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अष्टटावकक र गगीतटात
(अष्टटाबकक र गगीतटा रटाजटा जनककको जजजटाशटा र जविदटान अष्टबकक रकको उत्तर बगीचकको ससंविटाद हको । रटाजटा जनक सकोध्छनकन्ः मटानविलले जटान कसरगी
पकरटाप्त गछर्छनक हटामगीलटाइ ममजकत र बबैरटाग्य कसरगी जमल्छ? Janaka said: How is one to acquire knowledge? How is one
to attain liberation? And 
how is one to reach dispassion? Tell me this, sir. 1.1)
२० पकरकरण
१ पकरथम पकरकरण
जनक उविटाचन्ः
हले ईश ! मटानवि जटान कबै सले , पकरटाप्त कर सकतटा अहको !
हममें ममजकत और विबैरटाग्य कबै सले , जमल सकमें कक पयटा कहको [ १ ]
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
जपकरय तटात यजद तत ममममक्ष , तज जविषयकोसं कको ,जबैसले जविष तजमें ,
सन्तकोष ,करूणटा सत, क्षमटा , पगीयतष वित जनत ­जनत भजमें . [ २ ]
न हगी विटायम , जल , अजग्न , धरटा और न हगी तत आकटाश हबै ,
ममजकत हलेतम सटाक्ष्य तत , चबैतन्य रूप पकरकटाश हबै . [ ३ ]
यजद पकथक करकले दलेह भटावि कको , दलेहगी ममें आविटास हको 
तब तत अभगी समख शटासंजत , बन्धन ममकत भवि , जविश्विटास हको .[ ४ ]
विणर्छ आशकरम कटा न आत्मटा, सले ककोई सम्बन्ध हबै ,
आकटार हगीन अससंग कले विल , सटाक्ष्य भटावि पकरबसंध हबै . [ ५ ]
समख दमन्ःख धमर्छ ­ अधमर्छ मन कले , जविकटार हहैं तलेरले नहगीसं ,
कतटार्छ, कक तत्त्वि कटा और भतटार्छ भटावि भगी घलेरले नहगीसं . [ ६ ]
सविर्छस्वि दकष्टटा एक तत , और सविर्छदटा उन्ममकत हबै ,
यजद अन्य कको दकष्टटा कहले ,भकरम , तत हगी बन्धन यमकत हबै . [ ७ ]
तत अहमक रुपगी सपर्छ दसंजषत , कह रहटा कतटार्छ महैं हगी ,
जविश्विटास रुपगी अजमय पगीकर कह रहटा , कतटार्छ नहगीसं . [ ८ ]
महैं समध , बमद, पकरबमद , चलेतन , जटानमय चबैतन्य हतहूँ ,
अजटान रुपगी विन जलटा कर , जटान सले महैं धन्य हतहूँ . [९ ]
सब जगत कजल्पत असत ,रज्जम महैं सपर्छ कटा आभटास हबै 
इस बकोध कटा कटारण जक तमझममें , भकरम कटा हगी विटास हबै .[१०]
जको ममकत मटानले ,ममकत स्वि कको, बद मटानले बद हबै,
जबैसगी मजत विबैसगी गजत, जकविसंदसंतगी ऐसगी पकरजसद हबै.­­­११
पजरपतणर्छ,पतणर्छ हबै, एक जविभम, चबैतन्य सटाक्षगी शटासंत हबै,
यह आत्मटा जनन्ःस्पकह जविमल , ससंसटारगी लगतगी भकरटासंत हबै .­­­१२
यह दलेह मन बमजद अहमक, ममकटार , भकरम, हबै अजनत्य हहैं,
कत टस्थ बकोध अदबैत जनश्चय , आत्मटा हगी जनत्य हबै.­­­१३
बहमकटाल सले तत दलेह कले अजभमटान ममें आबद हबै,
कर जटान रूपगी अजर सले बलेधन, जनत्य तब जनबर्छद हबै.­­­१४
जनजष्कक रय जनरसंजन स्वि पकरकटाजशत , आत्म तत्वि अससंग हबै,
तत हगी अनमष्ठटाजपत समटाधगी, कर रहटा कयटा जविससंग हबै.­­­१५
यह जविश्वि तमझममें हगी व्यटाप्त हबै, तमझममें जपरकोयटा सटा हमआ,
तत विस्तमतन्ः चबैतन्य, सब तमझममें समटायटा सटा हमआ.­­­१६
जनरपलेक्ष अजविकटारगी तत हगी, जचर शटाजन्त ममजकत कटा मतल हबै,
जचन्मटातकर जचद्घन रूप तत, चबैतन्य शजकत समतल हबै .­­­१७
दलेह जमथ्यटा आत्म तत्वि हगी , जनत्य जनश्चल सत्य हबै ,
उपदलेश यह हगी यथटाथर्छ, जग आविटागमन, सले ममकत हबै.­­­१८
ज्यकोसं जविश्वि ममें पकरजतजबम्ब अपनले रूप कटा हगी विटास हबै,
त्यकोसं बटाह्य असंतदर्देह ममें, परबकरह्म कटा आविटास हबै.­­­१९
ज्यकोसं घट ममें अन्तन्ः बटाह्य जस्थत सविर्छगत आकटाश हबै,
त्यकोसं जनत जनरसंतर बकरह्म कटा सब पकरटाजणयकोसं ममें पकरकटाश हबै.­­­२०
२ जदतगीय पकरकटारण
जनक उविटाचन्ः
बकोधस्विरूपगी महैं जनरसंजन , शटासंत पकरकक जत सले परले,
ठजगत मकोह सले कटाल इतनले , व्यथर्छ ससंसकजत ममें करले.­­­­१
ज्यकोसं दलेह दलेहगी सले पकरकटाजशत, जगत भगी ज्यकोजतत तथटा,
यटा तको जगत सम्पतणर्छ यटा कम छ भगी नहगीसं मलेरटा यथटा .­­­­२
इस दलेह ममें हगी जविदलेह जग सले त्यटाग विकजत आ गई 
आश्चयर्छ ! जक पकथकत्वि भटावि सले बकरह्म दकजष्ट भटा गई ­­­­३
ज्यकोसं फले न और तरसंग ममें , जल सले न ककोई जभन्नतटा,
त्यकोसं जविश्वि ,आत्मटा सले सकजजत , तदकरूप एक अजभन्नतटा ­­­­४
ज्यकोसं तसंतमओसं सले विस्तकर जनजमर्छत, तन्तम हगी तको मतल हहैं.
त्यकोसं आत्मटा रूपगी तसंतमओसं सले, सकजजत जविश्वि समतल हहैं.­­­­५
ज्यकोसं शकर्छ रटा गन्नले कले रस सले हगी जविजनजमर्छत व्यटाप्त हबै,
त्यकोसं आत्मटा ममें हगी जविश्वि , जविश्वि ममें आत्मटा भगी व्यटाप्त हबै.­­­­६
ससंसटार भटाजसत हको रहटा, जबन आत्मटा कले जटान सले,
ज्यकोसं सपर्छ भटाजसत हको रहटा हटा,रज्जत कले अजटान सले.­­­­७
ज्यकोजतमर्छयगी मलेरटा रूप महैं, उससले पकथक जकसं जचत नहगीसं ,
जग आत्मटा कगी ज्यकोजत सले ,ज्यकोजतत जनजमष विसंजचत नहगीसं ­­­­८
अजटान­ सले हगी जगत कजल्पत , भटासतटा ममझममें अहले,
रज्जत ममें ,अजह सगीपगी ममें चटासंदगी , रजवि जकरण ममें जल रहले .­­­­­९
मटाटगी ममें घट जल ममें लहर , लय स्विणर्छ भतषन ममें रहले ,
विबैसले जगत ममझसले सकजजत , ममझममें जविलय कण कण अहले.­­­­10
बकरह्मटा सले लले पयर्यंत तकण, जग शलेष हको तब भगी मलेरटा,
अजस्तत्वि, अक्षय , जनत्य, जविस्मय, नमन हको ममझकको मलेरटा.­­­11
महैं दलेहधटारगी हतहूँ, तथटाजप अदबैत हतहूँ, जविस्मय अहले,
आविटागमन सले हगीन जग कको व्यटाप्त कर जस्थत महले.­­­­­12
ममझकको नमन आश्चयर्छमय ! ममझसटा न ककोई दक्ष हबै.
स्पशर्छ जबन हगी दलेह धटारूहूँ , जगत कयटा समकक्ष हबै.­­­­­­१३
महैं आत्मटा आश्चयर्छ वित हतहूँ , स्वियसं कको हगी नमन हबै,
यटा तको सब यटा कम छ नहगीसं, न विटाणगी हबै न विचन हबै.­­­­­­१४
जहटाहूँ जलेय, जटातटा,जटान तगीनकोसं विटास्तजविकतटा महैं नहगीसं,
अजटान­ सले भटाजसत हहैं कले विल, आत्मटा सत्यम महगी.­­­­­­१५
चबैतन्य रस अदबैत शमद,ममें,आत्म तत्वि मजहम महगी,
दबैत दमन्ःख कटा मतल, जमथ्यटा जगत, औषजध भगी नहगीसं.­­­­­१६
अजटान­ सले हतहूँ जभन्न कजल्पत, अन्यथटा महैं अजभन्न हतहूँ,
महैं जनजविर्छकल्प हतहूँ, बकोधरूप हतहूँ, आत्मटा अजविजछन्न हतहूँ.­­­­­­१७
ममें बसंध मकोक्ष जविहगीन, विटास्तवि ममें जगत ममझममें नहगीसं,
हमई भकरटासंजत शटासंत जविचटार सले, एकत्वि हगी परमसं महगी.­­­­­­­१८
यह दलेह और सटारटा जगत, कम छ भगी नहगीसं चबैतन्य कगी,
एक मटातकर सत्तटा कटा पसटारटा, कल्पनटा कयटा अन्य कगी ­­­­­१९
नरक, स्विगर्छ, शरगीर, बन्धन, मकोक्ष भय हहैं, कल्पनटा,
कयटा पकरयकोजन आत्मटा कटा, चबैतन्य कटा इनसले बनटा.­­­­२०
हतहूँ तथटाजप जन समतहले, दबैत भटावि न जचत अहको,
एकत्वि और अरण्य वित, जकसले दतसरटा अपनटा कहको.­­­­२१
न महैं दलेह न हगी दलेह मलेरगी, जगीवि भगी ममें हतहूँ नहगीसं,
मटातकर हतहूँ चबैतन्य, मलेरगी जजजगीजविषटा बन्धन महगी.­­­­­२२
महैं महकोदजध, जचत्त रूपगी पविन भगी ममझममें अहले,
जविजविध जग रूपगी तरसंगमें, जभन्न न ममझममें रहले .­­­­२३
महैं महकोदजध जचत्त रूपगी, पविन सले ममझममें महगी,
जविजविध जगरूपगी तरसंगमें, भटावि बन कर बह रहगीसं .­­­­२४
महैं महकोदजध, जगीवि रूपगी, बहम तरसंजगत हको रहगीसं,
जटान सले महैं हतहूँ यथटावित, न जविससंगजत हको रहगी.­­­­­25
३ तकतगीय पकरकरण
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
ममें अदबैत आजत्मक अमर तत्वि सले, सविर्छथटा तममक जविज हको,
कयकोसं पकरगीजत, ससंगकरह जवित्त ममें, ऋत जटान सले अनजभज हको.­­­१
ज्यकोसं सगीप कले अजटान सले,चटासंदगी कटा भकरम और लकोभ हको,
त्यकोसं आत्मटा कले अजटान सले,भकरजमत मजत, अजत क्षकोभ हको.­­­­२
आत्मटा रूपगी जलजध ममें, लहर सटा ससंसटार हबै,
महैं हतहूँ विहगी, अथ जविजदत, जफ़िर कयकोसं दगीन, हगीन जविचटार हहैं.­­­­­­३
अजत समन्दरम चबैतन्य पटाविन, जटानकर भगी आत्मटा,
अन्यटान्य जविषयटासकत यजद,तत मतढ़ हबै, जगीविटात्मटा.­­­­­­­४
आत्मटा कको हगी पकरटाजणयकोसं ममें,आत्मटा ममें पकरटाजणयकोसं 
आश्चयर्छ !ममतटासकत ममजन, यह जटान कर भगी जटाजनयकोसं.­­­­­५
जस्थत परम अदबैत ममें, तत शमद, बमद, ममममक्ष हबै,
आश्चयर्छ ! हबै यजद तत अभगी, जविषयटाजभममख कटामलेच्छम हबै.­­­­­६
कटाम जरपम हबै जटान कटा, यह जटानतले ऋजष जन सभगी,
आश्चयर्छ ! कटामटासकत हको सकतटा हबै मरणटासन्न भगी.­­­­­­७
जविरत जनत्यटाजनत जविविलेचक, भकोग हहैं जनरपलेक्ष ममें,
आश्चयर्छ ! हबै यद्यजप ममममक्षम , भय तथटाजप मकोक्ष ममें.­­­­­८
जटानगी जन तको भकोग पगीडटा , भटावि ममें समभटावि हहैं,
हषर्छ कक रकोध कटा आत्मटा ,पर ककोई भगी न पकरभटावि हबै.­­­­९
दलेह ममें विबैदलेह ऋत अथर्थों ममें ,हबै जटानगी विहगी,
हकोसं भटावि सम जनसंदटा पकरससंशटा , ममें ककोई अन्तर नहगीसं . ­­­­­­१०
अजटान जजसकटा शलेष, ऐसटा धगीर इस ससंसटार कको,
मटातकर मटायटा मटान, तत्पर मकत्यम कले सत्कटार कको.­­­­­११
इच्छटा रजहत मन मकोक्ष ममें भगी, मजह मजहम मजहमटा महले,
उस आत्म जटानगी सले तकप्त जन कगी, सटाम्यतटा जकससले अहले.­­­­१२
धगीर जटानगी जटानतटा हबै, जगत छल हबै पकरपसंच हबै,
गकरहण त्यटाग सले मन परटात्पर, न रमले कहगीसं रसंच हबै.­­­­­१३
विटासनटा कले कषटाय कल्मष, जजसनले असंतस सले तजले,
जनदर्यंद दबैजविक समख यटा दमन्ःख, पर शटाजन्त असंतस ममें सजले.­­­­­१४
अष्टटाबकक र गगीतटान्ः चतमगर्छ पसंचम षष्टम सप्तम अष्ठम पकरकरण
४ चतमथर्छ पकरकरण
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
आत्म जटानगी धगीर जन कले , कमर्छ अजतशय गतढ़ हहैं,
जग जलप्त जन सले सटाम्यतटा, जकसं जचत करमें विले मतढ़ हहैं.­­­­१
दलेवितटा इन्दकरटाजद भगी, इच्छमक हहैं जजस पद कको महगी,
जस्थत उसगी पद पर अहको! यकोगगी कको जकसं जचत मद नहगीसं.­­­­­२
जनजलर्छप्त असंतस पटाप ­पमण्य सले, आत्म जटानगी कटा रहले,
ज्यकोसं गगन कटा धतम सले ,सम्बन्ध जकसं जचत न रहले.­­­­­­३
जविश्विटात्मटा कले रूप ममें, दलेखटा जगत जजस ससंत नले,
उसले ककोई इजच्छत कटायर्छ सले, नहगीसं रकोक सकतटा अनसंत ममें.­­­­­­४
बकरह्मटा सले पयर्यंत चगीसंटगी, चटार जगीवि पकरकटार हहैं,
बस जविज कको इच्छटा अजनच्छटा, त्यटाग पर अजधकटार हबै.­­­­­­­५
हबै आत्मटा परमटात्म मय, ककोई जविरलटा जटानतटा,
जटानगी हगी जनदर्यंद कले विल कर सकले जको ठटानतटा .­­­­­­­­६
५ पसंचम पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
नहगीसं ससंग हबै तलेरटा जकसगी सले, शमद तत चबैतन्य हबै,
त्यटाज्य, तन अजभमटान तटाज दले, मकोक्ष पटा तत अनन्य हबै.­­­­­१
तमझसले जनन्ःसकत ससंसटार, जबैसले जलजध सले हको बमलबमलटा 
आत्मटा कले एकत्वि बकोध सले, मकोक्ष शटाजन्त पथ खमलटा.­­­­­­२
दकश्य जग पकरत्यक्ष जकसं तम , रज्जत सपर्छ पकरतगीत हबै,
चबैतन्य पर तलेरगी आत्म तत्वि ममें, सत्य दकढ़ पकरतगीजत हबै.­­­­३
आशटा­जनरटाशटा , दमन्ःख ­समख, जगीविन ­मरण समभटावि हहैं,
बकरह्म ­दकजष्ट, पकरज जस्थत, पर न इसकटा पकरभटावि हबै.­­­­­­४
६ षष्टम पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
घटवित जगत, पकरकक जत जनन्ःसकत आकटाश विटाट ममें अनसंत हबै,
अतन्ः इसकले गकरहण त्यटाग और लय ममें भगी जनजश्चसंत हबै.­­­­­­­१
ममें सममदकर सदकश्य हतहूँ, यह जग तरसंगकोसं तमल्य हबै,
अतन्ः इसकले गकरहण, लय और त्यटाग कटा कयटा मतल्य हबै.­­­­­­२
सगीपवित महैं हतहूँ यथटा जग ममें रजत सम भकरटाजन्त हबै,
अतन्ः इसकको गकरहण लय न त्यटाग, जटान हगी, शटाजन्त हबै.­­­­­­३
ममें आत्मटा अदबैत व्यटापक , पकरटाजणयकोसं कटा मतल हतहूँ,
अतन्ः इसकले गकरहण लय और त्यटाग ममें जनमतर्छल्य हतहूँ.­­­­­­४
 ७ सप्तम पकरकरणन्ः
जनक उविटाचन्ः
ममझ अनसंत महकोदजध ममें, जविश्वि रूपगी नटावि जको,
मन स्विरूपगी पविन जविचजलत, पर न महैं सम्भवि जको.­­­­­­१
ममझ अनसंत महकोदजध ममें, जग कल्लकोल स्विभटावि जको,
उदय, चटाहले अस्त, अब महैं विकजद क्षय, समभटावि जको.­­­­­२
