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आ वश्यक निवेदि
प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद
श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए
हैं |
इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के
पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
प्ररूपण 7 - इन्द्न्िय म गवण
आ ि यव िेलमिंद ससद् ंतिक्रवतीव
आहलमंद जह देव , आववसेसं आहमहंनत मण्णंत ।
ईसंनत एक्कमेक्कं , इंद इव इंददये ज ण॥164॥
❀आर्व - जजस प्रक ि आहलमन्ि देव ें में दूसिे
की आपेक्ष ि िखकि प्रत्येक आपिे-आपिे
क े स्व मी म िते हैं, उसी प्रक ि इन्द्न्िय ँ भी
हैं ॥164॥
इन्द्न्िय स्वरूप
“इन्दतीनत इन्ि”- ज े आ ज्ञ आ ैि एेश्वयव व ि है वह इन्ि है आर् वत् आ त्म ही इन्ि
है| आ त्म क े पद र् ेों क े ज ििे में ज े लिंग निलमत्त ह ेत है वह इन्ि क लिंग
इन्द्न्िय कही ज ती है |
ज े गूढ़ पद र्व क ज्ञ ि कि त है, उसे लिंग कहते हैं | आत: ज े सूक्ष्म आ त्म के
आन्द्स्तत्व क ज्ञ ि कि िे में लिंग आर् वत् क िण है वह इन्द्न्िय कहि ती है |
इन्ि शब्द ि मकमव क व िी है| एेसे ि मकमव के द्व ि ज े ििी गई है वह इन्द्न्िय है|
मददआ विणखआ ेवसमुत्र्ववसुद्ी हु तज्जब ेह े व ।
भ ववंददयं तु दव्वं, देहुदयजदेहलिण्हं तु॥165॥
❀आर्व - इन्द्न्िय के द े भेद हैं - भ वेन्द्न्िय एवं
िव्येन्द्न्िय।
❀मनतज्ञ ि विण कमव के क्षय ेपशम से उत्पन्न ह ेिे
व िी ववशुद्धद् आर्व उस ववशुद्धद् से उत्पन्न ह ेिे व िे
उपय ेग त्मक ज्ञ ि क े भ वेन्द्न्िय कहते हैं। आ ैि
❀शिीि ि मकमव के उदय से बििेव िे शिीि के लिह्न-
ववशेष क े िव्येन्द्न्िय कहते हैं ॥165॥
इन्द्न्िय
िव्येन्द्न्िय
शिीि ि मकमव के उदय से
बििेव िे शिीि के लिह्न-ववशेष
भ वेन्द्न्िय
मनतज्ञ ि विण कमव के क्षय ेपशम से
उत्पन्न ह ेिे व िी ववशुद्धद् आर्व
उस ववशुद्धद् से उत्पन्न ह ेिे व ि
उपय ेग त्मक ज्ञ ि
भ वेन्द्न्िय
िब्ब्ि
मनतज्ञ ि विण दद कमव
के क्षय ेपशम से उत्पन्ि
ववशुद्धद्, उघ ड़
उपय ेग
ववशुद्धद् (िब्ब्ि) से
उत्पन्ि प्रवतविरूप ज्ञ ि
िव्येन्द्न्िय
निवववत्तत्त
जजि प्रदेश ें के द्व ि
ववषय ें क े ज िते हैं
उपकिण
ज े निवववत्तत्त के
सहक िी, निकटवतीव हैं
निवववत्तत्त के भेद
निवववत्तत्त
आभ्यंति
आ त्मप्रदेश ें क आ क ि
ब ह्य
पुद्गि क आ क ि
उपकिण के भेद
उपकिण
आभ्यंति
िेत्र में क ि , सफे द मंड़ि
बह्य
िेत्र की पिकें , भ ैंहें
ज्ञ ि की प्रगट प्र प्त शलि िब्ब्ि
इस शलि क प्रय ेग उपय ेग
इस उपय ेग में सहक िी स िि
िव्य
इन्द्न्िय
िव्य इन्द्न्िय के लिये सहक िी उपकिण
फ सिसगंिरूवे, सद्दे ण णं ि लिण्हयं जेससं।
इगगवबनतिदुपंलिंददय, जीव द्धणयभेयलभण्ण आ े॥166॥
❀आर्व - जजि जीव ें के ब ह्य लिह्न (िव्येन्द्न्िय) ह े
आ ैि उसके द्व ि ह ेिे व ि स्पशव, िस, गंि,
रूप, शब्द इि ववषय ें क ज्ञ ि ह े उिक े क्रम
से एके न्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, त्रीन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय,
पंिेन्द्न्िय जीव कहते हैं, आ ैि
❀इिके भी आिेक आव न्ति भेद हैं ॥166॥
इन्द्न्िय म गवण के भेद
एके न्द्न्िय द्वीन्द्न्िय त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय पंिेन्द्न्िय
संज्ञी
आसंज्ञी
इंदिय म गवण के भेद ें क स्वरूप
एकें दिय
•जजिके स्पशविरूप ब ह्य लिह्न ह े आ ैि स्पशव संबंिी
ज्ञ ि ह े, उसे एकें दिय कहते हैं |
द्वीन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि रूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि स्पशव,
िस संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे द्वीन्द्न्िय कहते हैं |
त्रीन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि , घ्र णरूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि
स्पशव, िस, गंि संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे त्रीन्द्न्िय कहते
हैं |
इंदिय म गवण के भेद ें क स्वरूप
ितुरिन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षुरूप ब ह्य लिह्न ह ें
आ ैि स्पशव, िस, गंि, वणव संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे
ितुरिन्द्न्िय कहते हैं |
पंिेन्द्न्िय
•जजिके स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु, कणवरूप ब ह्य
लिह्न ह ें आ ैि स्पशव, िस, गंि, वणव, शब्द संबंिी
ज्ञ ि ह े, उसे पंिेन्द्न्िय कहते हैं |
इन्द्न्िय म गवण के भेद एवं उद हिण
जीव ब ह्य लिह्न
(िव्येन्द्न्िय)
वकसक ज्ञ ि
(भ वेन्द्न्िय)
उद हिण
एके न्द्न्िय स्पशवि स्पशव पवथ्वी, जि, आन्द्‍ि, व यु, विस्पनत
द्वीन्द्न्िय स्पशवि, िसि स्पशव, िस िट, शंख, सीप, कें िुआ , ज ेंक
आ दद
त्रीन्द्न्िय स्पशवि, िसि ,
घ्र ण
स्पशव, िस, गंि िींटी, जू, िींख, खटमि, वबच्‍ू
आ दद
ितुरिन्द्न्िय स्पशवि, िसि ,
