“मिथकीय विमर्श द्रौपदी के संदर्भ में”
द्रौपदी के चरित्र को नये सिरे से प्रकाश में लाने का प्रथम प्रयास
स्त्रीवाद के नेपथ्य में द्रौपदी के चरित्र का संदर्भ
पतिदेवों के साथ स्वस्थ संबंध निर्वाह के संदर्भ में आंतरिक संघर्ष
बेटी, बहन, पत्नी, मों, श्रीकृष्ण की सहेली , राजनीतिज्ञा , महाराणी , विदूषणी और आदर्श गृहिणी के रूप में द्रौपदी का व्यक्तित्व गरिमा का अंकन :
गांधारी
कुंती
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द्रौपदी उपन्यास में आचार्य लक्ष्मी प्रसाद ने द्रौपदी के पौराणिक मिथक के द्वारा नारी अस्मिता का प्रश्न उठाते हुए, समकालीन परिप्रेक्ष्य में नारी की वास्तविक स्थिति उद्घाटित करने का सार्थक प्रयास किया है। इनके उपन्यास में सामाजिक प्रतिबद्धता, संघर्षधर्मी जिजीविषा, कटुता, विसंगति समता तथा आर्थिक संकट से उत्पन्न जटिलताओं, समस्याओं के मार्मिक चित्रण के साथ ही वर्तमान परिवेश की ज़बरदस्त पकड़ महाभारतकालीन मिथक के माध्यम से मिलती है। यथा “पांच बलवान व श्रेष्ठ पुरुषों की पत्नी होकर भी तुमने अनेक कष्ट झेले। भरी सभा में एक क्षुद्र से अपमानित हुई। मेरे पुत्र भी तुम्हें बचा नहीं पाये।
माँ के आर्शीवाद से पांच पतियों में बंटी हुई द्रौपदी की मनःस्थिति वास्तव में किसी नारी की सहनशीलता की पराकाष्ठा ही तो है।
"द्रौपदी ने बलपूर्वक नकारते हुए सिर हिलाया। धर्मराज ने मृदुस्वर में पूछा – “क्या तुम ऐसा सोच रही हो - तुम्हें अर्जुन ने जीता लेकिन मुझे भी विवाह करना पड़ा”। "यह प्रश्न अब क्यों पूछते हैं? मेरा जो भी समझने पर भी अब क्या किया जा सकता? ...............
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“मिथकीय वििर्श द्रौपदी के संद्श िें”
द्रौपदी के चरित्र को नये मसिे से प्रकार् िें लाने का प्रथि प्रयास
द्रौपदी उपन्यास िें आचायश लक्ष्िी प्रसाद ने द्रौपदी के पौिाणिक मिथक के द्िािा नािी
अस्मिता का प्रश्न उठाते हुए, सिकालीन परिप्रेक्ष्य िें नािी की िामतविक स्मथतत उद्घाटित
किने का साथशक प्रयास ककया है। इनके उपन्यास िें सािास्िक प्रततबद्धता, संघर्शधिी
स्ििीविर्ा, किुता, विसंगतत सिता तथा आर्थशक संकि से उत्पन्न िटिलताओं, सिमयाओं
के िामिशक र्चत्रि के साथ ही ितशिान परििेर् की ज़बिदमत पकड़ िहा्ाितकालीन मिथक के
िाध्यि से मिलती है। यथा “पांच बलिान ि श्रेष्ठ पुरुर्ों की पत्नी होकि ्ी तुिने अनेक कष्ि
झेले। ्िी स्ा िें एक क्षुद्र से अपिातनत हुई। िेिे पुत्र ्ी तुम्हें बचा नहीं पाये।
िााँ के आर्ीिाद से पांच पततयों िें बंिी हुई द्रौपदी की िनःस्मथतत िामति िें ककसी नािी की
सहनर्ीलता की पिाकाष्ठा ही तो है।
"द्रौपदी ने बलपूिशक नकािते हुए मसि टहलाया। धिशिाि ने िृदुमिि िें पूछा – “क्या तुि ऐसा
सोच िही हो - तुम्हें अिुशन ने िीता लेककन िुझे ्ी वििाह किना पड़ा”। "यह प्रश्न अब क्यों
पूछते हैं? िेिा िो ्ी सिझने पि ्ी अब क्या ककया िा सकता?
