1. रस (काव्य शास्त्र)
रस का शाब्दिक अर्थ है
'आनन्ि'। काव्य को पढ़ने या
सुनने से ब्िस आनन्ि की
अनुभूति होिी है, उसे 'रस' कहा
िािा है।
2. रस के प्रकार
रस 9 प्रकार के होते हैं -
क्रमाांक रस का प्रकार स्त्र्ायी भाव
1. शांगार रस रति
2. हास्त्य रस हास
3. करुण रस शोक
4. रौद्र रस क्रोध
5. वीर रस उत्साह
6. भयानक रस भय
7. वीभत्स रस घणा, िुगुप्सा
8. अद्भुि रस आश्चयथ
9. शाांि रस तनवेि
वात्सल्य रस को िसवााँ एवम् भब्ति को ग्यारहवााँ रस भी
माना गया है। वत्सल िर्ा भब्ति इनके स्त्र्ायी भाव हैं।
3. 1.शांगार रस
शांगार रस का सांबांध स्त्री-पुरुष की रति से है ।
इसके िो भेि है –
1. सांयोग शांगार :-
उिाहरण :
बिरस लालच लाल की, मुरली धरर लुकाय।
सौंह करे, भौंहतन हाँसै, िैन कहै, नटि िाय।
-बबहारी लाल
4. ववयोग शांगार :-
प्रेम में वप्रय और वप्रया के बबछु ड़ने की अनुभूति
से ववयोग शांगार की अभभव्यब्ति होिी है ।
उिाहरण :-
तनभसटिन बरसि नयन हमारे,
सिा रहति पावस ऋिु हम पै िब िे स्त्याम
भसधारे॥
-सूरिास
5. 2.हास्त्य रस
वाणी, रूप आटि के ववकारों को िेखकर चचत्त का
ववकभसि होना ‘हास’ कहा िािा है।
उिाहरण :-
िांबूरा ले मांच पर बैठे प्रेमप्रिाप, साि भमले पांद्रह
भमनि घांिा भर आलाप।
घांिा भर आलाप, राग में मारा गोिा, धीरे-धीरे
खखसक चुके र्े सारे श्रोिा। (काका हार्रसी)
6. 3. करुण रस
तनवेि, ग्लातन, चचन्िा, औत्सुतय, आवेग, मोह,
श्रम, भय, ववषाि, िैन्य, व्याचध, िड़िा, उन्माि,
अपस्त्मार, रास, आलस्त्य, मरण, स्त्िम्भ, वेपर्ु,
वेवर्णयथ, अश्रु, स्त्वरभेि आटि की व्यभभचारी या
सांचारी भाव के रूप में करुण रस को पररगखणि
ककया है।
उिाहरण :-
सोक बबकल सब रोवटहां रानी। रूपु सीलु बलु िेिु
बखानी॥
करटहां ववलाप अनेक प्रकारा। पररटहां भूभम िल
बारटहां बारा॥ (िुलसीिास)
7. 4. वीर रस
‘उत्साह’ अर्वा सम्पूणथ इब्न्द्रयों का प्रहषथ या
उत्फु ल्लिा वीर रस है।
उिाहरण :-
वीर िुम बढ़े चलो, धीर िुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कक भसांह की िहाड़ हो।
िुम कभी रुको नहीां, िुम कभी झुको नहीां॥
(द्वाररका प्रसाि माहेश्वरी)
8. 5. रौद्र रस
रौद्र रस का 'स्त्र्ायी भाव' 'क्रोध' है िर्ा इसका
वणथ रति एवां िेविा रुद्र है।
उिाहरण :-
श्रीकष्ण के सुन वचन अिुथन क्षोभ से िलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करिल युगल मलने लगे॥
सांसार िेखे अब हमारे शरु रण में मि पड़े।
करिे हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥
(मैचर्लीशरण गुप्ि)
9. 6.भयानक रस
भयोत्पािक वस्त्िुओां के िशथन या श्रवण से अर्वा