घ्र ण, िक्षु
स्पशव, िस, गंि,
रूप
मच्‍छि, भ ैंि , मक्खी, नततिी,
ड़ ंस, पतंग आ दद
पंिेन्द्न्िय स्पशवि, िसि ,
घ्र ण, िक्षु, कणव
स्पशव, िस, गंि,
रूप, शब्द
मिुष्य, देव, ि िकी, पशु-पक्षी
एइंददयस्स फु सणं, एक्कं वव य ह ेदद सेसजीव णं।
ह ेंनत कमउन्द्ड़्ढ़य इं, जजब्भ घ णन्द्च्‍छस ेत्त इं॥167॥
❀आर्व - एके न्द्न्िय जीव के एक स्पशविेन्द्न्िय
ही ह ेती है।
❀शेष जीव ें के क्रम से िसि (जजह्व ), घ्र ण,
िक्षु आ ैि श्र ेत्र बढ़ ज ते हैं ॥167॥
इन्द्न्िय ें क क्रम
१ इन्द्न्िय
स्पशवि
२ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि
३ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि ,
घ्र ण
४ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि ,
घ्र ण,
िक्षु
५ इन्द्न्िय
• स्पशवि,
िसि ,
घ्र ण,
िक्षु,
कणव
िणुवीसड़दसयकदी, ज ेयणछ द िहीणनतसहस्स ।
आट्ठसहस्स िणूणं, ववसय दुगुण आसन्द्ण्ण त्तत्त॥168॥
❀आर्व - एके न्द्न्िय के स्पशवि, द्वीन्द्न्िय के िसि एवं त्रीन्द्न्िय
के घ्र ण क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र क्रम से ि ि स ै ििुष,
ि ैसठ ििुष, स ै ििुष प्रम ण है।
❀ितुरिन्द्न्िय के िक्षु क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र द े हज ि िव स ै
ि ैवि य ेजि है। आ ैि आ गे आसंज्ञीपयवन्त ववषयक्षेत्र दूि -
दूि बढ़त गय है।
❀आसैिी के श्र ेत्रेन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र आ ठ हज ि
ििुष प्रम ण है ॥168॥
सन्द्ण्णस्स व ि स ेदे, नतण्हं णव ज ेयण द्धण िक्खुस्स।
सत्तेत िसहस्स , बेसदतेसट्ट्ठमददिेय ॥169॥
❀आर्व - संज्ञी जीव के स्पशवि, िसि , घ्र ण इि तीि
इन्द्न्िय ें में से प्रत्येक क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र ि ै-ि ै
य ेजि है आ ैि
❀श्र ेत्रेन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र ब िह य ेजि है तर्
❀िक्षुरिन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र सैत िीस हज ि द े
स ै त्रेसठ य ेजि से कु छ आधिक है ॥169॥
इन्द्न्िय ें क ववषय क्षेत्र
इन्द्न्िय एके न्द्न्िय द्वीन्द्न्िय त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय
आसैिी
पंिेन्द्न्िय
सैिी पंिेन्द्न्िय
ििुष में ििुष में ििुष में ििुष में ििुष में य ेजि में
स्पशवि 400 800 1600 3200 6400 9
िसि — 64 128 256 512 9
घ्र ण — — 100 200 400 9
िक्षु — — — 2954 य ेजि 5908 य ेजि 47263
7
20
श्र ेत्र — — — — 8000 12
आर् वत् एक-एक इन्द्न्िय वकति ज ि सकती है?
इन्द्न्िय ें के द्व ि वकतिे दूि तक क ववषय ज्ञ त ह े सकत है?
क्य इन्द्न्िय ँ ूकि ही ज िती हैं?
❀िक्षु इन्द्न्िय आ ैि मि वबि ूकि ही ज िते हैं ।
❀पिन्तु शेष 4 इन्द्न्िय ँ पद र् ेों क े स्पशव कि आ ैि वबि स्पशव कि
द ेि ें प्रक ि से ज िती हैं।
❀देखें : िवि पु. 13, पवष्ठ 225
❀देखें : िवि पु. 9, पवष्ठ 159
❀हम आ पके वतवम ि में ज े स म न्य ज्ञ ि है, वह प्र प्यक िी (ूकि
ज ििे व ि ) है । पिन्तु वकसी जीव के ववशेष क्षय ेपशम से वह
वबि पद र् ेों के स्पशव से भी पद र् ेों क े ज ि सकत है | जैसे
िक्रवतीव आ दद क इंदिय-ज्ञ ि
पुट्ठं सुणेइ सद्दं, आप्पुट्ठं िेय पस्ससे रूवं ।
गंिं िसं ि फ सं, बद्ं पुट्ठं ि ज ण दद ॥ि. 9/54॥
❀आर्व: िक्षु रूप क े आस्पवष्ट ही ग्रहण किती है, आ ैि
‘ि’ शब्द से मि भी आस्पवष्ट ही वस्तु क े ग्रहण
कित है। शेष इन्द्न्िय ँ गंि, िस आ ैि स्पशव क े बद्
आर् वत् आपिी-आपिी इन्द्न्िय ें में नियलमत आ ैि स्पवष्ट
ग्रहण किती हैं, आ ैि ‘ि’ शब्द से आस्पवष्ट भी ग्रहण
किती हैं। (िवि पु. 9, ग र् 54)
नतन्द्ण्णसयसट्ट्ठवविहहद, िक्खं दसमूित दड़दे मूिम्।
णवगुद्धणदे सट्ट्ठहदे, िक्खुप्फ सस्स आद् णं॥170॥
❀आर्व - तीि स ै स ठ कम एक ि ख य ेजि
जम्बूद्वीप के ववष्कम्भ (व्य स, Diameter) क वगव
किि आ ैि
❀उसक दशगुण किके वगवमूि निक िि ,
❀इससे ज े ि शश उत्पन्न ह े उसमें िव क गुण आ ैि
स ठ क भ ग देिे से िक्षुरिन्द्न्िय क उत्कव ष्ट
ववषयक्षेत्र निकित है ॥170॥
िक्षु इन्द्न्िय क उत्कव ष्ट क्षेत्र कै से बित है ?
❀ एक सूयव क े पूि जंबूद्वीप भ्रमण कििे में 2 ददि िगते हैं—य िे 60 मुहूतव
❀ जंबूद्वीप भ्रमण क क्षेत्र = 𝝅 × D
❀ य िे जंबूद्वीप की परिधि (Circumference)
❀ = 10 99640 य ेजि
❀ = 315089 य ेजि
❀ परिधि निक ििे के लिए 1 ि ख य ेजि में से 360 य ेजि कम वकये
क्य ेंवक जब सूयव जंबूद्वीप के इति आंदि आ कि भ्रमण कित है तब
िक्रवतीव उसे देख प त है ।
❀ ि ेट: 𝝅 क प्रम ण आ गम में 10 म ि है ।
िक्षु इन्द्न्िय क उत्कव ष्ट क्षेत्र कै से बित है ?
❀एक सूयव 60 मुहूतव में 315089 य ेजि भ्रमण
कित है,
❀त े 9 मुहूतव में वकति भ्रमण ह ेग ?
❀
315089 य ेजि
60 मुहूतव
9 मुहूतव = 47263
7
20
य ेजि
िक्षु इंदिय क यह क्षेत्र कब बित है?
