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                                                                                   लेबकन बिज्ापन और आमिनी के ििाि के िीच तया संपािक ऐसा कर
                                                                             पाएंगे? इसके जिाि में िे कहते हैं, ‘यह काफी कबठन काम है तयोंबक िाजार का
                                                                             ििाि हर तरफ है, लेबकन अि ज्यािातर समाचार चैनलों के संपािक इस िात पर
                                                                             सहमत हैं बक टीआरपी की बचंता बकए िगैर अपना चैनल चलाना होगा. तयोंबक
                                                                             टीआरपी संभ्रांत िगर् की पसंि-नापसंि को बिखाता है न बक हमारे सभी िशर्कों
                                                                             की रुबच को.’ आशुतोष कहते हैं, 'ऐसा बिककुल संभि है बक खिबरया चैनल
                                                                             टीआरपी पर ध्यान न िेते हुए खिरों का चयन करें. इसके बलए संपािक और ििंधन
                                                                             िोनों को अपने-अपने थतर पर मजिूती बिखानी होगी. यह समझना होगा बक
                                                                             टीआरपी बकसी भी खिबरया चैनलों का मापिंड नहीं हो सकता.' िे आगे जोड़ते
                                                                             हैं, 'अगर आप बपछले डेढ़ साल में समाचार चैनलों में सामग्री के थतर पर आए
                                                                             ििलाि को िेखगे तो पता चलेगा बक सुधार हो रहा है. यह सुधार रातोंरात नहीं
                                                                                             ें
                                                                             हुआ है. िबकक टीिी चैनलों पर बसबिल सोसायटी, सरकार और सिसे अबधक
                                                                             िशर्कों का ििाि पड़ा है. िशर्क चैनलों को गाली िेने लगे और समाचार चैनलों
                                                                             के सामने बिकिसनीयता का संकट पैिा हो गया. इसके िाि िीईए िना और आपस
                                                                             में समाचार चैनलों के संपािक िातचीत करने लगे और सुधार की कोबशश की
                                                                             गई. इस िीच न्यज िॉडकाथटसर् एसोबसएशन (एनिीए) ने भी आत्मबनयमन की
                                                                                                ू
                                                                             बिशा में काम बकया. इसका असर अि बिख रहा है और समाचार चैनलों में खिर

    एक तिका मानता है बक टीिी उयोग को हर साल 10,300 करोड़ रुपये के
बिज्ापन बमलते हैं इसबलए सही और बिकिसनीय आंकड़े हाबसल करने के बलए                     इतने छोटे सैंपल से कैसे सभी
660 करोड़ रुपये खचर् करने में इस उयोग को िहुत परेशानी नहीं होनी चाबहए.               दशर्कों की पसंद-नापसंद तय हो
ठाकुरता कहते हैं, 'टेलीबिजन उयोग के पास पैसे की कमी नहीं है. मीटरों की              सकती है? प्रबु राज प्रमुख, सहािा