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्ाितीय इततहास िें अनेक तेिस्मिनी नारियााँ हुई है, स्िनिें द्रौपदी तो िगिगता हुआ
तेिपुंि है, िो घनेति िें ्ी मिप्रकार् से प्रकामर्त है। विम्न्न संकिों, न्यायों अन्यायों
के िध्य द्रुपद सुता की एक औि त्रासदी है, अनोखी त्रासदी पााँच पततयों की पत्नी। पांच
पततयों की पत्नी स्िसने हृदय से एक िात्र अिुशन का ही ििि ककया, स्िसका िन िीिन
अिुशन िें ही ित िहा ककन्तु पााँस पततयों का पंचग्रास कं ठ िें ऐसा अिका कक द्रौपदी उसे न
उगल सकी न तनगल सकी। यही उसकी िूल व्यथा थी, स्िससे िुड़े थे अपर्ब्द, लांछन
औि विर्चत्र ियाशदाओं का पालन। िानो अिुशन ििि को िाहु न ग्रमत मलया हो, िानो
द्रौपदी दो नारियों िें वि्ास्ित हो गई है, स्िसके एक मिरूप िें पतत रूप िें अिुशन औि
दूसिे रूप िें र्ेर् चाि पतत। िन हृदय से एक अिुशन िें अनुिक्त होते हुए ्ी अन्य चाि
पततयों की सेिा-अनुपालन इस त्रासदी से उसे िाधि ्ी नहीं बचा पाए।
"द्रौपदी चककत हो गई। धिशिाि को उसे दाि पि लगाने का क्या अर्धकाि था? यटद िे
सिझते कक उन्हें अर्धकाि है, उनके पिास्ित होने के बाद उसे दांि पि लगाते? अपने आप
से प्रश्न ककया।
यही नहीं युर्धष्ठि द्िािा दांि पि द्रौपदी को लगाना तथा ्िी स्ा िें उसे अपिातनत एिं
चीिहिि के सिय कौििों की स्मत्रयााँ हंसना तथा अपने अपिान का प्रततर्ोध लेना, न्याय
के प्रतत विद्रोह किना आटद आि की द्रौपदी के प्रतीक के रूप िें सािने िखा है।
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"िेिे बालों पि हाथ ित िखना"। द्रौपदी गिि पडी। उसके मिि की तीव्रता से ्ीि तनश्चेष्ि हो
गया। क्या हुई तेिी प्रततज्ञा? िेिा अपिान किने िाले उस नीच का िध किने के बाद ही िेिे
पास आओ। उसके िक्त से िेिे बालों से सने के बाद ही उनकी िुस्क्त होगी। िुझे यह साम्राज्य
नहीं चाटहए औि संपदा नहीं चाटहए। उन दुयोधन औि दुश्र्ासन का िध चाटहए”।
अथाशत् द्रौपदी िात्र मिथकीय पात्र ही नहीं अवपतु नािी की र्ाश्ित संिेदना को प्रकि किनेिाली
आधुतनक पात्र ्ी है। "द्रौपदी" टहन्दी उपन्यास न के िल िहा्ाित कथा की "द्रौपदी" के
गरििािय चरित्र को नये आयािों से उद्घािन ककया है, बस्कक िनोसािास्िक यथाथश के
धिातल पि ्ाितीय नािी की र्स्क्त संककप का यर्ोगान कि उसके देदीप्यिान व्यस्क्तत्ि को
नये मसिे से प्रकार् िें लाने का प्रथि एिं सफल प्रयास को अविष्कृ त ककया है।
द्रौपदी के िाध्यि से सिमत नािी की दुश्र्लताओं एिं अपने तनसहाय अिमथा को उद्घाटित
ककया है। यह उस युग िें द्रौपदी की िो तनमसहाय अिमथा तथा अके लापन का िहसूस होना
िह आि की नािी की ्ी है िो अपने र्त्रुओं के बीच अपने आप को दुबशल िहसूस किती है।
उपन्यासकाि ने द्रौपदी को िात्र ही नहीं बस्कक सिमत नािी के िनोविश्लेर्िात्िक पद्धतत
का र्चत्रि ककया है।
"हे अग्रि! िुआिी के ्ी पस्त्नयों होती हैं। लेककन कोई ्ी िुआिी अपनी पत्नी को दााँि पि
लगाये अ्ी तक िैंने नहीं देखा है। पत्नी चाहे कै सी ्ी हो कोई ्ी उसे िुए िें दााँि पि न
लगाएंगे। तुिने हिािे िाज्य को दााँि पि लगाया है। यह तो ठीक ही है। लेककन इन पापात्िाओं
की दासी के रूप िें हिािी पत्नी को दााँि पि लगा देना िघन्य है। द्रौपदी हिािी सहधमिशिी है।
उसका ऐसा अपिातनत किना अच्छी बात नहीं है।
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द्रौपदी आटद मत्री िगश पुरुर् सत्तात्िक सिाि द्िािा छल बल से सताकाि िात्र ्ोग्या बन