❀ककव संक्र ंनत क े जब 18 मुहूतव क ददि आ ैि
12 मुहूतव की ि त ह ेती है
❀तब िक्रवतीव आय ेध्य में आपिे महि की छत
से
❀निषि पववत पि उददत सूयव के ववम ि में
जजिवबम्ब क दशवि कित है ।
िक्खूस ेदं घ णं, जजब्भ य िं मसूिजवण िी।
आनतमुत्तखुिप्पसमं, फ सं तु आणेयसंठ णं॥171॥
आर्व -
मसूि के
सम ि िक्षु
क ,
जव की
ि िी के
सम ि श्र ेत्र
क ,
नति के
फू ि के
सम ि घ्र ण
क तर्
खुिप के
सम ि जजह्व
क आ क ि
है आ ैि
स्पशविेन्द्न्िय
के आिेक
आ क ि हैं
।।१७१।।
आंगुिआसंखभ गं, संखेज्जगुणं तद े ववसेसहहयं।
तत्त े आसंखगुद्धणदं, आंगुिसंखेज्जयं तत्तु॥172॥
❀आर्व - आ त्मप्रदेश ें की आपेक्ष िक्षुरिन्द्न्िय क आवग हि
घि ंगुि के आसंख्य तवें भ गप्रम ण है आ ैि
❀इससे संख्य तगुण श्र ेत्रेन्द्न्िय क आवग हि है।
❀श्र ेत्रेन्द्न्िय से पल्य के आसंख्य तवें भ ग आधिक घ्र णेन्द्न्िय
क आवग हि है।
❀घ्र णेन्द्न्िय से पल्य के आसंख्य तवें भ ग गुण िसिेन्द्न्िय क
आवग हि हैं ज े घि ंगुि के संख्य तवें भ गम त्र है ॥172॥
सुहमद्धणग ेदआपज्जत्तयस्स ज दस्स तददयसमयन्द्म्ह।
आंगुिआसंखभ गं जहण्णमुक्कस्सयं मच्‍छे॥173॥
❀आर्व - स्पशविेन्द्न्िय की जघन्य आवग हि घि ंगुि के
आसंख्य तवें भ गप्रम ण है आ ैि यह आवग हि सूक्ष्म
निग ेददय िब्ध्यपय वप्तक के उत्पन्न ह ेिे के तीसिे
समय में ह ेती है।
❀उत्कव ष्ट आवग हि मह मत्स्य के ह ेती है, इसक
प्रम ण संख्य त घि ंगुि है ॥173॥
इन्द्न्िय ें की आवग हि
इन्द्न्िय अवगाहना
िक्षु घि ंगुि
आसं.
कणव (श्र ेत्र) िक्षु-आ क ि संख्य त
घ्र ण श्र ेत्र क ि +
श्र ेत्र क ि
൘पल्य
आसं.
िसि घ्र ण क ि
पल्य
आसं.
=
घि ंगुि
सं.
स्पशवि जघन्य =
घि ंगुि
आसं.
(सूक्ष्म निग ेददय )
उत्कव ष्ट = संख्य त
घि ंगुि (मह मत्स्य)
स्पशवि क े छ ेड़कि शेष 4 इन्द्न्िय ें में वकसकी
कम / ज्य द आवग हि
चक्षु श्रोत्र घ्राण रसना
संख्य तगुण
आसंख्य तवें भ ग आधिक
आसंख्य तवें भ ग गुण
ण वव इंददयकिणजुद , आव‍गह दीहह ग हय आत्र्े।
णेव य इंददयस ेक्ख , आद्धणंददय णंतण णसुह ॥174॥
❀आर्व - ज े जीव नियम से इन्द्न्िय ें के किण भ ैहें
हटमक िि आ दद व्य प ि, उिसे संयुि िहीं है, इसलिये
ही आवग्रह ददक क्षय ेपशम ज्ञ ि से पद र्व क ग्रहण
(ज िि ) िहीं किते। तर्
❀इन्द्न्ियजनित ववषय-संबंि से उत्पन्न सुख उससे संयुि िहीं
हैं वे आहोंत आ ैि ससद् आतीन्द्न्िय आिंत ज्ञ ि आ ैि आतीन्द्न्िय
आिंत सुख से ववि जम ि ज िि । क्य ेंवक उिक ज्ञ ि
आ ैि सुख शुद् त्मतत्त्व की उपिब्ब्ि से उत्पन्न हुआ है
॥174॥
आतीन्द्न्िय जीव
जीवि-मुि (आरिहंत) पिम-मुि (ससद्)
आतीन्द्न्िय
जीव
इन्द्न्ियकिण
(वक्रय ) से िहहत
हैं
आवग्रह दद
क्षय ेपशम ज्ञ ि
द्व ि पद र् ेों क
ग्रहण िहीं है,
आिंत
आतीन्द्न्िय ज्ञ ि
इन्द्न्ियसुख से
िहहत
आिंत
आतीन्द्न्िय सुख
र् विसंखवपपीलिय, भमिमणुस्स ददग सभेद जे।
जुगव िमसंखेज्ज , णंत णंत द्धणग ेदभव ॥175॥
❀आर्व - स्र् वि एके न्द्न्िय जीव, शंख आ ददक
द्वीन्द्न्िय, िींटी आ दद त्रीन्द्न्िय, भ्रमि आ दद
ितुरिन्द्न्िय, मिुष्य दद पंिेन्द्न्िय जीव आपिे-आपिे
आंतभेवद ें से सहहत आसंख्य त संख्य त हैं आ ैि
❀निग ेददय जीव आिंत िन्त हैं ॥175॥
संक्षेप से एके न्द्न्िय दद जीव ें की संख्य
जीव संख्य
एके न्द्न्िय में निग ेददय आिंत िंत
एके न्द्न्िय में निग ेददय क े छ ेड़कि शेष सवव आसंख्य त संख्य त
द्वीन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
त्रीन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
ितुरिन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
पंिेन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
तसहीण े संस िी, एयक्ख त ण संखग भ ग ।
पुण्ण णं परिम णं, संखेज्जददमं आपुण्ण णं॥176॥
❀आर्व - संस ि ि शश में से त्रस ि शश क े घट िे
पि जजति शेष िहे उतिे ही एके न्द्न्िय जीव हैं
आ ैि
❀एके न्द्न्िय जीव ें की ि शश में संख्य त क भ ग
देिे पि एक भ गप्रम ण आपय वप्तक आ ैि शेष
बहुभ गप्रम ण पय वप्तक जीव हैं ॥176॥
सवव जीव
संस िी
एके न्द्न्िय
पय वप्त
बहुभ ग
एके न्द्न्िय
संख्य त
(संख्य त – 1)
आपय वप्त
एकभ ग
एके न्द्न्िय
संख्य त
शेष
मुक्त
एकें दिय जीव
❀संस िी जीव = सवव जीवि शश – मुक्त जीवि शश
❀एके न्द्न्िय = संस िी जीव – त्रस जीव
❀आपय वप्त एके न्द्न्िय =
एके न्द्न्िय
संख्य त
❀पय वप्त एके न्द्न्िय = शेष बहुभ ग
❀इसे लिखिे क तिीक 
एके न्द्न्िय
संख्य त
(संख्य त – 1)
ब दिसुहम तेससं, पुण्ण पुण्णे त्तत्त छहव्वह णं वप।
तक्क यम‍गण ये, भद्धणज्जम णक्कम े णेय े॥177॥
❀आर्व - एके न्द्न्िय जीव ें के स म न्य से द े भेद हैं — ब दि
आ ैि सूक्ष्म।
❀इसमें भी प्रत्येक के पय वप्तक आ ैि आपय वप्तक के भेद से
द े-द े भेद हैं।
❀इसप्रक ि एके न्द्न्िय ें की छह ि शशय ें की संख्य क क्रम
क यम गवण में कहेंगे वह ँ से ही समझ िेि ॥177॥
एके न्द्न्िय
ब दि
पय वप्त आपय वप्त
सूक्ष्म
पय वप्त आपय वप्त
ि ेट: इिकी संख्य क य म गवण में बत एँगे ।
वबनतिपम णमसंखेणवहहदपदिंगुिेण हहदपदिं।
हीणकमं पदड़भ ग े, आ वलिय संखभ ग े दु॥178॥
❀आर्व - प्रति ंगुि के आसंख्य तवें भ ग क जगतप्रति में
भ ग देिे से ज े िब्ि आ वे उति स म न्य से त्रसि शश क
प्रम ण है।
