तंत्रिका तंत्र पर योग का प्रभाव (Effect of yoga on nerves system)

Effects of yoga on Nerves System ; A assignment Work Done by Dsvv M.A Human consciousness & yogic Science Student. Effect of Shatkarma , Asanas, Pranayamas, Mudra bandh, Pratyahar, dharna- Dhyana Mantra yoga, Kundalini etc On Nerves System. visit my blog https://www.omvishwajit.blogspot.com

तंत्रिका तंि पर योग का प्रभाव एक अध्ययन
Assignment Work
( Paper- 3,मानव शरीर रचना एवं क्रिया क्रवज्ञान )
वर्ष – 2016 (2nd sem.)
त्रनर्देत्रिका –
डॉ.सररता प्रजापक्रत
सहायक प्रोफ़े सर
योग एवं स्वास््य क्रवभाग देव संस्कृ क्रत क्रव.क्रव.
हररद्वार (उतराखंड)
प्रस्तुत कताष-
क्रवश्वजीत वमाा
एम.ए. (मानव चेतना एवं योग
क्रवज्ञान) -( क्रद्वतीय सेमस्टर)
देव संस्कृ क्रत क्रवश्वक्रवद्यालय
गायत्री कु ञ्ज- शांक्रतकुं ज , हररद्वार ( उत्तराखंड ) -२४९४११
1
तंक्रत्रका तंत्र पर योग का प्रभाव
विषय सूची
 अध्याय -१
 अध्ययन की आवश्यकता
 अध्याय -२
 तंत्रिका तंि परिचय
 केन्द्रीय तंत्रिका तंि
 परिसिीय तंत्रिका तंि
 अध्याय -३
 योग परिचय
 प्रकाि एवं अंग
 अध्याय -४
 योग के त्रवत्रिन्न अंगो के अभ्यासों का तंत्रिका तंि पि प्रिाव
 अंतरिक्ष तंत्रिका तंि एवं कुण्डत्रिनी
 अध्याय - ५
 त्रनष्कर्ष
 सन्द्दिष सूची
2
 अध्याय -१
अध्ययन की आवश्यकता
मानिीय शरीर की गविविवियों का सञ्चालन एिं वनयंत्रण विविन्न िंत्रों के द्वारा होिा है जैसे-
कं कावलय िन्त्र , पेशीय,रक्त पररसंचरण,पाचन,उत्सजजन .. एिं िंवत्रका िंत्र ! वजनमे से िंवत्रका िंत्र
शरीर के सिी िंत्रों का वनयंत्रक संचालक है ! वजस पर समस्ि शारीररक मानवसक वियाये वनिजर करिी
है !उसी के वनर्देशानुसार ि प्रेरणा विया के अनुसार नाना प्रकार की शारीररक – मानवसक कायज सुचारू
रूप से संपन्न होिे है !
जब वकन्ही कारणों से उसमें कोई समस्या अथिा अस्िस्थिा उत्त्पन्न होिी है िो उसका प्रिाि कई
शरीररक मानवसक रोगों के रूप में वर्दखाई र्देिी है ! जैसे आिुवनक िौविकिार्दी जीिन शैली से बढ़िे
शारीररक – मानवसक रोगों जैसे – वचंिा ,अिसार्द, वहंसा, अपराि , वनराशा, OCD, मनोविर्दावलिा,
िय, िोि आवर्द | इन सबके सफल स्थाई वनर्दान हेिु िंवत्रका िंत्र और उस पर योग अभ्यास के पड़ने
िाले प्रिाि का गहनिापूिजक िैज्ञावनक अिययन की अत्यंि आिश्यकिा है |
समग्र स्वास््य प्रबंधन हेतु - समग्र स्िास््य शरीर के समस्ि िंत्रों के स्िास््य होने पर वनिजर करिी
है ! और सिी िंत्रों का स्िास््य और कुशल कायज सम्पार्दन िंवत्रका िंत्र पर वनिजर करिा है ! अि: समग्र
स्िास््य प्रबंिन के दृविकोण से इस विषय पर अध्ययन की महिी आिश्यकिा है ! िावक विविन्न प्रकार
के शारीररक – मानवसक रोगों से मुक्त रहा जा सके और रोगों का सफल उपचार िी वकया जा सके |
शारीररक , मानवसक, सामावजक एिं आवत्मक (अध्यावत्मक) उत्कषज हेिु – शारीररक , मानवसक एिं
अन्य उत्कषज हेिु स्ियं का ज्ञान और शारीररक वियायों पर पूणज वनयंत्रण एिं कुशल सञ्चालन का होना
आिश्यक है ! वजसे हम िंवत्रका िंत्र के माध्यम से अविक स्पििा और व्यापकिा से समझ सकिे है |
इस प्रकार से “िंवत्रका िंत्र पर योग का प्रिाि” िैज्ञावनक अध्ययन का एक महत्िपूणज एिं अत्यविक
आिश्यक विषय हो जािा है ,वजसे प्रस्िुि कायज द्वारा जनकल्याणाथज एक छोटी से योगर्दान समवपजि करने
का प्रयास है |
3
अध्याय -२
तंत्रिका तंि परिचय
मानि शरीर कई अंगो के वमलने से बना है , जो विशेष प्रकार के कायों का संपार्दन करिे है ! इन अंगो से
वमलकर पुन: कई िंत्रों का वनमाजण होिे है जैसे – अवस्थ िंत्र , पेवशये िंत्र, पाचन िंत्र , श्वसन िंत्र, रक्त पररसंचरण
िंत्र , अंि:स्रािी िंत्र,िंवत्रका िंत्र आवर्द !इनमे से सिी िंत्रों का अपना विशेष महत्ि है, वजसके सवम्मवलि कायज
संपार्दन से सम्पूणज शरीर स्िस्थ,सबल और कायज सक्षम बना रहिा है !
िंवत्रका िंत्र शरीर का एक महत्िपूणज िंत्र या संस्थान है, जो सम्पूणज शरीर की िथा उसके विविन्न वियायों
का वनयंत्रण, वनयमन िथा समन्ियन करिा है और संवस्थवि बनाये रखिा है ! शरीर के सिी एवछछक एिं
अनेवछछक कायों पर वनयंत्रण िथा समस्ि संिेर्दनाओंको ग्रहण कर मवस्िक में पहुचना इसी िंत्र का कायज है !
यह शरीर के समस्ि अंगो की आंिररक एिं बही िािािरण के पररििजनो के अनुसार समंजन संिि बनिा है िथा
िंवत्रका आिेगों का संिहन करिा है !
िंवत्रका िंत्र शरीर की असंख्य कोवशकाओंकी वियाओंमें एक प्रकार का सामंजस्य उत्पन्न करिा है
िावक सम्पूणज शरीर एक इकाई के रूप में कायज कर सके !संिेर्दी िंवत्रकाओं द्वारा शरीर के अन्र्दर एिं बाहर
िािािरणगि पररििजन या उद्दीपन िंवत्रका िंत्र के सुषुम्ना या स्पाइनल कार्ज िथा मवस्िष्क में पहुचिे है !जहााँ
पर उनका विश्लेषण होिा है और अनुविया में प्रेरक िंवत्रकाओंद्वारा शरीर की विविन्न वियायें संपावर्दि होिी है
!
िंवत्रका िंत्र िंवत्रका उत्तकोंसे बना होिाहै, वजनमें िंवत्रका कोवशकाओंया न्यूरांस और इनसे सम्बंविि
िंवत्रका िंिुओंिथा विशेष प्रकार के संयोजी उत्तक वजसे न्युरोवललया कहिे है, का समिेश होिा है !
तंत्रिका तंि के त्रवभाग
िंवत्रका िंत्र के वनम्न िीन िाग होिे है –
1. केंद्रीय िंवत्रका िंत्र
2. पररसरीय िंत्रका िंत्र एिं
3. स्िायत्त िंवत्रका िंत्र
१.कें द्रीय तंत्रिका तंि – इस िाग में मवस्िष्क एिं सुषुम्ना का
समािेश होिा है िथा यह मवस्िष्कािरणो से पूणजिया ढका रहिा है !
इसका संवक्षप्त वििरण वनम्नवलवखि है -
4
के न्द्रीय तंत्रिका तंि
भाग क्रस्तक्रि संरचना काया क्षेत्र अन्य
मत्रस्तष्क
अग्रमत्रस्तष्क
कपाल गुहा में वस्थि गहरी
लम्बिि र्दरार या विर्दर के द्वारा
र्दावहने एिं बाएं अिज गोलािज में
वििक्त
अिज गोलार्द्ज के खंर् है – १.फ्रंटल
लोब, २.पैराइटल,
३. आवससवपटल एिं
4. टेम्पोरल लोब
१.संिेर्दी क्षेत्र २.प्रेरक क्षेत्र
३.प्रेरक पूिज क्षेत्र 4.
ब्रोकाज क्षेत्र ५.िाणी क्षेत्र
६.दृवि क्षेत्र ७.श्रिणीय
क्षेत्र ८.स्िार्द क्षेत्र९.घ्राण
क्षेत्र १. बेसल
गेंवगवलया –
२.थेलेमस-
३.
हाइपोथैलेमस
-
मध्यमत्रस्तष्क
अग्र मवस्िष्क और पश्च
मवस्िष्क के बीच और मवस्िष्क
स्िम्ि के ऊपर वस्थि
इसमे सेरीब्रम पेड़न्कल्स एिं कारपोर
सिाड्रीजेवमन का समािेश होिा है जो
मवस्िष्कीय कुल्या को घेरे रहिे है जो ३
ि 4 िेंविकलो के बीच एक नवलका
होिी है !
सुपीररयर कोवलकुली से
वकसी िास्िु को र्देखने की
विया
इवन्फरीर कोवलकु ली द्वारा
सुनने की विया संपन्न
होिी है !
पश्चमत्रस्तष्क
मवस्िष्क के सबसे पीछे का िाग
होिा है ! वजसमे पोंस, मेर््यूला
आब्लान्गेटा , िथा अनुमवस्िष्क
का समािेश
मक्रस्तष्कावरण
मवस्िष्कािरण या मेवनवन्जज
सुरक्षात्मक वझवलयां है
खोपड़ी एिं मवस्िष्क के
बीच वस्थि रह कर सुषुम्ना
को पूणज रूप से ढके रखकर
अघाि से बचािी है !
डयूिामैटि सबसे उपरी आिरण , कठोर संयोजी उत्तको
से बनी होिी है र्दो परि होिी है
एिाक्नोइड मैटि
र््यूरामैटर के ठीक नीचे वस्थि पिला और
कोमल आिरण होिा है जो िंिु एिं लचीले
उत्तको का बना होिा है !
पायामैटि
एरासनोइर् मैटर के नीचे िाला आिरण
, संयोजी उत्तको की पिली वझल्ली
वजसमे बहुि सी रक्तिावहवनयााँ होिी है !
मक्रस्तष्कवेंक्रिकल
मवस्िष्क में वस्िथ आंिररक
गुहायें होिी है , वजनमे
सेररब्रो-स्पाइनल द्रि िरा
होिा है !
