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BA III sem
वैदिक अर्थव्यवस्र्ा
By
Prachi Virag Sontakke
प्रस्तावना
• वैदिक काल ववभाजन : ऋग्वैदिक काल + उत्तर
वैदिक काल
• स्रोत : ऋग्वेि , यजुवेि, सामवेि, अर्वथवेि,
संदिताएँ, ब्राह्मण ग्रंर् इत्यादि
• वैदिक सादित्य : मूलतः धार्मथक ग्रंर्
• उद्िेश्य : आर्र्थक िशाओं का ननरूपण करना
नि ं
• फिर भी अनेक प्रसंगों में इस प्रकार क
े उल्लेख
वैदिक सादित्य में प्राप्त
• अनेक प्रार्नाएँ भौनतक उद्िेश्य िेतु
ऋग्वैदिक काल
ऋग्वैदिक काल
• काल : 1500-
1100 BCE
• प्रसार : उत्तर
पश्श्िम भारत
एवं पंजाब में
• संस्कृ नत :
ग्रामीण, छोटे
गाँव
• स्रोत : ऋग्वेि
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : पशुपालन
• ऋग्वेि में पशुपालन व कृ वि का उल्लेख
• पशुपालन का उल्लेख एवं पररिय कृ वि की अपेक्षा अर्धक
• रामशरण शमाथ : ऋग्वेि में गो शब्ि एवं उससे उत्पन्न शब्िावल का 176
बार उल्लेख। कृ वि ववियक उल्लेख मार 21.
• मवेशी, घोड़े, भेड़ ,बकर से पररर्ित
• गो-संपिा लाभ िेतु सोम से प्रार्नाएँ
• गो-संपिा ि समृद्र्ध का पैमाना
• गो-संपिा का समानार्थक शब्ि = ‘रनय’ = धन
• ऋग्वैदिक राजा = गोपनत
• मवेर्शयों की कई प्रजानतयों से पररर्ित
1. धेनु = िूध िेनी वाल गाय
2. अनिवान = सामान उठाने वाले मवेशी
• यवस = िारा
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : कृ वि
• मित्व कम : पर कृ वि कमथ अपररर्ित नि ं
• कृ वि सूक्त : कृ वि क
े अर्धष्ठाता िेवता िेतु
• ‘क्षेर’ = खेती की जाने वाल भूर्म
• कृ वि क
े उपकरण
• ‘िार’ / ‘सृणण’ : िर्सयाँ
• लांगल = छोटा िल
• सीर = भार िल
• ‘सीता’ : िल िलाने पर भूर्म में बनी रेखा
• िसल : जौ , व्रीदि
• पशुपालन पर आधाररत अर्थव्यवस्र्ा धीरे-धीरे कृ वि
की ओर अग्रसर
• ऋग्वेि 10.34.13: “अरे जुआर , कभी पाशों से मत खेलों, बश्ल्क कृ वि कायथ करो।
इससे पत्नी और गायें पाओगे”
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : अन्य व्यवसाय
• तक्षक : काष्ठ र्शल्प का कार गर
• लकड़ी का सामान व गृि ननमाथण
• रर्कार : रर् ननमाथण िेतु ववर्शष्ट तक्षक
• िमथन्न : िमड़े का काम करने वाले
• िमथ र्शल्प : िमड़े क
े पार, घोड़े की लगाम, िाबुक ननमाथण
• वस्र ननमाथण : ऊनी वस्र बनाने का उल्लेख िशम मण्डल में
• वस्र बुनने िेतु ‘तन्तु’ (तानना) और ‘ओतु’ (भरना) का
उल्लेख
• आभूिण ननमाथण : स्वणथकार ?
• आभूिण : कणथ शोभन, दिरण्य कणथ, ननष्क
• धातु र्शल्प : अयस = धातु (ताम्र/लौि)
• िल का िाल,िर्सयाँ, स्वर्धनत (क
ु ल्िाड़ी),परशु
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : भूर्म संपिा
• युद्ध द्वारा भू-संपवत्त पर अर्धकार करने क
े वववरण अल्प
• युद्ध का पयाथय = गववश्ष्ट (गो संपवत्त पाने की कामना)
• भूर्म संपिा का मित्व गौण
ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : वाणणज्य एवं व्यापार
• ऋग्वैदिक काल में ववकर्सत व्यापार की खोज कदठन
• कृ वि मूलक अर्थव्यवस्र्ा और कार गर क
े पेशों का बािुल्य नि ं
• वस्तु ववनमय : लेन-िेन से , गौ क
े माध्यम से ?