❀पिन्तु पूवव-पूवव द्वीन्द्न्िय ददक की आपेक्ष उत्ति ेत्ति
त्रीन्द्न्िय ददक क प्रम ण क्रम से हीि-हीि है आ ैि
❀इसक प्रनतभ गह ि आ विी क आसंख्य तव ँ भ ग है
॥178॥
त्रस जीव ें क प्रम ण
❀
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
आसंख्य त
= सवव त्रस जीव
❀इिमें भी द्वीन्द्न्िय सव वधिक हैं,
❀उिसे कु छ कम त्रीन्द्न्िय हैं,
❀उिसे कु छ कम ितुरिन्द्न्िय हैं,
❀सबसे कम पंिेन्द्न्िय हैं ।
बहुभ गे समभ ग े िउण्णमेदेससमेक्कभ गन्द्म्ह।
उत्तकम े तत्र् वव बहुभ ग े बहुगस्स देआ े दु॥179॥
❀आर्व - त्रसि शश में आ विी के आसंख्य तवें भ ग क भ ग
देकि िब्ि बहुभ ग के सम ि ि ि भ ग किि आ ैि
❀एक-एक भ ग क े द्वीन्द्न्िय दद ि ि ें ही में ववभि कि,
❀शेष एक भ ग में वफि से आ विी के आसंख्य तवें भ ग क
भ ग देि ि हहये आ ैि
❀िब्ि बहुभ ग क े बहुत संख्य व िे क े देि ि हहये।
❀इसप्रक ि आंतपयोंत किि ि हहये॥179॥
प्रनतभ ग में ब ँटिे क तिीक
❀ उद हिण—म ि वक सवव त्रस ि शश = 256; एवं
आ विी
आसंख्य त
= 4
❀
त्रस जीव
आ विी
आसंख्य त
=
256
4
= 64 (एक भ ग)
❀ बहुभ ग = सवव ि शश – एक भ ग
192 = 256 − 64
बहुभ ग के ि ि सम ि भ ग कि े ।
❀
192
4
= 48
❀ इसे प्रत्येक जीवि शश में ब ँट द े
❀शेष िहे एकभ ग (64) क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग द े ।
❀
64
4
= 16
❀एकभ ग आिग िखकि बहुभ ग द्वीन्द्न्िय क े द े ।
❀ 64 – 16 = 48 (द्वीन्द्न्िय क प्रनतभ ग)
❀शेष एकभ ग क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग िग आ े ।
द्वी. त्री. ितु. पंिे.
समभ ग 48 48 48 48
❀
16
4
= 4
❀बहुभ ग क े त्रीन्द्न्िय में द े ।
❀16 – 4 = 12 (त्रीन्द्न्िय क प्रनतभ ग)
❀शेष एकभ ग क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग द े ।
❀
4
4
= 1
❀बहुभ ग क े ितुरिन्द्न्िय क े द े । 4 – 1 = 3
❀शेष एकभ ग क े पंिेन्द्न्िय क े द े । 1
सवव त्रस जीव ें की संख्य
द्वी. त्री. ितु. पंिे.
समभ ग 48 48 48 48
प्रनतभ ग 48 12 3 1
कु ि संख्य 96 60 51 49
इसी प्रक ि व स्तववक गद्धणत में किि ि हहए । त े भी
•
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
आसंख्य त
प्रत्येक जीव
•
त्रस जीव
4
+
द्वीन्द्न्िय जीव कु ि त्रस जीव ें के ितुर्व भ ग से
कु छ आधिक है ।
•
त्रस जीव
4
−त्रीन्द्न्िय जीव ितुर्व भ ग से कु छ कम हैं य िे
•
त्रस जीव
4
=ितुरिन्द्न्िय जीव कु छ आ ैि कम हैं —
•
त्रस जीव
4
≡पंिेन्द्न्िय जीव कु छ आ ैि कम हैं —
नतवबपिपुण्णपम णं, पदिंगुिसंखभ गहहदपदिं।
हीणकमं पुण्णूण , वबनतिपजीव आपज्जत्त ॥180॥
❀आर्व - प्रति ंगुि के संख्य तें भ ग क जगतप्रति में भ ग देिे से
ज े िब्ि आ वे उति ही त्रीन्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय में
से प्रत्येक के पय वप्तक क प्रम ण है।
❀पिन्तु यह प्रम ण ‘बहुभ गे समभ ग े' इस ग र् में कहे हुए क्रम
के आिुस ि उत्ति ेत्ति हीि-हीि है।
❀आपिी-आपिी समस्त ि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण घट िे पि
आपय वप्तक द्वीन्द्न्िय, त्रीन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय, आ ैि पंिेन्द्न्िय जीव ें क
प्रम ण निकित है ॥180॥
❀त्रस जीव ें में पय वप्त जीव =
जगत् प्रति
൘
प्रति ंगुि
संख्य त
❀इसे भी पूव ेवक्त प्रक ि से समभ ग से ब ंटि ,
पिन्तु प्रनतभ ग क क्रम यह िखि —
❀त्रीन्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय ।
❀आपिी-आपिी संख्य में से पय वप्त संख्य घट िे
पि आपिी-आपिी आपय वप्त संख्य निकिती है ।
त्रस जीव ें की संख्य
कु ि त्रस जीव =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्‍यात
द्वीन्द्न्िय
स म न्य से — प्रत्येक की संख्य =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्‍यात
त्रीन्द्न्िय
ितुरिन्द्न्िय
पंिेन्द्न्िय
ववशेष आपेक्ष : द्वीन्द्न्िय > त्रीन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय
त्रस पय वप्तक ें की संख्य
कु ि त्रस पय वप्तक =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
सांख्‍यात
द्वीन्द्न्िय
स म न्य से — प्रत्येक की संख्य =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
सांख्‍यात
त्रीन्द्न्िय
ितुरिन्द्न्िय
पंिेन्द्न्िय
ववशेष आपेक्ष : त्रीन्द्न्िय > द्वीन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय
यह ँ भी पूवव के सम ि ही कु ि पय वप्त त्रस जीव 256 म िकि एवं
आ विी
आसंख्य त
= 4 म िकि
द्वीन्द्न्िय ददक पय वप्तक जीव ें की संख्य आपिे क्रम िुस ि निक ि िेि ि हहये ।
त्रस आपय वप्त जीव ें की संख्य
कु ि त्रस आपय वप्त जीव =
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्‍यात
−
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
सांख्‍यात
=
जगत् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्‍यात
द्वीन्द्न्िय आपय वप्त
स म न्य से — प्रत्येक की संख्य =
जगत ् प्रतर
൙
प्रतराांगुल
असांख्‍यात
त्रीन्द्न्िय आपय वप्त
ितुरिन्द्न्िय आपय वप्त
पंिेन्द्न्िय आपय वप्त
ववशेष आपेक्ष : द्वीन्द्न्िय > त्रीन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय
❀इन्द्न्िय ें के ज ििे से ि भ ?