संयया िढ़ाने के बलए होने िाला खचर् िह आसानी से जुटा सकता है. पर यहां                              समय (रबहाि-झािखंड )
मामला नीयत का है. अगर टैम की नीयत ठीक होती तो मीटरों की संयया िढ़ाने
या इसमें हर िगर् को िबतबनबधत्ि िेने की िात चलती लेबकन अि तक ऐसा होता
नहीं बिखा. जि भी मीटरों की संयया िढ़ी है ति यह िेखा गया है बक ऐसा             एक िार बफर से लौट रही है. कुछ चैनल अि भी टीआरपी के बलए खिरों को
बिज्ापनिाताओं के बहतों को ध्यान में रखकर बकया गया. इससे साबित होता है        फैंटसी की िुबनया में ले जाकर बिखा रहे हैं. इसकी बजतनी भी बनंिा की जाए कम
                                                                                  े
बक टैम जो टीआरपी िेती है उसका िशर्कों के बहतों से कोई लेना-िेना नहीं है.'    है. लेबकन समय के साथ िे भी सुधरेंग.े '
                                                                                    अबमत बमिा सबमबत ने यह भी कहा है बक हर रोज और हर हफ्ते रेबटंग जारी
भाित में टीआरपी के क्षेि में मची अंधेरगिीर् का अंिाजा इसी िात से लगाया       करने से चैनलों पर अबतबरतत ििाि िनता है इसबलए इसे 15 बिन में एक िार
जा सकता है बक यहां रेबटंग करने िाली कंपबनयों के पंजीकरण के बलए कोई           जारी करने के बिककप पर भी बिचार बकया जा सकता है. कुछ ऐसी ही िात
बनधार्बरत िणाली नहीं िनाई गई. यह िात खुि सूचना और िसारण मंिालय और            आशुतोष भी कहते हैं, 'या तो टीआरपी की व्यिथथा को पूरी तरह से िंि बकया
िसार भारती ने संसिीय सबमबत के समक्ष थिीकार की है. संसिीय सबमबत ने इस         जाए. अगर ऐसा संभि नहीं हो तो हर हफ्ते टीआरपी के आंकड़े जारी करने की
िात की बसफाबरश की है बक रेबटंग िणाली में पारिबशर्ता लाने के बलए थितंि,       व्यिथथा िंि हो. हर छह महीने पर आंकड़े जारी हों. इससे ििाि घटेगा और खिरों
योग्य और बिशेषज् ऑबडट फमोों ि‍ारा रेबटंग एजेंबसयों की ऑबडबटंग करिाई जाए.     की िापसी का राथता खुलगा. टीआरपी के मीटरों की संयया िढ़ाई जाए और
                                                                                                        े
अबमत बमिा सबमबत ने भी यह बसफाबरश की है. ऐसा करने से यह सुबनबकचत हो           इसका िंटिारा आिािी के आधार पर हो. साथ ही हर क्षेि के मीटर को िरािर
सकेगा बक आंकड़ों के साथ हेरा-फेरी नहीं हो रही है. हालांबक, टैम यह िािा करती   महत्ि (िेटज) बिया जाए.'
                                                                                          े
है बक िह अंतररा£‍ीय मानकों के बहसाि से आंतबरक ऑबडबटंग करिाती है.                    इस िीच एनिीए ने टैम मीबडया बरसचर् से आंकड़े जारी करने की समय-सीमा
    ठाकुरता कहते हैं, 'अगर टैम चाहती है बक टीआरपी पर लोगों का भरोसा िना      में ििलाि की मांग की है. एनिीए का कहना है बक टीआरपी आंकड़े जारी करने
रहे तो उसे कई किम उठाने होंगे. सिसे पहले तो यह जरूरी है बक िह अपने           की अिबध को साप्त‍ाबहक से माबसक कर बिए जाने से यह मीबडया के बलए ज्यािा
मीटरों की संयया िढ़ाए. मीटर हर िगर् के घरों में लगें. गांिों तक इनका बिथतार   लाभिि रहेगा. एनिीए ि‍ारा टैम से यह िातचीत बपछले कुछ बिनों से हो रही थी,
हो और पूरे मामले में बजतना संभि हो सके उतनी पारिबशर्ता िरती जाए. कोई         लेबकन अि एनिीए ने टैम को पि िेकर टीआरपी जारी करने की अिबध में
ऐसी व्यिथथा भी िने जहां टीआरपी से संिबं धत बशकायत िजर् करने की सुबिधा        ििलाि करने की गुजाबरश की है.
