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गुरुत्व कार्ाालर् द्वारा प्रस्तुत मासिक ई-पत्रिका फरवरी- 2012
NON PROFIT PUBLICATION .
2. FREE
E CIRCULAR
गुरुत्व ज्र्ोसतष पत्रिका फरवरी 2012
िंपादक सिंतन जोशी
गुरुत्व ज्र्ोसतष त्रवभाग
िंपका गुरुत्व कार्ाालर्
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन 91+9338213418, 91+9238328785,
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पत्रिका प्रस्तुसत सिंतन जोशी, स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
फोटो ग्राफफक्ि सिंतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हमारे मुख्र् िहर्ोगी स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक िोफ्टे क इस्डिर्ा सल)
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अत्र्ाधुसनक ज्र्ोसतष पद्धसत द्वारा
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GURUTVA KARYALAY
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3. अनुक्रम
मडि शत्रि त्रवशेष
मंि क्र्ा हं ? 6 मडि िंस्कार िाधना का आवश्र्क अंग हं ? 19
मडि सित्रद्ध का प्रभाव 8 जप माला का महत्व 21
बीि वषा की िाधना का मोल दो पैिे 9 माला िंस्कार 24
मडि एक पूणतः शुद्ध ध्वसन त्रवज्ञान हं ।
ा 11 इष्ट कृ पा प्रासि हे तु माला िर्न 26
मडि र्ोग का मानव पर प्रभाव 13 त्रवसभडन माला िे कामना पूसता 27
मडि जाप िे लाभ 15 माला मं 108 मनक ही क्र्ं होते हं ?
े 28
मडि सित्रद्ध 16 माला िे िंबंसधत शास्त्रोि मत 30
अडर् लेख
मडि दीक्षा क्र्ा हं ? 32 लक्ष्मी प्रासि हे तु करं रासश मंि का जप 50
त्रवसभडन दे वी की प्रिडनता क सलर्े गार्िी मंि
े 33 िंत कबीरजी को समली मंि दीक्षा 51
गणेश क िमत्कारी मंि
े 34 गुरुमंि क प्रभाव िे ईष्ट दशान
े 52
गणेश क कल्र्ाणकारी मंि
े 34 गुरु मडि क त्र्ाग िे दररद्रता आती हं
े 54
माँ दगाा क अिुक प्रभावी मंि
ु े 37 मंिजाप िे शास्त्रज्ञान 56
लक्ष्मी मंि 41 कृ ष्ण क त्रवसभडन मंि
े 57
सशव मंि 42 कृ ष्ण मंि 58
श्री राम क सिद्धमंि
े 43 श्री नवकार मंि (नमस्कार महामंि) 59
राम एवं हनुमान मंि 46 त्रवसभडन िमत्कारी जैन मंि 61
नवाणा मंि िे नवग्रह शांसत 47 कासलदाि को गुरु मडि िे प्रासि हुई सित्रद्ध 65
नवाणा मडि िाधना 49
हमारे उत्पाद
मंिसिद्ध स्फफटक श्रीर्ंि 9 मंि सिद्ध दलभ िामग्री
ु ा 35 मंिसिद्ध लक्ष्मी र्ंििूसि 67 पढा़ई िंबंसधत िमस्र्ा 78
मंि सिद्ध रूद्राक्ष 14 भाग्र् लक्ष्मी फदब्बी 46 मंि सिद्ध दै वी र्ंि िूसि 67 िवा रोगनाशक र्ंि/ 87
द्वादश महा र्ंि 15 शादी िंबंसधत िमस्र्ा 53 िवा कार्ा सित्रद्ध कवि 68 मंि सिद्ध कवि 89
दस्क्षणावसता शंख 20 पुरुषाकार शसनर्ंि 58 जैन धमाक त्रवसशष्ट र्ंि
े 69 YANTRA 90
मंि सिद्ध पडना गणेश 27 दगाा बीिा र्ंि
ु 65 अमोद्य महामृत्र्ुजर् कवि
ं 71 GEMS STONE 92
कनकधारा र्ंि 29 नवरत्न जफित श्री र्ंि 66 राशी रत्न एवं उपरत्न 71
घंटाकणा महावीर िवा सित्रद्ध महार्ंि 70 मंि सिद्ध िामग्री- 45, 60, 64, 80, 81, 82
स्थार्ी और अडर् लेख
िंपादकीर् 4 दै सनक शुभ एवं अशुभ िमर् ज्ञान तासलका 83
फरवरी मासिक रासश फल 72 फदन-रात क िौघफिर्े
े 84
फरवरी 2012 मासिक पंिांग 76 फदन-रात फक होरा - िूर्ोदर् िे िूर्ाास्त तक 85
फरवरी 2012 मासिक व्रत-पवा-त्र्ौहार 78 ग्रह िलन फरवरी-2012 86
फरवरी 2012 -त्रवशेष र्ोग 83 हमारा उद्दे श्र् 95
4. GURUTVA KARYALAY
िंपादकीर्
त्रप्रर् आस्त्मर्
बंध/ बफहन
ु
जर् गुरुदे व
ध्र्ानमूलं गुरुमूसतः पूजामूलम गुरुर पदम ्।
ा
मंिमूलं गुरुरवााक्र्ं मोक्षमूलं गुरुर कृ पा।।
भावाथा: गुरु की मूसता ध्र्ान का मूल कारण है , गुरु क िरण पूजा का मूल कारण हं , वाणी जगत क
े े
िमस्त मंिं का और गुरु की कृ पा मोक्ष प्रासि का मूल कारण हं ।
ज्र्ोसतष, र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद शास्त्रोि एवं आध्र्ास्त्मक त्रवषर् आजक आधुसनक र्ुग मं िंदेहास्पद
े
त्रवषर् बन गर्ा हं .....?, आजक र्ुग मं ही क्र्ं र्ह तो िफदर्ं िे र्ा िैकिो वषा पुरानी परं पराओं का पुनरावतान
े
माि हं ?, क्र्ोफक हजारो वषा पूवा भी ज्र्ोसतष, र्ंि-मंि-तंि को कवल अंधत्रवश्वाश मानने वालो की कोई कमी नही
े
थी, उिी प्रकार आजक वैज्ञासनक र्ुग मं भी इन त्रवषर्ं को अंधत्रवश्वाश मानने वालो की कोई कमी नहीं हं ।
े