➢Reference : ग ेम्मटस ि जीवक ण्ड़, सम्य‍ज्ञ ि िंदिक ,
ग ेम्मटस ि जीवक ंड़ - िेख लित्र एवं त लिक आ ें में
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  • 1. आ वश्यक निवेदि प्रस्तुत आध्ययि स मग्री, त लिक एँ एवं लित्र आ दद श्रीमती स रिक ववक स छ बड़ द्व ि तैय ि वकये गए हैं | इिक आन्यत्र एवं आन्य भ ष में उपय ेग कििे के पूवव उिसे आनिव यवत: संपकव कि िें |
  • 2. प्ररूपण 7 - इन्द्न्िय म गवण आ ि यव िेलमिंद ससद् ंतिक्रवतीव
  • 3. आहलमंद जह देव , आववसेसं आहमहंनत मण्णंत । ईसंनत एक्कमेक्कं , इंद इव इंददये ज ण॥164॥ ❀आर्व - जजस प्रक ि आहलमन्ि देव ें में दूसिे की आपेक्ष ि िखकि प्रत्येक आपिे-आपिे क े स्व मी म िते हैं, उसी प्रक ि इन्द्न्िय ँ भी हैं ॥164॥
  • 4. इन्द्न्िय स्वरूप “इन्दतीनत इन्ि”- ज े आ ज्ञ आ ैि एेश्वयव व ि है वह इन्ि है आर् वत् आ त्म ही इन्ि है| आ त्म क े पद र् ेों क े ज ििे में ज े लिंग निलमत्त ह ेत है वह इन्ि क लिंग इन्द्न्िय कही ज ती है | ज े गूढ़ पद र्व क ज्ञ ि कि त है, उसे लिंग कहते हैं | आत: ज े सूक्ष्म आ त्म के आन्द्स्तत्व क ज्ञ ि कि िे में लिंग आर् वत् क िण है वह इन्द्न्िय कहि ती है | इन्ि शब्द ि मकमव क व िी है| एेसे ि मकमव के द्व ि ज े ििी गई है वह इन्द्न्िय है|
  • 5. मददआ विणखआ ेवसमुत्र्ववसुद्ी हु तज्जब ेह े व । भ ववंददयं तु दव्वं, देहुदयजदेहलिण्हं तु॥165॥ ❀आर्व - इन्द्न्िय के द े भेद हैं - भ वेन्द्न्िय एवं िव्येन्द्न्िय। ❀मनतज्ञ ि विण कमव के क्षय ेपशम से उत्पन्न ह ेिे व िी ववशुद्धद् आर्व उस ववशुद्धद् से उत्पन्न ह ेिे व िे उपय ेग त्मक ज्ञ ि क े भ वेन्द्न्िय कहते हैं। आ ैि ❀शिीि ि मकमव के उदय से बििेव िे शिीि के लिह्न- ववशेष क े िव्येन्द्न्िय कहते हैं ॥165॥
  • 6. इन्द्न्िय िव्येन्द्न्िय शिीि ि मकमव के उदय से बििेव िे शिीि के लिह्न-ववशेष भ वेन्द्न्िय मनतज्ञ ि विण कमव के क्षय ेपशम से उत्पन्न ह ेिे व िी ववशुद्धद् आर्व उस ववशुद्धद् से उत्पन्न ह ेिे व ि उपय ेग त्मक ज्ञ ि
  • 7. भ वेन्द्न्िय िब्ब्ि मनतज्ञ ि विण दद कमव के क्षय ेपशम से उत्पन्ि ववशुद्धद्, उघ ड़ उपय ेग ववशुद्धद् (िब्ब्ि) से उत्पन्ि प्रवतविरूप ज्ञ ि
  • 8. िव्येन्द्न्िय निवववत्तत्त जजि प्रदेश ें के द्व ि ववषय ें क े ज िते हैं उपकिण ज े निवववत्तत्त के सहक िी, निकटवतीव हैं
  • 9. निवववत्तत्त के भेद निवववत्तत्त आभ्यंति आ त्मप्रदेश ें क आ क ि ब ह्य पुद्गि क आ क ि
  • 10. उपकिण के भेद उपकिण आभ्यंति िेत्र में क ि , सफे द मंड़ि बह्य िेत्र की पिकें , भ ैंहें
  • 11. ज्ञ ि की प्रगट प्र प्त शलि िब्ब्ि इस शलि क प्रय ेग उपय ेग इस उपय ेग में सहक िी स िि िव्य इन्द्न्िय िव्य इन्द्न्िय के लिये सहक िी उपकिण
  • 12. फ सिसगंिरूवे, सद्दे ण णं ि लिण्हयं जेससं। इगगवबनतिदुपंलिंददय, जीव द्धणयभेयलभण्ण आ े॥166॥ ❀आर्व - जजि जीव ें के ब ह्य लिह्न (िव्येन्द्न्िय) ह े आ ैि उसके द्व ि ह ेिे व ि स्पशव, िस, गंि, रूप, शब्द इि ववषय ें क ज्ञ ि ह े उिक े क्रम से एके न्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, त्रीन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय जीव कहते हैं, आ ैि ❀इिके भी आिेक आव न्ति भेद हैं ॥166॥
  • 13. इन्द्न्िय म गवण के भेद एके न्द्न्िय द्वीन्द्न्िय त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय पंिेन्द्न्िय संज्ञी आसंज्ञी
  • 14. इंदिय म गवण के भेद ें क स्वरूप एकें दिय •जजिके स्पशविरूप ब ह्य लिह्न ह े आ ैि स्पशव संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे एकें दिय कहते हैं | द्वीन्द्न्िय •जजिके स्पशवि, िसि रूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि स्पशव, िस संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे द्वीन्द्न्िय कहते हैं | त्रीन्द्न्िय •जजिके स्पशवि, िसि , घ्र णरूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि स्पशव, िस, गंि संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे त्रीन्द्न्िय कहते हैं |
  • 15. इंदिय म गवण के भेद ें क स्वरूप ितुरिन्द्न्िय •जजिके स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षुरूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि स्पशव, िस, गंि, वणव संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे ितुरिन्द्न्िय कहते हैं | पंिेन्द्न्िय •जजिके स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु, कणवरूप ब ह्य लिह्न ह ें आ ैि स्पशव, िस, गंि, वणव, शब्द संबंिी ज्ञ ि ह े, उसे पंिेन्द्न्िय कहते हैं |
  • 16. इन्द्न्िय म गवण के भेद एवं उद हिण जीव ब ह्य लिह्न (िव्येन्द्न्िय) वकसक ज्ञ ि (भ वेन्द्न्िय) उद हिण एके न्द्न्िय स्पशवि स्पशव पवथ्वी, जि, आन्द्‍ि, व यु, विस्पनत द्वीन्द्न्िय स्पशवि, िसि स्पशव, िस िट, शंख, सीप, कें िुआ , ज ेंक आ दद त्रीन्द्न्िय स्पशवि, िसि , घ्र ण स्पशव, िस, गंि िींटी, जू, िींख, खटमि, वबच्‍ू आ दद ितुरिन्द्न्िय स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु स्पशव, िस, गंि, रूप मच्‍छि, भ ैंि , मक्खी, नततिी, ड़ ंस, पतंग आ दद पंिेन्द्न्िय स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु, कणव स्पशव, िस, गंि, रूप, शब्द मिुष्य, देव, ि िकी, पशु-पक्षी
