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गुरुत्ि कायाालय द्वारा प्रस्िुि मातिक ई-पविका अप्रैल- 2012
हनुमान जयंति विशेष
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गुरुत्ि ज्योतिष पविका अप्रैल 2012
िंपादक तिंिन जोशी
गुरुत्ि ज्योतिष विभाग
िंपका गुरुत्ि कायाालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन 91+9338213418, 91+9238328785,
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पविका प्रस्िुति तिंिन जोशी, स्िस्स्िक.ऎन.जोशी
फोटो ग्राफफक्ि तिंिन जोशी, स्िस्स्िक आटा
हमारे मुख्य िहयोगी स्िस्स्िक.ऎन.जोशी (स्िस्स्िक िोफ्टे क इस्डिया तल)
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GURUTVA KARYALAY
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3. अनुक्रम
हनुमान जयंति विशेष
हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण का िमत्कार 6 हनुमान जी को तिंदर क्यं अत्यातधक वप्रय हं ?
ू 20
िरल उपायं िे कामना पूतिा 7 मंिजाप िे शास्त्रज्ञान 23
पंिमुखी हनुमान का पूजन उत्तम फलदायी हं 8 हनुमान मंि िे भय तनिारण 42
िरल वितध-विधान िे हनुमानजी की पूजा 9 जब हनुमान जी ने िोिा़ शतनदे ि का घमंि 43
हनुमानजी क पूजन िे कायातिवद्ध
े 13 ििा तिवद्धदायक हनुमान मडि 44
हनुमान बाहुक क पाठ रोग ि कष्ट दर करिा हं
ू 15 हनुमान आराधना क प्रमुख तनयम
े 46
मंि एिं स्िोि विशेष
हनुमान िालीिा 11 श्री आज्ज्नेय अष्टोत्तरशि नामाितलः 38
बजरं ग बाण 12 मडदात्मक मारुतिस्िोिम ्
ं 39
जब हनुमानजी ने िूया को फल िमझा! 21 श्री हनुमि ् स्ििन 39
नटखट हनुमान बाललीला 22 िंकट मोिन हनुमानाष्टक 40
श्री एक मुखी हनुमि ् किि 24 हनुमत्पञ्रिन स्िोिम ्
् 40
श्री पच्िमुखी हनुमत्कििम ् 29 मारुतिस्िोिम ् 41
श्री िप्तमुखी हनुमि ् कििम ् 31 श्रीहनुमडनमस्कारः 41
एकादशमुखी हनुमान किि 34 हनुमान आरिी 42
लाङ्गूलास्त्र शिुज्जय हनुमि ् स्िोि 35 स्ियंप्रभा ने की रामदि हनुमान की िहायिा?
ू 48
हमारे उत्पाद
दस्िणाितिा शंख 14 श्री हनुमान यंि 43 मंि तिद्ध रूद्राि 51 पढा़ई िंबंतधि िमस्या 67
शतन पीड़ा तनिारक यंि 21 कनकधारा यंि 47 निरत्न जफड़ि श्री यंि 52 ििा रोगनाशक यंि/ 72
भाग्य लक्ष्मी फदब्बी 23 स्फफटक गणेश 48 ििा काया तिवद्ध किि 53 मंि तिद्ध किि 74
मंगल यंि िे ऋणमुवि 27 मंि तिद्ध दै िी यंि िूति 49 जैन धमाक वितशष्ट यंि
े 54 YANTRA 75
मंितिद्ध स्फफटक श्रीयंि 32 मंितिद्ध लक्ष्मी यंििूति 49 अमोद्य महामृत्युजय किि
ं 56 GEMS STONE 77
मंि तिद्ध मारुति यंि 37 रातश रत्न 50 राशी रत्न एिं उपरत्न 56 Book Consultation 78
द्वादश महा यंि 45 मंि तिद्ध दलभ िामग्री
ु ा 51 शादी िंबंतधि िमस्या 22
घंटाकणा महािीर ििा तिवद्ध महायंि 55 मंि तिद्ध िामग्री- 65, 66, 67
स्थायी और अडय लेख
िंपादकीय 4 दै तनक शुभ एिं अशुभ िमय ज्ञान िातलका 68
अप्रैल मातिक रातश फल 57 फदन-राि क िौघफिये
े 69
अप्रैल 2012 मातिक पंिांग 61 फदन-राि फक होरा - िूयोदय िे िूयाास्ि िक 70
अप्रैल 2012 मातिक व्रि-पिा-त्यौहार 63 ग्रह िलन अप्रैल-2012 71
अप्रैल 2012 -विशेष योग 68 हमारा उदे श्य 81
4. GURUTVA KARYALAY
िंपादकीय
वप्रय आस्त्मय
बंध/ बफहन
ु
जय गुरुदे ि
इि कलयुग मं ििाातधक दे ििा क रुप मं श्री रामभि हनुमानजी की ही पूजा की जािी हं क्यंफक हनुमानजी
े
को कलयुग का जीिंि अथााि िािाि दे ििा माना गया हं । कतलयुग मं शीघ्र प्रिडन होने िाले एिं प्रभािशाली दे ििा
मं हनुमान जी अपना विशेष स्थान रखिे है ।
हनुमान जी क जडम क विषय मं पुराणं एिं शास्त्रो मं मिभेद हं ,
े े
स्कद पुराण क अनुिार हनुमानजी का जडम िैि माि की पूस्णामा क फदन हुआ था। इि तििा निियुि
ं े े
पूस्णामा क फदन िूया दे ि अपनी उच्ि राशी मेष मं स्स्थि थे अथााि मेष िंक्रांति मं उनका जडम हुिा हं ।
े
आनंद रामायण मे उल्लेख फकया गया हं की हनुमान जी का जडम िैि शुक्ल एकादशी को अथााि श्रीराम जी
क जडम क दो फदन पश्चाि मघा निि मं हुआ हं ।
े े
िायु पुराण मे उल्लेख फकया गया हं की हनुमान जी का जडम अस्िन कृ ष्ण ििुदाशी को मंगलिार क फदन मेष
े
लग्न ि स्िाति निि मं हुआ हं ।
इि प्रकार वितभडन पुराणं क मिं मं तभडनिा हं , लेफकन विद्वानो का कथन हं की हनुमानजी का जीिन िृिांि
े
एिं वितभडन कथानुिार वििार करने िे िैि शुक्ल पूस्णामा को हनुमान जी का जडम होना ज्यादा उतिि प्रिीि
होिा है , क्यंफक आस्िन माि क करीब क िमय मं क दौना िूया दे ि अपनी नीि रातश िूया मं स्स्थि होिे हं