लेटिल-२ िृहर्दाकार, प्रमावस्िकीय गोलािो में वस्थि
सेररब्रो-स्पाइनल द्रि का
मुख्य कायज नाजुक िंवत्रका
उत्तकों एिं अवस्थल गुहा
विवत्तयों के बीच पानी की
गद्दीनुमा रचना बनाकर
मवस्िष्क और स्पाइनल
कार्ज की सुरक्षा करिा है
और अघाि अिशोषक की
िावि कायज करिा है
तृतीय वेंत्रिकल र्दायें एिं बाएं थैलेमस के बीच में लेटरल
िेवत्रकल के नीचे वस्थि
चतुर्थ वेंत्रिकल िृिीय िे. के नीचे , पोंस एिं मेर््यूला िथा सेबेलम
के बीच में वस्थि चौरस वपरावमर्ी गुहा
सुषुम्ना(SpinalCord
)
एक मोटी एिं दृढ रस्सी
की िावि लम्बर िवटजब्र
िक िवटजब्रल कालम में
सुरवक्षि रहिी है !
उपिी प्रेिक न्यूिान कोवशका काय प्रमवस्िष्क के प्रीसेंत्रल
सल्कास क्षेत्र में वस्थि होिी है !
एवछछक पेशी गवि और
अनैवछछक पेशीय गवि
का सञ्चालन और
समन्िय !
त्रनचला प्रेिक न्यूिान कोवशकाकाय स्पाइनल कार्ज के िूरे द्रि
के एंटीररयर हानज में होिी है !
5
परिसिीय तंत्रिका तंि
िवन्त्रका िंत्र के इस िाग में मवस्िस्क से वनकालने िाली 12 जोड़ी कपलीय िंवत्रकाओ और स्पाइनल कार्ज से वनकलने िाली
३१ जोड़ी स्पाइनल िंवत्रकाओ का समािेश होिा है , वजनसे शाखाये वनकलकर शरीर के विविन्न अंगो एिं उत्तको में पहुचिी है
!
िंवत्रका
१. संिेर्दी िवन्त्रकाए (sensory or Afferent nerves)
२. प्रेरक या अपिाही िवन्त्रकाए(Motor or Efferent nerves ):- १.सोमैवटक िवन्त्रकाए (somatic nerves ),
२.स्िायत्त िवन्त्रकाए (Autonomic nerves )
३. वमवश्रि िवन्त्रकाए
कपालीय तत्रन्द्िकाए (Cranial nerves)
i. Olfactory nerve(आल्फेसटरी िंवत्रका)
ii. Optic nerve (ऑवटटक िंवत्रका)
iii. Oculomotar nerve (ऑकुलोमोटर िंवत्रका)
iv. Trochlear nerve (िावसलयर िंवत्रका)
v. Trigeminal nerve (िाईजेवमनल िंवत्रका)
vi. Abducent nerve (एब्र्यूसेन्ट िंवत्रका)
vii. Facial nerve (फेवशयल िंवत्रका)
viii. Auditory nerve (ऑर्ीटरी िंवत्रका)
ix. Glassopharyngeal nerve (ललासोफेररवन्जयल िंवत्रका)
x. vagus nerve (िेगस िंवत्रका)
xi. Accessory nerve (एससेसरी िंवत्रका)
xii. Hypoglossal nerve (हाइपोललासल िंवत्रका )
स्पाइनल तत्रन्िकाए (spinal nerves) :-
स्पाइनल कार्ज से ३१ जोड़ी स्पाइनल िवन्त्रकाए वनकलिी है जो , सटी हुई िवटजब्र से बनी इंटरिवटजब्रल रंध्रों से होकर िवटजब्रल
केनाल के बाहर वनकलिी है वजनका नामकरण एिं िगीकरण उन्ही िवटजब्रल के अनुसार वकया जािा है वजन्हें से ये सम्बन्ि होिी
है ये िवन्त्रकाए वनम्नवलवखि है-
 8 जोड़ी सविजकल िंवत्रकाएं
 12 जोड़ी थ्रोवसक िंवत्रकाएं
 ५ जोड़ी लम्बर िंवत्रकाएं
 ५ जोड़ी सेिल िंवत्रकाएं
 १ जोड़ी कावससवजयल िंवत्रकाएं
अध्याय -३
6
योग पररचय
योग विद्या िारििषज की एक अमूल्य सम्पवत्त है। योग िस्िुिः समस्ि मोक्ष सािनाओंमें से सिोत्तम िथा
श्रेष्ठिम सािन पर्द्वि है। इसी योग सािना का अिलम्बन करके वकिने ही योगी, यवि िथा महान् सािक गण
उत्तम योग वस्थवि को प्राप्त करके जीिन काल में ही जीिन मुक्त अिस्था को प्राप्त हो गये। इसकी कोई वगनिी
नहीं।
योग की दृवि के द्वारा ही सृवि और अविसृवि के गूढ़िम रहस्यों का प्रत्यक्ष र्दशजन वकया जािा है।
वर्दव्य र्दशजन, अिीवन्द्रय र्दशजन, ित्िर्दशजन, आत्मर्दशजन िथा ब्रह्मसाक्षात्कार आवर्द िी इसी योग सािना के द्वारा
ही होिे हैं। इसवलये याज्ञिल्सय स्मृवि में िी कहा गया है- ‘‘अयं िु परमो िमो यत्योगेनात्म र्दशजनम्’’ अथाजि्
वजस योग सािना के द्वारा आत्मर्दशजन िथा ब्रह्मसाक्षात्कार हो िही मानि मात्र का परम िमज है।
योग में मनुष्य मात्र के समग्र उत्थान, विकास एिं उत्कषज के अनेकानेक उपाय, प्रयोग सुवनयोवजि
हैं। यह आत्म शवक्तयों को जागृि कर व्यवक्तत्ि के परम वशखर पर पहुाँचने का सािन है। संक्षेप में कहा जा
सकिा है वक योग एक जीिन र्दशजन है, श्रेष्ठ जीिन पर्द्वि है, योग िस्िुिः जीिन जीने की सिजश्रेष्ठ कला है।
योग का अर्थ -
योग शब्र्द की उत्पवत्त संस्कृि िाषा के युज् िािु में घ´्् प्रत्यय लगाके हुई है। वजसका सामान्य अथज होिा है-
जोड़ना। पावणवन व्याकरण के अनुसार गण पाठ में िीन युज् िािु है-
युज्-
1. युज् समािौ (समावि) वर्दिावर्दगणीय- अपने िास्िविक रूप को जानकर उसमें वनमलन रहना।
2. युवजर्योगे (संयोग या जुड़ाि) रुिावर्दगणीय- एकत्व, जुड़ाव, संयोग, मेल या जोड़ना।
3. युज् संयमने (संयम) चुरावर्दगणीय- संयम या वशीकरण। इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम एवं न्द्वचार
संयम।
परिभाषा -
1. महत्रषथ पतंजत्रल के अनुसाि -‘‘योगत्रश्चत्तवृत्रत्तत्रनिोधः’’ (पतंजत्रल.यो.सू. 1/2)
अथाजि् वचत्त की िृवत्तयों का वनरोि ही योग है।
2. गीता के अनुसाि -
 ‘‘योगः कमथसु कौशलम्’’ (गीता 2/50)
अथाजि् कमज करने की कुशलिा ही योग है।
 ‘‘समत्वं योग उच्यते’’ (गीता 2/48)
अथाजि् सुख- र्दुःख, हावन- लाि, सफलिा- असफलिा आवर्द द्वन्द्वों में सम रहिे हुए वनष्काम िाि से कमज करना
ही योग है।
7
 ‘‘दुःख संयोगत्रवयोगं योग संत्रितम्’’ (गीता 6/23)
अथाजि् जो र्दुःख रूप संसार के संयोग से रवहि है उसका नाम योग है।
3. महोपत्रनषद् के अनुसाि -‘‘मनः प्रशमनोपायो योग इत्यत्रभधीयते’’ (महो0 5/42) अर्ाथत् मन के
प्रशमन के उपाय को योग कहते हैं।
4. महत्रषथ यािवल्कक्य के अनुसाि- ‘‘संयोग योगयुक्तो इत्रत युक्तो जीवात्मा पिमात्मनो।’’
अथाजि् जीिात्मा और परमात्मा के वमलन को ही योग कहिे हैं।
5. कै वल्कयोपत्रनषद् के अनुसाि- ‘‘श्रद्धा भत्रक्त ध्यान योगादवेत्रह’’
अथाजि् श्रर्द्ा, िवक्त, ध्यान के द्वारा आत्मा का ज्ञान ही योग है।
6. त्रवष्णुपुिाण के अनुसाि- ‘‘योगः संयोग इत्यक्तः जीवात्मा पिमात्मनो।’’
अथाजि् जीिात्मा िथा परमात्मा का पूणजिः वमलन ही योग है।
7. योगत्रशखोपत्रनषद् के अनु0- ‘‘योग प्राणपानयोिैक्यं स्वि जोिेत अस्तर्ा।’’
सूयथ चन्द्रमसो योग जीवात्मा पिमात्मनः।।’’
अथाजि् प्राण- अपान को रज, िीयज को सूयज एिं चन्द्रमा को िेजवस्ििा एिं शीिलिा को, जीिात्मा एिं परमात्मा
को वमलाना ही योग है।
10. श्रीिामकृ ष्ण पिमहंस के अनु0- परमात्मा की शाश्वि अखण्र् ज्योवि के साथ अपनी ज्योवि को वमला र्देना
ही योग है।
11. युग ऋत्रष के अनु0-
जीिन सािना ही योग है। वचत्त की चेिाओंको बवहमुजखी बनने से रोककर उन्हें अंिमुजखी करना िथा
आध्यावत्मक वचंिन में लगाना ही योग है।
अिाि को िाि से, अपूणजिा को पूणजिा से वमलाने की विद्या योग कही गई है।
12. स्वामी त्रववेकानंद के अनु0-
योग व्यवक्त के विकास को उसकी शारीररक सत्ता के एक जीिन या कुछ घण्टों में संवक्षप्त कर र्देने का सािन है।
13. स्वामी दयानंद के अनुसाि- सजगिा का विज्ञान योग है।
14. त्रवनोबा भावे के अनुसाि -
जीिन के वसर्द्ान्िों को व्यिहार में लाने की जो कला या युवक्त है उसी को योग कहिे हैं।
15. महत्रषथ वत्रशष्ठ के अनु0- संसाि सागि से पाि होने की युत्रक्त योग है।
16. महत्रषथ अित्रवंद के अनु0- अपने आप से जुड़ना ही योग है।
18. िांघेय िाघव के अनु0- त्रशव एवं शत्रक्त का त्रमलन ही योग है।
19. महादेसाई के अनु0- शरीर, मन एिं आत्मा की सारी शवक्तयों को परमात्मा में वनयोवजि करना ही योग है।
8
योग के मुख्य प्रकार व अंग
योग सािना के कई पर्द्वियां िारिीय िांगमय में प्रचवलि है | जो विविन्न प्रकार के सािको के
मनोिूवम एिं शारीररक वस्थवि के अनुरूप अलग – अलग उपयुक्त अभ्यासों को वनरूवपि करिी है, इनमे से सिी योग के
उद्देश्य , शारीररक मानवसक , सामावजक एिं अध्यावत्मक स्िास््य से लेकर मानिीय उत्कषज और परम लक्ष्य की प्रावप्त में
सहायक है , जो वनम्नवलवखि है –
हठ योग – षट्कमज,आसन ,प्राणायाम ,मुद्रा-बंि,प्रत्याहार,ध्यान,समावि !
