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तत्त्वार्थ सूत्र
•द्वितीय अध्याय
Presentation Developed By: श्रीमतत सारिका छाबड़ा
अादारिक-
वक्रिययकाहािक-तजस-कामथणाति शिीिाणण।।36।।
•अादारिक, वक्रिययक, अाहािक, तजस अाि
कामाथण ये शिीि के 5 भेद हैं
शिीि
अादारिक
वक्रिययक
अाहािक
तजस
कामाथण
अादारिक काय
•उदाि, महाि, पुरु, स्र्ूल, उिाल— ये सभी एकार्थवाची हैं ।
•उदाि मेैं जाे हाे, उसे अादारिक कहते हैं ।
अादारिक
•काय यािे सैंचयरूप पुद्गलक्रपण्ड़काय
अादारिक शिीि िामकमथ के उदय से उत्पन्ि हुअा अादारिक
शिीि के अाकािरूप स्र्ूल पुद्गल स्कैं धाेैं का परिणाम
अादारिक काय ह ।
वक्रिययक काय
वगूवथ भी क्रवक्रिया काे कहा जाता ह। जजससे
शिीि का िाम हाेगा - वगूक्रवथक,वक्रिययक।
क्रवक्रिया जजसका प्रयाेजि ह, वह
वक्रिययक ह।
शुभ-अशुभ प्रकाि के गुण अणणमा अादद अततशयकािी
ऋणि की महािता से सद्वहत देव-िािक्रकयाेैं के शिीि काे
वक्रिययक कहते हैं।
क्रकस-क्रकसका शिीि क्रवक्रियारूप पाया जाता ह ?
सभी देव, िािकी के ।
बादि पयाथप्त तजकाययक के ।
बादि पयाथप्त वायुकाययक के ।
कमथभूममया सैंज्ञी पैंचेन्द्न्िय पयाथप्त मिुष्य व ततयच के ।
भाेगभूममया ततयच एवैं मिुष्य के ।
िाेट: देव, िािकी काे छाेड़कि अन्य सभी जीवाेैं के क्रवक्रिया पाए जािे का तियम िहीैं ह ।
क्रवक्रिया
पृर्क्
मूल शिीि से मभन्न
क्रवक्रिया कििा
अपृर्क्
मूल शिीि काे ही
क्रवक्रियारूप कििा
क्रकस जीव के कसी क्रवक्रिया हाेती ह?
पृर्क् अपृर्क्
देव  
िािकी  
भाेगभूममया मिुष्य, ततयच  
चिवतीथ  
शेष कमथभूममया मिुष्य, ततयच  
बादि वायु / तेजकाययक  
क्रवशेष
अादारिक शिीि वालाेैं की क्रवक्रिया
अादारिक शिीि का ही परिणमि ह।
अाहािक शिीि
•अाहािक ऋणिधािी छठे
गुणस्र्ािवतीथ मुति के
क्रकिके हाेता ह
?
•अाहािक शिीि िामकमथ के
उदय से
काि-से कमथ
से ?
अाहािक शिीि कब तिकलता ह?
अपिे क्षेत्र मेैं के वली-श्रुतके वली का अभाव हाेिे पि एवैं पिक्षेत्र (जहाैं अादारिक
शिीि से िहीैं जा सकते) मेैं सद्भाव हाेिे पि
सूक्ष्म अर्थ काे ग्रहण कििे के मलये
सैंदेह काे दूि कििे के मलये
असैंयम परिहाि हेतु
तीर्किाेैं के दीक्षादद 3 कल्याणकाेैं मेैं गमि हेतु
जजि एवैं जजिगृह की वैंदिा हेतु
तजस शिीि
तेज से हाेिे वाला तजस शिीि ह
जाे दीप्ती का कािण हैं
शिीि स्कैं ध के पद्मिाग मणण के समाि वणथ का िाम तेज ह
कामथण शिीि
ज्ञािाविणादद 8 कमाे का स्कैं ध
कामथण शिीि िामकमथ के उदय से
जाे शिीि ह, वह कामथण शिीि ह।
इि शिीिाेैं का िम इसी प्रकाि काेैं िाा हैं?