डालने का प्रतीक है। िािनीतत ने मत्री को िनुष्य क्ी नहीं सिझा उसका सदैि चालों की
्ांतत प्रयोग ककया। िािनीतत की सताई द्रोपदी की यंत्रिा िात्र िहा्ाित काल की नहीं आि
की नािी की त्रासदी है। िहा्ाित काल िें िात्र युर्धस्ष्ठि ने ही उसे दांि पि नहीं लगाया बस्कक
आि ्ी ऐसे अनेक उदाहिि अखबािों िें पढ़ने को मिल िाते हैं िो िात्र गिीबी से तंग आकि
या िहत्िाकांक्षाओं को पूिश किने के मलए पतत अपनी पत्नी को कु छ रुपयों के लालच िें बेच
देता है।
मत्रीिाद के नेपथ्य िें द्रौपदी के चरित्र का संद्श
सदा पुरुर् की इच्छाओं के अनुसाि चलने से पततव्रता, साध्िी आटद उपार्धयों से स्मत्रयााँ
अलंकृ त हैं, अगि पुरुर् के णखलाफ बोलने से क्या क्या उपार्धयााँ देते हैं सिश विटदत है। लेखक ने
आि बहुचर्चशत मत्रीिाद िें नेपथ्य िें द्रौपदी के चरित्र को प्रमतुत ककया यथा - "स्मत्रयााँ ही
इततहास का तनदेर् किती हैं इस विर्य को विगत् की घिनाओं के तनरूवपत किने के बाििूद
्ी िहा्ाित के इततहास की प्रधान लेणखका मियं िही थी। िह यह नहीं िानती कक
कामर्िािकन्याओं को.. अबा, आंबबका औि अबामलका को िब ्ीष्ि मियंिि से उठा ले गया
तो िहा्ाित का आिं् हुआ। कं स की पवत्तयों के मलऐ ििासंध ने कृ ष्ि पि चढ़ाई की। रुक्ििी
के मलए श्रीकृ ष्ि से मर्र्ुपाल ने र्त्रुता िोल ली। यह र्त्रुता ििासंध औि मर्र्ुपाल के संहाि से
तो मिि नहीं पायी। "स्मत्रयों की मितंत्रता के बािे िें ्ीष्ि से न्याय की आर्ा कै से किें? द्रौपदी
ने िन िें सोचा। अम्बा, अस्म्बका औि अम्बामलका को उसकी ििी के अनुसाि ्ीष्ि मियंिि
से उठाकि नहीं ले गया था न। द्रौपदी ने ठंडी सांस ली। कफि से उसिें आर्ा न ििी।
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धृतक्रीड़ा की घिना से द्रौपदी के िन िें विद्रोह का विमफोि होने लगता है । पांच-पांच
पततयों से संमकृ तत पत्नी को अंततः अपनी िक्षा अपने आप किनी पडती है। उसका दृढ़ औि
दुख को कोई सिझ नहीं पाए मियं धृतिाष्र ि गांधािी िो बेिी िाले होकि ्ी दूसिे का बेिी
का ददश नहीं सिझें औि न ही उसका विद्रोह कि सके यथा - हे िािन्। द्रौपदी के अपने बालों
को अपने िुख पि बबखिने का एक कािि है। स्िनके अन्याय के कािि उसकी यह दुदशर्ा
हुई। उनकी पस्त्नयां ्ी अपने पततयों, पुत्रों औि बन्धुिों के िध होने पि उनके र्िों पि
र्गिकि ऐसे ही बाल बबखेिकि िोयेंगी। ऐसा द्रौपदी ने अपना संदेर् ्ेिा।
"िेिे बालों पि हाथ ित िखना। द्रौपदी गिि पडी। उसके मिि की तीव्रता से ्ीि तनश्चेष्ि
हो गया। “क्या हुई तेिी प्रततज्ञा? िेिा अपिान किने िाले उस नीच का िध किने के बाद ही
उनकी िुस्क्त होगी। िुझे यह साम्राज्य नहीं चाटहए औि संपदा नहीं चाटहए। उन दुयोधन
औि दुर्ासन का िध चाटहए।
द्रौपदी का विद्रोह ि प्रततर्ोध को क्रांतत से िोडते है, िो िकदी नहीं। बुझेगी। यह द्रौपदी ही
नहीं संपूिश मत्री का विद्रोह इससे झलकता है। अंत िें सहनर्स्क्त सिाप्त होने पि एक मत्री
के िन िें विद्रोह या क्रांतत की चेतना िागृत हो िाती है। स्िससे उसके िुख िें आक्रोर्
फू िता है। औि प्रततर्ोध लेने का दृढ़ संककप किती है। यह आि की मत्री का आिाि िो
अपने ऊपि हुए अपिान का बदला लेने के मलए संककप किती देखी िा सकती है। यह आग
द्रौपदी के िाध्यि से पूिे विश्ि िें प्रेििा मत्रोत है।
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अपनी िक्षा के मलए तनडि िहना औि अपने ऊपि प्रततर्ोध होने पि आिाज़ उठाना, द्रौपदी के
