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पूजा-विधि और तर्क संगतता
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिि विद्यते |
भगवद्गीता के ४थे अध्याय के ३८वे श्लोक में कहा है वैसे ज्ञान जितना पववत्र सचमुच और कु छ
भी नह ीं है | भारतीय सींस्कृ तत के आधारस्तींभ िैसे वेद ज्ञान का भींडार है | ‘वेद’ शब्द सींस्कृ त
धातु ‘ववद्’ पर से आया है | ‘ववद्’ का मतलब है ‘िानना’ (to know). इसीललए ये असीलमत
ज्ञान से भरपूर शास्त्र वेद के नाम से िाने िाते है | आि उपर ललखे श्लोक के प्रथम दो या
तीन शब्द पर ह web search करने पर search results में ये श्लोक के बारे में पूर्णरूप से
माहहती देनेवाल सेंकडो links display होती है | ये कहने में कोई गलती नह ीं है की वतणमान
सींदभण में web भी असीलमत माहहती का भींडार है | वेद आध्याजममक ववकास की पराकाष्टा के
प्रतीक है तो web (अथवा internet) technological / scientific ववकास की धोर नस है |
वास्तव में वेद में वर्णन की गई ववधधयों और अन्य माहहती के पीछे तार्कण क कारर् है | लेर्कन
समय के बबतने के साथ हम कारर् भूलकर लसर्ण ववधध का अनुकरर् करने लगे है | इसी विह
से आि की युवा पीढ़ धालमणक ववधधयोंको पसींद नह ीं करती | ऐसी ह हमारे रोजिींदा िीवन की
एक महमवपूर्ण र्िया, तनमय कमण में की िानेवाल देवताओीं की पूिा, के पीछे िो तकण सींगतता है
वो यहााँ प्रस्तुत करने का प्रयमन है |
कमणकाींड, ज्ञानकाींड और उपासनाकाींड ये वेद के उपाींग है | इसमें कमणकाींड में यज्ञ और अन्य
धालमणक ववधधयों कै से करनी चाहहए उसके बारे में माहहती द गयी है | यज्ञ, िो पूवण काल में
अजनन के आवाहन के साथ र्कये िाते थे, वो समय के साथ साथ बदलते हुए सींिोगो को ध्यान
में रखते हुए, आि की पूिा में रूपाींतररत हुए | इसी विह से पूिा के देवता को लसर्ण मूततण या
छबी नह ीं समिके उनको प्रमयक्ष हािर माने िाते है और घर आये अततधथ के तरह ह उनका
आदर समकार र्कया िाता है | पूिा की ववधध और उसके पीछे रहे हुए कारर्ों के बारे में ववशेष
िानकार नीचे द गई है |
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आचिन और प्राणायि:
हहींदु सींस्कृ तत में कोई भी पूिा की शुरुआत आचमन से की िाती है | आचमन का मतलब है
आचमनी से हाथ मे तीन बार पानी लेके होठों से ग्रहर् करके , चौथी बार हस्त प्रक्षालन करना |
ये ववधध करने का उद्देश्य जिह्वा, होठ तथा गले को िरुरत के जितना (और उतना ह ) भीगोने
का है | पानी के दो या तीन ह बूींद शर र और मन के ललए स्र्ू ततणदायक होते है | पानी
ज्ञानाममक कायणक्षमता (cognitive performanance) की गतत बढ़ाता है ये ववज्ञान में साबबत
हुआ है | पूिा ववधध के कर ब एक से डेढ़ घींटे के ललए यिमान ने अपना मन ईश्वर पे के जन्ित
करना होता है, इस समय में प्यास न लगे ये बहोत िरुर है | ज्यादा पानी से कु दरती प्रर्िया
होने की शक्यता रहेती है िो भी होना नह ीं चाहहए (पूिा के दौरान उठने की िरुरत नह ीं पडनी
चाहहए) | इसललए सममव को ध्यान में रखते हुए, पूिा की शुरुआत में िरुरत के मुताबबक ह
पानी ग्रहर् करना ये आचमन के पीछे का उद्देश्य है |
आचमन से शार ररक जस्थरता आती है तो प्रार्ायम से मानलसक जस्थरता आती है | प्रार्ायम =
प्रार् + आयाम; प्रार् का तनयमन | प्रार् का शर र में व्यक्त रूप है श्वास-उच्छ्वास; और ये
श्वास-उच्छ्वास पे मन से तनधाणररत करके तनयमन करने का मतलब है प्रार्ायम | गायत्री मींत्र
के पठन के साथ अनुलोम-ववलोम करने से शर र को oxygen लमलता है और toxic carbon
dioxide शर र में से तनकल िाता है | इसके कारर् शर र में शजक्त का सींचार होता है, ये
ववज्ञानीं लसद्ध कर चूका है | शजक्त का सींचार होने के कारर् मन को एकाग्र करने मे आसानी