स्र्ूल से सूक्ष्म की अाेि जािे के कािण इि
शिीिाेैं का िम इस प्रकाि िाा ह |
कमथ
कामाथण शिीि
िाेकमथ
अादारिक
वक्रिययक
अाहािक
तजस
•पिैं पिैं सूक्ष्मम्।।37।।
अागे-अागे के शिीि सूक्ष्म हैं।
प्रदेशताेऽसैंख्येयगुणैं प्राक् तजसात्।।38।।
तजस शिीि के पहले-पहले के शिीि प्रदेश की अपेक्षा
असैंख्यात गुणे-असैंख्यात गुणे हैं।
अिन्तगुणे पिे।।39।।
तजस अाि कामथण शिीि के प्रदेश अिैंतगुणे हैं।
यदद अागे अागे के शिीि के प्रदेश असैंख्यातगुिे हैं
ताे वे स्र्ूल हाेिे चाद्वहए, वे अाि सूक्ष्म कसे हैं?
अागे अागे के शिीि के प्रदेश असैंख्यात गुिे हाेिे पि
भी उिका बैंधि ठाेस हाेिे से वे सूक्ष्म हैं
जसे रुई का ढेि अाि लाेह क्रपण्ड़
•अप्रतीघाते।।40।।
तजस अाि कामथण शिीि अप्रततघाती हैं |
•अिाददसम्बन्धे च।।41।।
तजस अाि कामथण शिीि का सम्बन्ध अात्मा से
अिादद से भी ह अाि सादी से भी ह |
•सवथस्य।।42।।
•ये दाेिाेैं शिीि सभी सैंसािी जीवाेैं के हाेते हैं |
वक्रिययक अाि अाहािक शिीि भी सूक्ष्म हाेिे के
कािण क्रकसी से रुकते िहीैं ह ताे क्रिि उन्हेैं
अप्रततघाती काेैं िहीैं कहा ह?
वक्रिययक अाि अाहािक समस्त लाेक मेैं अप्रततघाती िहीैं ह
अाहािक अाि मिुष्याेैं का वक्रिययक ढाई िीप से अागे िहीैं गमि कि
सकता ह
देवाेैं मेैं वक्रिययक शिीि त्रस िाली से भीति ही साेलहवे स्वगथ से ऊपि
अाि तीसिे ििक के िीचे गमि िहीैं कि सकता ह
क्रवशेष
अिाददसम्बन्धे च सूत्र मेैं च शब्द क्रवकल्पार्थक ह
अर्ाथत् अात्मा का तजस अाि कामाथि शिीि से सम्बन्ध अिादी भी ह अाि सादद
भी ह
बैंध की पिम्पिा अपेक्षा अिादद सम्बन्ध ह अाि
तजस, कामाथण की प्रतत समय तिजथिा भी हाेती िहती ह अाि िवीि बैंधभी हाेता
िहता ह उस अपेक्षा सादद भी ह
तदादीतिभाज्याति युगपदेकन्द्स्मन्नाचतुर्भयथ:।।43।।
•तजस अाि कामाथण शिीि काे लेकि एक जीव
के एक समय मेैं चाि शिीि तक क्रवभाग कि
लेिा चाद्वहए |
2
तिरुपभाेगमन्त्यम्।।44।।
अैंत का कामाथण शिीि उपभाेग िद्वहत ह |
तजस शिीि काे तिरुपभाेग काेैं िहीैं कहा?