द्िािा यह सफल हुआ है, औि हिें सोचने पि िज़दूत कि देती है। एक मत्री के िेदना, कै से उस
स्मथतत एक मत्री की ्ािना को कै से ठेस पहुंचती है। खुद द्रौपदी कहती है - " िैसे सीता को
िािि की तिह कोई उसे उठा ले िाए तो? िािि की बात क्यों? िौका मिले तो उसे उठा ले िाने
ककतने ही िािा तैयाि हैं। पांच पततयों से गृहमथी किने के औि पांच पुत्रों को िन्ि देने के
बाििूद ्ी उसका लािण्य लेर् िात्र ्ी िुिझा नहीं गया। इससे पहले िह अपने सौन्दयश को िि
सा िानती थी। अब ही र्ाप सा लग िहा है। यटद कोई उसे उठा ले िाए तो िािि सिान उसका
उप्ोग ककये बबना देख ्ाल किनेिाले उन्नत व्यस्क्तत्ििाले अब कोई नहीं है। सिय बदल
गया। स्ा िें उसका अपिान होने पि ्ी उसके पततयों ने कु छ नहीं ककया।
पततदेिों के साथ मिमथ संबंध तनिाशह के संद्श िें आंतरिक संघर्श
"द्रौपदी" के िाध्यि से लेखक ने दांपत्य संबंधों की गहिी ि बािीक छानबीन ककया है। यहााँ
द्रोपदी के िाध्यि से आंतरिक संघर्श िो के िल र्िीि का ही नहीं बस्कक िन का ्ी होता है।
अिुशन ने उसे िीता पि औि िन-हृदय से एक अिुशन िें अनुित होने पि ्ी अन्य चाि पततयों से
तनिाशह किना पड़ा।
"द्रौपदी का पािी एक ही है। लेककन कु छ ही क्षिों के अंतिाल िें पांचों के हाथों ने उसे ग्रहि
ककया है। द्रोपदी ने पांच बाि प्रिाि ककया - िेिा तन, िन औि िचन आप ही का है। िैं आपकी
हूाँ, सिशदा आपकी ही हूाँ। स्िन्दगी िें क्ी ्ी आपके साथ छल नहीं करूं गी।
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द्रौपदी को पहली िात ही धिशिाि के बािे िें उसे अनेक विर्य अिगत हुए कक उसिें
आत्िविश्िास के साथ-साथ हीन ्ािना ्ी अर्धक ही है। ऊपि से सहन िूततश सि टदखते
हैं। ककन्तु अंदि से असटहष्िुता ज्यादा। िे दूसिों के बड़प्पन को नहीं देख सकते। स्मत्रयों के
िन सिझने की चेष्िा नहीं किते। उन्हें के िल र्ािीरिक सुख चाटहए। स्िस ििह से उसने
धिशिाि को र्ािीरिक रूप से सुखी िखने उनके िन को खुर् किने औि उनके इच्छानुसाि
आचिि किना ही ठीक सिझी स्िससे पांडि परििाि िें र्ांतत कायि िहे। "द्रौपदी िुझ पि
तिस खाओ। सबसे पहले तेिा उपयोग किने का सौ्ाग्य िुझे मिला। िुझे सुख प्रदान किो।
“धिशिाि उसके तन पि चुम्बनों की िर्श बिसाने लगा। धिशिाि की र्ंका हुई कक अपनी
िासना के अनुसाि द्रौपदी मपंटदत नहीं हो िही| धिशिाि की हि चेष्िा से द्रौपदी िें काि
िासना ्डकने पि ्ी उसे प्रेि से गले लगा नहीं पा िही है। उसके चूिने पि बदले िें द्रौपदी
का नहीं चूिना तथा अपने आप िह धिशिाि को श्रृंगारिक चेष्िाओं से िोटहत किना उसे
अपिान सा लगा।
युर्धष्ठि ने िीिन के अंतति क्षिों िें उस पि धनिंय के प्रततःविर्ेर् पक्षपात किने का
आक्षेप रूप से लगते हुए ताड़ना ्ी दे डाली । द्रौपदी ने िन िें सोचा कक धिशिाि ने कब िेिा
ख्याल ककया था? िेिी इच्छाओं का ्ी उसने ध्यान नहीं टदया था। पहले उसकी गलत
धािि थी कक अन्य ्ाईयों की अपेक्षा िही उसे ज्यादा सुख दे िहा था। लेककन बाद िें िे
्ीि औि अिुशन के प्रतत िेिे प्रेि का िान गये। धिशिाि के प्रतत ककतनी नापसंदगी होते हुए
्ी उसे बाहि प्रकि किने के मलए िैंने बहुत प्रयत्न ककये। धिशिाि ने र्ाप टदया कक स्मत्रयों
के िुंह िें कोई िहमय न तछपे। लेककन िैंने असली िहमय को ही तछपाया कक उसे पसन्द नहीं
किती। र्यनकक्ष िें उसने िो िलगना की . . . उसे िैंने ककसी को बताया क्या?