ज्ञान योग - कमजयोग - िवक्तयोग !
अिांगयोग – यम वनयम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,िारणा,ध्यान,समावि !
राजयोग ,
Researches Reviews
Effects of yoga on the autonomic nervous system, gamma-aminobutyric-acid,
and allostasis in epilepsy, depression, and post-traumatic stress disorder
CC Streeter, PL Gerbarg, RB Saper, DA Ciraulo… - Medical hypotheses, 2012 - Elsevier
Effect of yoga-based and forced uninostril breathing on the autonomic nervous
system
P Raghuraj, S Telles - Perceptual and motor skills, 2003 - amsciepub.com
Effect of integrated yoga on stress and heart rate variability in pregnant women
M Satyapriya, HR Nagendra, R Nagarathna… - International Journal of …, 2009 - Elsevier
Effects of yoga versus walking on mood, anxiety, and brain GABA levels: a
randomized controlled MRS study
CC Streeter, TH Whitfield, L Owen… - The Journal of …, 2010 - online.liebertpub.com
9
The effects of yoga on hypertensive persons in Thailand
R McCaffrey, P Ruknui, U Hatthakit… - Holistic nursing …, 2005 - journals.lww.com
PDF] Stress due to exams in medical students-a role of Yoga
A Malathi, A Damodaran - Indian journal of physiology and pharmacology, 1999 - ijpp.com
Yoga as a complementary treatment of depression: effects of traits and moods on
treatment outcome
D Shapiro, IA Cook, DM Davydov, C Ottaviani… - Evidence-based …, 2007 - hindawi.com
Effect of Sahaja yoga practice on stress management in patients of epilepsy
U Panjwani, HL Gupta, SH Singh… - Indian journal of …, 1995 - ijpp.com
Yoga as a complementary treatment of depression: effects of traits and moods on
treatment outcome
D Shapiro, IA Cook, DM Davydov, C Ottaviani… - Evidence-based …, 2007 - hindawi.com
... The Iyengar approach in the present study focused mainly on more active asanas and included
only brief periods of relaxation and breathing exercises. ... Both rate and depth of respiration affect
HRV (56) and may have a general effect on the autonomic nervous system or an ...
Impact of Yogic Shatkarma in psycho-somatic health of female teachers
M Rastogi - indianyoga.org
... Impact of Yogic Shatkarma in psycho-somatic health of ... To assess the impact of yogic intervention
parameters on psycho-somatic health. ... 2. Kumar, Kamakhya, Sharma, charu, Kumar Abhishek
(2010)-effect of jal nati on optic nerve conduction velocity, Yoga mimansa april 2010 ...
EFFECT OF UJJAIYEI PRANAYAMA ON PSYCHOMOTOR ABELITIES OF
VOLLEYBALL PLAYERS
GS Singh - Maharani Laxmibai - mpcolleges.nic.in
... This is done through the practice of Asana, Pranayama, Mudra, Bandha, Shatkarma and
Meditation ... Pranayama is more important because it produces deeper effects as far as the outcomes
are ... STUDY ON THE EFFECT OF YOGA (YOGASANS, PRANAYAM AND MEDITATION). ...
Study on the effect of Pranakarshan pranayama and Yoga nidra on alpha EEG &
GSR
K Joshi - 2009 - visionlibrary.vethathiri.edu.in
... Keywords: Asana, Pranayama, Shatkarma, Yoga Nidra, ESR IPC Int. ... of Literature Various studies
have been done in different part of world for observing the effect of Yoga ... Yoga classes; so all
had been practicing the set of Asanas, Pranayamas and Shatkarmas regularly (except ...
Effect of pranayama & yoga-asana on cognitive brain functions in type 2
diabetes-P3 event related evoked potential (ERP).
T Kyizom, S Singh, KP Singh… - Indian Journal of …, 2010 - search.ebscohost.com
... An improvement in the latency and amplitude of N2 and P3 waveform is seen in theyoga group
which regularly and strictly performed pranayama and asanas for 45 days (Tables IV ... The effect
of yoga therapy in diabetes mellitus. ... Human auditory potentials: II Effects of attention. ...
The neural basis of the complex mental task of meditation: neurotransmitter and
neurochemical considerations
10
AB Newberg, J Iversen - Medical hypotheses, 2003 - Elsevier
... 1 h when they were again injected with the tracer while they continued to meditate. ... urine are
significantly increased, suggesting an overall elevation in (5-HT) during meditation (38 ... resulting
in internally generated imagery that has been described during certain meditative states. ...
Changes in EEG and autonomic nervous activity during meditation and their
association with personality traits
T Takahashi, T Murata, T Hamada, M Omori… - International Journal of …, 2005 - Elsevier
... Successful meditative experience appears to be mediated by a switching-off mechanism of ... of
sympathetic tone) (Table 2). Therefore, internalized attention enhanced by meditation
(characterized by ... the slow alpha power in the frontal area) has an inhibitory effect on sympathetic ...
Spectral analysis of the central nervous system effects of the relaxation
response elicited by autogenic training
GD Jacobs, JF Lubar - Behavioral Medicine, 1989 - Taylor & Francis
... alterations. Research on the central nervous system (CNS) effects of relaxation
techniques is much more limited. Of the various relaxation techniques, only Dr ...
Knoxville. meditation has been the focus of significant research. ...
Changes in EEG and autonomic nervous activity during meditation and their
association with personality traits
T Takahashi, T Murata, T Hamada, M Omori… - International Journal of …, 2005 - Elsevier
... Successful meditative experience appears to be mediated by a switching-off mechanism of ... of
sympathetic tone) (Table 2). Therefore, internalized attention enhanced by meditation
(characterized by ... the slow alpha power in the frontal area) has an inhibitory effect on sympathetic ...
11
 अध्याय -४
योग के क्रवक्रभन्न अंगो व अभ्यासों का तंक्रत्रका तंत्र पर प्रभाव
 षट्कमो का प्रिाि  आसनों का प्रिाि  प्राणायाम का प्रिाि  मुद्रा- बंि का प्रिाि
 प्रत्याहार का प्रिाि  िारणा- ध्यान -समावि (संयम ) का  मंत्र योग का प्रिाि  कुण्र्वलनी योग का प्रिाि
1. षट् कमों का प्रभाव –
१.धौक्रत -वातसार वाररसार अक्रननसार बक्रहस्कृ त दंतमूल क्रजह्वामूल कणारंध्र कपालरंध्र
 आहारनाल,अमाशय,यकृि ,अलनाशय,छोटी आंि -
बड़ी आंि, मलाशय, गुर्दा िक सम्पूणज शरीर की शुवर्द् !
 सम्बंविि िंवत्रका के संिेर्दनशीलिा में िृवर्द् होिी
,िंवत्रकाओ को शुर्द् रक्त ि पोषक ित्ि की प्रावप्त त्िररि
वियाशवक्त का विकास सिाजयकल,ब्रैवन्कयल टलेससस
पर प्रिाि पड़िा है !
 औटोनोवमक टलेससेस जैसे कावर्जयक,वसवलयक,
हायपोगेवस्िक पर सकिात्मक प्रिाि पड़िा है !
घ्राण(आल्फेसटरी) िंवत्रका, आवटटक
िंवत्रका, ऑर्ीटरी, िेगस आवर्द कापालीय
िंवत्रकायों की शुवर्द्, पुवििंवत्रका आिेगों की
त्िररि प्रिाह से, नेत्र ज्योवि बढािी यथा
“वर्दव्य दृवि प्रजायिे”, वर्दव्य श्रिण क्षमिा
,फेफड़े , स्िर यन्त्र आवर्द का कुशल कायज
संचालन !वसम्पेथेवटक िंवत्रकाओं – नेत्र
,लार, मुख आवर्द अंगो के वियायो पर
वनयंत्रण स्थावपि होिी है |
दण्ड वमन वस्त्र मूलशोधन ३.नेक्रत - जल सुत्र रबर
आहारनाल,अमाशय,यकृि ,अलनाशय,छोटी आंि बड़ी
आंि, मलाशय ि गुर्दा इससे सम्बंविि स्पाइनल िवन्त्रका
पर सकारात्मक प्रिाि !
कपावलये िंवत्रका सबल, स्िस्थ ! वियाशीलिा,
स्मृवि की िृवर्द्, िनाि , वचंिा,अिसार्द से मुवक्त
!
२.िवस्ि(जल,स्थल) ; ३.नौली(िाम,मध्य,र्दवक्षण ) ५.त्राटक ,६.कपालिावि(िािकमज ,व्युत्िम,शीििम )
12
2. आसनो का प्रिाि
1.शिीि संवधथनात्मक आसन
• सिाांग,िुजंग,हलासन, िनुरासन, शीषाजसन
पवश्चमोत्तान आवर्द !
• िंवत्रका कोवशका मजबूिी, आिेगों का िीव्र संचार
!
• एवछछक -अनैवछछक वियायों का कुशलिा पूिजक
सञ्चालन क्षमिा का विकास होिा है !
• संिुवलि शाररररक वस्िवथ बनिी है !
2.ध्यानात्मक आसन -
• पद्मासन,सुखासन,िज्रासन,वसर्द्, स्िवस्िक,
िद्रासन आवर्द
• मांसपेवशयों ि अंगो को पयाजप्त आराम िंवत्रवकये
उद्दीपनो में कमी से CNS को नविन उजाज की
प्रावप्त !
• अनुकम्पी – परानुकम्पी िंवत्रका पर सकारात्मक
प्रिाि !
• िंवत्रवकये क्षमिा, संिेर्दनशीलिा में िृवर्द् !
• जागरूकिा - एकाग्रिा का विकास !
13
3.गत्यात्मक आसन -
• सूयजनमस्कार, प्रज्ञा योग , िामज -उप , पिन
मुक्तासन आवर्द
• िंवत्रका आिेगों का िीव्र प्रिाह , शारीररक
अंगो पर सूक्षम वनयंत्रण क्षमिा !
• शवक्त ,आरोलयिा , संिुलन में िृवर्द् !
• वचंिा , अिसार्द ,वनराशा , िय,आत्महीनिा से
मुवक्त !
4.त्रवश्रात्रन्तकािक -
• मकरासन,विष्णु आसन, शिासन आवर्द !
• सम्पूणज शरीर के साथ – साथ – िंवत्रका िंत्र को
विश्रांवि- पोषण !
• अनािश्यक िनाि से मुवक्त !स्फूविज,उत्साह का
पुनः संचार होिा है !
• िनाि ,रक्त चाप ,िोि ,वचंिा, िय आवर्द से
मुवक्त !