महैं अनसंत महकोदजध , जग कल्पनटा जनन्ःसटार हबै,
अब शटासंत, महैं जस्थत अविस्थटा, ममें न ककोई जविकटार हबै .­­­­३
आसजकत जविषयकोसं कले पकरजत, मन दलेह कगी मलेरगी नहगीसं,
आत्मज , ममकत हतहूँ स्पकहटा सले, जविषयकोसं कगी चलेरगी नहगीसं.­­­­­­४
आश्चयर्छ ! महैं चबैतन्य और यह जविश्वि मटातकर पकरपसंच हबै,
अतन्ः जग कगी लटाभ हटाजन महैं, रूजच नहगीसं रसंच हबै.­­­­­५
८ अष्ठम पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
कम छ त्यटागतटा कम छ गकरहण करतटा, मन दमजखत हजषर्छत कभगी,
यहगी भटावि मन कले जविकटार , बसंधन यमकत हहैं, बसंजधत सभगी.­­­­­­­­१
न हगी गकरहण, न हगी त्यटाग , दमन्ःख सले परले मन मकोक्ष हबै,
एक रस मन कगी अविस्थटा, सविर्छदटा जनरपलेक्ष हबै.­­­­­२
मन जलप्त हकोतटा जब कहगीसं, तको बसंध बसंधन हलेतम हबै,
जनजलर्छप्त हकोतटा जब विहगी मन , मकोक्ष कटा मन सलेतम हबै.­­­­­३
' महैं " भटावि हगी बसंधन महत, " महैं " कटा हनन हगी मकोक्ष हबै,
त्यटाग और गकरहण सले हको परले मन, तब मनन जनरपलेक्ष हबै.­­­­­­­­­­४
९ नविम पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
कमर्छ कक त और अकक त दमन्ःख ­ समख, शटासंत कब जकसकले हमए 
त्यकत विकजत, अविकरतगी जचत्त, जनरपलेक्ष हहैं जजनकले जहयले.­­­­­१
उत्पजत्त और जविनटाश धमटार्छ तटात ! जविश्वि जनतटासंत हबै,
जगत कले पकरजत जजजगीजविषटा, नहगीसं ससंत कगी भगी शटासंत हबै.­­­­­२
तकरबैतटाप दतजषत, हलेय, जनजन्दत , जगत कले विल भकरटाजन्त हबै,
त्यकत हबै, जनन्ःसटार जग कको, त्यटागनले ममें शटाजन्त हबै.­­­­­३
विह अविस्थटा कटाल ककौन सगी, जब मनमज जनदर्यंद हको,
समलभ सले ससंतमष्ट, जसजद पथ चलले , स्विच्छसंद हको.­­­­­­४
बहम मत मतटान्तर यकोजगयकोसं कगी, मजत भकरजमत करतले यथटा,
अध्यटात्म और विबैरटाजगयकोसं कगी, शटाजन्त भसंग करमें तथटा.­­­­­५
१० दशम पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
सब अनथर्थों कटा मतल कटारण, अथर्छ हबै और कटाम हबै,
इनकगी उपलेक्षटा मतल धमर्छ हबै, कमर्छ ममें जनष्कटाम हबै.­­­­­­१
धन, जमतकर, क्षलेतकर , जनकले त, स्तकरगी, बसंधम स्विप्न समटान हहैं,
इन्दकर जटाल समटान, पटाहूँच यटा तगीन जदन कले जविधटान हहैं.­­­­­२
जजस विस्तम ममें इच्छटा बसले , समझको विहटासं ससंसटार हबै,
विबैरटाग्य भटावि पकरधटान जचत्त सले,जटान सब जनन्ःसटार हबै.­­­­­­३
ससंसटार तकष्णटा रूप हबै,तकष्णटा जहकोसं ससंसटार हबै,
विबैरटाग्य आशकरय हको मनटा, तकष्णटा रजहत समख सटार हबै.­­­­­४
यह अजविद्यटा भगी असत और असत जड़ ससंसटार हबै,
चबैतन्य रूप जविशमद, तमझकको तको जगत जनन्ःसटार हबै.­­­­­५
दलेह, नटारगी, रटाज्य, समत आसकत जन कले समख सभगी,
हर जनम ममें मरण धमटार्छ, नष्ट यले हकोसंगले सभगी.­­­­­६
धमर्छ, अथर्छ, और कटाम जहत, बहम कमर्छ तको जकतनले जकए,
जगत रुपगी विन ममें तको भगी, शटाजन्त जहत भटकले जहयले.­­­­­७
दलेह, मन, विटाणगी सले शकरम, दमन्ःख पतणर्छ बहम ततनले जकए,
उपरटाम कर अब तको तजनक, जविशकरटासंजत जचत जहय ममें जकए.­­­­­८
११ एकटादश पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
भटाविकोसं जविभटाविकोसं कले स्विभटाविकोसं सले जनन्ःसकत जको जविकटार हहैं
जजसले जटात, कललेश जविहगीन समखमय, शटाजन्त रस ससंचटार हबै..­­­­­१
सविर्छ दकष्टटा ईश जनश्चय, दतसरटा ककोई नहगीसं,
जजसले जटात विह अजत शटासंत, उसकगी कटामनटा ककोई नहगीसं.­­­­­­२
ससंपजत्त और आपजत्त जनश्चय, दबैवि यकोग जविधटान हहैं,
ससंतमष्ट विटासंछटा शकोकहगीन हहैं, जजनकको इसकटा जटान.­­­­­­­३
जगीविन मरण समख और दमन्ःख दबैविगीय हहैं जको जटानतटा,
भटावि कतटार्छ शतन्य हकोकर, कमर्छ जविजध पहचटानतटा.­­­­­­­४
जचसंतटा सले दमन्ःख हबै अन्यथटा कम छ भगी नहगीसं जको जटानतले,
अन्तन्ः समटाजहत शटासंत विले सब ईश इच्छटा मटानतले.­­­­­­५
न महैं दलेह, न हगी दलेह मलेरगी, जनत्य बकोध स्विरुप हतहूँ,
कक त ­ अकक त कटा जविस्मरण और महैं जविदलेह अरूप हतहूँ.­­­­­६
बकरह्म सले पयर्यंत तकण, बस एक महैं हगी हतहूँ यथटा,
जनजविर्छकल्पगी शटासंत, अज हबै लटाभ हटाजन कगी पकरथटा.­­­­­७
आश्चमर्छय यद्यजप जगत, जमथ्यटा तथटाजप क्षजणक हबै,
बकोधस्विरूपगी ममर्छ जटातटा, शटासंत जलप्त न तजनक हबै.­­­­­­८
१२ दटादश पकरकरणन्ः
जनक उविटाचन्ः
दलेह विटाजचक मटानजसक, कमर्थों कको कर स्विच्छसंद हतहूँ,
चबैतन्य आत्मटानसंद जस्थत, पतणर्छ परमटानसंद हतहूँ.­­­­­­­१
शब्दटाजद इजन्दकरयकोसं कले पकरजत, अब पकरगीजत भटावि अभटावि हबै
अब जविक्षलेपकोसं कटा न आत्मटा पर भगी ककोई पकरभटावि हबै,­­­­२
महैं आत्म रूप हतहूँ, अतन्ः इन जनयमकोसं कले न वियविहटार हहैं.­­­­­३
गकरटाह्य ­त्यटाज्य जवियकोग जनन्ःसकत , दतर हषर्छ जविषटाद सले,
अब हतहूँ यथटावित आत्म जस्थत, बकरह्म जटान पकरसटाद सले ­­­­­४
आशकरम , अनटाशकरम, ध्यटान विजर्छन, आजद सले उन्ममकत हतहूँ,
इनसले परटात्पर आत्म जस्थत , आत्मटा उन्ममकत हतहूँ.­­­­­५
त्यटाग और ससंकल्प मन कले , मतल ममें अजटान हहैं ,
न मन मलेरटा अब कमर्छ कतटार्छ और न उपरटाम हबै.­­­­­­६
बकरह्म जचसंतन भगी हबै बसंधन, उससले भगी उन्ममकत हतहूँ,
आत्मटा ममें हगी हतहूँ पकरजतजष्ठत, आत्मटा सले ससंयमकत हतहूँ.­­­­­­७
यजद आत्मवित हगी स्विभटावि स्वितन्ः, विह तको कक त ­ कक त धन्य हबै,
जटानगी हहैं विले भगी, स्वियम पटायमें, यटा जक सटाधन जन्य हबै.­­­­­­८
१३ तकरयकोदश पकरकरणन्ः
जनक उविटाचन्ः
ककौपगीन धटारण पर भगी दमलर्छभ, जको अविस्थटा जचत्त कगी,
विह कम छ नहगीसं कले भटावि सले, अनमभतजत हकोतगी जनत्य कगी.­­­­­१
दलेह कटा दमन्ःख हबै कहगीसं तको विटाणगी मन कटा दमन्ःख कहगीसं,
त्यटाग कर अतएवि तगीनकोसं आत्मसमख पटायटा यहगीसं.­­­­­­२
दलेहटाजद सले कक त कमर्छ उनसले तको आत्मटा जनजलर्छप्त हबै,
कक त कमर्छ जको भगी आ पड़टा, करकले उसले समख, तकप्त हबै.­­­­­३
कमर्छ और जनष्कमर्छ बसंधन यमकत भटावि कले लकोग सले,
महैं सविर्छथटा हगी अससंग, पकरममजदत दलेह यकोग जवियकोग सले ­­­­­­४
जनरपलेक्ष, जनन्ःस्पकह हतहूँ यथटा, गजतस्विप्न, अथर्छ अनथर्छ सले,
अथ जटागतटा सकोतटा तथटाजप ममजदत, जनन्ःस्पकह सले.­­­­­­५
समख अजनत्य हबै, ममर्छ बहम जन्मकोसं ममें जटानटा इसजलए,
अशमभ ­ शमभ सब त्यटाग जनन्ःस्पकह भटावि हतहूँ पकरममजदत जहयले ­­­­­६
१४ चतमदर्छश पकरकरणन्ः
जनक उविटाचन्ः
जविषय सलेविगी पकरभटावि सले और शतन्य जचत्त स्विभटावि सले
समप्त हहैं,जटागकरत तथटाजप, जविरत जविश्वि पकरभटावि सले.­­­­­१
पतनटार्छत्मदशर्शी अब मलेरगी जविषयटानमरजकत शतन्य हबै,
जटान धन और शटास्तकर जमतकरकोसं ममें भगी रूजच अजत न्यतन हबै.­­­­­­२
अयआत्मटा हगी बकरह्म हबै और बकरह्म हगी सविर्छज हबै,
ममझले मकोक्ष कगी जचसंतटा नहगीसं, सविर्छग्य जब सले जविज हबै.­­­­­­३
ससंकल्प शतन्य जविकल्प सले मन, बटाह्य पर उन्मत्त हबै,
यह दशटा जटानले विहगी, जको स्वियम जटान पकरवित्त हबै.­­­­­­­­४
१५ पन्चदश पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
सतबमजद जन उपदलेश जकसं जचत, मटातकर सले हगी जसद हकोसं,
पर जन असत जजजटासम न, पयर्यंत आयम पकरबमद हकोसं.­­­­­१
रटाग जविषयकोसं सले हगी बसंधन और जविरजकत मकोक्ष हबै,
जटान कटा हबै सटार इतनटा, शलेष सब सटापलेक्ष हबै.­­­­­­­२
तत्त्विबकोध हबै त्यकत जजनकको, भकोग जपकरय हबै जविलटासतटा,
तत्विज कको जड़ आलसगी, करले मतक कगी विटाचटालतटा.­­­­­­३
न तत दलेह, न हगी दलेह तलेरगी, कतटार्छ तत भकोकतटा नहगीसं,
चबैतन्य तत जनरपलेक्ष सटाक्षगी, जनत्य जविचरले हर कहगीसं.­­­­­४
तमम जनजविर्छकटारगी, जनजविर्छकल्पगी, बकोधरूपगी अजत महले,
रटाग दलेष जविकटार मन कले , न आत्मटा जकसं जचत गहले.­­­­­५
सब पकरटाजणयकोसं ममें आत्मटा और सब पकरटाजणयकोसं कको आत्मटा
ममें जटान तज ममतटा अहम, सविर्छतकर हबै बकरह्मटात्मटा ­­­­­­­६
स्फम जरत असंतस ममें तलेरले, जगत हकोतटा लहर सटा,
पर आत्मटा चबैतन्य तत तको, सदटा रहतटा एक सटा.­­­­­­७
हले तटात ! तमम शकरदटा करको, नहगीसं मकोह सले ककोई तरले,
तत आत्मटा परमटात्मटा मय, तत तको पकरकक जत सले भगी परले.­­­­­८
यह दलेह बहम गमण जलप्त और आविटागमन सले यमकत हबै,
मत सकोच तत तको आत्मटा, आविटागमन सले ममकत हबै.­­­­­९
दलेह चटाहले जटाए तत्क्षण यटा जक कल्प कले असंत ममें,
नहगीसं विकजद क्षय चबैतन्य तत्वि कगी, मतल उसकटा अनसंत ममें.­­­­­१०
तत महकोदजध, जविश्वि रूप तरसंग विकजत आप्त हबै,
पर जगत कगी विकजद क्षय सले आत्मटा नहगीसं व्यटाप्त हबै.­­­­­११
हले तटात ! तमम चबैतन्य, तममसले जभन्न जग जकसं जचत नहगीसं,
कयटा त्यटाज्य और कयटा गकरटाह्य, इसकगी कल्पनटा सममजचत नहगीसं.­­­­­१२
तत एक जनमर्छल अव्ययसं चबैतन्य रूप आकटाश ममें,
कहटाहूँ जन्म, कमर्छ, अहम कहटाहूँ, तत आत्म वित स्वि पकरकटाश ममें.­­­­­­१३
कयटा कसं गनटा, कयटा घतहूँघरू, सब स्विणर्छ कले हगी पकरकटार हहैं,
तत आत्मटा उसममें भगी तलेरले जभन्न ­जभन्न आकटार हहैं.­­­­­­­१४
यह महैं हतहूँ और महैं यह नहगीसं, सब भकरजमत मन कले जविकल्प हहैं,
सब आत्मटा हहैं अजभन्न इनममें, जभन्नतटा नहगीसं अल्प हबै.­­­­१५
परमटाथर्छतन्ः तत एक, तमझसले अन्य ककोई न जटान हबै,
ससंसटार, ससंसटारगी, अससंसटारगी भकरजमत अजटान हबै.­­­­­­१६
ससंसटार भकरम और कम छ नहगीसं, जजसले जटात विह चबैतन्य हबै,
बहम विटासनटाओसं सले रजहत, विह शटासंत व्यजकत अनन्य हबै.­­­­­१७
भवि उदजध ममें तत हगी थटा, और हबै रहलेगटा एक तत,
मकोक्ष बसंधन हगीन, समख उन्ममकत जविचरलेगटा एक तत.­­­­­­१८
ससंकल्प और जविकल्प सले, चबैतन्य अब तत जचत्त कको,
क्षकोजभत न कर, आनसंद मन, समख रूप ममें पटा जनत्य कको ­­­­­­१९
चबैतन्य सत्तटा ममकत रूप हको, आत्मटा एकमलेवि हगी,
जफ़िर ध्यटान जचसंतन मनन जकसकटा, आत्म भत स्वियमलेवि हगी.­­­­­­­२०
१६ शकोडष पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
बहम भटासंजत बहम शटास्तकरगीय अध्ययन , और कथन करतले रहले,
पर जविस्मरण इनकटा जकए जबन, शटाजन्त न कजतपय अहले.­­­­­१
तलेरटा कमर्छ, भकोग समटाजध ममें, यजद जचत्त भगी उन्ममख रहले,
यजद मतल ममें जनष्कटाम, जविज कले बकरह्म तको सन्ममख अहले.­­­­­­­२
हहैं कलटासंत शकरम सले जगीवि सब, इसकको नहगीसं ककोई जटानतटा,
यह जटान गम्य, हहैं धन्य जको इस ममर्छ कको पहचटानतटा.­­­­­­३
चक्षमओसं कले खकोलनले और बसंद सले भगी जको दमन्ःखगी,
उस जशरकोमजण आलसगी कको ककौन कर सकतटा समखगी.­­­­­­४
कक त और अकक त कले दसंद सले, मन ममकत हको तब ममजकत हबै,
धन, अथर्छ, मकोक्ष और कटाम इच्छटा, शतन्यतटा हगी यमजकत हबै.­­­­­५
जविषय कटा दलेषगी जविरत हबै, जविषयलकोलमप जलप्त हबै,
त्यटाग और गकरहण सले जको परले, जन सविर्छथटा जनजलर्छप्त हहैं.­­­­­­६
जब तक हबै तकष्णटा अजविविलेकगी, भटावि रहतटा समतल हबै,
त्यटाग और गकरहण कगी भटाविनटा ससंसटार विकक्ष कटा मतल हबै.­­­­­­७
रटाग ममें पकरविकजत, जनविकजत ममें दलेष, भटावि कटा दकोष हबै,
धगी, मटान, जन, जनदर्यंद, सम बटालक व्यविहृत जनदकोर्छष हबै.­­­­­­८
दमन्ःख जनविकजत कले जलए, जग त्यटाग रटागगी कगी चटाह हबै,
पर विगीतरटागगी जग ममें भगी, समख शटाजन्त पटातटा अथटाह हबै.­­­­­­९
अजभमटान जजसकको मकोक्ष कटा, और दलेह ममतटा सकत हबै,
जटानगी और यकोगगी नहगीसं, बस दमन्ःख भकोगगी अशकत हबै.­­­­­­­­१०
यजद बकरह्मटा, जविष्णम जशवि तलेरले, उपदलेश कतटार्छ भगी रहमें,
तको भगी जबनटा जविस्मकजत कले , जबन त्यटाग न शटाजन्त अहले.­­­­­­११
१७ सप्तदश पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
जको जनत्य तकप्त पजवितकर,इजन्दकरय यमकत एकटाकगी रममें,
विले, जटान यकोगटायमकत, फल और ममजकत न उनकगी थमले.­­­­१
तत्वि जटानगी कको इस जगत कले दमन्ःख कदटाजप न भटासतले.