रहेती है |
संर्ल्प:
आचमन और प्रार्ायम के बाद सींकल्प र्कया िाता है | सींकल्प के पीछे दो मुख्य उद्देश्य है –
एक यह र्क पूिा के दौरान कोई ववघ्न न आये इसके ललए मन से तनधाणर करना और दूसरा र्क
ब्रह्माींड में बसी हुई शजक्त को अपने घर पे तनमींबत्रत करना | ववज्ञान में महदअींश से लसद्ध हुआ
है र्क ब्रह्माींड की समग्र शजक्त एक ह है (उसको िरूर के अनुसार electrical, mechanical,
chemical इमयाहद energy में रूपाींतररत र्कया िाता है |) सींकल्प के श्लोकों से हम ब्रह्माींड की
शजक्त को अपनी पूिा के तनजश्चत स्थल और समय (space & time) के बारे में बताते है
जिससे वह सकाराममक शजक्त पूिा के स्थान पे के जन्ित हो | यहााँ प्रश्न ये उठता है र्क इतने
बड़े ब्रह्माींड में अपने घर का तनजश्चत स्थान और समय कै से बताया िाय ? ताज्िुब की बात
Page 3
ये है र्क हमारे हिारों साल पहेले ललखे गये शास्त्रों में इसके ललए भी provision र्कया गया है !
इसी कारर् से सींकल्प के श्लोकों में कल्प, मन्वींतर, युग, चरर्, वषण, सींवमसर, आयन (उमतरायन
/ दक्षक्षर्ायन), ऋतु, महहना, पक्ष, वार, नक्षत्र, चन्ि राशी, सूयण राशी, गुरु राशी इमयाहद अनेक
पररमार्ों का उल्लेख आता है | और ये सब पररमार् से हम तनजश्चत पता बताते है |
पंचििाभूत र्ी पूजा:
सींकल्प के बाद आसन, कलश, शींख, घींटा और द ये की पूिा की िाती है | आसन, कलश, शींख,
घींटा और द या ये पींचतमव के प्रतीक है | ये पींचतमव है पृथ्वी, िल, आकाश, वायु और अजनन |
आसन शुवद्ध द्वारा पृथ्वी को प्राथणना, कलश की पूिा से वरुर् देवता को आवाहन, शींख (‘ख’
मतलब आकाश) द्वारा आकाश तमव की पूिा | घींटा की ध्वतन को फ़ै लाने के ललए हवा की
िरूरत होती है इसललए घींटा वायु देवता का प्रतीक है | और द या अजनन देवता का प्रतीक है |
हमारा शर र पींचमहाभूत का बना हुआ है | ब्रह्माींड में हर िगह में पींचमहाभूत का तनवास है |
आसन, कलश, शींख, घींटा और द ये की प्रतीकाममक पूिा हमार ब्रह्माींड के साथ एकाकार होने
की भावना का सुचन है | पींचमहाभूत की पूिा के बाद में मुख्य देवता की पूिा-ववधध शुरू
होती है |
आिािन और आसन:
हमार सींस्कृ तत में घर आये हुए अततधथ को बैठने के ललए आसन देने का ररवाि है | ठीक उसी
तरह से हम आवाहन से देवता को अपने घर आने के ललए आमींबत्रत करते है और बैठने के ललए
अक्षत चढ़ाते है |
पाद्य और अर्घयक:
बाहर से आके सब से पहले हाथ-पैर धोने का ररवाि हमार सींस्कृ तत में परापूवण से चले आ रहा
है | आमींबत्रत र्कये हुए देवता को पाद्य और अघ्यण द्वारा पैर और हाथ धुलाने की भावना है |
इसके ललए हलद और चींदन-युक्त पानी इस्तेमाल होता है | आि हम जिसको hand wash
और disinfector कहते है उसका उपयोग हमारे हज़ारो वषण पहले ललखे हुए शास्त्रों में बताया गया
है | इसी विह से अघ्यण और पाद्य लसर्ण पानी से न करते हुए, हलद और चींदन-युक्त पानी से
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र्कया िाता है | प्रतीकाममक िजष्ट से पाद्य और अघ्यण द्वारा हम नकाराममकता को धो डालते
है |
पंचािृत स्नान:
दूध, दह , घी, मध और शकण रा का तनजश्चत प्रमार् में लमश्रर् को पींचामृत कहते है | ये पाींचो
िव्यों के गुर्धमण अलग-अलग है और इसी विह से पींचामृत स्नान ये पाींचो चीिों से अलग-
अलग र्कया िाता है | आि हम beauty parlour में िाके , चेहरे पे तनखार लाने के ललए क्या
क्या नह ीं करते? हकीकत में पींचामृत स्नान के उतने ह , बजल्क उससे भी कई ज्यादा र्ायदे
है | अगर पूिा की ववधध से आि की पीढ़ को ये फ़ायदे से वार्कफ़ र्कया िाये तो समय,
शजक्त और पैसे बचने के साथ उनका प्राकृ ततक सौंदयण भी आसानी से तनखर आए ! 