५.संिुलनात्मक आसन
 कुकुटासन ,बकासन, हंसासन, मयूरासन,
िृवश्चकासन, नटराज आवर्द
 संिुवलि शारीररक अिस्था सर्देि स्ियं बना
रहिा है !
14
 एकाग्रिा , िारण शवक्त का विकास होिा है !
 संिेर्दी एिं मोटर िंवत्रका पर वनयंत्रण स्थावपि
होिी है !
प्राणायाम का प्रभाव
जीिनी शवक्त (प्राण ित्त्ि) की िृवर्द् होिी है !
िंवत्रकाओंमें आिेगों का उत्तम प्रिाह होिा है !
७२००० नावर्यो की शुवर्द् होिी है !
ह्रर्दय, फे फड़े , मवस्िष्क , अन्िः स्रािी ग्रंवथ ,सुषुम्ना वस्थि नावड़यो की सम्पूणज शुवर्द् होिी है !
िंवत्रका संिेर्दनशीलिा में िृवर्द् !
सुप्त मवस्िष्कीय कोवशकाओंका जागरण, बुवर्द् ि स्मरण क्षमिा िृवर्द्- जैसे - भ्रामरी प्राणायाम
का अभ्यास से !
वचंिा, िनाि, अशांवि ,अवनद्रा ,वनराशा, आत्म हीनिा से मुवक्त – सूयज-िेर्दी से !
अनुकम्पी- परानुकं पी िंवत्रका िंत्र पर सकारात्मक प्रिाि पड़िा है
मुद्रा-बंध का प्रभाव
प्राण को उपयुक्त वर्दशा प्रर्दान करने से वस्थरिा,प्रसन्निा,शांवि , आनंर्द प्रावप्त होिी है |
सम्बंविि मुद्रा अनुसार िंवत्रका में आिेगों वनरंिर सम्बंविि अंगो िक प्रिाह से उसी अनुरूप लाि
प्रावप्त !
15
शाम्ििी मुद्रा , निो मुद्रा, नासाग्र – एकाग्रिा |
खेचरी मुद्रा – कपालीय िंवत्रका पर प्रिाि |
हस्ि मुद्रा , शारीररक मुद्रा से शारीररक – मानवसक िंवत्रकीय वनयंत्रण
ज्ञान मुद्रा – बुवर्द् , स्मरण शवक्त विकास
बंि िारण प्राण को खाश अंगो में िारण – िंवत्रका क्षमिा में िृवर्द् , अिरोि का सफाया
अध्यावत्मक उत्कषज – षट चिों + कुण्र्वलनी का जागरण !
प्रत्याहार का प्रभाव
मन को बाह्य विषयों से हटा कर अंिमुजखी करना |
आंिररक मनो शारीररक ( िंवत्रकीय ) वियायों के प्रवि सजगिा
अनािश्यक चंचलिा से मुक्त हो उजाज के सही सर्दुपयोग का
अिसर
मानवसक शांवि , िैयज की प्रावप्त – “प्रत्याहारेण िीरिा”-१/१०
घे.सं. (अल्फ़ा िेि )
हाइपर एवसटविटी , िोि, लालच ,काम, इष्याज ,मोह आवर्द से
मुवक्त !
धािणा-ध्यान-समात्रध का प्रिाव
बवहमुजखी मन को अंिमुजखी कर विविन्न िस्िु, आवर्द विषयों पर एकाग्र करना – िारणा
एकाग्रिा, मानवसक ,वस्थरिा , मवस्िष्कीय समरस्ििा, िंवत्रकीय ग्रहनवशलिा , वियाशीलिा में िृवर्द् !
मवस्िष्कीय क्षमिा , रचनात्मकिा में िृवर्द् होिी है !
िंवत्रकायों को सकारात्मक विश्राम, पोषण से वर्दव्य शवक्त की प्रावप्त होिी है !
धािणा+ध्यान+समात्रध = संयम – ३/4 (प.यो.)
16
वर्दव्य ज्ञानपरक , शवक्तपरक, सािन परक वििूवियों की प्रावप्त ! जैसे – कायाव्युह का ज्ञान , र्दूरर्दशजन ,
िविष्य ज्ञान ,अंिध्याजन होने की शवक्त , आकाश गमन आवर्द ! साथ ही हाथी सदृश्य बल , िुिजय अवणमा
आवर्द अि वसवर्द् प्रावप्त होिी है , वजससे मानिीय शवक्तयों का आश्चयज जनक विस्िार विकास हो कर उत्कृििा
को प्राप्त होिे है !
मंि योग का प्रिाव
“िज्जपस्िर्दथज िािनम” –१/२८(प.यो.सू.)
के न्द्रीय िंवत्रका ,कापलीय िंवत्रका िंत्र आवर्द के उद्दीपन से उत्त्पन िरंगो द्वारा उस िाि की प्रावप्त
होिी है !
इससे मानवसक शांवि , एकाग्रिा एिं उछच िाि की प्रावप्त होिी है !
कुं डक्रलनी योग का प्रभाव
आसन +प्राणायाम+मुद्रा+बंि+जप+ध्यान से सुषुम्ना वस्थि षट्चिों
का िमश: जागरण द्वारा परम चेिन अिस्था िक पहुचना !
foKkuh ekbdsy Vkycksy-dq.Mfyuh Hkh CySd gksy ds leku
lksbZ iMh jgrh gSA ijUrq tc tkxzr gksrh gS] rks izp.M
oy;kdqr rjaxks ds ln mij mBrh gSA
CySd gksy o dqf.Mfyuh nksuks gh vifjfer ,oa vuar शfDr
ds Hk.Mkj gksrs gSA nksuks ds gh xfr dks oy;kdqr ekuk x;k
gSA
f’ko fd tVk ds leku ] [kksyk lesVk tk ldrk gSA &
dYi ds vkfn es vkdk’k dk izlkj var esa ladqpu होिा है |
17
 अध्याय -५
त्रनष्कर्ष –
िंवत्रका िंत्र मानि शरीर के प्रमुख िन्त्र है वजसके द्वारा समस्ि शारीररक िंत्रों एिं अंगो के वियायों का
कुशल वनयंत्रण एिं समायोजन संिि हो पािा है! वजससे वनरंिर वबना कोई अिरोि ि गड़बड़ी के वर्दन प्रविवर्दन
के वियायो का सफलिा पूिजक संचालन होिा रहिा है , इस िरह मानि जीिन व्यिीि होिी रहिी है| जब कंही
कारणों से िंवत्रका िंत्र में कोपी गड़बड़ी उत्त्पन्न हो जािी है िो उसका प्रिाि सम्बंविि अंगो के साथ – साथ
समस्ि शरीर पर वर्दखाई पड़िा है !वजसके कारण कई प्रकार के मनो – शारीररक या शारीररक मानवसक रोग
उत्त्पन्न होिे है , वजससे मनुष्य र्दुखी ,पीवड़ि हो कि की अनुिूवि करिा है और आिश्यक कायो के संपार्दन
में िी स्ियं को असमथज पािा है ! जैसे- वचंिा, िनाि , वनराशा , िोि, मनोविर्दावलिा, र्र , अवनद्रा, आवर्द
नाना प्रकार के मानवसक रोग एिं अपच , कब्ज , ह्रर्दय रोग , मिुमेह आवर्द शारीररक रोग | आिुवनक िौविक
दृविकोण की इस काल में मनुष्य विविन्न प्रकार शारीररक मानवसक रोगों से ग्रस्ि हो र्दुःख पा रहे है , उन्हें इससे
मुवक्त के उपाय का बेसब्री से इंिजार होिी है ! िावक उनके इस समस्या का समािान हो जीिन सुख शांवि पूणज
बन सके |
योग विज्ञान िारिीय वर्दव्य द्रिा ऋवषयों के द्वारा प्रर्दत्त वर्दव्य अनमोल उपहार हैवजन्हें इस िरिी का कामिेनु
और कल्पिृक्ष कहा जाय िो कोई अविश्योवक्त नही होगी | सयोवक इससे शारीररक – मानवसक समस्ि रोगों के
उचार के साथ – साथ , वचर वनरोगी ,प्रसन्न, आनन्र्दमय जीिन जीने की सिी ित्ि इसमे अवछ िरह समावहि
है | जैसा की सिी जानिे है योग विज्ञान मानिीय शरीर- मन-अन्िःकरण एिं आत्मा पर आिाररि है | वजससे
यौवगक अभ्यासों का प्रिाि वनवश्चि रूप से शारीररक िंत्रों पर पड़ेगा ! वजसमे स्थूल अभ्यासो ( जैसे आसन
प्राणायाम आवर्द ) का कंकावलये – पेशीय आवर्द िंत्रों पर अविक प्रिाि वर्दखाई पड़िा है ! उसी प्रकार सूक्ष्म
िंत्र िंवत्रका िंत्र पर योग का और िी व्यापक प्रिाि पड़िा वर्दखाई र्देिा है सयोवक योग के अविकिम अभ्यास
सूक्ष्म (आंिररक) रूप से प्रिािकारी है |
िंवत्रका िंत्र के अंिगजि केन्द्रीय एिं पररिीय र्दोनों ही िंत्रों पर योग के विविन्न अंगो जैसे – षट्कमज ,आसन ,
प्राणायाम , मुद्रा- बंि , प्रत्याहार , िारणा, ध्यान ि समावि साथ ही मन्त्र योग कुंर्वलनी योग आवर्द सिी का
सकारात्मक एिं उल्लेखनीय प्रिाि पड़िा है वजससे विविन्न प्रकार के मानवसक – शारीररक रोगों से मुवक्त
वमलिी है, स्िास््य , शवक्त , सामंजस्य, कुशलिा , वनयंत्रण एिं उत्कृििा की िृवर्द् होिी है | वजससे जीिन
सुख , शांवि एिं आनंर्दपूणज बनने से िन्य हो जािा है ! इन्ही वर्दव्य उत्कृि अनुर्दानों एिं लाि प्रावप्त के कारण
गीिा में िगिान श्रीकृष्ण , अजुजन को योगी बनने का ही उपर्देश करिे है -
“िपवस्िभ्योविको योगी, ज्ञावनभ्योवप मिोsविक:!
कवमजभ्यश्चाविको योगी ,िस्माद्योगी ििाजुजन !!” गीिा- ६/४६
अथाजि –योगी िपवस्ियों से श्रेष्ठ है , शास्त्रज्ञावनयों से िी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कमज करने िालों से िी योगी
श्रेष्ठ है ; इससे हे अजुजन ! िू योगी हो |
18
सन्द्दिष सूची -
References
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 गोयन्दका, ह. (2000). पातंजलयोगदशशन . गोरखपुर : गीताप्रेस.
