15. आनंतानुबंधत
तत्त्वराथयश्रद्ानरूप
िम्र्क्त्वर का
घात हाे
आनंत िंिाच
(मिथ्र्ात्वर) के
िाथ िंबंध कचार्े
आप्रत्र्ाख्र्ानावरचण
देशचारचत्र का
घात हाे
िकं मचत् त्र्ाग न
हाेने दे
प्रत्र्ाख्र्ानावरचण
िकलचारचत्र
का घात हाे
पूणय त्र्ाग न
हाेने दे
िंज्वरलन
र्थाख्र्ातचारचत्र
का घात हाे
जाे िंर्ि के
िाथ प्रज्वरमलत
चहे
18. कषार्ाें के उत्कृ ष्ट-जघन्द्र् स्थान के दृष्टांत
उत्कृ ष्ट आनुत्कृ ष्ट आजघन्द्र् जघन्द्र्
क्राेध शशला भेद पृथ्वरत भेद धूमल चेखा जल चेखा
िान शल आस्स्थ काष्ठ बेंत
िार्ा बांि की जड़ िेढे की ितंग गाेिूत्र खुचपा
लाेभ िकचमिचत चंग चक्रिल शचीच का िल हल्दी का चंग
िकि गतत िें
उत्पन्द्न कचतत
ह
नचक ततर्ंच िनुष्र् देवर
19. क्राेध कषार्
शशला भेद (उत्कृ ष्ट)
जिे पाषाण के खण्ड़ हाेने
पच बहुत घनाकाल बतते िबना
मिलता नहतं
वरिे क्राेध हाेने पच बहुत घना
काल बतते िबना क्षिारूप मिलन
काे प्राप्त नहतं हाेता एेिा क्राेध
पृथ्वरत भेद (आनुत्कृ ष्ट)
जिे पृथ्वरत के खण्ड़ हाेने पच बहुत
काल बतते िबना मिलतत नहतं ह,
वरिे क्राेध हाेने पच बहुत काल
बतते िबना क्षिारूप मिलन काे
प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
20. धूमल चेखा (आजघन्द्र्)
जिे धूमल िें की गई चेखा
थाेड़ा काल बतते िबना मिलतत
नहतं
वरिे क्राेध हाेने पच थाेड़ा काल
गए िबना क्षिारूप मिलन काे
प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
जल चेखा (जघन्द्र्)
जिे जल िें की गई चेखा
बहुत आल्प काल बतते िबना
मिलतत नहतं,
वरिे क्राेध हाेने पच बहुत थाेड़ा
काल बतते िबना क्षिारूप मिलन
काे प्राप्त नहतं हाेता, एेिा क्राेध
क्राेध कषार्
22. िेलट्ठिकठिवरेत्ते, णणर्भेएणणुहचंतआाे िाणाे।
णाचर्ततरचर्णचािच-गईिु उप्पार्आाे कििाे॥285॥
❀आथय - िान भत चाच प्रकाच का हाेता ह।
❀पत्थच के ििान, हड्डी के ििान, काठ के
ििान तथा बेंत के ििान - र्े चाच प्रकाच के
िान भत क्रि िे नचक, ततर्ंच, िनुष्र् तथा
देवरगतत के उत्पादक हं॥285॥
23. शल
जिे पाषाण बहुत घना काल
िबना निाने र्ाेग्र् नहतं हाेता
वरिे बहुत घने काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान ।
आस्स्थ
जिे आस्स्थ (हड़्ड़ी) घना
काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं
हाेतत
वरिे घना काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान
िान कषार्
24. काष्ठ
जिे काष्ठ (लकड़ी) थाेड़े
काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं
हाेता
वरिे थाेड़े काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान
बेंत
जिे बेंत की लकड़ी बहुत थाेड़े
काल िबना निाने र्ाेग्र् नहतं
हाेतत
वरिे बहुत थाेड़े काल िबना जाे
िवरनर्रूप निन काे प्राप्त नहतं
हाेता, एेिा िान
िान कषार्
31. िक्रमिचाग
जिे िक्रमि कीड़े के िल का
चंग बहुत घना काल िबना नष्ट
नहतं हाेता
वरिे जाे बहुत घना काल िबना
नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ
चक्रिल
जिे पहहर्े का िल (ग्रति) घना
काल िबना नष्ट नहतं हाेता
वरिे जाे घना काल िबना नष्ट
नहतं हाेता, एेिा लाेभ
लाेभ कषार्
32. तनुिल
जिे शचीच का िल थाेड़े
काल िबना नष्ट नहतं हाेता
वरिे जाे थाेड़े काल िबना
नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ
हरचद्रा-चाग
जिे हल्दी का चंग बहुत थाेड़े
काल िबना नष्ट नहतं हाेता,
वरिे जाे बहुत थाेड़े काल िबना
नष्ट नहतं हाेता, एेिा लाेभ
लाेभ कषार्
38. काेहाददकिार्ाणं, चउ चउदि वरति हाेंतत पद िंखा।
ित्ततलेस्िाआाउग-बंधाबंधगदभेदेहहं॥290॥
❀आथय - शमि, लेश्र्ा तथा आार्ु के बंधाबंधगत
भेदाें की आपेक्षा िे क्राेधादद कषार्ाें के क्रि िे
चाच, चादह आाच बति स्थान हाेते हं॥290॥
क्राेधादद कषार्ाें के स्थान
शमि आपेक्षा 4
लेश्र्ा स्थान आपेक्षा 14
आार्ु के बंध-आबंध आपेक्षा 20
39. सिलिेलवरेणुिूलहक्कमिचार्ादी किेण चत्तारच।
काेहाददकिार्ाणं, ित्तत्तं पदड़ हाेंतत णणर्िेण॥291॥
❀आथय - शशलाभेद आादद के ििान चाच प्रकाच का
क्राेध, शल आादद के ििान चाच प्रकाच का िान,
वरेणु (बााँि) िूल आादद के ििान चाच तचह की
िार्ा, िक्रमिचाग आादद के ििान चाच प्रकाच का
लाेभ, इि तचह क्राेधाददक कषार्ाें के उि तनर्ि
के आनुिाच क्रि िे शमि की आपेक्षा चाच-चाच
स्थान हं॥291॥
45. िेलगिकण्हे िुण्णं, णणचर्ं च र् भूगएगिवरठिाणे।
णणचर्ं इगगिवरततआाऊ, ततठिाणे चारच िेिपदे॥293॥
❀आथय - शलगत कृ ष्णलेश्र्ा िें कु छ स्थान ताे एेिे हं िक जहााँ पच आार्ुबंध
नहतं हाेता। इिके आनन्द्तच कु छ स्थान एेिे हं िक जजनिें नचक आार्ु का
बंध हाेता ह।
❀इिके बाद पृथ्वरतभेदगत पहले आाच दूिचे स्थान िें नचक आार्ु का हत बंध
हाेता ह। इिके भत बाद कृ ष्ण, नतल, कापाेत लेश्र्ा के ततिचे भेद िें
(स्थान िें) कु छ स्थान एेिे हं जहााँ नचक आार्ु का हत बंध हाेता ह आाच
कु छ स्थान एेिे हं जहााँ पच नचक, ततर्ंच दाे आार्ु का बंध हाे िकता ह
तथा कु छ स्थान एेिे हं जहााँ पच नचक, ततर्ंच तथा िनुष्र् ततनाें हत आार्ु
का बंध हाे िकता ह। शेष के ततन स्थानाें िें चाचाें आार्ु का बंध हाे िकता
ह॥293॥
46. धूमलगछक्कठिाणे, चउचाऊततगदुगं च उवररचल्लं।