पींचामृत का हरेक िव्य बाह्य तरह से (मवचा पर), आतींररक तरह से (शर र के अवयवो पर) और
आध्याजममक तरह से (मन पर) अलग अलग असर करता है |
 दूध बाह्य र त से मवचा को साफ़ करता है, गोर बनाता है (cleansing and anti-
tanning) | दूध गाय और बछड़े के बीच के प्रेम का प्रतीक है | उसका सेवन शर र को
पोषर् देता है और साजमवकता बढ़ाता है |
 दह मवचा-रोग के ललए र्ायदाकारक है; मवचा पे चमक लाता है (brings glow to the
skin) | दह के सेवन से कै जल्शयम बढ़ता है और हड्डी मिबूत होती है | आध्याजममक
िजष्ट से दह को जस्थरता का प्रतीक माना िाता है | दूध में थोड़ा सा ह लमलाने से दूध
में जस्थरता आती है | इसललए कोई शुभ काम के ललए अलग होते वक्त सम्बन्धो में
जस्थरता हटकाने के ललए दह खाके तनकलने का ररवाि है |
 घी मवचा की रुक्षता को तनकाल देता है और जस्ननध बनाता है | आतींररक िजष्ट से
joints को मिबूत करके lubricate करता है और स्नायुओ को मिबूत बनाता है | घी
दूध का उच्छचतम स्वरुप है | दूध का समव ह घी है | आध्याजममक िजष्ट से घी का
उपयोग, ईश्वर का समव हमारे में आके बसे ये इच्छछा का सूचन करता है |
 मध लगाने से मवचा पर िमा हुआ धचकटपन तनकल िाता है | आतींररक िजष्ट से शर र
को पोषर् देता है | मध जिसमे लमलाया िाता है उस चीि के गुर् बढ़ाता है |
आध्याजममक िजष्ट से हमारा िीवन मध िैसा बने, दूसरों के काम में आये ये सूचन
करता है |
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 शक्कर सुखी मवचा को साफ़ करके (scrubbing), मवचा पर ताज़गी लाती है | खून में
लमलने से शजक्त का सींचार करती है और आध्याजममक िजष्ट से ईश्वर के साथ एकाकार
होने की भावना सूधचत करती है |
इस तरह, पींचामृत के पाींचो तमवों के पीछे बहोत ह गूढ़ अथण है |
िस्त्रापकण और यज्ञोपिीत:
स्नान के बाद, ईश्वर के रूप में आये अततधथ को कट -वस्त्र और उमतर य ऐसे दो वस्त्र अपणर्
र्कये िाते है | आि हम अलमाररयाीं भरके कपड़े इकठ्ठे करने का शौक़ रखते है | लसर्ण दो ह
वस्त्र का समपणर् ये सूधचत करता है र्क वस्त्र का उपयोग शर र को cover करने के ललए करना
चाहहए, िरूरत से ज्यादा सींग्रह नह ीं करना चाहहए | यज्ञोपवीत मतलब तेिस्वी िीवन की द क्षा
और आध्याजममक िीवन िीने के सींकल्प का प्रतीक ! यज्ञोपवीत के सींस्कार से गुरु मींत्र लमलता
है जिसका िप करने से बुवद्ध और एकाग्रता बढ़ती है िो आध्याजममक िीवन की शुरुआत है |
इस तरह, यज्ञोपवीत एक महमवपूर्ण सींस्कार है |
विलेपन और पुष्पापकण:
चींदन, लसन्दूर, कु मकु म, हलद , अष्टगींधा वगैरह पररमल िव्यों को देवता पे चढ़ाने की ववधध को
ववलेपन कहा िाता है | ये सब िव्यों का औषधीय महमव है | चींदन शीतलता-प्रदान है |
लसन्दूर का लेप मुक्कामार पे लगाने से राहत लमलती है | हलद रक्त शुध्ध करती है | शर र
में होते हुए hormonal changes को सींतुलन में रखने के ललए हलद का उपयोग र्कया िाता है|
मवचा-रोग के ललए हलद antiseptic है | कु मकु म, हलद और गूगल से बनता है | कु मकु म में
रक्त-पररभ्रमर् को सींतुलन में रखने का गुर् है | चेहरे पे दो eye-brows के बीच में लगाने से
pitutary ग्रींधथ पर सकाराममक असर होता है | अष्टगींधा चींदन, के शर, और अन्य िड़ीबूट्टीयों
