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भू – स्वामित्व
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Prachi Virag Sontakke
भूमि स्वामित्व
प्रस्तावना
• भू-स्वामित्व िानव ववकास की प्रक्रिया का एक चरण
• आरम्भभक काल िें सभपूणण भूमि ‘अधिकार ववहीन’
• कृ वि = एक जगह पर ननम्चचत सिय क
े मलए उपयोग एवं उपभोग
करने को बाध्य
• कृ वि क
े प्रारंभ से भू स्वामित्व क
े प्रचलन की शुरूवात
• म्स्िनत /काल अनुरूप भू-स्वामित्व िें बदलाव दृम्टिगत
• भूमि पर स्वामित्व क्रकसका : कालानुसार/नीनतकार अनुसार मभन्न
भू-स्वामित्व
स्वामित्व
राजकीय
सािुदानयक
वैयम्ततक
भू-स्वामित्व
व्यम्ततगत भू-स्वामित्व
व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े तत्व
•वंशानुगत िामलकाना हक़
•वविय करना
•ख़रीद
•अिानत रखना
•पट्िे पे देना
• ववभाम्जत करना
•दान देना
व्यम्ततगत भू-स्वामित्व
ववद्वान म्जन्होंने ने इस दृम्टिकोण का सििणन क्रकया:
1. Mcdonel
2. Baden-Powell
3. K. P. Jayaswal
4. P. N. Banerjee
5. U.N. Ghoshal
6. Lallan Gopal
ऋग्वेददक काल
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े संदभण:
a. कृ वियोग्य ज़िीन की जुताई
b. कृ वियोग्य ज़िीन को नापना
c. खेती को ववभाम्जत करना (खखल्य)
d. भू-स्वािी
e. उपजाऊ खेत पाररवाररक सदस्य को देने की चचाण
f. कृ वि योग्य ज़िीन: उवणरा एवं क्षेत्र
g. ज़िीन क
े िामलक: उवणपती, उवणरस, उवणरजीत, क्षेत्रपनत, क्षेत्रस
उत्तर-वेददक काल
• ज़िीन क
े प्रकार
1. चारागाह
2. क्षेत्रीय (Homestead)
3. कृ वि योग्य
4. जंगल
• तै॰संदहता: ज़िीन वववाद होने पर इंद्र एवं वरुण देवताओं का स्िरण करे
• ऐतरेय ब्रा॰: नाभ्नेददस्ि का पुत्र िनु, वंशानुगत ज़िीन क
े ववभाजन िें हक़ िााँगते हुए॰॰
• बृह॰ उप॰: याज्ञवल्क ने सन्यास लेने पूवण ज़िीन को दोनो पम्त्नयो िें ववभाम्जत क्रकया
• छान॰ उप॰: कृ वि योग्य ज़िीन एवं घर व्यम्ततगत संपती होने क
े कारण उनका दान
ददया जा सकता िा।
६०० इसा पूवण
• कृ वि क
े स्वािी: क्षेत्रपनत, खेत्तसमिका अिवा वाट्ठु पनत
• पाखणनन: ज़िीन नापी जाती िी
• दीघननकाय: दो खेतों क
े िध्य बाड़
• दीघननकाय: खेती की सीिा ननम्चचत की जाती
• दीघननकाय: अन्य क
े खेतों िें अनतििण क
े उल्लेख
• ववनय वपिक एवं जातक: ज़िीन की ख़रीद-बबिी, दान क
े वणणन
• िहावग्ग जातक: ज़िीन सभपवत्त िानी जाती िी
• अनािवपंडक, जीवक: भूमि दान
• चुलवग्ग जातक: जेतवंन िें ज़िीन वववाद का उल्लेख
• रज्जुवाहक: कृ वि अधिकारी
िौयण काल
• राज्य का ननयंत्रण
• राजा: भू-स्वािी
• राजा: सीता खेतों का स्वािी
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े उदाहरण:
• अिणशास्त्र: यदद कोई स्वािी अपनी ज़िीन का १० विों तक उपयोग ना करे, तो
वह ज़िीन राज्य की होगी
• अिणशास्त्र: ज़िीन वववाद क
े प्रसंग िें स्वािी को स्वयि कहा गया है
