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गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका                       ससतम्फय- 2012




                           NON PROFIT PUBLICATION
FREE
        E CIRCULAR
गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका                       ई- जन्भ ऩत्रिका
ससतम्फय 2012

                                    अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया
सॊऩादक
सचॊतन जोशी
सॊऩका
गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग               उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी क साथ
                                                              े
गुरुत्व कामाारम
92/3. BANK COLONY,
BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018,
                                           १००+ ऩेज भं प्रस्तुत
(ORISSA) INDIA

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91+9338213418,
91+9238328785,                            E HOROSCOPE
ईभेर
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ऩत्रिका प्रस्तुसत
                                         Excellent Prediction
सचॊतन जोशी,                                  100+ Pages
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी
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                                         फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/-
सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा
हभाये भुख्म सहमोगी                           GURUTVA KARYALAY
स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक
                                        BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
                                       Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
सोफ्टे क इस्न्डमा सर)                     Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in,
                                                gurutva.karyalay@gmail.com
बायतीम ऩयॊ ऩया भूर रुऩ से त्रवसबन्न धासभाक आस्थ औय त्रवद्वास ऩय आधारयत है । प्रद्लावरी
                           से बत्रवष्म ऻात कयने की ऩौयास्णक प्रथा ऩुयातन कार से ही चरी आयही हं । मफह कायण हं
                           की अनेको त्रवद्रानो अऩनी खोज एवॊ अनुबव क आधाय ऩय त्रवसबन्न प्रद्लावरीमं …4
                                                                   े

                           बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने क ऩूवा बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी
                                                                      े
                          सरमे मे फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ
                          प्रत्मक शुब कामा मा अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का …6
                                                             े

                                            बत्रवष्म ऻात प्रद्लावरी त्रवशेष भं ऩढे ़
                                      त्रवशेष भं                                  प्रद्लावरी त्रवशेष 
 सवा कामा ससत्रद्ध        श्री गणेश सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने?
                                                     ै                         6    श्री याभ शराका प्रद्लावरी                    40
                          गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता                           10   गौतभ कवरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी)
                                                                                          े                                      42
    कवच …37               शुबकामं भं सवाप्रथभ गणेशजी ..                        11   चंतीसा मन्ि द्राया बत्रवष्म ऻान प्रद्लावरी   48
                          सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन                         12   बत्रवष्म ऻान क सरए यभर प्रद्लावरी
                                                                                                  े                              62
                          गणेश ऩूजन भं कोन से पर चढाए।
                                               ू                               18   श्री हनुभान प्रद्लावरी                       64
                          शाऩक कायण गणऩसत ऩूजन भं तुरसी..
                              े                                                19   श्री कृ ष्ण शराका प्रद्लावरी                 66
                          गणेश क चभत्कायी भॊि
                                े                                              20   ऩमूषण का भहत्व
                                                                                       ा                                         68
गणेश रक्ष्भी मॊि…91       गणेश ऩूजन से ग्रहऩीडा दय होती हं ।
                                                 ू                             23         हभाये उत्ऩाद 
                          गणेश चतुथॉ ऩय चॊद्र दशान सनषेध क्मं                  24   भॊिससद्ध स्पफटक श्री मॊि                     21
                          गणेश चतुथॉ ज्मोसतष की नजय भं                         26   बाग्म रक्ष्भी फदब्फी                         22
                          गणेशजी ने धायण फकमा ज्मोसतषी रुऩ                     27   द्रादश भहा मॊि                               27
                          वषा की त्रवसबन्न चतुथॉ व्रत का भहत्व                 29   सवा कामा ससत्रद्ध कवच                        37
नवयत्न जफित श्रीमॊि..72
                          भनोवाॊसछत परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद …      35   सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका                     46
                          गणेश ऩूजन से वास्तु दोष सनवायण                       36   श्री हनुभान मॊि                              73
  ऩुरुषाकाय शसन                                                                     भॊिससद्ध रक्ष्भी मॊिसूसच
                          गणेश वाहन भूषक कसे फना
                                          े                                    38                                                74
      मॊि…71              ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत .. & सॊकद्शहय चतुथॉ व्रत ..   39   भॊि ससद्ध दै वी मॊि सूसच                     74
                          गणेश जी की कथा                                       61   भॊि ससद्ध रूद्राऺ                            76

                             स्थामी औय अन्म रेख                               भॊि ससद्ध दरब साभग्री
                                                                                               ु ा                               76
                          सॊऩादकीम                                             4    श्रीकृ ष्ण फीसा मॊिकवच /                     77
                          भाससक यासश पर                                        82   याभ यऺा मॊि                                  78
    यासश यत्न…75          ससतम्फय 2102 भाससक ऩॊचाॊग                            86   जैन धभाक त्रवसशद्श मॊि
                                                                                            े                                    79
                          ससतम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय                  88   घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि           80
                          ससतम्फय 2102 -त्रवशेष मोग                            94   अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच                      81
                          दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका                   94   याशी यत्न एवॊ उऩयत्न                         81
                          फदन-यात क चौघफडमे
                                   े                                           95   शसन ऩीिा सनवायक                              87
 भॊि ससद्ध रूद्राऺ …79
                          फदन-यात फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक              96   सवा योगनाशक मॊि/                             98
                          ग्रह चरन ससतम्फय -2012                                    भॊि ससद्ध कवच
अभोद्य भहाभृत्मुजम
                ॊ                                                              97                                                100
                          सूचना                                                105 YANTRA LIST                                   101
    कवच …81               हभाया उद्दे श्म                                      107 GEM STONE                                     103
त्रप्रम आस्त्भम

          फॊध/ फफहन
             ु

                      जम गुरुदे व
       बायतीम ऩयॊ ऩया भूर रुऩ से त्रवसबन्न धासभाक आस्थ औय त्रवद्वास ऩय आधारयत है । प्रद्लावरी से बत्रवष्म ऻात
कयने की ऩौयास्णक प्रथा ऩुयातन कार से ही चरी आयही हं । मफह कायण हं की अनेको त्रवद्रानो अऩनी खोज एवॊ अनुबव
क आधाय ऩय त्रवसबन्न प्रद्लावरीमं की यचना की हं । स्जसक भाध्मभ से अऩने इद्श का ध्मान कयक, अऩने असबद्श
 े                                                    े                                े
प्रद्लनं का सॊबत्रवत प्रद्लावरी से उत्तय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हं ।   फतामा जाता हं की सैकडो़ वषा ऩूवा हभाये त्रवद्रानो ने
अऩने ऻान फर एवॊ खोज से सनधाारयत शब्धं एवॊ अॊको क भाध्म भं प्रद्लावरी की सॊयचना की, इस प्रद्लावरी क भाध्मभ
                                                े                                                 े
से व्मत्रि अऩने असतत की शुब-अशुब घटनाओॊ क यहस्म को सयरता से ऻात कय सकता हं ।
                                         े
       प्रद्लावरी से बत्रवष्म ऻात कयना सफसे सयर त्रवसध हं , क्मोकी, इस भं नाहीॊ कोई रॊफी चौिी गणनाएॊ हं नाही
कोई जफटर प्रणारी हं । फस अऩने प्रद्ल को स्भयण कयते हुवे सनधाारयत प्रद्लावरी ऩय शराका मा अऩनी अनासभका
अॊगुसर धुभाकय आसानी से ऻात फकमा जा सकता हं ।
       कछ जानकायं का भानना हं की प्रद्लावरी क भाध्मभ से एकदभ स्स्टक बत्रवष्मवाणी मा अऩने प्रद्लं का हर
        ु                                    े
प्राद्ऱ हो जामे मह सॊबव नहीॊ हं , क्मोफक प्रद्लावरी भं कवर उसे प्रस्तुत कयने वारे व्मत्रि क सनधाारयत उत्तय फह होते हं ,
                                                        े                                  े
जो की भनुष्म की वास्तत्रवक सभस्माओॊ का सॊऩूणा हर फता ऩामे मह सॊबव नहीॊ हं , रेफकन कछ हद तक इस प्रद्लावरी
                                                                                   ु
का उऩमोग त्रफना कोई फिा जोस्खभ उठामे अऩने भागादशान हे तु अवश्म फकमा जा सकता हं ।


ऩाठकं क भागादशान क सरमे प्रद्लावरी त्रवशेषाॊक फक प्रस्तुसत फक गई हं ।
       े          े
सबी ऩाठको क भागादशान मा ऻानवधान क सरए प्रद्लावरी से सॊफॊसधत त्रवसबन्न उऩमोगी जानकायी इस अॊक भं त्रवसबन्न
           े                     े
ग्रॊथो एवॊ सनजी अनुबवो क आधाय ऩय सॊकसरत की गई हं । जानकाय एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मफद प्रद्लावरी
                        े
से सॊफॊसधत त्रवषम भं सभम, स्थान, वस्तु, स्स्थसत इत्माफद क सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग
                                                         े
भं, त्रप्रॊफटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म जानकाय मा त्रवद्रान से सराह
त्रवभशा कय रे। क्मोफक प्रद्लावरी की त्रवसबन्न प्रणारी भं अॊतय होने क कायण एवॊ त्रवद्रानो क सनजी अनुबव व त्रवसबन्न
                                                                    े                     े
ग्रॊथो भं वस्णात प्रद्लावरी से सॊफॊसधत जानकायीमं भं एवॊ त्रवद्रानो क स्वमॊ क अनुबवो भं सबन्नता होने क कायण
                                                                    े       े                        े
प्रद्लावरी से सॊफॊसधत परकथन सबन्नता सॊबव हं ।

सबी जैन फॊधु/फहनो को ऩमुषण भहाऩवा की ढे यसायी शुबकाभनाएॊ औय
                        ा
गुरुत्व कामाारम ऩरयवाय की औय से…

                                    ॥सभच्छाभी दक्कड्भ ्॥
                                               ु

                                                                                                     सचॊतन जोशी
5                                   ससतम्फय 2012




      *****         बत्रवष्म ऻात प्रद्लावरी से सॊफॊसधत त्रवशेष सूचना*****
 ऩत्रिका भं प्रकासशत प्रद्लावरी से सम्फस्न्धत सबी जानकायीमाॊ गुरुत्व कामाारम क असधकायं क साथ ही
                                                                               े         े
   आयस्ऺत हं ।
 ऩौयास्णक ग्रॊथो ऩय अत्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि प्रद्लावरी क त्रवषम को भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं ।
                                                              े
 प्रद्लावरी का त्रवषम आस्था एवॊ त्रवद्वास ऩय आधारयत होने क कायण इस अॊकभं वस्णात सबी जानकायीमा
                                                           े
   बायसतम ग्रॊथो से प्रेरयत होकय सरखी गई हं ।
 प्रद्लावरी से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जन्भेदायी कामाारम मा
   सॊऩादक फक नहीॊ हं ।
 प्रद्लावरी भं वस्णात सॊफॊसधत बत्रवष्मवाणी फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक
   फक नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी क फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक
                                                                े
   फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।
 प्रद्लावरी से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी
   बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम उनका स्वमॊ का होगा।
 प्रद्लावरी से सॊफॊसधत ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।
 प्रद्लावरी से सॊफॊसधत रेख प्राभास्णक ग्रॊथो, हभाये वषो क अनुबव एव अनुशॊधान क आधाय ऩय फदमे गमे हं ।
                                                          े                   े
 हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रद्लावरी ऩय त्रवद्वास फकए जाने ऩय उसक राब मा नुक्शान की स्जन्भेदायी
                                                                           े
   नफहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी प्रद्लावरी ऩय त्रवद्वास कयने वारे मा उसका प्रमोग कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक
   होगी।
 क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं क स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा
                                                               े
   ऩूसता हे तु प्रद्लावरी का प्रमोग कताा हं अथवा प्रद्लावरी क उऩमोग कयने भे िुफट यखता हं मा उससे िुफट होती
                                                             े
   हं तो इस कायण से प्रसतकर अथवा त्रवऩरयत ऩरयणाभ सभरने बी सॊबव हं ।
                          ू
 प्रद्लावरी से सॊफॊसधत जानकायी को भानकय उससे प्राद्ऱ होने वारे राब, हानी फक स्जन्भेदायी कामाारम मा
   सॊऩादक फक नहीॊ हं ।
 हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे प्रद्लावरी ऩय आधारयत रेखं भं वस्णात जानकायी को हभने कई फाय स्वमॊ ऩय एवॊ
   अन्म हभाये फॊधगण ने बी अऩने नीजी जीवन भं अनुबव फकमा हं । स्जस्से हभ कई फाय प्रद्लावरी क आधाय
                 ु                                                                        े
   ऩय स्स्टक उत्तय की प्रासद्ऱ हुई हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩक कय सकते हं ।
                                                                             ा

                     (सबी त्रववादो कसरमे कवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा।
                                    े     े
6                                        ससतम्फय 2012




                         श्री गणेश सबी दे वताओॊ भं सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने?
                                                                    ै
                                                                                                              सचॊतन जोशी

             बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने क ऩूवा
                                                        े           कथा इस प्रकाय हं : तीनो रोक भं सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम
बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी सरमे मे                   हो?, इस फात को रेकय सभस्त दे वताओॊ भं त्रववाद खडा हो
फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री                 गमा। जफ इस त्रववादने फडा रुऩ धायण कय सरमे तफ
गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ प्रत्मक शुब कामा मा                    सबी दे वता अऩने-अऩने फर फुत्रद्धअ क फर ऩय दावे
                                                                                                       े
अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का उच्चायण
               े                                                    प्रस्तुत कयने रगे। कोई ऩयीणाभ नहीॊ आता दे ख सफ
फकमा जाता हं । गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने वारा               दे वताओॊ ने सनणाम सरमा फक चरकय बगवान श्री त्रवष्णु
भाना गमा है । सायी ससत्रद्धमाॉ गणेश भं वास कयती हं ।                को सनणाामक फना कय उनसे पसरा कयवामा जाम।
                                                                                            ै

