1. विषय मनसा शक्ति
आज बापदादा अपने पावन बच्चों कच देख रहे हैं। हरेक ब्राह्मण आत्मा कहााँ तक पावन बनी है
– यह सबका पचतामेल देख रहे हैं। ब्राह्मणचों की ववशेषता है ही ‘पववत्रता’। ब्राह्मण अर्ाात्
पावन आत्मा। पववत्रता कच कहााँ तक अपनाया है, उसकच परखने का यन्त्र क्या है? ‘‘पववत्र बनच
”, यह मन्त्र सभी कच याद वदलाते हच लेवकन श्रीमत प्रमाण इस मन्त्र कच कहााँ तक जीवन मे
लाया है? जीवन अर्ाात् सदाकाल। जीवन में सदा रहते हच ना! तच जीवन में लाना अर्ाात्
सदा पववत्रता कच अपनाना। इसकच परखने का यन्त्र जानते हच? सभी जानते हच और कहते भी
हच वक ‘पववत्रता सुख-शाक्ति की जननी है’। अर्ाात् जहााँ पववत्रता हचगी वहााँ सुख-शाोंवत की
अनुभूवत अवश्य हचगी। इसी आधार पर स्वयों कच चैक करच – मोंसा सोंकल्प में पववत्रता है, उसकी
वनशानी – मन्सा में सदा सुख स्वरूप, शाि स्वरूप की अनुभूवत हचगी। अगर कभी भी मोंसा में
व्यर्ा सोंकल्प आता है तच शाोंवत क
े बजाय हलचल हचती है। क्यचों और क्या इन अनेक क्व
े श्चन क
े
कारण सुख स्वरूप की स्टेज अनुभव नहीोंहचगी। और सदैव समझने की आशा बढ़ती रहेगी –
यह हचना चावहए, यह नहीों हचना चावहए, यह क
ै से, यह ऐसे। इन बातचों कच सुलझाने में ही लगे
रहेंगे। इसवलए जहााँ शाोंवत नहीोंवहााँ सुख नहीों। तच हर समय यह चेक करच वक वकसी भी प्रकार
की उलझन सुख और शाोंवत की प्राक्ति में ववघ्न रूप तच नहीोंबनती है! अगर क्यचों, क्या का क्व
े श्चन
भी है तच सोंकल्प शक्ति में एकाग्रता नहीोंहचगी। जहााँ एकाग्रता नहीों, वहााँ सुख- शाोंवत की अनुभूवत
हच नहीों सकती। वतामान समय क
े प्रमाण फररश्ते-पन की सम्पन्न स्टेज क
े वा बाप समान स्टेज
क
े समीप आ रहे हच, उसी प्रमाण पववत्रता की पररभाषा भी अवत सूक्ष्म समझच। वसफ
ा ब्रह्मचारी
बनना भववष्य पववत्रता नहीोंलेवकन ब्रह्मचारी क
े सार् ‘ब्रह्मा आचाया’ भी चावहए। वशव आचाया
भी चावहए। अर्ाात् ब्रह्मा बाप क
े आचरण पर चलने वाला। वशव बाप क
े उच्ारण वकये हुए बचल
पर चलनेवाला। फ
ु ट स्टैप अर्ाात् ब्रह्मा बाप क
े हर कमा रूपी कदम पर कदम रखने वाले।
इसकच कहा जाता है – ‘ब्रह्मा आचाया’। तच ऐसी सूक्ष्म रूप से चैंवकग करच वक
सदा पववत्रता की प्राक्ति, सुख-शाोंवत की अनुभूवत हच रही है? सदा सुख की शैय्या पर आराम से
अर्ाात् शाोंवत स्वरूप में ववराजमान रहते हच? यह ब्रह्मा आचाया का वचत्र है।
सदा सुख की शैय्या पर सचई हुई आत्मा क
े वलए यह ववकार भी छत्रछाया बन जाता हैं – दुश्मन
बदल सेवाधारी बन जाते हैं। अपना वचत्र देखा है ना! तच ‘शेष शय्या’ नहीोंलेवकन ‘सुख-शय्या
’। सदा सुखी और शाि की वनशानी है – सदा हवषात रहना। सुलझी हुई आत्मा का स्वरूप
सदा हवषात रहेगा। उलझी हुई आत्मा कभी हवषात नहीों देखेंगे। उसका सदा खचया हुआ चेहरा
2. वदखाई देगा और वह सब क
ु छ पाया हुआ चेहरा वदखाई देगा। जब कचई चीज खच जाती है तच
उलझन की वनशानी क्यचों, क्या, क
ै से ही हचता है। तच रूहानी क्तथर्वत में भी जच भी पववत्रता कच
खचता है, उसक
े अन्दर क्यचों, क्या और क
ै से की उलझन हचती है। तच समझा क
ै से चेक करना है?