• दो खेतों क
े िध्य ववभाजन की चचाण
• दो खेतों क
े िध्य वववाद का उल्लेख
• ज़िीन वविय क
े संदभण
• अ-संवैिाननक तरीक़
े से ज़िीन हड़पने का उल्लेख
िौयोंतर काल
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े प्रचुर उल्लेख
1. िनुस्िृनत: राजा क
े वल अधिपनत, ज़िीन का स्वािी नही
2. िनुस्िृनत: ज़िीन उसकी होगी जो प्रिि जंगल को साफ़ करेगा
3. पतंजमल: स्वािी को ज़िीन बेचने, ख़रीद एवं दान का अधिकार
4. िहावस्तु: िान की खेती का ववभाजन करक
े बौद्ि मभक्षु को दान देने
का प्रसंग
5. िनुस्िृनत: राजा का उत्तरदानयत्व है क्रक वह लोगों की ज़िीन, बच्चों की
रक्षा करे
6. याज्ञवल्क: खेतों िें चोरी दंडनीय अपराि
7. ददव्यावदान: क्रकसान का अपने खेतों िें कृ वि करने क
े प्रसंग
गुप्त काल
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े स्पटि प्रिाण
1. बृहस्पनत स्िृनत : ज़िीन बबिी क
े सिय दस्तावेज तैयार क्रकए जाते िे
2. खेतों को बंिक या करार पर देने क
े संदभण
3. बृहस्पनत स्िृनत:यदद क्षबत्रय, वैचय, शूद्र या पत्नी या भाई क
े बबना िर जाते हैं,
तो उनकी संपवत्त राजा द्वारा ली जानी चादहए।
4. कात्यायन: कृ वि भूमि को घर, आभूिण जैसी व्यम्ततगत संपवत्तयों क
े रूप िें
शामिल क्रकया गया िा।
प्रारंमभक िध्ययुगीन काल
• राजतरंधगणी: बड़े भू-स्वािी को फसलों से भारी लाभ हो रहा है और वह डािर या सािंत
बन गया है।
• राजतरंधगणी: बड़े आकार क
े खेतों क
े िामलक छोिे क्रकसानों को डराते िे ।
• कृ त्य कल्पतरु और अम्ग्नपुराण: भूमि की बबिी और खरीद क
े अधिकार क
े रूप िें
व्यम्ततगत स्वामित्व क
े प्रिाण
• िेिनतधि: भूमि क
े व्यम्ततगत स्वामित्व क
े पक्ष िें िा
• शुभामशत रत्नकोि (1175 CE): ननजवंश भूररनत- पैतृक भूमि।
• राजतरंधगणी: करकोि राजवंश क
े राजा चंद्रवपड क
े अधिकाररयों ने िोची से िंददर ननिाणण
क
े मलए अपनी भूमि बेचने का अनुरोि क्रकया।
• जैमिनी मििासा: राजा राज्य क्षेत्र नहीं दे सकता है तयोंक्रक, वह उसका स्वािी नहीं है।
भू-स्वामित्व
राजा का
स्वामित्व
राजा का स्वामित्व
इस मसद्िांत का सििणन करने वाले ववद्वान
1. V. A. Smith
2. J. N. Samaddar
3. B. Breloer
4. Shamasastry
5. Hopkins
6. Bihler
7. Maine
ऋग्वैददक और उत्तर-वैददक काल
• ऋग्वेद: राजा को भूमि का स्वािी या राज्य का स्वािी िानने क
े कोई उदाहरण नही
• ऋग्वैददक ऋचाओं से यह पता चलता है क्रक “बमल” राजा को लोगों क
े संरक्षक क
े रूप िें
प्राप्त हुआ िा, न क्रक राज्य क
े प्रिुख होने क
े रूप िें।
छठी शताब्दी ईसा पूवण
• आपस्तभब ििणसूत्र: यदद कोई व्यम्तत पट्िे पर राज्य द्वारा दी गई भूमि पर खेती
नहीं करता है, तो उसे राज्य को हुए पूणण नुकसान की भरपाई करनी चादहए।
• वमसटठ ििणसूत्र: िामलक द्वारा पूरी तरह त्यागी गई संपवत्त/ भूमि को राजा क
े पास
जानी चादहए.