  • 17. एइंददयस्स फु सणं, एक्कं वव य ह ेदद सेसजीव णं। ह ेंनत कमउन्द्ड़्ढ़य इं, जजब्भ घ णन्द्च्‍छस ेत्त इं॥167॥ ❀आर्व - एके न्द्न्िय जीव के एक स्पशविेन्द्न्िय ही ह ेती है। ❀शेष जीव ें के क्रम से िसि (जजह्व ), घ्र ण, िक्षु आ ैि श्र ेत्र बढ़ ज ते हैं ॥167॥
  • 18. इन्द्न्िय ें क क्रम १ इन्द्न्िय स्पशवि २ इन्द्न्िय • स्पशवि, िसि ३ इन्द्न्िय • स्पशवि, िसि , घ्र ण ४ इन्द्न्िय • स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु ५ इन्द्न्िय • स्पशवि, िसि , घ्र ण, िक्षु, कणव
  • 19. िणुवीसड़दसयकदी, ज ेयणछ द िहीणनतसहस्स । आट्ठसहस्स िणूणं, ववसय दुगुण आसन्द्ण्ण त्तत्त॥168॥ ❀आर्व - एके न्द्न्िय के स्पशवि, द्वीन्द्न्िय के िसि एवं त्रीन्द्न्िय के घ्र ण क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र क्रम से ि ि स ै ििुष, ि ैसठ ििुष, स ै ििुष प्रम ण है। ❀ितुरिन्द्न्िय के िक्षु क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र द े हज ि िव स ै ि ैवि य ेजि है। आ ैि आ गे आसंज्ञीपयवन्त ववषयक्षेत्र दूि - दूि बढ़त गय है। ❀आसैिी के श्र ेत्रेन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र आ ठ हज ि ििुष प्रम ण है ॥168॥
  • 20. सन्द्ण्णस्स व ि स ेदे, नतण्हं णव ज ेयण द्धण िक्खुस्स। सत्तेत िसहस्स , बेसदतेसट्ट्ठमददिेय ॥169॥ ❀आर्व - संज्ञी जीव के स्पशवि, िसि , घ्र ण इि तीि इन्द्न्िय ें में से प्रत्येक क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र ि ै-ि ै य ेजि है आ ैि ❀श्र ेत्रेन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र ब िह य ेजि है तर् ❀िक्षुरिन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र सैत िीस हज ि द े स ै त्रेसठ य ेजि से कु छ आधिक है ॥169॥
  • 21. इन्द्न्िय ें क ववषय क्षेत्र इन्द्न्िय एके न्द्न्िय द्वीन्द्न्िय त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय आसैिी पंिेन्द्न्िय सैिी पंिेन्द्न्िय ििुष में ििुष में ििुष में ििुष में ििुष में य ेजि में स्पशवि 400 800 1600 3200 6400 9 िसि — 64 128 256 512 9 घ्र ण — — 100 200 400 9 िक्षु — — — 2954 य ेजि 5908 य ेजि 47263 7 20 श्र ेत्र — — — — 8000 12 आर् वत् एक-एक इन्द्न्िय वकति ज ि सकती है? इन्द्न्िय ें के द्व ि वकतिे दूि तक क ववषय ज्ञ त ह े सकत है?
  • 22. क्य इन्द्न्िय ँ ूकि ही ज िती हैं? ❀िक्षु इन्द्न्िय आ ैि मि वबि ूकि ही ज िते हैं । ❀पिन्तु शेष 4 इन्द्न्िय ँ पद र् ेों क े स्पशव कि आ ैि वबि स्पशव कि द ेि ें प्रक ि से ज िती हैं। ❀देखें : िवि पु. 13, पवष्ठ 225 ❀देखें : िवि पु. 9, पवष्ठ 159 ❀हम आ पके वतवम ि में ज े स म न्य ज्ञ ि है, वह प्र प्यक िी (ूकि ज ििे व ि ) है । पिन्तु वकसी जीव के ववशेष क्षय ेपशम से वह वबि पद र् ेों के स्पशव से भी पद र् ेों क े ज ि सकत है | जैसे िक्रवतीव आ दद क इंदिय-ज्ञ ि
  • 23. पुट्ठं सुणेइ सद्दं, आप्पुट्ठं िेय पस्ससे रूवं । गंिं िसं ि फ सं, बद्ं पुट्ठं ि ज ण दद ॥ि. 9/54॥ ❀आर्व: िक्षु रूप क े आस्पवष्ट ही ग्रहण किती है, आ ैि ‘ि’ शब्द से मि भी आस्पवष्ट ही वस्तु क े ग्रहण कित है। शेष इन्द्न्िय ँ गंि, िस आ ैि स्पशव क े बद् आर् वत् आपिी-आपिी इन्द्न्िय ें में नियलमत आ ैि स्पवष्ट ग्रहण किती हैं, आ ैि ‘ि’ शब्द से आस्पवष्ट भी ग्रहण किती हैं। (िवि पु. 9, ग र् 54)
  • 24. नतन्द्ण्णसयसट्ट्ठवविहहद, िक्खं दसमूित दड़दे मूिम्। णवगुद्धणदे सट्ट्ठहदे, िक्खुप्फ सस्स आद् णं॥170॥ ❀आर्व - तीि स ै स ठ कम एक ि ख य ेजि जम्बूद्वीप के ववष्कम्भ (व्य स, Diameter) क वगव किि आ ैि ❀उसक दशगुण किके वगवमूि निक िि , ❀इससे ज े ि शश उत्पन्न ह े उसमें िव क गुण आ ैि स ठ क भ ग देिे से िक्षुरिन्द्न्िय क उत्कव ष्ट ववषयक्षेत्र निकित है ॥170॥
  • 25. िक्षु इन्द्न्िय क उत्कव ष्ट क्षेत्र कै से बित है ? ❀ एक सूयव क े पूि जंबूद्वीप भ्रमण कििे में 2 ददि िगते हैं—य िे 60 मुहूतव ❀ जंबूद्वीप भ्रमण क क्षेत्र = 𝝅 × D ❀ य िे जंबूद्वीप की परिधि (Circumference) ❀ = 10 99640 य ेजि ❀ = 315089 य ेजि ❀ परिधि निक ििे के लिए 1 ि ख य ेजि में से 360 य ेजि कम वकये क्य ेंवक जब सूयव जंबूद्वीप के इति आंदि आ कि भ्रमण कित है तब िक्रवतीव उसे देख प त है । ❀ ि ेट: 𝝅 क प्रम ण आ गम में 10 म ि है ।
  • 26. िक्षु इन्द्न्िय क उत्कव ष्ट क्षेत्र कै से बित है ? ❀एक सूयव 60 मुहूतव में 315089 य ेजि भ्रमण कित है, ❀त े 9 मुहूतव में वकति भ्रमण ह ेग ? ❀ 315089 य ेजि 60 मुहूतव 9 मुहूतव = 47263 7 20 य ेजि
  • 27. िक्षु इंदिय क यह क्षेत्र कब बित है? ❀ककव संक्र ंनत क े जब 18 मुहूतव क ददि आ ैि 12 मुहूतव की ि त ह ेती है ❀तब िक्रवतीव आय ेध्य में आपिे महि की छत से ❀निषि पववत पि उददत सूयव के ववम ि में जजिवबम्ब क दशवि कित है ।
  • 28. िक्खूस ेदं घ णं, जजब्भ य िं मसूिजवण िी। आनतमुत्तखुिप्पसमं, फ सं तु आणेयसंठ णं॥171॥ आर्व - मसूि के सम ि िक्षु क , जव की ि िी के सम ि श्र ेत्र क , नति के फू ि के सम ि घ्र ण क तर् खुिप के सम ि जजह्व क आ क ि है आ ैि स्पशविेन्द्न्िय के आिेक आ क ि हैं ।।१७१।।