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िीिन के अंतति यात्रा िें के िल ्ीि थे स्िन्होंने द्रौपदी को सहािा टदया। के िल ्ीि ही
उसे सिझ सका यहााँ तक अिुशन ने ्ी उसे छोड़ टदया, स्िसे बेहद प्रेि किती थी।
“ििने दे। अिुशन को िह ज्यादा प्रेि किती थी। सब पततयों को बिाबि नहीं देखा, इसमलए
पहले िि िही है। उसे सिझ िें नहीं आया कक िे घिशिाि की बातें हैं या उसिें प्रततध्ितनत
धिशिाि का अंतिंग है। िििासन्न स्मथतत िें िब उसे लगा कक कोई उसका मपर्श कि िहे
हैं, तब उसने बलपूिशक अपनी ऑखो खोली। िह ्ीिसेन का मपर्श है। उसने द्रौपदी को
अपने अंक िें ले मलया औि उसके िुाँह िें पानी डाला। िीिन औि िृत्यु के बीच के अंतति
क्षि िें द्रौपदी ने प्रेि से उसे गले से लगा मलया।
्ीि श्रृगाि िें प्रिीि होते हुए ्ी द्रौपदी के र्िीि को कष्ि टदए बबना प्रेि से मपर्श किता
था तथा एक मत्री के प्रतत आदि औि प्रेि िखता है। मत्री के िन औि र्िीि का सम्िान
किना िह िानता था। यथा - " द्रौपदी। िैं ्ोिन वप्रय हूाँ औि थोड़ा बहुत क्रोध ्ी किता
हूाँ। ये ही िेिी कििोरियााँ, तुिसे पहले िैंने टहडडंबी से वििाह ककया। िैंने उसे चाहा नहीं
उसने िुझे चाहा। िब से िैने तुझे देखा, तब से तेिे प्रतत प्रेि बढा। िैंने सपने िें ्ी नहीं
सोचा कक तुि िुझसे र्ादी किोगी। यटद तुि अिुशन से वििाह किती थी तब ्ी िैं दूि से
तेिे सौन्दयश को देखकि िुग्ध हो िाता। सौ्ाग्यिर् सब के साथ तुम्हें र्ादी किनी पड़ी।
अब ्ी कोई दबाि नहीं। तुि चाहती तो त्ी . . .।
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अिुशन मत्री सौन्दयश प्रेिी था पि उससे बढ़कि िह िाता ्ाईयों औि बड़ों का वििोध नहीं
कि सकता। द्रोपदी को अिगत हो गया कक अिुशन उसे बहुत प्रेि किता है। उसका प्रिाि
तब मिला िब द्रौपदी युर्धस्ष्ठि के संग िह अिुशन के बाि औि ्ीि की गदा देखने आयी
हुई थी। तब युर्धस्ष्ठि उसे र्ूलायुध टदखाकि उसका प्रयोग के बािे िें बताते हुए उसे एक
कोने िें ले िाकि कािक्रीडा कि िहे त्ी अिुशन िह यह देख िहा था यह देख द्रोपदी
युर्धस्ष्ठि को िोककि दूि हि गयी। द्रौपदी ने िी िान मलए कक अिुशन के आाँखों िें ्ी
काििासना पूिश रूप से थी।
बेिी, बहन, पत्नी, िों, श्रीकृ ष्ि की सहेली , िािनीततज्ञा , िहािािी , विदूर्िी औि आदर्श
गृटहिी के रूप िें द्रौपदी का व्यस्क्तत्ि गरििा का अंकन :
यज्ञिेदी से उसका अितीिश होना ही एक अद््ुत है। िब उसके वपता ने पुत्रकािेष्िी िनायी
तब पुत्र के साथ उसका ्ी िन्ि होता एक अिीब घिना थी। कफि ्ी उसके वपता ने पुत्रों
के न होने से पुत्रकािेष्िी नहीं की। द्रुपद के सौत्रािणि नािक पत्नी से सुमित्रा, वप्रयदर्शक,
िीिके तु, र्त्रुिय, सु्, ध्ििके तु नािक पुत्रों का िन्ि हुआ। इनिें से कोई ्ी द्रोि के
मर्ष्यों का सािना नहीं कि पाये। द्रौि िध किनेिाले िीि को प्रप्त किने हेतु द्रुपद ने
प्रिुख रूप से यज्ञ ककया। द्रोपदी के मलए उसने विर्ेर् रूप से यज्ञ नहीं ककया। िहािुतन
याि औि उपयािों ने धृष्िद्युिन के साथ उसका ्ी िन्ि टदलिाया। उसका सहोग्श है।
द्रुपद की िह के िल गोद की बेिी है। उसे के िल अिुशन ने ही िीता। विियािु ने ही घोर्िा