विले तको स्वियम भत, बकरह्म तत्वि कले मतल रूप उपटासतले.­­­­­­­२
ज्यकोसं सल्लकगी पल्लवि कको चख, गज नगीम पल्लवि न चखले,
त्यकोसं आत्म रमणगी, आत्म समख सम ककोई भगी समख न रखले.­­­­­३
भकोगले हमए भकोगकोसं ममें जको जकसं जचत नहगीसं आसकत हबै,
दमलर्छभ जगत ममें व्यजकत जको, अभमकत सले भगी जविरकत हबै..­­­­­­­४
भकोग ­मकोक्ष कगी चटाहनटामय, जन जगत ममें सरल हहैं,
पर भकोग मकोक्ष कगी चटाहनटा , सले नर परले अजत जविरल हबै.­­­­­५
जगीविन, मरण, धन, धमर्छ, मकोक्ष विक कटाम ममें जनरपलेक्ष हको,
त्यटाग और गकरहण ममें आत्मजटानगी न कभगी सटापलेक्ष हकोसं.­­­­­­६
ससंसटार लय अथविटा रहले, इसकले पकरजत न जविदलेष हबै,
विटासंछटारजहत, ससंतमष्ट, धन्य विले बकरह्म भटावि जविशलेष हबै.­­­­­­७
सतसंघतटा, स्पशर्छ, समनतटा, दलेखतटा, खटातटा हमआ,
चलेतनटा चबैतन्य कगी जटानगी कगी सब करतटा हमआ.­­­­­­­८
ससंसटार सटागर क्षगीण जजसकटा, दकजष्ट भगी अब न्यतन हबै,
व्यथर्छ चलेष्टटा इजन्दकरयटासं तकष्णटा जविरजकत शतन्य हबै.­­­­­­­९
जटागतटा, सकोतटा, पलक न बसंद करतटा खकोलतटा,
उत्कक ष्ट पकरटाणगी जफ़िर अहको! आनद जदव्य ममें डकोलतटा­­­­­­१०
ममकत जन सविर्छतकर शटासंत, पजवितकर मन कटा हबै अहले,
सब विटासनटाओसं सले रजहत,सविर्छतकर शकोजभत अजत महले.­­११
दलेखतटा, स्पशर्छ, समनतटा, सतसंघतटा, खटातटा हमआ,
आत्म जटानगी अजलप्त दसंद जविममकत, सब करतटा हमआ.­­­­१२
स्तमजत जनसंदटा नहगीसं,कक रकोजधत और हजषर्छत भगी नहगीसं
मन जचत्त नगीरस ममकत जन कटा, ललेतटा दलेतटा भगी नहगीसं.­­­­१३
न हगी जपकरजतमय नटारगी कको अथविटा मकत्यम दलेख समगीप ममें,
अजविचल मनटा मन जचत्त जस्थत, बकरह्म रूप अरूप ममें.­­­­१४
समख दमन्ःख ममें, नर नटारगी ममें, ससंपजत्त और जविपजत्त ममें,
सविर्छतकर सम दकष्टटा हबै जटानगी, सकजष्ट ममें यटा व्यजकत ममें.­­­­­­­१५
आत्म जटानगी कको पकरयकोजन जविश्वि सले जकसं जचत नहगीसं,
न क्षकोभ, करुणटा, दगीनतटा, आश्चयर्छमय जचसंजतत नहगीसं.­­­­१६
जनजलर्छप्त, न जविषयटा जविदलेषगी, न जविषय स्पसंजदत रहले,
पकरटाप्त और अपकरटाप्त ममें, मन जविरत आनसंजदत रहले.­­­­१७
जहत अजहत, कटारण अकटारण कटा नहगीसं दकौबर्छल्य हबै,
जको ममकत जन जनदर्यंद मन,जचत्त शतन्य, अथ कबै विल्य हबै.­­­­१८
असंतगर्छजलत आशटाएसं , दकढ़ मन अहम ममतटा कम छ नहगीसं,
करले कमर्छ पर जनजलर्छप्त मन, यजद दकजष्ट क्षमतटा, तमच्छ महगी.­­­१९
ससंकल्प और जविकल्प, असंतमर्छन कगी विकजत्त शटासंत हबै,
स्विप्न और जड़तटा सले विजजर्छत, जचत्त सकौम्य जनतटासंत हबै.­­­­­­२०
१८ अष्ठदश पकरकरणन्ः
अष्टटाविकक र उविटाचन्ः
बकरह्म बकोध कले उदय पर,सब भकरटाजन्त स्विप्न सगी शलेष हको,
उस तलेजकोमय आनद बकरह्म कको नमन मलेरटा जविशलेष हको.­­­­­­१
बहम ससंपदटा कको जकोड़ करकले , भकोग मटानवि भकोगतटा,
पर त्यटाग विकजत कले जबनटा, नहगीसं सत्य समख कगी यकोग्यतटा.­­­­२
कमर्छजन्य जविषटाद रूपगी, रजवि सले असंतमर्छन जलटा,
शटाजन्त रूपगी अजमय धटारटा, कले जबनटा कयटा समख भलटा.­­­­­३
परमटाथर्छ ममें आत्मटा हगी सत्य हबै, जगत भकरटाजन्त भटावि हबै,
भटाविटाभटावि जविभटावि ममें स्विभटाविकोसं कटा हगी अभटावि हबै.­­­­­­४
यह सत्य पड़ न तको दतर न ससंककोच सले हगीपकरटाप्त हबै,
जनजविर्छकल्पगी, जनजविर्छकटारगी, दकोषहगीन हबै आप्त हबै.­­­­­­­५
उपरटासंत मकोह जनविकजत पर हगी, जनज स्विरुप कटा भटान हको,
विगीतरटागगी, पटारदशर्शी जन कगी शकोभटा, मटान हको.­­­­­६
ममकत और सनटातन आत्मटा, हबै जगत कले विल कल्पनटा,
यह जटान बटालक कगी तरह अजटान­ हबै कयको अनमनटा ...७
यह आत्मटा हगी बकरह्म भटावि, अभटावि हबै पजरकल्पनटा,
यह जटान जन जनष्कटाम कगी, कयटा कमर्छ कगी ससंकल्पनटा .­­­­­८
यह महैं हतहूँ और महैं यह नहगीसं कगी, कल्पनटाएहूँ जविदगीणर्छ हकोसं,
आत्मटा हहैं एकत्वि बकोध सले, तत्वि जटान पकरकगीणर्छ हको­­­­९
शमभ शटासंत यकोगगी कले जलए, जविक्षलेप हबै न एकटागकरतटा,
समख दमन्ःख बकोध न मतढ़तटा हबै, और न हगी व्यगकरतटा ­­­­१०
जनजविर्छकल्पगी आत्मयकोगगी, न रटाग न अपनत्वि हबै,
लटाभ, हटाजन, रटाज्य , जभक्षटा, विकजत विन ममें समत्वि हबै.­­­११
कहटाहूँ धमर्छ, कटाम, जविविलेक अथर्छ हहैं, ममकत यकोगगी कले जलए,
कमर्छ और अकमर्छ कले दसंद सले, ममकत हहैं जजनकले जहयले.­­­­­१२
कतर्छव्य कमर्छ जनन्ःशलेष, जगीविन ममकत जको यकोगगी महटा,
जनन्ःस्पकह , जवियकोगगी, रटाग जबन, जनन्ःस्विटाथर्छ कक त करतटा यहटाहूँ .­­­­­­१३
जविशकरटासंत यकोगगी कले जलए, कत मकोह कत ससंसटार हबै,
ससंकल्प, ममजकत, ध्यटान सब, जनन्ःशलेष जग जनन्ःसटार हबै.­­­­­­१४
जगत दकष्टटा हगी कहलेगटा जक जगत जनन्ःसटार हबै,
आत्म दकष्टटा दलेख कर भगी दलेखतटा बस सटार हबै.­­­­­­­१५
दलेखटा हबै महैंनले बकरह्म, यह तको दबैत भटावि कगी व्यसंजनटा ,
महैं स्वियसं हगी 'बकरह्म' सत्य अदबैत कगी अजभव्यसंजनटा­­­­­१६
सविकोर्छच्च जस्थजत आत्म जटान ममें, आत्मटा हगी शलेष हबै,
जविक्षलेप मन जचत दलेह और ससंसटार कले जनन्ःशलेष हबै.­­­­­­१७
आत्म जटानगी जग ममें रहकर , मटानतटा नहगीसं गलेह हबै,
जविक्षलेप और बसंधन नहगीसं, और दलेह ममें भगी जविदलेह हबै.­­­­­१८
ककोई अहम नहगीसं कटामनटा, करले कमर्छ पर जनजलर्छप्त हबै, 
भटावि और अभटावि जविहगीन, उसकटा मन सदटा हगी तकप्त हबै.­­­­­१९
पकरविकजत जनविकजत ममें दमरटागकरह, धगीर जन रखतले नहगीसं,
जको कमर्छ भगी करनटा पड़टा, समख सले करमें हटतले नहगीसं.­­­­­२०
विटासनटा, आलम्ब, बन्धनहगीन जटान, सले यमकत हबै,
पकरटारब्ध रूपगी पविन पकरलेजरत, शमष्क पणर्छ वित ममकत हबै.­­­­२१
न हगी हषर्छ, न हगी जविषटाद, जटानगी कको कभगी हकोतटा नहगीसं
मन शटासंत जनत्य जविदलेह, पटातटा और कम छ खकोतटा नहगीसं.­­­­२२
आत्म रमणगी जविमल मन, आनसंद मतल जनविटास हको,
अजतशय परले हको गकरहण त्यटाग सले, बकरह्म ममें जविश्विटास हको.­­­­२३
शतन्य जचत्त स्विभटावि जटानगी, मटान न अपमटान हबै,
सहज रूप सले कमर्छ और जनष्कटाम भटावि पकरधटान हबै.­­­­­२४
हबै कमर्छ करतटा दलेह मन, यह आत्मटा जकसं जचत नहगीसं,
जको कमर्छरत इस भटाविनटा सले, जविरत, रत अनमजचत नहगीसं.­­­­२५
हहैं मतढ़तटा मय कमर्छ अजटानगी कले , जटानगी कले नहगीसं,
अहम मय हहैं मतढ़ , जटानगी जकसं तम अजभमटानगी नहगीसं.­­­­­­२६
दबैत भटावि जविममकत जटानगी कको परम जविशकरटासंजत हबै,
जटानतटा, समनतटा न दलेखले, कल्पनटा न भकरटाजन्त हबै .­­­­­­­२७
जविक्षलेप न ककोई दबैत , जटानगी इसजलए न जविममकत हबै,
बकरह्म वित जस्थत उसले ससंसटार कजल्पत तमच्छ हबै.­­­­­­­२८
अन्तन्ः अहम जजसकले , जबनटा हगी कमर्छ रत ससंकल्प सले, 
जटानगी अहम सले शतन्य रत, पर जविरत कमर्छ जविकल्प सले.­­­२९
ममकतजन कतर्छव्य , आशटा दसंद और उजदग्नतटा 
सले जविरत, हकोकर परले, पर बकरह्म सले ससंलग्नतटा.­­­­­३०
ममकतजन कटा जचत्त, चलेष्टटा ममें पकरविकत हकोतटा नहगीसं,
हलेतम जबन हगी ध्यटान जस्थत, कमर्छ नटानटा बहम महगी.­­­­३१
मतढ़मजत समन तत्वि कको , मतढ़तटा हगी पटा सकले ,
जकसं तम जटानगी, मतढ़वित आभटास, गतढ़ ममें जटा सकले .­­­­३२
मतढ़ अजत अभ्यटास पटातले , जचत कगी एकटागकरतटा ,
जकसं तम जटानगी कगी स्विप्नवित हगी, स्विप्न जस्थत पकरजतटा.­­­­­३३
बहम कमर्थों सले भगी परम समख, अज कको नहगीसं लब्ध हबै,
जटानगी पमरूष कको तत्वि सले, विहगी परम समख उपलब्ध हबै.­­­­­३४
ससंसटार ममें अभ्यटास सले बनतले नहगीसं जसदटात्मटा,
जपकरय पतणर्छ बमद पकरपसंच दमन्ःख सले हगीन, शमद हबै आत्मटा.­­­­­­­३५
अभ्यटास रूपगी कमर्छ सले , नहगीसं मकोक्ष जमलतटा मतढ़ कको,
कमर्छ भटावि जविहगीन जटानगी, धन्य पटातटा गतढ़ कको.­­­­­३६
अजटान­ विश जनज रूप कको, भतलटा हमआ हबै, भकरजमत हबै,
पर जगीवि बकरह्म हबै जटानतले हगी, बकरह्म मय समख अजमत हबै.­­­­३७
आधटार हगीन दमरटागकरहगी मय , जग कटा पकोषक अज हबै,
मतल छलेदन इस जगत कटा, कर सकले जको जविज हबै.­­­­३८
दशर्छन कहटाहूँ उसले आत्मटा कटा,दकष्ट आलसंबन जजसले,
जको दकष्ट कको नहगीसं दलेखतले , अदकष्ट आलसंबन उसले.­­­३९
उनकको नहगीसं समख शटाजन्त , जचत्त जको रकोकतले हठ यकोग सले, 
आत्म रमणगी सहज ससंयम, शटाजन्त सत्य पकरयकोग सले.­­­­­४०
उनकको नहगीसं समख शटाजन्त, जचत्त जको रकोकतले हठ यकोग सले,
आत्म रमणगी , सहज ससंयम, शटाजन्त सत्य पकरयकोग सले.­­­­४१
भटावि रूप हबै बकरह्म तको, ककोई कहतटा कम छ नहगीसं, 
ककोई दकोनकोसं पक्ष मन, जनरपलेक्ष मटानले सबैट महगी.­­­­­४२
दमबमर्छजद जन अदबैत भटावि कटा, मटातकर हगी जचसंतन करमें,
पयर्यंत जगीविन शटाजन्त समख सले, हगीन विले यटापन करमें.­­­­४३
जन ममममक्ष कगी बमजद तको, अबलम्ब जबन रहतगी नहगीसं,
ममकत जन जनष्कटाम, जबन अबलम्ब रहतले हर कहगीसं.­­­­४४
जविषय रूपगी ब्यटागकर सले, भय भगीत हको जग छकोड़तले, 
मतढ़, गतढ़ जनगतढ़ , ममर्छ कगी ओर मन नहगीसं मकोड़तले.­­­­­४५
विटासनटा सले हगीन जन, विले जससंह सम मजहमटा महगी,
जविषय रूपगी विगीर जकन्नर, स्वियम नम हकोतले नहगीसं.­­­­­४६
सतसंघतटा, स्पशर्छ, समनतटा दलेखतटा खटातटा हमआ,
कमर्छ जनश्चय, भटावि जनश्छल, जटानगी कटा करतटा हमआ­­­­­४७
शमद, बमजद, स्विस्थ जचत मन, यमकत व्यजकत यथटाथर्छ कको,
शकरविण सले हगी गकरहण, उनकले जविरकत भटावि पदटाथर्छ कको.­­­­­­४८
हहैं शमभ अशमभ, पकरटारब्ध विश, आगत रजहत हको कमर्छ कको,
जटानगी करले सब बटालवित, जबन रटाग दलेष स्वि धमर्छ कको ­­­­­४९
रटाग दलेष जविममकत जचत मन, सविर्छथटा हगी स्वितसंतकर हबै,
जटान, जनत समख, परम पद स्वि पर जविरल, स्वि तसंतकर हबै.­­­­५०
जब अकतटार्छपन कटा अपनगी, आत्मटा कटा भटास हको,
सकल उसकगी जचत्त विकजतयकोसं चपलतटायमें नटाश हकोसं ­­­­­५१
जटानगी कगी जस्थजत उशकरुन्खल, हको तथटाजप शटासंत हबै.