सुख-शाोंवत क
े प्राक्ति स्वरूप क
े आधार पर मोंसा पववत्रता कच चेक करच।
सोंपूणा वनववाकारी ----- अव्यि मुरली (24:3:82)
सम्पूणा पववत्रता की पररभाषा बहुत श्रेष्ठ है और सहज भी है। सम्पूणा पववत्रता का अर्ा ही है-
स्वप्न-मात्र भी अपववत्रता मन और बुक्ति कच टच नहीोंकरे। इसी कच ही कहा जाता है सच्े वैष्णव।
चाहे अभी नम्बरवार पुरुषार्ी हच लेवकन पुरूषार्ा का लक्ष्य सम्पूणा पववत्रता का ही है। और
सहज पववत्रता कच धारण करने वाली आत्मायें हच। सहज क्यचों है? क्यचोंवक वहम्मत बच्चों की और
मदद सवाशक्तिवान बाप की। इसवलए मुक्तिल वा असम्भव भी सम्भव हच गया है और नम्बरवार
हच रहा है। तच हचली अर्ाात् पववत्रता की भी श्रेष्ठ क्तथर्वत का अनुभव आप ब्राह्मण आत्माओों कच
है। सहज लगती है या मुक्तिल लगती है? सम्पूणा पववत्रता मुक्तिल है या सहज है? कभी
मुक्तिल, कभी सहज? सम्पूणा बनना ही है-ये लक्ष्य है ना। लक्ष्य तच हाइएस्ट है ना! वक लक्ष्य ही
ढीला है वक-कचई बात नहीों, सब चलता है? नहीों। यह तच नहीोंसचचते हच-र्चड़ा-बहुत तच हचता ही
है? ये तच नहीों सचचते-’’र्चड़ा तच चलता ही है, चला लच, वकसकच क्या पता पड़ता है, कचई मन्सा
तच देखता ही नहीों है, कमा में तच आते ही नहीों हैं?’’ लेवकन मन्सा क
े वाय-ब्रेशन्स भी वछप नहीों
सकते। चलाने वाले कच बापदादा अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसे आउट नहीोंकरते, नहीोंतच नाम
भी आउट कर सकते हैं। लेवकन अभी नहीों करते। चलाने वाले स्वयों ही चलते-चलते, चलाते-
चलाते त्रेता तक पहुाँच जायेंगे। लेवकन लक्ष्य सभी का सम्पूणा पववत्रता का ही है।
सारे चक्र में देखच-वसफ
ा देव आत्मायें हैं वजनका शरीर भी पववत्र है और आत्मा भी पववत्र है। और
जच भी आये हैं-आत्मा पववत्र बन भी जाये लेवकन शरीर पववत्र नहीोंहचगा। आप आत्मायें ब्राह्मण
जीवन में ऐसे पववत्र बनते हच जच शरीर भी, प्रक
ृ वत भी पववत्र बना देते हच। इसवलए शरीर भी
पववत्र है तच आत्मा भी पववत्र है। लेवकन वच कौनसी आत्मायें हैं जच ‘शरीर’ और ‘आत्मा’-
दचनचों से पववत्र बनती हैं? उन्चों कच देखा है? कहााँ हैं वच आत्मायें? आप ही हच वच आत्मायें! आप
सभी हच या र्चड़े हैं? पक्का है ना वक हम ही र्े, हम ही बन रहे हैं। तच हाइएस्ट भी हच और
हचलीएस्ट भी हच। दचनचों ही हच ना! क
ै से बने? बहुत अलौवकक रूहानी हचली मनाने से हचली बने।
कौनसी हचली खेली है वजससे हचलीएस्ट भी बने हच और हाइएस्ट भी बने हच?
सोंपूणा वनववाकारी ----- अव्यि मुरली (7:3:1993)
3. तच अपने आपकच देखच, चेक करच - हमारे सोंकल्प, बचल में रूहावनयत है? रूहानी सोंकल्प
अपने में भी शक्ति भरने वाले हैं और दू सरचों कच भी शक्ति देते हैं। वजसकच दू सरे शब्चों में कहते
हच रूहानी सोंकल्प मनसा सेवा क
े वनवमत्त बनते हैं। रूहानी बचल स्वयों कच और दू सरे कच सुख
का अनुभव कराते हैं। शाक्ति का अनुभव कराते हैं। एक रूहानी बचल अन्य आत्माओों क
े जीवन
में आगे बढ़ने का आधार बन जाता है। रूहानी बचल बचलने वाला वरदानी आत्मा बन जाता है।
रूहानी कमा सहज स्वयों कच भी कमायचगी क्तथर्वत का अनुभव कराते हैं और दू सरचों कच भी
कमायचगी बनाने क
े सैम्पुल बन जाते हैं। जच भी उनक
े सम्पक
ा में आते हैं वह
सहजयचगी, कमायचगी जीवन का अनुभवी बन जाते हैं। लेवकन सुनाया रूहावनयत का बीज है
पववत्रता। पववत्रता स्वप्न तक भी भोंग न हच तब रूहावनयत वदखाई देगी। पववत्रता वसफ
ा ब्रह्मचया
नहीों, लेवकन हर बचल ब्रह्माचारी हच, हर सोंकल्प ब्रह्माचारी हच, हर कमा ब्रह्माचारी हच। जैसे
लौवकक में कचई-कचई बच्े की सूरत बाप समान हचती है तच कहा जाता है वक इसमें बाप वदखाई
देता है। ऐसे ब्रह्माचारी ब्राह्मण आत्मा क
े चेहरे में रूहावनयत क
े आधार पर ब्रह्मा बाप समान
अनुभव हच। जच सम्पक
ा वाली आत्मायें अनुभव करें - यह बाप समान है। चलच 100 परसेन्ट नहीों
भी हच तच समय अनुसार वकतनी परसेन्ट वदखाई दे? कहााँ तक पहुाँचे हैं? 75 परसेन्ट,
80 परसेन्ट, 90 परसेन्ट, कहााँ तक पहुाँचे हैं? यह आगे की लाइन बताओ, देखच बैठने में तच
आपकच नम्बर आगे वमला है। तच ब्रह्माचारी बनने में भी नम्बर आगे हचोंगे ना! हैं आगे वक नहीों?
