तुमने अपने आपको ही वषय बना लया
है. तुम कहते हो, “वह म ँ”. इस कार तुम अपने आपसे र ता था पत कर लेते हो और
सर को और अपने आपको अपनी कहानी सुनाते हो.
अपने को जाग कता क
े प म, जसम असाधारण अ त व घ टत होता है, जान लेने से
तुम असाधारणता पर नभरता से मु हो जाते हो और प र थ तय म, थान म और
अलग अव था म व क पहचान से मु हो जाते हो. सरे श द म यह क जो भी
घ टत होता अथवा घ टत नह होता है, तब मह वपूण नह रहता. व तुएं अपनी नीरसता
और ग भीरता छोड़ देती ह. तु हारे जीवन म चंचलता आ जाती है. तुम इस जगत को
ा डीय नृ य क
े प म देखते हो — आकार का नृ य — न क
ु छ अ धक, न कम.
जब तुम जान जाते हो क वा तव म तुम या हो, तु हारे भीतर शा त का जीव त बोध
थायी हो जाता है. तुम उसे आन द भी कह सकते हो, य क वही तो आन द है — क पन
भरी जी वत शा त. आकार हण करने से पहले क
े जीवन त व क
े प म अपने को जानना
ही आन द है. यही अपने होने का आन द है, तुम वा तव म जो हो उसीका.
जस कार पानी ठोस, तरल और गैस क
े प म हो सकता है, उसी कार चेतना भी
शारी रक त व क
े प म “ठोस”, बु और वचार क
े प म “तरल” और शु चेतना क
े
ी े ी ी ै
39. प म आकारहीन देखी जा सकती है.
शु चेतना आकार लेने से पहले जीवन है और यह जीवन आकार क
े संसार म “तु हारी”
आंख ारा ही देखता है, य क तुम ही चेतना हो. जब अपने को उस प म पाते हो, तब
तुम येक व तु क
े भीतर अपने को पहचान लेते हो. यह पूरी तरह साफ़-साफ़ य ान
क थ त है. तुम अब अपने बो झल अतीत से जुड़ा अ त व नह हो, जो वचार का ऐसा
पदा बन जाता है, जससे होकर आने वाले अनुभव क ा या क जाती है.
जब तुम बना अथ लगाए कसी व तु को महसूस करते हो, तो तु ह तब इस बात का ान
हो जाता है क वह या है, जसे महसूस कर रहे हो. श द क
े प म य द हम कहना पड़े,
तो हम कह सकते ह क, जहां य ान घ टत होता है, वहां सजग अ तर-शा त का े
बन जाता है.
आकारहीन चेतना “तु हारे” ारा ही अपने वषय म जाग क हो जाती है.
ब त से लोग का जीवन ज़ रत और भय ारा ही चलता है.
अपने को और अ धक ‘पूण’ बनाने क
े लए अपने आप म जोड़ने क ज़ रत ही इ छा है.
हर तरह का भय क
ु छ खोने का और अ त व खो देने या उसक
े कम हो जाने का भय होता
है.
ये दोन ही याएं इस त य म क अ त व को न तो लया और न ही दया जा सकता है,
कावट बन जाती ह. अ त व अपनी पूणता म तु हारे ही अ दर है, यही वतमान है.
40. अ याय 6
वीक
ृ त और समपण
जब भी तु ह समय मले अपने भीतर “झांको.” उस ण अपनी बाहरी प र थ तय क
े
बीच देखो क तुम कहां हो, तुम कसक
े साथ हो और तुम या कर रहे हो और अपने वचार
और भावनाएं जानो, अंदर और बाहरी प र थ तय क
े बीच या तुम अचेतन म ही संघष
पैदा कर रहे हो? या तुम अनुभव कर सकते हो क जो भी वा तव म है , उसक
े वरोध म
अपने अ तर म खड़ा होना कतना पीड़ा देने वाला होता है?
जब तुम इसे पहचान लेते हो, तब यह भी समझ लेते हो क तुम इस थ क
े संघष —
अ तर क
े यु क दशा को छोड़ देने क
े लए अब वतं हो.