विकजत्त स्पहटार्छमयगी कगी, शटाजन्त भकरम, उदकरटासंत हबै.­­­­­­५२
जजस धगीर जटानगी कले जचत्त कगी, सब कल्पनटाएहूँ शलेष हकोसं.
पकरटारब्ध बस, भकोग जकसं तम, जचत शटासंत जविशलेष हको­­­­­५३
तगीथर्छ, पसंजडत, दलेवितटा हको, नटारगी, नकप पमतकरटाजद हको,
दलेख कर भगी शटासंत मन, उजदग्न पर न कदटाजप हको.­­­­­५४
जकसं करकोसं, नटाजतयकोसं, पमतकरकोसं, बसंधम बटासंधवि आजद सले
हको जतरस्कक त यटा हको पतजजत, जविलग दमन्ःख समख आजद सले.­­­­५५
लकोक दकजष्ट सले जको समख दमन्ःख, उनसले जटानगी हबै परले.
आश्चयर्छमय ऐसगी दशटा कटा जटान, जटानगी हगी करले.­­­­­­­५६
जचत्त जटानगी कटा जनजविर्छकटारगी, शतन्य न आकटार हबै,
ससंकल्प हगीन जनरटामयटा, कतर्छव्यतटा ससंसटार हबै.­­­­­५७
मतढ़ जन कतटार्छ हगी हबै, कमर्छ यद्यजप नहगी करमें ,,
जटानगी अकतटार्छ हगी रहले, कमर्छ यद्यजप बहम करमें .­­­­­५८
शयन भकोजन और विचन ममें, जटान हगी आधटार हबै,
आत्म समखमय शटासंत सम्यक, जटानगी कटा व्यविहटार हबै.५९
जटानगी कटा व्यविहटार पकरलेजरत,आत्मजटान स्विभटावि सले,
कललेश, क्षकोभ जविहगीन, सटागरवित, जविरकत पकरभटावि सले.­­­­६०
मतढ़ कगी जनविकजत भगी, पकरविकजत रूपगी हबै तथटा, 
जटाजनयकोसं कगी पकरविकजत हबै, रूप जनविकजत कगी यथटा ­­­­६१
मतढ़ कटा विबैरटाग्य तको, गकह आजद ममें दकष्टव्य हबै,
दलेह ममें लय रटाग धगीर कटा, बकरह्म हगी गसंतव्य हबै.­­­­६२
भटाविनटा यटा अभटाविनटा ममें, मतढ़ जन आसकत हहैं,
जकसं तम जटानगी जन कगी दकजष्ट आत्मटा अनमरकत हबै.­­­­­६३
करले बटालवित व्यविहटार जटानगी, कटामनटाओसं सले परले,
पकरटारब्ध विश रत कमर्छ, रत न भटाविनटाओसं कको करले.­­­­६४
दलेखतटा, स्पशर्छ, समनतटा, सतसंघतटा खटातटा हमआ,
आत्म जटानगी, धन्य सम मन, जनस्तरण पटातटा हमआ.­­­­­६५
सविर्छदटा आकटाश वित जटानगी, सदटा जनजविर्छकटार हबै,
आभटास, सटाधन, सटाध्य, और उसकटा कहटाहूँ ससंसटार हबै.­­­­­६६
जको समटाजध सहज ममें, और पतणटार्छनन्द स्विरुप ममें,
सतत हगी करतटा रमण, जय जयजत अपनले हगी रूप ममें.­­­­­­­६७
जनरटाकटासंक्षगी तत्वि जटानगी, मकोक्ष ममें और भकोग ममें,
रटाग दलेष जविहगीन हर पल बकरह्म कले ससंयकोग ममें.­­­­­­६८
जभन्नतटा अजटान हबै, जको दबैत कटा आधटार हबै,
जको आत्मबकोध पकरबमद, उसकटा छतटतटा ससंसटार हबै.­­­­६९
जविश्वि मटातकर पकरपसंच जटानगी कले जलए कम छ भगी नहगीसं,
चबैतन्य आत्मटा अनमभविगी कको, तमच्छ सटारगी भगी महगी .­­­७०
शम कहटाहूँ पर त्यटाग अथविटा कमर्छ जविजध, शटाजन्त कहटाहूँ,
अजटानतटा कटा हबै पसटारटा, भकरजमत , भकरम, भकरटाजन्त यहटाहूँ.­­­­­७१
कहटाहूँ मकोक्ष, बसंधन जटाजनयकोसं कको, हषर्छ और जविषटाद हबै,
सब बकरह्ममय बकरह्मटाण्ड मटायटा, पकरकक जत बकरह्म पकरसटाद हबै.­­­­­­७२
ससंसटार ममें पयर्यंत बमजद, मटायटा कगी हगी मटायटा हबै,
जनष्कटाम बमद, पकरबमद दकजष्ट ममें, जगत कले विल छटायटा हबै.­­­­७३
जविश्वि, जविद्यटा, दलेह, जग, सब हहैं कहटाहूँ, अनमसटार भगी,
आत्म जटानगी कले जलए सब व्यथर्छ हहैं, जनन्ःसटार भगी.­­­­­७४
जड़,मतढ़, कमर्थों कको त्यटाग कर भगी, जलप्त असंतस ममें कहगीसं,
ससंकल्प और जविकल्प मन सले ममकत हकोतले हहैं नहगीसं.­­­­­­७५
मतढ़ समनकर आत्म तत्वि भगी, मतढ़तटा नहगीसं छकोड़तले,
जनजविर्छकल्प हको बटाह्य सले, असंतन्ःकरण नहगीसं मकोड़तले.­­­­७६
जजस जटान सले सब जटाजनयकोसं कले , कमर्छ हकोतले नष्ट हहैं,
विले तथटाजप कमर्छ रत, पर मन जविरत, स्पष्ट हबै.­­­७७
जनजविर्छकटारगी और जनभर्छय कले जलए, कम छ भगी नहगीसं,
तमक कहटाहूँ, ज्यकोजत कहटाहूँ और त्यटाग आजद कम छ नहगीसं .­­­­­७८
आत्म जटानगी कगी पकरकक जत तको, अजनविर्छचन महटान हबै,
कहटाहूँ धबैयर्छ और जविविलेक हबै, कहटाहूँ जनयम और जविधटान हहैं.­­­­७९
यकोगगी नरक और स्विगर्छ, जगीविन ममजकत कटा इच्छमक नहगीसं,
बहमत कहनटा जनष्पकरयकोजन, यकोग दकजष्ट सले कम छ नहगी.­­­­­८०
जचत्त अमकत सले हबै पतजरत, यकोगगी कटा शगीतल तथटा,
लटाभ हटाजन सले परले, नहगीसं पकरटाथर्छनटा करतटा यथटा.­­­­­८१
सकौम्य जन कगी स्तमजत और दमष्ट कगी जनसंदटा नहगीसं,
जनष्कटाम यकोगगी तकप्त, समख और दमन्ःख कगी जचसंतटा नहगीसं.­­­­८२
हषर्छ, रकोग जविहगीन जटानगी , भटाविन्ः सम्यक सकजष्ट हबै,
न हगी मकत और न हगी जगीजवित , जगत ममें सम दकजष्ट हबै.­­­­८३
पमतकर स्तकरगी सले जविरत, स्विदलेह कगी जचसंतटा नहगीसं,
ममकत आशटाओसं सले जटानगी, शकोभतटा हबै हर कहगीसं ­­­­­­८४
स्विच्छसंद बहम दलेशकोसं ममें जविचरण, जको जमलटा पयटार्छप्त हको,
सविर्छदटा हगी ममजदत मन, सकोयले जहटाहूँ सतयटार्छस्त हको.­­­­८५
जनज भटावि भतजम ममें रहले, ससंसटार जविस्मकत हको जजसले,
यह दलेह जटाए यटा रहले, जकसं जचत न स्मकजत हको उसले.­­­­८६
सविर्छथटा हगी जविरत जटानगी, कको न ककोई दसंद हबै,
सविर्छ भटाविकोसं ममें रमण करतटा, सविर्छदटा स्विच्छसंद हबै.­­­­­८७
जकसं करगी, कसं चन और मटाटगी ममें भगी ममतटा हगीन हबै,
भटावि रटाज तमक कले धमलमें, जटानगी जको आत्म पकरविगीण हहैं.­­­­८८
सविर्छतकर आसजकत रजहत, कम छ विटासनटा जहय ममें नहगीसं,
तकप्त जटानगी कगी भलटा कयटा सटाम्यतटा जग ममें कहगीसं.­­­­­८९
सब दलेखतटा, सब बकोलतटा, सब जटानतटा जटानगी सभगी,
ककोई विटासनटा जहय ममें नहगीसं,कयटा अन्य हबै पकरटाणगी कभगी.­­­­९०
शकरलेष्ठ और जनकक ष्ट दकोनकोसं, भटाविनटाएसं शलेष हकोसं,
जनष्कटाम शकोजभत सविर्छदटा, चटाहमें जभक्षम, रटाजटा जविशलेष हकोसं.­­­­९१
जनष्कपट और सरल यकोगगी कको कहटाहूँ, स्विच्छसंदतटा ,
तत्वि कटा जनश्चय कहटाहूँ, ससंककोच कगी पकरजतबन्धतटा.­­­­­­­९२
आत्म जविशकरटासंजत ममें तकजप्त, शकोक आशटा सले परले,
जटानगी अभ्यटान्तर ममें अनमभवि, कयटा कहले,जकस्सले करले.­­­­९३
स्विप्न जटागकत और समषमजप्त, धगीर तगीनकोसं कटाल ममें,
सम्बन्ध कले विल आत्मटा सले हगी रखमें तकरबैकटाल ममें.­­­­­९४
बमजद,जचसंतटा, इजन्दकरयकोसं कले , सजहत भगी और रजहत भगी,
अहम सले भगी सजन्नजहत, जटानगी अहमक सले जविजहत भगी.­­­­­९५
न समखगी, न हगी दमन्ःखगी, न ममकत न हगी ममममक्ष हबै,
जकसं चन अजकसं चन सले परले,ससंग और जविरजकत तमच्छ हबै.­­­­­९६
जविक्षलेप ममें जविजक्षप्त और पसंजडत नहगीसं पटासंजडत्य ममें,
जड़ नहगीसं जड़तटा ममें, चलेतन पतणर्छ हबै, चबैतन्य ममें.­­­­­९७
समभटावि हर जस्थजत ममें जटानगी, जको जमलटा ससंतकोष हबै,
कक त और अकक त कमर्थों ममें जनन्ःस्पकह, मन जविरजकत ककोष हबै.­­­­­९८
सम भटावि स्तमजत और जनसंदटा, हबै विहगी जटानगी, परले,
न मकत्यम ममें न हषर्छ ममें, उजदग्न, जगीविन कको करमें.­­­­­९९
नगर विन सब एक, जजसकगी जटान, धगी, पकरजटा महले,
सम भटावि जस्थत विह सभगी, स्थटान जस्थजत ममें रहमें.­­­­­­१००
१९ नविदश पकरकरणन्ः
जनक उविटाचन्ः
तत्वि जटान कगी सटासंसगी गमरु सले, जमल गए महैं कक तज हतहूँ,
सले विटाण रूप जविचटार गए, ममर्छज हतहूँ.­­­­­­­१
ममझले दबैत सले यटा अदबैत सले धन, ऐथर्छ सले और कटाम सले,
जकसं जचत पकरयकोजन भगी नहगीसं, जचतविकजत शलेष जविरटाम सले.­­­­­२
महैं जनत्य स्वि मजहमटा पकरजतजष्ठत,तगीन कटालकोसं सले परले,
कहटाहूँ दलेश कटालकोसं कगी पजरजध, पकरजतजबम्ब सगीमटा सले करमें.­­­­­३
शमभ­­अशमभ, जचसंतटा­­अजचसंतटा, आत्मटा यटा अनटात्मटा,
हतहूँ जनत्य स्वि मजहमटा पकरजतजष्ठत, जचत्त ममें परमटात्मटा.­­­­­­४
अब स्विप्न जटागकरत और समषमजप्त, तमरगीय अथविटा भय कहटाहूँ,
हतहूँ जनत्य स्विमजहमटा पकरजतजष्ठत, इनकटा न अनमभवि विहटाहूँ.­­­­५
बटाह्य अभ्यसंतर कहटाहूँ पर सतक्ष्म हबै, स्थतल हबै,
हतहूँ जनत्य स्वि मजहमटा पकरजतजष्ठत, ममझकको सब अनमकत ल हबै.­­­­६
कहटाहूँ मकत्यम हबै, जगीविन कहटाहूँ, परलकोक लकौजकक जटान हबै,
लय समटाजध हबै कहटाहूँ?ममझले जविज आजत्मक जटान हबै­­­­­७
आत्मटा ममें जविशकरटासंजत, पतणर्छ महैं पटा गयटा, अब पतणर्छ हतहूँ.
धमर्छ, अथर्छ और मकोक्ष कटाम कगी, पतणर्छतटा सम्पतणर्छ हतहूँ ­­­­८
२० जविसंशदश पकरकरणन्ः
जनक उविटाचन्ः
मलेरले जनरसंजन रूप ममें, कहटाहूँ पसंचभतत जविकटार हहैं,
कहटाहूँ दलेह, मन, कहटाहूँ इजन्दकरयकोसं, कहटाहूँ शतन्य पतणर्छ पकरकटार हबै.­­­­१
हतहूँ जनजविर्छषय सब भटावि ममें,न हगी दसंद, हबै न अदसंद हबै,
न तकजप्त, न तकष्णटा, न मन, अब आत्मटा स्विच्छसंद हबै,­­­­­­२
मलेरले रूप कको कहटाहूँ रूपतटा,जविद्यटा अजविद्यटा हबै कहटाहूँ?
अहम और ममकटार अथविटा बसंध मकोक्ष भगी हबै कहटाहूँ?­­­­­­३
ममें जनजविर्छशलेष हतहूँ आत्मटा, कहटाहूँ कमर्छ और पकरटारब्ध हहैं,
और कहटाहूँ कबै विल्य, जगीविन ममजकत आजद पकरबसंध हहैं.­­­­­­­­४
शलेष हहैं भकोकतकत्वि और कतकर्छत्वि आत्मटानसंद हबै,
जनन्ःस्विभटाविगी, स्फम रण कहटाहूँ जटान फल कले दसंद हहैं.­­­­­­­५
स्वि ­ स्वियम कटा रूप अदय , महैं स्वियसं हगी जटान हतहूँ,
कहटाहूँ बद और ममममक्ष, दबैत कले दसंद, ऋत जविजटानसं हतहूँ.?­­­­­६
ममझ अदबैत स्विरुप कको, सकजष्ट कहटाहूँ ससंसटार हबै,?
कहटाहूँ सटाध्य, सटाधन, जसजद सटाधक, आत्मटा कटा पकरसटार हबै.?­­­­७
महैं शमद, चलेतन आत्मटा,जकसं जचत अजकसं जचत हबै कहटाहूँ,?
अनम, लघम, मजहमटा, पकरमटातटा और पकरमटाजणत हबै कहटाहूँ?­­­­­­८
सविर्छदटा जनजष्कक रय कहटाहूँ, जविक्षलेप और एकटागकरतटा ?
मतढ़तटा, अजटान, समख और हबै कहटाहूँ पर व्यगकरतटा ?­­­­­९
विकजत जटान शतन्य स्विरुप,अब ममझममें कहटाहूँ व्यविहटार हबै ?
समख कहटाहूँ और दमन्ःख कहटाहूँ, परमटाथर्छतटा सले पटार हबै?­­­­­१०
जविमल हतहूँ ममझममें कहटाहूँ, मटायटा कहटाहूँ ससंसटार हबै ?
पकरगीजत और जविरजत कहटाहूँ ,कहटाहूँ जगीवि बकरह्म अपटार हबै ?­­­­११
आत्मटा हबै कत टस्थ और यह सविर्छदटा अजविभटाज्य हबै,
पकरविकजत और जनविकजत कहटाहूँ, ममझले गकरटाह्य और कयटा त्यटाज्य हबै ?­­­­­१२
जशवि रूप हतहूँ महैं उपटाजध जबन,कयकोसंजक आत्मटा जनरपलेक्ष हबै,
कहटाहूँ शटास्तकर, गमरु, उपदलेश, जशष्य हहैं, कहटाहूँ बसंधन मकोक्ष हहैं ?­­­­­­१३
आजस्त और नटाजस्त कहटाहूँ, और दको कहटाहूँ पर एक हबै?