उपलब्ध हो.' सुधार की िाित एनके बसंह कहते हैं, ‘बपछले बिनों िॉडकाथट एडीटसर्          कुल बमलाकर मौजूिा व्यिथथा टीिी िशर्कों की पसंि-नापसंि को पूरी तरह
एसोबसएशन के िैनर तले कई खिबरया चैनलों के संपािकों की िैठक हुई. इसमें         व्यतत करने में सक्षम नहीं है. इसमें सुधार की जरूरत है. िात बसफर् हजारों करोड़
यह तय बकया गया बक हम टीआरपी की बचंता बकए िगैर खिर बिखाएंगे.’                 का बिज्ापन िेने िालों के बहत की नहीं है. करोड़ों िशर्कों के भले की भी है. l

15 अक्टूबर 2011 तहलका                                                                                                                 आवरण कथा          47

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  • 1. टेलीववजन लेबकन बिज्ापन और आमिनी के ििाि के िीच तया संपािक ऐसा कर पाएंगे? इसके जिाि में िे कहते हैं, ‘यह काफी कबठन काम है तयोंबक िाजार का ििाि हर तरफ है, लेबकन अि ज्यािातर समाचार चैनलों के संपािक इस िात पर सहमत हैं बक टीआरपी की बचंता बकए िगैर अपना चैनल चलाना होगा. तयोंबक टीआरपी संभ्रांत िगर् की पसंि-नापसंि को बिखाता है न बक हमारे सभी िशर्कों की रुबच को.’ आशुतोष कहते हैं, 'ऐसा बिककुल संभि है बक खिबरया चैनल टीआरपी पर ध्यान न िेते हुए खिरों का चयन करें. इसके बलए संपािक और ििंधन िोनों को अपने-अपने थतर पर मजिूती बिखानी होगी. यह समझना होगा बक टीआरपी बकसी भी खिबरया चैनलों का मापिंड नहीं हो सकता.' िे आगे जोड़ते हैं, 'अगर आप बपछले डेढ़ साल में समाचार चैनलों में सामग्री के थतर पर आए ििलाि को िेखगे तो पता चलेगा बक सुधार हो रहा है. यह सुधार रातोंरात नहीं ें हुआ है. िबकक टीिी चैनलों पर बसबिल सोसायटी, सरकार और सिसे अबधक िशर्कों का ििाि पड़ा है. िशर्क चैनलों को गाली िेने लगे और समाचार चैनलों के सामने बिकिसनीयता का संकट पैिा हो गया. इसके िाि िीईए िना और आपस में समाचार चैनलों के संपािक िातचीत करने लगे और सुधार की कोबशश की गई. इस िीच न्यज िॉडकाथटसर् एसोबसएशन (एनिीए) ने भी आत्मबनयमन की ू बिशा में काम बकया. इसका असर अि बिख रहा है और समाचार चैनलों में खिर एक तिका मानता है बक टीिी उयोग को हर साल 10,300 करोड़ रुपये के बिज्ापन बमलते हैं इसबलए सही और बिकिसनीय आंकड़े हाबसल करने के बलए इतने छोटे सैंपल से कैसे सभी 660 करोड़ रुपये खचर् करने में इस उयोग को िहुत परेशानी नहीं होनी चाबहए. दशर्कों की पसंद-नापसंद तय हो ठाकुरता कहते हैं, 'टेलीबिजन उयोग के पास पैसे की कमी नहीं है. मीटरों की सकती है? प्रबु राज प्रमुख, सहािा संयया िढ़ाने के बलए होने िाला खचर् िह आसानी से जुटा सकता है. पर यहां समय (रबहाि-झािखंड ) मामला नीयत का है. अगर टैम की नीयत ठीक होती तो मीटरों की संयया िढ़ाने या इसमें हर िगर् को िबतबनबधत्ि िेने की िात चलती लेबकन अि तक ऐसा होता नहीं बिखा. जि भी मीटरों की संयया िढ़ी है ति यह िेखा गया है बक ऐसा एक िार बफर से लौट रही है. कुछ चैनल अि भी टीआरपी के बलए खिरों को बिज्ापनिाताओं के बहतों को ध्यान में रखकर बकया गया. इससे साबित होता है फैंटसी की िुबनया में ले जाकर बिखा रहे हैं. इसकी बजतनी भी बनंिा की जाए कम े बक टैम जो टीआरपी िेती है उसका िशर्कों के बहतों से कोई लेना-िेना नहीं है.' है. लेबकन समय के साथ िे भी सुधरेंग.