जब फकिी व्र्त्रि को फकिी त्रवषर् वस्तु क बारे मं पूणा जानकारी नहीं होती तो व्र्त्रि वह कार्ा आधे
े
अधूरे मन िे करता हं और आधे-अधूरे मन िे फकर्े कार्ा मं िफलता नहीं समल िकती हं । मंि-तंि-र्ंि के
त्रवषर् मं भी कछ एिा ही हं , आधी-अधुरी जानकारी िे फकए गए मडि जप िे सित्रद्ध समलना नगण्र् हं ।
ु
अत्रवश्वािु एवं अज्ञानी व्र्त्रिर्ं क त्रवषर् मं भी कछ एिा ही होता हं । स्जि कारण उडहं िफलता समलती हं ।
े ु
फकिी भी मंि क बारे मं भी पूणा जानकारी होना आवश्र्क है , मंि कवल शब्द र्ा ध्वसन नहीं है , मंि जप मं
े े
िमर्, स्थान, फदशा, माला का भी त्रवसशष्ट स्थान हं । मंि-जप का शारीररक और मानसिक प्रभाव िाधक पर असत
तीव्र गसत िे होता हं ।
लेफकन तकशास्त्री एवं आधुसनक व्र्त्रिर्ं का मानना हं , की भारतीर् िंस्कृ सत मं पले-बढे व्र्त्रि को बिपन
ा
िे ही प्रार्ः िभी लोग एिा िुनते आ रहे हं फक हमारे भारत दे शमं, हमारे पौरास्णक शास्त्रं मं अनेकं
िमत्काररक शत्रिर्ं क रहस्र्मर् ज्ञान िे भरे पिे हं ।
े
उडहं र्ह बतार्ा जाता हं की हमारे ग्रंथो एवं शास्त्रं मं त्रवसभडन िमत्काररक र्ंि-मंि-तंि की अदभुत
े ु
शत्रिर्ं का वणान है । उन ग्रंथो मं त्रवत्रवध प्रकार की सित्रद्धर्ं को प्राि करने क रहस्र् छपे हं । स्जिक प्रर्ोग िे
े
व्र्त्रि जैिी िाहे वैिी सित्रद्ध र्ा शत्रि प्राि कर कर िकता हं और िुटफकर्ं मं अपनी मनोकामना की पूसता एवं
5. ग्रहं की शांसत कर िकता हं और उनकी िाल को बदल िकते हं ।
तकशास्त्री एवं इि त्रवषर् पर श्रद्धा नहीं रखने वाले लोगं का मानना हं , की र्फद इतना िब कछ हमारे पाि
ा ु
हं ?,
इतना ज्ञान हमारे पाि हं ?,
तब हमारे दे श को त्रवश्व का िबिे असधक त्रवकसित एवं िमृद्ध दे श होना िाफहर्े?
िबिे असधक शांसत त्रप्रर्दे श होना िाफहर्े?, िबिे असधक उपलस्ब्धर्ा कवल हमारे ही दे श मं होनी िाफहर्े?
े
क्र्ंफक हमारे पाि िभी प्रकार की शत्रिर्ाँ है ?
जो अडर् फकिी िंिकृ सत र्ा दे श क पाि नहीं हं ?
े
अत्रवश्वािु व्र्त्रि की मानसिकता ही कछ इि प्रकार िे सनसमात हो जाती हं की वह भारतीर् ज्र्ोसतष, र्डि-मडि-
ु
तडि इत्र्ाफद शास्त्रोि एवं आध्र्ास्त्मक त्रवषर् को हे र् दृत्रष्ट िे दे खता हं ।
आज क तथाकसथत िुसशस्क्षत और वैज्ञासनक द्रत्रष्ट रखने वाले व्र्त्रिर्ं का कथन हं - र्डि-मडि और तडि
े
र्ह िब अडधत्रवश्वार की बातं हं । इि तरह इन सिजं पर त्रवश्वाि करक त्रवसभडन षड्र्ंिं िे दे श का पतन होता
े
हं ।
र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद आध्र्ास्त्मक त्रवषर् पर आस्था रखने वाले लोग आलिी, मुफ्तखोर, दररद्र हो
जाते हं । र्फद र्डि-मडि-तडि इत्र्ाफद शास्त्रोत वस्णात बातं मं िच्िाई होती तो, दे श का इतना बुरा हाल नहीं
होता!, पुरातन काल मं र्ह िब ब्राह्मण-पंफितं ने अपनी आजीत्रवका क सलए व्र्वस्था कर रखी थी। लेफकन र्ह
े
वास्तत्रवकता नहीं हं । कछ िंद लोगो पुरातन काल मं एवं वतामान िमर् मं एिा कार्ा कर रहे हो र्ह िंभव हं ।
ु
लेफकन िभी त्रवद्वान एवं शास्त्रं क जानकार कवल अपनी आजीत्रवका की व्र्वस्था क सलए िमाज मं मडि-
े े े
तडि-र्डि का जाल फला रखा हं , एिा कतई िंभव नहीं हं , ना हुवा हं र्ा न होगा। क्र्ोफक इि िभी त्रवषर्ो मं
े
उसित मागादशान एवं ज्ञान की प्रासि िे सनस्ित लाभ की प्रासि होती हं । इि मं जराभी िंदेह नहीं हं ।
क्र्ोफक फहं द ू िंस्कृ सत का मूल धमा शास्त्र हं । हमारे िभी ग्रंथ एवं धमाशास्त्रं की रिना प्रामास्णक तथ्र् एवं
मानव जीवन क मूल सिद्धांतो क आधार पर हुई हं । इि सलए इि मं शंका स्पद कछ भी नहीं हं । इि फदशा मं
े े ु
मडि िे िंबंसधत आपक ज्ञान की वृत्रद्ध एवं जानकारी क उद्दे श्र् िे मडि िे िंबंसधत िामाडर् इि त्रवशेषांक को
े े
प्रस्तुत करने का प्रर्ाि फकर्ा गर्ा हं ।
नोट: र्ह अंक मं दीगई मडि िे िंबंसधत िारी जानकारी र्ा गृहस्थ व्र्त्रि को दै सनक जीवन मं उपर्ोगी हो इि
उद्दे श्र् िे दी गई हं । र्ंि मंि एवं तंि मं रुसि रखने वाले पाठक बंध/बहन एवं िाधको िे त्रवशेष अनुरोध हं की फकिी
ु
भी मडि का अनुष्ठान र्ा जप प्रारं भ करने िे पूवा िुर्ोगर् गुरु र्ा जानकार िे िलाह अवश्र् करले। क्र्ोफक त्रवद्वान
गुरुजनो एवं िाधको क सनजी अनुभव त्रवसभडन अनुष्ठा मं भेद होने पर पूजन त्रवसध एवं जप त्रवसध मं सभडनता िंभव
े
हं ।
सिंतन जोशी
.