शरु इत्याटि के ववद्रोहपूणथ आचरण से है, िब
वहााँ भयानक रस होिा है।
उिाहरण :-
उधर गरििी भसांधु लहररयााँ कु टिल काल के िालों
सी।
चली आ रहीां फे न उगलिी फन फै लाये व्यालों -
सी॥ (ियशांकर प्रसाि)
10. 7.वीभत्स रस
वीभत्स रस की ब्स्त्र्ति िु:खात्मक रसों में मानी
िािी है।
उिाहरण :-
भसर पर बैठ्यो काग आाँख िोउ खाि तनकारि।
खीांचि िीभटहां स्त्यार अतिटह आनांि उर धारि॥
गीध िाांतघ को खोटि-खोटि कै मााँस उपारि।
स्त्वान आांगुररन काटि-काटि कै खाि वविारि॥
(भारिेन्िु)
11. 8. अद्भुि रस
अद्भुि का भाव ववस्त्मय नामक स्त्र्ायी मणोिषा
से उिपन्न होिा है।
उिाहरण :-
अखखल भुवन चर- अचर सब, हरर मुख में लखख
मािु।
चककि भई गद्गद् वचन, ववकभसि दृग पुलकािु॥
(सेनापति)
12. 9. शाांि रस
। शाांि रस का नाट्य में प्रयोग करने के सांबांध
में भी वैमत्य है।
उिाहरण :-
मन रे िन कागि का पुिला।
लागै बूाँि बबनभस िाय तछन में, गरब करै तया
इिना॥ (कबीर)
13. 10. वात्सल्य रस
मािा-वपिा का अपने पुराटि पर िो नैसचगथक
स्त्नेह होिा है, उसे ‘वात्सल्य’ कहिे हैं।
उिाहरण :-
ककलकि कान्ह घुिरुवन आवि।
मतनमय कनक नांि के आांगन बबम्ब पकररवे
घावि॥
(सूरिास)
14. 11. भब्ति रस
भब्ति रस की भसद्चध का वास्त्िववक स्रोि काव्यशास्त्र न
होकर भब्तिशास्त्र है, ब्िसमें मुख्यिया ‘गीिा’, ‘भागवि’,
‘शाब्र्णिल्य भब्तिसूर’, ‘नारि भब्तिसूर’, ‘भब्ति रसायन’
िर्ा ‘हररभब्तिरसामिभसन्धु’ प्रभूति ग्रन्र्ों की गणना की
िा सकिी है।
उिाहरण :-
राम िपु, राम िपु, राम िपु बावरे।
घोर भव नीर- तनचध, नाम तनि नाव रे॥
15. वातय
रचना के आधार पर वातय के भेि
रचना के आधार पर वातय के तनम्नभलखखि
िीन भेि होिे हैं :
1. सरल वाक्य
2. संयुक्त वाक्य
3. मिश्र वाक्य
16. वाक्य के तत्व
वातय के िो अतनवायथ ित्व होिे हैं-
उद्िेश्य
ववधेय
ब्िसके बारे में बाि की िाय उसे उद्देश्य कहिे
हैं और िो बाि की िाय उसे ववधेय कहिे हैं।
उिाहरण के भलए मोहन प्रयाग में रहिा है।
इसमें उद्िेश्य है - मोहन , और ववधेय है -
प्रयाग में रहिा है।
17. सरल वाक्य
ब्िन वातयों में के वल एक ही उद्िेश्य और एक
ही ववधेय होिा है, उन्हें सरल वातय या साधारण
वातय कहिे हैं, इन वातयों में एक ही कक्रया
होिी है ।
उिाहरण :-
मुके श पढ़िा है।
राके श ने भोिन ककया।
18. संयुक्त वाक्य
ब्िन वातयों में िो-या िो से अचधक सरल वातय
समुच्चयबोधक अव्ययों से िुड़े हों, उन्हें सांयुति
वातय कहिे है ।
उिाहरण :-
वह सुबह गया और शाम को लौि आया।
मुके श, बोलो पर असत्य नहीां।
19. मिश्र वाक्य
ब्िन वातयों में एक मुख्य या प्रधान वातय हो
