2. जन्म :
३१ जुलाई १८८० को बनारस में हुआ I
असली नाम:
धनपत राय (नवाब राय)
पत्नी:
शिवरानी देवी
मृत्यु:
७ अक्टूबर १९३६
3. व्यक्तित्व
उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के
ववख्यात उपन्यासकार िरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने
उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधधत ककया था।
प्रेमचंद ने हहन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा
का ववकास ककया जजसने पूरी िती के साहहत्य का
मागगदिगन ककया।
आगामी एक पूरी पीढी को गहराई तक प्रभाववत कर
प्रेमचंद ने साहहत्य की यथाथगवादी परंपरा की नींव रखी।
4. उनका लेखन हहन्दी साहहत्य की एक ऐसी ववरासत है
जजसके बबना हहन्दी के ववकास का अध्ययन अधूरा होगा।
वे एक संवेदनिील लेखक, सचेत नागररक, कु िल वक्ता
तथा सुधी संपादक थे।
5. कृ तित्व
प्रेमचंद आधुननक हहन्दी कहानी के वपतामह माने जाते हैं।
उनकी पहली हहन्दी कहानी सरस्वती पबत्रका के हदसम्बर अंक में
१९१५ में सौत नाम से प्रकाशित हुई।
१९३६ में अंनतम कहानी कफन नाम से प्रकाशित हुई ।
6. प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोजे-वतन नाम से आया
जो १९०८ में प्रकाशित हुआ। सोजे-वतन यानी देि का ददग।
देिभजक्त की भावना से ओतप्रोत रचना थी।
बहुमुखी प्रनतभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक,
समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आहद अनेक ववधाओं में
साहहत्य की सृजटट की।
प्रमुखतया उनकी ख्यानत कथाकार के तौर पर हुई और अपने
जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधध से सम्माननत
हुए।
7. उन्होंने कु ल १५ उपन्यास, ३०० से कु छ अधधक कहाननयााँ, ३ नाटक,
१० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृटठों के लेख, सम्पादकीय,
भाषण, भूशमका, पत्र आहद की रचना की लेककन जो यि और
प्रनतटठा उन्हें उपन्यास और कहाननयों से प्राप्त हुई, वह अन्य
ववधाओं से प्राप्त न हो सकी।
उनका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा नहीं हो सका और मरणोपरांत उनके
पुत्र अमृत राय ने मंगलसूत्र पूरा ककया।
8. कहानी
पंच परमेश्वर'
'गुल्ली डंडा'
'दो बैलों की कथा'
'ईदगाह'
'बडे भाई साहब'
'पूस की रात'
'कफन'
'ठाकु र का कु आाँ'
'सद्गनत'
'बूढी काकी'
'तावान'
'ववध्वंस'
'दूध का दाम'
'मंत्र'
11. सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल वववाह को
आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ
हुआ।
महहला-के जन्द्रत साहहत्य के इनतहास में इस
उपन्यास का वविेष स्थान है। इस उपन्यास की
कथा का के न्द्र और मुख्य पात्र 'ननमगला' नाम की
१५ वषीय सुिील लडकी है।
ननमगला में अनमेल वववाह और दहेज प्रथा की
दुखान्त कहानी है।
ननमगला के माध्यम से भारत की मध्यवगीय
युवनतयों की दयनीय हालत का धचत्रण हुआ है।
उपन्यास के अन्त में ननमगला की मृत्यृ इस
कु जत्सत सामाजजक प्रथा को शमटा डालने के शलए
एक भारी चुनौती है।
ननमगला
12. नारी जानत की परविता, ननस्सहाय अवस्था,
आधथगक एवं िैक्षक्षक परतंत्रता, अथागत् नारी दुदगिा पर
गौर ककया गया है।
नारी जीवन की समस्याओं के साथ-साथ समाज के
धमागचायों, मठाधीिों, दहेज-प्रथा, बेमेल वववाह,
पुशलस की घूसखोरी, वेश्यागमन, मनुटय के दोहरे
चररत्र, साम्प्रदानयक द्वेष आहद सामाजजक ववकृ नतयों
से भरा है।
इन तमाम ववकृ नतयों के साथ-साथ यह उपन्यास
घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का
अनुसंधान करता है।
प्रेमचंद ने सेवासदन उपन्यास सन् १९१६ में उदुग
भाषा में शलखा था। बाद में सन १९१९ में उन्होने
इसका हहन्दी रुपान्तरण स्वयं ककया।
सेवासदन
13. गोदान प्रेमचंद का हहंदी उपन्यास है जजसमें उनकी कला
अपने चरम उत्कषग पर पहुाँची है।
गोदान में भारतीय ककसान का संपूणग जीवन - उसकी
आकांक्षा और ननरािा, उसकी धमगभीरुता और
भारतपरायणता के साथ उसकी बेबसी और ननरीहता-
का जीता जागता धचत्र उपजस्थत ककया गया है।
ककसान ककतना शिधथल और जजगर हो चुका है, यह
गोदान में प्रत्यक्ष देखने को शमलता है।
गोदान में प्रेमचंद जी हमारे सामने तब से लेकर आज
तक के ककसानों की दुदगिा को अपने इस उपन्यास के
मुख्या पात्र होरी के जररये दजटटग हैं।
गोदान
14. रंगभूशम
रंगभूशम उपन्यास नौकरिाही तथा पूाँजीवाद के साथ
जनसंघषग का ताण्डव; सत्य, ननटठा और अहहंसा के
प्रनत आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपजस्थत मध्यपान
तथा स्त्री दुदगिा का भयावह धचत्र यहााँ अंककत है।
परतंत्र भारत की सामाजजक, राजनीनतक, धाशमगक
और आधथगक समस्याओं के बीच राटरीयता की
भावना से पररपूणग यह उपन्यास लेखक के राटरीय
दृजटटकोण को बहुत ऊाँ चा उठाता है।
कथानायक सूरदास का पूरा जीवनक्रम, यहााँ तक
कक उसकी मृत्यु भी, राटरवपता महात्मा गााँधी की
छवव लगती है। सूरदास की मृत्यु भी समाज को
एक नई संगठन-िजक्त दे गई।