6. 6 फरवरी 2012
मंि क्र्ा हं ?
सिंतन जोशी
मंि की परीभाषा: मडिो मननात ्
मंि उि ध्वसन को कहते है जो अक्षर(शब्द) एवं अथाातः मडत वणाणं का िमूह हं स्जिका बार-बार मनन
अक्षरं (शब्दं) क िमूह िे बनता है । िंपूणा ब्रह्माण्ि मं
े फकर्ा जार् और इस्च्छत कार्ा की पूसता होती हं ।
दो प्रकार फक ऊजाा िे व्र्ाि है , स्जिका हम अनुभव कर
िकते है , वह ध्वसन उजाा एवं प्रकाश उजाा है । एवं ब्रह्माण्ि मडि क त्रवषर् मं शास्त्रोि मत हं -
े
मं कछ एिी ऊजाा भी व्र्ाि है स्जिे ना हम दे ख िकते
ु
है नाही िुन िकते है नाहीं अनुभव कर िकते है । मननं त्रवश्व त्रवज्ञानं, िाण िंिार बडधनात ्।
आध्र्ास्त्मक शत्रि इनमं िे कोई भी एक प्रकार
र्िः करोसत िंसित्रद्धः मडि इत्र्ुच्र्ते तनः॥
की ऊजाा दिरी उजाा क िहर्ोग क त्रबना िफक्रर् नहीं
ू े े
(त्रपंगलार्त)
होती। मंि सिर् ध्वसनर्ाँ नहीं हं स्जडहं हम कानं िे
ा
िुनते िकते हं , ध्वसनर्ाँ तो माि मंिं का लौफकक स्वरुप अथाात: मडि जप िमस्त बडधनं को दर कर िाण दे ने
ू
भर हं स्जिे हम िुन िकते हं । वाला हं ।
ध्र्ान की उच्ितम अवस्था मं व्र्त्रि का
आध्र्ास्त्मक व्र्त्रित्व पूरी तरह िे ब्रह्माण्ि की अलौफकक
स्वर्ं सशवजी, माता पावाती जी कहते हं ।
शत्रिओ क िाथ मे एकाकार हो जाता है और त्रवसभडन
े
प्रकारी की शत्रिर्ां प्राि होने लगती हं । मनन-िाणनाच्िैव मद रुपस्र्ा ब बोधनात ्।
प्रािीन ऋत्रषर्ं ने इिे शब्द-ब्रह्म की िंज्ञा दी वह
मडि इत्र्ुच्र्ते िम्र्ग ्: मदसधष्ठानतः त्रप्रर्े॥
शब्द जो िाक्षात ् ईश्वर हं ! उिी िवाज्ञानी शब्द-ब्रह्म िे (रुद्रर्ामल)
एकाकार होकर व्र्त्रि को मनिाहा ज्ञान प्राि कर ने मे अथाात: मनन व िाण क द्वारा जो मेरे स्वरुप का ज्ञान
े
िमथा हो िकता हं । कराने मं िमथा हं , स्जिमे स्स्थरता एवं शत्रि हं वहीं
मडि हं ।
मंि का अथा ही है ः
लसलतािहस्त्रनाम मं मडि की पररभाषा स्पष्ट करते
मननात ् िार्ते इसत मंिः। हुए भाष्र्कार ने बतार्ा हं , फक धमा र्ुि अनुिडशान कर
अथाात: स्जिका मनन करने िे जो िाण करे , रक्षा करे उिे जो आत्मा मं स्फरण पैदा करने मं िमथा हं , तथा
ु
मंि कहते हं । स्जिमं िंिार को ऊिा उठाने की शत्रि हो, वहीं मडि हं ।
ं
मडि क बारे मं गोस्वामी तुलिीदाि जी का
े राम िररत मानि क अनुशार:
े
कथन हं , फक मडि क प्रभाव िे िाधन ब्रह्मा, त्रवष्णु एवं
े कसलर्ुग कवल नाम आधारा, जपत नर उतरे सिंधु
े
सशवजी त्रिदे वं को वश मं करने की शत्रि होती हं । पारा।
7. 7 फरवरी 2012
इि कलर्ुग मं भगवान का नाम ही एक माि आधार हं । असधकम ् जपं असधक फलम ्।
ं
जो लोग भगवान क नाम का जप करते हं , वे इि िंिार
े
िागर िे तर जाते हं । तुलिीदाि जी ने मंि जप की मफहमा मं कहा हं ।
मनु स्मृसत क अनुशार:
े
मंिजाप मम दृढ़ त्रबस्वािा।
मनु स्मृसत मं उल्लेख हं क "जप फकिी भी
े
पंिम भजन िो वेद प्रकािा।।
िफक्रर् पूजा िे दि गुना श्रेष्ठ हं , मन ही मन फकर्ा गर्ा
(श्रीरामिररत)
मडिो का जप शत गुना(िौ गुना) असधक फलदार्क
होता हं , मानसिक जप इििे भी िहस्त्र गुना फलदार्क
होता हं ।" श्रीरामकृ ष्ण परमहं ि कहते हं :
एकांत मं भगवडनाम जप करना र्ह िारे दोषं को
जप क्र्ा हं ?