और अन्य आचश्रि उपवातय हों, उन्हें भमचश्रि
वातय कहिे हैं। इनमें एक मुख्य उद्िेश्य और
मुख्य ववधेय के अलावा एक से अचधक समावपका
कक्रयाएाँ होिी हैं ।
उिाहरण :-
ज्यों ही उसने िवा पी, वह सो गया।
यटि पररश्रम करोगे िो, उत्तीणथ हो िाओगे।
मैं िानिा हूाँ कक िुम्हारे अक्षर अच्छे नहीां बनिे।
22. सांज्ञा का पि पररचय-
इसमेँ सांज्ञा का प्रकार (व्यब्तिवाचक, िातिवाचक एवां
भाववाचक), भलांग, वचन, कारक (कत्ताथ, कमथ आटि) िर्ा
वातय के कक्रया आटि शदिोँ से सम्बन्ध बिाया िािा है।
उिाहरण :-
• बचपन मेँ बालकोँ मेँ चांचलिा होिी है।
पि–पररचय–
(1) बचपन— भाववाचक सांज्ञा, पुब्ल्लाँग, एकवचन,
अचधकरण कारक, ‘होिी है’ कक्रया का आधार।
(2) बालकोँ— िातिवाचक सांज्ञा, पुब्ल्लाँग, एकवचन,
अचधकरण कारक, ‘होिी है’ कक्रया का आधार।
(3) चांचलिा— भाववाचक सांज्ञा, स्त्रीभलाँग, एकवचन,
कत्ताथकारक, ‘होिी है’ कक्रया का किाथ।
23. सवथनाम का पि–पररचय:-
इसमेँ सवथनाम का भेि, वचन, भलाँग, कारक, पुरुष और
अन्य शदिोँ से सम्बन्ध बिाया िािा है।
उिाहरण :-
• वह कौन र्ी, ब्िससे िुम अभी–अभी बाि कर रहे र्े।
पि–पररचय :-
(1) वह— पुरुषवाचक सवथनाम, अन्यपुरुष, स्त्रीभलाँग,
एकवचन, कत्ताथकारक, ‘बाि कर रहे र्े’ कक्रया का कत्ताथ।
(2) कौन— प्रश्नवाचक सवथनाम, स्त्रीभलाँग, एकवचन,
अचधकरण कारक, ‘वह’ का अचधकरण।
(3) ब्िससे— सम्बन्ध वाचक सवथनाम, स्त्रीभलाँग,
एकवचन, कमथकारक, कक्रया ‘बाि कर रहे र्े’ का कमथ।
(4) िुम— पुरुषवाचक सवथनाम, मध्यमपुरुष, पुब्ल्लाँग,
एकवचन, कत्ताथकारक, ‘बाि कर रहे र्े’ कक्रया का कत्ताथ।
24. ववशेषण का पि–पररचय:–
इसमेँ ववशेषण के भेि, भलाँग, वचन, ववशेषण की अवस्त्र्ा,
ववशेष्य का तनरूपण ये बािेँ बिाई िािी हैँ।
उिाहरण :-
• िोधपुरी साड़ी खरीिनी चाटहए।
पि–पररचय:–
(1) िोधपुरी— व्यब्तिवाचक ववशेषण, स्त्रीभलाँग,
एकवचन, साड़ी का ववशेषण।
25. कक्रया का पि–पररचय:–
कक्रया के पिान्वय मेँ कक्रया के भेि
(सकमथक और अकमथक), काल (विथमान
काल, भूिकाल, भववष्यत्काल), पुरुष, भलाँग,
वाच्य (कत्तथवाच्य, कमथवाच्य, भाववाच्य),
कक्रया का कत्ताथ आटि से सम्बन्ध बिाया
िािा है।
उिाहरण :-
• सुरेन्द्र ने कहा– “मैँ पुस्त्िक पढ़ूाँगा। िुम
भी अपना पाठ पढ़कर सुनाओ।”
27. अव्यय का पि–पररचय:–
इसमेँ अव्यय (कक्रया–ववशेषण) का प्रकार और
कक्रया से सम्बन्ध बिाया िािा है।
उिाहरण :-
• िुम यहााँ कब आये।
पि–पररचय:–
(1) यहााँ— स्त्र्ानवाचक कक्रयाववशेषण अव्यय
‘आये’ कक्रया की ववशेषिा बिािा है।
(2) कब— कालबोधक कक्रयाववशेषण अव्यय
‘आये’ कक्रया की ववशेषिा बिलािा है।