             इसक ऩीछे भुख्म कायण हं की बगवान श्री गणेश
                े                                                          सबी दे व गण त्रवष्णु रोक भे उऩस्स्थत हो गमे,
सभस्त त्रवघ्ननं को टारने वारे हं , दमा एवॊ                                          बगवान त्रवष्णु ने इस भुद्दे को गॊबीय होते
कृ ऩा क असत सुॊदय भहासागय हं ,
       े                                                                                    दे ख श्री त्रवष्णु ने सबी दे वताओॊ
एवॊ तीनो रोक क कल्माण
              े                                                                                  को      अऩने          साथ         रेकय
हे तु      बगवान          गणऩसत                                                                       सशवरोक भं ऩहुच गमे।
सफ प्रकाय से मोग्म हं ।                                                                                सशवजी ने कहा इसका
सभस्त त्रवघ्नन फाधाओॊ                                                                                  सही         सनदान     सृत्रद्शकताा
को दय कयने वारे गणेश
    ू                                                                                                  ब्रह्माजी      फह        फताएॊगे।
त्रवनामक हं । गणेशजी                                                                                   सशवजी श्री त्रवष्णु एवॊ
त्रवद्या-फुत्रद्ध   के    अथाह                                                                        अन्म दे वताओॊ क साथ
                                                                                                                     े
सागय एवॊ त्रवधाता हं ।                                                                             सभरकय            ब्रह्मरोक      ऩहुचं

             बगवान गणेश को सवा                                                                  औय ब्रह्माजी को सायी फाते

प्रथभ ऩूजे जाने क त्रवषम भं कछ
                 े           ु                                                           त्रवस्ताय से फताकय उनसे पसरा
                                                                                                                  ै

त्रवशेष रोक कथा प्रचसरत हं । इन त्रवशेष एवॊ रोकत्रप्रम                        कयने का अनुयोध फकमा। ब्रह्माजी ने कहा प्रथभ

कथाओॊ का वणान महा कय यहं हं ।                                       ऩूजनीम वहीॊ होगा जो जो ऩूये ब्रह्माण्ड क तीन चक्कय
                                                                                                            े
                                                                    रगाकय सवाप्रथभ रौटे गा।
             इस क सॊदबा भं एक कथा है फक भहत्रषा वेद व्मास ने
                 े
भहाबायत को से फोरकय सरखवामा था, स्जसे स्वमॊ गणेशजी                         सभस्त दे वता ब्रह्माण्ड का चक्कय रगाने क सरए अऩने
                                                                                                                   े

ने सरखा था। अन्म कोई बी इस ग्रॊथ को तीव्रता से सरखने भं             अऩने वाहनं ऩय सवाय होकय सनकर ऩिे । रेफकन, गणेशजी

सभथा नहीॊ था।                                                       का वाहन भूषक था। बरा भूषक ऩय सवाय हो गणेश कसे
                                                                                                               ै
                                                                    ब्रह्माण्ड क तीन चक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटकय सपर
                                                                                े
                                                                    होते। रेफकन गणऩसत ऩयभ त्रवद्या-फुत्रद्धभान एवॊ चतुय थे।
सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो?
7                                        ससतम्फय 2012



            गणऩसत ने अऩने वाहन भूषक ऩय सवाय हो कय अऩने                ऩूजा कयं गे, फकन्तु तुम्हायी ऩूजा नहीॊ कयं गे, उन्हं तुभ
भाता-त्रऩत फक तीन प्रदस्ऺणा ऩूयी की औय जा ऩहुॉचे सनणाामक              त्रवघ्ननं द्राया फाधा ऩहुॉचाओगे।
ब्रह्माजी क ऩास। ब्रह्माजी ने जफ ऩूछा फक वे क्मं नहीॊ गए
           े                                                          जन्भ की कथा बी फिी योचक है ।
ब्रह्माण्ड क चक्कय ऩूये कयने, तो गजाननजी ने जवाफ फदमा फक
            े
                                                                      गणेशजी की ऩौयास्णक कथा
भाता-त्रऩत भं तीनं रोक, सभस्त ब्रह्माण्ड, सभस्त तीथा,
                                                                                                  बगवान    सशव     फक     अन
सभस्त दे व औय सभस्त ऩुण्म त्रवद्यभान
                                                                                          उऩस्स्थसत भं भाता ऩावाती ने त्रवचाय
होते हं ।
                                                                                          फकमा फक उनका स्वमॊ का एक सेवक
            अत् जफ भंने अऩने भाता-त्रऩत                                                   होना चाफहमे, जो ऩयभ शुब, कामाकशर
                                                                                                                        ु
की ऩरयक्रभा ऩूयी कय री, तो इसका                                                           तथा उनकी आऻा का सतत ऩारन
तात्ऩमा है फक भंने ऩूये ब्रह्माण्ड की                                                     कयने भं कबी त्रवचसरत न हो। इस
प्रदस्ऺणा ऩूयी कय री। उनकी मह                                                             प्रकाय सोचकय भाता ऩावाती नं अऩने
तकसॊगत मुत्रि स्वीकाय कय री गई औय
  ा                                                                                       भॊगरभम ऩावनतभ शयीय क भैर से
                                                                                                              े
इस तयह वे सबी रोक भं सवाभान्म                                                             अऩनी भामा शत्रि से फार गणेश को
'सवाप्रथभ ऩूज्म' भाने गए।                  भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश                           उत्ऩन्न फकमा।
            सरॊगऩुयाण क अनुसाय (105।
                       े                                                                          एक सभम जफ भाता ऩावाती
                                           बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के
15-27) – एक फाय असुयं से िस्त              कायक ग्रह फुध क असधऩसत दे वता
                                                          े
                                                                                          भानसयोवय भं स्नान कय यही थी तफ
दे वतागणं द्राया की गई प्राथाना से         हं । ऩन्ना गणेश फुध क सकायात्भक
                                                                े                         उन्हंने स्नान स्थर ऩय कोई आ न
बगवान         सशव   ने   सुय-सभुदाम   को   प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक               सक इस हे तु अऩनी भामा से गणेश को
                                                                                            े
असबद्श वय दे कय आद्वस्त फकमा। कछ
                               ु           प्रबाव को कभ           कयता हं ।. ऩन्न         जन्भ दे कय 'फार गणेश' को ऩहया दे ने
ही सभम क ऩद्ळात तीनो रोक क
        े                 े                गणेश क प्रबाव से व्माऩाय औय धन
                                                 े                                        क सरए सनमुि कय फदमा।
                                                                                           े
दे वासधदे व भहादे व बगवान सशव का           भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्चो फक             इसी दौयान बगवान सशव उधय
भाता ऩावाती क सम्भुख ऩयब्रह्म स्वरूऩ
             े                             ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं               आ जाते हं । गणेशजी सशवजी को योक
                                           ऩन्ना गणेश इस क प्रबाव से फच्चे
                                                          े
            गणेश जी का प्राकट्म हुआ।                                                      कय कहते हं फक आऩ उधय नहीॊ जा
                                           फक     फुत्रद्ध   कशाग्र
                                                              ू        होकय     उसके
सवात्रवघ्ननेश भोदक त्रप्रम गणऩसतजी का                                                     सकते हं । मह सुनकय बगवान सशव
                                           आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती
जातकभााफद सॊस्काय क ऩद्ळात ् बगवान
                   े                                                                      क्रोसधत हो जाते हं औय गणेश जी को
                                           हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं
सशव ने अऩने ऩुि को उसका कताव्म                                                            यास्ते से हटने का कहते हं फकतु गणेश
                                                                                                                      ॊ
                                           भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत
सभझाते हुए आशीवााद फदमा फक जो              हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं ,
                                                                                          जी अिे यहते हं तफ दोनं भं मुद्ध हो

तुम्हायी ऩूजा फकमे त्रफना ऩूजा ऩाठ,        व्मत्रि क शायीय क तॊि को सनमॊत्रित
                                                    े       े                             जाता है । मुद्ध क दौयान क्रोसधत होकय
                                                                                                           े

अनुद्षान      इत्माफद    शुब   कभं    का   कयती       हं ।   स्जगय,    पपिे , जीब,
                                                                        े                 सशवजी फार गणेश का ससय धि से

अनुद्षान      कये गा, उसका     भॊगर   बी   भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग          अरग कय दे ते हं । सशव क इस कृ त्म
                                                                                                                 े

अभॊगर भं ऩरयणत हो जामेगा। जो               भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय                 का जफ ऩावाती को ऩता चरता है तो वे
                                           भयगज क फने होते हं ।
                                                 े                                        त्रवराऩ औय क्रोध से प्ररम का सृजन
रोग पर की काभना से ब्रह्मा, त्रवष्णु,
इन्द्र अथवा अन्म दे वताओॊ की बी                   Rs.550 से Rs.8200 तक                    कयते हुए कहती है फक तुभने भेये ऩुि
                                                                                          को भाय डारा।
8                                       ससतम्फय 2012



       ऩावातीजी क द्ख को दे खकय सशवजी ने उऩस्स्थत
                 े ु                                           नहीॊ फकमा। ऩयन्तु भाता ऩावाती क फाय-फाय कहने ऩय
                                                                                              े
गणको आदे श दे ते हुवे कहा सफसे ऩहरा जीव सभरे, उसका             शसनदे व नं जेसे फह अऩनी द्रत्रद्श सशशु फारक उऩय ऩडी,
                                                                                                          े
ससय काटकय इस फारक क धि ऩय रगा दो, तो मह फारक
                   े                                           उसी ऺण       फारक गणेश का गदा न धि से अरग हो
जीत्रवत हो उठे गा। सेवको को सफसे ऩहरे हाथी का एक फच्चा         गमा। भाता ऩावाती क त्रवरऩ कयने ऩय बगवान ् त्रवष्णु
                                                                                 े
सभरा। उन्हंने उसका ससय राकय फारक क धि ऩय रगा फदमा,
                                  े                            ऩुष्ऩबद्रा नदी क अयण्म से एक गजसशशु का भस्तक
                                                                               े
फारक जीत्रवत हो उठा।                                           काटकय रामे औय गणेशजी क भस्तक ऩय रगा फदमा।
                                                                                     े
       उस अवसय ऩय तीनो दे वताओॊ ने उन्हं सबी रोक               गजभुख रगे होने क कायण कोई गणेश फक उऩेऺा न
                                                                               े
भं अग्रऩूज्मता का वय प्रदान फकमा औय उन्हं सवा अध्मऺ            कये इस सरमे बगवान त्रवष्णु अन्म दे वताओॊ क साथ भं
                                                                                                         े
ऩद ऩय त्रवयाजभान फकमा। स्कद ऩुयाण
                          ॊ                                    तम फकम फक गणेश सबी भाॊगरीक कामो भं अग्रणीम
ब्रह्मवैवताऩुयाण क अनुसाय (गणऩसतखण्ड) –
                  े                                            ऩूजे जामंगे एवॊ उनक ऩूजन क त्रफना कोई बी दे वता ऩूजा
                                                                                  े      े
       सशव-ऩावाती क त्रववाह होने क फाद उनकी कोई
                   े              े                            ग्रहण नहीॊ कयं गे।
सॊतान नहीॊ हुई, तो सशवजी ने ऩावातीजी से बगवान                         इस ऩय बगवान ् त्रवष्णु ने श्रेद्षतभ उऩहायं से
त्रवष्णु क शुबपरप्रद ‘ऩुण्मक’ व्रत कयने को कहा ऩावाती
          े                                                    बगवान गजानन फक ऩूजा फक औय वयदान फदमा फक
क ‘ऩुण्मक’ व्रत से बगवान त्रवष्णु ने प्रसन्न हो कय
 े
                                                                             सवााग्रे तव ऩूजा च भमा दत्ता सुयोत्तभ।
ऩावातीजी को ऩुि प्रासद्ऱ का वयदान फदमा। ‘ऩुण्मक’ व्रत के
प्रबाव से ऩावातीजी को एक ऩुि उत्ऩन्न हुवा।                                सवाऩूज्मद्ळ मोगीन्द्रो बव वत्सेत्मुवाच तभ ्।।

       ऩुि जन्भ फक फात सुन कय सबी दे व, ऋत्रष,                                                       (गणऩसतखॊ. 13। 2)

गॊधवा आफद सफ गण फारक क दशान हे तु ऩधाये । इन दे व
                      े                                        बावाथा: ‘सुयश्रेद्ष! भंने सफसे ऩहरे तुम्हायी ऩूजा फक है ,
गणो भं शसन भहायाज बी उऩस्स्थत हुवे। फकन्तु शसनदे व             अत् वत्स! तुभ सवाऩूज्म तथा मोगीन्द्र हो जाओ।’
ने ऩत्नी द्राया फदमे गमे शाऩ क कायण फारक का दशान
                              े                                ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं ही एक अन्म प्रसॊगान्तगात ऩुिवत्सरा


                                                    दगाा फीसा मॊि
                                                     ु
  शास्त्रोि भत क अनुशाय दगाा फीसा मॊि दबााग्म को दय कय व्मत्रि क सोमे हुवे बाग्म को जगाने वारा भाना
                े        ु             ु          ू             े
  गमा हं । दगाा फीसा मॊि द्राया व्मत्रि को जीवन भं धन से सॊफॊसधत सॊस्माओॊ भं राब प्राद्ऱ होता हं । जो व्मत्रि
            ु
  आसथाक सभस्मासे ऩये शान हं, वह व्मत्रि मफद नवयािं भं प्राण प्रसतत्रद्षत फकमा गमा दगाा फीसा मॊि को
                                                                                   ु
  स्थासद्ऱ कय रेता हं , तो उसकी धन, योजगाय एवॊ व्मवसाम से सॊफॊधी सबी सभस्मं का शीघ्र ही अॊत होने रगता
  हं । नवयाि क फदनो भं प्राण प्रसतत्रद्षत दगाा फीसा मॊि को अऩने घय-दकान-ओफपस-पक्टयी भं स्थात्रऩत कयने
              े                            ु                        ु         ै
  से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं , व्मत्रि शीघ्र ही अऩने व्माऩाय भं वृत्रद्ध एवॊ अऩनी आसथाक स्स्थती भं सुधाय होता
  दे खंगे। सॊऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म दगाा फीसा मॊि को शुब भुहूता भं अऩने घय-दकान-ओफपस भं
                                                      ु                                      ु
  स्थात्रऩत कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं ।                           भूल्म: Rs.730 से Rs.10900 तक