की कक िह अिुशन की पत्नी होनेिाली है। लेककन आि पााँचों की पत्नी बन िही है। इसिें से
ककसको असली पत्नी िाना है? उसका तो आयोर्चत रूप से मिला हुआ िन्ि है। उसी
प्रकाि आयोर्चत रूप से उसे पााँच पतत मिल िहे हैं।
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लेककन िो उससे वििाह किना चाहते हैं, िे साधािि व्यस्क्त नहीं है, िे पांडुिािा के पुत्र हैं।
िो िहा बलिान ि प्रतापी हैं। उनिें से ककसी एक से र्ादी किने पि ्ी उसका िन्ि धन्य
हुआ । पांडििाध्यि अिुशन के बािे िें अपने िाता वपता औि धन्य हुआ। पांडििध्य अिुशन
के बािे िें अपने िाता वपता औि सणखयों से बहुत सािे विर्य सुन चुकी थी, अिुशन के सुन्दि
रूप का उसने कई बाि सपने िें देखा था। उसे एक ब्राह्िि ने िीता तब ्ी उसे लगा कक यह
सुन्दि िूततश ही अिुशन हो तो ककतना अच्छा होता।
उसके सपने पूिश हो कि यह अिुशन ही हुआ लेककन हुआ क्या था? अिुशन अब बाकी चािों से
उसे बााँिना चाहता है। श्रीकृ ष्ि ने ्ी प्रेितत ककया औि कहा कक पांडिों के बीच संघर्श का
तनिािि किने हेतु उसकी उनसे र्ादी किना आिश्यक है।
इस तिह द्रौपदी पांचालिाि द्रुपद की पुत्री, धृष्िद्युनन की बटहन तथा पंचपाडिों की पत्नी
हुई। औि यहीं से उसका उत्ति दातयत्ि आगे बढ़ता है एक िााँ के रूप, पत्नी, श्रीकृ ष्ि की
सहेली, िािनीततज्ञ, िहािाज्ञी, विदूवर्िी तथा आदर्श गृहिी के रूप िें साक्षात्काि होती है।
द्रौपदी का हृदय िनोिेदना से ग्रमत है। अपने प्रततर्ोध लेने की ्ािना ने उसे अपने पुत्रों को
खोना पड़ा अपने वपता, ्ाई िो उसे बहुत प्याि किते थे अपनी बेिी का अपिान तथा एक
बहन का अपिान सहन न किने पि युद्ध िें कौििों से प्रततर्ोध लेने के संककप से िीिगतत
को प्राप्त हो गए। औि अपने िााँ के अपिान का बदला लेने की ्ािना से िे ्ी क्षबत्रय की
्ााँतत िािगतत प्राप्त कि गए।
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यहााँ द्रौपदी की िातृहृदय ककस तिह वपघल िहा अपने पुत्रों के खो िाने का। िो अपने
बच्यों खेल कू द तक का आनंद तक नहीं उठा पायी थी। यह द्रौपदी अपने नन्हें पुत्रों की
बमल बढ़ा देनेिाली िीि क्षत्रािी िाता है तो दूसिी तिफ एक साधािि िाता िो अपने बच्चों
का िि िाने का गि उसे खाई िा िही है। यहीं नहीं िो वपता उसे अपने बेिी के सिान
प्याि किते थे िहााँ ्ी नहीं िहें। िो िाई उसके ऊपि हुए अपिान का प्रततर्ोध लेते हुए उसे
सांत्िना देने िाला िह ्ी नहीं िहा –
कृ ष्ि िब कान्यकिन िें थे, तब धृष्िद्युम्न ्ी आया था। बहन के प्रतत हुए अपिान को
िानकि िह आपादिमतक िल गया। हे बहन! दुयोधन , दुिर्ासन को ्ीि, तेिी हंसी
उड़ाने िाले किश को अिुशन औि उपेक्षा किनेिाले द्रौि को िैं अिश्य िाि डालेंगे। इसके
मलए व्यिमथा ्ी र्ुरु हो िही है। िैं बल िुिाने िें व्यमत हूाँ। धृष्िद्युम्न ने सांत्िना दी।
श्रीकृ ष्ि की सहेली दौपदी अपने सखा को देते ही अपने टदल के दुख बयान किती है।
स्िससे उसका िन र्ांत हो। अपने टदल का दुख स्िस तिह दूसिों से बांिने पि कि होता है
उसी तिह दौपदी ने अपने टदल की ्डात, क्रोध, दुख स्ी कु छ कृ ष्ि को देखते ही बयान
किती है। उस टदन ्िी स्ा िें िुझे अपिातनत होते देख के िल तुन (कृ ष्ि) ही हो