नहगीसं बहमत कहनले कटा पकरयकोजन, बकरह्म सविर्छमक एक हबै.­­­­­­­­१४
अष्टटाबकक र गगीतटा समटाप्त

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Ashthabakra geeta in hindi kabya

  • 1. अष्टटावकक र गगीतटात (अष्टटाबकक र गगीतटा रटाजटा जनककको जजजटाशटा र जविदटान अष्टबकक रकको उत्तर बगीचकको ससंविटाद हको । रटाजटा जनक सकोध्छनकन्ः मटानविलले जटान कसरगी पकरटाप्त गछर्छनक हटामगीलटाइ ममजकत र बबैरटाग्य कसरगी जमल्छ? Janaka said: How is one to acquire knowledge? How is one to attain liberation? And  how is one to reach dispassion? Tell me this, sir. 1.1) २० पकरकरण १ पकरथम पकरकरण जनक उविटाचन्ः हले ईश ! मटानवि जटान कबै सले , पकरटाप्त कर सकतटा अहको ! हममें ममजकत और विबैरटाग्य कबै सले , जमल सकमें कक पयटा कहको [ १ ] अष्टटाविकक र उविटाचन्ः जपकरय तटात यजद तत ममममक्ष , तज जविषयकोसं कको ,जबैसले जविष तजमें , सन्तकोष ,करूणटा सत, क्षमटा , पगीयतष वित जनत ­जनत भजमें . [ २ ] न हगी विटायम , जल , अजग्न , धरटा और न हगी तत आकटाश हबै , ममजकत हलेतम सटाक्ष्य तत , चबैतन्य रूप पकरकटाश हबै . [ ३ ] यजद पकथक करकले दलेह भटावि कको , दलेहगी ममें आविटास हको  तब तत अभगी समख शटासंजत , बन्धन ममकत भवि , जविश्विटास हको .[ ४ ] विणर्छ आशकरम कटा न आत्मटा, सले ककोई सम्बन्ध हबै , आकटार हगीन अससंग कले विल , सटाक्ष्य भटावि पकरबसंध हबै . [ ५ ] समख दमन्ःख धमर्छ ­ अधमर्छ मन कले , जविकटार हहैं तलेरले नहगीसं , कतटार्छ, कक तत्त्वि कटा और भतटार्छ भटावि भगी घलेरले नहगीसं . [ ६ ] सविर्छस्वि दकष्टटा एक तत , और सविर्छदटा उन्ममकत हबै , यजद अन्य कको दकष्टटा कहले ,भकरम , तत हगी बन्धन यमकत हबै . [ ७ ] तत अहमक रुपगी सपर्छ दसंजषत , कह रहटा कतटार्छ महैं हगी , जविश्विटास रुपगी अजमय पगीकर कह रहटा , कतटार्छ नहगीसं . [ ८ ] महैं समध , बमद, पकरबमद , चलेतन , जटानमय चबैतन्य हतहूँ , अजटान रुपगी विन जलटा कर , जटान सले महैं धन्य हतहूँ . [९ ] सब जगत कजल्पत असत ,रज्जम महैं सपर्छ कटा आभटास हबै  इस बकोध कटा कटारण जक तमझममें , भकरम कटा हगी विटास हबै .[१०] जको ममकत मटानले ,ममकत स्वि कको, बद मटानले बद हबै, जबैसगी मजत विबैसगी गजत, जकविसंदसंतगी ऐसगी पकरजसद हबै.­­­११ पजरपतणर्छ,पतणर्छ हबै, एक जविभम, चबैतन्य सटाक्षगी शटासंत हबै, यह आत्मटा जनन्ःस्पकह जविमल , ससंसटारगी लगतगी भकरटासंत हबै .­­­१२ यह दलेह मन बमजद अहमक, ममकटार , भकरम, हबै अजनत्य हहैं, कत टस्थ बकोध अदबैत जनश्चय , आत्मटा हगी जनत्य हबै.­­­१३ बहमकटाल सले तत दलेह कले अजभमटान ममें आबद हबै, कर जटान रूपगी अजर सले बलेधन, जनत्य तब जनबर्छद हबै.­­­१४
  • 2. जनजष्कक रय जनरसंजन स्वि पकरकटाजशत , आत्म तत्वि अससंग हबै, तत हगी अनमष्ठटाजपत समटाधगी, कर रहटा कयटा जविससंग हबै.­­­१५ यह जविश्वि तमझममें हगी व्यटाप्त हबै, तमझममें जपरकोयटा सटा हमआ, तत विस्तमतन्ः चबैतन्य, सब तमझममें समटायटा सटा हमआ.­­­१६ जनरपलेक्ष अजविकटारगी तत हगी, जचर शटाजन्त ममजकत कटा मतल हबै, जचन्मटातकर जचद्घन रूप तत, चबैतन्य शजकत समतल हबै .­­­१७ दलेह जमथ्यटा आत्म तत्वि हगी , जनत्य जनश्चल सत्य हबै , उपदलेश यह हगी यथटाथर्छ, जग आविटागमन, सले ममकत हबै.­­­१८ ज्यकोसं जविश्वि ममें पकरजतजबम्ब अपनले रूप कटा हगी विटास हबै, त्यकोसं बटाह्य असंतदर्देह ममें, परबकरह्म कटा आविटास हबै.­­­१९ ज्यकोसं घट ममें अन्तन्ः बटाह्य जस्थत सविर्छगत आकटाश हबै, त्यकोसं जनत जनरसंतर बकरह्म कटा सब पकरटाजणयकोसं ममें पकरकटाश हबै.­­­२० २ जदतगीय पकरकटारण जनक उविटाचन्ः बकोधस्विरूपगी महैं जनरसंजन , शटासंत पकरकक जत सले परले, ठजगत मकोह सले कटाल इतनले , व्यथर्छ ससंसकजत ममें करले.­­­­१ ज्यकोसं दलेह दलेहगी सले पकरकटाजशत, जगत भगी ज्यकोजतत तथटा, यटा तको जगत सम्पतणर्छ यटा कम छ भगी नहगीसं मलेरटा यथटा .­­­­२ इस दलेह ममें हगी जविदलेह जग सले त्यटाग विकजत आ गई  आश्चयर्छ ! जक पकथकत्वि भटावि सले बकरह्म दकजष्ट भटा गई ­­­­३ ज्यकोसं फले न और तरसंग ममें , जल सले न ककोई जभन्नतटा, त्यकोसं जविश्वि ,आत्मटा सले सकजजत , तदकरूप एक अजभन्नतटा ­­­­४ ज्यकोसं तसंतमओसं सले विस्तकर जनजमर्छत, तन्तम हगी तको मतल हहैं. त्यकोसं आत्मटा रूपगी तसंतमओसं सले, सकजजत जविश्वि समतल हहैं.­­­­५ ज्यकोसं शकर्छ रटा गन्नले कले रस सले हगी जविजनजमर्छत व्यटाप्त हबै, त्यकोसं आत्मटा ममें हगी जविश्वि , जविश्वि ममें आत्मटा भगी व्यटाप्त हबै.­­­­६ ससंसटार भटाजसत हको रहटा, जबन आत्मटा कले जटान सले, ज्यकोसं सपर्छ भटाजसत हको रहटा हटा,रज्जत कले अजटान सले.­­­­७ ज्यकोजतमर्छयगी मलेरटा रूप महैं, उससले पकथक जकसं जचत नहगीसं , जग आत्मटा कगी ज्यकोजत सले ,ज्यकोजतत जनजमष विसंजचत नहगीसं ­­­­८ अजटान­ सले हगी जगत कजल्पत , भटासतटा ममझममें अहले, रज्जत ममें ,अजह सगीपगी ममें चटासंदगी , रजवि जकरण ममें जल रहले .­­­­­९ मटाटगी ममें घट जल ममें लहर , लय स्विणर्छ भतषन ममें रहले , विबैसले जगत ममझसले सकजजत , ममझममें जविलय कण कण अहले.­­­­10 बकरह्मटा सले लले पयर्यंत तकण, जग शलेष हको तब भगी मलेरटा, अजस्तत्वि, अक्षय , जनत्य, जविस्मय, नमन हको ममझकको मलेरटा.­­­11 महैं दलेहधटारगी हतहूँ, तथटाजप अदबैत हतहूँ, जविस्मय अहले, आविटागमन सले हगीन जग कको व्यटाप्त कर जस्थत महले.­­­­­12
  • 3. ममझकको नमन आश्चयर्छमय ! ममझसटा न ककोई दक्ष हबै. स्पशर्छ जबन हगी दलेह धटारूहूँ , जगत कयटा समकक्ष हबै.­­­­­­१३ महैं आत्मटा आश्चयर्छ वित हतहूँ , स्वियसं कको हगी नमन हबै, यटा तको सब यटा कम छ नहगीसं, न विटाणगी हबै न विचन हबै.­­­­­­१४ जहटाहूँ जलेय, जटातटा,जटान तगीनकोसं विटास्तजविकतटा महैं नहगीसं, अजटान­ सले भटाजसत हहैं कले विल, आत्मटा सत्यम महगी.­­­­­­१५ चबैतन्य रस अदबैत शमद,ममें,आत्म तत्वि मजहम महगी, दबैत दमन्ःख कटा मतल, जमथ्यटा जगत, औषजध भगी नहगीसं.­­­­­१६ अजटान­ सले हतहूँ जभन्न कजल्पत, अन्यथटा महैं अजभन्न हतहूँ, महैं जनजविर्छकल्प हतहूँ, बकोधरूप हतहूँ, आत्मटा अजविजछन्न हतहूँ.­­­­­­१७ ममें बसंध मकोक्ष जविहगीन, विटास्तवि ममें जगत ममझममें नहगीसं, हमई भकरटासंजत शटासंत जविचटार सले, एकत्वि हगी परमसं महगी.­­­­­­­१८ यह दलेह और सटारटा जगत, कम छ भगी नहगीसं चबैतन्य कगी, एक मटातकर सत्तटा कटा पसटारटा, कल्पनटा कयटा अन्य कगी ­­­­­१९ नरक, स्विगर्छ, शरगीर, बन्धन, मकोक्ष भय हहैं, कल्पनटा, कयटा पकरयकोजन आत्मटा कटा, चबैतन्य कटा इनसले बनटा.­­­­२० हतहूँ तथटाजप जन समतहले, दबैत भटावि न जचत अहको, एकत्वि और अरण्य वित, जकसले दतसरटा अपनटा कहको.­­­­२१ न महैं दलेह न हगी दलेह मलेरगी, जगीवि भगी ममें हतहूँ नहगीसं, मटातकर हतहूँ चबैतन्य, मलेरगी जजजगीजविषटा बन्धन महगी.­­­­­२२ महैं महकोदजध, जचत्त रूपगी पविन भगी ममझममें अहले, जविजविध जग रूपगी तरसंगमें, जभन्न न ममझममें रहले .­­­­२३ महैं महकोदजध जचत्त रूपगी, पविन सले ममझममें महगी, जविजविध जगरूपगी तरसंगमें, भटावि बन कर बह रहगीसं .­­­­२४ महैं महकोदजध, जगीवि रूपगी, बहम तरसंजगत हको रहगीसं, जटान सले महैं हतहूँ यथटावित, न जविससंगजत हको रहगी.­­­­­25 ३ तकतगीय पकरकरण अष्टटाविकक र उविटाचन्ः ममें अदबैत आजत्मक अमर तत्वि सले, सविर्छथटा तममक जविज हको, कयकोसं पकरगीजत, ससंगकरह जवित्त ममें, ऋत जटान सले अनजभज हको.­­­१ ज्यकोसं सगीप कले अजटान सले,चटासंदगी कटा भकरम और लकोभ हको, त्यकोसं आत्मटा कले अजटान सले,भकरजमत मजत, अजत क्षकोभ हको.­­­­२ आत्मटा रूपगी जलजध ममें, लहर सटा ससंसटार हबै, महैं हतहूँ विहगी, अथ जविजदत, जफ़िर कयकोसं दगीन, हगीन जविचटार हहैं.­­­­­­३ अजत समन्दरम चबैतन्य पटाविन, जटानकर भगी आत्मटा, अन्यटान्य जविषयटासकत यजद,तत मतढ़ हबै, जगीविटात्मटा.­­­­­­­४ आत्मटा कको हगी पकरटाजणयकोसं ममें,आत्मटा ममें पकरटाजणयकोसं  आश्चयर्छ !ममतटासकत ममजन, यह जटान कर भगी जटाजनयकोसं.­­­­­५
  • 4. जस्थत परम अदबैत ममें, तत शमद, बमद, ममममक्ष हबै, आश्चयर्छ ! हबै यजद तत अभगी, जविषयटाजभममख कटामलेच्छम हबै.­­­­­६ कटाम जरपम हबै जटान कटा, यह जटानतले ऋजष जन सभगी, आश्चयर्छ ! कटामटासकत हको सकतटा हबै मरणटासन्न भगी.­­­­­­७ जविरत जनत्यटाजनत जविविलेचक, भकोग हहैं जनरपलेक्ष ममें, आश्चयर्छ ! हबै यद्यजप ममममक्षम , भय तथटाजप मकोक्ष ममें.­­­­­८ जटानगी जन तको भकोग पगीडटा , भटावि ममें समभटावि हहैं, हषर्छ कक रकोध कटा आत्मटा ,पर ककोई भगी न पकरभटावि हबै.­­­­९ दलेह ममें विबैदलेह ऋत अथर्थों ममें ,हबै जटानगी विहगी, हकोसं भटावि सम जनसंदटा पकरससंशटा , ममें ककोई अन्तर नहगीसं . ­­­­­­१० अजटान जजसकटा शलेष, ऐसटा धगीर इस ससंसटार कको, मटातकर मटायटा मटान, तत्पर मकत्यम कले सत्कटार कको.­­­­­११ इच्छटा रजहत मन मकोक्ष ममें भगी, मजह मजहम मजहमटा महले, उस आत्म जटानगी सले तकप्त जन कगी, सटाम्यतटा जकससले अहले.­­­­१२ धगीर जटानगी जटानतटा हबै, जगत छल हबै पकरपसंच हबै, गकरहण त्यटाग सले मन परटात्पर, न रमले कहगीसं रसंच हबै.­­­­­१३ विटासनटा कले कषटाय कल्मष, जजसनले असंतस सले तजले, जनदर्यंद दबैजविक समख यटा दमन्ःख, पर शटाजन्त असंतस ममें सजले.­­­­­१४ अष्टटाबकक र गगीतटान्ः चतमगर्छ पसंचम षष्टम सप्तम अष्ठम पकरकरण ४ चतमथर्छ पकरकरण अष्टटाविकक र उविटाचन्ः आत्म जटानगी धगीर जन कले , कमर्छ अजतशय गतढ़ हहैं, जग जलप्त जन सले सटाम्यतटा, जकसं जचत करमें विले मतढ़ हहैं.­­­­१ दलेवितटा इन्दकरटाजद भगी, इच्छमक हहैं जजस पद कको महगी, जस्थत उसगी पद पर अहको! यकोगगी कको जकसं जचत मद नहगीसं.­­­­­२ जनजलर्छप्त असंतस पटाप ­पमण्य सले, आत्म जटानगी कटा रहले, ज्यकोसं गगन कटा धतम सले ,सम्बन्ध जकसं जचत न रहले.­­­­­­३ जविश्विटात्मटा कले रूप ममें, दलेखटा जगत जजस ससंत नले, उसले ककोई इजच्छत कटायर्छ सले, नहगीसं रकोक सकतटा अनसंत ममें.­­­­­­४ बकरह्मटा सले पयर्यंत चगीसंटगी, चटार जगीवि पकरकटार हहैं, बस जविज कको इच्छटा अजनच्छटा, त्यटाग पर अजधकटार हबै.­­­­­­­५ हबै आत्मटा परमटात्म मय, ककोई जविरलटा जटानतटा, जटानगी हगी जनदर्यंद कले विल कर सकले जको ठटानतटा .­­­­­­­­६ ५ पसंचम पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः नहगीसं ससंग हबै तलेरटा जकसगी सले, शमद तत चबैतन्य हबै, त्यटाज्य, तन अजभमटान तटाज दले, मकोक्ष पटा तत अनन्य हबै.­­­­­१