य द तु ह अपने अ तर क
े स य को उस ण करना पड़े, तो येक दन म कतनी बार
तु ह यह कहना पड़ेगा, “म जहां पर ं, म वहां नह होना चाहता.” ै फक जाम, तु हारे
काम का थान, एयरपोट का लाउंज या जन लोग क
े साथ तुम हो, जहां कह भी हो, वहां
न होने क इ छा का अनुभव क
ै सा होता है?
यह स य है क क
ु छ जगह को छोड़ देना ही अ छा होता है और तु हारे करने क
े लए
कभी-कभी यही सबसे सही काम होगा. कई प र थ तय म उ ह छोड़ देने से समाधान
संभव नह होता. ऐसी थ तय म “म यहां नह होना चाहता ं” क
े वल थ ही नह ,
ी ो ै औ े े ो ो ी े ी
41. ब क क ठन भी होता है. यह थ त तु ह और तु हारे नज़द क क
े लोग को ःखी कर देती
है.
यह कहा गया है क “तुम जहां जाते हो, वह पर होते हो.” सरे श द म “तुम यहां पर
हो.” हमेशा. या इसे वीकार करना मु कल है?
या येक इ य ान व अनुभव क मान सक प से नशानदेही करने क तु ह ज़ रत
है? या तु ह अ सर प र थ तय और लोग क
े साथ लगातार संघष करते रहना पड़ता है,
जहां तु ह वा तव म जीवन क
े साथ पस द या नापस द क
े त या वाले स ब ध रखने क
आव यकता हो, ज़ री है? या यह अ तर क गहराई म दबी एक मान सक आदत है,
जसे छोड़ा जा सकता है? यह बना क
ु छ कए इस ण को जैसा है, उसी प म वीकार
करने से हो सकता है.
वभाव वाला और त या करने वाला “नह ” अहंकार को मज़बूत बनाता है. “हां” उसे
कमज़ोर करता है. तु हारे व क पहचान अहंकार समपण क
े आगे जी वत नह रह
पाती.
“मुझे ब त क
ु छ करना है.” हम ऐसा मान भी ल, पर तु तु हारे काम का तर या है? काम
पर जाने क
े लए गाड़ी चलाना, अपने मुव कल से बात करना, क यूटर पर काम करना,
छोटे-मोटे काम नपटाना, ऐसे अन गनत काम करना, जो तु हारे दै नक जीवन का ह सा ह.
तुम जो भी करते हो, उसम कतने नपुण हो? तु हारा यह काय करना समपण का है या
बना समपण का? यही तु हारे जीवन म सफलता को न त करते ह, यह नह क तुमने
कतना प र म कया. प र म तनाव और थकान क ओर इशारा करता है — भ व य म
एक न त ल य पर प ंचने क घोर इ छा अथवा कसी वशेष प रणाम को ा त करने क
े
लए.
े ी ऐ ो े ो ो ऐ ो
42. या तुम अपने भीतर ऐसा एक त व खोज सकते हो, जो तु ह ऐसा एहसास करवाए क जो
क
ु छ भी तुम कर रहे हो, उसे न करना चाहते हो? यह जीवन को अ वीकार करना है,
इस लए एक न त सफल प रणाम स भव नह .
य द तुम अपने भीतर यह खोज सकते हो, तब या तुम उसे छोड़ भी सकते हो और जो
क
ु छ भी कर रहे हो, उसी म डूब सकते हो.
“एक समय म एक ही काम करना” एक ज़ेन गु ने ज़ेन क इस कार ा या क .
एक समय म एक काम करने का मतलब है, जो क
ु छ भी करो, उसम पूणता हो, उस पर
अपना पूरा यान दो. यह सम पत या है — अ धकार देने क या.
“जो है” उसक वीक
ृ त तु ह गहराई क
े उस तल तक ले जाती है, जहां तु हारी अ तर क
दशा, यहां तक क तु हारी व क अनुभू त, बु ारा कए गए “अ छे” या “बुरे” क
े
नणय पर ब क
ु ल नभर नह करती.
जब तुम जीवन क
े “होने को” को “हां” कर देते हो, जब तुम इस ण को इसी प म
वीकार कर लेते हो, तब तुम अपने भीतर व तार क
े भाव को अनुभव कर सकते हो, जो
क गहरी शा त दान करता है.