े े े
और हनुमानजी की किली मं िूया नीि का हो नहीं िकिा! यफद िूया नीि का होिा िो, हनुमानजी इिने शवि
ुं
िंपडन एिं प्रभािशाली दे ििा नहीं बन पािे। श्री हनुमान जी इिने प्रिापी एिं बल-बुवद्ध िंपडन हं , िो उनकी
किली मं िूया तनस्श्चि रुप िे उच्ि का होना िाफहए। उच्ि का िूया ही श्री हनुमानजी क िररि एिं काया शैली
ुं े
िे उतिि रुप िे मेल खािा हं ।
अडय एक मि िे भगिान श्रीराम क गभा प्रिेश क िमय ही श्री हनुमान जी का भी गभा प्रिेश हुआ था।
े े
इितलए िैि शुक्ला निमी क आि पाि क िमय मं ही हनुमान जी का जडम होना ज्यादा उपयुि लगिा है ।
े े
इि तलये प्रतििषा िैि माि की पूस्णामा का पिा हनुमान जयंिी क रूप मं मनाया जािा है ।
े
हनुमान क वपिा िुमेरू पिाि क राजा किरी थे िथा मािा अंजना थी। अप्िरा पुंस्जकस्थली (अंजनी नाम िे
े े े
प्रतिद्ध) किरी नामक िानर की पत्नी थी। िह अत्यंि िुंदरी थी िथा आभूषणं िे िुिस्ज्जि होकर एक पिाि तशखर
े
पर खड़ी थी। उनक िंदया पर मुग्ध होकर िायु दे ि ने उनका आतलंगन फकया। व्रिधाररणी अंजनी बहुि घबरा गयी
े
फकिु िायु दे ि क िरदान िे उिकी कोख िे हनुमान ने जडम तलया
ं े
5. हनुमान जी भगिान क परम भि हं । रामायण मं िबिे हनुमान जी की भूतमका महत्िपूणा व्यवियं मं िे एक हं ।
े
शास्त्रोि मि िे भगिान हनुमान जी भगिान तशिजी क 11िं रुद्र क अििार, हनुमान जी िबिे बलिान और बुवद्धमान
े
माने जािे हं ।
हनुमान जी को बजरं गबली क रूप मं जाना जािा है क्यंफक इनका शरीर एक िज्र की िरह था। हनुमान पिन-पुि
े
क रूप मं भीजाने जािे हं , क्योकी िायु दे ि ने हनुमान जी को पालने मे महत्िपूणा भूतमका तनभाई थी। िाल्मीफक
े
रामायण मं हनुमान जी को एक िानर िीर बिाया गया हं । पौराणीक ग्रंथो मं उल्लेख हं की एक बार इडद्र क िज्र िे
े
हनुमानजी की ठु ड्िी (िंस्कृ ि मे हनु) टू ट गई थी। इितलये उनको हनुमान का नाम फदया गया। इिक अलािा ये
े
अनेक नामं िे प्रतिद है जैिे बजरं ग बली, रामभि, मारुति, मारुि नंदन, अंजतन िुि, पुि िायु, पिनपुि, िंकटमोिन,
किरीनडदन, महािीर, कपीश, बालाजी महाराज आफद अनेक नामो िे जाना जािा हं ।
े
िैिे िो हनुमानजी की पूजा हे िु अनेको वितध-विधान प्रिलन मं हं लेफकन िाधारण व्यवि जो िंपूणा वितध-विधान
िे हनुमानजी का पूजन नहीं कर िकिे िह व्यवि यफद हनुमान जी क पूजन का िरल वितध-विधान ज्ञाि करले िो
े
िहँ तनस्श्चि रुप िे पूणा फल प्राप्त कर िकिे हं । इिी उदे श्य िे इि अंक मं पाठको क ज्ञान िृवद्ध क उदे श्य िे हनुमान
े े
जी क पूजन की अति िरल शीघ्र फलप्रद वितध, मंि, स्िोि इत्याफद िे आपको पररतिि कराने का प्रयाि फकया हं । जो
े
लोग िरल वितध िे मंि जप पूजन इत्याफद करने मं भी अिमथा हं िहँ लोग श्री हनुमान जी क मंि-स्िोि इत्याफद का
े
श्रिण कर क भी पूणा श्रद्धा एिं वििाि रख कर तनस्श्चि ही लाभ प्राप्त कर िकिे हं , यहँ अनुभूि उपाय हं जो तनस्श्चि
े
फल प्रदान करने मं िमथा हं इि मं जरा भी िंिय नहीं हं ।
आजक आधुतनक युग मं हर व्यवि अपने जीिन मे िभी भौतिक िुख िाधनो की प्रातप्त क तलये भौतिकिा की दौि
े े
मे भागिे हुए फकिी न फकिी िमस्या िे ग्रस्ि है । एिं व्यवि उि िमस्या िे ग्रस्ि होकर जीिन मं हिाशा और
तनराशा मं बंध जािा है । व्यवि उि िमस्या िे अति िरलिा एिं िहजिा िे मुवि िो िाहिा है पर यह िब किे
े
होगा? उि की उतिि जानकारी क अभाि मं मुि हो नहीं पािे। और उिे अपने जीिन मं आगे गतिशील होने क तलए
े े
मागा प्राप्त नहीं होिा। एिे मे िभी प्रकार क दख एिं कष्टं को दर करने क तलये अिुक और उत्तम उपाय है हनुमान
े ु ू े
िालीिा और बजरं ग बाण का पाठ…
हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण क पाठ क माध्यम िे िाधारण व्यवि भी वबना फकिी विशेष पूजा अिाना िे
े े
अपनी दै तनक फदनियाा िे थोिा िा िमय तनकाल ले िो उिकी िमस्ि परे शानी िे मुवि तमल जािी है । “यह नािो
िुतन िुनाइ बाि है ना फकिी फकिाब मे तलखी बाि है , यह स्ियं हमारा तनजी एिं हमारे िाथ जुिे हजारो लोगो के
अनुभि है ।”
आप िभी क मागादशान या ज्ञानिधान क तलए हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण क तनयतमि पाठ िे िे िंबंतधि
े े े
उपयोगी जानकारी भी इि अंक मं िंकतलि की गई हं । िाधक एिं विद्वान पाठको िे अनुरोध हं , यफद दशााये गए मंि,
स्िोि इत्यादी क िंकलन, प्रमाण पढ़ने, िंपादन मं, फिजाईन मं, टाईपींग मं, वप्रंफटं ग मं, प्रकाशन मं कोई िुफट रह गई हो,
े
िो उिे स्ियं िुधार लं या फकिी योग्य गुरु या विद्वान िे िलाह विमशा कर ले..