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तंत्रिका तंत्र पर योग का प्रभाव (Effect of yoga on nerves system)

  • 1. तंत्रिका तंि पर योग का प्रभाव एक अध्ययन Assignment Work ( Paper- 3,मानव शरीर रचना एवं क्रिया क्रवज्ञान ) वर्ष – 2016 (2nd sem.) त्रनर्देत्रिका – डॉ.सररता प्रजापक्रत सहायक प्रोफ़े सर योग एवं स्वास््य क्रवभाग देव संस्कृ क्रत क्रव.क्रव. हररद्वार (उतराखंड) प्रस्तुत कताष- क्रवश्वजीत वमाा एम.ए. (मानव चेतना एवं योग क्रवज्ञान) -( क्रद्वतीय सेमस्टर) देव संस्कृ क्रत क्रवश्वक्रवद्यालय गायत्री कु ञ्ज- शांक्रतकुं ज , हररद्वार ( उत्तराखंड ) -२४९४११
  • 2. 1 तंक्रत्रका तंत्र पर योग का प्रभाव विषय सूची  अध्याय -१  अध्ययन की आवश्यकता  अध्याय -२  तंत्रिका तंि परिचय  केन्द्रीय तंत्रिका तंि  परिसिीय तंत्रिका तंि  अध्याय -३  योग परिचय  प्रकाि एवं अंग  अध्याय -४  योग के त्रवत्रिन्न अंगो के अभ्यासों का तंत्रिका तंि पि प्रिाव  अंतरिक्ष तंत्रिका तंि एवं कुण्डत्रिनी  अध्याय - ५  त्रनष्कर्ष  सन्द्दिष सूची
  • 3. 2  अध्याय -१ अध्ययन की आवश्यकता मानिीय शरीर की गविविवियों का सञ्चालन एिं वनयंत्रण विविन्न िंत्रों के द्वारा होिा है जैसे- कं कावलय िन्त्र , पेशीय,रक्त पररसंचरण,पाचन,उत्सजजन .. एिं िंवत्रका िंत्र ! वजनमे से िंवत्रका िंत्र शरीर के सिी िंत्रों का वनयंत्रक संचालक है ! वजस पर समस्ि शारीररक मानवसक वियाये वनिजर करिी है !उसी के वनर्देशानुसार ि प्रेरणा विया के अनुसार नाना प्रकार की शारीररक – मानवसक कायज सुचारू रूप से संपन्न होिे है ! जब वकन्ही कारणों से उसमें कोई समस्या अथिा अस्िस्थिा उत्त्पन्न होिी है िो उसका प्रिाि कई शरीररक मानवसक रोगों के रूप में वर्दखाई र्देिी है ! जैसे आिुवनक िौविकिार्दी जीिन शैली से बढ़िे शारीररक – मानवसक रोगों जैसे – वचंिा ,अिसार्द, वहंसा, अपराि , वनराशा, OCD, मनोविर्दावलिा, िय, िोि आवर्द | इन सबके सफल स्थाई वनर्दान हेिु िंवत्रका िंत्र और उस पर योग अभ्यास के पड़ने िाले प्रिाि का गहनिापूिजक िैज्ञावनक अिययन की अत्यंि आिश्यकिा है | समग्र स्वास््य प्रबंधन हेतु - समग्र स्िास््य शरीर के समस्ि िंत्रों के स्िास््य होने पर वनिजर करिी है ! और सिी िंत्रों का स्िास््य और कुशल कायज सम्पार्दन िंवत्रका िंत्र पर वनिजर करिा है ! अि: समग्र स्िास््य प्रबंिन के दृविकोण से इस विषय पर अध्ययन की महिी आिश्यकिा है ! िावक विविन्न प्रकार के शारीररक – मानवसक रोगों से मुक्त रहा जा सके और रोगों का सफल उपचार िी वकया जा सके | शारीररक , मानवसक, सामावजक एिं आवत्मक (अध्यावत्मक) उत्कषज हेिु – शारीररक , मानवसक एिं अन्य उत्कषज हेिु स्ियं का ज्ञान और शारीररक वियायों पर पूणज वनयंत्रण एिं कुशल सञ्चालन का होना आिश्यक है ! वजसे हम िंवत्रका िंत्र के माध्यम से अविक स्पििा और व्यापकिा से समझ सकिे है | इस प्रकार से “िंवत्रका िंत्र पर योग का प्रिाि” िैज्ञावनक अध्ययन का एक महत्िपूणज एिं अत्यविक आिश्यक विषय हो जािा है ,वजसे प्रस्िुि कायज द्वारा जनकल्याणाथज एक छोटी से योगर्दान समवपजि करने का प्रयास है |
  • 4. 3 अध्याय -२ तंत्रिका तंि परिचय मानि शरीर कई अंगो के वमलने से बना है , जो विशेष प्रकार के कायों का संपार्दन करिे है ! इन अंगो से वमलकर पुन: कई िंत्रों का वनमाजण होिे है जैसे – अवस्थ िंत्र , पेवशये िंत्र, पाचन िंत्र , श्वसन िंत्र, रक्त पररसंचरण िंत्र , अंि:स्रािी िंत्र,िंवत्रका िंत्र आवर्द !इनमे से सिी िंत्रों का अपना विशेष महत्ि है, वजसके सवम्मवलि कायज संपार्दन से सम्पूणज शरीर स्िस्थ,सबल और कायज सक्षम बना रहिा है ! िंवत्रका िंत्र शरीर का एक महत्िपूणज िंत्र या संस्थान है, जो सम्पूणज शरीर की िथा उसके विविन्न वियायों का वनयंत्रण, वनयमन िथा समन्ियन करिा है और संवस्थवि बनाये रखिा है ! शरीर के सिी एवछछक एिं अनेवछछक कायों पर वनयंत्रण िथा समस्ि संिेर्दनाओंको ग्रहण कर मवस्िक में पहुचना इसी िंत्र का कायज है ! यह शरीर के समस्ि अंगो की आंिररक एिं बही िािािरण के पररििजनो के अनुसार समंजन संिि बनिा है िथा िंवत्रका आिेगों का संिहन करिा है ! िंवत्रका िंत्र शरीर की असंख्य कोवशकाओंकी वियाओंमें एक प्रकार का सामंजस्य उत्पन्न करिा है िावक सम्पूणज शरीर एक इकाई के रूप में कायज कर सके !संिेर्दी िंवत्रकाओं द्वारा शरीर के अन्र्दर एिं बाहर िािािरणगि पररििजन या उद्दीपन िंवत्रका िंत्र के सुषुम्ना या स्पाइनल कार्ज िथा मवस्िष्क में पहुचिे है !जहााँ पर उनका विश्लेषण होिा है और अनुविया में प्रेरक िंवत्रकाओंद्वारा शरीर की विविन्न वियायें संपावर्दि होिी है ! िंवत्रका िंत्र िंवत्रका उत्तकोंसे बना होिाहै, वजनमें िंवत्रका कोवशकाओंया न्यूरांस और इनसे सम्बंविि िंवत्रका िंिुओंिथा विशेष प्रकार के संयोजी उत्तक वजसे न्युरोवललया कहिे है, का समिेश होिा है ! तंत्रिका तंि के त्रवभाग िंवत्रका िंत्र के वनम्न िीन िाग होिे है – 1. केंद्रीय िंवत्रका िंत्र 2. पररसरीय िंत्रका िंत्र एिं 3. स्िायत्त िंवत्रका िंत्र १.कें द्रीय तंत्रिका तंि – इस िाग में मवस्िष्क एिं सुषुम्ना का समािेश होिा है िथा यह मवस्िष्कािरणो से पूणजिया ढका रहिा है ! इसका संवक्षप्त वििरण वनम्नवलवखि है -
  • 5. 4 के न्द्रीय तंत्रिका तंि भाग क्रस्तक्रि संरचना काया क्षेत्र अन्य मत्रस्तष्क अग्रमत्रस्तष्क कपाल गुहा में वस्थि गहरी लम्बिि र्दरार या विर्दर के द्वारा र्दावहने एिं बाएं अिज गोलािज में वििक्त अिज गोलार्द्ज के खंर् है – १.फ्रंटल लोब, २.पैराइटल, ३. आवससवपटल एिं 4. टेम्पोरल लोब १.संिेर्दी क्षेत्र २.प्रेरक क्षेत्र ३.प्रेरक पूिज क्षेत्र 4. ब्रोकाज क्षेत्र ५.िाणी क्षेत्र ६.दृवि क्षेत्र ७.श्रिणीय क्षेत्र ८.स्िार्द क्षेत्र९.घ्राण क्षेत्र १. बेसल गेंवगवलया – २.थेलेमस- ३. हाइपोथैलेमस - मध्यमत्रस्तष्क अग्र मवस्िष्क और पश्च मवस्िष्क के बीच और मवस्िष्क स्िम्ि के ऊपर वस्थि इसमे सेरीब्रम पेड़न्कल्स एिं कारपोर सिाड्रीजेवमन का समािेश होिा है जो मवस्िष्कीय कुल्या को घेरे रहिे है जो ३ ि 4 िेंविकलो के बीच एक नवलका होिी है ! सुपीररयर कोवलकुली से वकसी िास्िु को र्देखने की विया इवन्फरीर कोवलकु ली द्वारा सुनने की विया संपन्न होिी है ! पश्चमत्रस्तष्क मवस्िष्क के सबसे पीछे का िाग होिा है ! वजसमे पोंस, मेर््यूला आब्लान्गेटा , िथा अनुमवस्िष्क का समािेश मक्रस्तष्कावरण मवस्िष्कािरण या मेवनवन्जज सुरक्षात्मक वझवलयां है खोपड़ी एिं मवस्िष्क के बीच वस्थि रह कर सुषुम्ना को पूणज रूप से ढके रखकर अघाि से बचािी है ! डयूिामैटि सबसे उपरी आिरण , कठोर संयोजी उत्तको से बनी होिी है र्दो परि होिी है एिाक्नोइड मैटि र््यूरामैटर के ठीक नीचे वस्थि पिला और कोमल आिरण होिा है जो िंिु एिं लचीले उत्तको का बना होिा है ! पायामैटि एरासनोइर् मैटर के नीचे िाला आिरण , संयोजी उत्तको की पिली वझल्ली वजसमे बहुि सी रक्तिावहवनयााँ होिी है ! मक्रस्तष्कवेंक्रिकल मवस्िष्क में वस्िथ आंिररक गुहायें होिी है , वजनमे सेररब्रो-स्पाइनल द्रि िरा होिा है ! लेटिल-२ िृहर्दाकार, प्रमावस्िकीय गोलािो में वस्थि सेररब्रो-स्पाइनल द्रि का मुख्य कायज नाजुक िंवत्रका उत्तकों एिं अवस्थल गुहा विवत्तयों के बीच पानी की गद्दीनुमा रचना बनाकर मवस्िष्क और स्पाइनल कार्ज की सुरक्षा करिा है और अघाि अिशोषक की िावि कायज करिा है तृतीय वेंत्रिकल र्दायें एिं बाएं थैलेमस के बीच में लेटरल िेवत्रकल के नीचे वस्थि चतुर्थ वेंत्रिकल िृिीय िे. के नीचे , पोंस एिं मेर््यूला िथा सेबेलम के बीच में वस्थि चौरस वपरावमर्ी गुहा सुषुम्ना(SpinalCord ) एक मोटी एिं दृढ रस्सी की िावि लम्बर िवटजब्र िक िवटजब्रल कालम में सुरवक्षि रहिी है ! उपिी प्रेिक न्यूिान कोवशका काय प्रमवस्िष्क के प्रीसेंत्रल सल्कास क्षेत्र में वस्थि होिी है ! एवछछक पेशी गवि और अनैवछछक पेशीय गवि का सञ्चालन और समन्िय ! त्रनचला प्रेिक न्यूिान कोवशकाकाय स्पाइनल कार्ज के िूरे द्रि के एंटीररयर हानज में होिी है !