स्िन्होंने िेिी िान की िक्षा की। पांडि िो िेिे पतत होते हुए ्ी अपनी पत्नी की िान की
िक्षा तक न कि सकें । कोई ्ी उसे बचाने नहीं आया।
"हे कृ ष्ि । तेिे आगिन से िेिे प्रािों िें प्राि आ गए। िेिी िनोिेदना बांिने के मलए कोई
नहीं है। िेिे पतत स्िन्हें िेिी िक्षा किनी चाटहए, उन्हें देखने पि पिाये िैसे लग िहे हैं। उन
सबके सािने ही िह दुश्र्ासन िेिे बाल पकड कौिि स्ा िें घसीि लाया था।
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बुिा हाल देखकि दुयोधन आटद ने िेिा उपहास ककया था। िुझे दासी कहने लगे थे। उनके
इतना अपिान किने पि ्ी िेिे पतत मसि झुकाकि बैठे थे, िब िे बाहुबल औि अिुशन के
धनुविशधा कौर्ल ने िुझे नहीं बचाया था। कहते हैं कक पत्नी की िक्षा किना पतत का कतशव्य
है औि सनातन धिश ्ी है। पतत मियं ही पत्नी से पुत्र के रूप िें पैदा होने से पली को िाया
कहते हैं। लेककन विपदा िें िेिे पततयों ने िेिी उपेक्षा की थी। िेिे पुत्र छोिे होने के कािि दे
कु छ ्ी किने की स्मथतत िें नहीं थे। िैं िो िीि पांडिों की पत्नी, सच्चरित्र पांडुिािा की
पुत्रिधु, र्स्क्त संपन्न दुपद की पुत्री औि धृष्िद्युम्न की बहन हूाँ कफि ्ी िेिा इतना
अपिान हुआ औि कोई कु छ नहीं कि पाये। हे के र्ि। इतने सगे संबंधी होते हुए ्ी िैं
अनार्धनी रूप हो गयी।
गांधािी
गांधािी इस उपन्यास िें प्रततर्ोधात्िक, घृिा औि क्रोध का ्ाि इसे सदैि पत्नीव्रत औि
िातृत्ि के सुख से िंर्चत िखता है। गांधािी के िीिन की प्रततटहंसा से संमकारिक युद्ध ही
उसके सौ पुत्रों के ििि का कािि बनाती है। युद्ध िें अपने सौ पुत्रों की िृत्यु से विचमलत
गांधािी धृतिाष्र, कुं ती, विदुि के साथ मिलकि िीिन रूपी युद्ध की सिास्प्त दािास्ग्न िें
्मि होकि कि लेती है। यथा “गांधािी को देखते ही द्रौपदी उसके पांिों पि र्गिकि अत्यंत
दीनता से मससककि िोने लगी। गांधािी ने उसे देखकि "द्रौपदी तेिा दुख िेिे दुख से ज्यादा
है क्या? तुिने अपने पांच पुत्रों को खो टदया। िैंने अपने सैकडों पुत्रों को खो टदया। दु्ाशग्य
के कािि ही इतने अनथश हुए हैं
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अन्याय औि अत्याचि के प्रतत की गयी प्रततटहंसा िानि के िीिन स्रोत को सुखा देती है।
गांधािी सौ पुत्रों की िननी तो बन िाती है लेककन िातृत्ि िोह के एक क्षि से िह ्ी नहीं
बच पायी। लेककन उसिें अपिाध का बोध या प्रायस्श्चत का ्ाि ततनक िात्र ्ी नहीं टदख
पाया। िह अपनी गलती को न िानते हुए सिय पि दोर् लगाती है। गांधािी यह नहीं
सिझ पाई कक एक पुत्र के िृत्यु र्ोक हो या सौ पुत्रों के िृत्यु का र्ोक हो सिान ही होता है
हि एक िाता के मलए। यह िेदना बहुत कष्ि िनक होती है।
युद्ध िें अपने स्ी पुत्रों के र्िों को देखकि गांधािी श्रीकृ ष्ि से पूछती है कक तेिी आाँखों के
सािने ही गदा-युद्ध िें िेिे बेिे को ्ीि ने नाम् के नीचे प्रहाि कि अन्याय पूिशक िाि
डाला, िेिे दूसिे पुत्र दुश्र्ासन का हृदय चीि डाला था। यह सब देख तुिने कु छ ककया क्यों
नहीं। कृ ष्ि कहते हैं कक क्या तुि अपने पुत्र के अकृ त्यों के बािे िें नहीं िानती थी। तुम्हािे
िेिे औि ्ीष्ि, द्रौि औि अपने वपता के कहने पि ्ी क्या उसने अपने अकृ त्यों को छोड़ा
था?