ऊपरी तौर पर तुम धूप क
े दन म ख़ुश और वषा क
े दन म उतना ख़ुश नह रहते, तुम एक
म लयन डालर जीतने पर ख़ुश होगे और अपना सब क
ु छ खो देने पर ःखी हो जाओगे.
ख़ुशी और ःख, इनम से कोई भी उतनी गहराई तक अब कभी नह प ंचता. ये तु हारे
अ त व क ऊपरी सतह पर लहर मा होते ह. बाहरी प र थ तयां क
ै सी भी य न ह ,
तु हारे भीतर क बु नयाद शा त को भा वत नह करत .
“जो है” उसका वीकार तु हारे भीतर क गहराइय क सीमा प करता है, जससे
लगातार ऊपर नीचे होने वाले वचार और भावना क
े ऊपर तु हारी न तो बाहरी, न ही
भीतरी प र थ तयां नभर करती ह.
43. जब तुम यह जान जाते हो क अनुभव का अ थायी वभाव और जगत तु ह क
ु छ भी
थायी दान नह कर सकते, तब समपण आसान हो जाता है. अहंकारी व क इ छा
और भय क
े बना तुम लोग से मलने लगते हो, अनुभव और काम म त हो जाते हो.
कहने का मतलब है, तु ह कोई ख़ास प र थ त, , थान या घटना स तोष दान करे
या ख़ुश करे, ऐसी आशा तुम नह करते. तुम उसका अद्भुत और अधूरा वभाव ऐसे ही
वीकार कर लेते हो.
आ य क बात तो यह है क जब तुम कसी कार क कोई अस भव इ छा नह करते,
येक प र थ त, , थान अथवा घटना न क
े वल तु ह स तोष दान करते ह, ब क
और भी मा फ़क शा त देने वाले हो जाते ह.
जब तुम इस ण को पूरी तरह से वीकार कर लेते हो, जब तुम“जो है” से अब और तक
नह करते हो, तो सोचने क मजबूरी कम हो जाती है और सजग अ तर-शा त उसका
थान ले लेती है. तुम पूरी तरह सचेत हो, फर भी बु इस ण को कसी ख़ास नाम से
नशानदेही नह करती. अ तर क तरोध न करने वाली थ त तु ह बना शत नमल
चेतनता क ओर ले जाती है, जो सचमुच मनु य क बु म अनंत प म महान है. यह
व तृत बु तब तु हारे ारा अपने आपको बयान करती है और सहायता भी करती है. यह
तु हारे भीतर से और बाहर दोन तरह से होता है. इसी लए अ तर क
े ं को छोड़ देने से
तुम देखते हो क अ सर प र थ तयां बेहतर हो जाती ह.
या म कह रहा ं, “इस ण का आन द उठाओ, ख़ुश रहो?” नह .
यह ण “जैसा है” उसे वैसे ही अपनाओ, यही काफ़ है.
ै े ी े े
44. समपण का मतलब है इस ण क
े त समपण, उस कहानी क
े त नह , जसक
े ारा तुम
इस ण क ा या करते हो और उसक
े सामने अपने आपको झुका देने क को शश करते
हो.
उदाहरण क
े लए, तुमम कसी कार क वकलांगता हो और तुम अब चल नह सकते हो,
यह थ त उसी कार है.
तु हारी बु अब एक कार क कहानी शायद ऐसे बनाएगी, “मेरा जीवन क
ै सा हो गया है.
म एक हीलचेयर म ही ख़ म हो जाऊ
ं गा. ज़दगी ने मेरे साथ ब त ही बेरहमी से अ याय
भरा वहार कया है. म तो यह नह चाहता था.”
या तुम इस ण क
े होने को वीकार कर सकते हो और म त क ारा उसक
े इद- गद
बनाई गई कहानी से मत नह होते?
समपण तब ही आता है, जब तुम यह नह पूछते, “यह सब मेरे साथ ही य हो रहा है?”
सबसे अ धक अ वीक
ृ त और ःख देने वाली प र थ त भी अपने भीतर एक गहरी अ छाई
को छपाए ए है. येक घोर वप म ई रीय क
ृ पा का बीज छपा होता है.