सनकालने तथा गुणं का आवाहन करने का पत्रवि कार्ा
ज+प= जप
है |
ज = जडम का नाश,
प = पापं का नाश।
स्वामी सशवानंद कहते हं :
जप क त्रवषर् मं त्रवद्वानो का कथ हं -
े
इि िंिारिागर को पार करने क सलए
े
जो जडमं जडम क पापो का नाश करता हं उिे जप
े
ईश्वर का नाम िुरस्क्षत नौका क िमान है | अहं भाव को
े
कहते हं ।
नष्ट करने क सलए ईश्वर का नाम अिूक अस्त्र है |
े
उिे जप कहते हं , जो पापं का नाश करक जडम-
े
ु
मरण करक िक्कर िे छिा दे ।
े
जप परमात्मा क िाथ िीधा िंबंध जोिने की एक
े िबिे बिी सित्रद्ध हृदर् की शुत्रद्ध हं । (आिार्ा मनु)
कला का नाम हं ।
फकिी मंि का जप करने िे मनुष्र् क अनेक प्रकार
े
क पाप और ताप का नाश होने लगता हं । उिका
े
मंिजप अिीम मानवता क िाथ हृदर् को
े
हृदर् शुद्ध होने लगता हं । एकाकार कर दे ता हं ॥ (भगवान बुद्ध)
सनरं तर मंि जप करते-करते एक फदन िाधक क हृदर्
े
मं हृदतेश्वर का प्राकटर् भी हो जाता है |
मंि फदखने मं बहुत छोटा होता है लेफकन उिका
प्रभाव बहुत बिा होता है | हमारे पूवज ॠत्रष-
ा
इिीसलए कहा जाता है ः
मुसनर्ं ने मंि क बल िे ही तमाम ॠत्रद्धर्ाँ-
े
सित्रद्धर्ाँ व इतनी बिी सिरस्थार्ी ख्र्ासत प्राि की
जपात ् सित्रद्धः जपात ् सित्रद्धना िंशर्ः
है |
8. 8 फरवरी 2012
मडि सित्रद्ध का प्रभाव
त्रवजर् ठाकुर
फकिी मडि को सिद्ध करना कोई िरल कार्ा नहीं होने लगता हं । क्र्ोफक त्रविारं की धारा मं बहते िमर्
हं । मडि-र्डि-तडि को सिद्ध करने क सलए र्ोग्र् गुरु क
े े व्र्त्रि की उजाा त्रवसभडन फदशा एवं त्रवषर्ं मं बह रही
मागादशान की आवश्र्िा होती हं । त्रबना गुरु क मागादशान
े होती हं । स्जि कारण उिकी उजाा इकट्ठी नहीं हो पाती
और आसशवााद क कोइ भी व्र्त्रि अपनी इच्छा िे कोइ
े और व्र्था मं बह रही होती हं । जब तक व्र्त्रि क त्रविार
े
भी मडि सिद्ध करने मं िफल नहीं हो पाता। उिका इकठ्ठे नहीं हो पाते, त्रवसभडन फदशाओं मं बंटे होते हं , तब
मडि को सिद्ध करने का प्रर्ाि असधकतर अिफल होता उिकी उजाा त्रवसभडन त्रविारं की धारा मं त्रवभास्जत हो
हं । इि कारण लोगो का त्रवश्वार मडि-र्डि-तडि जैिे रही होती हं । जब मडिं का सनरं तर जप होना प्रारं भ होता
त्रवषर्ो िे कम होने लगता हं और इन त्रवषर्ो की हं , तब िाधक की त्रबखरी हुई उजाा एक ही फदशा मं
आलोिना होने लगती हं । मडिं पर पूणा श्रद्धा-आस्था प्रवाफहत होने लगती हं ।
एवं त्रवश्वाि होना असनवार्ा हं , इिक िाथ ही र्ोग्र् गुरु
े वैज्ञासनक द्रत्रष्ट कोण िे िमझे तो स्जि प्रकार िूर्ा
का मागादशन भी त्रवशेष रुप िे आवश्र्क होता हं । की त्रबखरी हुई फकरणं को कांि क लंि िे इकट्ठी
े
क्र्ोफक शास्त्रं मं भी वस्णात हं गुरु त्रबना ज्ञान न होई। करने पर उिमं िे आग उत्पडन की जा िकती हं । िूर्ा
जानकारो का र्हां तक कथन हं की त्रबना गुरु के की फकरणं मं आग और तपन तो सछपी होती हं , लेफकन
ग्रंथो एवं पुस्तको िे प्राि फकए गए मडिं का जाप भी िूर्ा की फकरण त्रबखरी हुई होने िे िहज रुप िे उििे
असधक फलदार्ी नहीं होते। आग उत्पडन नहीं हो पाती, जबकी िूर्ा की उन त्रबखरी
लेफकन कई त्रवद्वानो एवं हमारे स्वर्ं क अनुभवं िे हमने
े हुई फकरणं को को एकत्रित करने पर ज्र्ादा गमी होने िे
र्ह ज्ञात फकर्ा हं की ग्रंथो एवं पुस्तको िे प्राि मडिं िरलता िे आग उत्पडन हो जाती हं ।
का भी र्फद त्रवसधवत उच्िारण फकर्ा जाए तो सनस्ित ही उिी प्रकार मनुष्र् क सभतर भी त्रविारं की बहती
े
प्रभावशाली होते हं । क्र्ोफक मडि अपने आपमं एक धारा को एकत्रित करने िे आपकी उजाा िही फदशा मं बह
रहस्र्मर् त्रवज्ञान हं जो अपने आपमं पूणा रुप िे िभी ने लगती हं । ितत मडि जाप करने िे आपकी उजाा मं
प्रकार की सित्रद्धर्ां सलए होते हं । सनरं तर वृत्रद्ध होने लगेगी। िमर् के िाथ िाथ