• गौति ििणसूत्र: खजाने या पृथ्वी क
े नीचे नछपे मसतक
े राजा को ददया जाना चादहए।
• गौति: राजा ब्राह्िणों को छोड़कर हर चीज का िामलक है.
• बंजर भूमि, खाली भूमि, देहाती भूमि, वन भूमि आदद राजा क
े स्वामित्व िें िी।
• ववनय वपिक: िगि राजा बबम्भबसार 80,000 गांवों क
े स्वािी िे
• उनकी पत्नी कोसलदेवी को अपने भाई प्रसेनजीत (कोसल) से एक गांव दहेज क
े
रूप िें मिला।
िौयण काल
• भूमि पर राजा क
े स्वामित्व का प्रिाण।
• डायोडोरस और स्रैबो : राजा भारत िें सभी संपवत्त क
े िामलक हैं, व्यम्ततगत स्वामित्व
िौजूद नहीं
• यदद भूमि का स्वािी लंबे सिय तक अनुपम्स्ित रहता है तो वह भूमि क
े अपने
स्वामित्व को खो सकता है।
• अिणशास्त्र : वन राज्य की संपवत्त क
े रूप िें िान्य
• कौदिल्य: वन, वन उत्पाद राजस्व क
े स्रोतों िें शामिल।
• वन से आधिणक उपज एकत्र करने क
े मलए क
ु प्याध्यक्ष अधिकारी की ननयुम्तत की गई िी।
• अिणशास्त्र: राज्य को जंगल क
े क
ु छ दहस्सों को साफ करना चादहए और उन्हें कृ वि योग्य
भूमि िें ववकमसत करना चादहए।
• कौदिल्य: राज्य को बंजर भूमि िें खेती क
े मलए ववशेि उपाय अपनाना चादहए।
भूमि प्रकार
• राजा क
े ववशेिाधिकार क
े तहत सात प्रकार की भूमि।
a) परती भूमि,
b) नवसंस्िावपत जनपद,
c) खजानेयुतत भूमि ,
d) खानों और खनन उत्पादों,
e) चरागाह भूमि
f) मसंचाई पररयोम्जत भूमि और
g) वन भूमि।
िौयोत्तर काल
• िनुस्िृनत: राजा सभी का स्वािी है।
• िनुस्िृनत: राजा सवोच्च अधिकारी है, इसमलए, उसे भूमि का स्वािी िाना
जाना चादहए।
• िनुस्िृनत: राजा द्वारा भूमि और लोगों पर ननयंत्रण रखने क
े मलए चतुर
अिीक्षकों की ननयुम्तत करनी चादहए।
• अमभलेखखय प्रिाण प्रिि शताब्दी ईसा पूवण: सातवाहनों द्वारा एक गांव की
भूमि अनुदान
• इस तरह क
े दान करों से िुतत िे।
गुप्त काल
• बृहस्पनत स्िृती : राजा सभी का स्वािी है।
• बृहस्पनत स्िृती : यदद क्षबत्रय, वैचय, शूद्र पुरुि पत्नी या भाई क
े बबना िर जाते हैं,
तो उनकी संपवत्त राजा द्वारा ली जानी चादहए, तयोंक्रक राजा सभी का स्वािी है।
• फदहयान: राजा क
े पास राज्य की पूरी भूमि है
• कात्यायन: यदद िामलक भूमि करों का भुगतान क्रकए बबना राज्य छोड़ देता है, तो
राजा को उसकी भूमि क
े बबिी या जब्त करने का अधिकार है।
• स्वामित्व क
े बबना भूमि (संपवत्त) अंततः राज्य / राजा को जाती है।
• ग्राििाहत्तर और व्यवहरीन: भूमि की बबिी और धगरवी रखने या पट्िे क
े मलए
ननयुतत अधिकारी
• नारदस्िृनत: राजा का ननखात-ननधि पर एकाधिकार है और यह राज्य क
े राजस्व
क
े िहत्वपूणण 'स्रोतों िें से एक है।
प्रारंमभक िध्ययुगीन काल
• राजा राज्य की सभी संपवत्त का िामलक है।
• भट्ि-स्वािीन: राजा जल और भूमि का िामलक है.