  • 6. 5 परिसिीय तंत्रिका तंि िवन्त्रका िंत्र के इस िाग में मवस्िस्क से वनकालने िाली 12 जोड़ी कपलीय िंवत्रकाओ और स्पाइनल कार्ज से वनकलने िाली ३१ जोड़ी स्पाइनल िंवत्रकाओ का समािेश होिा है , वजनसे शाखाये वनकलकर शरीर के विविन्न अंगो एिं उत्तको में पहुचिी है ! िंवत्रका १. संिेर्दी िवन्त्रकाए (sensory or Afferent nerves) २. प्रेरक या अपिाही िवन्त्रकाए(Motor or Efferent nerves ):- १.सोमैवटक िवन्त्रकाए (somatic nerves ), २.स्िायत्त िवन्त्रकाए (Autonomic nerves ) ३. वमवश्रि िवन्त्रकाए कपालीय तत्रन्द्िकाए (Cranial nerves) i. Olfactory nerve(आल्फेसटरी िंवत्रका) ii. Optic nerve (ऑवटटक िंवत्रका) iii. Oculomotar nerve (ऑकुलोमोटर िंवत्रका) iv. Trochlear nerve (िावसलयर िंवत्रका) v. Trigeminal nerve (िाईजेवमनल िंवत्रका) vi. Abducent nerve (एब्र्यूसेन्ट िंवत्रका) vii. Facial nerve (फेवशयल िंवत्रका) viii. Auditory nerve (ऑर्ीटरी िंवत्रका) ix. Glassopharyngeal nerve (ललासोफेररवन्जयल िंवत्रका) x. vagus nerve (िेगस िंवत्रका) xi. Accessory nerve (एससेसरी िंवत्रका) xii. Hypoglossal nerve (हाइपोललासल िंवत्रका ) स्पाइनल तत्रन्िकाए (spinal nerves) :- स्पाइनल कार्ज से ३१ जोड़ी स्पाइनल िवन्त्रकाए वनकलिी है जो , सटी हुई िवटजब्र से बनी इंटरिवटजब्रल रंध्रों से होकर िवटजब्रल केनाल के बाहर वनकलिी है वजनका नामकरण एिं िगीकरण उन्ही िवटजब्रल के अनुसार वकया जािा है वजन्हें से ये सम्बन्ि होिी है ये िवन्त्रकाए वनम्नवलवखि है-  8 जोड़ी सविजकल िंवत्रकाएं  12 जोड़ी थ्रोवसक िंवत्रकाएं  ५ जोड़ी लम्बर िंवत्रकाएं  ५ जोड़ी सेिल िंवत्रकाएं  १ जोड़ी कावससवजयल िंवत्रकाएं अध्याय -३
  • 7. 6 योग पररचय योग विद्या िारििषज की एक अमूल्य सम्पवत्त है। योग िस्िुिः समस्ि मोक्ष सािनाओंमें से सिोत्तम िथा श्रेष्ठिम सािन पर्द्वि है। इसी योग सािना का अिलम्बन करके वकिने ही योगी, यवि िथा महान् सािक गण उत्तम योग वस्थवि को प्राप्त करके जीिन काल में ही जीिन मुक्त अिस्था को प्राप्त हो गये। इसकी कोई वगनिी नहीं। योग की दृवि के द्वारा ही सृवि और अविसृवि के गूढ़िम रहस्यों का प्रत्यक्ष र्दशजन वकया जािा है। वर्दव्य र्दशजन, अिीवन्द्रय र्दशजन, ित्िर्दशजन, आत्मर्दशजन िथा ब्रह्मसाक्षात्कार आवर्द िी इसी योग सािना के द्वारा ही होिे हैं। इसवलये याज्ञिल्सय स्मृवि में िी कहा गया है- ‘‘अयं िु परमो िमो यत्योगेनात्म र्दशजनम्’’ अथाजि् वजस योग सािना के द्वारा आत्मर्दशजन िथा ब्रह्मसाक्षात्कार हो िही मानि मात्र का परम िमज है। योग में मनुष्य मात्र के समग्र उत्थान, विकास एिं उत्कषज के अनेकानेक उपाय, प्रयोग सुवनयोवजि हैं। यह आत्म शवक्तयों को जागृि कर व्यवक्तत्ि के परम वशखर पर पहुाँचने का सािन है। संक्षेप में कहा जा सकिा है वक योग एक जीिन र्दशजन है, श्रेष्ठ जीिन पर्द्वि है, योग िस्िुिः जीिन जीने की सिजश्रेष्ठ कला है। योग का अर्थ - योग शब्र्द की उत्पवत्त संस्कृि िाषा के युज् िािु में घ´्् प्रत्यय लगाके हुई है। वजसका सामान्य अथज होिा है- जोड़ना। पावणवन व्याकरण के अनुसार गण पाठ में िीन युज् िािु है- युज्- 1. युज् समािौ (समावि) वर्दिावर्दगणीय- अपने िास्िविक रूप को जानकर उसमें वनमलन रहना। 2. युवजर्योगे (संयोग या जुड़ाि) रुिावर्दगणीय- एकत्व, जुड़ाव, संयोग, मेल या जोड़ना। 3. युज् संयमने (संयम) चुरावर्दगणीय- संयम या वशीकरण। इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम एवं न्द्वचार संयम। परिभाषा - 1. महत्रषथ पतंजत्रल के अनुसाि -‘‘योगत्रश्चत्तवृत्रत्तत्रनिोधः’’ (पतंजत्रल.यो.सू. 1/2) अथाजि् वचत्त की िृवत्तयों का वनरोि ही योग है। 2. गीता के अनुसाि -  ‘‘योगः कमथसु कौशलम्’’ (गीता 2/50) अथाजि् कमज करने की कुशलिा ही योग है।  ‘‘समत्वं योग उच्यते’’ (गीता 2/48) अथाजि् सुख- र्दुःख, हावन- लाि, सफलिा- असफलिा आवर्द द्वन्द्वों में सम रहिे हुए वनष्काम िाि से कमज करना ही योग है।
  • 8. 7  ‘‘दुःख संयोगत्रवयोगं योग संत्रितम्’’ (गीता 6/23) अथाजि् जो र्दुःख रूप संसार के संयोग से रवहि है उसका नाम योग है। 3. महोपत्रनषद् के अनुसाि -‘‘मनः प्रशमनोपायो योग इत्यत्रभधीयते’’ (महो0 5/42) अर्ाथत् मन के प्रशमन के उपाय को योग कहते हैं। 4. महत्रषथ यािवल्कक्य के अनुसाि- ‘‘संयोग योगयुक्तो इत्रत युक्तो जीवात्मा पिमात्मनो।’’ अथाजि् जीिात्मा और परमात्मा के वमलन को ही योग कहिे हैं। 5. कै वल्कयोपत्रनषद् के अनुसाि- ‘‘श्रद्धा भत्रक्त ध्यान योगादवेत्रह’’ अथाजि् श्रर्द्ा, िवक्त, ध्यान के द्वारा आत्मा का ज्ञान ही योग है। 6. त्रवष्णुपुिाण के अनुसाि- ‘‘योगः संयोग इत्यक्तः जीवात्मा पिमात्मनो।’’ अथाजि् जीिात्मा िथा परमात्मा का पूणजिः वमलन ही योग है। 7. योगत्रशखोपत्रनषद् के अनु0- ‘‘योग प्राणपानयोिैक्यं स्वि जोिेत अस्तर्ा।’’ सूयथ चन्द्रमसो योग जीवात्मा पिमात्मनः।।’’ अथाजि् प्राण- अपान को रज, िीयज को सूयज एिं चन्द्रमा को िेजवस्ििा एिं शीिलिा को, जीिात्मा एिं परमात्मा को वमलाना ही योग है। 10. श्रीिामकृ ष्ण पिमहंस के अनु0- परमात्मा की शाश्वि अखण्र् ज्योवि के साथ अपनी ज्योवि को वमला र्देना ही योग है। 11. युग ऋत्रष के अनु0- जीिन सािना ही योग है। वचत्त की चेिाओंको बवहमुजखी बनने से रोककर उन्हें अंिमुजखी करना िथा आध्यावत्मक वचंिन में लगाना ही योग है। अिाि को िाि से, अपूणजिा को पूणजिा से वमलाने की विद्या योग कही गई है। 12. स्वामी त्रववेकानंद के अनु0- योग व्यवक्त के विकास को उसकी शारीररक सत्ता के एक जीिन या कुछ घण्टों में संवक्षप्त कर र्देने का सािन है। 13. स्वामी दयानंद के अनुसाि- सजगिा का विज्ञान योग है। 14. त्रवनोबा भावे के अनुसाि - जीिन के वसर्द्ान्िों को व्यिहार में लाने की जो कला या युवक्त है उसी को योग कहिे हैं। 15. महत्रषथ वत्रशष्ठ के अनु0- संसाि सागि से पाि होने की युत्रक्त योग है। 16. महत्रषथ अित्रवंद के अनु0- अपने आप से जुड़ना ही योग है। 18. िांघेय िाघव के अनु0- त्रशव एवं शत्रक्त का त्रमलन ही योग है। 19. महादेसाई के अनु0- शरीर, मन एिं आत्मा की सारी शवक्तयों को परमात्मा में वनयोवजि करना ही योग है।
  • 9. 8 योग के मुख्य प्रकार व अंग योग सािना के कई पर्द्वियां िारिीय िांगमय में प्रचवलि है | जो विविन्न प्रकार के सािको के मनोिूवम एिं शारीररक वस्थवि के अनुरूप अलग – अलग उपयुक्त अभ्यासों को वनरूवपि करिी है, इनमे से सिी योग के उद्देश्य , शारीररक मानवसक , सामावजक एिं अध्यावत्मक स्िास््य से लेकर मानिीय उत्कषज और परम लक्ष्य की प्रावप्त में सहायक है , जो वनम्नवलवखि है – हठ योग – षट्कमज,आसन ,प्राणायाम ,मुद्रा-बंि,प्रत्याहार,ध्यान,समावि ! ज्ञान योग - कमजयोग - िवक्तयोग ! अिांगयोग – यम वनयम,आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,िारणा,ध्यान,समावि ! राजयोग , Researches Reviews Effects of yoga on the autonomic nervous system, gamma-aminobutyric-acid, and allostasis in epilepsy, depression, and post-traumatic stress disorder CC Streeter, PL Gerbarg, RB Saper, DA Ciraulo… - Medical hypotheses, 2012 - Elsevier Effect of yoga-based and forced uninostril breathing on the autonomic nervous system P Raghuraj, S Telles - Perceptual and motor skills, 2003 - amsciepub.com Effect of integrated yoga on stress and heart rate variability in pregnant women M Satyapriya, HR Nagendra, R Nagarathna… - International Journal of …, 2009 - Elsevier Effects of yoga versus walking on mood, anxiety, and brain GABA levels: a randomized controlled MRS study CC Streeter, TH Whitfield, L Owen… - The Journal of …, 2010 - online.liebertpub.com