कछ जानकार त्रवद्वानो क मतानुशार मडि कोई भी
ु े आिर्ाजनक घटनाएं घटने लगेगी।
हो, ॐ कार हो, नमः सशवार् हो, राम नाम हो, नमो आपक मुख िे सनकली हुई बाते िि होने लगेगी।
े
नारार्ण हो, र्ा अडर् धमो क मडि हो र्ा मडि आपने
े फकिी को कछ अच्छा-बुरा बोल फदर्ा तो उिक िाथ वहीं
ु े
स्वर्ं सनसमात फकर्ा हं, उि मडि का ितत मनन एवं घटनाएं होने लगेगी। क्र्ोफक आपकी शत्रिर्ां र्ा उजाा
ं
सिंतन िाधक की मानसिक एकाग्रता को बढाता हं । इतनी असधक मािा मं इकट्ठी हो गई होती हं फक आपके
मडि क जप िे िाधक की त्रबखरी हुई उजाा इकठ्ठी होने
े मुख िे सनकने वाले शब्द भी िाथाक होने लगते हं । मुख
लगती हं । क्र्ोफक मडि क सनरडतर जप िे मनुष्र् क
े े िे सनकले हुए शब्द ही क्र्ं आपक अंतः करण मं
े
सछपी हुई उजाा अनावश्र्क त्रविारं िे हटकर मडि मं उत्पडन होने वाले त्रविार भी आपक मुख िे सनकले शब्द
े
बहने लगते हं । मडि क असधक फदनो तक जाप एवं
े िे कम नहीं होते, इि सलए आपक सभतर उठने वाले
े
अभ्र्ाि िे िाधक क सित्त मं स्वतः ही मडि का जप
े त्रविार भी कभी-कभी ित्र् होने लगते हं ।
9. 9 फरवरी 2012
बीि वषा की िाधना का मोल दो पैिे
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
स्वामी रामकृ ष्ण परमहं ि क पाि फकिी व्र्त्रि ने आकर कहा की लोग कहते हं , आप परमहं ि हो, लेफकन
े
आपक पाि तो ऐिी कोई सित्रद्ध फदखाई नहीं पिती। मेरे गुरुजी हं , उनक पाि ऎिी सित्रद्ध हं की वे पानी पर िल िकते
े े
हं ।
स्वामी रामकृ ष्ण ने प्रश्न फकर्ा तुम्हारे गुरु ने फकतने वषं मं र्ह कला िीखी होगी?
उि व्र्त्रि ने कहा, कम िे कम बीि वषा उनको मडि िाधना मं लगे।
स्वामी रामकृ ष्ण कहने लगे, मं दो पैिा दे कर नदी पार हो जाता हूं।
रामकृ ष्ण ने कहने लगे की बिी मूढ़ता हं , की जो काम दो पैिे मं होता हो, उिे बीि वषा का जीवन नष्ट करक प्राि
े
फकर्ा! इि कला िे आस्खर पानी ही तो पार होते हं , तो पानी पार होने मं ऐिी बात क्र्ा हं ?
नाव िे पार होना हो तो दो पैिे लेती हं , न हो तो आदमी तैर कर पार हो िकता हं ।
लेफकन नदी पर िलकर जो आदमी पार होता हं , वह फकि प्रकार िे बीि वषा मेहनत कर िकता हं ।
इि सलए कहने का मूल तात्पर्ा र्ह हं की, स्जि कार्ा को करने मं कवल िंद धन रासश र्ा श्रम खिा होता हं, तो
े
उिक कसलए फकिी मडि-र्डि-तडि को सिद्ध करने का व्र्था मं िमर् और श्रम नष्ट करना कोरी मूढ़ता होगी।
े े
मंि सिद्ध स्फफटक श्री र्ंि
"श्री र्ंि" िबिे महत्वपूणा एवं शत्रिशाली र्ंि है । "श्री र्ंि" को र्ंि राज कहा जाता है क्र्ोफक र्ह अत्र्डत शुभ र्लदर्ी र्ंि
है । जो न कवल दिरे र्डिो िे असधक िे असधक लाभ दे ने मे िमथा है एवं िंिार क हर व्र्त्रि क सलए फार्दे मंद िात्रबत होता
े ू े े
है । पूणा प्राण-प्रसतत्रष्ठत एवं पूणा िैतडर् र्ुि "श्री र्ंि" स्जि व्र्त्रि क घर मे होता है उिक सलर्े "श्री र्ंि" अत्र्डत र्लदार्ी
े े
सिद्ध होता है उिक दशान माि िे अन-सगनत लाभ एवं िुख की प्रासि होसत है । "श्री र्ंि" मे िमाई अफद्रसतर् एवं अद्रश्र् शत्रि
े
मनुष्र् की िमस्त शुभ इच्छाओं को पूरा करने मे िमथा होसत है । स्जस्िे उिका जीवन िे हताशा और सनराशा दर होकर वह
ू
मनुष्र् अिर्लता िे िर्लता फक और सनरडतर गसत करने लगता है एवं उिे जीवन मे िमस्त भौसतक िुखो फक प्रासि होसत
है । "श्री र्ंि" मनुष्र् जीवन मं उत्पडन होने वाली िमस्र्ा-बाधा एवं नकारात्मक उजाा को दर कर िकारत्मक उजाा का
ू
सनमााण करने मे िमथा है । "श्री र्ंि" की स्थापन िे घर र्ा व्र्ापार क स्थान पर स्थात्रपत करने िे वास्तु दोष र् वास्तु िे
े
िम्बस्डधत परे शासन मे डर्ुनता आसत है व िुख-िमृत्रद्ध, शांसत एवं ऐश्वर्ा फक प्रसि होती है ।
गुरुत्व कार्ाालर् मे "श्री र्ंि" 12 ग्राम िे 2250 फकलोग्राम तक फक िाइज मे उप्लब्ध है
.