• िानसोल्लास: राजा राज्य की सभी संपवत्त का अधिकारी है
• ि
ु त्य-कल्पतरू: राजा भूमि का स्वािी ।
• राजतरंधगणी: राजा सभी कृ वि भूमि का िामलक है
• भू दान संबंधित मशलालेख : राजा को कृ वि भूमि पर ववशेि अधिकार
• िेिानतिी: राजा ननखात-ननधि का सही िामलक है
भूमि स्वामित्व
सािुदानयक
स्वामित्व
सािुदानयक स्वामित्व
इस मसद्िांत का सििणन करने वाले ववद्वान
1. P.V. Kane
2. R. G. Basak
3. R. C. Majumdar
वैददक एवं उत्तर-वैददक काल
िीिांसा सूत्र: भूमि दान अपने सािूदहक स्वामित्व क
े कारण
प्रनतबंधित है।
ववद्वान: चारागाह की भूमि, तालाब, िागण और वन भूमि पूरे गांव क
े
कब्जे िें िी।
िहाभारत: उत्तर क
ु रु जनजानत िें सािूदहक स्वामित्व की प्रिा है।
छठी शताब्दी ईसा पूवण
• दीघननकाय: उत्तर क
ु रु की जनजानत ने सािुदानयक स्वामित्व की प्रिा का
पालन क्रकया। जानवरों, फसलों और यहां तक क्रक िदहलाओं को भी
सांप्रदानयक संपवत्त क
े रूप िें िाना जाता िा.
• जातक: गांवों की आस-पास की भूमि म्जसिें देहाती क्षेत्र, बंजर भूमि, जंगल
शामिल हैं, पूरे ग्रािीणों द्वारा उपयोग क्रकए गए िे।
• मसंहकाभि जातक: सभी ग्रािीण जौ क
े खेतों की सुरक्षा कर रहे िे।
• नतंदक जातक : एक फलदार पेड़ को सांप्रदानयक संपवत्त क
े रूप िें िाना
• मलच्छवव, शातय, िल्ल, कोमलय, आयुिजीवी : सांप्रदानयक स्वामित्व की
प्रिा
िौयण काल
•भूमि क
े सािुदानयक स्वामित्व की स्पटि जानकारी नही।
•अिणशास्त्र: सिुदाय क
े स्वामित्व का स्पटि उल्लेख नहीं करता है
(ए.एन. बोस)
•हालांक्रक क
ु छ संदभण भूमि क
े सािुदानयक स्वामित्व क
े बारे िें
ववचार देता है।
•कौदिल्य: गांवों से 800 अंगुल की दूरी पर म्स्ित भूमि ग्रािीणों क
े
स्वामित्व िें िी.
•ग्रीक इनतहासकार नीआरकस / स्रबो : उत्तर-पम्चचिी भारत
(पंजाब) क
े राज्य सािुदानयक कृ वि कर रहे िे।
गुप्त काल
• ववटणु: चारागाह भूमि = गांव की संपवत्त
• याज्ञवल्क: गांवों की आसपास की भूमि का उपयोग सािूदहक संपवत्त क
े
रूप िें क्रकया जाता िा।
• जैमिननसुत्र : यहां तक क्रक प्रभावी राजा भी पूरी पृथ्वी का दान नहीं दे
सकता है, म्जसका वह शासक हो सकता है, तयोंक्रक पृथ्वी सभी क
े मलए
सािान्य है।
उपसंहार
• वववाददत प्रचन
• राजा राज्य का स्वािी, लेक्रकन भू-स्वािी नही ?
• राजा राज्य क
े प्रिुख क
े रूप िें भू-स्वािी ?