• ऋग्वेि 1.56.2: िूर-िूर तक की यारा आपिा रदित रिे
• ऋग्वेि 1.42.2: िूर-िूर की याराओं में तस्करों का उपद्रव न िो और शतधन का
लाभ िो
• ‘पणण’ : िूर की यारा करने वाले, बड़ी संपवत्त क
े स्वामी
• ऋग्वेि : पणणयों की ननंिा क्यूँफक उनकी भािा िुबोध्य
• िामोिर कोसम्बी : पणण = व्यापार तर्ा वे पशुपालन आधाररत अर्थव्यवस्र्ा में
ववशेि मान्य नि ं
• ऋग्वेि में समुद्र शब्ि ववद्यमान
• मागों एवं पर्ों िेतु प्रार्नाएँ
• बी.बी.लाल : ‘शताररर नौ’ = 100 पतवारों की नौका
उत्तर वैदिक काल
• समय :1100-800 BCE
• स्रोत : यजुवेि, सामवेि,
अर्वथवेि, ब्राह्मण ग्रंर्,
संदिताएँ, सूर सादित्य इत्यादि
• प्रसार : संस्कृ नत का ववस्तार
• क
ु रुक्षेर से उत्तर बबिार तक
जंगलों का नाश व बश्स्तयों का
ववस्तार
• कृ वि एवं पशु संपिा वृद्र्ध िेतु
प्रार्नाएँ
• नवीन पररवेश : उपजाऊ
र्मट्ट , अच्छा पयाथवरण
उत्तर वैदिक
अर्थव्यवस्र्ा : कृ वि
• अर्वथवेि : िल िलाने की कला का
आववष्कार पृथ्वी वैनय द्वारा
• यजुवेि : ववववध प्रकार की कृ वि-
व्रीदि, यव, गोधूम, िलिन, नतलिन,
सश्ब्जयाँ
• व्रीदि = धान
• िश्स्तनापुर : धान की भूसी
• तैनतररय संदिता : जौ शीतकाल में
बोया जाता िै और धान ग्रीष्म में
• शतपर् ब्राह्मण : कृ वि कायथ क
े 4
सोपान
1. खेत की जुताई
2. बीजारोपण
3. िसल कटायी
4. पकी िसल की झड़ाई बबछाई
कृ वि
• कीनाश = कृ िक जो बैलों से िल िलाये
• अर्वथवेि, शतपर् ब्राह्मण,तैवत्तर य संदिता, वाजसनेयी
संदिता : 6,8,12,26 बैलों का प्रयोग िल िलाने िेतु
• कड़ी र्मट्ट ?/ बड़े क्षेरिल का खेत?
• िल : खैर (खि र) गूलर की लकड़ी, ताम्र
• अनस , शकट : कृ वि उत्पाि ले जाने िेतु काष्ट की
गाड़ी
• र्संिाई : नि , बाररश, क
ु एँ , द्रोणी
• अर्वथवेि : अनतवृश्ष्ट-अनावृश्ष्ट, कीड़ों से कृ वि क
े
बिाव िेतु मंर
• याज्ञिक अनुष्ठान : यव-व्रीदि की आिुनत
• आग्रायन इश्ष्ट यि : नई िसल क
े सेवन से पूवथ
आयोश्जत
पशुपालन
• यजुवेि : क
ु त्ता, घोड़ा, गधा, खच्िर, भेड़, बकर व अन्य मवेशी का
उल्लेख
• प्रयोग : सामान धोना, कृ वि कमथ, खाने िेतु
• जानवरों क
े पालन, िेखभाल एवं वृद्र्ध की ििाथ
• याज्ञिक अनुष्ठान : िूध-घी-िि की आिुनत - िशथ पूणथ मास यि
• जैर्मनी : पशुबन्ध यि पशुओं से घी िूध प्राप्त करने िेतु
• अर्वथवेि : शाकृ त (गोबर) का मित्व कृ वि िेतु
• ववर्भन्न प्रकार एवं आयु क
े मवेर्शयों क
े पृर्क नाम प्राप्त
• धेनु : िूध िेनी वाल गाय
• तैनतररया संदिता : 4 विथ की गाय = तुयथवाि
• अर्वथवेि : गो ित्या की ननंिा तर्ा िोिी को मृत्यु िंड
र्शकार
• जीवन यापन का प्रमुख व्यवसाय नि ं
• जंगल जानवरों से पशु संपिा की रक्षा िेतु
आवश्यक
• मृगया :यिा किा राजन्यों क
े मनोरंजन िेतु
• पुरुि मेध यि : क
ु छ व्यश्क्तयों क
े नाम प्राप्त
श्जनका जीवन यापन र्शकार एवं मछल
पकड़ना.