तिंिन जोशी
6. 6 अप्रेल 2012
हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण का िमत्कार
तिंिन जोशी
आज हर व्यवि अपने जीिन मे िभी भौतिक “यह नािो िुतन िुनाइ बाि है ना फकिी फकिाब
िुख िाधनो की प्रातप्त क तलये भौतिकिा की दौि मे
े मे तलखी बाि है , यह स्ियं हमारा तनजी एिं हमारे िाथ
भागिे हुए फकिी न फकिी िमस्या िे ग्रस्ि है । एिं जुिे लोगो क अनुभि है ।”
े
व्यवि उि िमस्या िे ग्रस्ि होकर जीिन मं हिाशा और
तनराशा मं बंध जािा है । उपयोगी जानकारी
व्यवि उि िमस्या िे अति िरलिा एिं िहजिा हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण क तनयतमि पाठ िे
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िे मुवि िो िाहिा है पर यह िब किे होगा? उि की
े हनुमान जी की कृ पा प्राप्त करना िाहिे हं उनक तलए
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उतिि जानकारी क अभाि मं मुि हो नहीं पािे। और
े प्रस्िुि हं कछ उपयोगी जानकारी ..
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उिे अपने जीिन मं आगे गतिशील होने क तलए मागा
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तनयतमि रोज िुभह स्नान आफदिे तनिृि होकर स्िच्छ
प्राप्त नहीं होिा। एिे मे िभी प्रकार क दख एिं कष्टं को
े ु
कपिे पहन कर ही पाठ का प्रारम्भ करे ।
दर करने क तलये अिुक और उत्तम उपाय है हनुमान
ू े
तनयतमि पाठ मं शुद्धिा एिं पविििा अतनिाया है ।
िालीिा और बजरं ग बाण का पाठ…
हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण क पाठ करिे िमय
े
हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण ही क्यु ? धूप-दीप अिश्य लगाये इस्िे िमत्कारी एिं शीघ्र प्रभाि
क्योफक ििामान युग मं श्री हनुमानजी तशिजी के प्राप्त होिा है ।
एक एिे अििार है जो अति शीघ्र प्रिडन होिे है जो दीप िंभि न होिो किल ३ अगरबत्ती जलाकर ही पाठ
े
करे ।
अपने भिो क िमस्ि दखो को हरने मे िमथा है । श्री
े ु
कछ विद्वानो क मि िे वबना धूप िे हनुमान िालीिा और
ु े
हनुमानजी का नाम स्मरण करने माि िे ही भिो के
बजरं ग बाण क पाठ प्रभाि फहन होिा है ।
े
िारे िंकट दर हो जािे हं । क्योफक इनकी पूजा-अिाना
ू
यफद िंभि हो िो प्रिाद किल शुद्ध घी का िढाए अडय था
े
अति िरल है , इिी कारण श्री हनुमानजी जन िाधारण मे
न िढाए
अत्यंि लोकवप्रय है । इनक मंफदर दे श-विदे श ििि स्स्थि
े जहा िक िंभि हो हनुमान जी का तिर् तिि (फोटो) रखे।
ा
हं । अिः भिं को पहुंिने मं अत्यातधक कफठनाई भी नहीं यफद घर मे अलग िे पूजा घर की व्यिस्था हो
आिी है । हनुमानजी को प्रिडन करना अति िरल है िो िास्िुशास्त्र क फहिाब िे मूतिा रखना शुभ होगा। नही
े
हनुमान िालीिा और बजरं ग बाण क पाठ क
े े िो हनुमान जी का तिर् तिि (फोटो) रखे।
ा
माध्यम िे िाधारण व्यवि भी वबना फकिी विशेष पूजा यफद मूतिा हो िो ज्यद बिी न हो एिं तमट्टी फक बनी नही
अिाना िे अपनी दै तनक फदनियाा िे थोिा िा िमय रखे।
तनकाल ले िो उिकी िमस्ि परे शानी िे मुवि तमल मूतिा रखना िाहे िो बेहिर है तिर् फकिी धािु या पत्थर
ा
जािी है । की बनी मूतिा रखे।
7. 7 अप्रेल 2012
हनुमान जी का फोटो/ मूतिा पर िुखा तिंदर लगाना
ू िमस्ि दे ि शवि या इिरीय शवि का प्रयोग किल शुभ
े
िाफहए। काया उदे श्य की पूतिा क तलये या जन कल्याण हे िु करे ।
े
तनयतमि पाठ पूणा आस्था, श्रद्धा और िेिा भाि िे की ज्यादािर दे खा गया है की १ िे अतधक बार पाठ करने के
जानी िाफहए। उिमे फकिी भी िरह की िंका या िंदेह न उदे श्य िे िमय क अभाि मे जल्द िे जल्द पाठ कने मे
े
रखे। लोग गलि उच्िारण करिे है । जो अन उतिि है ।
तिर् दे ि शवि की आजमाइि क तलये यह पाठ न करे ।
ा े िमय क अभाि हो िो ज्यादा पाठ करने फक अपेिा एक
े
या फकिी को हातन, नुक्िान या कष्ट दे ने क उदे श्य िे कोइ
े ही पठ करे पर पूणा तनष्ठा और श्रद्धा िे करे ।
पूजा पाठ नकरे । पाठ िे ग्रहं का अशुभत्ि पूणा रूप िे शांि हो जािा है ।
एिा करने पर दे ि शवि या इिरीय शवि बुरा प्रभाि यफद जीिन मे परे शानीयां और शिु घेरे हुए है एिं आगे
िालिी है या अपना कोइ प्रभाग नफह फदखािी! एिा हमने कोइ रास्िा या उपाय नहीं िुझ रहा िो िरे नही तनयतमि