• राजा राज्य क
े स्वािी िा जो एक रक्षक क
े रूप िें कायण करता िा
• संभवतः वह क
े वल राज्य भूमि (सीता) का िामलक िा
• शेि भूमि एक राजा क
े रूप िें उसक
े पास है, लेक्रकन िूल अधिकार िामलक
द्वारा ननदहत हैं।
• क्रकसान अपने कृ वि खेतों क
े स्वािी
• व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क
े सवाणधिक स्पटि उल्लेख
• गणतंत्र (संघ/गणराज्य) राज्यों िें सािुदानयक स्वामित्व का प्रचलन िा .

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  • 3. प्रस्तावना • भू-स्वामित्व िानव ववकास की प्रक्रिया का एक चरण • आरम्भभक काल िें सभपूणण भूमि ‘अधिकार ववहीन’ • कृ वि = एक जगह पर ननम्चचत सिय क े मलए उपयोग एवं उपभोग करने को बाध्य • कृ वि क े प्रारंभ से भू स्वामित्व क े प्रचलन की शुरूवात • म्स्िनत /काल अनुरूप भू-स्वामित्व िें बदलाव दृम्टिगत • भूमि पर स्वामित्व क्रकसका : कालानुसार/नीनतकार अनुसार मभन्न
  • 6. व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क े तत्व •वंशानुगत िामलकाना हक़ •वविय करना •ख़रीद •अिानत रखना •पट्िे पे देना • ववभाम्जत करना •दान देना
  • 7. व्यम्ततगत भू-स्वामित्व ववद्वान म्जन्होंने ने इस दृम्टिकोण का सििणन क्रकया: 1. Mcdonel 2. Baden-Powell 3. K. P. Jayaswal 4. P. N. Banerjee 5. U.N. Ghoshal 6. Lallan Gopal
  • 8. ऋग्वेददक काल • व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क े संदभण: a. कृ वियोग्य ज़िीन की जुताई b. कृ वियोग्य ज़िीन को नापना c. खेती को ववभाम्जत करना (खखल्य) d. भू-स्वािी e. उपजाऊ खेत पाररवाररक सदस्य को देने की चचाण f. कृ वि योग्य ज़िीन: उवणरा एवं क्षेत्र g. ज़िीन क े िामलक: उवणपती, उवणरस, उवणरजीत, क्षेत्रपनत, क्षेत्रस
  • 9. उत्तर-वेददक काल • ज़िीन क े प्रकार 1. चारागाह 2. क्षेत्रीय (Homestead) 3. कृ वि योग्य 4. जंगल • तै॰संदहता: ज़िीन वववाद होने पर इंद्र एवं वरुण देवताओं का स्िरण करे • ऐतरेय ब्रा॰: नाभ्नेददस्ि का पुत्र िनु, वंशानुगत ज़िीन क े ववभाजन िें हक़ िााँगते हुए॰॰ • बृह॰ उप॰: याज्ञवल्क ने सन्यास लेने पूवण ज़िीन को दोनो पम्त्नयो िें ववभाम्जत क्रकया • छान॰ उप॰: कृ वि योग्य ज़िीन एवं घर व्यम्ततगत संपती होने क े कारण उनका दान ददया जा सकता िा।
  • 10. ६०० इसा पूवण • कृ वि क े स्वािी: क्षेत्रपनत, खेत्तसमिका अिवा वाट्ठु पनत • पाखणनन: ज़िीन नापी जाती िी • दीघननकाय: दो खेतों क े िध्य बाड़ • दीघननकाय: खेती की सीिा ननम्चचत की जाती • दीघननकाय: अन्य क े खेतों िें अनतििण क े उल्लेख • ववनय वपिक एवं जातक: ज़िीन की ख़रीद-बबिी, दान क े वणणन • िहावग्ग जातक: ज़िीन सभपवत्त िानी जाती िी • अनािवपंडक, जीवक: भूमि दान • चुलवग्ग जातक: जेतवंन िें ज़िीन वववाद का उल्लेख • रज्जुवाहक: कृ वि अधिकारी