            GURUTVA KARYALAY: Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785,
               Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
9                                          ससतम्फय 2012



ऩावाती ने गणेश भफहभा का फखान कयते हुए ऩयशुयाभ से                           आकाशस्मासधऩो त्रवष्णुयग्नेद्ळैव भहे द्वयी।
कहा –                                                                  वामो् सूम् स्ऺतेयीशो जीवनस्म गणासधऩ्।।
                                                                                ा
        त्वफद्रधॊ रऺकोफटॊ च हन्तुॊ शिो गणेद्वय्।                बावाथा:- क्रभ इस प्रकाय हं भहाबूत असधऩसत

      स्जतेस्न्द्रमाणाॊ प्रवयो नफह हस्न्त च भस्ऺकाभ ्।।         1. स्ऺसत (ऩृथ्वी) सशव
                                                                2. अऩ ् (जर) गणेश
         तेजसा कृ ष्णतुल्मोऽमॊ कृ ष्णाॊद्ळ गणेद्वय्।
                                                                3. तेज (अस्ग्न) शत्रि (भहे द्वयी)
        दे वाद्ळान्मे कृ ष्णकरा् ऩूजास्म ऩुयतस्तत्।।            4. भरूत ् (वामु) सूमा (अस्ग्न)
                     (ब्रह्मवैवताऩु., गणऩसतख., 44। 26-27)       5. व्मोभ (आकाश) त्रवष्णु

बावाथा: स्जतेस्न्द्रम ऩुरूषं भं श्रेद्ष गणेश तुभभं जैसे                   बगवान ् श्रीसशव ऩृथ्वी तत्त्व क असधऩसत होने क
                                                                                                         े             े
राखं-कयोिं जन्तुओॊ को भाय डारने की शत्रि है ; ऩयन्तु            कायण उनकी सशवसरॊग क रुऩ भं ऩासथाव-ऩूजा का त्रवधान
                                                                                   े
तुभने भक्खी ऩय बी हाथ नहीॊ उठामा। श्रीकृ ष्ण क अॊश
                                              े                 हं । बगवान ् त्रवष्णु क आकाश तत्त्व क असधऩसत होने क
                                                                                       े             े             े
से उत्ऩन्न हुआ वह गणेश तेज भं श्रीकृ ष्ण क ही सभान
                                          े                     कायण उनकी शब्दं द्राया स्तुसत कयने का त्रवधान हं ।
है । अन्म दे वता श्रीकृ ष्ण की कराएॉ हं । इसीसे इसकी            बगवती दे वी क अस्ग्न तत्त्व का असधऩसत होने क कायण
                                                                             े                              े
अग्रऩूजा होती है ।                                              उनका अस्ग्नकण्ड भं हवनाफद क द्राया ऩूजा कयने का
                                                                            ु              े

शास्त्रीम भतसे                                                  त्रवधान हं । श्रीगणेश क जरतत्त्व क असधऩसत होने क
                                                                                       े          े             े
                                                                कायण उनकी सवाप्रथभ ऩूजा कयने का त्रवधान हं , क्मंफक
शास्त्रोभं ऩॊचदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं ।
                                                                ब्रह्माॊद भं सवाप्रथभ उत्ऩन्न होने वारे जीव तत्त्व ‘जर’ का
        आफदत्मॊ गणनाथॊ च दे वीॊ रूद्रॊ च कशवभ ्।
                                          े                     असधऩसत होने क कायण गणेशजी ही प्रथभ ऩूज्म क
                                                                             े                            े
   ऩॊचदै वतसभत्मुि सवाकभासु ऩूजमेत ्।। (शब्दकल्ऩद्रभ)
                  ॊ                                ु            असधकायी होते हं ।
बावाथा: - ऩॊचदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड क ऩॊचबूतं क
                                           े         े          आचामा भनु का कथन है -
साथ सॊफॊध है । ऩॊचबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश
                                                                 “अऩ एच ससजाादौ तासु फीजभवासृजत ्।” (भनुस्भृसत 1)
से फनते हं । औय ऩॊचबूत क आसधऩत्म क कायण से
                        े         े
आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय कशव मे ऩॊचदे व
                                      े                         बावाथा:

बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी हं -         इस प्रभाण से सृत्रद्श क आफद भं एकभाि वताभान जर का
                                                                                       े
                                                                असधऩसत गणेश हं ।


                                            भॊि ससद्ध दरब साभग्री
                                                       ु ा
   हत्था जोडी- Rs- 370                       घोडे की नार- Rs.351                      भामा जार- Rs- 251
   ससमाय ससॊगी- Rs- 370                      दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550                   इन्द्र जार- Rs- 251
   त्रफल्री नार- Rs- 370                     भोसत शॊख- Rs- 550                        धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251
                                              GURUTVA KARYALAY
                                  Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785,
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10                               ससतम्फय 2012




                                गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता
                                                                                 सचॊतन जोशी
      वैऻासनक ऩद्धसत क अनुसाय ब्रह्माॊड भं सभम व अनॊत आकाश क असतरयि सभस्त वस्तुएॊ
                      े                                     े
भमाादा मुि हं । स्जस प्रकाय सभम का न ही कोई प्रायॊ ब है न ही कोई अॊत है । अनॊत आकाश की बी
सभम की तयह कोई भमाादा नहीॊ है । इसका कहीॊ बी प्रायॊ ब मा अॊत नहीॊहोता। आधुसनक भानव ने इन
दोनं तत्वं को हभेशा सभझने का व अऩने अनुसाय इनभं भ्रभण कयने का प्रमास फकमा हं ऩयन्तु उसे
सपरता प्राद्ऱ नहीॊ हुई है ।
      साभान्मत् भुहूता का अथा है फकसी बी कामा को कयने क सरए सफसे शुब सभम व सतसथ चमन
                                                       े
कयना। कामा ऩूणत् परदामक हो इसक सर, सभस्त ग्रहं व अन्म ज्मोसतष तत्वं का तेज इस प्रकाय
              ा               े
कस्न्द्रत फकमा जाता है फक वे दष्प्रबावं को त्रवपर कय दे ते हं । वे भनुष्म की जन्भ कण्डरी की
 े                            ु                                                    ु
सभस्त फाधाओॊ को हटाने भं व दमोगो को दफाने मा घटाने भं सहामक होते हं ।
                            ु
      शुब भुहूता ग्रहो का ऎसा अनूठा सॊगभ है फक वह कामा कयने वारे व्मत्रि को ऩूणत् सपरता की
                                                                               ा
ओय अग्रस्त कय दे ता है ।
      फहन्द ू धभा भं शुब कामा कवर शुब भुहूता दे खकय फकए जाने का त्रवधान हं । इसी त्रवधान क
                               े                                                          े
अनुसाय श्रीगणेश चतुथॉ क फदन बगवान श्रीगणेश की स्थाऩना क श्रेद्ष भुहूता आऩकी अनुकरता हे तु
                       े                               े                        ू
दशााने का प्रमास फकमा जा यहा हं । फहन्द ू धभा ग्रॊथं क अनुसाय शुब भुहूता दे खकय फकए गए कामा
                                                      े
सनस्द्ळत शुब व सपरता दे ने वारे होते हं ।
श्रीगणेश चतुथॉ क सरमे (19 ससतॊफय 2012 फुधवाय)
                े
प्रात् 6: 08 से 7:38 तक राब
सुफह 7: 38 से 9:08 तक अभृत
सुफह 10:38 से 12:08 तक शुब
सॊध्मा् 4:38 से 6:08 तक राब
अन्म शुब सभम
वृस्द्ळक रग्न भं (10:36 से दोऩहय 12:55 तक ) तथा कब रग्न भं (सॊध्मा 04:41 से सॊध्मा 06:09
                                                 ॊु
तक) बगवान श्रीगणेश प्रसतभा की स्थाऩना की जा सकती हं ।
क्मंफक ज्मोसतष क अनुशाय वृस्द्ळक औय कब दोनं स्स्थय रग्न हं । स्स्थय रग्न भं फकमा गमा कोई बी
                े                    ॊु
शुब कामा स्थाई होता हं ।
त्रवद्रानो क भतानुशाय शुब प्रायॊ ब मासन आधा कामा स्वत् ऩूण।
            े                                             ा
11                                     ससतम्फय 2012



                      शुबकामं भं सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा क्मं होती हं ?

                                                                                                  सचॊतन जोशी
गणऩसत शब्द का अथा हं ।

        गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह क स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉच
                                      े
ऻानेस्न्द्रमाॉ, ऩाॉच कभेस्न्द्रमाॉ औय चाय अन्त्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊचासरत कयती हं उन्हीॊ को
चौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ क भूर प्रेयक हं बगवान श्रीगणेश।
                                       े

बगवान गणऩसत शब्दब्रह्म अथाात ् ओॊकाय क प्रतीक हं , इनकी भहत्व का मह हीॊ भुख्म कायण हं ।
                                      े

        श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ओॊकाय का ही व्मि स्वरूऩ गणऩसत दे वता हं । इसी कायण सबी प्रकाय क शुब
                                                                                                      े
भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान गणऩसत फक प्रथभ ऩूजा फक जाती हं । स्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि
फक शत्रि को फढाने क सरमे भॊि क आगं ॐ (ओभ ्)
                   े          े                       आवश्मक रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामं
क सरमे ऩय बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा भानी गई हं । इस सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामं ने
 े
इस प्राचीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हं इसका सदीमं से बगवान गणेश जी क प्रथभ ऩूजन कयने फक
ऩयॊ ऩया का अनुसयण कयते चरे आयहे हं ।

        गणेश जी की ही ऩूजा सफसे ऩहरे क्मं होती है , इसकी ऩौयास्णक कथा इस प्रकाय है -

ऩद्मऩुयाण क अनुसाय (सृत्रद्शखण्ड 61। 1 से 63। 11) –
           े

एक फदन व्मासजी क सशष्म ने अऩने गुरूदे व को प्रणाभ
                े

कयक प्रद्ल फकमा फक गुरूदे व! आऩ भुझे दे वताओॊ क ऩूजन का सुसनस्द्ळत क्रभ फतराइमे। प्रसतफदन फक ऩूजा भं सफसे
   े                                           े
ऩहरे फकसका ऩूजन कयना चाफहमे ?

        तफ व्मासजी ने कहा:     त्रवघ्ननं को दय कयने क सरमे सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी चाफहमे। ऩूवकार भं
                                             ू       े                                             ा
ऩावाती दे वी को दे वताओॊ ने अभृत से तैमाय फकमा हुआ एक फदव्म भोदक फदमा। भोदक दे खकय दोनं फारक (स्कन्द
तथा गणेश) भाता से भाॉगने रगे। तफ भाता ने भोदक क प्रबावं का वणान कयते हुए कहा फक तुभ दोनो भं से जो
                                               े
धभााचयण क द्राया श्रेद्षता प्राद्ऱ कयक आमेगा, उसी को भं मह भोदक दॉ गी। भाता की ऐसी फात सुनकय स्कन्द भमूय ऩय
         े                            े                            ू
आरूढ़ हो कय अल्ऩ भुहूतबय भं सफ तीथं की स्न्नान कय सरमा। इधय रम्फोदयधायी गणेशजी भाता-त्रऩता की ऩरयक्रभा
                      ा
कयक त्रऩताजी क सम्भुख खिे हो गमे। तफ ऩावातीजी ने कहा- सभस्त तीथं भं फकमा हुआ स्न्नान, सम्ऩूणा दे वताओॊ को
   े          े
फकमा हुआ नभस्काय, सफ मऻं का अनुद्षान तथा सफ प्रकाय क व्रत, भन्ि, मोग औय सॊमभ का ऩारन- मे सबी साधन
                                                    े
भाता-त्रऩता क ऩूजन क सोरहवं अॊश क फयाफय बी नहीॊ हो सकते।
             े      े            े

इससरमे मह गणेश सैकिं ऩुिं औय सैकिं गणं से बी फढ़कय श्रेद्ष है । अत् दे वताओॊ का फनामा हुआ मह भोदक भं
गणेश को ही अऩाण कयती हूॉ। भाता-त्रऩता की बत्रि क कायण ही गणेश जी की प्रत्मेक शुब भॊगर भं सफसे ऩहरे ऩूजा
                                                े
होगी।   तत्ऩद्ळात ् भहादे वजी फोरे- इस गणेश क ही अग्रऩूजन से सम्ऩूणा दे वता प्रसन्न हंजाते हं । इस सरमे तुभहं
                                             े
सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी चाफहमे।
12                                          ससतम्फय 2012




                                       सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन
                                                                                                               त्रवजम ठाकुय
        श्री गणेशजी की ऩूजा से व्मत्रि को फुत्रद्ध, त्रवद्या,     ऩत्रवि कयण:
त्रववेक योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-फाधाओॊ का स्वत्             सफसे ऩहरे ऩूजन साभग्री व गणेश प्रसतभा सचि ऩत्रवि
नाश होता है                                                       कयण कयं
        श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के                   अऩत्रवि् ऩत्रविो वा सवाावस्थाॊ गतो त्रऩ वा।
भुस्श्कर से भुस्श्कर कामा बी आसान हो जाते हं ।                          म् स्भये त ् ऩुण्डयीकाऺॊ स फाह्याभ्मन्तय् शुसच्॥
        स्जन    रोगो   को     व्मवसाम-नौकयी     भं    त्रवऩयीत    इस भॊि से शयीय औय ऩूजन साभग्री ऩय जर छीटं इसे
ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हं, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी,             अॊदय फाहय औय फहाय दोनं शुद्ध हो जाता है
योगं से ऩीिा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत
कयने क उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो
      े                      ु                                    आचभन:

यही हो, तो एसे व्मत्रिमो की सभस्मा क सनवायण हे तु
                                    े                                                    ॐ कशवाम नभ:
                                                                                            े

चतुथॉ क फदन मा फुधवाय क फदन श्री गणेशजी की
       े               े                                                                 ॐ नायामण नभ:

त्रवशेष ऩूजा-अचाना कयने का त्रवधान शास्त्रं भं फतामा हं ।                                ॐ भध्वामे नभ:

        स्जसक पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हं
             े                                                                     हस्तो प्रऺल्म हसशाकशम नभ :
                                                                                                      े

औय उसे जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ ऎद्वमा की प्रासद्ऱ होती
                                                                  आसान सुत्रद्ध:
हं । श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्दे श्म एवॊ
                                                                      ॐ ऩृथ्वी त्वमा धृता रोका दे त्रव त्व त्रवद्गणुनाधृता्।
काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग भॊि व त्रवसध-त्रवधान से
                                                                        त्व च धायम भा दे त्रव ऩत्रवि करू च आसनभ॥
                                                                                                      ु        ्
फकमा जाता हं , इस सरमे महाॊ दशााई गई ऩूजन त्रवसध भं
अॊतय होना साभान्म हं ।                                            यऺा भॊि:
        सबी ऩाठको क भागादशान हे तु श्री गणेश जी का
                   े                                                      'अऩक्राभन्तु बूतासन त्रऩशाचा् सवातो फदशा।
ऩूजन त्रवधान फदमा जा यहा हं ।                                                   सवेषाभवयोधेन ब्रह्मकभा सभायबे।
                                                                          अऩसऩान्तु ते बूता् मे बूता् बूसभसॊस्स्थता्।
गणेश ऩूजा:
                                                                            मे बूता त्रवनकताायस्ते नद्शन्तु सशवाऻमा।'
                                                                  इस भॊि से दशं फदशाओॊ भं त्रऩरा सयसं सछटक स्जसेस
                                                                                                          े
ऩूजन साभग्री :
                                                                  सभस्त बूत प्रेत फाधाओॊ का सनवायण होता है
ककभ, कसय, ससॊदय, अवीय-गुरार, ऩुष्ऩ औय भारा,
 ुॊ ुॊ े      ू
चारव,    ऩान,    सुऩायी,    ऩॊचाभृत,    ऩॊचभेवा,     गॊगाजर,      स्वस्ती वाचन:
त्रफरऩि, धूऩ-दीऩ, नैवैद्य भं रड्डू )रड्डू 3 ,5,7, 11त्रवषभ        स्वस्स्त न इन्द्रो वृद्धश्रवा :स्वस्स्त न :ऩूषा त्रवद्ववेदा:।
सॊख्मा भं (मा गूड अथवा सभश्री का प्रसाद रगाएॊ। रंग,               स्वस्स्तनस्ता यऺो अरयद्शनेसभ :स्वस्स्त नो फृहस्ऩसतादधात॥
इरामची, नायीमर, करश,            1सभटय रार कऩडा, फयक,              इस क फाद श्री गणेश जी क भॊगर ऩाठ कयना चाफहए
                                                                      े                  े
इि, जनेऊ, त्रऩरी सयसं,       इत्माफद आवश्मक साभग्रीमाॊ।           जो की इस प्रकाय है
13                                            ससतम्फय 2012



गणेश जी का भॊगर ऩाठ:                                                              रॊफोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्नननाशो त्रवनामक्।
             सुभुखद्ळैकदन्तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक:।                                   धुम्रकतुय ् गणाध्मऺो बारचॊद्रो गजानन॥
                                                                                        े
            रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्रनाशो त्रवनामक:॥                                                         ृ
                                                                                 द्रादशैतासन नाभासन म् ऩठे च्छणु मादऽत्रऩ॥
            धूम्रकतुगणाध्मऺो बारचन्द्रो गजानन:।
                  े  ा                                                             त्रवद्यायॊ बे त्रववाहे च प्रवेशे सनगाभे तथा।
            द्राद्रशैतासन नाभासन म :ऩठे च्छे णुमादत्रऩ॥                          सॊग्राभे सॊकटे चैव त्रवघ्ननस्तस्म न जामते॥
            त्रवद्यायम्बे त्रववाहे च प्रवेशे सनगाभे तथा।                           शुक्राॊफय धयॊ दे वॊ शसशवणं चतुबुजभ ्।
                                                                                                                   ा
           सॊग्राभे सॊकटे चैव त्रवघ्रस्तस्म न जामते॥                             प्रसन्न वदनॊ ध्मामेत ् सवा त्रवघ्ननोऩशाॊतमे॥
                                                                                जऩेद् गणऩसत स्तोिॊ षस्ड्बभाासे परॊ रबेत ्।
एकाग्रसचन होकय गणेश का ध्मान कयना चाफहए                                           सॊवॊत्सये ण ससत्रद्धॊ च रबते नाि सॊशम्॥
श्री गणेश का ध्मान कयं :                                                            वक्रतुॊड भहाकाम सूमकोफट सभ प्रब।
                                                                                                       ा
गजाननॊ         बूतगणाफद       सेत्रवतभ ्    कत्रऩत्थ       जम्फूपर                सनत्रवघ्ननॊ करु भे दे व सवा कामेषु सवादा॥
                                                                                        ा      ु
चारुबऺणभ। उभासुतभ ् शोक त्रवनाश कायकभ ् नभासभ
        ्                                                                       असबस्ससताथा ससद्धध्मथं ऩूस्जतो म् सुयासुयै्।
त्रवघ्ननेद्वय ऩाद ऩॊकजभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम
                       ्                                                          सवा त्रवघ्नन हयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्॥
नभ् गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्चायण कयं ।                                      त्रवघ्ननेद्वयाम वयदाम सुयत्रप्रमाम रॊफोदयाम सकराम
                                                                          जगस्त्धताम। नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबुत्रषताम गौयीसुताम
आह्वानॊ:                                                                                   गणनाथ नभो नभस्ते॥
इस भॊि से श्री गणेश का आहवान कये मा भन ही भन                          ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् गणेशॊ स्भयासभ
भं श्री गणेश जी को ऩधायने क सरमे त्रवनसत कयं । हाथभं
                           े                                          भॊि का उच्चायण कयक ऩुष्ऩ अत्रऩत कयं
                                                                                        े           ा
अऺत रेकय आहवान कयं ।
           आगच्छ बगवन्दे व स्थाने चाि स्स्थयो बव                      षोडशोऩचाय गणऩतीऩूजन:
       मावत्ऩूजाॊ करयष्मासभ तावत्वॊ सस्न्नधौ बव।।                              अस्मै प्राण् प्रसतद्षन्तु अस्मै प्राणा् ऺयन्तु च।
            ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ्                                अस्मै दे वतभचीमा भाभहे सत च कद्ळन॥
गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्चायण कयक अऺते डारदं .....
                                 े
                                                                      आसनॊ:
इस भॊि से श्री गणेश की भूसता मा प्रसतभा ऩय हल्दी मा                   आसन सभत्रऩात कयं । मफद ऩहरे से वस्त्र त्रफछामा हुवा हं
कभकभ से यॊ गे चारव डारं। मफद प्रसतभा क प्रहरे से
 ु ु                                  े                               तो उस स्थान ऩय हल्दी मा कभकभ से यॊ गे अऺत
                                                                                               ु ु
प्राण-प्रसतद्षा हो गई हं तो आवश्मिा नहीॊ हं तफ कवर
                                                े                     डारकय ऩुष्ऩ अत्रऩत कयं ।
                                                                                       ा
सुऩायी ऩय ही चारव डारं।                                                         यम्मॊ सुशोबनॊ फदव्मॊ सवा सौख्म कयॊ शुबभ ्।
                                                                                    आसनॊ च भमादत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वय॥
स्भयण:                                                                         ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आसनॊ
     हाथभं ऩुष्ऩ रेकय श्री गणेशजी का स्भयण कयं ।                                                  सभऩामासभ॥
           नभस्तस्भै गणेशाम सवा त्रवध्न त्रवनासशने॥                   मफद द्ऴोक ऩढने भं कफठनाई हो तो आसन सभऩाासभ श्री
              कामाायॊबेषु सवेषु ऩूस्जतो म् सुयैयत्रऩ।                 गॊ गणेशाम नभ् का उच्चायण कयते हुवे गणेश जी के
             सुभुखद्ळैक दॊ तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक्॥                      चयण धोमे।
14                                            ससतम्फय 2012