  • 5. तमझसले जनन्ःसकत ससंसटार, जबैसले जलजध सले हको बमलबमलटा  आत्मटा कले एकत्वि बकोध सले, मकोक्ष शटाजन्त पथ खमलटा.­­­­­­२ दकश्य जग पकरत्यक्ष जकसं तम , रज्जत सपर्छ पकरतगीत हबै, चबैतन्य पर तलेरगी आत्म तत्वि ममें, सत्य दकढ़ पकरतगीजत हबै.­­­­३ आशटा­जनरटाशटा , दमन्ःख ­समख, जगीविन ­मरण समभटावि हहैं, बकरह्म ­दकजष्ट, पकरज जस्थत, पर न इसकटा पकरभटावि हबै.­­­­­­४ ६ षष्टम पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः घटवित जगत, पकरकक जत जनन्ःसकत आकटाश विटाट ममें अनसंत हबै, अतन्ः इसकले गकरहण त्यटाग और लय ममें भगी जनजश्चसंत हबै.­­­­­­­१ ममें सममदकर सदकश्य हतहूँ, यह जग तरसंगकोसं तमल्य हबै, अतन्ः इसकले गकरहण, लय और त्यटाग कटा कयटा मतल्य हबै.­­­­­­२ सगीपवित महैं हतहूँ यथटा जग ममें रजत सम भकरटाजन्त हबै, अतन्ः इसकको गकरहण लय न त्यटाग, जटान हगी, शटाजन्त हबै.­­­­­­३ ममें आत्मटा अदबैत व्यटापक , पकरटाजणयकोसं कटा मतल हतहूँ, अतन्ः इसकले गकरहण लय और त्यटाग ममें जनमतर्छल्य हतहूँ.­­­­­­४  ७ सप्तम पकरकरणन्ः जनक उविटाचन्ः ममझ अनसंत महकोदजध ममें, जविश्वि रूपगी नटावि जको, मन स्विरूपगी पविन जविचजलत, पर न महैं सम्भवि जको.­­­­­­१ ममझ अनसंत महकोदजध ममें, जग कल्लकोल स्विभटावि जको, उदय, चटाहले अस्त, अब महैं विकजद क्षय, समभटावि जको.­­­­­२ महैं अनसंत महकोदजध , जग कल्पनटा जनन्ःसटार हबै, अब शटासंत, महैं जस्थत अविस्थटा, ममें न ककोई जविकटार हबै .­­­­३ आसजकत जविषयकोसं कले पकरजत, मन दलेह कगी मलेरगी नहगीसं, आत्मज , ममकत हतहूँ स्पकहटा सले, जविषयकोसं कगी चलेरगी नहगीसं.­­­­­­४ आश्चयर्छ ! महैं चबैतन्य और यह जविश्वि मटातकर पकरपसंच हबै, अतन्ः जग कगी लटाभ हटाजन महैं, रूजच नहगीसं रसंच हबै.­­­­­५ ८ अष्ठम पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः कम छ त्यटागतटा कम छ गकरहण करतटा, मन दमजखत हजषर्छत कभगी, यहगी भटावि मन कले जविकटार , बसंधन यमकत हहैं, बसंजधत सभगी.­­­­­­­­१ न हगी गकरहण, न हगी त्यटाग , दमन्ःख सले परले मन मकोक्ष हबै, एक रस मन कगी अविस्थटा, सविर्छदटा जनरपलेक्ष हबै.­­­­­२ मन जलप्त हकोतटा जब कहगीसं, तको बसंध बसंधन हलेतम हबै, जनजलर्छप्त हकोतटा जब विहगी मन , मकोक्ष कटा मन सलेतम हबै.­­­­­३ ' महैं " भटावि हगी बसंधन महत, " महैं " कटा हनन हगी मकोक्ष हबै, त्यटाग और गकरहण सले हको परले मन, तब मनन जनरपलेक्ष हबै.­­­­­­­­­­४ ९ नविम पकरकरणन्ः
  • 6. अष्टटाविकक र उविटाचन्ः कमर्छ कक त और अकक त दमन्ःख ­ समख, शटासंत कब जकसकले हमए  त्यकत विकजत, अविकरतगी जचत्त, जनरपलेक्ष हहैं जजनकले जहयले.­­­­­१ उत्पजत्त और जविनटाश धमटार्छ तटात ! जविश्वि जनतटासंत हबै, जगत कले पकरजत जजजगीजविषटा, नहगीसं ससंत कगी भगी शटासंत हबै.­­­­­२ तकरबैतटाप दतजषत, हलेय, जनजन्दत , जगत कले विल भकरटाजन्त हबै, त्यकत हबै, जनन्ःसटार जग कको, त्यटागनले ममें शटाजन्त हबै.­­­­­३ विह अविस्थटा कटाल ककौन सगी, जब मनमज जनदर्यंद हको, समलभ सले ससंतमष्ट, जसजद पथ चलले , स्विच्छसंद हको.­­­­­­४ बहम मत मतटान्तर यकोजगयकोसं कगी, मजत भकरजमत करतले यथटा, अध्यटात्म और विबैरटाजगयकोसं कगी, शटाजन्त भसंग करमें तथटा.­­­­­५ १० दशम पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः सब अनथर्थों कटा मतल कटारण, अथर्छ हबै और कटाम हबै, इनकगी उपलेक्षटा मतल धमर्छ हबै, कमर्छ ममें जनष्कटाम हबै.­­­­­­१ धन, जमतकर, क्षलेतकर , जनकले त, स्तकरगी, बसंधम स्विप्न समटान हहैं, इन्दकर जटाल समटान, पटाहूँच यटा तगीन जदन कले जविधटान हहैं.­­­­­२ जजस विस्तम ममें इच्छटा बसले , समझको विहटासं ससंसटार हबै, विबैरटाग्य भटावि पकरधटान जचत्त सले,जटान सब जनन्ःसटार हबै.­­­­­­३ ससंसटार तकष्णटा रूप हबै,तकष्णटा जहकोसं ससंसटार हबै, विबैरटाग्य आशकरय हको मनटा, तकष्णटा रजहत समख सटार हबै.­­­­­४ यह अजविद्यटा भगी असत और असत जड़ ससंसटार हबै, चबैतन्य रूप जविशमद, तमझकको तको जगत जनन्ःसटार हबै.­­­­­५ दलेह, नटारगी, रटाज्य, समत आसकत जन कले समख सभगी, हर जनम ममें मरण धमटार्छ, नष्ट यले हकोसंगले सभगी.­­­­­६ धमर्छ, अथर्छ, और कटाम जहत, बहम कमर्छ तको जकतनले जकए, जगत रुपगी विन ममें तको भगी, शटाजन्त जहत भटकले जहयले.­­­­­७ दलेह, मन, विटाणगी सले शकरम, दमन्ःख पतणर्छ बहम ततनले जकए, उपरटाम कर अब तको तजनक, जविशकरटासंजत जचत जहय ममें जकए.­­­­­८ ११ एकटादश पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः भटाविकोसं जविभटाविकोसं कले स्विभटाविकोसं सले जनन्ःसकत जको जविकटार हहैं जजसले जटात, कललेश जविहगीन समखमय, शटाजन्त रस ससंचटार हबै..­­­­­१ सविर्छ दकष्टटा ईश जनश्चय, दतसरटा ककोई नहगीसं, जजसले जटात विह अजत शटासंत, उसकगी कटामनटा ककोई नहगीसं.­­­­­­२
  • 7. ससंपजत्त और आपजत्त जनश्चय, दबैवि यकोग जविधटान हहैं, ससंतमष्ट विटासंछटा शकोकहगीन हहैं, जजनकको इसकटा जटान.­­­­­­­३ जगीविन मरण समख और दमन्ःख दबैविगीय हहैं जको जटानतटा, भटावि कतटार्छ शतन्य हकोकर, कमर्छ जविजध पहचटानतटा.­­­­­­­४ जचसंतटा सले दमन्ःख हबै अन्यथटा कम छ भगी नहगीसं जको जटानतले, अन्तन्ः समटाजहत शटासंत विले सब ईश इच्छटा मटानतले.­­­­­­५ न महैं दलेह, न हगी दलेह मलेरगी, जनत्य बकोध स्विरुप हतहूँ, कक त ­ अकक त कटा जविस्मरण और महैं जविदलेह अरूप हतहूँ.­­­­­६ बकरह्म सले पयर्यंत तकण, बस एक महैं हगी हतहूँ यथटा, जनजविर्छकल्पगी शटासंत, अज हबै लटाभ हटाजन कगी पकरथटा.­­­­­७ आश्चमर्छय यद्यजप जगत, जमथ्यटा तथटाजप क्षजणक हबै, बकोधस्विरूपगी ममर्छ जटातटा, शटासंत जलप्त न तजनक हबै.­­­­­­८ १२ दटादश पकरकरणन्ः जनक उविटाचन्ः दलेह विटाजचक मटानजसक, कमर्थों कको कर स्विच्छसंद हतहूँ, चबैतन्य आत्मटानसंद जस्थत, पतणर्छ परमटानसंद हतहूँ.­­­­­­­१ शब्दटाजद इजन्दकरयकोसं कले पकरजत, अब पकरगीजत भटावि अभटावि हबै अब जविक्षलेपकोसं कटा न आत्मटा पर भगी ककोई पकरभटावि हबै,­­­­२ महैं आत्म रूप हतहूँ, अतन्ः इन जनयमकोसं कले न वियविहटार हहैं.­­­­­३ गकरटाह्य ­त्यटाज्य जवियकोग जनन्ःसकत , दतर हषर्छ जविषटाद सले, अब हतहूँ यथटावित आत्म जस्थत, बकरह्म जटान पकरसटाद सले ­­­­­४ आशकरम , अनटाशकरम, ध्यटान विजर्छन, आजद सले उन्ममकत हतहूँ, इनसले परटात्पर आत्म जस्थत , आत्मटा उन्ममकत हतहूँ.­­­­­५ त्यटाग और ससंकल्प मन कले , मतल ममें अजटान हहैं , न मन मलेरटा अब कमर्छ कतटार्छ और न उपरटाम हबै.­­­­­­६ बकरह्म जचसंतन भगी हबै बसंधन, उससले भगी उन्ममकत हतहूँ, आत्मटा ममें हगी हतहूँ पकरजतजष्ठत, आत्मटा सले ससंयमकत हतहूँ.­­­­­­७ यजद आत्मवित हगी स्विभटावि स्वितन्ः, विह तको कक त ­ कक त धन्य हबै, जटानगी हहैं विले भगी, स्वियम पटायमें, यटा जक सटाधन जन्य हबै.­­­­­­८ १३ तकरयकोदश पकरकरणन्ः जनक उविटाचन्ः ककौपगीन धटारण पर भगी दमलर्छभ, जको अविस्थटा जचत्त कगी, विह कम छ नहगीसं कले भटावि सले, अनमभतजत हकोतगी जनत्य कगी.­­­­­१ दलेह कटा दमन्ःख हबै कहगीसं तको विटाणगी मन कटा दमन्ःख कहगीसं, त्यटाग कर अतएवि तगीनकोसं आत्मसमख पटायटा यहगीसं.­­­­­­२
  • 8. दलेहटाजद सले कक त कमर्छ उनसले तको आत्मटा जनजलर्छप्त हबै, कक त कमर्छ जको भगी आ पड़टा, करकले उसले समख, तकप्त हबै.­­­­­३ कमर्छ और जनष्कमर्छ बसंधन यमकत भटावि कले लकोग सले, महैं सविर्छथटा हगी अससंग, पकरममजदत दलेह यकोग जवियकोग सले ­­­­­­४ जनरपलेक्ष, जनन्ःस्पकह हतहूँ यथटा, गजतस्विप्न, अथर्छ अनथर्छ सले, अथ जटागतटा सकोतटा तथटाजप ममजदत, जनन्ःस्पकह सले.­­­­­­५ समख अजनत्य हबै, ममर्छ बहम जन्मकोसं ममें जटानटा इसजलए, अशमभ ­ शमभ सब त्यटाग जनन्ःस्पकह भटावि हतहूँ पकरममजदत जहयले ­­­­­६ १४ चतमदर्छश पकरकरणन्ः जनक उविटाचन्ः जविषय सलेविगी पकरभटावि सले और शतन्य जचत्त स्विभटावि सले समप्त हहैं,जटागकरत तथटाजप, जविरत जविश्वि पकरभटावि सले.­­­­­१ पतनटार्छत्मदशर्शी अब मलेरगी जविषयटानमरजकत शतन्य हबै, जटान धन और शटास्तकर जमतकरकोसं ममें भगी रूजच अजत न्यतन हबै.­­­­­­२ अयआत्मटा हगी बकरह्म हबै और बकरह्म हगी सविर्छज हबै, ममझले मकोक्ष कगी जचसंतटा नहगीसं, सविर्छग्य जब सले जविज हबै.­­­­­­३ ससंकल्प शतन्य जविकल्प सले मन, बटाह्य पर उन्मत्त हबै, यह दशटा जटानले विहगी, जको स्वियम जटान पकरवित्त हबै.­­­­­­­­४ १५ पन्चदश पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः सतबमजद जन उपदलेश जकसं जचत, मटातकर सले हगी जसद हकोसं, पर जन असत जजजटासम न, पयर्यंत आयम पकरबमद हकोसं.­­­­­१ रटाग जविषयकोसं सले हगी बसंधन और जविरजकत मकोक्ष हबै, जटान कटा हबै सटार इतनटा, शलेष सब सटापलेक्ष हबै.­­­­­­­२ तत्त्विबकोध हबै त्यकत जजनकको, भकोग जपकरय हबै जविलटासतटा, तत्विज कको जड़ आलसगी, करले मतक कगी विटाचटालतटा.­­­­­­३ न तत दलेह, न हगी दलेह तलेरगी, कतटार्छ तत भकोकतटा नहगीसं, चबैतन्य तत जनरपलेक्ष सटाक्षगी, जनत्य जविचरले हर कहगीसं.­­­­­४ तमम जनजविर्छकटारगी, जनजविर्छकल्पगी, बकोधरूपगी अजत महले, रटाग दलेष जविकटार मन कले , न आत्मटा जकसं जचत गहले.­­­­­५ सब पकरटाजणयकोसं ममें आत्मटा और सब पकरटाजणयकोसं कको आत्मटा ममें जटान तज ममतटा अहम, सविर्छतकर हबै बकरह्मटात्मटा ­­­­­­­६ स्फम जरत असंतस ममें तलेरले, जगत हकोतटा लहर सटा, पर आत्मटा चबैतन्य तत तको, सदटा रहतटा एक सटा.­­­­­­७ हले तटात ! तमम शकरदटा करको, नहगीसं मकोह सले ककोई तरले, तत आत्मटा परमटात्मटा मय, तत तको पकरकक जत सले भगी परले.­­­­­८
  • 9. यह दलेह बहम गमण जलप्त और आविटागमन सले यमकत हबै, मत सकोच तत तको आत्मटा, आविटागमन सले ममकत हबै.­­­­­९ दलेह चटाहले जटाए तत्क्षण यटा जक कल्प कले असंत ममें, नहगीसं विकजद क्षय चबैतन्य तत्वि कगी, मतल उसकटा अनसंत ममें.­­­­­१० तत महकोदजध, जविश्वि रूप तरसंग विकजत आप्त हबै, पर जगत कगी विकजद क्षय सले आत्मटा नहगीसं व्यटाप्त हबै.­­­­­११ हले तटात ! तमम चबैतन्य, तममसले जभन्न जग जकसं जचत नहगीसं, कयटा त्यटाज्य और कयटा गकरटाह्य, इसकगी कल्पनटा सममजचत नहगीसं.­­­­­१२ तत एक जनमर्छल अव्ययसं चबैतन्य रूप आकटाश ममें, कहटाहूँ जन्म, कमर्छ, अहम कहटाहूँ, तत आत्म वित स्वि पकरकटाश ममें.­­­­­­१३ कयटा कसं गनटा, कयटा घतहूँघरू, सब स्विणर्छ कले हगी पकरकटार हहैं, तत आत्मटा उसममें भगी तलेरले जभन्न ­जभन्न आकटार हहैं.­­­­­­­१४ यह महैं हतहूँ और महैं यह नहगीसं, सब भकरजमत मन कले जविकल्प हहैं, सब आत्मटा हहैं अजभन्न इनममें, जभन्नतटा नहगीसं अल्प हबै.­­­­१५ परमटाथर्छतन्ः तत एक, तमझसले अन्य ककोई न जटान हबै, ससंसटार, ससंसटारगी, अससंसटारगी भकरजमत अजटान हबै.­­­­­­१६ ससंसटार भकरम और कम छ नहगीसं, जजसले जटात विह चबैतन्य हबै, बहम विटासनटाओसं सले रजहत, विह शटासंत व्यजकत अनन्य हबै.­­­­­१७ भवि उदजध ममें तत हगी थटा, और हबै रहलेगटा एक तत, मकोक्ष बसंधन हगीन, समख उन्ममकत जविचरलेगटा एक तत.­­­­­­१८ ससंकल्प और जविकल्प सले, चबैतन्य अब तत जचत्त कको, क्षकोजभत न कर, आनसंद मन, समख रूप ममें पटा जनत्य कको ­­­­­­१९ चबैतन्य सत्तटा ममकत रूप हको, आत्मटा एकमलेवि हगी, जफ़िर ध्यटान जचसंतन मनन जकसकटा, आत्म भत स्वियमलेवि हगी.­­­­­­­२० १६ शकोडष पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः बहम भटासंजत बहम शटास्तकरगीय अध्ययन , और कथन करतले रहले, पर जविस्मरण इनकटा जकए जबन, शटाजन्त न कजतपय अहले.­­­­­१ तलेरटा कमर्छ, भकोग समटाजध ममें, यजद जचत्त भगी उन्ममख रहले, यजद मतल ममें जनष्कटाम, जविज कले बकरह्म तको सन्ममख अहले.­­­­­­­२ हहैं कलटासंत शकरम सले जगीवि सब, इसकको नहगीसं ककोई जटानतटा, यह जटान गम्य, हहैं धन्य जको इस ममर्छ कको पहचटानतटा.­­­­­­३ चक्षमओसं कले खकोलनले और बसंद सले भगी जको दमन्ःखगी, उस जशरकोमजण आलसगी कको ककौन कर सकतटा समखगी.­­­­­­४ कक त और अकक त कले दसंद सले, मन ममकत हको तब ममजकत हबै, धन, अथर्छ, मकोक्ष और कटाम इच्छटा, शतन्यतटा हगी यमजकत हबै.­­­­­५