मूल्र्:- प्रसत ग्राम Rs. 8.20 िे Rs.28.00
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10. 10 फरवरी 2012
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11. 11 फरवरी 2012
मडि एक पूणतः शुद्ध ध्वसन त्रवज्ञान हं ।
ा
सिंतन जोशी
मडि क त्रवषर् मं वैफदक मत हं फक, मडि धमा-
े जानकारीर्ां ग्रंथो क रुप मं हमं प्रदान की हं , िमर् क
े े
शास्त्रं एवं ग्रंथो िे सल जानेवाली दे वी-दे वताओं की ऎिी िाथ-िाथ इन ग्रंथो एवं शास्त्रो की रिना मं अडर्
प्राथना, ऎिे शब्द अथवा वाक्र्ा (स्तोि) का स्वरुप हं त्रवद्वानो की खोज एवं अनुभवं क आधार पर सनरं तर वृत्रद्ध
े
स्जिि क जप र्ा मनन, र्ज्ञ इत्र्ाफद िे दे वी-दे वताओं
े होती रही हं ।
िरलता िे प्रिडन करक अपनी कामना पूणा की जा
े पुरातन काल मं फकिी शास्त्र र्ा ग्रंथ का ज्ञान
िकती हं । प्राि करने हे तु र्ोग्र् गुरु की खोज करनी पिती थी
त्रवद्वानो ने मंि क तीन प्रकार बताएं हं -
े उनक आश्रम मं गुरुिेवा करनी पिती थी और आश्रम मं
े
(१) ऋिा: र्ह छं द बद्ध र्ा पद्यात्मक कई मफहने-वषा अध्र्र्न करना पिता था लेफकन आजके
होता हं । इिे उच्ि स्वर मं उिाररत आधुसनक र्ुग मं हमं र्ह ज्ञान पुस्तको
बाबा-तांत्रिक इत्र्ाफद
फकर्ा जाता हं । एवं इं टरनेट क माध्र्म िे अल्प धन
े
छद्म वेश धारण करने रासश एवं अल्प श्रम िे प्राि होने लगा हं ।
(२) र्जु: र्ह गद्यात्मक होता हं । इिका
वाले भरपूर लाभ उठाते इिमं िाहे व्र्त्रि को र्ोग्र् गुरु
मंद स्वर मं उिाररत फकर्ा जाता हं ।
(३) िाम: र्ह पद्यात्मक होता हं । इिे
हं और िंद समनटो एवं की प्रासि न हो पाती हो लेफकन धमाशास्त्रं
गाकर उिाररत फकर्ा जाता हं । िंद घंटो मं व्र्त्रि की का उसित एवं उपर्ुि ज्ञान अवश्र् प्राि
िारी िमस्र्ाएं दर करने
ू हो िकता हं इिमं जरा भी िंिर् नहीं हं ।
ध्र्ान मूलं गुरोमूसता पूजामूलं गुरोपादम
ा क नाम पर मोटी धन
े क्र्ोफक की आज िुर्ोग्र् गुरु समलना
मडि मूलं गुरोवााक्र्म मोक्ष मूलं गुरोकृा पा। रासश ले लेते हं । र्ह बिी कफठन हो गर्ा हं जो व्र्त्रि को जीवन मं
अथाात: ध्र्ान का मूल गुरु मूसता हं , पूजा दभााग्र् पूणा घटना हं की अग्रस्त होने का मागा फदखा िक।
े
ु
का मूल गुरु क िरण हं , मडि का मूल
े गुरु िे ज्र्ादा गुरु का स्वांग रिाने
आज व्र्त्रि ईश्वर को
गुरु की वाणी हं और मोक्ष का मूल गुरु वाले असधक समल जाते हं , क्र्ोफक की
पूजने के बजाए उि
की कृ पा हं । आज व्र्त्रि की िोि इि कदर हो गई हं
ढंगी बाबा-तांत्रिको को
भारतीर् ग्रंथकार एवं शास्त्रकारो ने की उिे त्रबना पररश्रम और मेहनत िे फदन
पूजने लगे हं ...
मडि जप क अनेक रुप माने हं । मडि
े दगसन रात िौगुसन िफलता, धन, िुख,
ु
जप की िामानर् परीभाषा फकिी भी शब्द त्रवशेष का ऎश्वर्ा एवं िमस्त भौसतक िुख िाधन प्राि
बारं बार उच्िारण करना र्ा मनन करना होता हं । मडि करना िाहते हं , इि सलए बाबा-तांत्रिक इत्र्ाफद छद्म वेश
जप की त्रवसधर्ां सभडन-सभडन होती हं । क्र्ोफक शास्त्रकारं धारण करने वाले भरपूर लाभ उठाते हं और िंद समनटो
ने फकिी भी मडि त्रवशेष को एक दिरे िे सभडन मनुषर्
ू एवं िंद घंटो मं व्र्त्रि की िारी िमस्र्ाएं दर करने क
ू े
क इस्च्छत उद्दे श्र् की पूसता, िंबंसधत दे वी-दे वता, प्रभाव
े नाम पर मोटी धन रासश ले लेते हं । र्ह बिी दभााग्र् पूणा
ु
और अडर् पररस्स्थसतर्ं क अनुरुप फकर्ा हं ।
े घटना हं की आज व्र्त्रि ईश्वर को पूजने क बजाए उि
े
हमारे त्रवद्वान ऋत्रष-मुसनर्ं ने मडिं क िंपूणा
े ढंगी बाबा-तांत्रिको को पूजने लगे हं । क्र्ोफक बाबा-
प्रभावो का अवलोकन कर उिक पररणामो की त्रवस्तृत
े तांत्रिको का दावा िमत्कारी होता हं , जो िंद समनटो एवं
12. 12 फरवरी 2012
घंटो मं उनकी मनोकामना पूणा करने का दावा करते हं । द्वापर र्ुग क श्रीकृ ष्ण, कौरव-पांिवो क अस्स्तत्व को
े े
र्फद एिा हो पाना िंभव होता, तो दसनर्ा भर क िारे
ु े कसलर्ुग मं प्रामास्णक मान सलर्ा गर्ा हं । कवल भारते
े
मंफदर, मस्स्जत, गुरुद्वारे , ििा इत्र्ाफद कबक बंध हो गए
े मं ही भारतीर् िंस्कृ सत का प्रिार-प्रिार नहीं बलकी
होते। त्रवदे शो मं भी भारतीर् िंस्कृ सत का प्रिार होने क प्रमाण
े
एिा भी नहीं हं की हमारे र्हां अनेको िमत्कारी उप्लब्ध हुए हं ।
महापुरुष एवं गुरुजन अवतररत ही नहीं हुवे हं। हमारे श्रीमद भगवद गीता, रामार्ण एवं महाभारत जेिे
र्हां इसतहाि गवाह हं , फक हमारे र्हां अनेको िंत- प्रािीन ग्रडथं मं मडि िाधनाओं का उल्लेख समलता हं ,
महात्मा हो गए हं । जो कवल मनुष्र् माि क कल्र्ाण क
े े े स्जििे र्ह ज्ञात होता हं की पुरातन काल िे ही मडिं
सलए त्रबना फकिी स्वाथा र्ा धन लोभ क उडहं प्राि त्रवशेष