ऩाद्यॊ:                                                     इस क स्थान ऩय ऩम् स्नानभ ् सभऩामासभ गॊ गणेशाम
                                                                े
          उष्णोदक सनभारॊ च सवा सौगन्ध सॊमुतभ ्।
                 ॊ                                          नभ् का उच्चायण कये तथा ऩम् क स्थान ऩय दध कहं ,
                                                                                        े          ू
           ऩाद प्रऺारनाथााम दत्तॊ ते प्रसतगृह्यताभ ्॥       दहीॊ कहं , धृतभ ् कहं , भधु कहं , शकया कहं क स्नान
                                                                                                ा       े
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩाद्यॊ सभऩामासभ॥    कयामे।
                                                                          ऩमसस्तु सभुद्भूतॊ भधुयाम्रॊ शसशप्रबभ ् ।
अघ्नमं:                                                                 दध्मानीतॊ भमा दे व स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
आचभनीभं जर, पर, पर, चॊदन, अऺत, दस्ऺणा
             ू                                                             नवनीतसभुत्ऩन्नॊ सवासॊतोषकायकभ ् ।
इत्माफद हाथ भं यख कय सनम्न भॊि का उच्चायण कयं ...                      घृतॊ तुभ्मॊ प्रदास्मासभ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
           अध्मा गृहाण दे वेश गॊध ऩुष्ऩऺतै् सह।                          तरु ऩुष्ऩ सभुत्ऩन्नॊ सुस्वादु भधुयॊ भधु ।
          करुणा करु भं दे व गृहाणाध्मै् नभोस्तुते॥
                 ु                                                     तेज् ऩुत्रद्शकयॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अघ्नमं सभऩामासभ                   इऺुसायसभुद्भूताॊ शकयाॊ ऩुत्रद्शदाॊ शुबाभ ् ।
                                                                                             ा
भॊि का उच्चायण कयक अध्मा की साभग्रीमा अत्रऩात कयदं ।
                  े                                                     भराऩहारयकाॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥
                                                                          ऩमो दसध धृत चैव भधु च शकयामुतभ ्।
                                                                                                  ा
आचभन:                                                                   ऩॊचाभृत भमानीतॊ सनानाथा प्रसतघृहमताभ॥
          सवा तीथा सभामुि सुगॊसध सनभार जरभ ्।
                         ॊ
           आचम्मताॊ भमा दत्तॊ गृहीत्वा ऩयभेद्वयॊ ॥          वस्त्रॊ:
      ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आचभनॊ         ऩॊचाभृत स्नान क फाद स्वच्छ कय क वस्त्र ऩहनामे मा
                                                                           े               े
                         सभऩामासभ॥                          सभत्रऩात कयं ।
                                                                        सवा बूषाफदक सौम्मे रोकरज्जा सनवायणे ।
                                                                                   े
स्नानॊ:                                                                  भमोऩऩाफदते तुभ्मॊ वाससी प्रसतगृहीताभ ् ॥
           गॊगा च मभुना ये वा तुॊगबद्रा सयस्वसत।                    ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् वस्त्रोऩवस्त्रे
           कावेयी सफहता नद्य् सद्य् स्नाथाभत्रऩता॥
                                               ा                                         सभऩामासभ॥
ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् स्नानॊ सभऩामासभ
          भॊि का उच्चायण कयते हुवे स्नान कयामे।             मऻोऩवीत
                                                                       ततऩद्ळमात सनम्न भॊि से मऻोऩवीत ऩहनामे
ऩॊचाभृत स्नान :                                                             नवसभस्तॊतुसबमुि त्रिगुणॊ दे वताभमॊ।
तत ऩद्ळमात ऩॊचाभृत से क्रभश् दध, दही, घी, शहद,
                              ू                                             सऩफीतॊ भमा दत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥
शक्कय से स्नान कया कय शुद्धजर मा गॊगाजर से उि                       ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् मऻोऩत्रवतॊ
भॊि से ऩुन् स्वच्छ कयरे।                                                                 सभऩामासभ॥
तत ऩद्ळमात शुद्ध वस्त्र से ऩोछ कय प्रसतत्रद्षत कयं ।
                                                            चॊदन:
दध स्नान :
 ू                                                                             ततऩद्ळमात रार चॊदन चढामे।
           काभधेनु सभुत्ऩनॊ सवेषाॊ जीवन ऩयभ ्।                          श्रीखण्ड चन्दन फदव्मॊ कशयाफद सुभनीहयभ ्।
                                                                                               े
          ऩावनॊ मऻ हे तुद्ळ ऩम :स्नानाथाभत्रऩतभ ्॥
                                             ा                  त्रवरेऩनॊ सुश्रद्ष चन्दनॊ प्रसतगृहमतभ ्॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत
                                                                           श्री गणेशाम नभ् ककभॊ सभऩामासभ॥
                                                                                            ुॊ ु
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  • 1. Font Help >> http://gurutvajyotish.blogspot.com गुरुत्व कामाारम द्राया प्रस्तुत भाससक ई-ऩत्रिका ससतम्फय- 2012 NON PROFIT PUBLICATION
  • 2. FREE E CIRCULAR गुरुत्व ज्मोसतष ऩत्रिका ई- जन्भ ऩत्रिका ससतम्फय 2012 अत्माधुसनक ज्मोसतष ऩद्धसत द्राया सॊऩादक सचॊतन जोशी सॊऩका गुरुत्व ज्मोसतष त्रवबाग उत्कृ द्श बत्रवष्मवाणी क साथ े गुरुत्व कामाारम 92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, १००+ ऩेज भं प्रस्तुत (ORISSA) INDIA पोन 91+9338213418, 91+9238328785, E HOROSCOPE ईभेर gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in, Create By Advanced वेफ www.gurutvakaryalay.com http://gk.yolasite.com/ Astrology www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ ऩत्रिका प्रस्तुसत Excellent Prediction सचॊतन जोशी, 100+ Pages स्वस्स्तक.ऎन.जोशी पोटो ग्राफपक्स फहॊ दी/ English भं भूल्म भाि 750/- सचॊतन जोशी, स्वस्स्तक आटा हभाये भुख्म सहमोगी GURUTVA KARYALAY स्वस्स्तक.ऎन.जोशी (स्वस्स्तक BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785 सोफ्टे क इस्न्डमा सर) Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 3. बायतीम ऩयॊ ऩया भूर रुऩ से त्रवसबन्न धासभाक आस्थ औय त्रवद्वास ऩय आधारयत है । प्रद्लावरी से बत्रवष्म ऻात कयने की ऩौयास्णक प्रथा ऩुयातन कार से ही चरी आयही हं । मफह कायण हं की अनेको त्रवद्रानो अऩनी खोज एवॊ अनुबव क आधाय ऩय त्रवसबन्न प्रद्लावरीमं …4 े बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने क ऩूवा बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी े सरमे मे फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ प्रत्मक शुब कामा मा अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का …6 े बत्रवष्म ऻात प्रद्लावरी त्रवशेष भं ऩढे ़ त्रवशेष भं  प्रद्लावरी त्रवशेष  सवा कामा ससत्रद्ध श्री गणेश सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने? ै 6 श्री याभ शराका प्रद्लावरी 40 गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता 10 गौतभ कवरी भहात्रवद्या (प्रद्लावरी) े 42 कवच …37 शुबकामं भं सवाप्रथभ गणेशजी .. 11 चंतीसा मन्ि द्राया बत्रवष्म ऻान प्रद्लावरी 48 सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन 12 बत्रवष्म ऻान क सरए यभर प्रद्लावरी े 62 गणेश ऩूजन भं कोन से पर चढाए। ू 18 श्री हनुभान प्रद्लावरी 64 शाऩक कायण गणऩसत ऩूजन भं तुरसी.. े 19 श्री कृ ष्ण शराका प्रद्लावरी 66 गणेश क चभत्कायी भॊि े 20 ऩमूषण का भहत्व ा 68 गणेश रक्ष्भी मॊि…91 गणेश ऩूजन से ग्रहऩीडा दय होती हं । ू 23 हभाये उत्ऩाद  गणेश चतुथॉ ऩय चॊद्र दशान सनषेध क्मं 24 भॊिससद्ध स्पफटक श्री मॊि 21 गणेश चतुथॉ ज्मोसतष की नजय भं 26 बाग्म रक्ष्भी फदब्फी 22 गणेशजी ने धायण फकमा ज्मोसतषी रुऩ 27 द्रादश भहा मॊि 27 वषा की त्रवसबन्न चतुथॉ व्रत का भहत्व 29 सवा कामा ससत्रद्ध कवच 37 नवयत्न जफित श्रीमॊि..72 भनोवाॊसछत परो फक प्रासद्ऱ हे तु ससत्रद्ध प्रद … 35 सवाससत्रद्धदामक भुफद्रका 46 गणेश ऩूजन से वास्तु दोष सनवायण 36 श्री हनुभान मॊि 73 ऩुरुषाकाय शसन भॊिससद्ध रक्ष्भी मॊिसूसच गणेश वाहन भूषक कसे फना े 38 74 मॊि…71 ससत्रद्ध त्रवनामक व्रत .. & सॊकद्शहय चतुथॉ व्रत .. 39 भॊि ससद्ध दै वी मॊि सूसच 74 गणेश जी की कथा 61 भॊि ससद्ध रूद्राऺ 76  स्थामी औय अन्म रेख  भॊि ससद्ध दरब साभग्री ु ा 76 सॊऩादकीम 4 श्रीकृ ष्ण फीसा मॊिकवच / 77 भाससक यासश पर 82 याभ यऺा मॊि 78 यासश यत्न…75 ससतम्फय 2102 भाससक ऩॊचाॊग 86 जैन धभाक त्रवसशद्श मॊि े 79 ससतम्फय-2012 भाससक व्रत-ऩवा-त्मौहाय 88 घॊटाकणा भहावीय सवा ससत्रद्ध भहामॊि 80 ससतम्फय 2102 -त्रवशेष मोग 94 अभोद्य भहाभृत्मुॊजम कवच 81 दै सनक शुब एवॊ अशुब सभम ऻान तासरका 94 याशी यत्न एवॊ उऩयत्न 81 फदन-यात क चौघफडमे े 95 शसन ऩीिा सनवायक 87 भॊि ससद्ध रूद्राऺ …79 फदन-यात फक होया - सूमोदम से सूमाास्त तक 96 सवा योगनाशक मॊि/ 98 ग्रह चरन ससतम्फय -2012 भॊि ससद्ध कवच अभोद्य भहाभृत्मुजम ॊ 97 100 सूचना 105 YANTRA LIST 101 कवच …81 हभाया उद्दे श्म 107 GEM STONE 103