  • 29. आंगुिआसंखभ गं, संखेज्जगुणं तद े ववसेसहहयं। तत्त े आसंखगुद्धणदं, आंगुिसंखेज्जयं तत्तु॥172॥ ❀आर्व - आ त्मप्रदेश ें की आपेक्ष िक्षुरिन्द्न्िय क आवग हि घि ंगुि के आसंख्य तवें भ गप्रम ण है आ ैि ❀इससे संख्य तगुण श्र ेत्रेन्द्न्िय क आवग हि है। ❀श्र ेत्रेन्द्न्िय से पल्य के आसंख्य तवें भ ग आधिक घ्र णेन्द्न्िय क आवग हि है। ❀घ्र णेन्द्न्िय से पल्य के आसंख्य तवें भ ग गुण िसिेन्द्न्िय क आवग हि हैं ज े घि ंगुि के संख्य तवें भ गम त्र है ॥172॥
  • 30. सुहमद्धणग ेदआपज्जत्तयस्स ज दस्स तददयसमयन्द्म्ह। आंगुिआसंखभ गं जहण्णमुक्कस्सयं मच्‍छे॥173॥ ❀आर्व - स्पशविेन्द्न्िय की जघन्य आवग हि घि ंगुि के आसंख्य तवें भ गप्रम ण है आ ैि यह आवग हि सूक्ष्म निग ेददय िब्ध्यपय वप्तक के उत्पन्न ह ेिे के तीसिे समय में ह ेती है। ❀उत्कव ष्ट आवग हि मह मत्स्य के ह ेती है, इसक प्रम ण संख्य त घि ंगुि है ॥173॥
  • 31. इन्द्न्िय ें की आवग हि इन्द्न्िय अवगाहना िक्षु घि ंगुि आसं. कणव (श्र ेत्र) िक्षु-आ क ि संख्य त घ्र ण श्र ेत्र क ि + श्र ेत्र क ि ൘पल्य आसं. िसि घ्र ण क ि पल्य आसं. = घि ंगुि सं. स्पशवि जघन्य = घि ंगुि आसं. (सूक्ष्म निग ेददय ) उत्कव ष्ट = संख्य त घि ंगुि (मह मत्स्य)
  • 32. स्पशवि क े छ ेड़कि शेष 4 इन्द्न्िय ें में वकसकी कम / ज्य द आवग हि चक्षु श्रोत्र घ्राण रसना संख्य तगुण आसंख्य तवें भ ग आधिक आसंख्य तवें भ ग गुण
  • 33. ण वव इंददयकिणजुद , आव‍गह दीहह ग हय आत्र्े। णेव य इंददयस ेक्ख , आद्धणंददय णंतण णसुह ॥174॥ ❀आर्व - ज े जीव नियम से इन्द्न्िय ें के किण भ ैहें हटमक िि आ दद व्य प ि, उिसे संयुि िहीं है, इसलिये ही आवग्रह ददक क्षय ेपशम ज्ञ ि से पद र्व क ग्रहण (ज िि ) िहीं किते। तर् ❀इन्द्न्ियजनित ववषय-संबंि से उत्पन्न सुख उससे संयुि िहीं हैं वे आहोंत आ ैि ससद् आतीन्द्न्िय आिंत ज्ञ ि आ ैि आतीन्द्न्िय आिंत सुख से ववि जम ि ज िि । क्य ेंवक उिक ज्ञ ि आ ैि सुख शुद् त्मतत्त्व की उपिब्ब्ि से उत्पन्न हुआ है ॥174॥
  • 35. आतीन्द्न्िय जीव इन्द्न्ियकिण (वक्रय ) से िहहत हैं आवग्रह दद क्षय ेपशम ज्ञ ि द्व ि पद र् ेों क ग्रहण िहीं है, आिंत आतीन्द्न्िय ज्ञ ि इन्द्न्ियसुख से िहहत आिंत आतीन्द्न्िय सुख
  • 36. र् विसंखवपपीलिय, भमिमणुस्स ददग सभेद जे। जुगव िमसंखेज्ज , णंत णंत द्धणग ेदभव ॥175॥ ❀आर्व - स्र् वि एके न्द्न्िय जीव, शंख आ ददक द्वीन्द्न्िय, िींटी आ दद त्रीन्द्न्िय, भ्रमि आ दद ितुरिन्द्न्िय, मिुष्य दद पंिेन्द्न्िय जीव आपिे-आपिे आंतभेवद ें से सहहत आसंख्य त संख्य त हैं आ ैि ❀निग ेददय जीव आिंत िन्त हैं ॥175॥
  • 37. संक्षेप से एके न्द्न्िय दद जीव ें की संख्य जीव संख्य एके न्द्न्िय में निग ेददय आिंत िंत एके न्द्न्िय में निग ेददय क े छ ेड़कि शेष सवव आसंख्य त संख्य त द्वीन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त त्रीन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त ितुरिन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त पंिेन्द्न्िय आसंख्य त संख्य त
  • 38. तसहीण े संस िी, एयक्ख त ण संखग भ ग । पुण्ण णं परिम णं, संखेज्जददमं आपुण्ण णं॥176॥ ❀आर्व - संस ि ि शश में से त्रस ि शश क े घट िे पि जजति शेष िहे उतिे ही एके न्द्न्िय जीव हैं आ ैि ❀एके न्द्न्िय जीव ें की ि शश में संख्य त क भ ग देिे पि एक भ गप्रम ण आपय वप्तक आ ैि शेष बहुभ गप्रम ण पय वप्तक जीव हैं ॥176॥
  • 39. सवव जीव संस िी एके न्द्न्िय पय वप्त बहुभ ग एके न्द्न्िय संख्य त (संख्य त – 1) आपय वप्त एकभ ग एके न्द्न्िय संख्य त शेष मुक्त
  • 40. एकें दिय जीव ❀संस िी जीव = सवव जीवि शश – मुक्त जीवि शश ❀एके न्द्न्िय = संस िी जीव – त्रस जीव ❀आपय वप्त एके न्द्न्िय = एके न्द्न्िय संख्य त ❀पय वप्त एके न्द्न्िय = शेष बहुभ ग ❀इसे लिखिे क तिीक  एके न्द्न्िय संख्य त (संख्य त – 1)
  • 41. ब दिसुहम तेससं, पुण्ण पुण्णे त्तत्त छहव्वह णं वप। तक्क यम‍गण ये, भद्धणज्जम णक्कम े णेय े॥177॥ ❀आर्व - एके न्द्न्िय जीव ें के स म न्य से द े भेद हैं — ब दि आ ैि सूक्ष्म। ❀इसमें भी प्रत्येक के पय वप्तक आ ैि आपय वप्तक के भेद से द े-द े भेद हैं। ❀इसप्रक ि एके न्द्न्िय ें की छह ि शशय ें की संख्य क क्रम क यम गवण में कहेंगे वह ँ से ही समझ िेि ॥177॥
  • 42. एके न्द्न्िय ब दि पय वप्त आपय वप्त सूक्ष्म पय वप्त आपय वप्त ि ेट: इिकी संख्य क य म गवण में बत एँगे ।
  • 43. वबनतिपम णमसंखेणवहहदपदिंगुिेण हहदपदिं। हीणकमं पदड़भ ग े, आ वलिय संखभ ग े दु॥178॥ ❀आर्व - प्रति ंगुि के आसंख्य तवें भ ग क जगतप्रति में भ ग देिे से ज े िब्ि आ वे उति स म न्य से त्रसि शश क प्रम ण है। ❀पिन्तु पूवव-पूवव द्वीन्द्न्िय ददक की आपेक्ष उत्ति ेत्ति त्रीन्द्न्िय ददक क प्रम ण क्रम से हीि-हीि है आ ैि ❀इसक प्रनतभ गह ि आ विी क आसंख्य तव ँ भ ग है ॥178॥
  • 44. त्रस जीव ें क प्रम ण ❀ जगत् प्रति ൘ प्रति ंगुि आसंख्य त = सवव त्रस जीव ❀इिमें भी द्वीन्द्न्िय सव वधिक हैं, ❀उिसे कु छ कम त्रीन्द्न्िय हैं, ❀उिसे कु छ कम ितुरिन्द्न्िय हैं, ❀सबसे कम पंिेन्द्न्िय हैं ।