े की अलौफकक शत्रि िे िाधक को त्रवशेष प्रकार की सित्रद्ध
शत्रिर्ं का प्रर्ोग करते रहे हं और अपने भिो पर एवं शत्रिर्ां प्रासि होती थी। त्रवद्वान ऋषी-मुसनर्ं ने
सनरं तर कृ पा करुणा बरिाते रहे हं । अभीष्ट कार्ं क सित्रद्ध क सलए मंिजप क माध्र्म को
े े े
मडि जप की पौरास्णक परं परा प्रार्ः िभी धमा अत्र्ासधक फलदार्क माना हं । क्र्ोफक मडिं का जप एवं
एवं िंस्कृ सत मं रही हं । लेफकन फहडद ु धमा-ग्रंथं मं मंिो अनुष्ठान िे िाधक को त्रवशेष प्रकार की दै वी शस्क्त प्राि
की मफहमा त्रवशेष रुप िे समलती हं । इि सलए कछ
ु होती थी, स्जिक बल पर िाधक क सलए कोई भी कार्ा
े े
जानकार त्रवद्वानो का र्ह मत हं की त्रवदे शो मं भी फहडद ू अिंभव र्ा अपूणा नहीं होता था। िाधक िरलता िे
धमा-शास्त्र एवं ग्रंथो का अनुिरण र्ा आिरण िहज रुप अपने कार्ो को पूणा कर लेता था। िाधक अपने
िे फकर्ा जाता रहा हं । मनोवांसछत कार्ा उद्दे श्र् की पूसता हे तु र्ोग्र् मागादशान र्ा
धासमाक माडर्ता क अनुिार धमाग्रंथो मं वस्णात
े गुरु की दे खरे ख मं मडि जप करक अपने उद्दे श्र् मं
े
कथा एवं प्रिंग को ित्र् माना जाता हं । उडहं काल्पसनक सनस्ित िफलता प्राि कर लेते थे। स्जिका पररणाम हं
न मान कर वास्तत्रवक माना जाता हं । क्र्ोफक वौफदक की आजक भौसतक एवं आधुसनकर्ुग मं हमं सभडन-सभडन
े
काल क ऋत्रष-मुसन, िेता र्ुग क राम और रावण और
े े ज्ञानवधाक शास्त्र एवं ग्रंथ िरलता िे उप्लब्ध हो रहे हं ।
क्र्ा आपक बच्िे किंगती क सशकार हं ?
े ु े
क्र्ा आपक बच्िे आपका कहना नहीं मान रहे हं ?
े
क्र्ा आपक बच्िे घर मं अशांसत पैदा कर रहे हं ?
े
ु ु
घर पररवार मं शांसत एवं बच्िे को किंगती िे छिाने हे तु बच्िे क नाम िे गुरुत्व कार्ाालत द्वारा शास्त्रोि त्रवसध-
े
त्रवधान िे मंि सिद्ध प्राण-प्रसतत्रष्ठत पूणा िैतडर् र्ुि वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी बनवाले एवं उिे अपने
घर मं स्थात्रपत कर अल्प पूजा, त्रवसध-त्रवधान िे आप त्रवशेष लाभ प्राि कर िकते हं । र्फद आप तो आप मंि
सिद्ध वशीकरण कवि एवं एि.एन.फिब्बी बनवाना िाहते हं , तो िंपक इि कर िकते हं ।
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13. 13 फरवरी 2012
मडि र्ोग का मानव पर प्रभाव
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
जप का िामाडर् अथा हं फकिी मडि र्ा शब्दं को पर होता हं । मडि की ध्वसन तरं गं मं परम ित्र् स्वरुप
िक्रीर् गसत िे ितत मनन करना र्ा सिंतन करना होता िाक्षात परमात्मा ही त्रवद्यमान होते हं ।
हं । सनस्ित मडिं का लर् बद्ध रुप िे उच्िारण करना शास्त्रं मं मडि को िूक्ष्म शत्रिर्ं का पूंज बतार्ा
जाप कहा जाता हं । गर्ा हं । मडि िूक्ष्म लेफकन रहस्र्मर् तत्व होते हं । जो
श्री मद भगवत ् गीता मं िाक्षात भववान श्रीकृ ष्ण कई तरह क स्थूल एवं िूक्ष्म तत्वं का आदान प्रदान
े
ने कहा हं की भंट तथा अपाण मं िवाश्रष्ठ जाप रुप अपाण
े करते हं । मडि को परम ित्र् एवं िैतडर् होते हं । इि
मं हूं। सलए मडिं मं प्रकृ सत की कई शत्रिर्ं को वश मं करने
वैफदक मडि क जप िे फकिी को भी फकिी प्रकार
े का िामथ्र्ा ओता हं ।
की हासन नहीं हो तथा िकती मडिं क ितत जप िे
े क्र्ोफक, वाणी मनुष्र् का िबिे मूलभूत और
िीधे इष्ट दशान होता हं । िमत्कारी आत्रवष्कार हं । प्रकृ सत ने मनुष्र् क िाथ प्रार्ः
े
इि सलए त्रवद्वानो ने मडि जाप को िभी प्रकार िभी जीव एवं प्राणी को अपने िुख-दख व्र्ि करने क
ु े
की बसल र्ा भेट र्ा अपाण िे िवाश्रष्ठ माना हं । इि सलए
े सलए त्रवशेष प्रकार की ध्वसन प्रदान की हं । जीव ही क्र्ो
तो जाप की श्रेष्ठता करने हे तु ही भगवान श्रीकृ ष्ण ने जाप कदरत ने प्रकृ सत क जि तत्वो मं भी आकषाण-त्रवकषाण
ु े
को स्वर्ं क रुप मं ही अपाण माना हं ।
े क सनर्मानुिार कछ स्वर उत्पडन होते रहते हं ।
े ु
भारतीर् धमाशास्त्रो एवं ग्रंथं मं मडिं की रहस्र्मर् प्रासिन भारतीर् ग्रडथं (रामार्ण, महाभारत
शत्रिर्ं का त्रवस्तृत वणा फकर्ा गर्ा हं । आफद) मं उल्लेख समलता हं , की राजा/िम्राट र्ुद्ध मं
क्र्ोफक, कछ शब्द, अक्षरं क िमूह का सनरं तर
ु े त्रवजर्श्री की प्रासि क सलए त्रवशेष मडिो की सित्रद्ध द्वारा
े
जाप करते रहने िे िाधक की अडतर िेतना स्वतः ही आग्नेर् अस्त्र-शस्त्रं का प्रर्ोग करते थे।
जागृत होने लगती हं । फकिी मडि का सनरं तर जाप करने इि सलए िुर्ोग्र् गुरु क मागादशान मं उत्कृ ष्ट
े
िे मडिो की ध्वसन एवं तरं गो क उत्पडन होने की फक्रर्ा
े मडि जाप द्वारा िाधक प्रार्ः िभी प्रकार की सित्रद्धर्ं को
को मडि र्ोग कहा जाता हं । र्फद जाप मानसिक रुप िे प्राि करने मं िमथा हो िकता हं , इिमं जराभी िंदेह