प्रत्यि दे खा है । पाठ करे आपक िारे दख-परे शानीयां दर होजायेगी अपनी
े ु ू
एिा प्रयोग करने िालो िे हमार विनम्र अनुरोध है कृ प्या आस्था एिं वििाि बनाये रखे।
यह पाठ नकरे ।
िरल उपायं िे कामना पूतिा
मनोकामना पूतिा क फकिी भी मंगलिार या शुभफदन का ियन कर हनुमानजी को प्रतिफदन पाँि
े
लाल फल अवपाि कर मनोकामना की प्राथाना करं । यफद प्रतिफदन िंभि न हो िो प्रत्येक
ू
मंगलिार को यह प्रयोग करं ।
कोटा किहरी अथााि मुकदमं मं विजय प्रातप्त क तलए मंगल िार क फदन हनुमानजी तिि या
े े
प्रतिमा क िमीप श्री हनुमा यंि को स्थावपि कर उिक िामने बजरं ग बाण क 51 पाठ करं ।
े े े
यफद धन स्स्थर नहीं रहिा हो, िो हनुमानजी क मंफदर मं िीन मंगलिार िक 7 बिाशे, 1 जनेऊ,
े
1 पान अवपाि करं बरकि बढने लगेगी।
यफद दिा आफद िे रोग शांि न हो रहा हो िब शतनिार को िूयाास्ि क िमय हनुमानजी क
े े
मंफदर जाकर हनुमान जी को िाष्टांग दण्ििि ् प्रणाम करं उनक िरणं का तिंदर घर ले आयं।
े ू
घर लाकर इि मंि िे उि तिडदर को अतभमंविि करं -
ू
“मनोजिं मारुििुल्यिेगं, स्जिेस्डद्रयं बुवद्धमिां िररष्ठं।
िािात्मजं िानरयूथमुख्यं श्रीरामदिं शरणं प्रपद्ये।।”
ू
अतभमंविि तिडदर का रोगी क मस्िक तिलक लगा दं , रोगी की हालिम शीघ्र िुधार होने
ू े
लगेगा।
शतन-िाढ़े िािी क शांति क तलए श्री हनुमान की पूजा-अिाना िथा िेल युि तिंदर अपाण कर
े े ू
भविपूिक शतनिार का व्रि करना िाफहए।
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8. 8 अप्रेल 2012
पंिमुखी हनुमान का पूजन उत्तम फलदायी हं
तिंिन जोशी
शास्त्रो विधान िे हनुमानजी का पूजन और हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है ।
िाधना वितभडन रुप िे फकये जा िकिे हं । इनकी आराधना करने िे अपार धन-िम्पवत्त,ऐिया, यश,
हनुमानजी का एकमुखी, पंिमुखीऔर एकादश फदधाायु प्रदान करने िाल ि उत्तम स्िास््य दे ने मं िमथा
मुखीस्िरूप क िाथ हनुमानजी का बाल हनुमान, भि
े हं । हनुमानजी का दस्िणमुखी स्िरूप भगिान नृतिंह का
हनुमान, िीर हनुमान, दाि हनुमान, योगी हनुमान आफद है । जो भिं क भय, तिंिा, परे शानी को दर करिा हं ।
े ू
प्रतिद्ध है । फकिु शास्त्रं मं श्री हनुमान क ऐिे िमत्काररक
ं े श्री हनुमान का ऊधध्िमुख घोिे क िमान हं ।
े
स्िरूप और िररि की भवि का महत्ि बिाया गया है , हनुमानजी का यह स्िरुप ब्रह्मा जी की प्राथाना पर प्रकट
स्जििे भि को बेजोड़ शवियां प्राप्त होिी है । श्री हनुमान हुआ था। माडयिा है फक हयग्रीिदै त्य का िंहार करने के
का यह रूप है - पंिमुखी हनुमान। तलए िे अििररि हुए। कष्ट मं पिे भिं को िे शरण दे िे
माडयिा क अनुशार पंिमुखीहनुमान का अििार
े हं । ऐिे पांि मुंह िाले रुद्र कहलाने िाले हनुमान बिे
भिं का कल्याण करने क तलए हुिा हं । हनुमान क पांि
े े कृ पालु और दयालु हं ।
मुख क्रमश:पूि, पस्श्चम, उत्तर, दस्िण और ऊधध्ि फदशा मं
ा हनुमिमहाकाव्य मं पंिमुखीहनुमान क बारे मं एक कथा हं ।
े
प्रतिवष्ठि हं । एक बार पांि मुंह िाला एक भयानक रािि प्रकट हुआ।
पंिमुखीहनुमानजी का अििार मागाशीषा कृ ष्णाष्टमी उिने िपस्या करक ब्रह्माजीिे िरदान पाया फक मेरे रूप
े
को माना जािा हं । रुद्र क अििार हनुमान ऊजाा क
े े जैिा ही कोई व्यवि मुझे मार िक। ऐिा िरदान प्राप्त
े
प्रिीक माने जािे हं । इिकी आराधना िे बल, कीतिा, करक िह िमग्र लोक मं भयंकर उत्पाि मिाने लगा।
े
आरोग्य और तनभीकिा बढिी है । ु
िभी दे ििाओं ने भगिान िे इि कष्ट िे छटकारा तमलने
रामायण क अनुिार श्री हनुमान का विराट स्िरूप
े की प्राथाना की। िब प्रभु की आज्ञा पाकर हनुमानजी ने
पांि मुख पांि फदशाओं मं हं । हर रूप एक मुख िाला, िानर, नरतिंह, गरुि, अि और शूकर का पंिमुख स्िरूप
विनेिधारी यातन िीन आंखं और दो भुजाओं िाला है । धारण फकया। इि तलये एिी माडयिा है फक
यह पांि मुख नरतिंह, गरुि, अि, िानर और िराह रूप पंिमुखीहनुमान की पूजा-अिाना िे िभी दे ििाओं की
है । हनुमान क पांि मुख क्रमश:पूि, पस्श्चम, उत्तर, दस्िण
े ा उपािना क िमान फल तमलिा है । हनुमान क पांिं
े े