का लमश्रर् है, िो मवचा-रोग शुवद्ध, मन-शुवद्ध, और रक्त-शुवद्ध के ललए इस्तेमाल र्कया िाता है|
पुष्पापणर् के ललए औषधीय गुर्ों वाले, आरोनयवधणक फ़ु ल चड़ाए िाते है, जिसके बारे में पूिा
दौरान ववशेष िानकार देने से वो ज्ञान भववष्य की पीढ़ तक कायम रहेता है |
Page 6
नैिेद्य और ताम्बूल:
नैवेद्य के पीछे समपणर् की भावना है | हमारे शर र के पींचवायु – प्रार्, अपान, व्यान, उदान,
और समान – हम नैवेद्य के द्वारा समवपणत करते है | ये पींचप्रार् के स्वरुप में हम अपने
अहींकार का मयाग करते है | कई घरों में आि भी खाने के बाद पान का बीड़ा मुखवास के ललए
खाया िाता है | नागरवेल के पान में पाचनशजक्त बढ़ाने का गुर् है | कई तरह के
आरोनयवधणक तेिाना डाल के बनाया हुआ पान का बीड़ा, प्रसाद में रखके उसका सेवन करने से
भोिन आसानी से पचता है |
दक्षिणा और फल सिपकण:
दक्षक्षर्ा देते समय आचमनी से पानी छोड़ना होता है | पानी छोड़ने की प्रर्िया दक्षक्षर्ा पर का
अपना हक्क मयाग देने का सूचन है | ज्ञान का दान करने वाले ब्राह्मर् को दक्षक्षर्ा देने से
उसका सदुपयोग हो ये भावना है | दक्षक्षर्ा, र्ल समपणर् में देने के र्ल मीठ्ठे और रसवाले हो वो
िरुर है | प्रतीकाममक िजष्ट से यिमान, ईश्वर के पास पूिा के र्ल स्वरुप ऐसे ह मीठ्ठे और
रसवाले िीवन की आशा व्यक्त करता है |
तीर्क प्राशन्न:
पूिा की समाजप्त तीथण प्राशन्न से करनी चाहहए | तीथण प्राशन्न मतलब देवता को अपणर् र्कये
हुए प्रवाह में से थोड़ा सा प्रसाद के रूप में ग्रहर् करना | ईश्वर को अपणर् र्कया हुआ आचमन,
स्नान, अलभषेक वगैरह चीिों में से िो तीथण तैयार होता है उसमे औषधी, वनस्पतत, पींचामृत,
धातु सब का लमश्रर् होता है | तदुपराींत पूिा दौरान र्कये हुए मींत्रोच्छचार से के जन्ित हुई
सकाराममक शजक्त ध्वतन तरींग (sound waves) और सूक्ष्म तरींग (subtle vibrations) द्वारा
तीथण में एकबत्रत होती है | ऐसे तीथण का प्राशन्न करने वाल व्यजक्त का बौजध्धक, मानलसक
और आध्याजममक ववकास होता है |
आरती और िूप:
वैज्ञातनक िजष्ट से आरती और धूप पयाणवरर् की शुजध्ध के ललए है | आरोनय की िजष्ट से
गूगल का लेप सींधधवात के ललए बहोत फ़ायदाकारक है | आध्याजममक िजष्ट से पूिा दौरान
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के जन्ित हुई शजक्त यिमान में, यिमान के सम्बजन्धयों में, समाि में, राष्र में, ववश्व में
सकाराममकता र्ै लाए ये भावना है |
पूिा-ववधध के साथ िुड़ा हुआ उद्धेश्य बहोत ह गूढ़ है | उसकी हरेक प्रर्िया के साथ बुवद्धगम्य,
तार्कण क, वैज्ञातनक कारर् िुड़े हुए है | ये ववषय का detailed study बहोत ह ज्ञानदायी है |
यहााँ मैंने अपनी understanding के मुताबबक माहहती द है | अगर आपको कोई गलती नज़र
आये तो मुझे inform करने की नम्र ववनींती है |

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Sanskrit Sambhashanam - Class 2
 

Pooja Vidhi aur Science