फकर्ा जाए तो भी ध्वसन तरं ग अवश्र् उत्पडन होती हं । नहीं हं ।
फफर िाहे मडि कोई भी हो, ध्वसनर्ं क त्रवशेष िंर्ोजन
े इिक पीछे का मूल तक र्ा रहस्र् र्ह हं की
े ा
माि मं मडि स्वरुप परमात्मा की शत्रिर्ां िमाफहत होती मनुष्र् एवं अस्खल ब्रह्माण्ि एक ही शत्रि क स्वरुप हं ।
े
हं । मडि मं परम ित्र् सनफहत होने क कारण ही उच्ि कोफट
े
कछ मडि एक-दिरे िे इि प्रकार िे जुिे होते हं ,
ु ू क िाधक अपनी िमस्त शारीररक एवं बाह्य शत्रिर्ं को
े
फक स्जिका कोई िीधा अथा िामाडर् व्र्त्रि की िमझ के अपने वश मं करने मे िमथा हो जाते हं ।
बाहर होते हुए भी िंबंसधत दे वी-दे वता एवं ब्रह्माण्ि की मडिं की सभडनता मं शब्दो क िंर्ोजन की
े
शत्रिर्ं िे पररपूणा होते हं । सभडनता क अनुशार ध्वसन तरं गो िे शत्रिर्ं का प्रस्फटन
े ु
इिी कारण मडिं द्वारा उत्पडन होने वाली ध्वसन होता हं । स्जिक अद्दभुत प्रभाव िे िाधक क आिपार का
े े
तरं गं का िीधा प्रभाव मनुष्र् क मन एवं अतंर िेतना
े वार्ु मण्िल मडिं िे िंबंसधत शत्रिर्ं िे उत्पडन होने
14. 14 फरवरी 2012
वाले उजाा िे र्ुि हो जाता हं , और एक त्रवशेष प्रकार का ब्रह्माण्ि क आधार स्वरुप हं , मडि िमस्त ब्रह्माण्ि क
े े
फदव्र् आभामण्िल सनसमात हो जाता हं और िाधक इन आधार हं । क्र्ोफक, हमारे जीवन मं त्रविारं, िेतना का
शत्रिर्ं क त्रबि मं त्रवद्यमान हो जाता हं ।
े मूल आधार, प्रकृ सत की रहस्र्मर् शत्रि इत्र्ाफद का
िाधक क अविेतन मन पर मडिं का इतना
े भीतरी एवं बाहरी िंिालन औअ सनर्मन मडिं द्वारा
शत्रिशाली प्रभाव होता हं फक िाधक परमात्मा िे होती हं ।
िाक्षात्कार करने क सलए व्र्ाकल हो जाता हं ।
े ु जानकारो क मतानुशार इि अस्खल त्रवश्व र्ा
े
मडि परमात्मा का नाम, प्रतीक स्वरुप होता हं । ब्रह्मांि का अस्स्तत्व भी ध्वसन (मडि) िे हुवा हं और
इि सलए मडि ही िमस्त जगत क मूल कारक हं । मडि
े िंभवतः अंत भी मडि मं ही सनफहत हं ।
मंि सिद्ध रूद्राक्ष
Rate In Rate In
Rudraksh List Rudraksh List
Indian Rupee Indian Rupee
एकमुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2800, 5500 आठ मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 820,1250
एकमुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 750,1050, 1250, आठ मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 1900
दो मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 30,50,75 नौ मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 910,1250
दो मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, नौ मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2050
दो मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 450,1250 दि मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 1050,1250
तीन मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 30,50,75, दि मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2100
तीन मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, ग्र्ारह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 1250,
तीन मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 450,1250, ग्र्ारह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2750,
िार मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 25,55,75, बारह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 1900,
िार मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, बारह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 2750,
पंि मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 25,55, तेरह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 3500, 4500,
पंि मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 225, 550, तेरह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 6400,
छह मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 25,55,75, िौदह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 10500
छह मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 50,100, िौदह मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 14500
िात मुखी रूद्राक्ष (हररद्रार, रामेश्वर) 75, 155, गौरीशंकर रूद्राक्ष 1450
िात मुखी रूद्राक्ष (नेपाल) 225, 450, गणेश रुद्राक्ष (नेपाल) 550
िात मुखी रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 1250 गणेश रूद्राक्ष (इडिोनेसशर्ा) 750
रुद्राक्ष क त्रवषर् मं असधक जानकारी हे तु िंपक करं ।
े ा
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