• अर्वथवेि : र्िड़ड़यों का र्शकार जाल बबछा कर
मृिभांड व्यवसाय
• वाजसनेयी संदिता : क
ुं भकार का उल्लेख
• र्िबरत धूसर मृिभांड ()
• कार गर एवं तकनीक का कौशल
• मुख्य पार : र्ाल , कटोरे
• अदिच्छर, िश्स्तनापुर, रोपड़
• धार्मथक अनुष्ठानों िेतु ववर्शष्ट प्रकार
धातु व्यवसाय
• उत्तर वैदिक सादित्य : अयस = धातु
• कृ ष्णायस = लौि ?
• लोदित अयस = ताम्र?
• अतरंजीखेड़ा , नोि : लौि प्रयोग क
े प्रमाण- क
ु िाल,
क
ु ठार, बरछा
• धातु से बने िल क
े िल ?
• रर् ननमाथण मे धातु प्रयोग?
• अर्धकांश धातु वस्तुएँ : युद्ध क
े अस्र
अन्य व्यवसाय
• व्यवसायों की ववववधता और संख्या में वृद्र्ध
• ववशेि और िक्ष कार गरों की उपश्स्र्नत
• वाजसनेयी संदिता : 18 प्रकार क
े कार गरों का उल्लेख
• कमाथर (लोिार), मणणकार, धनुकार, ईिुकार (बाण
बनाने वाला), ज्याकार (धनुि की डोर बनाने वाला),
रज्जुसजथ, सुराकार, वास: पल्पूल (धोबी), रजनयरी
(रंगरेज़), िमथम्न, दिरण्यकार, धीवर (मल्लाि), िस्तीप,
अश्वप, गोपालक, सूत (अर्भनेता), शैलूि (गायक),
मृगायुमंतक (र्शकार )
• तैवत्तर य ब्राह्मण : र्भिग की वृवत्त का उल्लेख
व्यापार वाणणज्य
• ऋग्वेि की तुलना में अर्धक उल्लेख प्राप्त
• मुद्रा का प्रिलन ??
• शतमान , कृ ष्णल = ननश्श्ित वजन वाले खंड
• अर्वथवेि : वस्र एवं पशु िमथ का व्यापार
• यजुवेि : वणणज = वणणक पुर
• वृवत्त क
े वंशानुगत िोने का प्रमाण
• उत्तर वेदिक सादित्य : श्रेष्ठी शब्ि का प्रर्म उल्लेख
• शतपर् ब्राह्मण + तैवत्तर य संदिता : क
ु सीि = ऋण , क
ु सीदिन =सूिखोर
व्यवसायी
• अर्वथवेि : वव-पर् = खराब मागथ पर िलने वाल गाड़ी = पर्
• शतपर् ब्राह्मण : पूवथ एवं पश्श्िम क
े सागर क
े वविय में जानकार
• समुद्र व्यापार का प्रमाण अिात
तुलनात्मक अर्थव्यवस्र्ा
ऋग्वैदिक काल उत्तर वैदिक काल
पशुपालन मुख्य व्यवसाय, कृ वि
गौण
कृ वि प्रमुख व्यवसाय, पशुपालन
गौण
संपन्नता की कसौट = गोधन संपन्नता की कसौट = कृ वि, भूर्म
व्यापार वाणणज्य : शैशव अवस्र्ा
में
व्यापार वाणणज्य : ववकास की ओर
अग्रसर
सीर्मत व्यवसाय ववववध एवं ववर्शष्ट व्यवसाय
श्रेणी का उिय नि ं श्रेणी शब्ि िात
ननष्किथ
• वैदिक सादित्य में अर्थव्यवस्र्ा संबंधी प्रमाण उपलब्ध
• पुराताश्त्वक प्रमाण
• ववर्भन्न व्यवसायों का उिय
• कृ वि और पशुपालन मुख्य व्यवसाय
• कृ वि एवं पशुपालन संबंधी ववववध प्रफियाएँ
• व्यापार एवं वाणणज्य शैशव अवस्र्ा में
• ग्रामीण अर्थव्यवस्र्ा

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Vedic economy

  • 1. BA III sem वैदिक अर्थव्यवस्र्ा By Prachi Virag Sontakke