  • 4. त्रप्रम आस्त्भम फॊध/ फफहन ु जम गुरुदे व बायतीम ऩयॊ ऩया भूर रुऩ से त्रवसबन्न धासभाक आस्थ औय त्रवद्वास ऩय आधारयत है । प्रद्लावरी से बत्रवष्म ऻात कयने की ऩौयास्णक प्रथा ऩुयातन कार से ही चरी आयही हं । मफह कायण हं की अनेको त्रवद्रानो अऩनी खोज एवॊ अनुबव क आधाय ऩय त्रवसबन्न प्रद्लावरीमं की यचना की हं । स्जसक भाध्मभ से अऩने इद्श का ध्मान कयक, अऩने असबद्श े े े प्रद्लनं का सॊबत्रवत प्रद्लावरी से उत्तय प्राद्ऱ फकमा जा सकता हं । फतामा जाता हं की सैकडो़ वषा ऩूवा हभाये त्रवद्रानो ने अऩने ऻान फर एवॊ खोज से सनधाारयत शब्धं एवॊ अॊको क भाध्म भं प्रद्लावरी की सॊयचना की, इस प्रद्लावरी क भाध्मभ े े से व्मत्रि अऩने असतत की शुब-अशुब घटनाओॊ क यहस्म को सयरता से ऻात कय सकता हं । े प्रद्लावरी से बत्रवष्म ऻात कयना सफसे सयर त्रवसध हं , क्मोकी, इस भं नाहीॊ कोई रॊफी चौिी गणनाएॊ हं नाही कोई जफटर प्रणारी हं । फस अऩने प्रद्ल को स्भयण कयते हुवे सनधाारयत प्रद्लावरी ऩय शराका मा अऩनी अनासभका अॊगुसर धुभाकय आसानी से ऻात फकमा जा सकता हं । कछ जानकायं का भानना हं की प्रद्लावरी क भाध्मभ से एकदभ स्स्टक बत्रवष्मवाणी मा अऩने प्रद्लं का हर ु े प्राद्ऱ हो जामे मह सॊबव नहीॊ हं , क्मोफक प्रद्लावरी भं कवर उसे प्रस्तुत कयने वारे व्मत्रि क सनधाारयत उत्तय फह होते हं , े े जो की भनुष्म की वास्तत्रवक सभस्माओॊ का सॊऩूणा हर फता ऩामे मह सॊबव नहीॊ हं , रेफकन कछ हद तक इस प्रद्लावरी ु का उऩमोग त्रफना कोई फिा जोस्खभ उठामे अऩने भागादशान हे तु अवश्म फकमा जा सकता हं । ऩाठकं क भागादशान क सरमे प्रद्लावरी त्रवशेषाॊक फक प्रस्तुसत फक गई हं । े े सबी ऩाठको क भागादशान मा ऻानवधान क सरए प्रद्लावरी से सॊफॊसधत त्रवसबन्न उऩमोगी जानकायी इस अॊक भं त्रवसबन्न े े ग्रॊथो एवॊ सनजी अनुबवो क आधाय ऩय सॊकसरत की गई हं । जानकाय एवॊ त्रवद्रान ऩाठको से अनुयोध हं , मफद प्रद्लावरी े से सॊफॊसधत त्रवषम भं सभम, स्थान, वस्तु, स्स्थसत इत्माफद क सॊकरन, प्रभाण ऩढ़ने, सॊऩादन भं, फडजाईन भं, टाईऩीॊग े भं, त्रप्रॊफटॊ ग भं, प्रकाशन भं कोई िुफट यह गई हो, तो उसे स्वमॊ सुधाय रं मा फकसी मोग्म जानकाय मा त्रवद्रान से सराह त्रवभशा कय रे। क्मोफक प्रद्लावरी की त्रवसबन्न प्रणारी भं अॊतय होने क कायण एवॊ त्रवद्रानो क सनजी अनुबव व त्रवसबन्न े े ग्रॊथो भं वस्णात प्रद्लावरी से सॊफॊसधत जानकायीमं भं एवॊ त्रवद्रानो क स्वमॊ क अनुबवो भं सबन्नता होने क कायण े े े प्रद्लावरी से सॊफॊसधत परकथन सबन्नता सॊबव हं । सबी जैन फॊधु/फहनो को ऩमुषण भहाऩवा की ढे यसायी शुबकाभनाएॊ औय ा गुरुत्व कामाारम ऩरयवाय की औय से… ॥सभच्छाभी दक्कड्भ ्॥ ु सचॊतन जोशी
  • 5. 5 ससतम्फय 2012 ***** बत्रवष्म ऻात प्रद्लावरी से सॊफॊसधत त्रवशेष सूचना*****  ऩत्रिका भं प्रकासशत प्रद्लावरी से सम्फस्न्धत सबी जानकायीमाॊ गुरुत्व कामाारम क असधकायं क साथ ही े े आयस्ऺत हं ।  ऩौयास्णक ग्रॊथो ऩय अत्रवद्वास यखने वारे व्मत्रि प्रद्लावरी क त्रवषम को भाि ऩठन साभग्री सभझ सकते हं । े  प्रद्लावरी का त्रवषम आस्था एवॊ त्रवद्वास ऩय आधारयत होने क कायण इस अॊकभं वस्णात सबी जानकायीमा े बायसतम ग्रॊथो से प्रेरयत होकय सरखी गई हं ।  प्रद्लावरी से सॊफॊसधत त्रवषमो फक सत्मता अथवा प्राभास्णकता ऩय फकसी बी प्रकाय फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।  प्रद्लावरी भं वस्णात सॊफॊसधत बत्रवष्मवाणी फक प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं औय ना हीॊ प्राभास्णकता एवॊ प्रबाव फक स्जन्भेदायी क फाये भं जानकायी दे ने हे तु कामाारम मा सॊऩादक े फकसी बी प्रकाय से फाध्म हं ।  प्रद्लावरी से सॊफॊसधत रेखो भं ऩाठक का अऩना त्रवद्वास होना आवश्मक हं । फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष को फकसी बी प्रकाय से इन त्रवषमो भं त्रवद्वास कयने ना कयने का अॊसतभ सनणाम उनका स्वमॊ का होगा।  प्रद्लावरी से सॊफॊसधत ऩाठक द्राया फकसी बी प्रकाय फक आऩत्ती स्वीकामा नहीॊ होगी।  प्रद्लावरी से सॊफॊसधत रेख प्राभास्णक ग्रॊथो, हभाये वषो क अनुबव एव अनुशॊधान क आधाय ऩय फदमे गमे हं । े े  हभ फकसी बी व्मत्रि त्रवशेष द्राया प्रद्लावरी ऩय त्रवद्वास फकए जाने ऩय उसक राब मा नुक्शान की स्जन्भेदायी े नफहॊ रेते हं । मह स्जन्भेदायी प्रद्लावरी ऩय त्रवद्वास कयने वारे मा उसका प्रमोग कयने वारे व्मत्रि फक स्वमॊ फक होगी।  क्मोफक इन त्रवषमो भं नैसतक भानदॊ डं, साभास्जक, कानूनी सनमभं क स्खराप कोई व्मत्रि मफद नीजी स्वाथा े ऩूसता हे तु प्रद्लावरी का प्रमोग कताा हं अथवा प्रद्लावरी क उऩमोग कयने भे िुफट यखता हं मा उससे िुफट होती े हं तो इस कायण से प्रसतकर अथवा त्रवऩरयत ऩरयणाभ सभरने बी सॊबव हं । ू  प्रद्लावरी से सॊफॊसधत जानकायी को भानकय उससे प्राद्ऱ होने वारे राब, हानी फक स्जन्भेदायी कामाारम मा सॊऩादक फक नहीॊ हं ।  हभाये द्राया ऩोस्ट फकमे गमे प्रद्लावरी ऩय आधारयत रेखं भं वस्णात जानकायी को हभने कई फाय स्वमॊ ऩय एवॊ अन्म हभाये फॊधगण ने बी अऩने नीजी जीवन भं अनुबव फकमा हं । स्जस्से हभ कई फाय प्रद्लावरी क आधाय ु े ऩय स्स्टक उत्तय की प्रासद्ऱ हुई हं । असधक जानकायी हे तु आऩ कामाारम भं सॊऩक कय सकते हं । ा (सबी त्रववादो कसरमे कवर बुवनेद्वय न्मामारम ही भान्म होगा। े े
  • 6. 6 ससतम्फय 2012 श्री गणेश सबी दे वताओॊ भं सवाप्रथभ ऩूजनीम कसे फने? ै  सचॊतन जोशी बायतीम सॊस्कृ सत भं प्रत्मेक शुबकामा कयने क ऩूवा े कथा इस प्रकाय हं : तीनो रोक भं सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम बगवान श्री गणेश जी की ऩूजा की जाती हं इसी सरमे मे हो?, इस फात को रेकय सभस्त दे वताओॊ भं त्रववाद खडा हो फकसी बी कामा का शुबायॊ ब कयने से ऩूवा कामा का "श्री गमा। जफ इस त्रववादने फडा रुऩ धायण कय सरमे तफ गणेश कयना" कहा जाता हं । एवॊ प्रत्मक शुब कामा मा सबी दे वता अऩने-अऩने फर फुत्रद्धअ क फर ऩय दावे े अनुद्षान कयने क ऩूवा ‘‘श्री गणेशाम नभ्” का उच्चायण े प्रस्तुत कयने रगे। कोई ऩयीणाभ नहीॊ आता दे ख सफ फकमा जाता हं । गणेश को सभस्त ससत्रद्धमं को दे ने वारा दे वताओॊ ने सनणाम सरमा फक चरकय बगवान श्री त्रवष्णु भाना गमा है । सायी ससत्रद्धमाॉ गणेश भं वास कयती हं । को सनणाामक फना कय उनसे पसरा कयवामा जाम। ै इसक ऩीछे भुख्म कायण हं की बगवान श्री गणेश े सबी दे व गण त्रवष्णु रोक भे उऩस्स्थत हो गमे, सभस्त त्रवघ्ननं को टारने वारे हं , दमा एवॊ बगवान त्रवष्णु ने इस भुद्दे को गॊबीय होते कृ ऩा क असत सुॊदय भहासागय हं , े दे ख श्री त्रवष्णु ने सबी दे वताओॊ एवॊ तीनो रोक क कल्माण े को अऩने साथ रेकय हे तु बगवान गणऩसत सशवरोक भं ऩहुच गमे। सफ प्रकाय से मोग्म हं । सशवजी ने कहा इसका सभस्त त्रवघ्नन फाधाओॊ सही सनदान सृत्रद्शकताा को दय कयने वारे गणेश ू ब्रह्माजी फह फताएॊगे। त्रवनामक हं । गणेशजी सशवजी श्री त्रवष्णु एवॊ त्रवद्या-फुत्रद्ध के अथाह अन्म दे वताओॊ क साथ े सागय एवॊ त्रवधाता हं । सभरकय ब्रह्मरोक ऩहुचं बगवान गणेश को सवा औय ब्रह्माजी को सायी फाते प्रथभ ऩूजे जाने क त्रवषम भं कछ े ु त्रवस्ताय से फताकय उनसे पसरा ै त्रवशेष रोक कथा प्रचसरत हं । इन त्रवशेष एवॊ रोकत्रप्रम कयने का अनुयोध फकमा। ब्रह्माजी ने कहा प्रथभ कथाओॊ का वणान महा कय यहं हं । ऩूजनीम वहीॊ होगा जो जो ऩूये ब्रह्माण्ड क तीन चक्कय े रगाकय सवाप्रथभ रौटे गा। इस क सॊदबा भं एक कथा है फक भहत्रषा वेद व्मास ने े भहाबायत को से फोरकय सरखवामा था, स्जसे स्वमॊ गणेशजी सभस्त दे वता ब्रह्माण्ड का चक्कय रगाने क सरए अऩने े ने सरखा था। अन्म कोई बी इस ग्रॊथ को तीव्रता से सरखने भं अऩने वाहनं ऩय सवाय होकय सनकर ऩिे । रेफकन, गणेशजी सभथा नहीॊ था। का वाहन भूषक था। बरा भूषक ऩय सवाय हो गणेश कसे ै ब्रह्माण्ड क तीन चक्कय रगाकय सवाप्रथभ रौटकय सपर े होते। रेफकन गणऩसत ऩयभ त्रवद्या-फुत्रद्धभान एवॊ चतुय थे। सवाप्रथभ कौन ऩूजनीम हो?
  • 7. 7 ससतम्फय 2012 गणऩसत ने अऩने वाहन भूषक ऩय सवाय हो कय अऩने ऩूजा कयं गे, फकन्तु तुम्हायी ऩूजा नहीॊ कयं गे, उन्हं तुभ भाता-त्रऩत फक तीन प्रदस्ऺणा ऩूयी की औय जा ऩहुॉचे सनणाामक त्रवघ्ननं द्राया फाधा ऩहुॉचाओगे। ब्रह्माजी क ऩास। ब्रह्माजी ने जफ ऩूछा फक वे क्मं नहीॊ गए े जन्भ की कथा बी फिी योचक है । ब्रह्माण्ड क चक्कय ऩूये कयने, तो गजाननजी ने जवाफ फदमा फक े गणेशजी की ऩौयास्णक कथा भाता-त्रऩत भं तीनं रोक, सभस्त ब्रह्माण्ड, सभस्त तीथा, बगवान सशव फक अन सभस्त दे व औय सभस्त ऩुण्म त्रवद्यभान उऩस्स्थसत भं भाता ऩावाती ने त्रवचाय होते हं । फकमा फक उनका स्वमॊ का एक सेवक अत् जफ भंने अऩने भाता-त्रऩत होना चाफहमे, जो ऩयभ शुब, कामाकशर ु की ऩरयक्रभा ऩूयी कय री, तो इसका तथा उनकी आऻा का सतत ऩारन तात्ऩमा है फक भंने ऩूये ब्रह्माण्ड की कयने भं कबी त्रवचसरत न हो। इस प्रदस्ऺणा ऩूयी कय री। उनकी मह प्रकाय सोचकय भाता ऩावाती नं अऩने तकसॊगत मुत्रि स्वीकाय कय री गई औय ा भॊगरभम ऩावनतभ शयीय क भैर से े इस तयह वे सबी रोक भं सवाभान्म अऩनी भामा शत्रि से फार गणेश को 'सवाप्रथभ ऩूज्म' भाने गए। भॊि ससद्ध ऩन्ना गणेश उत्ऩन्न फकमा। सरॊगऩुयाण क अनुसाय (105। े एक सभम जफ भाता ऩावाती बगवान श्री गणेश फुत्रद्ध औय सशऺा के 15-27) – एक फाय असुयं से िस्त कायक ग्रह फुध क असधऩसत दे वता े भानसयोवय भं स्नान कय यही थी तफ दे वतागणं द्राया की गई प्राथाना से हं । ऩन्ना गणेश फुध क सकायात्भक े उन्हंने स्नान स्थर ऩय कोई आ न बगवान सशव ने सुय-सभुदाम को प्रबाव को फठाता हं एवॊ नकायात्भक सक इस हे तु अऩनी भामा से गणेश को े असबद्श वय दे कय आद्वस्त फकमा। कछ ु प्रबाव को कभ कयता हं ।. ऩन्न जन्भ दे कय 'फार गणेश' को ऩहया दे ने ही सभम क ऩद्ळात तीनो रोक क े े गणेश क प्रबाव से व्माऩाय औय धन े क सरए सनमुि कय फदमा। े दे वासधदे व भहादे व बगवान सशव का भं वृत्रद्ध भं वृत्रद्ध होती हं । फच्चो फक इसी दौयान बगवान सशव उधय भाता ऩावाती क सम्भुख ऩयब्रह्म स्वरूऩ े ऩढाई हे तु बी त्रवशेष पर प्रद हं आ जाते हं । गणेशजी सशवजी को योक ऩन्ना गणेश इस क प्रबाव से फच्चे े गणेश जी का प्राकट्म हुआ। कय कहते हं फक आऩ उधय नहीॊ जा फक फुत्रद्ध कशाग्र ू होकय उसके सवात्रवघ्ननेश भोदक त्रप्रम गणऩसतजी का सकते हं । मह सुनकय बगवान सशव आत्भत्रवद्वास भं बी त्रवशेष वृत्रद्ध होती जातकभााफद सॊस्काय क ऩद्ळात ् बगवान े क्रोसधत हो जाते हं औय गणेश जी को हं । भानससक अशाॊसत को कभ कयने भं सशव ने अऩने ऩुि को उसका कताव्म यास्ते से हटने का कहते हं फकतु गणेश ॊ भदद कयता हं , व्मत्रि द्राया अवशोत्रषत सभझाते हुए आशीवााद फदमा फक जो हयी त्रवफकयण शाॊती प्रदान कयती हं , जी अिे यहते हं तफ दोनं भं मुद्ध हो तुम्हायी ऩूजा फकमे त्रफना ऩूजा ऩाठ, व्मत्रि क शायीय क तॊि को सनमॊत्रित े े जाता है । मुद्ध क दौयान क्रोसधत होकय े अनुद्षान इत्माफद शुब कभं का कयती हं । स्जगय, पपिे , जीब, े सशवजी फार गणेश का ससय धि से अनुद्षान कये गा, उसका भॊगर बी भस्स्तष्क औय तॊत्रिका तॊि इत्माफद योग अरग कय दे ते हं । सशव क इस कृ त्म े अभॊगर भं ऩरयणत हो जामेगा। जो भं सहामक होते हं । कीभती ऩत्थय का जफ ऩावाती को ऩता चरता है तो वे भयगज क फने होते हं । े त्रवराऩ औय क्रोध से प्ररम का सृजन रोग पर की काभना से ब्रह्मा, त्रवष्णु, इन्द्र अथवा अन्म दे वताओॊ की बी Rs.550 से Rs.8200 तक कयते हुए कहती है फक तुभने भेये ऩुि को भाय डारा।