इ तहास गवाह है, ऐसे ब त सारे ी व पु ष ए ह, ज ह ने ब त अ धक नुकसान,
बीमारी, क़
ै द या फर सामने खड़ी मृ यु क अनचाही मौजूदगी को, जसे साधारण मनु य
अ वीकार करता है, उसको वीकार कया और “उस शा त को, जो सभी कार क
े ान से
उ च है,” उसको ा त कया.
अ वीक
ृ त को वीकार करना ही इस जगत म ई रीय क
ृ पा का सबसे बड़ा ोत है.
ऐ ी ी ी ी औ ो े
45. ऐसी भी प र थ तयां आती ह, जब सभी कार क ा याएं और उ र असफल हो जाते
ह. जीवन का कोई भी मतलब नह रह जाता या जब कोई तु हारे पास वप म सहायता
क
े लए आता है और तुम नह जानते क या कहना या करना है.
जब तुम पूरी तरह वीकार कर लेते हो क तुम क
ु छ नह जानते, तब अपनी सी मत बु से
उ र खोजने क
े लए तुम संघष करना ब द कर देते हो, तो उसी ण एक बेहतर बु
तु हारे ारा काय करना शु कर देती है. वचार भी उससे लाभ ा त कर सकते ह, य क
बेहतर बु उनम वा हत हो सकती है और उसे ेरणा देती है.
समपण का अथ कई बार समझने क
े य न को छोड़ देना और बना जानकारी क
े साथ
संतु रहना होता है.
या तुम कसी को जानते हो, जसका मु य काम अपने और सर क
े जीवन को ःखी
बनना और अ स ता फ
ै लाना ही होता है? उ ह मा कर दो, य क वे भी मानवता क
े
जाग क होने का ही एक ह सा ह. जो भू मका वे नभाते ह, वह अहंकारी बु क
े बुरे
सपने क गहराई, समपण न करने क दशा को ही बताता है. इसम गत क
ु छ नह
होता. वे असल म ऐसे नह ह.
हम कह सकते ह, समपण तरोध से वीकार क
े बीच का प रवतनकाल है, “न” से “हां”
तक का. जब तुम समपण करते हो, तो तु हारे व का बोध अ त व क पहचान क
त या और मान सक फ़
ै सले से हटकर त या या फ़
ै सले क
े ‘चार तरफ़ थान’ म
बदल जाता है. आकार ( प) ारा अ त व क पहचान वचार अथवा भावना से
थाना तरण है. अपने इस प क पहचान क
े लए, जो आकार क
े बना है, यही एक
वशाल जाग कता है.
ो ी े ी े ो ओ े ी
46. जो क
ु छ भी तुम पूण प से वीकार करते हो, वह तु ह शा त क ओर ले जाएगा, वीक
ृ त
भी, जसे तुम वीकार नह कर सकते उसे भी, य क तुम तरोध म हो.
जीवन को अक
े ला छोड़ दो. उसे चलने दो.
47. अ याय 7
क
ृ त
हम क
ृ त पर अपनी शारी रक सुर ा क
े लए ही नभर नह रहते, हमारे ल य का सही
रा ता दखाने क
े लए भी हम क
ृ त क आव यकता होती है, अपने म त क क क़
ै द से
बाहर नकलने का रा ता सुझाने क
े लए ही. हम काम करने, सोचने और याद म या फर
भ व य म क
ु छ पाने म ही खो गए ह, सम या क नयां और क ठनाइय क भूलभुलैयां
म खो गए ह.
प थर, पौधे और पशु जो अभी तक जानते ह, हम वह सब भूल गए ह. हम भूल गए ह क
हम क
ै से रह , शा त रह, अपने आप म रह, जहां जीवन है, वहां रह, “यहां” और इस
वतमान म.
जब तुम अपना यान कसी ाक
ृ तक व तु म लगाते हो, ऐसी व तु, जो आदमी क
े दख़ल
क
े बना अ त व म आई हो, तुम धारणागत सोच क क़
ै द से बाहर आ जाते हो और एक
सीमा तक, अ त व से जुड़ने क दशा म भाग लेते हो, जसम सभी ाक
ृ तक व तुएं अभी
तक मौजूद ह.
कसी प थर, पेड़ या फर पशु म अपना यान लगाने का मतलब यह नह ह क उसक
े बारे
म सोचो , ब क उसे देखो और अपनी जाग कता म उसे पकड़े रखो.
े े ी ओ ो ै े ो