  • 2. प्रस्तावना • वैदिक काल ववभाजन : ऋग्वैदिक काल + उत्तर वैदिक काल • स्रोत : ऋग्वेि , यजुवेि, सामवेि, अर्वथवेि, संदिताएँ, ब्राह्मण ग्रंर् इत्यादि • वैदिक सादित्य : मूलतः धार्मथक ग्रंर् • उद्िेश्य : आर्र्थक िशाओं का ननरूपण करना नि ं • फिर भी अनेक प्रसंगों में इस प्रकार क े उल्लेख वैदिक सादित्य में प्राप्त • अनेक प्रार्नाएँ भौनतक उद्िेश्य िेतु
  • 3. ऋग्वैदिक काल ऋग्वैदिक काल • काल : 1500- 1100 BCE • प्रसार : उत्तर पश्श्िम भारत एवं पंजाब में • संस्कृ नत : ग्रामीण, छोटे गाँव • स्रोत : ऋग्वेि
  • 4. ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : पशुपालन • ऋग्वेि में पशुपालन व कृ वि का उल्लेख • पशुपालन का उल्लेख एवं पररिय कृ वि की अपेक्षा अर्धक • रामशरण शमाथ : ऋग्वेि में गो शब्ि एवं उससे उत्पन्न शब्िावल का 176 बार उल्लेख। कृ वि ववियक उल्लेख मार 21. • मवेशी, घोड़े, भेड़ ,बकर से पररर्ित • गो-संपिा लाभ िेतु सोम से प्रार्नाएँ • गो-संपिा ि समृद्र्ध का पैमाना • गो-संपिा का समानार्थक शब्ि = ‘रनय’ = धन • ऋग्वैदिक राजा = गोपनत • मवेर्शयों की कई प्रजानतयों से पररर्ित 1. धेनु = िूध िेनी वाल गाय 2. अनिवान = सामान उठाने वाले मवेशी • यवस = िारा
  • 5. ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : कृ वि • मित्व कम : पर कृ वि कमथ अपररर्ित नि ं • कृ वि सूक्त : कृ वि क े अर्धष्ठाता िेवता िेतु • ‘क्षेर’ = खेती की जाने वाल भूर्म • कृ वि क े उपकरण • ‘िार’ / ‘सृणण’ : िर्सयाँ • लांगल = छोटा िल • सीर = भार िल • ‘सीता’ : िल िलाने पर भूर्म में बनी रेखा • िसल : जौ , व्रीदि • पशुपालन पर आधाररत अर्थव्यवस्र्ा धीरे-धीरे कृ वि की ओर अग्रसर • ऋग्वेि 10.34.13: “अरे जुआर , कभी पाशों से मत खेलों, बश्ल्क कृ वि कायथ करो। इससे पत्नी और गायें पाओगे”
  • 6. ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : अन्य व्यवसाय • तक्षक : काष्ठ र्शल्प का कार गर • लकड़ी का सामान व गृि ननमाथण • रर्कार : रर् ननमाथण िेतु ववर्शष्ट तक्षक • िमथन्न : िमड़े का काम करने वाले • िमथ र्शल्प : िमड़े क े पार, घोड़े की लगाम, िाबुक ननमाथण • वस्र ननमाथण : ऊनी वस्र बनाने का उल्लेख िशम मण्डल में • वस्र बुनने िेतु ‘तन्तु’ (तानना) और ‘ओतु’ (भरना) का उल्लेख • आभूिण ननमाथण : स्वणथकार ? • आभूिण : कणथ शोभन, दिरण्य कणथ, ननष्क • धातु र्शल्प : अयस = धातु (ताम्र/लौि) • िल का िाल,िर्सयाँ, स्वर्धनत (क ु ल्िाड़ी),परशु
  • 7. ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : भूर्म संपिा • युद्ध द्वारा भू-संपवत्त पर अर्धकार करने क े वववरण अल्प • युद्ध का पयाथय = गववश्ष्ट (गो संपवत्त पाने की कामना) • भूर्म संपिा का मित्व गौण