वह ताे याेग मेैं भी िहीैं तिममत्त ह अत: उसे यहााँ िहीैं
मलया |
तिरुपभाेग अाि साेपभाेग का क्रवचाि किते समय उन्ही
शिीिाेैं का अधधकाि ह जाे याेग मेैं तिममत्त हाेते हैं
गभथसम्मूच्र्छिजमाद्यम्।।45।।
गभथ अाि सम्मूछथि जन्म से जाे शिीि हाेता ह
वह अादारिक शिीि ह |
•अापपाददकैं वक्रिययकम्।।46।।
•उपपाद जन्म से जाे शिीि उत्पन्न हाेता ह वह
वक्रिययक शिीि हाेता ह|
•लब्ब्धप्रत्ययैं च।।47।।
•लब्ब्ध से भी वक्रिययक शिीि हाेता ह|
•तजसमक्रप।।48।।
•तजस शिीि भी लब्ब्ध प्रत्यय हाेता ह |
•
•
❖ ❖
❖ ❖
❖ ❖
❖ ❖
शुभैं क्रवशुिमव्याघातत चाहािकैं प्रमत्तसैंयतस्यव।।49।।
अाहािक शिीि शुभ, क्रवशुि, व्याघात िद्वहत ह
अाि प्रमत्त सैंयत मुति के ही हाेता ह |
अाहािक शिीि का स्वरूप
कहाैं से उत्पन्ि हाेता ह उत्तमाैंग ससि मेैं से
क्रकतिा बड़ा 1 हार् प्रमाण
िैंग श्वेत वणथ
सैंस्र्ाि समचतुिस्र
अवयव शुभ िामकमथ के उदय से शुभ
सैंहिि अाि िसादद सप्त धातु से िद्वहत
व्याघात (बाधा) िद्वहत
ि क्रकसी से रुकता, ि क्रकसी
काे िाेकता ह
अाहािक शिीि का काल
•अन्तमुथहूतथजघन्य
•अन्तमुथहूतथ (पिन्तु जघन्य
से क्रवशेष अधधक)
उत्कृ ष्ट
वेद
स्त्री वेद पुरुष वेद
िपुैंसक
वेद
वेद
भाव वेद
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स्री, पुरुष, िपुैंसक-भावरूप
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िव्य वेद
पुरुष, स्री, िपुैंसकरूप शिीि
तिरुमि से 'पुरुष' काि ह ?
•उत्कृ ष्ट सम्यग्‍जज्ञािादद का स्वामी हाेता ह ।पुरु गुण शेते
•उत्कृ ष्ट इैंिाददक भाेगाेैं का भाेिा हाेता ह ।पुरु भाेग शेते
•धमथ, अर्थ, काम, माेक्षरूप पुरुषार्थ काे किता ह।पुरुगुण किाेतत
•उत्तम पिमेष्ठी के पद मेैं ब्स्र्त हाेता ह ।पुरु उत्तमे शेते
('शीङ् ' धातु का अर्थ स्वामी, भाेगिा, कििा, ब्स्र्त हाेिा अादद अर्थ हैं। इसमलए एेसे अिेक अर्थ क्रकये हैं ।)
पुरुष वेद
सामान्य स्वरूप
•पुरुष वेद िामक िाेकषाय के उदय से
•हाेिे वाली जीव की अवस्र्ा-क्रवशेष काे
•पुरुष वेद कहते हैं ।
➢कसी अवस्र्ा-क्रवशेष ?
•स्री के सार् िमण की इच्छा ।
कषाय की तीव्रता
के दृष्टाैंत
•तृण (ततिके ) की अयि
तिरुमि से 'स्री' काि ह ?
दाेष: छादयतत
अर्ाथत् दाेषाेैं से अाच्छाददत किे
स्वयैं काे
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वशकि द्वहैंसाददक पापाेैं से
इस प्रकाि अाच्छादि-रूप स्वभाव हाेिे से 'स्री' कहा जाता ह ।
स्री वेद
सामान्य स्वरूप
•स्री वेद िामक िाेकषाय के उदय से
•हाेिे वाली जीव की अवस्र्ा-क्रवशेष काे
•स्री वेद कहते हैं ।
➢कसी अवस्र्ा-क्रवशेष ?
•पुरुष के सार् िमण की इच्छा ।
कषाय की तीव्रता के
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• कािीष (कैं ड़े) की अयि
तिरुमि से 'िपुैंसक' काि ह ?
स्री-पुरुष दाेिाेैं के मचहाेैं से िद्वहत
दाढी, मूाँछ अाि स्ति अादद पुरुष अाि स्त्री के मचहाेैं से िद्वहत
तीव्र काम पीड़ा से भिा हुअा
िपुैंसक
सामान्य स्वरूप
• िपुैंसक वेद िामक िाेकषाय के उदय से
• हाेिे वाली जीव की अवस्र्ा-क्रवशेष काे
• िपुैंसक वेद कहते हैं ।
➢कसी अवस्र्ा-क्रवशेष ?
