कबीरदास ह िंदी साह त्य के सिवश्रेष्ट कवि ै।उनकी
कविता से विश्ि कवि रिीन्द्रनाथ टैगोर इतना प्रभावित ुए थे
कक उन्द् ोंने उनके अनेक पदों का अनुिाद कर विदेशियों को भी
उनकी कविता का र स्य बताया।
िे कई रूपों में मारे सामने आते ैं–उपदेिक,समाज
सुधारक,ज्ञानी,साधू, ठयोगी,र स्यिादी कवि,तथा भक्त।
माला तो कर में किरै , जीभ किरै मु माह ।
मनुिा तो च ुुँ हदशस किरै , य तो सुशमरन ना ी ।।
भक्क्त की उपासना पर कबीरदास बल देते ुए क ते ैं कक, माला को
ाथ में लेकर जीभ को इधर-उधर किरोते ुए मु से कु छ और बोलना उपासना न ीिं।
सच्ची उपासना ि ी ैं जो माला िे रते समय शसिव अपना ध्यान भगिान की
उपासना पर ी र ें, न कक चारों ओर।
प्रेम प्रीत से जो शमलै , तासो शमशलए धाय ।
अिंतर रखे जो शमलै , तासो शमलै बलाय ।।
कबीरदास प्यार, ममता और अनुराग का िल स्पष्ट
करते ुए कबीर क ते ैं कक जो लोग प्रेम और अनुराग से जीिन बबताते ै उन्द् ें
सुख भाग दौड़कर आता ै। यहद कोई दूसरा भाि रखकर जीिन बबताते ों तो उन्द् ें
अपने जीिन में दुुःख ी प्राप्त ोता ै।
सा ेब मेरा एक ै , दूजा क ा न जाय ।
दूजा सा ब जो क ूुँ , सा ब खरा ररसाय ।।
कबीरदास एके श्िरिाद में विश्िास करते थे। िे क ते ैं कक
मेरा ईश्िर एक ैं ,उसके अततररक्त दूसरा कोई न ीिं ै। यहद मैं ककसी दूसरे को
अपना ईश्िर क ूुँ तो सच्चा ईश्िर क्रु द्ध ोगा।
ेरत ेरत ेररया , र ा कबीर ह राय ।
बुिंद समानी समुिंद में , सो ककत ेरी जाय ।।
आत्मा-परमात्मा की एकरूपता का िर्वन ककया गया ै। े
सखी। मै तो वप्रय को खोजते-खोजते उसी में खो गाया ूुँ। क ने का तात्पयव य ै
कक मै बूुँद के समान ईश्िर के सागर तक प ुुँच गया ूुँ। भला सागर में समाई ुई
बूुँद कै से देखी जा सकती ै। परमात्मा के पृथक आत्मा का साक्षात्कार सिंभि न ीिं।