  • 8. 8 ससतम्फय 2012 ऩावातीजी क द्ख को दे खकय सशवजी ने उऩस्स्थत े ु नहीॊ फकमा। ऩयन्तु भाता ऩावाती क फाय-फाय कहने ऩय े गणको आदे श दे ते हुवे कहा सफसे ऩहरा जीव सभरे, उसका शसनदे व नं जेसे फह अऩनी द्रत्रद्श सशशु फारक उऩय ऩडी, े ससय काटकय इस फारक क धि ऩय रगा दो, तो मह फारक े उसी ऺण फारक गणेश का गदा न धि से अरग हो जीत्रवत हो उठे गा। सेवको को सफसे ऩहरे हाथी का एक फच्चा गमा। भाता ऩावाती क त्रवरऩ कयने ऩय बगवान ् त्रवष्णु े सभरा। उन्हंने उसका ससय राकय फारक क धि ऩय रगा फदमा, े ऩुष्ऩबद्रा नदी क अयण्म से एक गजसशशु का भस्तक े फारक जीत्रवत हो उठा। काटकय रामे औय गणेशजी क भस्तक ऩय रगा फदमा। े उस अवसय ऩय तीनो दे वताओॊ ने उन्हं सबी रोक गजभुख रगे होने क कायण कोई गणेश फक उऩेऺा न े भं अग्रऩूज्मता का वय प्रदान फकमा औय उन्हं सवा अध्मऺ कये इस सरमे बगवान त्रवष्णु अन्म दे वताओॊ क साथ भं े ऩद ऩय त्रवयाजभान फकमा। स्कद ऩुयाण ॊ तम फकम फक गणेश सबी भाॊगरीक कामो भं अग्रणीम ब्रह्मवैवताऩुयाण क अनुसाय (गणऩसतखण्ड) – े ऩूजे जामंगे एवॊ उनक ऩूजन क त्रफना कोई बी दे वता ऩूजा े े सशव-ऩावाती क त्रववाह होने क फाद उनकी कोई े े ग्रहण नहीॊ कयं गे। सॊतान नहीॊ हुई, तो सशवजी ने ऩावातीजी से बगवान इस ऩय बगवान ् त्रवष्णु ने श्रेद्षतभ उऩहायं से त्रवष्णु क शुबपरप्रद ‘ऩुण्मक’ व्रत कयने को कहा ऩावाती े बगवान गजानन फक ऩूजा फक औय वयदान फदमा फक क ‘ऩुण्मक’ व्रत से बगवान त्रवष्णु ने प्रसन्न हो कय े सवााग्रे तव ऩूजा च भमा दत्ता सुयोत्तभ। ऩावातीजी को ऩुि प्रासद्ऱ का वयदान फदमा। ‘ऩुण्मक’ व्रत के प्रबाव से ऩावातीजी को एक ऩुि उत्ऩन्न हुवा। सवाऩूज्मद्ळ मोगीन्द्रो बव वत्सेत्मुवाच तभ ्।। ऩुि जन्भ फक फात सुन कय सबी दे व, ऋत्रष, (गणऩसतखॊ. 13। 2) गॊधवा आफद सफ गण फारक क दशान हे तु ऩधाये । इन दे व े बावाथा: ‘सुयश्रेद्ष! भंने सफसे ऩहरे तुम्हायी ऩूजा फक है , गणो भं शसन भहायाज बी उऩस्स्थत हुवे। फकन्तु शसनदे व अत् वत्स! तुभ सवाऩूज्म तथा मोगीन्द्र हो जाओ।’ ने ऩत्नी द्राया फदमे गमे शाऩ क कायण फारक का दशान े ब्रह्मवैवता ऩुयाण भं ही एक अन्म प्रसॊगान्तगात ऩुिवत्सरा दगाा फीसा मॊि ु शास्त्रोि भत क अनुशाय दगाा फीसा मॊि दबााग्म को दय कय व्मत्रि क सोमे हुवे बाग्म को जगाने वारा भाना े ु ु ू े गमा हं । दगाा फीसा मॊि द्राया व्मत्रि को जीवन भं धन से सॊफॊसधत सॊस्माओॊ भं राब प्राद्ऱ होता हं । जो व्मत्रि ु आसथाक सभस्मासे ऩये शान हं, वह व्मत्रि मफद नवयािं भं प्राण प्रसतत्रद्षत फकमा गमा दगाा फीसा मॊि को ु स्थासद्ऱ कय रेता हं , तो उसकी धन, योजगाय एवॊ व्मवसाम से सॊफॊधी सबी सभस्मं का शीघ्र ही अॊत होने रगता हं । नवयाि क फदनो भं प्राण प्रसतत्रद्षत दगाा फीसा मॊि को अऩने घय-दकान-ओफपस-पक्टयी भं स्थात्रऩत कयने े ु ु ै से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं , व्मत्रि शीघ्र ही अऩने व्माऩाय भं वृत्रद्ध एवॊ अऩनी आसथाक स्स्थती भं सुधाय होता दे खंगे। सॊऩूणा प्राण प्रसतत्रद्षत एवॊ ऩूणा चैतन्म दगाा फीसा मॊि को शुब भुहूता भं अऩने घय-दकान-ओफपस भं ु ु स्थात्रऩत कयने से त्रवशेष राब प्राद्ऱ होता हं । भूल्म: Rs.730 से Rs.10900 तक GURUTVA KARYALAY: Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785, Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
  • 9. 9 ससतम्फय 2012 ऩावाती ने गणेश भफहभा का फखान कयते हुए ऩयशुयाभ से आकाशस्मासधऩो त्रवष्णुयग्नेद्ळैव भहे द्वयी। कहा – वामो् सूम् स्ऺतेयीशो जीवनस्म गणासधऩ्।। ा त्वफद्रधॊ रऺकोफटॊ च हन्तुॊ शिो गणेद्वय्। बावाथा:- क्रभ इस प्रकाय हं भहाबूत असधऩसत स्जतेस्न्द्रमाणाॊ प्रवयो नफह हस्न्त च भस्ऺकाभ ्।। 1. स्ऺसत (ऩृथ्वी) सशव 2. अऩ ् (जर) गणेश तेजसा कृ ष्णतुल्मोऽमॊ कृ ष्णाॊद्ळ गणेद्वय्। 3. तेज (अस्ग्न) शत्रि (भहे द्वयी) दे वाद्ळान्मे कृ ष्णकरा् ऩूजास्म ऩुयतस्तत्।। 4. भरूत ् (वामु) सूमा (अस्ग्न) (ब्रह्मवैवताऩु., गणऩसतख., 44। 26-27) 5. व्मोभ (आकाश) त्रवष्णु बावाथा: स्जतेस्न्द्रम ऩुरूषं भं श्रेद्ष गणेश तुभभं जैसे बगवान ् श्रीसशव ऩृथ्वी तत्त्व क असधऩसत होने क े े राखं-कयोिं जन्तुओॊ को भाय डारने की शत्रि है ; ऩयन्तु कायण उनकी सशवसरॊग क रुऩ भं ऩासथाव-ऩूजा का त्रवधान े तुभने भक्खी ऩय बी हाथ नहीॊ उठामा। श्रीकृ ष्ण क अॊश े हं । बगवान ् त्रवष्णु क आकाश तत्त्व क असधऩसत होने क े े े से उत्ऩन्न हुआ वह गणेश तेज भं श्रीकृ ष्ण क ही सभान े कायण उनकी शब्दं द्राया स्तुसत कयने का त्रवधान हं । है । अन्म दे वता श्रीकृ ष्ण की कराएॉ हं । इसीसे इसकी बगवती दे वी क अस्ग्न तत्त्व का असधऩसत होने क कायण े े अग्रऩूजा होती है । उनका अस्ग्नकण्ड भं हवनाफद क द्राया ऩूजा कयने का ु े शास्त्रीम भतसे त्रवधान हं । श्रीगणेश क जरतत्त्व क असधऩसत होने क े े े कायण उनकी सवाप्रथभ ऩूजा कयने का त्रवधान हं , क्मंफक शास्त्रोभं ऩॊचदे वं की उऩासना कयने का त्रवधान हं । ब्रह्माॊद भं सवाप्रथभ उत्ऩन्न होने वारे जीव तत्त्व ‘जर’ का आफदत्मॊ गणनाथॊ च दे वीॊ रूद्रॊ च कशवभ ्। े असधऩसत होने क कायण गणेशजी ही प्रथभ ऩूज्म क े े ऩॊचदै वतसभत्मुि सवाकभासु ऩूजमेत ्।। (शब्दकल्ऩद्रभ) ॊ ु असधकायी होते हं । बावाथा: - ऩॊचदे वं फक उऩासना का ब्रह्माॊड क ऩॊचबूतं क े े आचामा भनु का कथन है - साथ सॊफॊध है । ऩॊचबूत ऩृथ्वी, जर, तेज, वामु औय आकाश “अऩ एच ससजाादौ तासु फीजभवासृजत ्।” (भनुस्भृसत 1) से फनते हं । औय ऩॊचबूत क आसधऩत्म क कायण से े े आफदत्म, गणनाथ(गणेश), दे वी, रूद्र औय कशव मे ऩॊचदे व े बावाथा: बी ऩूजनीम हं । हय एक तत्त्व का हय एक दे वता स्वाभी हं - इस प्रभाण से सृत्रद्श क आफद भं एकभाि वताभान जर का े असधऩसत गणेश हं । भॊि ससद्ध दरब साभग्री ु ा हत्था जोडी- Rs- 370 घोडे की नार- Rs.351 भामा जार- Rs- 251 ससमाय ससॊगी- Rs- 370 दस्ऺणावतॉ शॊख- Rs- 550 इन्द्र जार- Rs- 251 त्रफल्री नार- Rs- 370 भोसत शॊख- Rs- 550 धन वृत्रद्ध हकीक सेट Rs-251 GURUTVA KARYALAY Call Us: 91 + 9338213418, 91 + 9238328785, Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
  • 10. 10 ससतम्फय 2012 गणेश ऩूजन हे तु शुब भुहूता  सचॊतन जोशी वैऻासनक ऩद्धसत क अनुसाय ब्रह्माॊड भं सभम व अनॊत आकाश क असतरयि सभस्त वस्तुएॊ े े भमाादा मुि हं । स्जस प्रकाय सभम का न ही कोई प्रायॊ ब है न ही कोई अॊत है । अनॊत आकाश की बी सभम की तयह कोई भमाादा नहीॊ है । इसका कहीॊ बी प्रायॊ ब मा अॊत नहीॊहोता। आधुसनक भानव ने इन दोनं तत्वं को हभेशा सभझने का व अऩने अनुसाय इनभं भ्रभण कयने का प्रमास फकमा हं ऩयन्तु उसे सपरता प्राद्ऱ नहीॊ हुई है । साभान्मत् भुहूता का अथा है फकसी बी कामा को कयने क सरए सफसे शुब सभम व सतसथ चमन े कयना। कामा ऩूणत् परदामक हो इसक सर, सभस्त ग्रहं व अन्म ज्मोसतष तत्वं का तेज इस प्रकाय ा े कस्न्द्रत फकमा जाता है फक वे दष्प्रबावं को त्रवपर कय दे ते हं । वे भनुष्म की जन्भ कण्डरी की े ु ु सभस्त फाधाओॊ को हटाने भं व दमोगो को दफाने मा घटाने भं सहामक होते हं । ु शुब भुहूता ग्रहो का ऎसा अनूठा सॊगभ है फक वह कामा कयने वारे व्मत्रि को ऩूणत् सपरता की ा ओय अग्रस्त कय दे ता है । फहन्द ू धभा भं शुब कामा कवर शुब भुहूता दे खकय फकए जाने का त्रवधान हं । इसी त्रवधान क े े अनुसाय श्रीगणेश चतुथॉ क फदन बगवान श्रीगणेश की स्थाऩना क श्रेद्ष भुहूता आऩकी अनुकरता हे तु े े ू दशााने का प्रमास फकमा जा यहा हं । फहन्द ू धभा ग्रॊथं क अनुसाय शुब भुहूता दे खकय फकए गए कामा े सनस्द्ळत शुब व सपरता दे ने वारे होते हं । श्रीगणेश चतुथॉ क सरमे (19 ससतॊफय 2012 फुधवाय) े प्रात् 6: 08 से 7:38 तक राब सुफह 7: 38 से 9:08 तक अभृत सुफह 10:38 से 12:08 तक शुब सॊध्मा् 4:38 से 6:08 तक राब अन्म शुब सभम वृस्द्ळक रग्न भं (10:36 से दोऩहय 12:55 तक ) तथा कब रग्न भं (सॊध्मा 04:41 से सॊध्मा 06:09 ॊु तक) बगवान श्रीगणेश प्रसतभा की स्थाऩना की जा सकती हं । क्मंफक ज्मोसतष क अनुशाय वृस्द्ळक औय कब दोनं स्स्थय रग्न हं । स्स्थय रग्न भं फकमा गमा कोई बी े ॊु शुब कामा स्थाई होता हं । त्रवद्रानो क भतानुशाय शुब प्रायॊ ब मासन आधा कामा स्वत् ऩूण। े ा