• युगपत् दाेिाेैं के सार् िमण की इच्छा ।
कषाय की तीव्रता
के दृष्टाैंत
• अवा (भट्टे) मेैं पकती हुई इट की अयि
िव्य व भाव वेद मेैं समता-क्रवषमता कहााँ सैंभव?
समािता ही हाेती ह
• देव
• िािकी
• भाेगभूमम के मिुष्य, ततयच
• एके न्द्न्िय एवैं क्रवकलेन्द्न्िय ततयच
• सम्मूच्छथि मिुष्य एवैं ततयच
क्रवषमता सैंभव ह
• कमथभूमम के मिुष्य एवैं ततयच
िाेट ― जहााँ तीिाेैं वेद पाये जाते हैं वहीैं वेद क्रवषमता हाेती ह ।
, क्रवष ,शस्त्र अादद से इिकी अायु
िहीैं णछदती
कदलीघात (अकाल मिण ) क्रकसे कहते हैं?
क्रवष ाािे से िि क्षय से भय से शस्त्र घात से
सैंक्ले श से
श्वास रुक जािे
से
अाहाि के ि
ममलिे से
अायु का क्षय
हाे जाता ह
उसे कदली
घात कहते हैं
उदीिणा क्रकसे कहते हैं?
िहीैं पके हुए कमाे के पकािे का िाम उदीिणा
ह
अावली से बहाि के कमथ ब्स्र्तत के तिषेकाेैं काे
उदयावली मेैं देिा उदीिणा कहलाता हैं |
अायु कमथ
अायु ब्स्र्तत
100 वषथ
अैंतमुथहूतथ
52 वषथ अायु
बीत गई
48 वषथ
जाे शेष ह
48 वषथ के तिषेकाेैं
की अैंतमुथहूतथ के
समय मेैं उददिणा हाे
जािा जाे शेष ह
कदलीघात (अकाल मिण )
जाे अायु हम भाेग िहे हैं वह बढ भी सकती ह का?
वतथमाि अायु का बैंध पूवथ भाव मेैं ही हाे जाता ह
अत: उसका भाेगते समय बढािा सैंभव िहीैं ह
हााँ, वह घट जरुि सकती ह |
➢Reference : श्री गाेम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जिेन्िससिान्त काेष, तत्त्वार्थसूत्रजी
➢Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra
➢For updates / comments / feedback / suggestions, please contact
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  • 4.
  • 5. अादारिक काय •उदाि, महाि, पुरु, स्र्ूल, उिाल— ये सभी एकार्थवाची हैं । •उदाि मेैं जाे हाे, उसे अादारिक कहते हैं । अादारिक •काय यािे सैंचयरूप पुद्गलक्रपण्ड़काय अादारिक शिीि िामकमथ के उदय से उत्पन्ि हुअा अादारिक शिीि के अाकािरूप स्र्ूल पुद्गल स्कैं धाेैं का परिणाम अादारिक काय ह ।
  • 6. वक्रिययक काय वगूवथ भी क्रवक्रिया काे कहा जाता ह। जजससे शिीि का िाम हाेगा - वगूक्रवथक,वक्रिययक। क्रवक्रिया जजसका प्रयाेजि ह, वह वक्रिययक ह। शुभ-अशुभ प्रकाि के गुण अणणमा अादद अततशयकािी ऋणि की महािता से सद्वहत देव-िािक्रकयाेैं के शिीि काे वक्रिययक कहते हैं।
  • 7. क्रकस-क्रकसका शिीि क्रवक्रियारूप पाया जाता ह ? सभी देव, िािकी के । बादि पयाथप्त तजकाययक के । बादि पयाथप्त वायुकाययक के । कमथभूममया सैंज्ञी पैंचेन्द्न्िय पयाथप्त मिुष्य व ततयच के । भाेगभूममया ततयच एवैं मिुष्य के । िाेट: देव, िािकी काे छाेड़कि अन्य सभी जीवाेैं के क्रवक्रिया पाए जािे का तियम िहीैं ह ।
  • 8. क्रवक्रिया पृर्क् मूल शिीि से मभन्न क्रवक्रिया कििा अपृर्क् मूल शिीि काे ही क्रवक्रियारूप कििा
  • 9. क्रकस जीव के कसी क्रवक्रिया हाेती ह? पृर्क् अपृर्क् देव   िािकी   भाेगभूममया मिुष्य, ततयच   चिवतीथ   शेष कमथभूममया मिुष्य, ततयच   बादि वायु / तेजकाययक  
  • 10. क्रवशेष अादारिक शिीि वालाेैं की क्रवक्रिया अादारिक शिीि का ही परिणमि ह।
  • 11. अाहािक शिीि •अाहािक ऋणिधािी छठे गुणस्र्ािवतीथ मुति के क्रकिके हाेता ह ? •अाहािक शिीि िामकमथ के उदय से काि-से कमथ से ?