े ' अबमत बमिा सबमबत ने यह भी कहा है बक हर रोज और हर हफ्ते रेबटंग जारी भाित में टीआरपी के क्षेि में मची अंधेरगिीर् का अंिाजा इसी िात से लगाया करने से चैनलों पर अबतबरतत ििाि िनता है इसबलए इसे 15 बिन में एक िार जा सकता है बक यहां रेबटंग करने िाली कंपबनयों के पंजीकरण के बलए कोई जारी करने के बिककप पर भी बिचार बकया जा सकता है. कुछ ऐसी ही िात बनधार्बरत िणाली नहीं िनाई गई. यह िात खुि सूचना और िसारण मंिालय और आशुतोष भी कहते हैं, 'या तो टीआरपी की व्यिथथा को पूरी तरह से िंि बकया िसार भारती ने संसिीय सबमबत के समक्ष थिीकार की है. संसिीय सबमबत ने इस जाए. अगर ऐसा संभि नहीं हो तो हर हफ्ते टीआरपी के आंकड़े जारी करने की िात की बसफाबरश की है बक रेबटंग िणाली में पारिबशर्ता लाने के बलए थितंि, व्यिथथा िंि हो. हर छह महीने पर आंकड़े जारी हों. इससे ििाि घटेगा और खिरों योग्य और बिशेषज् ऑबडट फमोों ि‍ारा रेबटंग एजेंबसयों की ऑबडबटंग करिाई जाए. की िापसी का राथता खुलगा. टीआरपी के मीटरों की संयया िढ़ाई जाए और े अबमत बमिा सबमबत ने भी यह बसफाबरश की है. ऐसा करने से यह सुबनबकचत हो इसका िंटिारा आिािी के आधार पर हो. साथ ही हर क्षेि के मीटर को िरािर सकेगा बक आंकड़ों के साथ हेरा-फेरी नहीं हो रही है. हालांबक, टैम यह िािा करती महत्ि (िेटज) बिया जाए.' े है बक िह अंतररा£‍ीय मानकों के बहसाि से आंतबरक ऑबडबटंग करिाती है. इस िीच एनिीए ने टैम मीबडया बरसचर् से आंकड़े जारी करने की समय-सीमा ठाकुरता कहते हैं, 'अगर टैम चाहती है बक टीआरपी पर लोगों का भरोसा िना में ििलाि की मांग की है. एनिीए का कहना है बक टीआरपी आंकड़े जारी करने रहे तो उसे कई किम उठाने होंगे. सिसे पहले तो यह जरूरी है बक िह अपने की अिबध को साप्त‍ाबहक से माबसक कर बिए जाने से यह मीबडया के बलए ज्यािा मीटरों की संयया िढ़ाए. मीटर हर िगर् के घरों में लगें. गांिों तक इनका बिथतार लाभिि रहेगा. एनिीए ि‍ारा टैम से यह िातचीत बपछले कुछ बिनों से हो रही थी, हो और पूरे मामले में बजतना संभि हो सके उतनी पारिबशर्ता िरती जाए. कोई लेबकन अि एनिीए ने टैम को पि िेकर टीआरपी जारी करने की अिबध में ऐसी व्यिथथा भी िने जहां टीआरपी से संिबं धत बशकायत िजर् करने की सुबिधा ििलाि करने की गुजाबरश की है. उपलब्ध हो.' सुधार की िाित एनके बसंह कहते हैं, ‘बपछले बिनों िॉडकाथट एडीटसर् कुल बमलाकर मौजूिा व्यिथथा टीिी िशर्कों की पसंि-नापसंि को पूरी तरह एसोबसएशन के िैनर तले कई खिबरया चैनलों के संपािकों की िैठक हुई. इसमें व्यतत करने में सक्षम नहीं है. इसमें सुधार की जरूरत है. िात बसफर् हजारों करोड़ यह तय बकया गया बक हम टीआरपी की बचंता बकए िगैर खिर बिखाएंगे.’ का बिज्ापन िेने िालों के बहत की नहीं है. करोड़ों िशर्कों के भले की भी है. l 15 अक्टूबर 2011 तहलका आवरण कथा 47