1. Yoga ाचीन भारतीय ऋ ष-मु नय वारा अ वे षत सुखी जीवन
जीने क एक ऐसी े ठ कला है, िजसके वारा शर र म अख ड
वा य, इि य म अखंड शि त, मन म अखंड आनंद, बु ध म
अखंड ान एवं अहम म अखंड ेम ा त करके आवागमन से
अपने को मु त कर सकता है या य क हए, योग वारा शर र से
रोग, इि य से थकावट एवं कमजोर , मन से चंता, बु ध से
भय एवं अहम से वयोग क पीड़ा से अपने को सदा के लए
मु त कर सकता है।
"yoga in hindi"
2. सीख योग : योग को जान
च वृ य के नरोध का नाम योग है, भाई!
योग सीख, योगी बनकर है कसने शां त न पायी?
योगी सुख-दुख, लाभ-हा न म सम सदैव रहता है।
यह चंताओं से वमु त मानापमान सहता है।।
वह सांसा रक बाधाओं से पार युि त से होता।
समा ध थ होकर ह है वह चर न ा म सोता।।
योग सुखी जीवन जीने क ऐसी े ठ कला है।
दे तन को आरो य, यि त का करती बहुत भला है।।
पाता मन आनंद, ान क यो त दय म जगती।
ेम सृि ट का मलता, उसको दु नया अपनी लगती।।
रोग-थकावट-कमजोर -पीड़ा से छु ट पाता।
योगी का आनन हर ऋतु म रहता है मु काता।।
भेद- वभेद योग के अन गन, बतलाती है गीता।
योग-साधना के बल पर जा सकता जग को जीता।।
मं योग का नाम वहां पर सव थम है आता।
यान-भि त-जप- ेम-क तन का है इससे नाता।।
तदन तर हठयोग हम अपना व प समझाता।
इसम षट-च का भेदन, भु क राह दखाता।।
3. फर आता लययोग, जागृत करता जो कु ड लनी।
कुं ड लनी जागृत होते ह उर म खलती न लनी।।
राजयोग भी योग- या का मुख भेद है, भाई!
जो करते ह राजयोग, वे पाते ह नपुणाई।।
होती बु ध खर उनक , वे जीत जगत को लेते।
रह जग से अ ल त, नज नौका भव-सागर म खेते।।
Ashtang yoga
अ टांग योग
4. सत-रज-तम ये तीन शि तयां, बल योगी को देतीं।
सहज प से योगी को नज आकषण म लेतीं।।
भेद अनेक योग के य य प जाते हम बताए।
ान-कम-लय-राज- ेम, ये जाते नाम गनाए।।
तद प, सभी का समावेश 'अ टांग योग' है, भाई!
गयी 'योग दशन' म इसक गौरव-गाथा गायी।।
योग-साधक ने भी इसको परम े ठ है माना।
आव यक है अब आठो अंग के नाम गनाना।।
'यम' है पहला अंग, दूसरा ' नयम', तीसरा 'आसन'।
चौथा ' ाणायाम'- वायु का हण और न कासन।।
पंचम अंग योग का यतर ' याहार' कहाता।
छठा 'धारणा' और सातवां अंग ' यान' है, ाता!!
अंग आठवां है 'समा ध', जग म जाना-पहचाना।
समा ध थ होने का है पयाय 'परम पद' पाना।।
िजसको भी चा हए 'परम पद', बने योग का साधक।
वीकारे मेरा आमं ण, रोग न होगा बाधक।।
य क रोग से मुि त योग के थम चरण म होती।
योगी को मलते पग-पग पर सुख के ह रे-मोती।।
स चा योगी मगर लोभन म न कभी है पड़ता।
ेम समूची दु नया के त उसम उमह उमड़ता।।
5. योगी पर हत म रत रहकर, करता जीवन यापन।
'सव भव तु सु खन:' जैसे मं का कर तपादन।।
योगी बन जीवन जीने का भाव अगर हो जागा।
तो अ वलंब योग व से मल, ा त करो मुंहमांगा।।
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यम के अंग
यम का पहला अंग अ हंसा, ा ण-मा क सेवा।
हंसा से मुंह मोड़, वन प तय का कर कलेवा।।
6. सवा अ हंसा के योगी श ा न कोई गहते।
'परम धरम ु त व दत अ हंसा', बाबा तुलसी कहते।।
स य बोलना है यम का दूसरा अंग कहलाता।
योगी जन को सपने म भी झूठ न कभी सुहाता।।
कह ं सांच को आंच न आती, या काशी या काबा।
'न हं अस य सम पातक पुंजा', कहते तुलसी बाबा।।
सुन लो, यम का तीसरा अंग अ तेय कहा जाता।
जो इस त म ढ़ होता है, वह ऋ ध- स ध पाता।।
मन-वाणी से या क कम से चोर कभी न करता।
सबका भला मनाता योगी, सुख अंतस म भरता।।
यम का चौथा अंग कहाता- धन संचय से बचना।
योगी जन के लए हुई है अप र ह क रचना।।
अप र ह यि त क सार च ताएं मट जातीं।
तीन लोक क न धयां उसक मु ठ म सुख पातीं।।
मचय है यम का पंचम अंग, सुनो सब भाई।
ऋ षय -मु नय ने युग-युग से इसक म हमा गायी।।
मचय के बल पर योगी मनवां छत वर पाते।
सुर-नर-मु न योगी के स मुख अपना शीश झुकाते।।
यम के पांच अंग का जो होता है अ यासी।
वह 'परम पद' पा सकता है, बन सकता अ वनाशी।।
शु कर साधना आज से, पहला कदम उठाएं।
7. कदम-दर-कदम बढ़, शखर तक अपने को पहुंचाएं।।
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" नयम" के नयम
है अ टांग योग का दूजा अंग ' नयम' कहलाता।
बना कए नयम का पालन योगी स ध न पाता।।
'शु चता' पहला नयम, शौच भी इसे कहा जाता है।
तन-मन क व छता-सफाई से इसका नाता है।।
ने त, बि त, कुं जर, बाघी से नमल होती काया।
8. काम- ोध-मद-मोह-लोभ तज मन नमल कहलाया।।
तन-मन क नमलता ह है ब हरंतर क शु चता।
शु चता सबके लए ज र वर हो अथवा व नता।।
नयम दूसरा मूल सुख का, है 'स तोष' कहाता।
स तोषी का धन-वैभव से, जुड़ता अ धक न नाता।।
है स तोष परम धन, इसको जो भी पा जाता है।
मट जाती है चाह और क , यि त शां त पाता है।।
'तप करना' है नयम तीसरा ऋ ध- स ध का दाता।
वच लत हुए बना य द तपसी आगे बढ़ता जाता,
शीत-ताप-पावस म समरस रहकर तप करता है।
द य ि ट का वर पाकर सुख अंतस म भरता है।।
चौथा नयम मह वपूण अ त ' वा याय' है, भाई।
स थ का पठन और पाठन अतीव सुखदाई।।
जो रत रहकर वा याय म खाते नत गोते ह।
उनसे उनके इ ट देवता अ त स न होते ह।।
अि तम नयम 'भरोसा भु का' िजसक दु नया सार ।
सब कु छ उसे सम पत करना बन उसका आभार ।।
भु के त णधान यि त को मनवां छत फल देता।
होती स ध समा ध, ईश को वह वश म कर लेता।।
9. "yoga in hindi"
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