  • 8. ऋग्वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : वाणणज्य एवं व्यापार • ऋग्वैदिक काल में ववकर्सत व्यापार की खोज कदठन • कृ वि मूलक अर्थव्यवस्र्ा और कार गर क े पेशों का बािुल्य नि ं • वस्तु ववनमय : लेन-िेन से , गौ क े माध्यम से ? • ऋग्वेि 1.56.2: िूर-िूर तक की यारा आपिा रदित रिे • ऋग्वेि 1.42.2: िूर-िूर की याराओं में तस्करों का उपद्रव न िो और शतधन का लाभ िो • ‘पणण’ : िूर की यारा करने वाले, बड़ी संपवत्त क े स्वामी • ऋग्वेि : पणणयों की ननंिा क्यूँफक उनकी भािा िुबोध्य • िामोिर कोसम्बी : पणण = व्यापार तर्ा वे पशुपालन आधाररत अर्थव्यवस्र्ा में ववशेि मान्य नि ं • ऋग्वेि में समुद्र शब्ि ववद्यमान • मागों एवं पर्ों िेतु प्रार्नाएँ • बी.बी.लाल : ‘शताररर नौ’ = 100 पतवारों की नौका
  • 9. उत्तर वैदिक काल • समय :1100-800 BCE • स्रोत : यजुवेि, सामवेि, अर्वथवेि, ब्राह्मण ग्रंर्, संदिताएँ, सूर सादित्य इत्यादि • प्रसार : संस्कृ नत का ववस्तार • क ु रुक्षेर से उत्तर बबिार तक जंगलों का नाश व बश्स्तयों का ववस्तार • कृ वि एवं पशु संपिा वृद्र्ध िेतु प्रार्नाएँ • नवीन पररवेश : उपजाऊ र्मट्ट , अच्छा पयाथवरण
  • 10. उत्तर वैदिक अर्थव्यवस्र्ा : कृ वि • अर्वथवेि : िल िलाने की कला का आववष्कार पृथ्वी वैनय द्वारा • यजुवेि : ववववध प्रकार की कृ वि- व्रीदि, यव, गोधूम, िलिन, नतलिन, सश्ब्जयाँ • व्रीदि = धान • िश्स्तनापुर : धान की भूसी • तैनतररय संदिता : जौ शीतकाल में बोया जाता िै और धान ग्रीष्म में • शतपर् ब्राह्मण : कृ वि कायथ क े 4 सोपान 1. खेत की जुताई 2. बीजारोपण 3. िसल कटायी 4. पकी िसल की झड़ाई बबछाई
  • 11. कृ वि • कीनाश = कृ िक जो बैलों से िल िलाये • अर्वथवेि, शतपर् ब्राह्मण,तैवत्तर य संदिता, वाजसनेयी संदिता : 6,8,12,26 बैलों का प्रयोग िल िलाने िेतु • कड़ी र्मट्ट ?/ बड़े क्षेरिल का खेत? • िल : खैर (खि र) गूलर की लकड़ी, ताम्र • अनस , शकट : कृ वि उत्पाि ले जाने िेतु काष्ट की गाड़ी • र्संिाई : नि , बाररश, क ु एँ , द्रोणी • अर्वथवेि : अनतवृश्ष्ट-अनावृश्ष्ट, कीड़ों से कृ वि क े बिाव िेतु मंर • याज्ञिक अनुष्ठान : यव-व्रीदि की आिुनत • आग्रायन इश्ष्ट यि : नई िसल क े सेवन से पूवथ आयोश्जत
  • 12. पशुपालन • यजुवेि : क ु त्ता, घोड़ा, गधा, खच्िर, भेड़, बकर व अन्य मवेशी का उल्लेख • प्रयोग : सामान धोना, कृ वि कमथ, खाने िेतु • जानवरों क े पालन, िेखभाल एवं वृद्र्ध की ििाथ • याज्ञिक अनुष्ठान : िूध-घी-िि की आिुनत - िशथ पूणथ मास यि • जैर्मनी : पशुबन्ध यि पशुओं से घी िूध प्राप्त करने िेतु • अर्वथवेि : शाकृ त (गोबर) का मित्व कृ वि िेतु • ववर्भन्न प्रकार एवं आयु क े मवेर्शयों क े पृर्क नाम प्राप्त • धेनु : िूध िेनी वाल गाय • तैनतररया संदिता : 4 विथ की गाय = तुयथवाि • अर्वथवेि : गो ित्या की ननंिा तर्ा िोिी को मृत्यु िंड