  • 10. 9 The effects of yoga on hypertensive persons in Thailand R McCaffrey, P Ruknui, U Hatthakit… - Holistic nursing …, 2005 - journals.lww.com PDF] Stress due to exams in medical students-a role of Yoga A Malathi, A Damodaran - Indian journal of physiology and pharmacology, 1999 - ijpp.com Yoga as a complementary treatment of depression: effects of traits and moods on treatment outcome D Shapiro, IA Cook, DM Davydov, C Ottaviani… - Evidence-based …, 2007 - hindawi.com Effect of Sahaja yoga practice on stress management in patients of epilepsy U Panjwani, HL Gupta, SH Singh… - Indian journal of …, 1995 - ijpp.com Yoga as a complementary treatment of depression: effects of traits and moods on treatment outcome D Shapiro, IA Cook, DM Davydov, C Ottaviani… - Evidence-based …, 2007 - hindawi.com ... The Iyengar approach in the present study focused mainly on more active asanas and included only brief periods of relaxation and breathing exercises. ... Both rate and depth of respiration affect HRV (56) and may have a general effect on the autonomic nervous system or an ... Impact of Yogic Shatkarma in psycho-somatic health of female teachers M Rastogi - indianyoga.org ... Impact of Yogic Shatkarma in psycho-somatic health of ... To assess the impact of yogic intervention parameters on psycho-somatic health. ... 2. Kumar, Kamakhya, Sharma, charu, Kumar Abhishek (2010)-effect of jal nati on optic nerve conduction velocity, Yoga mimansa april 2010 ... EFFECT OF UJJAIYEI PRANAYAMA ON PSYCHOMOTOR ABELITIES OF VOLLEYBALL PLAYERS GS Singh - Maharani Laxmibai - mpcolleges.nic.in ... This is done through the practice of Asana, Pranayama, Mudra, Bandha, Shatkarma and Meditation ... Pranayama is more important because it produces deeper effects as far as the outcomes are ... STUDY ON THE EFFECT OF YOGA (YOGASANS, PRANAYAM AND MEDITATION). ... Study on the effect of Pranakarshan pranayama and Yoga nidra on alpha EEG & GSR K Joshi - 2009 - visionlibrary.vethathiri.edu.in ... Keywords: Asana, Pranayama, Shatkarma, Yoga Nidra, ESR IPC Int. ... of Literature Various studies have been done in different part of world for observing the effect of Yoga ... Yoga classes; so all had been practicing the set of Asanas, Pranayamas and Shatkarmas regularly (except ... Effect of pranayama & yoga-asana on cognitive brain functions in type 2 diabetes-P3 event related evoked potential (ERP). T Kyizom, S Singh, KP Singh… - Indian Journal of …, 2010 - search.ebscohost.com ... An improvement in the latency and amplitude of N2 and P3 waveform is seen in theyoga group which regularly and strictly performed pranayama and asanas for 45 days (Tables IV ... The effect of yoga therapy in diabetes mellitus. ... Human auditory potentials: II Effects of attention. ... The neural basis of the complex mental task of meditation: neurotransmitter and neurochemical considerations
  • 11. 10 AB Newberg, J Iversen - Medical hypotheses, 2003 - Elsevier ... 1 h when they were again injected with the tracer while they continued to meditate. ... urine are significantly increased, suggesting an overall elevation in (5-HT) during meditation (38 ... resulting in internally generated imagery that has been described during certain meditative states. ... Changes in EEG and autonomic nervous activity during meditation and their association with personality traits T Takahashi, T Murata, T Hamada, M Omori… - International Journal of …, 2005 - Elsevier ... Successful meditative experience appears to be mediated by a switching-off mechanism of ... of sympathetic tone) (Table 2). Therefore, internalized attention enhanced by meditation (characterized by ... the slow alpha power in the frontal area) has an inhibitory effect on sympathetic ... Spectral analysis of the central nervous system effects of the relaxation response elicited by autogenic training GD Jacobs, JF Lubar - Behavioral Medicine, 1989 - Taylor & Francis ... alterations. Research on the central nervous system (CNS) effects of relaxation techniques is much more limited. Of the various relaxation techniques, only Dr ... Knoxville. meditation has been the focus of significant research. ... Changes in EEG and autonomic nervous activity during meditation and their association with personality traits T Takahashi, T Murata, T Hamada, M Omori… - International Journal of …, 2005 - Elsevier ... Successful meditative experience appears to be mediated by a switching-off mechanism of ... of sympathetic tone) (Table 2). Therefore, internalized attention enhanced by meditation (characterized by ... the slow alpha power in the frontal area) has an inhibitory effect on sympathetic ...
  • 12. 11  अध्याय -४ योग के क्रवक्रभन्न अंगो व अभ्यासों का तंक्रत्रका तंत्र पर प्रभाव  षट्कमो का प्रिाि  आसनों का प्रिाि  प्राणायाम का प्रिाि  मुद्रा- बंि का प्रिाि  प्रत्याहार का प्रिाि  िारणा- ध्यान -समावि (संयम ) का  मंत्र योग का प्रिाि  कुण्र्वलनी योग का प्रिाि 1. षट् कमों का प्रभाव – १.धौक्रत -वातसार वाररसार अक्रननसार बक्रहस्कृ त दंतमूल क्रजह्वामूल कणारंध्र कपालरंध्र  आहारनाल,अमाशय,यकृि ,अलनाशय,छोटी आंि - बड़ी आंि, मलाशय, गुर्दा िक सम्पूणज शरीर की शुवर्द् !  सम्बंविि िंवत्रका के संिेर्दनशीलिा में िृवर्द् होिी ,िंवत्रकाओ को शुर्द् रक्त ि पोषक ित्ि की प्रावप्त त्िररि वियाशवक्त का विकास सिाजयकल,ब्रैवन्कयल टलेससस पर प्रिाि पड़िा है !  औटोनोवमक टलेससेस जैसे कावर्जयक,वसवलयक, हायपोगेवस्िक पर सकिात्मक प्रिाि पड़िा है ! घ्राण(आल्फेसटरी) िंवत्रका, आवटटक िंवत्रका, ऑर्ीटरी, िेगस आवर्द कापालीय िंवत्रकायों की शुवर्द्, पुवििंवत्रका आिेगों की त्िररि प्रिाह से, नेत्र ज्योवि बढािी यथा “वर्दव्य दृवि प्रजायिे”, वर्दव्य श्रिण क्षमिा ,फेफड़े , स्िर यन्त्र आवर्द का कुशल कायज संचालन !वसम्पेथेवटक िंवत्रकाओं – नेत्र ,लार, मुख आवर्द अंगो के वियायो पर वनयंत्रण स्थावपि होिी है | दण्ड वमन वस्त्र मूलशोधन ३.नेक्रत - जल सुत्र रबर आहारनाल,अमाशय,यकृि ,अलनाशय,छोटी आंि बड़ी आंि, मलाशय ि गुर्दा इससे सम्बंविि स्पाइनल िवन्त्रका पर सकारात्मक प्रिाि ! कपावलये िंवत्रका सबल, स्िस्थ ! वियाशीलिा, स्मृवि की िृवर्द्, िनाि , वचंिा,अिसार्द से मुवक्त ! २.िवस्ि(जल,स्थल) ; ३.नौली(िाम,मध्य,र्दवक्षण ) ५.त्राटक ,६.कपालिावि(िािकमज ,व्युत्िम,शीििम )
  • 13. 12 2. आसनो का प्रिाि 1.शिीि संवधथनात्मक आसन • सिाांग,िुजंग,हलासन, िनुरासन, शीषाजसन पवश्चमोत्तान आवर्द ! • िंवत्रका कोवशका मजबूिी, आिेगों का िीव्र संचार ! • एवछछक -अनैवछछक वियायों का कुशलिा पूिजक सञ्चालन क्षमिा का विकास होिा है ! • संिुवलि शाररररक वस्िवथ बनिी है ! 2.ध्यानात्मक आसन - • पद्मासन,सुखासन,िज्रासन,वसर्द्, स्िवस्िक, िद्रासन आवर्द • मांसपेवशयों ि अंगो को पयाजप्त आराम िंवत्रवकये उद्दीपनो में कमी से CNS को नविन उजाज की प्रावप्त ! • अनुकम्पी – परानुकम्पी िंवत्रका पर सकारात्मक प्रिाि ! • िंवत्रवकये क्षमिा, संिेर्दनशीलिा में िृवर्द् ! • जागरूकिा - एकाग्रिा का विकास !
  • 14. 13 3.गत्यात्मक आसन - • सूयजनमस्कार, प्रज्ञा योग , िामज -उप , पिन मुक्तासन आवर्द • िंवत्रका आिेगों का िीव्र प्रिाह , शारीररक अंगो पर सूक्षम वनयंत्रण क्षमिा ! • शवक्त ,आरोलयिा , संिुलन में िृवर्द् ! • वचंिा , अिसार्द ,वनराशा , िय,आत्महीनिा से मुवक्त ! 4.त्रवश्रात्रन्तकािक - • मकरासन,विष्णु आसन, शिासन आवर्द ! • सम्पूणज शरीर के साथ – साथ – िंवत्रका िंत्र को विश्रांवि- पोषण ! • अनािश्यक िनाि से मुवक्त !स्फूविज,उत्साह का पुनः संचार होिा है ! • िनाि ,रक्त चाप ,िोि ,वचंिा, िय आवर्द से मुवक्त ! ५.संिुलनात्मक आसन  कुकुटासन ,बकासन, हंसासन, मयूरासन, िृवश्चकासन, नटराज आवर्द  संिुवलि शारीररक अिस्था सर्देि स्ियं बना रहिा है !
  • 15. 14  एकाग्रिा , िारण शवक्त का विकास होिा है !  संिेर्दी एिं मोटर िंवत्रका पर वनयंत्रण स्थावपि होिी है ! प्राणायाम का प्रभाव जीिनी शवक्त (प्राण ित्त्ि) की िृवर्द् होिी है ! िंवत्रकाओंमें आिेगों का उत्तम प्रिाह होिा है ! ७२००० नावर्यो की शुवर्द् होिी है ! ह्रर्दय, फे फड़े , मवस्िष्क , अन्िः स्रािी ग्रंवथ ,सुषुम्ना वस्थि नावड़यो की सम्पूणज शुवर्द् होिी है ! िंवत्रका संिेर्दनशीलिा में िृवर्द् ! सुप्त मवस्िष्कीय कोवशकाओंका जागरण, बुवर्द् ि स्मरण क्षमिा िृवर्द्- जैसे - भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास से ! वचंिा, िनाि, अशांवि ,अवनद्रा ,वनराशा, आत्म हीनिा से मुवक्त – सूयज-िेर्दी से ! अनुकम्पी- परानुकं पी िंवत्रका िंत्र पर सकारात्मक प्रिाि पड़िा है मुद्रा-बंध का प्रभाव प्राण को उपयुक्त वर्दशा प्रर्दान करने से वस्थरिा,प्रसन्निा,शांवि , आनंर्द प्रावप्त होिी है | सम्बंविि मुद्रा अनुसार िंवत्रका में आिेगों वनरंिर सम्बंविि अंगो िक प्रिाह से उसी अनुरूप लाि प्रावप्त !