कुं ती
िहा्ाित की कुं ती औि आि की कुं ती िें बुतनयादी संिेदनागत िो अंति उ्ािा है िह है
सांमकृ ततक संघर्श िें अंति िो कक आधुतनक िूकयों ि सिग्र आधुतनक दृस्ष्ि के कािि
उपस्मथत हुआ है। िहा्ाित िें कुं ती का कौिायश आि कु तुहल से िोड़कि िखा गया है।
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एक साधािि मत्री होने पि ्ी कुं ती के िीिन िें अनेक अनु्ि हुए थे। बचपन िें ही िााँ
बनने के अनु्ि से उसे िीिनसत्य पहले ही अिगत हुए। छोिी अयु िें उसका एक अिीब
अनु्ि हुआ था अपने बचपन को मियं ही कु चल डाली। कोई ्ी उसे यह पूछे कक बचपन
िें क्या क्या खेले? तो क्या बचपन िें िैं न कु छ खेल खेले क्या? ऐसा हैिान होने की
स्मथतत उसकी हुई। उसके साथ ही स्िन्दगी ने खेल खेले। एक बाकय चेष्िा से उसने अपनी
स्िंदगी िें से बचपन का नाि तक मििा दे टदया। इसका ििशन उपन्यास िें लेखक ने इस
प्रकाि र्चत्रि ककया है कक "बेिा िब िैं कुं िािी थी, दुिाशस-ऋवर् के प्र्ाि से तुि िेिे वपता
कुं ती ्ोि के घि िें सूयश की कृ पा से उत्पन्न हुए हो। तुि िाधा के पुत्र नहीं हो। िेिे पुत्र हो।
सहि किच कुं डलों के साथ िेिे ग्श से प्रकि हुए हो। िन्ि के सिय तुि स्ितने तेिमिी
िहे, उतनी ही प्रखिता से अब ्ी प्रकामर्त हो िहे हो। ऐसे तेिोिय व्यस्क्तत्ि िाले तुि
अपने ्ाइयों को ्ुलाकि धृतिाष्र के पुत्रों की सेिा कि िहे हो। इस कािि िेिा हृदय िल
िहा है। कुं ती की िेदना औि ्ी इस प्रकाि व्यक्त ककया कक “बेिा ििते दि तक िह कौििों
का िक्षक िहा था स्िसने तुि लोगों िें हलचल पैदा कि दी। पि पिििीि किश िामति के
िाधानंदन नहीं था। िह िेिा ज्येष्ठ पुत्र है। तुि पांचों का अग्रि है। आटदत्य के अनुग्रह से
सहि किचकुं डल के साथ िेिी कोख से पैदा हुए िहादाता है िह किश। उसे ततलोदक प्रदान
नही ककए गये - इस कािि होकि यह िहमय तुम्हें बताना पडा।” कुं ती फू ि-फू ि कि िोने
लगी।
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एक साधािि मत्री होने पि ्ी कुं ती के िीिन िें अनेक अनु्ि हुए थे। बचपन िें ही िााँ
बनने के अनु्ि से उसे िीिनसत्य पहले ही अिगत हुए। छोिी अयु िें उसका एक अिीब
अनु्ि हुआ था अपने बचपन को मियं ही कु चल डाली। कोई ्ी उसे यह पूछे कक बचपन
िें क्या क्या खेले? तो क्या बचपन िें िैं न कु छ खेल खेले क्या? ऐसा हैिान होने की
स्मथतत उसकी हुई। उसके साथ ही स्िन्दगी ने खेल खेले। एक बाकय चेष्िा से उसने अपनी
स्िंदगी िें से बचपन का नाि तक मििा दे टदया। इसका ििशन उपन्यास िें लेखक ने इस
प्रकाि र्चत्रि ककया है कक "बेिा िब िैं कुं िािी थी, दुिाशस-ऋवर् के प्र्ाि से तुि िेिे वपता
कुं ती ्ोि के घि िें सूयश की कृ पा से उत्पन्न हुए हो। तुि िाधा के पुत्र नहीं हो। िेिे पुत्र हो।
सहि किच कुं डलों के साथ िेिे ग्श से प्रकि हुए हो। िन्ि के सिय तुि स्ितने तेिमिी
िहे, उतनी ही प्रखिता से अब ्ी प्रकामर्त हो िहे हो। ऐसे तेिोिय व्यस्क्तत्ि िाले तुि
अपने ्ाइयों को ्ुलाकि धृतिाष्र के पुत्रों की सेिा कि िहे हो। इस कािि िेिा हृदय िल
िहा है। कुं ती की िेदना औि ्ी इस प्रकाि व्यक्त ककया कक “बेिा ििते दि तक िह कौििों
का िक्षक िहा था स्िसने तुि लोगों िें हलचल पैदा कि दी। पि पिििीि किश िामति के
िाधानंदन नहीं था। िह िेिा ज्येष्ठ पुत्र है। तुि पांचों का अग्रि है। आटदत्य के अनुग्रह से
सहि किचकुं डल के साथ िेिी कोख से पैदा हुए िहादाता है िह किश। उसे ततलोदक प्रदान
नही ककए गये - इस कािि होकि यह िहमय तुम्हें बताना पडा।” कुं ती फू ि-फू ि कि िोने
लगी।