पणचदुठाणे देवरं, देवरं िुण्णं च ततठिाणे॥294॥
❀आथय - धूमलभेदगत छह लेश्र्ावराले प्रथि भेद के कु छ स्थानाें िें
चाचाें आार्ु का बंध हाेता ह। इिके आनन्द्तच कु छ स्थानाें िें नचक
आार्ु काे छाेड़कच शेष ततन आार्ु का आाच कु छ स्थानाें िें नचक,
ततर्ंच काे छाेड़कच शेष दाे आार्ु का बंध हाेता ह।
❀कृ ष्णलेश्र्ा काे छाेड़कच पााँच लेश्र्ा वराले दूिचे स्थान िें तथा कृ ष्ण,
नतल लेश्र्ा काे छाेड़कच शेष चाच लेश्र्ावराले तृततर्स्थान िें के वरल
देवर आार्ु का बंध हाेता ह। आंत की ततन लेश्र्ावराले चाथे भेद के
कु छ स्थानाें िें देवरार्ु का बंध हाेता ह आाच कु छ स्थानाें िें आार्ु का
आबंध ह॥294॥
47. िुण्णं दुगइगगठाणे, जलखम्ह िुण्णं आिंखभजजदकिा।
चउचाेदिवरतिपदा, आिंखलाेगा हु पत्तेर्ं॥295॥
❀आथय - इित के (धूमलभेदगत के हत) पद्म आाच शुक्ललेश्र्ा वराले पााँचवरें
स्थान िें आाच के वरल शुक्ललेश्र्ा वराले छठे स्थान िें आार्ु का आबंध ह
तथा जलभेदगत के वरल शुक्ललेश्र्ावराले एक स्थान िें भत आार्ु का
आबंध ह।
❀इिप्रकाच कषार्ाें के शमि की आपेक्षा चाच भेद, लेश्र्ाआाें की आपेक्षा
चादह भेद, आार्ु के बंधाबंध की आपेक्षा बति भेद हाेते हं।
❀इनिें प्रत्र्ेक के आवरान्द्तच भेद आिंख्र्ात लाेकप्रिाण हं तथा आपने-
आपने उत्कृ ष्ट िे आपने-आपने जघन्द्र् पर्यन्द्त क्रि िे आिंख्र्ातगुणे-
आिंख्र्ातगुणे हतन हं॥295॥
48. शमि स्थान शशलाभेद भूमिभेद
लेश्र्ा स्थान
कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ
नत नत नत नत नत
का का का का
पत पत पत
प प
शु
आार्ु बंध-आबंध
स्थान
0 1 1 1 1 2 3 4 4 4
न न न न
न,
तत
न,
तत,
ि
चाचाें
आार्ु
चाचाें
आार्ु
चाचाें आार्ु
आार्ु के बंध-आबंध स्थान
49. शमि स्थान धूमलचेखा जल चेखा
लेश्र्ा स्थान
कृ नत का पत प शु शुक्ल
नत का पत प शु
का पत प शु
पत प शु
प शु
शु
आार्ु बंध-
आबंध स्थान
4 3 2 1 1 1 0 0 0 0
चाचाें
आार्ु
तत,
ि,
दे
ि, दे दे दे दे
आार्ु के बंध-आबंध स्थान
50. शमि
स्थान
शशला
भेद
भूमिभेद
लेश्र्ा
स्थान
कृ ष्ण कृ कृ कृ कृ कृ कृ
नत नत नत नत नत
का का का का
पत पत पत
प प
शु
आार्ु बंध-
आबंध
स्थान
0 1 1 1 1 2 3 4 4 4
न न न न
न
तत
न
तत
ि
चाचाें
आा
र्ु
चा
चाें
आा
र्ु
चाचाें
आा
र्ु
शमि
स्थान
धूमलचेखा जल
चेखा
लेश्र्ा
स्थान
कृ नत का पत प शु शुक्ल
नत का पत प शु
का पत प शु
पत प शु
प शु
शु
आार्ु बंध-
आबंध
स्थान
4 3 2 1 1 1 0 0 0 0
चा
चाें
आा
र्ु
तत
ि
दे
ि,
दे
दे दे दे
आार्ु के बंध-आबंध स्थान
51. = 15आार्ु बंध स्थान
= 5आार्ु आबंध स्थान