  • 1. Page 1 पूजा-विधि और तर्क संगतता न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिि विद्यते | भगवद्गीता के ४थे अध्याय के ३८वे श्लोक में कहा है वैसे ज्ञान जितना पववत्र सचमुच और कु छ भी नह ीं है | भारतीय सींस्कृ तत के आधारस्तींभ िैसे वेद ज्ञान का भींडार है | ‘वेद’ शब्द सींस्कृ त धातु ‘ववद्’ पर से आया है | ‘ववद्’ का मतलब है ‘िानना’ (to know). इसीललए ये असीलमत ज्ञान से भरपूर शास्त्र वेद के नाम से िाने िाते है | आि उपर ललखे श्लोक के प्रथम दो या तीन शब्द पर ह web search करने पर search results में ये श्लोक के बारे में पूर्णरूप से माहहती देनेवाल सेंकडो links display होती है | ये कहने में कोई गलती नह ीं है की वतणमान सींदभण में web भी असीलमत माहहती का भींडार है | वेद आध्याजममक ववकास की पराकाष्टा के प्रतीक है तो web (अथवा internet) technological / scientific ववकास की धोर नस है | वास्तव में वेद में वर्णन की गई ववधधयों और अन्य माहहती के पीछे तार्कण क कारर् है | लेर्कन समय के बबतने के साथ हम कारर् भूलकर लसर्ण ववधध का अनुकरर् करने लगे है | इसी विह से आि की युवा पीढ़ धालमणक ववधधयोंको पसींद नह ीं करती | ऐसी ह हमारे रोजिींदा िीवन की एक महमवपूर्ण र्िया, तनमय कमण में की िानेवाल देवताओीं की पूिा, के पीछे िो तकण सींगतता है वो यहााँ प्रस्तुत करने का प्रयमन है | कमणकाींड, ज्ञानकाींड और उपासनाकाींड ये वेद के उपाींग है | इसमें कमणकाींड में यज्ञ और अन्य धालमणक ववधधयों कै से करनी चाहहए उसके बारे में माहहती द गयी है | यज्ञ, िो पूवण काल में अजनन के आवाहन के साथ र्कये िाते थे, वो समय के साथ साथ बदलते हुए सींिोगो को ध्यान में रखते हुए, आि की पूिा में रूपाींतररत हुए | इसी विह से पूिा के देवता को लसर्ण मूततण या छबी नह ीं समिके उनको प्रमयक्ष हािर माने िाते है और घर आये अततधथ के तरह ह उनका आदर समकार र्कया िाता है | पूिा की ववधध और उसके पीछे रहे हुए कारर्ों के बारे में ववशेष िानकार नीचे द गई है |
  • 2. Page 2 आचिन और प्राणायि: हहींदु सींस्कृ तत में कोई भी पूिा की शुरुआत आचमन से की िाती है | आचमन का मतलब है आचमनी से हाथ मे तीन बार पानी लेके होठों से ग्रहर् करके , चौथी बार हस्त प्रक्षालन करना | ये ववधध करने का उद्देश्य जिह्वा, होठ तथा गले को िरुरत के जितना (और उतना ह ) भीगोने का है | पानी के दो या तीन ह बूींद शर र और मन के ललए स्र्ू ततणदायक होते है | पानी ज्ञानाममक कायणक्षमता (cognitive performanance) की गतत बढ़ाता है ये ववज्ञान में साबबत हुआ है | पूिा ववधध के कर ब एक से डेढ़ घींटे के ललए यिमान ने अपना मन ईश्वर पे के जन्ित करना होता है, इस समय में प्यास न लगे ये बहोत िरुर है | ज्यादा पानी से कु दरती प्रर्िया होने की शक्यता रहेती है िो भी होना नह ीं चाहहए (पूिा के दौरान उठने की िरुरत नह ीं पडनी चाहहए) | इसललए सममव को ध्यान में रखते हुए, पूिा की शुरुआत में िरुरत के मुताबबक ह पानी ग्रहर् करना ये आचमन के पीछे का उद्देश्य है | आचमन से शार ररक जस्थरता आती है तो प्रार्ायम से मानलसक जस्थरता आती है | प्रार्ायम = प्रार् + आयाम; प्रार् का तनयमन | प्रार् का शर र में व्यक्त रूप है श्वास-उच्छ्वास; और ये श्वास-उच्छ्वास पे मन से तनधाणररत करके तनयमन करने का मतलब है प्रार्ायम | गायत्री मींत्र के पठन के साथ अनुलोम-ववलोम करने से शर र को oxygen लमलता है और toxic carbon dioxide शर र में से तनकल िाता है | इसके कारर् शर र में शजक्त का