  • 10. जविषय कटा दलेषगी जविरत हबै, जविषयलकोलमप जलप्त हबै, त्यटाग और गकरहण सले जको परले, जन सविर्छथटा जनजलर्छप्त हहैं.­­­­­­६ जब तक हबै तकष्णटा अजविविलेकगी, भटावि रहतटा समतल हबै, त्यटाग और गकरहण कगी भटाविनटा ससंसटार विकक्ष कटा मतल हबै.­­­­­­७ रटाग ममें पकरविकजत, जनविकजत ममें दलेष, भटावि कटा दकोष हबै, धगी, मटान, जन, जनदर्यंद, सम बटालक व्यविहृत जनदकोर्छष हबै.­­­­­­८ दमन्ःख जनविकजत कले जलए, जग त्यटाग रटागगी कगी चटाह हबै, पर विगीतरटागगी जग ममें भगी, समख शटाजन्त पटातटा अथटाह हबै.­­­­­­९ अजभमटान जजसकको मकोक्ष कटा, और दलेह ममतटा सकत हबै, जटानगी और यकोगगी नहगीसं, बस दमन्ःख भकोगगी अशकत हबै.­­­­­­­­१० यजद बकरह्मटा, जविष्णम जशवि तलेरले, उपदलेश कतटार्छ भगी रहमें, तको भगी जबनटा जविस्मकजत कले , जबन त्यटाग न शटाजन्त अहले.­­­­­­११ १७ सप्तदश पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः जको जनत्य तकप्त पजवितकर,इजन्दकरय यमकत एकटाकगी रममें, विले, जटान यकोगटायमकत, फल और ममजकत न उनकगी थमले.­­­­१ तत्वि जटानगी कको इस जगत कले दमन्ःख कदटाजप न भटासतले. विले तको स्वियम भत, बकरह्म तत्वि कले मतल रूप उपटासतले.­­­­­­­२ ज्यकोसं सल्लकगी पल्लवि कको चख, गज नगीम पल्लवि न चखले, त्यकोसं आत्म रमणगी, आत्म समख सम ककोई भगी समख न रखले.­­­­­३ भकोगले हमए भकोगकोसं ममें जको जकसं जचत नहगीसं आसकत हबै, दमलर्छभ जगत ममें व्यजकत जको, अभमकत सले भगी जविरकत हबै..­­­­­­­४ भकोग ­मकोक्ष कगी चटाहनटामय, जन जगत ममें सरल हहैं, पर भकोग मकोक्ष कगी चटाहनटा , सले नर परले अजत जविरल हबै.­­­­­५ जगीविन, मरण, धन, धमर्छ, मकोक्ष विक कटाम ममें जनरपलेक्ष हको, त्यटाग और गकरहण ममें आत्मजटानगी न कभगी सटापलेक्ष हकोसं.­­­­­­६ ससंसटार लय अथविटा रहले, इसकले पकरजत न जविदलेष हबै, विटासंछटारजहत, ससंतमष्ट, धन्य विले बकरह्म भटावि जविशलेष हबै.­­­­­­७ सतसंघतटा, स्पशर्छ, समनतटा, दलेखतटा, खटातटा हमआ, चलेतनटा चबैतन्य कगी जटानगी कगी सब करतटा हमआ.­­­­­­­८ ससंसटार सटागर क्षगीण जजसकटा, दकजष्ट भगी अब न्यतन हबै, व्यथर्छ चलेष्टटा इजन्दकरयटासं तकष्णटा जविरजकत शतन्य हबै.­­­­­­­९ जटागतटा, सकोतटा, पलक न बसंद करतटा खकोलतटा, उत्कक ष्ट पकरटाणगी जफ़िर अहको! आनद जदव्य ममें डकोलतटा­­­­­­१० ममकत जन सविर्छतकर शटासंत, पजवितकर मन कटा हबै अहले, सब विटासनटाओसं सले रजहत,सविर्छतकर शकोजभत अजत महले.­­११
  • 11. दलेखतटा, स्पशर्छ, समनतटा, सतसंघतटा, खटातटा हमआ, आत्म जटानगी अजलप्त दसंद जविममकत, सब करतटा हमआ.­­­­१२ स्तमजत जनसंदटा नहगीसं,कक रकोजधत और हजषर्छत भगी नहगीसं मन जचत्त नगीरस ममकत जन कटा, ललेतटा दलेतटा भगी नहगीसं.­­­­१३ न हगी जपकरजतमय नटारगी कको अथविटा मकत्यम दलेख समगीप ममें, अजविचल मनटा मन जचत्त जस्थत, बकरह्म रूप अरूप ममें.­­­­१४ समख दमन्ःख ममें, नर नटारगी ममें, ससंपजत्त और जविपजत्त ममें, सविर्छतकर सम दकष्टटा हबै जटानगी, सकजष्ट ममें यटा व्यजकत ममें.­­­­­­­१५ आत्म जटानगी कको पकरयकोजन जविश्वि सले जकसं जचत नहगीसं, न क्षकोभ, करुणटा, दगीनतटा, आश्चयर्छमय जचसंजतत नहगीसं.­­­­१६ जनजलर्छप्त, न जविषयटा जविदलेषगी, न जविषय स्पसंजदत रहले, पकरटाप्त और अपकरटाप्त ममें, मन जविरत आनसंजदत रहले.­­­­१७ जहत अजहत, कटारण अकटारण कटा नहगीसं दकौबर्छल्य हबै, जको ममकत जन जनदर्यंद मन,जचत्त शतन्य, अथ कबै विल्य हबै.­­­­१८ असंतगर्छजलत आशटाएसं , दकढ़ मन अहम ममतटा कम छ नहगीसं, करले कमर्छ पर जनजलर्छप्त मन, यजद दकजष्ट क्षमतटा, तमच्छ महगी.­­­१९ ससंकल्प और जविकल्प, असंतमर्छन कगी विकजत्त शटासंत हबै, स्विप्न और जड़तटा सले विजजर्छत, जचत्त सकौम्य जनतटासंत हबै.­­­­­­२० १८ अष्ठदश पकरकरणन्ः अष्टटाविकक र उविटाचन्ः बकरह्म बकोध कले उदय पर,सब भकरटाजन्त स्विप्न सगी शलेष हको, उस तलेजकोमय आनद बकरह्म कको नमन मलेरटा जविशलेष हको.­­­­­­१ बहम ससंपदटा कको जकोड़ करकले , भकोग मटानवि भकोगतटा, पर त्यटाग विकजत कले जबनटा, नहगीसं सत्य समख कगी यकोग्यतटा.­­­­२ कमर्छजन्य जविषटाद रूपगी, रजवि सले असंतमर्छन जलटा, शटाजन्त रूपगी अजमय धटारटा, कले जबनटा कयटा समख भलटा.­­­­­३ परमटाथर्छ ममें आत्मटा हगी सत्य हबै, जगत भकरटाजन्त भटावि हबै, भटाविटाभटावि जविभटावि ममें स्विभटाविकोसं कटा हगी अभटावि हबै.­­­­­­४ यह सत्य पड़ न तको दतर न ससंककोच सले हगीपकरटाप्त हबै, जनजविर्छकल्पगी, जनजविर्छकटारगी, दकोषहगीन हबै आप्त हबै.­­­­­­­५ उपरटासंत मकोह जनविकजत पर हगी, जनज स्विरुप कटा भटान हको, विगीतरटागगी, पटारदशर्शी जन कगी शकोभटा, मटान हको.­­­­­६ ममकत और सनटातन आत्मटा, हबै जगत कले विल कल्पनटा, यह जटान बटालक कगी तरह अजटान­ हबै कयको अनमनटा ...७ यह आत्मटा हगी बकरह्म भटावि, अभटावि हबै पजरकल्पनटा, यह जटान जन जनष्कटाम कगी, कयटा कमर्छ कगी ससंकल्पनटा .­­­­­८ यह महैं हतहूँ और महैं यह नहगीसं कगी, कल्पनटाएहूँ जविदगीणर्छ हकोसं, आत्मटा हहैं एकत्वि बकोध सले, तत्वि जटान पकरकगीणर्छ हको­­­­९
  • 12. शमभ शटासंत यकोगगी कले जलए, जविक्षलेप हबै न एकटागकरतटा, समख दमन्ःख बकोध न मतढ़तटा हबै, और न हगी व्यगकरतटा ­­­­१० जनजविर्छकल्पगी आत्मयकोगगी, न रटाग न अपनत्वि हबै, लटाभ, हटाजन, रटाज्य , जभक्षटा, विकजत विन ममें समत्वि हबै.­­­११ कहटाहूँ धमर्छ, कटाम, जविविलेक अथर्छ हहैं, ममकत यकोगगी कले जलए, कमर्छ और अकमर्छ कले दसंद सले, ममकत हहैं जजनकले जहयले.­­­­­१२ कतर्छव्य कमर्छ जनन्ःशलेष, जगीविन ममकत जको यकोगगी महटा, जनन्ःस्पकह , जवियकोगगी, रटाग जबन, जनन्ःस्विटाथर्छ कक त करतटा यहटाहूँ .­­­­­­१३ जविशकरटासंत यकोगगी कले जलए, कत मकोह कत ससंसटार हबै, ससंकल्प, ममजकत, ध्यटान सब, जनन्ःशलेष जग जनन्ःसटार हबै.­­­­­­१४ जगत दकष्टटा हगी कहलेगटा जक जगत जनन्ःसटार हबै, आत्म दकष्टटा दलेख कर भगी दलेखतटा बस सटार हबै.­­­­­­­१५ दलेखटा हबै महैंनले बकरह्म, यह तको दबैत भटावि कगी व्यसंजनटा , महैं स्वियसं हगी 'बकरह्म' सत्य अदबैत कगी अजभव्यसंजनटा­­­­­१६ सविकोर्छच्च जस्थजत आत्म जटान ममें, आत्मटा हगी शलेष हबै, जविक्षलेप मन जचत दलेह और ससंसटार कले जनन्ःशलेष हबै.­­­­­­१७ आत्म जटानगी जग ममें रहकर , मटानतटा नहगीसं गलेह हबै, जविक्षलेप और बसंधन नहगीसं, और दलेह ममें भगी जविदलेह हबै.­­­­­१८ ककोई अहम नहगीसं कटामनटा, करले कमर्छ पर जनजलर्छप्त हबै,  भटावि और अभटावि जविहगीन, उसकटा मन सदटा हगी तकप्त हबै.­­­­­१९ पकरविकजत जनविकजत ममें दमरटागकरह, धगीर जन रखतले नहगीसं, जको कमर्छ भगी करनटा पड़टा, समख सले करमें हटतले नहगीसं.­­­­­२० विटासनटा, आलम्ब, बन्धनहगीन जटान, सले यमकत हबै, पकरटारब्ध रूपगी पविन पकरलेजरत, शमष्क पणर्छ वित ममकत हबै.­­­­२१ न हगी हषर्छ, न हगी जविषटाद, जटानगी कको कभगी हकोतटा नहगीसं मन शटासंत जनत्य जविदलेह, पटातटा और कम छ खकोतटा नहगीसं.­­­­२२ आत्म रमणगी जविमल मन, आनसंद मतल जनविटास हको, अजतशय परले हको गकरहण त्यटाग सले, बकरह्म ममें जविश्विटास हको.­­­­२३ शतन्य जचत्त स्विभटावि जटानगी, मटान न अपमटान हबै, सहज रूप सले कमर्छ और जनष्कटाम भटावि पकरधटान हबै.­­­­­२४ हबै कमर्छ करतटा दलेह मन, यह आत्मटा जकसं जचत नहगीसं, जको कमर्छरत इस भटाविनटा सले, जविरत, रत अनमजचत नहगीसं.­­­­२५ हहैं मतढ़तटा मय कमर्छ अजटानगी कले , जटानगी कले नहगीसं, अहम मय हहैं मतढ़ , जटानगी जकसं तम अजभमटानगी नहगीसं.­­­­­­२६ दबैत भटावि जविममकत जटानगी कको परम जविशकरटासंजत हबै, जटानतटा, समनतटा न दलेखले, कल्पनटा न भकरटाजन्त हबै .­­­­­­­२७ जविक्षलेप न ककोई दबैत , जटानगी इसजलए न जविममकत हबै, बकरह्म वित जस्थत उसले ससंसटार कजल्पत तमच्छ हबै.­­­­­­­२८
  • 13. अन्तन्ः अहम जजसकले , जबनटा हगी कमर्छ रत ससंकल्प सले,  जटानगी अहम सले शतन्य रत, पर जविरत कमर्छ जविकल्प सले.­­­२९ ममकतजन कतर्छव्य , आशटा दसंद और उजदग्नतटा  सले जविरत, हकोकर परले, पर बकरह्म सले ससंलग्नतटा.­­­­­३० ममकतजन कटा जचत्त, चलेष्टटा ममें पकरविकत हकोतटा नहगीसं, हलेतम जबन हगी ध्यटान जस्थत, कमर्छ नटानटा बहम महगी.­­­­३१ मतढ़मजत समन तत्वि कको , मतढ़तटा हगी पटा सकले , जकसं तम जटानगी, मतढ़वित आभटास, गतढ़ ममें जटा सकले .­­­­३२ मतढ़ अजत अभ्यटास पटातले , जचत कगी एकटागकरतटा , जकसं तम जटानगी कगी स्विप्नवित हगी, स्विप्न जस्थत पकरजतटा.­­­­­३३ बहम कमर्थों सले भगी परम समख, अज कको नहगीसं लब्ध हबै, जटानगी पमरूष कको तत्वि सले, विहगी परम समख उपलब्ध हबै.­­­­­३४ ससंसटार ममें अभ्यटास सले बनतले नहगीसं जसदटात्मटा, जपकरय पतणर्छ बमद पकरपसंच दमन्ःख सले हगीन, शमद हबै आत्मटा.­­­­­­­३५ अभ्यटास रूपगी कमर्छ सले , नहगीसं मकोक्ष जमलतटा मतढ़ कको, कमर्छ भटावि जविहगीन जटानगी, धन्य पटातटा गतढ़ कको.­­­­­३६ अजटान­ विश जनज रूप कको, भतलटा हमआ हबै, भकरजमत हबै, पर जगीवि बकरह्म हबै जटानतले हगी, बकरह्म मय समख अजमत हबै.­­­­३७ आधटार हगीन दमरटागकरहगी मय , जग कटा पकोषक अज हबै, मतल छलेदन इस जगत कटा, कर सकले जको जविज हबै.­­­­३८ दशर्छन कहटाहूँ उसले आत्मटा कटा,दकष्ट आलसंबन जजसले, जको दकष्ट कको नहगीसं दलेखतले , अदकष्ट आलसंबन उसले.­­­३९ उनकको नहगीसं समख शटाजन्त , जचत्त जको रकोकतले हठ यकोग सले,  आत्म रमणगी सहज ससंयम, शटाजन्त सत्य पकरयकोग सले.­­­­­४० उनकको नहगीसं समख शटाजन्त, जचत्त जको रकोकतले हठ यकोग सले, आत्म रमणगी , सहज ससंयम, शटाजन्त सत्य पकरयकोग सले.­­­­४१ भटावि रूप हबै बकरह्म तको, ककोई कहतटा कम छ नहगीसं,  ककोई दकोनकोसं पक्ष मन, जनरपलेक्ष मटानले सबैट महगी.­­­­­४२ दमबमर्छजद जन अदबैत भटावि कटा, मटातकर हगी जचसंतन करमें, पयर्यंत जगीविन शटाजन्त समख सले, हगीन विले यटापन करमें.­­­­४३ जन ममममक्ष कगी बमजद तको, अबलम्ब जबन रहतगी नहगीसं, ममकत जन जनष्कटाम, जबन अबलम्ब रहतले हर कहगीसं.­­­­४४ जविषय रूपगी ब्यटागकर सले, भय भगीत हको जग छकोड़तले,  मतढ़, गतढ़ जनगतढ़ , ममर्छ कगी ओर मन नहगीसं मकोड़तले.­­­­­४५ विटासनटा सले हगीन जन, विले जससंह सम मजहमटा महगी, जविषय रूपगी विगीर जकन्नर, स्वियम नम हकोतले नहगीसं.­­­­­४६ सतसंघतटा, स्पशर्छ, समनतटा दलेखतटा खटातटा हमआ, कमर्छ जनश्चय, भटावि जनश्छल, जटानगी कटा करतटा हमआ­­­­­४७