= 10नचकार्ु बंध स्थान
= 7ततर्ंच आार्ु बंध स्थान
= 7िनुष्र् आार्ु बंध स्थान
= 9देवर आार्ु बंध स्थान
52. क्राेधादद कषार्ाें के स्थान
शमि आपेक्षा 4
लेश्र्ा स्थान आपेक्षा 14
आार्ु के बंध-आबंध आपेक्षा 20
इन िभत शमि-स्थान, लेश्र्ा-स्थान, आार्ुबंध-आबंध स्थानाें के आवरान्द्तच
भेद आिंख्र्ात लाेकप्रिाण (≡ 𝝏) हं । पचन्द्तु उत्तचाेत्तच घटते-घटतेहं ।
56. पुह पुह किार्कालाे, णणचर्े आंताेिुहुत्तपरचणािाे।
लाेहादी िंखगुणाे, देवरेिु र् काेहपहुदीदाे॥296॥
❀आथय - नचक िें नाचिकर्ाें के लाेभादद कषार् का
काल िािान्द्र् िे आन्द्तिुयहतय िात्र हाेने पच भत
पूवरय-पूवरय की आपेक्षा उत्तचाेत्तच कषार् का काल
पृथक् -पृथक् िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा ह आाच
देवराें िें क्राेधादद कषार् का उत्तचाेत्तच
िंख्र्ातगुणा-िंख्र्ातगुणा काल ह॥296॥
57. नचक आाच देवर गतत िें कषार् काल
नरक गति देवगति काल
लोभ क्रोध 1 अंिर्मुहूिु
र्ाया र्ान 1 अंि × ४
र्ान र्ाया 1 अंि × ४ × ४
क्रोध लोभ 1 अंि × ४ × ४ × ४
58. िव्वििािेणवरहहदिगिगचाित पुणाे िवर िंगुणणदे।
िगिगगुणगाचेहहं र् िगिगचाितण परचिाणं॥297॥
❀आथय - आपनत-आपनत गतत िें िम्भवर
जतवरचाशश िें ििस्त कषार्ाें के उदर्काल के
जाेड़ का भाग देने िे जाे लब्ध आावरे उिका
आपने-आपने गुणाकाच िे गुणन कचने पच
आपनत-आपनत चाशश का परचिाण तनकलता
ह॥297॥
59. आंक िंदृष्टष्ट िे उदाहचण:
नचक गतत िें कषार्त जतवर िंख्र्ा
लाेभ का काल = 1 आंत.
िार्ा का काल = 4 आंत.
िान का काल = 16 आंत.
क्राेध का काल = 64 आंत.
कु ल काल 85 आंत.
िानािक िंख्र्ात का प्रिाण 4 ह
68. इित प्रकाच वरास्तिवरक गणणत िें कचना चाहहए ।
•
जगत् श्रेणत
िूच्र्ंगुल ×
𝟑
िूच्र्ंगुल
− 1
कु ल िनुष्र्
•
िनुष्र् चाशश
4
+
लाेभत िनुष्र् कु ल िनुष्र्ाें के चतुथय भाग िे कु छ
आष्टधक हं ।
•
िनुष्र् चाशश
4
−िार्ावरत िनुष्र् चतुथय भाग िे कु छ कि हं र्ाने
•
िनुष्र् चाशश
4
=क्राेधत िनुष्र् कु छ आाच कि हं —
•
िनुष्र् चाशश
4
≡िानत िनुष्र् कु छ आाच कि हं —
69. लाेभत ततर्ंच िवरायष्टधक ततर्ंच चाशश
4
+
िार्ावरत ततर्ंच कु छ कि ततर्ंच चाशश
4
−
क्राेधत ततर्ंच कु छ कि ततर्ंच चाशश
4
=
िानत ततर्ंच िबिे कि ततर्ंच चाशश
4
≡
इित प्रकाच ततर्ंचाें िें भत ििझना चाहहए । आथायत्
70. िनुष्र् आाच ततर्ंच गतत िें कषार्ाें का काल
लाेभ का काल िवरायष्टधक
िार्ा का काल कु छ कि
क्राेध का काल कु छ कि
िान का काल िबिे कि
इि काल के आाधाच िे भत जतवराें की िंख्र्ा तनकाली जा िकतत ह जाे पूवराेयि हत
आाएगत ।