  • 12. अाहािक शिीि कब तिकलता ह? अपिे क्षेत्र मेैं के वली-श्रुतके वली का अभाव हाेिे पि एवैं पिक्षेत्र (जहाैं अादारिक शिीि से िहीैं जा सकते) मेैं सद्भाव हाेिे पि सूक्ष्म अर्थ काे ग्रहण कििे के मलये सैंदेह काे दूि कििे के मलये असैंयम परिहाि हेतु तीर्किाेैं के दीक्षादद 3 कल्याणकाेैं मेैं गमि हेतु जजि एवैं जजिगृह की वैंदिा हेतु
  • 13. तजस शिीि तेज से हाेिे वाला तजस शिीि ह जाे दीप्ती का कािण हैं शिीि स्कैं ध के पद्मिाग मणण के समाि वणथ का िाम तेज ह
  • 14. कामथण शिीि ज्ञािाविणादद 8 कमाे का स्कैं ध कामथण शिीि िामकमथ के उदय से जाे शिीि ह, वह कामथण शिीि ह।
  • 15. इि शिीिाेैं का िम इसी प्रकाि काेैं िाा हैं? स्र्ूल से सूक्ष्म की अाेि जािे के कािण इि शिीिाेैं का िम इस प्रकाि िाा ह |
  • 18.
  • 19. प्रदेशताेऽसैंख्येयगुणैं प्राक् तजसात्।।38।। तजस शिीि के पहले-पहले के शिीि प्रदेश की अपेक्षा असैंख्यात गुणे-असैंख्यात गुणे हैं। अिन्तगुणे पिे।।39।। तजस अाि कामथण शिीि के प्रदेश अिैंतगुणे हैं।
  • 20.
  • 21. यदद अागे अागे के शिीि के प्रदेश असैंख्यातगुिे हैं ताे वे स्र्ूल हाेिे चाद्वहए, वे अाि सूक्ष्म कसे हैं? अागे अागे के शिीि के प्रदेश असैंख्यात गुिे हाेिे पि भी उिका बैंधि ठाेस हाेिे से वे सूक्ष्म हैं जसे रुई का ढेि अाि लाेह क्रपण्ड़
  • 22. •अप्रतीघाते।।40।। तजस अाि कामथण शिीि अप्रततघाती हैं | •अिाददसम्बन्धे च।।41।। तजस अाि कामथण शिीि का सम्बन्ध अात्मा से अिादद से भी ह अाि सादी से भी ह | •सवथस्य।।42।। •ये दाेिाेैं शिीि सभी सैंसािी जीवाेैं के हाेते हैं |
  • 23.