सोंपूणा वनववाकारी ------- अव्यि मुरली (15:12:2001)
अपनी मनसा कच वबज़ी रखेंगे ना, मनसा सेवा का टाइमटेबुल बनायेंगे अपना तच वबन्दी लगाने
की आवश्यकता नहीोंपड़ेगी। बस, हचोंगे ही वबन्दी रूप। इसवलए अभी अपने मन का टाइमटेबुल
वफक्स करच। मन कच सदा वबज़ी रखच, खाली नहीोंरखच। वफर मेहनत करनी पड़ती है। ऊ
ाँ चे-ते-
ऊ
ाँ चे भगवन क
े बच्े हच, तच आपका तच एक-एक सेकण्ड का टाइमटेबुल वफक्स हचना चावहए।
क्यचों नहीों वबन्दी लगती, उसका कारण क्या? ब्रेक पावरफ
ु ल नहीों है। शक्तियचों का स्टॉक जमा
नहीों है इसीवलए सेकण्ड में स्टॉप नहीों कर सकते। कई बच्े कचवशश बहुत करते हैं, जब
बापदादा देखते हैं मेहनत बहुत कर रहे हैं, यह नहीोंहच, यह नहीोंहच… कहते हैं नहीोंहच लेवकन
हचता रहता है। बापदादा कच बच्चोंकी मेहनत अच्छी नहीोंलगती। कारण यह है, जैसे देखच रावण
कच मारते भी हैं, लेवकन वसफ
ा मारने से छचड़ नहीोंदेते हैं, जलाते हैं और जलाक
े वफर हवियााँ जच
हैं, वह आजकल तच नदी में डाल देते हैं। कचई भी मनुष्य मरता है तच हवियााँ भी नदी में डाल देते
हैं तभी समाक्ति हचती है। तच आप क्या करते हच? ज्ञान की प्वाइोंटस से, धारणा की प्वाइोंट्स से
उस बात रूपी रावण कच मार तच देते हच लेवकन यचग अवि में स्वाहा नहीों करते हच। और वफर
4. जच क
ु छ बातचों की हवियााँ बच जाती हैं ना – वह ज्ञान सागर बाप क
े अपाण कर दच। तीन काम
करच – एक काम नहीों करच। आप समझते हच पुरूषार्ा तच वकया ना, मुरली भी पढ़ी, 10 बारी
मुरली पढ़ी वफर भी आ गई क्यचोंवक आपने यचग अवि में जलाया नहीों, स्वाहा नहीों वकया। अवि
क
े बाद नाम वनशान गुम हच जाता है वफर उसकच भी बाप सागर में डाल दच, समाि। इसवलए
इस वषा में बापदादा हर बच्े कच व्यर्ा से मुि देखने चाहते हैं। मुि वषा मनाओ। जच भी कमी
हच, उस कमी कच मुक्ति दच, क्यचोंवक जब तक मुक्ति नहीोंदी है ना, तच मुक्तिधाम में बाप क
े सार्
नहीोंचल सक
ें गे। तच मुक्ति देंगे? मुक्ति वषा मनायेंगे? जच मनायेगा वह ऐसे हार् करे। मनायेंगे?
एक-दच कच देख वलया ना, मनायेंगे ना! अच्छा है। अगर मुक्ति वषा मनाया तच बापदादा जौहरातचों
से जड़ी हुई र्ावलयचोंमें बहुतबहुत मुबारक, ग्रीवटोंग्स, बधाइयााँ देंगे। अच्छा है, अपने कच भी मुि
करच। अपने भाई-बहनचों कच भी दु:ख से दू र करच। वबचारचों क
े मन से यह तच खुशी का आवाज
वनकले – हमारा बाप आ गया। ठीक है। अच्छा।
सोंपूणा वनववाकारी ------ अव्यि मुरली (28:3:2002)