और ऊधध्ि फदशा मं प्रतिवष्ठि माने गएं हं । मुखं मं िीन-िीन िुंदर आंखं आध्यास्त्मक, आतधदै विक िथा
पंिमुख हनुमान क पूिा की ओर का मुख िानर
े ु
आतधभौतिक िीनं िापं को छिाने िाली हं । ये मनुष्य के
का हं । स्जिकी प्रभा करोिं िूयो क िेज िमान हं । पूिा
े िभी विकारं को दर करने िाले माने जािे हं । भि को
ू
मुख िाले हनुमान का पूजन करने िे िमस्ि शिुओं का शिुओं का नाश करने िाले हनुमानजी का हमेशा स्मरण
नाश हो जािा है । करना िाफहए। विद्वानो क मि िे पंिमुखी हनुमानजी की
े
पस्श्चम फदशा िाला मुख गरुि का हं । जो भविप्रद, उपािना िे जाने-अनजाने फकए गए िभी बुरे कमा एिं
िंकट, विघ्न-बाधा तनिारक माने जािे हं । गरुि की िरह तिंिन क दोषं िे मुवि प्रदान करने िाला हं । पांि मुख
े
हनुमानजी भी अजर-अमर माने जािे हं । िाले हनुमानजी की प्रतिमा धातमाक और िंि शास्त्रं मं भी
बहुि ही िमत्काररक फलदायी मानी गई है ।
9. 9 अप्रेल 2012
िरल वितध-विधान िे हनुमानजी की पूजा
तिंिन जोशी
इि कलयुग मं ििाातधक दे ििा क रुप मं श्री रामभि
े
इिक पश्चयाि िािल और फल हनुमानजी को अवपाि कर
े ू
हनुमानजी की ही पूजा की जािी हं क्यंफक हनुमानजी
दं ।
को कलयुग का जीिंि अथााि िािाि दे ििा माना गया
हं । धमा शास्त्रं क अनुिार हनुमानजी का जडम िैि माि
े
आिाह्न:
की पूस्णामा क फदन हुआ था। इि तलये प्रतििषा िैि माि
े
हाथ मं फल लेकर इि मंि का उच्िारण करिे हुए श्री
ू
की पूस्णामा का पिा हनुमान जयंिी क रूप मं मनाया
े
हनुमानजी का आिाह्न करं ।
जािा है । िषा 2012 मं हनुमान जयंिी 6 अप्रैल, शुक्रिार
को हं । उद्यत्कोट्यकिंकाशम ् जगत्प्रिोभकारकम ्।
ा
श्रीरामस्ड्घ्रध्यानतनष्ठम ् िुग्रीिप्रमुखातिािम ्॥
िैिे िो हनुमानजी की पूजा हे िु अनेको वितध-विधान
विडनाियडिम ् नादे न राििान ् मारुतिम ् भजेि ्॥
प्रिलन मं हं पर यहा िाधारण व्यवि जो िंपूणा वितध-
विधान िे हनुमानजी का पूजन नहीं कर िकिे िह ॐ हनुमिे नम: आिाहनाथे पुष्पास्ण िमपायातम॥
व्यवि यफद इि वितध-विधान िे पूजन करे िो उडहं भी इिक पश्चयाि फलं को हनुमानजी को अवपाि कर दं ।
े ू
पूणा फल प्राप्त हो िकिा हं ।
आिन:
श्रीहनुमान पूजन वितध इि मंि िे हनुमानजी का आिन अवपाि करं । आिन हे िु
कमल अथिा गुलाब का फल अवपाि करं ।
ू
हनुमानजी का पूजन करिे िमय िबिे पहले ऊन के
आिन पर पूिा फदशा की ओर मुख करक बैठ जाएं।
े िप्तकांिनिणााभम ् मुिामस्णविरास्जिम ्।
हनुमानजी की छोटी प्रतिमा अथिा तिि स्थावपि करं । अमलम ् कमलम ् फदव्यमािनम ् प्रतिगृह्यिाम ्॥
इिक पश्चाि हाथ मं अिि (अथााि वबना टू टे िािल)
े आिमनी:
एिं फल लेकर इि मंि िे हनुमानजी का
ू इिके पश्चयाि इन मंिं का उच्िारण करिे हुए
हनुमानजी क िम्मुख भूतम पर अथिा फकिी बिान मं
े
ध्यान: िीन बार जल छोड़ं ।
अिुतलिबलधामम ् हे मशैलाभदे हम ् ॐ हनुमिे नम:, पाद्यम ् िमपायातम॥
दनुजिनकृ शानुम ् ज्ञातननामग्रगण्यम ्। अध्र्यम ् िमपायातम। आिमनीयम ् िमपायातम॥
िकलगुणतनधानम ् िानराणामधीशम ्
रघुपतिवप्रयभिम ् िािजािम ् नमातम॥ स्नान:
इिक पश्चयाि हनुमानजी की मूतिा को गंगाजल अथिा
े
ॐ हनुमिे नम: ध्यानाथे पुष्पास्ण िमापयातम॥
शुद्ध जल िे स्नान करिाएं ित्पश्चाि पंिामृि (घी, शहद,
10. 10 अप्रेल 2012
शक्कर, दध ि दही ) िे स्नान करिाएं। पुन: एक बार
ू नैिेद्य (प्रिाद):
शुद्ध जल िे स्नान करिाएं। इिक पश्चयाि कले क पत्ते पर या फकिी कटोरी मं पान
े े े
क पत्ते पर प्रिाद रखं और हनुमानजी को अवपाि कर दं
े
िस्त्र: ित्पश्चाि ऋिुफल इत्याफद अवपाि करं । (प्रिाद मं िूरमा,
इिक पश्चयाि अब इि मंि िे हनुमानजी को िस्त्र
े बुंदी अथिा बेिन क लििू या गुड़ िढ़ाना उत्तम रहिा
े
है ।)
अवपाि करं ि िस्त्र क तनतमत्त मौली भी िढ़ाएं-
े
इिके पश्चयाि मुखशुवद्ध हे िु लंग-इलाइिीयुि पान
िढ़ाएं।
शीििािोष्णिंिाणं लज्जाया रिणम ् परम ्।
दे हालकरणम ् िस्त्रमि: शांति प्रयच्छ मे॥ दस्िणा:
पूजा का पूणा फल प्राप्त करने क तलए इि मंि को बोलिे
े
ॐ हनुमिे नम:, िस्त्रोपिस्त्रं िमपायातम॥ हुए हनुमानजी को दस्िणा अवपाि करं -
पुष्प: ॐ फहरण्यगभागभास्थम ् दे िबीजम ् विभाििं:।
इिक पश्चयाि हनुमानजी को अष्ट गंध, तिंदर, ककम,
े ू ुं ु अनडिपुण्यफलदमि: शांति प्रयच्छ मे॥