  • 24. वक्रिययक अाि अाहािक शिीि भी सूक्ष्म हाेिे के कािण क्रकसी से रुकते िहीैं ह ताे क्रिि उन्हेैं अप्रततघाती काेैं िहीैं कहा ह? वक्रिययक अाि अाहािक समस्त लाेक मेैं अप्रततघाती िहीैं ह अाहािक अाि मिुष्याेैं का वक्रिययक ढाई िीप से अागे िहीैं गमि कि सकता ह देवाेैं मेैं वक्रिययक शिीि त्रस िाली से भीति ही साेलहवे स्वगथ से ऊपि अाि तीसिे ििक के िीचे गमि िहीैं कि सकता ह
  • 25. क्रवशेष अिाददसम्बन्धे च सूत्र मेैं च शब्द क्रवकल्पार्थक ह अर्ाथत् अात्मा का तजस अाि कामाथि शिीि से सम्बन्ध अिादी भी ह अाि सादद भी ह बैंध की पिम्पिा अपेक्षा अिादद सम्बन्ध ह अाि तजस, कामाथण की प्रतत समय तिजथिा भी हाेती िहती ह अाि िवीि बैंधभी हाेता िहता ह उस अपेक्षा सादद भी ह
  • 26. तदादीतिभाज्याति युगपदेकन्द्स्मन्नाचतुर्भयथ:।।43।। •तजस अाि कामाथण शिीि काे लेकि एक जीव के एक समय मेैं चाि शिीि तक क्रवभाग कि लेिा चाद्वहए |
  • 27. 2
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  • 34. तजस शिीि काे तिरुपभाेग काेैं िहीैं कहा? वह ताे याेग मेैं भी िहीैं तिममत्त ह अत: उसे यहााँ िहीैं मलया | तिरुपभाेग अाि साेपभाेग का क्रवचाि किते समय उन्ही शिीिाेैं का अधधकाि ह जाे याेग मेैं तिममत्त हाेते हैं
  • 35. गभथसम्मूच्र्छिजमाद्यम्।।45।। गभथ अाि सम्मूछथि जन्म से जाे शिीि हाेता ह वह अादारिक शिीि ह |
  • 36. •अापपाददकैं वक्रिययकम्।।46।। •उपपाद जन्म से जाे शिीि उत्पन्न हाेता ह वह वक्रिययक शिीि हाेता ह| •लब्ब्धप्रत्ययैं च।।47।। •लब्ब्ध से भी वक्रिययक शिीि हाेता ह| •तजसमक्रप।।48।। •तजस शिीि भी लब्ब्ध प्रत्यय हाेता ह |
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  • 39.
  • 40.
  • 41.
  • 44. शुभैं क्रवशुिमव्याघातत चाहािकैं प्रमत्तसैंयतस्यव।।49।। अाहािक शिीि शुभ, क्रवशुि, व्याघात िद्वहत ह अाि प्रमत्त सैंयत मुति के ही हाेता ह |
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  • 48. अाहािक शिीि का स्वरूप कहाैं से उत्पन्ि हाेता ह उत्तमाैंग ससि मेैं से क्रकतिा बड़ा 1 हार् प्रमाण िैंग श्वेत वणथ सैंस्र्ाि समचतुिस्र अवयव शुभ िामकमथ के उदय से शुभ सैंहिि अाि िसादद सप्त धातु से िद्वहत व्याघात (बाधा) िद्वहत ि क्रकसी से रुकता, ि क्रकसी काे िाेकता ह
  • 49. अाहािक शिीि का काल •अन्तमुथहूतथजघन्य •अन्तमुथहूतथ (पिन्तु जघन्य से क्रवशेष अधधक) उत्कृ ष्ट
  • 50.
  • 51.
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  • 53. वेद स्त्री वेद पुरुष वेद िपुैंसक वेद
  • 54. वेद भाव वेद जीव के तीव्र माेह से उत्पन्ि स्री, पुरुष, िपुैंसक-भावरूप परिणाम िव्य वेद पुरुष, स्री, िपुैंसकरूप शिीि
  • 55. तिरुमि से 'पुरुष' काि ह ? •उत्कृ ष्ट सम्यग्‍जज्ञािादद का स्वामी हाेता ह ।पुरु गुण शेते •उत्कृ ष्ट इैंिाददक भाेगाेैं का भाेिा हाेता ह ।पुरु भाेग शेते •धमथ, अर्थ, काम, माेक्षरूप पुरुषार्थ काे किता ह।पुरुगुण किाेतत •उत्तम पिमेष्ठी के पद मेैं ब्स्र्त हाेता ह ।पुरु उत्तमे शेते ('शीङ् ' धातु का अर्थ स्वामी, भाेगिा, कििा, ब्स्र्त हाेिा अादद अर्थ हैं। इसमलए एेसे अिेक अर्थ क्रकये हैं ।)