  • 11. 11 ससतम्फय 2012 शुबकामं भं सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा क्मं होती हं ?  सचॊतन जोशी गणऩसत शब्द का अथा हं । गण(सभूह)+ऩसत (स्वाभी) = सभूह क स्वाभी को सेनाऩसत अथाात गणऩसत कहते हं । भानव शयीय भं ऩाॉच े ऻानेस्न्द्रमाॉ, ऩाॉच कभेस्न्द्रमाॉ औय चाय अन्त्कयण होते हं । एवॊ इस शत्रिओॊ को जो शत्रिमाॊ सॊचासरत कयती हं उन्हीॊ को चौदह दे वता कहते हं । इन सबी दे वताओॊ क भूर प्रेयक हं बगवान श्रीगणेश। े बगवान गणऩसत शब्दब्रह्म अथाात ् ओॊकाय क प्रतीक हं , इनकी भहत्व का मह हीॊ भुख्म कायण हं । े श्रीगणऩत्मथवाशीषा भं वस्णात हं ओॊकाय का ही व्मि स्वरूऩ गणऩसत दे वता हं । इसी कायण सबी प्रकाय क शुब े भाॊगसरक कामं औय दे वता-प्रसतद्षाऩनाओॊ भं बगवान गणऩसत फक प्रथभ ऩूजा फक जाती हं । स्जस प्रकाय से प्रत्मेक भॊि फक शत्रि को फढाने क सरमे भॊि क आगं ॐ (ओभ ्) े े आवश्मक रगा होता हं । उसी प्रकाय प्रत्मेक शुब भाॊगसरक कामं क सरमे ऩय बगवान ् गणऩसत की ऩूजा एवॊ स्भयण असनवामा भानी गई हं । इस सबी शास्त्र एवॊ वैफदक धभा, सम्प्रदामं ने े इस प्राचीन ऩयम्ऩया को एक भत से स्वीकाय फकमा हं इसका सदीमं से बगवान गणेश जी क प्रथभ ऩूजन कयने फक ऩयॊ ऩया का अनुसयण कयते चरे आयहे हं । गणेश जी की ही ऩूजा सफसे ऩहरे क्मं होती है , इसकी ऩौयास्णक कथा इस प्रकाय है - ऩद्मऩुयाण क अनुसाय (सृत्रद्शखण्ड 61। 1 से 63। 11) – े एक फदन व्मासजी क सशष्म ने अऩने गुरूदे व को प्रणाभ े कयक प्रद्ल फकमा फक गुरूदे व! आऩ भुझे दे वताओॊ क ऩूजन का सुसनस्द्ळत क्रभ फतराइमे। प्रसतफदन फक ऩूजा भं सफसे े े ऩहरे फकसका ऩूजन कयना चाफहमे ? तफ व्मासजी ने कहा: त्रवघ्ननं को दय कयने क सरमे सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी चाफहमे। ऩूवकार भं ू े ा ऩावाती दे वी को दे वताओॊ ने अभृत से तैमाय फकमा हुआ एक फदव्म भोदक फदमा। भोदक दे खकय दोनं फारक (स्कन्द तथा गणेश) भाता से भाॉगने रगे। तफ भाता ने भोदक क प्रबावं का वणान कयते हुए कहा फक तुभ दोनो भं से जो े धभााचयण क द्राया श्रेद्षता प्राद्ऱ कयक आमेगा, उसी को भं मह भोदक दॉ गी। भाता की ऐसी फात सुनकय स्कन्द भमूय ऩय े े ू आरूढ़ हो कय अल्ऩ भुहूतबय भं सफ तीथं की स्न्नान कय सरमा। इधय रम्फोदयधायी गणेशजी भाता-त्रऩता की ऩरयक्रभा ा कयक त्रऩताजी क सम्भुख खिे हो गमे। तफ ऩावातीजी ने कहा- सभस्त तीथं भं फकमा हुआ स्न्नान, सम्ऩूणा दे वताओॊ को े े फकमा हुआ नभस्काय, सफ मऻं का अनुद्षान तथा सफ प्रकाय क व्रत, भन्ि, मोग औय सॊमभ का ऩारन- मे सबी साधन े भाता-त्रऩता क ऩूजन क सोरहवं अॊश क फयाफय बी नहीॊ हो सकते। े े े इससरमे मह गणेश सैकिं ऩुिं औय सैकिं गणं से बी फढ़कय श्रेद्ष है । अत् दे वताओॊ का फनामा हुआ मह भोदक भं गणेश को ही अऩाण कयती हूॉ। भाता-त्रऩता की बत्रि क कायण ही गणेश जी की प्रत्मेक शुब भॊगर भं सफसे ऩहरे ऩूजा े होगी। तत्ऩद्ळात ् भहादे वजी फोरे- इस गणेश क ही अग्रऩूजन से सम्ऩूणा दे वता प्रसन्न हंजाते हं । इस सरमे तुभहं े सवाप्रथभ गणेशजी की ऩूजा कयनी चाफहमे।
  • 12. 12 ससतम्फय 2012 सयर त्रवसध से श्री गणेश ऩूजन  त्रवजम ठाकुय श्री गणेशजी की ऩूजा से व्मत्रि को फुत्रद्ध, त्रवद्या, ऩत्रवि कयण: त्रववेक योग, व्मासध एवॊ सभस्त त्रवध्न-फाधाओॊ का स्वत् सफसे ऩहरे ऩूजन साभग्री व गणेश प्रसतभा सचि ऩत्रवि नाश होता है कयण कयं श्री गणेशजी की कृ ऩा प्राद्ऱ होने से व्मत्रि के अऩत्रवि् ऩत्रविो वा सवाावस्थाॊ गतो त्रऩ वा। भुस्श्कर से भुस्श्कर कामा बी आसान हो जाते हं । म् स्भये त ् ऩुण्डयीकाऺॊ स फाह्याभ्मन्तय् शुसच्॥ स्जन रोगो को व्मवसाम-नौकयी भं त्रवऩयीत इस भॊि से शयीय औय ऩूजन साभग्री ऩय जर छीटं इसे ऩरयणाभ प्राद्ऱ हो यहे हं, ऩारयवारयक तनाव, आसथाक तॊगी, अॊदय फाहय औय फहाय दोनं शुद्ध हो जाता है योगं से ऩीिा हो यही हो एवॊ व्मत्रि को अथक भेहनत कयने क उऩयाॊत बी नाकाभमाफी, द:ख, सनयाशा प्राद्ऱ हो े ु आचभन: यही हो, तो एसे व्मत्रिमो की सभस्मा क सनवायण हे तु े ॐ कशवाम नभ: े चतुथॉ क फदन मा फुधवाय क फदन श्री गणेशजी की े े ॐ नायामण नभ: त्रवशेष ऩूजा-अचाना कयने का त्रवधान शास्त्रं भं फतामा हं । ॐ भध्वामे नभ: स्जसक पर से व्मत्रि की फकस्भत फदर जाती हं े हस्तो प्रऺल्म हसशाकशम नभ : े औय उसे जीवन भं सुख, सभृत्रद्ध एवॊ ऎद्वमा की प्रासद्ऱ होती आसान सुत्रद्ध: हं । श्री गणेश जी का ऩूजन अरग-अरग उद्दे श्म एवॊ ॐ ऩृथ्वी त्वमा धृता रोका दे त्रव त्व त्रवद्गणुनाधृता्। काभनाऩूसता हे तु अरग-अरग भॊि व त्रवसध-त्रवधान से त्व च धायम भा दे त्रव ऩत्रवि करू च आसनभ॥ ु ् फकमा जाता हं , इस सरमे महाॊ दशााई गई ऩूजन त्रवसध भं अॊतय होना साभान्म हं । यऺा भॊि: सबी ऩाठको क भागादशान हे तु श्री गणेश जी का े 'अऩक्राभन्तु बूतासन त्रऩशाचा् सवातो फदशा। ऩूजन त्रवधान फदमा जा यहा हं । सवेषाभवयोधेन ब्रह्मकभा सभायबे। अऩसऩान्तु ते बूता् मे बूता् बूसभसॊस्स्थता्। गणेश ऩूजा: मे बूता त्रवनकताायस्ते नद्शन्तु सशवाऻमा।' इस भॊि से दशं फदशाओॊ भं त्रऩरा सयसं सछटक स्जसेस े ऩूजन साभग्री : सभस्त बूत प्रेत फाधाओॊ का सनवायण होता है ककभ, कसय, ससॊदय, अवीय-गुरार, ऩुष्ऩ औय भारा, ुॊ ुॊ े ू चारव, ऩान, सुऩायी, ऩॊचाभृत, ऩॊचभेवा, गॊगाजर, स्वस्ती वाचन: त्रफरऩि, धूऩ-दीऩ, नैवैद्य भं रड्डू )रड्डू 3 ,5,7, 11त्रवषभ स्वस्स्त न इन्द्रो वृद्धश्रवा :स्वस्स्त न :ऩूषा त्रवद्ववेदा:। सॊख्मा भं (मा गूड अथवा सभश्री का प्रसाद रगाएॊ। रंग, स्वस्स्तनस्ता यऺो अरयद्शनेसभ :स्वस्स्त नो फृहस्ऩसतादधात॥ इरामची, नायीमर, करश, 1सभटय रार कऩडा, फयक, इस क फाद श्री गणेश जी क भॊगर ऩाठ कयना चाफहए े े इि, जनेऊ, त्रऩरी सयसं, इत्माफद आवश्मक साभग्रीमाॊ। जो की इस प्रकाय है
  • 13. 13 ससतम्फय 2012 गणेश जी का भॊगर ऩाठ: रॊफोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्नननाशो त्रवनामक्। सुभुखद्ळैकदन्तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक:। धुम्रकतुय ् गणाध्मऺो बारचॊद्रो गजानन॥ े रम्फोदयद्ळ त्रवकटो त्रवघ्रनाशो त्रवनामक:॥ ृ द्रादशैतासन नाभासन म् ऩठे च्छणु मादऽत्रऩ॥ धूम्रकतुगणाध्मऺो बारचन्द्रो गजानन:। े ा त्रवद्यायॊ बे त्रववाहे च प्रवेशे सनगाभे तथा। द्राद्रशैतासन नाभासन म :ऩठे च्छे णुमादत्रऩ॥ सॊग्राभे सॊकटे चैव त्रवघ्ननस्तस्म न जामते॥ त्रवद्यायम्बे त्रववाहे च प्रवेशे सनगाभे तथा। शुक्राॊफय धयॊ दे वॊ शसशवणं चतुबुजभ ्। ा सॊग्राभे सॊकटे चैव त्रवघ्रस्तस्म न जामते॥ प्रसन्न वदनॊ ध्मामेत ् सवा त्रवघ्ननोऩशाॊतमे॥ जऩेद् गणऩसत स्तोिॊ षस्ड्बभाासे परॊ रबेत ्। एकाग्रसचन होकय गणेश का ध्मान कयना चाफहए सॊवॊत्सये ण ससत्रद्धॊ च रबते नाि सॊशम्॥ श्री गणेश का ध्मान कयं : वक्रतुॊड भहाकाम सूमकोफट सभ प्रब। ा गजाननॊ बूतगणाफद सेत्रवतभ ् कत्रऩत्थ जम्फूपर सनत्रवघ्ननॊ करु भे दे व सवा कामेषु सवादा॥ ा ु चारुबऺणभ। उभासुतभ ् शोक त्रवनाश कायकभ ् नभासभ ् असबस्ससताथा ससद्धध्मथं ऩूस्जतो म् सुयासुयै्। त्रवघ्ननेद्वय ऩाद ऩॊकजभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम ् सवा त्रवघ्नन हयस्तस्भै गणासधऩतमे नभ्॥ नभ् गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्चायण कयं । त्रवघ्ननेद्वयाम वयदाम सुयत्रप्रमाम रॊफोदयाम सकराम जगस्त्धताम। नागाननाम श्रुसतमऻ त्रवबुत्रषताम गौयीसुताम आह्वानॊ: गणनाथ नभो नभस्ते॥ इस भॊि से श्री गणेश का आहवान कये मा भन ही भन ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् गणेशॊ स्भयासभ भं श्री गणेश जी को ऩधायने क सरमे त्रवनसत कयं । हाथभं े भॊि का उच्चायण कयक ऩुष्ऩ अत्रऩत कयं े ा अऺत रेकय आहवान कयं । आगच्छ बगवन्दे व स्थाने चाि स्स्थयो बव षोडशोऩचाय गणऩतीऩूजन: मावत्ऩूजाॊ करयष्मासभ तावत्वॊ सस्न्नधौ बव।। अस्मै प्राण् प्रसतद्षन्तु अस्मै प्राणा् ऺयन्तु च। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अस्मै दे वतभचीमा भाभहे सत च कद्ळन॥ गणेशॊ ध्मामासभ भॊि का उच्चायण कयक अऺते डारदं ..... े आसनॊ: इस भॊि से श्री गणेश की भूसता मा प्रसतभा ऩय हल्दी मा आसन सभत्रऩात कयं । मफद ऩहरे से वस्त्र त्रफछामा हुवा हं कभकभ से यॊ गे चारव डारं। मफद प्रसतभा क प्रहरे से ु ु े तो उस स्थान ऩय हल्दी मा कभकभ से यॊ गे अऺत ु ु प्राण-प्रसतद्षा हो गई हं तो आवश्मिा नहीॊ हं तफ कवर े डारकय ऩुष्ऩ अत्रऩत कयं । ा सुऩायी ऩय ही चारव डारं। यम्मॊ सुशोबनॊ फदव्मॊ सवा सौख्म कयॊ शुबभ ्। आसनॊ च भमादत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वय॥ स्भयण: ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आसनॊ हाथभं ऩुष्ऩ रेकय श्री गणेशजी का स्भयण कयं । सभऩामासभ॥ नभस्तस्भै गणेशाम सवा त्रवध्न त्रवनासशने॥ मफद द्ऴोक ऩढने भं कफठनाई हो तो आसन सभऩाासभ श्री कामाायॊबेषु सवेषु ऩूस्जतो म् सुयैयत्रऩ। गॊ गणेशाम नभ् का उच्चायण कयते हुवे गणेश जी के सुभुखद्ळैक दॊ तद्ळ कत्रऩरो गजकणाक्॥ चयण धोमे।
  • 14. 14 ससतम्फय 2012 ऩाद्यॊ: इस क स्थान ऩय ऩम् स्नानभ ् सभऩामासभ गॊ गणेशाम े उष्णोदक सनभारॊ च सवा सौगन्ध सॊमुतभ ्। ॊ नभ् का उच्चायण कये तथा ऩम् क स्थान ऩय दध कहं , े ू ऩाद प्रऺारनाथााम दत्तॊ ते प्रसतगृह्यताभ ्॥ दहीॊ कहं , धृतभ ् कहं , भधु कहं , शकया कहं क स्नान ा े ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ऩाद्यॊ सभऩामासभ॥ कयामे। ऩमसस्तु सभुद्भूतॊ भधुयाम्रॊ शसशप्रबभ ् । अघ्नमं: दध्मानीतॊ भमा दे व स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ आचभनीभं जर, पर, पर, चॊदन, अऺत, दस्ऺणा ू नवनीतसभुत्ऩन्नॊ सवासॊतोषकायकभ ् । इत्माफद हाथ भं यख कय सनम्न भॊि का उच्चायण कयं ... घृतॊ तुभ्मॊ प्रदास्मासभ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ अध्मा गृहाण दे वेश गॊध ऩुष्ऩऺतै् सह। तरु ऩुष्ऩ सभुत्ऩन्नॊ सुस्वादु भधुयॊ भधु । करुणा करु भं दे व गृहाणाध्मै् नभोस्तुते॥ ु तेज् ऩुत्रद्शकयॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् अघ्नमं सभऩामासभ इऺुसायसभुद्भूताॊ शकयाॊ ऩुत्रद्शदाॊ शुबाभ ् । ा भॊि का उच्चायण कयक अध्मा की साभग्रीमा अत्रऩात कयदं । े भराऩहारयकाॊ फदव्मॊ स्नानाथं प्रसतगृह्यताभ ् ॥ ऩमो दसध धृत चैव भधु च शकयामुतभ ्। ा आचभन: ऩॊचाभृत भमानीतॊ सनानाथा प्रसतघृहमताभ॥ सवा तीथा सभामुि सुगॊसध सनभार जरभ ्। ॊ आचम्मताॊ भमा दत्तॊ गृहीत्वा ऩयभेद्वयॊ ॥ वस्त्रॊ: ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् आचभनॊ ऩॊचाभृत स्नान क फाद स्वच्छ कय क वस्त्र ऩहनामे मा े े सभऩामासभ॥ सभत्रऩात कयं । सवा बूषाफदक सौम्मे रोकरज्जा सनवायणे । े स्नानॊ: भमोऩऩाफदते तुभ्मॊ वाससी प्रसतगृहीताभ ् ॥ गॊगा च मभुना ये वा तुॊगबद्रा सयस्वसत। ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् वस्त्रोऩवस्त्रे कावेयी सफहता नद्य् सद्य् स्नाथाभत्रऩता॥ ा सभऩामासभ॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् स्नानॊ सभऩामासभ भॊि का उच्चायण कयते हुवे स्नान कयामे। मऻोऩवीत ततऩद्ळमात सनम्न भॊि से मऻोऩवीत ऩहनामे ऩॊचाभृत स्नान : नवसभस्तॊतुसबमुि त्रिगुणॊ दे वताभमॊ। तत ऩद्ळमात ऩॊचाभृत से क्रभश् दध, दही, घी, शहद, ू सऩफीतॊ भमा दत्तॊ गृहाण ऩयभेद्वयभ ्॥ शक्कय से स्नान कया कय शुद्धजर मा गॊगाजर से उि ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् मऻोऩत्रवतॊ भॊि से ऩुन् स्वच्छ कयरे। सभऩामासभ॥ तत ऩद्ळमात शुद्ध वस्त्र से ऩोछ कय प्रसतत्रद्षत कयं । चॊदन: दध स्नान : ू ततऩद्ळमात रार चॊदन चढामे। काभधेनु सभुत्ऩनॊ सवेषाॊ जीवन ऩयभ ्। श्रीखण्ड चन्दन फदव्मॊ कशयाफद सुभनीहयभ ्। े ऩावनॊ मऻ हे तुद्ळ ऩम :स्नानाथाभत्रऩतभ ्॥ ा त्रवरेऩनॊ सुश्रद्ष चन्दनॊ प्रसतगृहमतभ ्॥ ॐ ससत्रद्धफुत्रद्ध सफहत श्री गणेशाम नभ् ककभॊ सभऩामासभ॥ ुॊ ु