  • 14. शमद, बमजद, स्विस्थ जचत मन, यमकत व्यजकत यथटाथर्छ कको, शकरविण सले हगी गकरहण, उनकले जविरकत भटावि पदटाथर्छ कको.­­­­­­४८ हहैं शमभ अशमभ, पकरटारब्ध विश, आगत रजहत हको कमर्छ कको, जटानगी करले सब बटालवित, जबन रटाग दलेष स्वि धमर्छ कको ­­­­­४९ रटाग दलेष जविममकत जचत मन, सविर्छथटा हगी स्वितसंतकर हबै, जटान, जनत समख, परम पद स्वि पर जविरल, स्वि तसंतकर हबै.­­­­५० जब अकतटार्छपन कटा अपनगी, आत्मटा कटा भटास हको, सकल उसकगी जचत्त विकजतयकोसं चपलतटायमें नटाश हकोसं ­­­­­५१ जटानगी कगी जस्थजत उशकरुन्खल, हको तथटाजप शटासंत हबै. विकजत्त स्पहटार्छमयगी कगी, शटाजन्त भकरम, उदकरटासंत हबै.­­­­­­५२ जजस धगीर जटानगी कले जचत्त कगी, सब कल्पनटाएहूँ शलेष हकोसं. पकरटारब्ध बस, भकोग जकसं तम, जचत शटासंत जविशलेष हको­­­­­५३ तगीथर्छ, पसंजडत, दलेवितटा हको, नटारगी, नकप पमतकरटाजद हको, दलेख कर भगी शटासंत मन, उजदग्न पर न कदटाजप हको.­­­­­५४ जकसं करकोसं, नटाजतयकोसं, पमतकरकोसं, बसंधम बटासंधवि आजद सले हको जतरस्कक त यटा हको पतजजत, जविलग दमन्ःख समख आजद सले.­­­­५५ लकोक दकजष्ट सले जको समख दमन्ःख, उनसले जटानगी हबै परले. आश्चयर्छमय ऐसगी दशटा कटा जटान, जटानगी हगी करले.­­­­­­­५६ जचत्त जटानगी कटा जनजविर्छकटारगी, शतन्य न आकटार हबै, ससंकल्प हगीन जनरटामयटा, कतर्छव्यतटा ससंसटार हबै.­­­­­५७ मतढ़ जन कतटार्छ हगी हबै, कमर्छ यद्यजप नहगी करमें ,, जटानगी अकतटार्छ हगी रहले, कमर्छ यद्यजप बहम करमें .­­­­­५८ शयन भकोजन और विचन ममें, जटान हगी आधटार हबै, आत्म समखमय शटासंत सम्यक, जटानगी कटा व्यविहटार हबै.५९ जटानगी कटा व्यविहटार पकरलेजरत,आत्मजटान स्विभटावि सले, कललेश, क्षकोभ जविहगीन, सटागरवित, जविरकत पकरभटावि सले.­­­­६० मतढ़ कगी जनविकजत भगी, पकरविकजत रूपगी हबै तथटा,  जटाजनयकोसं कगी पकरविकजत हबै, रूप जनविकजत कगी यथटा ­­­­६१ मतढ़ कटा विबैरटाग्य तको, गकह आजद ममें दकष्टव्य हबै, दलेह ममें लय रटाग धगीर कटा, बकरह्म हगी गसंतव्य हबै.­­­­६२ भटाविनटा यटा अभटाविनटा ममें, मतढ़ जन आसकत हहैं, जकसं तम जटानगी जन कगी दकजष्ट आत्मटा अनमरकत हबै.­­­­­६३ करले बटालवित व्यविहटार जटानगी, कटामनटाओसं सले परले, पकरटारब्ध विश रत कमर्छ, रत न भटाविनटाओसं कको करले.­­­­६४ दलेखतटा, स्पशर्छ, समनतटा, सतसंघतटा खटातटा हमआ, आत्म जटानगी, धन्य सम मन, जनस्तरण पटातटा हमआ.­­­­­६५ सविर्छदटा आकटाश वित जटानगी, सदटा जनजविर्छकटार हबै, आभटास, सटाधन, सटाध्य, और उसकटा कहटाहूँ ससंसटार हबै.­­­­­६६
  • 15. जको समटाजध सहज ममें, और पतणटार्छनन्द स्विरुप ममें, सतत हगी करतटा रमण, जय जयजत अपनले हगी रूप ममें.­­­­­­­६७ जनरटाकटासंक्षगी तत्वि जटानगी, मकोक्ष ममें और भकोग ममें, रटाग दलेष जविहगीन हर पल बकरह्म कले ससंयकोग ममें.­­­­­­६८ जभन्नतटा अजटान हबै, जको दबैत कटा आधटार हबै, जको आत्मबकोध पकरबमद, उसकटा छतटतटा ससंसटार हबै.­­­­६९ जविश्वि मटातकर पकरपसंच जटानगी कले जलए कम छ भगी नहगीसं, चबैतन्य आत्मटा अनमभविगी कको, तमच्छ सटारगी भगी महगी .­­­७० शम कहटाहूँ पर त्यटाग अथविटा कमर्छ जविजध, शटाजन्त कहटाहूँ, अजटानतटा कटा हबै पसटारटा, भकरजमत , भकरम, भकरटाजन्त यहटाहूँ.­­­­­७१ कहटाहूँ मकोक्ष, बसंधन जटाजनयकोसं कको, हषर्छ और जविषटाद हबै, सब बकरह्ममय बकरह्मटाण्ड मटायटा, पकरकक जत बकरह्म पकरसटाद हबै.­­­­­­७२ ससंसटार ममें पयर्यंत बमजद, मटायटा कगी हगी मटायटा हबै, जनष्कटाम बमद, पकरबमद दकजष्ट ममें, जगत कले विल छटायटा हबै.­­­­७३ जविश्वि, जविद्यटा, दलेह, जग, सब हहैं कहटाहूँ, अनमसटार भगी, आत्म जटानगी कले जलए सब व्यथर्छ हहैं, जनन्ःसटार भगी.­­­­­७४ जड़,मतढ़, कमर्थों कको त्यटाग कर भगी, जलप्त असंतस ममें कहगीसं, ससंकल्प और जविकल्प मन सले ममकत हकोतले हहैं नहगीसं.­­­­­­७५ मतढ़ समनकर आत्म तत्वि भगी, मतढ़तटा नहगीसं छकोड़तले, जनजविर्छकल्प हको बटाह्य सले, असंतन्ःकरण नहगीसं मकोड़तले.­­­­७६ जजस जटान सले सब जटाजनयकोसं कले , कमर्छ हकोतले नष्ट हहैं, विले तथटाजप कमर्छ रत, पर मन जविरत, स्पष्ट हबै.­­­७७ जनजविर्छकटारगी और जनभर्छय कले जलए, कम छ भगी नहगीसं, तमक कहटाहूँ, ज्यकोजत कहटाहूँ और त्यटाग आजद कम छ नहगीसं .­­­­­७८ आत्म जटानगी कगी पकरकक जत तको, अजनविर्छचन महटान हबै, कहटाहूँ धबैयर्छ और जविविलेक हबै, कहटाहूँ जनयम और जविधटान हहैं.­­­­७९ यकोगगी नरक और स्विगर्छ, जगीविन ममजकत कटा इच्छमक नहगीसं, बहमत कहनटा जनष्पकरयकोजन, यकोग दकजष्ट सले कम छ नहगी.­­­­­८० जचत्त अमकत सले हबै पतजरत, यकोगगी कटा शगीतल तथटा, लटाभ हटाजन सले परले, नहगीसं पकरटाथर्छनटा करतटा यथटा.­­­­­८१ सकौम्य जन कगी स्तमजत और दमष्ट कगी जनसंदटा नहगीसं, जनष्कटाम यकोगगी तकप्त, समख और दमन्ःख कगी जचसंतटा नहगीसं.­­­­८२ हषर्छ, रकोग जविहगीन जटानगी , भटाविन्ः सम्यक सकजष्ट हबै, न हगी मकत और न हगी जगीजवित , जगत ममें सम दकजष्ट हबै.­­­­८३ पमतकर स्तकरगी सले जविरत, स्विदलेह कगी जचसंतटा नहगीसं, ममकत आशटाओसं सले जटानगी, शकोभतटा हबै हर कहगीसं ­­­­­­८४ स्विच्छसंद बहम दलेशकोसं ममें जविचरण, जको जमलटा पयटार्छप्त हको, सविर्छदटा हगी ममजदत मन, सकोयले जहटाहूँ सतयटार्छस्त हको.­­­­८५
  • 16. जनज भटावि भतजम ममें रहले, ससंसटार जविस्मकत हको जजसले, यह दलेह जटाए यटा रहले, जकसं जचत न स्मकजत हको उसले.­­­­८६ सविर्छथटा हगी जविरत जटानगी, कको न ककोई दसंद हबै, सविर्छ भटाविकोसं ममें रमण करतटा, सविर्छदटा स्विच्छसंद हबै.­­­­­८७ जकसं करगी, कसं चन और मटाटगी ममें भगी ममतटा हगीन हबै, भटावि रटाज तमक कले धमलमें, जटानगी जको आत्म पकरविगीण हहैं.­­­­८८ सविर्छतकर आसजकत रजहत, कम छ विटासनटा जहय ममें नहगीसं, तकप्त जटानगी कगी भलटा कयटा सटाम्यतटा जग ममें कहगीसं.­­­­­८९ सब दलेखतटा, सब बकोलतटा, सब जटानतटा जटानगी सभगी, ककोई विटासनटा जहय ममें नहगीसं,कयटा अन्य हबै पकरटाणगी कभगी.­­­­९० शकरलेष्ठ और जनकक ष्ट दकोनकोसं, भटाविनटाएसं शलेष हकोसं, जनष्कटाम शकोजभत सविर्छदटा, चटाहमें जभक्षम, रटाजटा जविशलेष हकोसं.­­­­९१ जनष्कपट और सरल यकोगगी कको कहटाहूँ, स्विच्छसंदतटा , तत्वि कटा जनश्चय कहटाहूँ, ससंककोच कगी पकरजतबन्धतटा.­­­­­­­९२ आत्म जविशकरटासंजत ममें तकजप्त, शकोक आशटा सले परले, जटानगी अभ्यटान्तर ममें अनमभवि, कयटा कहले,जकस्सले करले.­­­­९३ स्विप्न जटागकत और समषमजप्त, धगीर तगीनकोसं कटाल ममें, सम्बन्ध कले विल आत्मटा सले हगी रखमें तकरबैकटाल ममें.­­­­­९४ बमजद,जचसंतटा, इजन्दकरयकोसं कले , सजहत भगी और रजहत भगी, अहम सले भगी सजन्नजहत, जटानगी अहमक सले जविजहत भगी.­­­­­९५ न समखगी, न हगी दमन्ःखगी, न ममकत न हगी ममममक्ष हबै, जकसं चन अजकसं चन सले परले,ससंग और जविरजकत तमच्छ हबै.­­­­­९६ जविक्षलेप ममें जविजक्षप्त और पसंजडत नहगीसं पटासंजडत्य ममें, जड़ नहगीसं जड़तटा ममें, चलेतन पतणर्छ हबै, चबैतन्य ममें.­­­­­९७ समभटावि हर जस्थजत ममें जटानगी, जको जमलटा ससंतकोष हबै, कक त और अकक त कमर्थों ममें जनन्ःस्पकह, मन जविरजकत ककोष हबै.­­­­­९८ सम भटावि स्तमजत और जनसंदटा, हबै विहगी जटानगी, परले, न मकत्यम ममें न हषर्छ ममें, उजदग्न, जगीविन कको करमें.­­­­­९९ नगर विन सब एक, जजसकगी जटान, धगी, पकरजटा महले, सम भटावि जस्थत विह सभगी, स्थटान जस्थजत ममें रहमें.­­­­­­१०० १९ नविदश पकरकरणन्ः जनक उविटाचन्ः तत्वि जटान कगी सटासंसगी गमरु सले, जमल गए महैं कक तज हतहूँ, सले विटाण रूप जविचटार गए, ममर्छज हतहूँ.­­­­­­­१ ममझले दबैत सले यटा अदबैत सले धन, ऐथर्छ सले और कटाम सले, जकसं जचत पकरयकोजन भगी नहगीसं, जचतविकजत शलेष जविरटाम सले.­­­­­२
  • 17. महैं जनत्य स्वि मजहमटा पकरजतजष्ठत,तगीन कटालकोसं सले परले, कहटाहूँ दलेश कटालकोसं कगी पजरजध, पकरजतजबम्ब सगीमटा सले करमें.­­­­­३ शमभ­­अशमभ, जचसंतटा­­अजचसंतटा, आत्मटा यटा अनटात्मटा, हतहूँ जनत्य स्वि मजहमटा पकरजतजष्ठत, जचत्त ममें परमटात्मटा.­­­­­­४ अब स्विप्न जटागकरत और समषमजप्त, तमरगीय अथविटा भय कहटाहूँ, हतहूँ जनत्य स्विमजहमटा पकरजतजष्ठत, इनकटा न अनमभवि विहटाहूँ.­­­­५ बटाह्य अभ्यसंतर कहटाहूँ पर सतक्ष्म हबै, स्थतल हबै, हतहूँ जनत्य स्वि मजहमटा पकरजतजष्ठत, ममझकको सब अनमकत ल हबै.­­­­६ कहटाहूँ मकत्यम हबै, जगीविन कहटाहूँ, परलकोक लकौजकक जटान हबै, लय समटाजध हबै कहटाहूँ?ममझले जविज आजत्मक जटान हबै­­­­­७ आत्मटा ममें जविशकरटासंजत, पतणर्छ महैं पटा गयटा, अब पतणर्छ हतहूँ. धमर्छ, अथर्छ और मकोक्ष कटाम कगी, पतणर्छतटा सम्पतणर्छ हतहूँ ­­­­८ २० जविसंशदश पकरकरणन्ः जनक उविटाचन्ः मलेरले जनरसंजन रूप ममें, कहटाहूँ पसंचभतत जविकटार हहैं, कहटाहूँ दलेह, मन, कहटाहूँ इजन्दकरयकोसं, कहटाहूँ शतन्य पतणर्छ पकरकटार हबै.­­­­१ हतहूँ जनजविर्छषय सब भटावि ममें,न हगी दसंद, हबै न अदसंद हबै, न तकजप्त, न तकष्णटा, न मन, अब आत्मटा स्विच्छसंद हबै,­­­­­­२ मलेरले रूप कको कहटाहूँ रूपतटा,जविद्यटा अजविद्यटा हबै कहटाहूँ? अहम और ममकटार अथविटा बसंध मकोक्ष भगी हबै कहटाहूँ?­­­­­­३ ममें जनजविर्छशलेष हतहूँ आत्मटा, कहटाहूँ कमर्छ और पकरटारब्ध हहैं, और कहटाहूँ कबै विल्य, जगीविन ममजकत आजद पकरबसंध हहैं.­­­­­­­­४ शलेष हहैं भकोकतकत्वि और कतकर्छत्वि आत्मटानसंद हबै, जनन्ःस्विभटाविगी, स्फम रण कहटाहूँ जटान फल कले दसंद हहैं.­­­­­­­५ स्वि ­ स्वियम कटा रूप अदय , महैं स्वियसं हगी जटान हतहूँ, कहटाहूँ बद और ममममक्ष, दबैत कले दसंद, ऋत जविजटानसं हतहूँ.?­­­­­६ ममझ अदबैत स्विरुप कको, सकजष्ट कहटाहूँ ससंसटार हबै,? कहटाहूँ सटाध्य, सटाधन, जसजद सटाधक, आत्मटा कटा पकरसटार हबै.?­­­­७ महैं शमद, चलेतन आत्मटा,जकसं जचत अजकसं जचत हबै कहटाहूँ,? अनम, लघम, मजहमटा, पकरमटातटा और पकरमटाजणत हबै कहटाहूँ?­­­­­­८ सविर्छदटा जनजष्कक रय कहटाहूँ, जविक्षलेप और एकटागकरतटा ? मतढ़तटा, अजटान, समख और हबै कहटाहूँ पर व्यगकरतटा ?­­­­­९ विकजत जटान शतन्य स्विरुप,अब ममझममें कहटाहूँ व्यविहटार हबै ? समख कहटाहूँ और दमन्ःख कहटाहूँ, परमटाथर्छतटा सले पटार हबै?­­­­­१० जविमल हतहूँ ममझममें कहटाहूँ, मटायटा कहटाहूँ ससंसटार हबै ? पकरगीजत और जविरजत कहटाहूँ ,कहटाहूँ जगीवि बकरह्म अपटार हबै ?­­­­११
  • 18. आत्मटा हबै कत टस्थ और यह सविर्छदटा अजविभटाज्य हबै, पकरविकजत और जनविकजत कहटाहूँ, ममझले गकरटाह्य और कयटा त्यटाज्य हबै ?­­­­­१२ जशवि रूप हतहूँ महैं उपटाजध जबन,कयकोसंजक आत्मटा जनरपलेक्ष हबै, कहटाहूँ शटास्तकर, गमरु, उपदलेश, जशष्य हहैं, कहटाहूँ बसंधन मकोक्ष हहैं ?­­­­­­१३ आजस्त और नटाजस्त कहटाहूँ, और दको कहटाहूँ पर एक हबै? नहगीसं बहमत कहनले कटा पकरयकोजन, बकरह्म सविर्छमक एक हबै.­­­­­­­­१४ अष्टटाबकक र गगीतटा समटाप्त