  • 16. 15 शाम्ििी मुद्रा , निो मुद्रा, नासाग्र – एकाग्रिा | खेचरी मुद्रा – कपालीय िंवत्रका पर प्रिाि | हस्ि मुद्रा , शारीररक मुद्रा से शारीररक – मानवसक िंवत्रकीय वनयंत्रण ज्ञान मुद्रा – बुवर्द् , स्मरण शवक्त विकास बंि िारण प्राण को खाश अंगो में िारण – िंवत्रका क्षमिा में िृवर्द् , अिरोि का सफाया अध्यावत्मक उत्कषज – षट चिों + कुण्र्वलनी का जागरण ! प्रत्याहार का प्रभाव मन को बाह्य विषयों से हटा कर अंिमुजखी करना | आंिररक मनो शारीररक ( िंवत्रकीय ) वियायों के प्रवि सजगिा अनािश्यक चंचलिा से मुक्त हो उजाज के सही सर्दुपयोग का अिसर मानवसक शांवि , िैयज की प्रावप्त – “प्रत्याहारेण िीरिा”-१/१० घे.सं. (अल्फ़ा िेि ) हाइपर एवसटविटी , िोि, लालच ,काम, इष्याज ,मोह आवर्द से मुवक्त ! धािणा-ध्यान-समात्रध का प्रिाव बवहमुजखी मन को अंिमुजखी कर विविन्न िस्िु, आवर्द विषयों पर एकाग्र करना – िारणा एकाग्रिा, मानवसक ,वस्थरिा , मवस्िष्कीय समरस्ििा, िंवत्रकीय ग्रहनवशलिा , वियाशीलिा में िृवर्द् ! मवस्िष्कीय क्षमिा , रचनात्मकिा में िृवर्द् होिी है ! िंवत्रकायों को सकारात्मक विश्राम, पोषण से वर्दव्य शवक्त की प्रावप्त होिी है ! धािणा+ध्यान+समात्रध = संयम – ३/4 (प.यो.)
  • 17. 16 वर्दव्य ज्ञानपरक , शवक्तपरक, सािन परक वििूवियों की प्रावप्त ! जैसे – कायाव्युह का ज्ञान , र्दूरर्दशजन , िविष्य ज्ञान ,अंिध्याजन होने की शवक्त , आकाश गमन आवर्द ! साथ ही हाथी सदृश्य बल , िुिजय अवणमा आवर्द अि वसवर्द् प्रावप्त होिी है , वजससे मानिीय शवक्तयों का आश्चयज जनक विस्िार विकास हो कर उत्कृििा को प्राप्त होिे है ! मंि योग का प्रिाव “िज्जपस्िर्दथज िािनम” –१/२८(प.यो.सू.) के न्द्रीय िंवत्रका ,कापलीय िंवत्रका िंत्र आवर्द के उद्दीपन से उत्त्पन िरंगो द्वारा उस िाि की प्रावप्त होिी है ! इससे मानवसक शांवि , एकाग्रिा एिं उछच िाि की प्रावप्त होिी है ! कुं डक्रलनी योग का प्रभाव आसन +प्राणायाम+मुद्रा+बंि+जप+ध्यान से सुषुम्ना वस्थि षट्चिों का िमश: जागरण द्वारा परम चेिन अिस्था िक पहुचना ! foKkuh ekbdsy Vkycksy-dq.Mfyuh Hkh CySd gksy ds leku lksbZ iMh jgrh gSA ijUrq tc tkxzr gksrh gS] rks izp.M oy;kdqr rjaxks ds ln mij mBrh gSA CySd gksy o dqf.Mfyuh nksuks gh vifjfer ,oa vuar शfDr ds Hk.Mkj gksrs gSA nksuks ds gh xfr dks oy;kdqr ekuk x;k gSA f’ko fd tVk ds leku ] [kksyk lesVk tk ldrk gSA & dYi ds vkfn es vkdk’k dk izlkj var esa ladqpu होिा है |
  • 18. 17  अध्याय -५ त्रनष्कर्ष – िंवत्रका िंत्र मानि शरीर के प्रमुख िन्त्र है वजसके द्वारा समस्ि शारीररक िंत्रों एिं अंगो के वियायों का कुशल वनयंत्रण एिं समायोजन संिि हो पािा है! वजससे वनरंिर वबना कोई अिरोि ि गड़बड़ी के वर्दन प्रविवर्दन के वियायो का सफलिा पूिजक संचालन होिा रहिा है , इस िरह मानि जीिन व्यिीि होिी रहिी है| जब कंही कारणों से िंवत्रका िंत्र में कोपी गड़बड़ी उत्त्पन्न हो जािी है िो उसका प्रिाि सम्बंविि अंगो के साथ – साथ समस्ि शरीर पर वर्दखाई पड़िा है !वजसके कारण कई प्रकार के मनो – शारीररक या शारीररक मानवसक रोग उत्त्पन्न होिे है , वजससे मनुष्य र्दुखी ,पीवड़ि हो कि की अनुिूवि करिा है और आिश्यक कायो के संपार्दन में िी स्ियं को असमथज पािा है ! जैसे- वचंिा, िनाि , वनराशा , िोि, मनोविर्दावलिा, र्र , अवनद्रा, आवर्द नाना प्रकार के मानवसक रोग एिं अपच , कब्ज , ह्रर्दय रोग , मिुमेह आवर्द शारीररक रोग | आिुवनक िौविक दृविकोण की इस काल में मनुष्य विविन्न प्रकार शारीररक मानवसक रोगों से ग्रस्ि हो र्दुःख पा रहे है , उन्हें इससे मुवक्त के उपाय का बेसब्री से इंिजार होिी है ! िावक उनके इस समस्या का समािान हो जीिन सुख शांवि पूणज बन सके | योग विज्ञान िारिीय वर्दव्य द्रिा ऋवषयों के द्वारा प्रर्दत्त वर्दव्य अनमोल उपहार हैवजन्हें इस िरिी का कामिेनु और कल्पिृक्ष कहा जाय िो कोई अविश्योवक्त नही होगी | सयोवक इससे शारीररक – मानवसक समस्ि रोगों के उचार के साथ – साथ , वचर वनरोगी ,प्रसन्न, आनन्र्दमय जीिन जीने की सिी ित्ि इसमे अवछ िरह समावहि है | जैसा की सिी जानिे है योग विज्ञान मानिीय शरीर- मन-अन्िःकरण एिं आत्मा पर आिाररि है | वजससे यौवगक अभ्यासों का प्रिाि वनवश्चि रूप से शारीररक िंत्रों पर पड़ेगा ! वजसमे स्थूल अभ्यासो ( जैसे आसन प्राणायाम आवर्द ) का कंकावलये – पेशीय आवर्द िंत्रों पर अविक प्रिाि वर्दखाई पड़िा है ! उसी प्रकार सूक्ष्म िंत्र िंवत्रका िंत्र पर योग का और िी व्यापक प्रिाि पड़िा वर्दखाई र्देिा है सयोवक योग के अविकिम अभ्यास सूक्ष्म (आंिररक) रूप से प्रिािकारी है | िंवत्रका िंत्र के अंिगजि केन्द्रीय एिं पररिीय र्दोनों ही िंत्रों पर योग के विविन्न अंगो जैसे – षट्कमज ,आसन , प्राणायाम , मुद्रा- बंि , प्रत्याहार , िारणा, ध्यान ि समावि साथ ही मन्त्र योग कुंर्वलनी योग आवर्द सिी का सकारात्मक एिं उल्लेखनीय प्रिाि पड़िा है वजससे विविन्न प्रकार के मानवसक – शारीररक रोगों से मुवक्त वमलिी है, स्िास््य , शवक्त , सामंजस्य, कुशलिा , वनयंत्रण एिं उत्कृििा की िृवर्द् होिी है | वजससे जीिन सुख , शांवि एिं आनंर्दपूणज बनने से िन्य हो जािा है ! इन्ही वर्दव्य उत्कृि अनुर्दानों एिं लाि प्रावप्त के कारण गीिा में िगिान श्रीकृष्ण , अजुजन को योगी बनने का ही उपर्देश करिे है - “िपवस्िभ्योविको योगी, ज्ञावनभ्योवप मिोsविक:! कवमजभ्यश्चाविको योगी ,िस्माद्योगी ििाजुजन !!” गीिा- ६/४६ अथाजि –योगी िपवस्ियों से श्रेष्ठ है , शास्त्रज्ञावनयों से िी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कमज करने िालों से िी योगी श्रेष्ठ है ; इससे हे अजुजन ! िू योगी हो |
  • 19. 18 सन्द्दिष सूची - References  अनंत प्रकाश गुप्ता. (2012). मानव शरीर रचना एवं क्रिया ववज्ञान. आगरा: सुममत प्रकाशन.  गोयन्दका, ह. (2000). पातंजलयोगदशशन . गोरखपुर : गीताप्रेस.  ददगंबरजी. (2015). हठ प्रदीवपका. लोनावला: कै वल्यधाम श्रीमन्माधव योग मंददर सममतत.  रामसुखदास. (2005). श्रीमद्भगवद्गीता (साधक संजीवनी ). गोरखपुर: गीताप्रेस.  सरस्वती, न. (2011). घेरंड संदहता. मुंगेर: योग पब्ललके शन ट्रस्ट.  (2016, april 07). Retrieved from google scholar : http://www.mpcolleges.nic.in/mlbbpl/RJMLB/RJMLB_Volume-I,2.pdf#page=44  (2016, april 07). Retrieved from google scholar : http://visionlibrary.vethathiri.edu.in/xmlui/handle/1/15  (2016, april 07). Retrieved from google scholar : http://indianyoga.org/wp- content/uploads/2013/02/v2-issue2-article7.pdf  (2016, april 07). Retrieved from google scholar : http://www.amsciepub.com/doi/pdfplus/10.2466/pms.2003.96.1.79  google scholar . (2016, april 07). Retrieved from http://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0306987712000321  google scholar . (2016, april 07). Retrieved from http://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S016787600400162X  google scholar . (2016, april 07). Retrieved from http://www.tandfonline.com/doi/abs/10.1080/08964289.1989.9934575  google scholar . (2016, april 07). Retrieved from http://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S016787600400162X  google scholar . (2016, april 07). Retrieved from http://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0306987703001750  google scholar . (2016, april 07). Retrieved from http://search.ebscohost.com/login.aspx?direct=true&profile=ehost&scope=site&authtype=crawle r&jrnl=09715916&AN=51887742&h=dRl3ybdJgdCWPfYObpTdidTF12Ur8UzsbUbm99q6Vx9Z2hDXZ XbfqCoNSJNDaqny0aSRbsF77dgmAjbHRsJWRA%3D%3D&crl=c  Gore, M. M. (2003). Anatomy and Physiology of Yogic Practices. Pune: Kanchan Prakashan.