सींचार होता है, ये ववज्ञानीं लसद्ध कर चूका है | शजक्त का सींचार होने के कारर् मन को एकाग्र करने मे आसानी रहेती है | संर्ल्प: आचमन और प्रार्ायम के बाद सींकल्प र्कया िाता है | सींकल्प के पीछे दो मुख्य उद्देश्य है – एक यह र्क पूिा के दौरान कोई ववघ्न न आये इसके ललए मन से तनधाणर करना और दूसरा र्क ब्रह्माींड में बसी हुई शजक्त को अपने घर पे तनमींबत्रत करना | ववज्ञान में महदअींश से लसद्ध हुआ है र्क ब्रह्माींड की समग्र शजक्त एक ह है (उसको िरूर के अनुसार electrical, mechanical, chemical इमयाहद energy में रूपाींतररत र्कया िाता है |) सींकल्प के श्लोकों से हम ब्रह्माींड की शजक्त को अपनी पूिा के तनजश्चत स्थल और समय (space & time) के बारे में बताते है जिससे वह सकाराममक शजक्त पूिा के स्थान पे के जन्ित हो | यहााँ प्रश्न ये उठता है र्क इतने बड़े ब्रह्माींड में अपने घर का तनजश्चत स्थान और समय कै से बताया िाय ? ताज्िुब की बात
  • 3. Page 3 ये है र्क हमारे हिारों साल पहेले ललखे गये शास्त्रों में इसके ललए भी provision र्कया गया है ! इसी कारर् से सींकल्प के श्लोकों में कल्प, मन्वींतर, युग, चरर्, वषण, सींवमसर, आयन (उमतरायन / दक्षक्षर्ायन), ऋतु, महहना, पक्ष, वार, नक्षत्र, चन्ि राशी, सूयण राशी, गुरु राशी इमयाहद अनेक पररमार्ों का उल्लेख आता है | और ये सब पररमार् से हम तनजश्चत पता बताते है | पंचििाभूत र्ी पूजा: सींकल्प के बाद आसन, कलश, शींख, घींटा और द ये की पूिा की िाती है | आसन, कलश, शींख, घींटा और द या ये पींचतमव के प्रतीक है | ये पींचतमव है पृथ्वी, िल, आकाश, वायु और अजनन | आसन शुवद्ध द्वारा पृथ्वी को प्राथणना, कलश की पूिा से वरुर् देवता को आवाहन, शींख (‘ख’ मतलब आकाश) द्वारा आकाश तमव की पूिा | घींटा की ध्वतन को फ़ै लाने के ललए हवा की िरूरत होती है इसललए घींटा वायु देवता का प्रतीक है | और द या अजनन देवता का प्रतीक है | हमारा शर र पींचमहाभूत का बना हुआ है | ब्रह्माींड में हर िगह में पींचमहाभूत का तनवास है | आसन, कलश, शींख, घींटा और द ये की प्रतीकाममक पूिा हमार ब्रह्माींड के साथ एकाकार होने की भावना का सुचन है | पींचमहाभूत की पूिा के बाद में मुख्य देवता की पूिा-ववधध शुरू होती है | आिािन और आसन: हमार सींस्कृ तत में घर आये हुए अततधथ को बैठने के ललए आसन देने का ररवाि है | ठीक उसी तरह से हम आवाहन से देवता को अपने घर आने के ललए आमींबत्रत करते है और बैठने के ललए अक्षत चढ़ाते है | पाद्य और अर्घयक: बाहर से आके सब से पहले हाथ-पैर धोने का ररवाि हमार सींस्कृ तत में परापूवण से चले आ रहा है | आमींबत्रत र्कये हुए देवता को पाद्य और अघ्यण द्वारा पैर और हाथ धुलाने की भावना है | इसके ललए हलद और चींदन-युक्त पानी इस्तेमाल होता है | आि हम जिसको hand wash और disinfector कहते है उसका उपयोग हमारे हज़ारो वषण पहले ललखे हुए शास्त्रों में बताया गया है | इसी विह से अघ्यण और पाद्य लसर्ण पानी से न करते हुए, हलद और चींदन-युक्त पानी से