  • 45. बहुभ गे समभ ग े िउण्णमेदेससमेक्कभ गन्द्म्ह। उत्तकम े तत्र् वव बहुभ ग े बहुगस्स देआ े दु॥179॥ ❀आर्व - त्रसि शश में आ विी के आसंख्य तवें भ ग क भ ग देकि िब्ि बहुभ ग के सम ि ि ि भ ग किि आ ैि ❀एक-एक भ ग क े द्वीन्द्न्िय दद ि ि ें ही में ववभि कि, ❀शेष एक भ ग में वफि से आ विी के आसंख्य तवें भ ग क भ ग देि ि हहये आ ैि ❀िब्ि बहुभ ग क े बहुत संख्य व िे क े देि ि हहये। ❀इसप्रक ि आंतपयोंत किि ि हहये॥179॥
  • 46. प्रनतभ ग में ब ँटिे क तिीक ❀ उद हिण—म ि वक सवव त्रस ि शश = 256; एवं आ विी आसंख्य त = 4 ❀ त्रस जीव आ विी आसंख्य त = 256 4 = 64 (एक भ ग) ❀ बहुभ ग = सवव ि शश – एक भ ग 192 = 256 − 64 बहुभ ग के ि ि सम ि भ ग कि े । ❀ 192 4 = 48
  • 47. ❀ इसे प्रत्येक जीवि शश में ब ँट द े ❀शेष िहे एकभ ग (64) क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग द े । ❀ 64 4 = 16 ❀एकभ ग आिग िखकि बहुभ ग द्वीन्द्न्िय क े द े । ❀ 64 – 16 = 48 (द्वीन्द्न्िय क प्रनतभ ग) ❀शेष एकभ ग क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग िग आ े । द्वी. त्री. ितु. पंिे. समभ ग 48 48 48 48
  • 48. ❀ 16 4 = 4 ❀बहुभ ग क े त्रीन्द्न्िय में द े । ❀16 – 4 = 12 (त्रीन्द्न्िय क प्रनतभ ग) ❀शेष एकभ ग क े पुि: प्रनतभ ग से भ ग द े । ❀ 4 4 = 1 ❀बहुभ ग क े ितुरिन्द्न्िय क े द े । 4 – 1 = 3 ❀शेष एकभ ग क े पंिेन्द्न्िय क े द े । 1
  • 49. सवव त्रस जीव ें की संख्य द्वी. त्री. ितु. पंिे. समभ ग 48 48 48 48 प्रनतभ ग 48 12 3 1 कु ि संख्य 96 60 51 49
  • 50. इसी प्रक ि व स्तववक गद्धणत में किि ि हहए । त े भी • जगत् प्रति ൘ प्रति ंगुि आसंख्य त प्रत्येक जीव • त्रस जीव 4 + द्वीन्द्न्िय जीव कु ि त्रस जीव ें के ितुर्व भ ग से कु छ आधिक है । • त्रस जीव 4 −त्रीन्द्न्िय जीव ितुर्व भ ग से कु छ कम हैं य िे • त्रस जीव 4 =ितुरिन्द्न्िय जीव कु छ आ ैि कम हैं — • त्रस जीव 4 ≡पंिेन्द्न्िय जीव कु छ आ ैि कम हैं —
  • 51. नतवबपिपुण्णपम णं, पदिंगुिसंखभ गहहदपदिं। हीणकमं पुण्णूण , वबनतिपजीव आपज्जत्त ॥180॥ ❀आर्व - प्रति ंगुि के संख्य तें भ ग क जगतप्रति में भ ग देिे से ज े िब्ि आ वे उति ही त्रीन्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय में से प्रत्येक के पय वप्तक क प्रम ण है। ❀पिन्तु यह प्रम ण ‘बहुभ गे समभ ग े' इस ग र् में कहे हुए क्रम के आिुस ि उत्ति ेत्ति हीि-हीि है। ❀आपिी-आपिी समस्त ि शश में से पय वप्तक ें क प्रम ण घट िे पि आपय वप्तक द्वीन्द्न्िय, त्रीन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय, आ ैि पंिेन्द्न्िय जीव ें क प्रम ण निकित है ॥180॥
  • 52. ❀त्रस जीव ें में पय वप्त जीव = जगत् प्रति ൘ प्रति ंगुि संख्य त ❀इसे भी पूव ेवक्त प्रक ि से समभ ग से ब ंटि , पिन्तु प्रनतभ ग क क्रम यह िखि — ❀त्रीन्द्न्िय, द्वीन्द्न्िय, पंिेन्द्न्िय, ितुरिन्द्न्िय । ❀आपिी-आपिी संख्य में से पय वप्त संख्य घट िे पि आपिी-आपिी आपय वप्त संख्य निकिती है ।
  • 53. त्रस जीव ें की संख्य कु ि त्रस जीव = जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल असांख्‍यात द्वीन्द्न्िय स म न्य से — प्रत्येक की संख्य = जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल असांख्‍यात त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय पंिेन्द्न्िय ववशेष आपेक्ष : द्वीन्द्न्िय > त्रीन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय
  • 54. त्रस पय वप्तक ें की संख्य कु ि त्रस पय वप्तक = जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल सांख्‍यात द्वीन्द्न्िय स म न्य से — प्रत्येक की संख्य = जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल सांख्‍यात त्रीन्द्न्िय ितुरिन्द्न्िय पंिेन्द्न्िय ववशेष आपेक्ष : त्रीन्द्न्िय > द्वीन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय यह ँ भी पूवव के सम ि ही कु ि पय वप्त त्रस जीव 256 म िकि एवं आ विी आसंख्य त = 4 म िकि द्वीन्द्न्िय ददक पय वप्तक जीव ें की संख्य आपिे क्रम िुस ि निक ि िेि ि हहये ।
  • 55. त्रस आपय वप्त जीव ें की संख्य कु ि त्रस आपय वप्त जीव = जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल असांख्‍यात − जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल सांख्‍यात = जगत् प्रतर ൙ प्रतराांगुल असांख्‍यात द्वीन्द्न्िय आपय वप्त स म न्य से — प्रत्येक की संख्य = जगत ् प्रतर ൙ प्रतराांगुल असांख्‍यात त्रीन्द्न्िय आपय वप्त ितुरिन्द्न्िय आपय वप्त पंिेन्द्न्िय आपय वप्त ववशेष आपेक्ष : द्वीन्द्न्िय > त्रीन्द्न्िय > ितुरिन्द्न्िय > पंिेन्द्न्िय
  • 56. ❀इन्द्न्िय ें के ज ििे से ि भ ?
  • 57. ➢Reference : ग ेम्मटस ि जीवक ण्ड़, सम्य‍ज्ञ ि िंदिक , ग ेम्मटस ि जीवक ंड़ - िेख लित्र एवं त लिक आ ें में Presentation developed by Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢For updates / feedback / suggestions, please contact ➢Sarika Jain, sarikam.j@gmail.com ➢www.jainkosh.org ➢: 0731-2410880 , 94066-82889