िािल, फल ि हार अवपाि करं ।
ू
ॐ हनुमिे नम:, पूजा िाफल्याथं द्रव्य दस्िणां
िमपायातम॥
धुप-फदप:
इिक पश्चयाि इि मंि क िाथ हनुमानजी को धूप-दीप
े े आरति:
फदखाएं- इिक बाद एक थाली मं कपूर एिं घी का दीपक जलाकर
े ा
िाज्यम ् ि ितिािंयुिम ् िफह्नना योस्जिम ् मया। हनुमानजी की आरिी करं ।
दीपम ् गृहाण दे िेश िैलोक्यतितमरापहम ्॥
इि प्रकार क पूजन करने िे भी हनुमानजी अति प्रिडन
े
होिे हं । इि वितध-विधान िे फकये गये पूजन िे भी
भक्त्या दीपम ् प्रयच्छातम दे िाय परमात्मने।
भिगण हनुमाजी की पूणा कृ पा प्रप्त कर अपनी
िाफह माम ् तनरयाद् घोराद् दीपज्योतिनामोस्िु िे॥ मनोकामना पूरी कर िकिे हं । इि मं लेि माि भी
ॐ हनुमिे नम:, दीपं दशायातम॥ िंिय नहीं हं । िाधक की हर मनोकामना पूरी करिे हं ।
मंि तिद्ध
हनुमान पूजन यंि हनुमान यंि
िंकट मोिन यंि मारुति यंि
यंि क विषय मं अतधक जानकारी हे िु िंपक करं ।
े ा
GURUTVA KARYALAY
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11. 11 अप्रेल 2012
|| हनुमान िालीिा ||
|| दोहा || रघुपति कीडही बहुि बड़ाई। और मनोरथ जो कोई लािै।
श्री गुरु िरन िरोज रज, िुम मम वप्रय भरिफह िम भाई॥ ॥१२॥ िोइ अतमि जीिन फल पािै॥ ॥२८॥
तनज मनु मुकरु िुधारर।
ु िहि बदन िुम्हरो जि गािं। िारं जुग परिाप िुम्हारा।
बरनऊ रघुबर वबमल जिु,
ँ अि कफह श्रीपति कठ लगािं॥ ॥१३॥
ं है परतिद्ध जगि उस्जयारा॥ ॥२९॥
जो दायक फल िारर॥
ु िनकाफदक ब्रह्माफद मुनीिा। िाधु िंि क िुम रखिारे ।
े
बुवद्धहीन िनु जातनक,
े नारद िारद िफहि अहीिा॥ ॥१४॥ अिुर तनकदन राम दलारे ॥ ॥३०॥
ं ु
िुतमरं पिन-कमार।
ु जम कबेर फदगपाल जहाँ िे।
ु अष्ट तिवद्ध नौ तनतध क दािा।
े
बल बुवद्ध वबद्या दे हु मोफहं , कवब कोवबद कफह िक कहाँ िे॥ ॥१५॥
े अि बर दीन जानकी मािा॥ ॥३१॥
हरहु कलेि वबकार॥ िुम उपकार िुग्रीिफहं कीडहा। राम रिायन िुम्हरे पािा।
|| िौपाई || राम तमलाय राज पद दीडहा॥ ॥१६॥ िदा रहो रघुपति क दािा॥ ॥३२॥
े
जय हनुमान ज्ञान गुन िागर। िुम्हरो मंि वबभीषन माना। िुम्हरे भजन राम को पािै।
जय कपीि तिहुँ लोक उजागर॥ ॥१॥ लंकस्िर भए िब जग जाना॥ ॥१७॥
े जनम-जनम क दख वबिरािै॥ ॥३३॥
े ु
रामदि अिुतलि बल धामा।
ू जुग िहस्र जोजन पर भानू। अडिकाल रघुबर पुर जाई।
अंजतन-पुि पिनिुि नामा॥ ॥२॥ लील्यो िाफह मधुर फल जानू॥ ॥१८॥ जहाँ जडम हरर-भि कहाई॥ ॥३४॥
महाबीर वबक्रम बजरं गी। प्रभु मुफद्रका मेतल मुख माहीं। और दे ििा तित्त न धरई।
कमति तनिार िुमति क िंगी॥ ॥३॥
ु े जलतध लाँतघ गये अिरज नाहीं॥ ॥१९॥ हनुमि िेइ िबा िुख करई॥ ॥३५॥
किन बरन वबराज िुबेिा।
ं दगम काज जगि क जेिे।
ु ा े िंकट कटै तमटै िब पीरा।
कानन किल कतिि किा॥ ॥४॥
ुं ुं े िुगम अनुग्रह िुम्हरे िेिे॥ ॥२०॥ जो िुतमरै हनुमि बलबीरा॥ ॥३६॥
हाथ बज्र औ ध्िजा वबराजै। राम दआरे िुम रखिारे ।
ु जय जय जय हनुमान गोिाईं।
काँधे मूँज जनेऊ िाजै।। ॥५॥ होि न आज्ञा वबनु पैिारे ॥ ॥२१॥ कृ पा करहु गुरुदे ि की नाईं॥ ॥३७॥
िंकर िुिन किरीनंदन।
े िब िुख लहै िुम्हारी िरना। जो िि बार पाठ कर कोई।
िेज प्रिाप महा जग बडदन॥ ॥६॥ िुम रिक काहू को िर ना॥ ॥२२॥ ू
छटफह बंफद महा िुख होई॥ ॥३८॥
विद्यािान गुनी अति िािुर। आपन िेज िम्हारो आपै। जो यह पढ़ै हनुमान िालीिा।
राम काज कररबे को आिुर॥ ॥७॥ िीनं लोक हाँक िं काँपै॥ ॥२३॥ होय तिवद्ध िाखी गौरीिा॥ ॥३९॥
प्रभु िररि िुतनबे को रतिया। भूि वपिाि तनकट नफहं आिै। िुलिीदाि िदा हरर िेरा।
राम लखन िीिा मन बतिया॥ ॥८॥ महाबीर जब नाम िुनािै॥ ॥२४॥ कीजै नाथ हृदय मँह िे रा॥ ॥४०॥
िूक्ष्म रूप धरर तियफहं फदखािा। नािै रोग हरै िब पीरा। || दोहा ||
वबकट रूप धरर लंक जरािा॥ ॥९॥ जपि तनरं िर हनुमि बीरा॥ ॥२५॥ पिनिनय िंकट हरन,
भीम रूप धरर अिुर िँहारे । ु
िंकट िं हनुमान छड़ािै। मंगल मूरतिरूप।
रामिंद्र क काज िँिारे ॥ ॥१०॥
े मन क्रम बिन ध्यान जो लािै॥ ॥२६॥ राम लखन िीिा िफहि,
लाय िजीिन लखन स्जयाये। िब पर राम िपस्िी राजा। हृदय बिहु िुर भूप॥
श्रीरघुबीर हरवष उर लाये॥ ॥११॥ तिन क काज िकल िुम िाजा॥ ॥२७॥
े || इति श्री हनुमान िालीिा िम्पूणा ||
12. 12 अप्रेल 2012
॥ बजरं ग बाण ॥