  • 4. Page 4 र्कया िाता है | प्रतीकाममक िजष्ट से पाद्य और अघ्यण द्वारा हम नकाराममकता को धो डालते है | पंचािृत स्नान: दूध, दह , घी, मध और शकण रा का तनजश्चत प्रमार् में लमश्रर् को पींचामृत कहते है | ये पाींचो िव्यों के गुर्धमण अलग-अलग है और इसी विह से पींचामृत स्नान ये पाींचो चीिों से अलग- अलग र्कया िाता है | आि हम beauty parlour में िाके , चेहरे पे तनखार लाने के ललए क्या क्या नह ीं करते? हकीकत में पींचामृत स्नान के उतने ह , बजल्क उससे भी कई ज्यादा र्ायदे है | अगर पूिा की ववधध से आि की पीढ़ को ये फ़ायदे से वार्कफ़ र्कया िाये तो समय, शजक्त और पैसे बचने के साथ उनका प्राकृ ततक सौंदयण भी आसानी से तनखर आए !  पींचामृत का हरेक िव्य बाह्य तरह से (मवचा पर), आतींररक तरह से (शर र के अवयवो पर) और आध्याजममक तरह से (मन पर) अलग अलग असर करता है |  दूध बाह्य र त से मवचा को साफ़ करता है, गोर बनाता है (cleansing and anti- tanning) | दूध गाय और बछड़े के बीच के प्रेम का प्रतीक है | उसका सेवन शर र को पोषर् देता है और साजमवकता बढ़ाता है |  दह मवचा-रोग के ललए र्ायदाकारक है; मवचा पे चमक लाता है (brings glow to the skin) | दह के सेवन से कै जल्शयम बढ़ता है और हड्डी मिबूत होती है | आध्याजममक िजष्ट से दह को जस्थरता का प्रतीक माना िाता है | दूध में थोड़ा सा ह लमलाने से दूध में जस्थरता आती है | इसललए कोई शुभ काम के ललए अलग होते वक्त सम्बन्धो में जस्थरता हटकाने के ललए दह खाके तनकलने का ररवाि है |  घी मवचा की रुक्षता को तनकाल देता है और जस्ननध बनाता है | आतींररक िजष्ट से joints को मिबूत करके lubricate करता है और स्नायुओ को मिबूत बनाता है | घी दूध का उच्छचतम स्वरुप है | दूध का समव ह घी है | आध्याजममक िजष्ट से घी का उपयोग, ईश्वर का समव हमारे में आके बसे ये इच्छछा का सूचन करता है |  मध लगाने से मवचा पर िमा हुआ धचकटपन तनकल िाता है | आतींररक िजष्ट से शर र को पोषर् देता है | मध जिसमे लमलाया िाता है उस चीि के गुर् बढ़ाता है | आध्याजममक िजष्ट से हमारा िीवन मध िैसा बने, दूसरों के काम में आये ये सूचन करता है |
  • 5. Page 5  शक्कर सुखी मवचा को साफ़ करके (scrubbing), मवचा पर ताज़गी लाती है | खून में लमलने से शजक्त का सींचार करती है और आध्याजममक िजष्ट से ईश्वर के साथ एकाकार होने की भावना सूधचत करती है | इस तरह, पींचामृत के पाींचो तमवों के पीछे बहोत ह गूढ़ अथण है | िस्त्रापकण और यज्ञोपिीत: स्नान के बाद, ईश्वर के रूप में आये अततधथ को कट -वस्त्र और उमतर य ऐसे दो वस्त्र अपणर् र्कये िाते है | आि हम अलमाररयाीं भरके कपड़े इकठ्ठे करने का शौक़ रखते है | लसर्ण दो ह वस्त्र का समपणर् ये सूधचत करता है र्क वस्त्र का उपयोग शर र को cover करने के ललए करना चाहहए, िरूरत से ज्यादा सींग्रह नह ीं करना चाहहए | यज्ञोपवीत मतलब तेिस्वी िीवन की द क्षा और आध्याजममक िीवन िीने के सींकल्प का प्रतीक ! यज्ञोपवीत के सींस्कार से गुरु मींत्र लमलता है जिसका िप करने से बुवद्ध और एकाग्रता बढ़ती है िो आध्याजममक िीवन की शुरुआत है | इस तरह, यज्ञोपवीत एक महमवपूर्ण सींस्कार है | विलेपन और पुष्पापकण: चींदन, लसन्दूर, कु मकु म, हलद , अष्टगींधा वगैरह पररमल िव्यों को देवता पे चढ़ाने की ववधध को ववलेपन कहा िाता है | ये सब िव्यों का औषधीय महमव है | चींदन शीतलता-प्रदान है | लसन्दूर का लेप मुक्कामार पे लगाने से राहत