  • 13. र्शकार • जीवन यापन का प्रमुख व्यवसाय नि ं • जंगल जानवरों से पशु संपिा की रक्षा िेतु आवश्यक • मृगया :यिा किा राजन्यों क े मनोरंजन िेतु • पुरुि मेध यि : क ु छ व्यश्क्तयों क े नाम प्राप्त श्जनका जीवन यापन र्शकार एवं मछल पकड़ना. • अर्वथवेि : र्िड़ड़यों का र्शकार जाल बबछा कर
  • 14. मृिभांड व्यवसाय • वाजसनेयी संदिता : क ुं भकार का उल्लेख • र्िबरत धूसर मृिभांड () • कार गर एवं तकनीक का कौशल • मुख्य पार : र्ाल , कटोरे • अदिच्छर, िश्स्तनापुर, रोपड़ • धार्मथक अनुष्ठानों िेतु ववर्शष्ट प्रकार
  • 15. धातु व्यवसाय • उत्तर वैदिक सादित्य : अयस = धातु • कृ ष्णायस = लौि ? • लोदित अयस = ताम्र? • अतरंजीखेड़ा , नोि : लौि प्रयोग क े प्रमाण- क ु िाल, क ु ठार, बरछा • धातु से बने िल क े िल ? • रर् ननमाथण मे धातु प्रयोग? • अर्धकांश धातु वस्तुएँ : युद्ध क े अस्र
  • 16. अन्य व्यवसाय • व्यवसायों की ववववधता और संख्या में वृद्र्ध • ववशेि और िक्ष कार गरों की उपश्स्र्नत • वाजसनेयी संदिता : 18 प्रकार क े कार गरों का उल्लेख • कमाथर (लोिार), मणणकार, धनुकार, ईिुकार (बाण बनाने वाला), ज्याकार (धनुि की डोर बनाने वाला), रज्जुसजथ, सुराकार, वास: पल्पूल (धोबी), रजनयरी (रंगरेज़), िमथम्न, दिरण्यकार, धीवर (मल्लाि), िस्तीप, अश्वप, गोपालक, सूत (अर्भनेता), शैलूि (गायक), मृगायुमंतक (र्शकार ) • तैवत्तर य ब्राह्मण : र्भिग की वृवत्त का उल्लेख
  • 17. व्यापार वाणणज्य • ऋग्वेि की तुलना में अर्धक उल्लेख प्राप्त • मुद्रा का प्रिलन ?? • शतमान , कृ ष्णल = ननश्श्ित वजन वाले खंड • अर्वथवेि : वस्र एवं पशु िमथ का व्यापार • यजुवेि : वणणज = वणणक पुर • वृवत्त क े वंशानुगत िोने का प्रमाण • उत्तर वेदिक सादित्य : श्रेष्ठी शब्ि का प्रर्म उल्लेख • शतपर् ब्राह्मण + तैवत्तर य संदिता : क ु सीि = ऋण , क ु सीदिन =सूिखोर व्यवसायी • अर्वथवेि : वव-पर् = खराब मागथ पर िलने वाल गाड़ी = पर् • शतपर् ब्राह्मण : पूवथ एवं पश्श्िम क े सागर क े वविय में जानकार • समुद्र व्यापार का प्रमाण अिात
  • 18. तुलनात्मक अर्थव्यवस्र्ा ऋग्वैदिक काल उत्तर वैदिक काल पशुपालन मुख्य व्यवसाय, कृ वि गौण कृ वि प्रमुख व्यवसाय, पशुपालन गौण संपन्नता की कसौट = गोधन संपन्नता की कसौट = कृ वि, भूर्म व्यापार वाणणज्य : शैशव अवस्र्ा में व्यापार वाणणज्य : ववकास की ओर अग्रसर सीर्मत व्यवसाय ववववध एवं ववर्शष्ट व्यवसाय श्रेणी का उिय नि ं श्रेणी शब्ि िात
  • 19. ननष्किथ • वैदिक सादित्य में अर्थव्यवस्र्ा संबंधी प्रमाण उपलब्ध • पुराताश्त्वक प्रमाण • ववर्भन्न व्यवसायों का उिय • कृ वि और पशुपालन मुख्य व्यवसाय • कृ वि एवं पशुपालन संबंधी ववववध प्रफियाएँ • व्यापार एवं वाणणज्य शैशव अवस्र्ा में • ग्रामीण अर्थव्यवस्र्ा