  • 56. पुरुष वेद सामान्य स्वरूप •पुरुष वेद िामक िाेकषाय के उदय से •हाेिे वाली जीव की अवस्र्ा-क्रवशेष काे •पुरुष वेद कहते हैं । ➢कसी अवस्र्ा-क्रवशेष ? •स्री के सार् िमण की इच्छा । कषाय की तीव्रता के दृष्टाैंत •तृण (ततिके ) की अयि
  • 57. तिरुमि से 'स्री' काि ह ? दाेष: छादयतत अर्ाथत् दाेषाेैं से अाच्छाददत किे स्वयैं काे ममथ्यात्व, असैंयम अादद से दूसिाेैं काे वशकि द्वहैंसाददक पापाेैं से इस प्रकाि अाच्छादि-रूप स्वभाव हाेिे से 'स्री' कहा जाता ह ।
  • 58. स्री वेद सामान्य स्वरूप •स्री वेद िामक िाेकषाय के उदय से •हाेिे वाली जीव की अवस्र्ा-क्रवशेष काे •स्री वेद कहते हैं । ➢कसी अवस्र्ा-क्रवशेष ? •पुरुष के सार् िमण की इच्छा । कषाय की तीव्रता के दृष्टाैंत • कािीष (कैं ड़े) की अयि
  • 59. तिरुमि से 'िपुैंसक' काि ह ? स्री-पुरुष दाेिाेैं के मचहाेैं से िद्वहत दाढी, मूाँछ अाि स्ति अादद पुरुष अाि स्त्री के मचहाेैं से िद्वहत तीव्र काम पीड़ा से भिा हुअा
  • 60. िपुैंसक सामान्य स्वरूप • िपुैंसक वेद िामक िाेकषाय के उदय से • हाेिे वाली जीव की अवस्र्ा-क्रवशेष काे • िपुैंसक वेद कहते हैं । ➢कसी अवस्र्ा-क्रवशेष ? • युगपत् दाेिाेैं के सार् िमण की इच्छा । कषाय की तीव्रता के दृष्टाैंत • अवा (भट्टे) मेैं पकती हुई इट की अयि
  • 61.
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  • 64. िव्य व भाव वेद मेैं समता-क्रवषमता कहााँ सैंभव? समािता ही हाेती ह • देव • िािकी • भाेगभूमम के मिुष्य, ततयच • एके न्द्न्िय एवैं क्रवकलेन्द्न्िय ततयच • सम्मूच्छथि मिुष्य एवैं ततयच क्रवषमता सैंभव ह • कमथभूमम के मिुष्य एवैं ततयच िाेट ― जहााँ तीिाेैं वेद पाये जाते हैं वहीैं वेद क्रवषमता हाेती ह ।
  • 65.
  • 66. , क्रवष ,शस्त्र अादद से इिकी अायु िहीैं णछदती
  • 67.
  • 68. कदलीघात (अकाल मिण ) क्रकसे कहते हैं? क्रवष ाािे से िि क्षय से भय से शस्त्र घात से सैंक्ले श से श्वास रुक जािे से अाहाि के ि ममलिे से अायु का क्षय हाे जाता ह उसे कदली घात कहते हैं
  • 69. उदीिणा क्रकसे कहते हैं? िहीैं पके हुए कमाे के पकािे का िाम उदीिणा ह अावली से बहाि के कमथ ब्स्र्तत के तिषेकाेैं काे उदयावली मेैं देिा उदीिणा कहलाता हैं |
  • 70. अायु कमथ अायु ब्स्र्तत 100 वषथ अैंतमुथहूतथ 52 वषथ अायु बीत गई 48 वषथ जाे शेष ह 48 वषथ के तिषेकाेैं की अैंतमुथहूतथ के समय मेैं उददिणा हाे जािा जाे शेष ह कदलीघात (अकाल मिण )
  • 71. जाे अायु हम भाेग िहे हैं वह बढ भी सकती ह का? वतथमाि अायु का बैंध पूवथ भाव मेैं ही हाे जाता ह अत: उसका भाेगते समय बढािा सैंभव िहीैं ह हााँ, वह घट जरुि सकती ह |
  • 72. ➢Reference : श्री गाेम्मटसाि जीवकाण्ड़जी, श्री जिेन्िससिान्त काेष, तत्त्वार्थसूत्रजी ➢Presentation created by : Smt. Sarika Vikas Chhabra ➢For updates / comments / feedback / suggestions, please contact ➢sarikam.j@gmail.com ➢: :9406682880