॥ दोहा ॥ ॐ हनु हनु हनु हनुमंि हठीले। पायँ परं, कर जोरर मनाई॥
तनश्चय प्रेम प्रिीति िे, बैररफह मारु बज्र की कीले॥ ॐ िं िं िं िं िपल िलंिा।
वबनय करं िनमान। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंिा॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंि कपीिा।
िेफह क कारज िकल शुभ,
े
ॐ हुं हुं हुं हनु अरर उर िीिा॥ ॐ हं हं हाँक दे ि कवप िंिल।
तिद्ध करं हनुमान॥
जय अंजतन कमार बलिंिा ।
ु ॐ िं िं िहतम पराने खल-दल॥
॥ िौपाई ॥
शंकरिुिन बीर हनुमंिा॥ अपने जन को िुरि उबारौ।
जय हनुमंि िंि फहिकारी ।
िुतमरि होय आनंद हमारौ॥
िुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
बदन कराल काल-कल-घालक।
ु
जन क काज वबलंब न कीजै।
े
राम िहाय िदा प्रतिपालक॥ यह बजरं ग-बाण जेफह मारै ।
आिुर दौरर महा िुख दीजै॥
भूि, प्रेि, वपिाि तनिािर । िाफह कहौ फफरर किन उबारै ॥
अतगन बेिाल काल मारी मर॥ पाठ करै बजरं ग-बाण की।
जैिे कफद तिंधु मफहपारा ।
ू
हनुमि रिा करै प्रान की॥
िुरिा बदन पैफठ वबस्िारा॥
इडहं मारु, िोफह िपथ राम की।
आगे जाय लंफकनी रोका ।
राखु नाथ मरजाद नाम की॥ यह बजरं ग बाण जो जापं।
मारे हु लाि गई िुरलोका॥
ित्य होहु हरर िपथ पाइ क।
ै िािं भूि-प्रेि िब कापं॥
राम दि धरु मारु धाइ क॥
ू ै धूप दे य जो जपै हमेिा।
जाय वबभीषन को िुख दीडहा।
िाक िन नफहं रहै कलेिा॥
े
िीिा तनरस्ख परमपद लीडहा॥
जय जय जय हनुमंि अगाधा।
बाग उजारर तिंधु महँ बोरा ।
दख पािि जन कफह अपराधा॥
ु े ॥ दोहा ॥
अति आिुर जमकािर िोरा॥
पूजा जप िप नेम अिारा। उर प्रिीति दृढ़, िरन ह्वै ,
ु
नफहं जानि कछ दाि िुम्हारा॥ पाठ करै धरर ध्यान।
अिय कमार मारर िंहारा ।
ु
बाधा िब हर,
लूम लपेफट लंक को जारा॥
बन उपबन मग तगरर गृह
करं िब काम िफल हनुमान॥
लाह िमान लंक जरर गई ।
माहीं। िुम्हरे बल हं िरपि नाहीं॥
जय जय धुतन िुरपुर नभ भई॥
जनकिुिा हरर दाि कहािौ। कछ िंस्करणं मं उपरोि दोहा "उर
ु
िाकी िपथ वबलंब न लािौ॥ प्रिीति दृढ़, िरन ह्वै " क स्थान पर
े
अब वबलंब कफह कारन स्िामी।
े
तनम्न प्रकार िे उल्लेस्खि फकया
कृ पा करहु उर अंिरयामी॥
जै जै जै धुतन होि अकािा।
गया है ।
जय जय लखन प्रान क दािा।
े
िुतमरि होय दिह दख नािा॥
ु ु
आिुर ह्वै दख करहु तनपािा॥
ु
िरन पकरर, कर जोरर मनािं। “प्रेम प्रिीतिफहं कवप भजै।
यफह औिर अब कफह गोहरािं॥
े िदा धरं उर ध्यान।
जै हनुमान जयति बल-िागर।
िेफह क कारज िुरि ही,
े
िुर-िमूह-िमरथ भट-नागर॥
उठु , उठु , िलु, िोफह राम दहाई।
ु तिद्ध करं हनुमान॥
13. 13 अप्रेल 2012
हनुमानजी क पूजन िे कायातिवद्ध
े
तिंिन जोशी, स्िस्स्िक.ऎन.जोशी
फहडद ू धमा मं श्री हनुमानजी प्रमुख दे िी-दे ििाओ मं राम भि हनुमान स्िरुप: राम भवि मं मग्न हनुमानजी
िे एक प्रमुख दे ि हं । शास्त्रोि मि क अनुशार हनुमानजी को
े की उपािना करने िे जीिन क महत्ि पूणा कायो मं आ रहे
े
रूद्र (तशि) अििार हं । हनुमानजी का पूजन युगो-युगो िे िंकटो एिं बाधाओं को दर करिी हं एिं अपने लक्ष्य को प्राप्त
ू
अनंि काल िे होिा आया हं । हनुमानजी को कतलयुग मं करने हे िु आिश्यक एकाग्रिा ि अटू ट लगन प्रदान करने
प्रत्यि दे ि मानागया हं । जो थोिे िे पूजन-अिान िे अपने िाली होिी है ।
भि पर प्रिडन हो जािे हं और अपने भि की िभी प्रकार के िंजीिनी पहाड़ तलये हनुमान स्िरुप: िंजीिनी पहाड़
दःख, कष्ट, िंकटो इत्यादी का नाश हो कर उिकी रिा करिे
ु उठाये हुए हनुमानजी की उपािना करने िे व्यवि को
हं । प्राणभय, िंकट, रोग इत्यादी हे िु लाभप्रद मानी
हनुमानजी का फदव्य िररि बल, गई हं । विद्वानो क मि िे स्जि प्रकार
े
बुवद्ध कमा, िमपाण, भवि, तनष्ठा, किाव्य हनुमानजी ने लिमणजी क प्राण बिाये
े
शील जैिे आदशा गुणो िे युि हं । अिः थे उिी प्रकार हनुमानजी अपने भिो के
श्री हनुमानजी क पूजन िे व्यवि मं
े प्राण की रिा करिे हं एिं अपने भि
भवि, धमा, गुण, शुद्ध वििार, क बिे िे बिे िंकटो को िंस्जिनी
े
मयाादा, बल , बुवद्ध, िाहि इत्यादी पहाड़ की िरह उठाने मं िमथा हं ।
गुणो का भी विकाि हो जािा हं ।
ध्यान मग्न हनुमान स्िरुप:
विद्वानो के मिानुशार
हनुमानजी का ध्यान मग्न स्िरुप
हनुमानजी क प्रति दढ आस्था और
े