लमलती है | हलद रक्त शुध्ध करती है | शर र में होते हुए hormonal changes को सींतुलन में रखने के ललए हलद का उपयोग र्कया िाता है| मवचा-रोग के ललए हलद antiseptic है | कु मकु म, हलद और गूगल से बनता है | कु मकु म में रक्त-पररभ्रमर् को सींतुलन में रखने का गुर् है | चेहरे पे दो eye-brows के बीच में लगाने से pitutary ग्रींधथ पर सकाराममक असर होता है | अष्टगींधा चींदन, के शर, और अन्य िड़ीबूट्टीयों का लमश्रर् है, िो मवचा-रोग शुवद्ध, मन-शुवद्ध, और रक्त-शुवद्ध के ललए इस्तेमाल र्कया िाता है| पुष्पापणर् के ललए औषधीय गुर्ों वाले, आरोनयवधणक फ़ु ल चड़ाए िाते है, जिसके बारे में पूिा दौरान ववशेष िानकार देने से वो ज्ञान भववष्य की पीढ़ तक कायम रहेता है |
  • 6. Page 6 नैिेद्य और ताम्बूल: नैवेद्य के पीछे समपणर् की भावना है | हमारे शर र के पींचवायु – प्रार्, अपान, व्यान, उदान, और समान – हम नैवेद्य के द्वारा समवपणत करते है | ये पींचप्रार् के स्वरुप में हम अपने अहींकार का मयाग करते है | कई घरों में आि भी खाने के बाद पान का बीड़ा मुखवास के ललए खाया िाता है | नागरवेल के पान में पाचनशजक्त बढ़ाने का गुर् है | कई तरह के आरोनयवधणक तेिाना डाल के बनाया हुआ पान का बीड़ा, प्रसाद में रखके उसका सेवन करने से भोिन आसानी से पचता है | दक्षिणा और फल सिपकण: दक्षक्षर्ा देते समय आचमनी से पानी छोड़ना होता है | पानी छोड़ने की प्रर्िया दक्षक्षर्ा पर का अपना हक्क मयाग देने का सूचन है | ज्ञान का दान करने वाले ब्राह्मर् को दक्षक्षर्ा देने से उसका सदुपयोग हो ये भावना है | दक्षक्षर्ा, र्ल समपणर् में देने के र्ल मीठ्ठे और रसवाले हो वो िरुर है | प्रतीकाममक िजष्ट से यिमान, ईश्वर के पास पूिा के र्ल स्वरुप ऐसे ह मीठ्ठे और रसवाले िीवन की आशा व्यक्त करता है | तीर्क प्राशन्न: पूिा की समाजप्त तीथण प्राशन्न से करनी चाहहए | तीथण प्राशन्न मतलब देवता को अपणर् र्कये हुए प्रवाह में से थोड़ा सा प्रसाद के रूप में ग्रहर् करना | ईश्वर को अपणर् र्कया हुआ आचमन, स्नान, अलभषेक वगैरह चीिों में से िो तीथण तैयार होता है उसमे औषधी, वनस्पतत, पींचामृत, धातु सब का लमश्रर् होता है | तदुपराींत पूिा दौरान र्कये हुए मींत्रोच्छचार से के जन्ित हुई सकाराममक शजक्त ध्वतन तरींग (sound waves) और सूक्ष्म तरींग (subtle vibrations) द्वारा तीथण में एकबत्रत होती है | ऐसे तीथण का प्राशन्न करने वाल व्यजक्त का बौजध्धक, मानलसक और आध्याजममक ववकास होता है | आरती और िूप: वैज्ञातनक िजष्ट से आरती और धूप पयाणवरर् की शुजध्ध के ललए है | आरोनय की िजष्ट से गूगल का लेप सींधधवात के ललए बहोत फ़ायदाकारक है | आध्याजममक िजष्ट से पूिा दौरान
  • 7. Page 7 के जन्ित हुई शजक्त यिमान में, यिमान के सम्बजन्धयों में, समाि में, राष्र में, ववश्व में सकाराममकता र्ै लाए ये भावना है | पूिा-ववधध के साथ िुड़ा हुआ उद्धेश्य बहोत ह गूढ़ है | उसकी हरेक प्रर्िया के साथ बुवद्धगम्य, तार्कण क, वैज्ञातनक कारर् िुड़े हुए है | ये ववषय का detailed study बहोत ह ज्ञानदायी है | यहााँ मैंने अपनी understanding के मुताबबक माहहती द है | अगर आपको कोई गलती नज़र आये तो मुझे inform करने की नम्र ववनींती है |