व्यवि को िाधना मं िफलिा प्रदान
अटू ट वििाि क िाथ पूणा भवि एिं
े
करने िाला, योग तिवद्ध या प्रदान करने
िमपाण की भािना िे हनुमानजी के
िाला मानागया हं ।
वितभडन स्िरूपका अपनी आिश्यकिा
क अनुशार पूजन-अिान कर व्यवि
े
रामायणी हनुमान स्िरुप: रामायणी
अपनी िमस्याओं िे मुि होकर जीिन मं हनुमानजी का स्िरुप विद्याथीयो क तलये
े
िभी प्रकार क िुख प्राप्त कर िकिा हं ।
े विशेष लाभ प्रद होिा हं । स्जि प्रकार रामायण एक
मनोकामना की पूतिा हे िु कौन िी हनुमान प्रतिमा आदशा ग्रंथ हं उिी प्रकार हनुमानजी क रामायणी स्िरुप का
े
का पूजल करना लाभप्रद पूजन विद्या अध्यन िे जुिे लोगो क तलये लाभप्रद होिा हं ।
े
रहे गा। इि जानकारी िे आपको अिगि कराने का प्रयाि
हनुमानजी का पिन पुि स्िरुप: हनुमानजी का पिन
फकया जारहा हं ।
हनुमानजी क प्रमुख स्िरुप इि प्रकार हं ।
े पुि स्िरुप क पूजन िे आकस्स्मक दघटना, िाहन इत्याफद
े ु ा
की िुरिा हे िु उत्तम माना गया हं । हनुमानजी क उि स्िरुप
े
का पूजन करने िे
14. 14 अप्रेल 2012
िीरहनुमान स्िरुप: िीरहनुमान स्िरुप मं हनुमानजी दे ि प्रतिमा शुभ फलदायक ि मंगलमय, िकल िम्पवत्त प्राप्त
योद्धा मुद्रामं होिे हं । उनकी पूंछ उस्त्थि (उपर उफठउई) होिी हं । िकल िम्पवत्त की प्रातप्त होिी है ।
रहिी है ि दाफहना हाथ मस्िककी ओर मुिा रहिा है । कभी- हनुमानजी का दस्िणमुखी स्िरुप: दस्िणमुखी
कभी उनक पैरं क नीिे राििकी मूतिा भी होिी है ।
े े हनुमानजी की उपािना करने िे व्यवि को भय, िंकट,
िीरहनुमान का पूजन भूिा-प्रेि, जाद-टोना इत्याफद आिुरी
ू मानतिक तिंिा इत्यादी का नाश होिा हं । क्योफक शास्त्रो के
शवियो िे प्राप्त होने िाले कष्टो को दर करने िाला हं ।
ू अनुशार दस्िण फदशा मं काल का तनिाि होिा हं । तशिजी
काल को तनयंिण करने िाले दे ि हं हनुमानजी भगिान तशि
राम िेिक हनुमान स्िरुप: हनुमानजी की श्री रामजी की
क अििार हं अिः हनुमानजी की पूजा-अिाना करने िे लाभ
े
िेिामं लीन हनुमानजी की उपािना करने िे व्यवि क तभिर
े
प्राप्त होिा हं । जाद-टोना, मंि-िंि इत्याफद प्रयोग दस्िणमुखी
ू
िेिा और िमपाण क भाि की िृवद्ध होिी हं । व्यवि क तभिर
े े
हनुमान की प्रतिमा क िमुख करना विशेष लाभप्रद होिा हं ।
े
धमा, कमा इत्याफद क प्रति िमपाण और िेिा की भािना
े
दस्िणमुखी हनुमान का तिि दस्िण मुखी भिन क मुख्य
े
तनमााण करने हे िु ि व्यवि क तभिर िे क्रोघ, इषाा अहं कार
े
इत्याफद भाि क नाश हे िु राम िेिक हनुमान स्िरुप उत्तम
े द्वार पर लगाने िे िास्िु दोष दर होिे दे खे गये हं । जाद-टोना,
ु ू
माना गया हं । मंि-िंि इत्याफद प्रयोग प्रमुखि: ऐिी मूतिाके
हनुमानजी का उत्तरामुखी स्िरुप: उत्तरामुखी हनुमानजी हनुमानजी का पूिमखी स्िरुप: पूिमुखी हनुमानजी का
ा ु ा
की उपािना करने िे िभी प्रकार क िुख प्राप्त होकर जीिन
े पूजन करने िे व्यवि क िमस्ि भय, शोक, शिुओं का नाश
े
धन, िंपवत्त िे युि हो जािा हं । क्योफक शास्त्रो क अनुशार
े हो जािा है ।
उत्तर फदशा मं दे िी दे ििाओं का िाि होिा हं , अिः उत्तरमुखी
दस्िणाितिा शंख
आकार लंबाई मं फाईन िुपर फाईन स्पेशल आकार लंबाई मं फाईन िुपर फाईन स्पेशल
0.5" ईंि 180 230 280 4" to 4.5" ईंि 730 910 1050
1" to 1.5" ईंि 280 370 460 5" to 5.5" ईंि 1050 1250 1450
2" to 2.5" ईंि 370 460 640 6" to 6.5" ईंि 1250 1450 1900
3" to 3.5" ईंि 460 550 820 7" to 7.5" ईंि 1550 1850 2100
हमारे यहां बड़े आकार क फकमिी ि महं गे शंख जो आधा लीटर पानी और 1 लीटर पानी िमाने की िमिा िाले
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होिे हं । आपक अनुरुध पर उपलब्ध कराएं जा िकिे हं ।
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स्पेशल गुणित्ता िाला दस्िणाितिा शंख पूरी िरह िे िफद रं ग का होिा हं ।
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िुपर फाईन गुणित्ता िाला दस्िणाितिा शंख फीक िफद रं ग का होिा हं ।
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फाईन गुणित्ता िाला दस्िणाितिा शंख दं रं ग का होिा हं ।
GURUTVA KARYALAY
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