  • 11. िौयण काल • राज्य का ननयंत्रण • राजा: भू-स्वािी • राजा: सीता खेतों का स्वािी • व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क े उदाहरण: • अिणशास्त्र: यदद कोई स्वािी अपनी ज़िीन का १० विों तक उपयोग ना करे, तो वह ज़िीन राज्य की होगी • अिणशास्त्र: ज़िीन वववाद क े प्रसंग िें स्वािी को स्वयि कहा गया है • दो खेतों क े िध्य ववभाजन की चचाण • दो खेतों क े िध्य वववाद का उल्लेख • ज़िीन वविय क े संदभण • अ-संवैिाननक तरीक़ े से ज़िीन हड़पने का उल्लेख
  • 12. िौयोंतर काल • व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क े प्रचुर उल्लेख 1. िनुस्िृनत: राजा क े वल अधिपनत, ज़िीन का स्वािी नही 2. िनुस्िृनत: ज़िीन उसकी होगी जो प्रिि जंगल को साफ़ करेगा 3. पतंजमल: स्वािी को ज़िीन बेचने, ख़रीद एवं दान का अधिकार 4. िहावस्तु: िान की खेती का ववभाजन करक े बौद्ि मभक्षु को दान देने का प्रसंग 5. िनुस्िृनत: राजा का उत्तरदानयत्व है क्रक वह लोगों की ज़िीन, बच्चों की रक्षा करे 6. याज्ञवल्क: खेतों िें चोरी दंडनीय अपराि 7. ददव्यावदान: क्रकसान का अपने खेतों िें कृ वि करने क े प्रसंग
  • 13. गुप्त काल • व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क े स्पटि प्रिाण 1. बृहस्पनत स्िृनत : ज़िीन बबिी क े सिय दस्तावेज तैयार क्रकए जाते िे 2. खेतों को बंिक या करार पर देने क े संदभण 3. बृहस्पनत स्िृनत:यदद क्षबत्रय, वैचय, शूद्र या पत्नी या भाई क े बबना िर जाते हैं, तो उनकी संपवत्त राजा द्वारा ली जानी चादहए। 4. कात्यायन: कृ वि भूमि को घर, आभूिण जैसी व्यम्ततगत संपवत्तयों क े रूप िें शामिल क्रकया गया िा।
  • 14. प्रारंमभक िध्ययुगीन काल • राजतरंधगणी: बड़े भू-स्वािी को फसलों से भारी लाभ हो रहा है और वह डािर या सािंत बन गया है। • राजतरंधगणी: बड़े आकार क े खेतों क े िामलक छोिे क्रकसानों को डराते िे । • कृ त्य कल्पतरु और अम्ग्नपुराण: भूमि की बबिी और खरीद क े अधिकार क े रूप िें व्यम्ततगत स्वामित्व क े प्रिाण • िेिनतधि: भूमि क े व्यम्ततगत स्वामित्व क े पक्ष िें िा • शुभामशत रत्नकोि (1175 CE): ननजवंश भूररनत- पैतृक भूमि। • राजतरंधगणी: करकोि राजवंश क े राजा चंद्रवपड क े अधिकाररयों ने िोची से िंददर ननिाणण क े मलए अपनी भूमि बेचने का अनुरोि क्रकया। • जैमिनी मििासा: राजा राज्य क्षेत्र नहीं दे सकता है तयोंक्रक, वह उसका स्वािी नहीं है।
  • 16. राजा का स्वामित्व इस मसद्िांत का सििणन करने वाले ववद्वान 1. V. A. Smith 2. J. N. Samaddar 3. B. Breloer 4. Shamasastry 5. Hopkins 6. Bihler 7. Maine
  • 17. ऋग्वैददक और उत्तर-वैददक काल • ऋग्वेद: राजा को भूमि का स्वािी या राज्य का स्वािी िानने क े कोई उदाहरण नही • ऋग्वैददक ऋचाओं से यह पता चलता है क्रक “बमल” राजा को लोगों क े संरक्षक क े रूप िें प्राप्त हुआ िा, न क्रक राज्य क े प्रिुख होने क े रूप िें।
  • 18. छठी शताब्दी ईसा पूवण • आपस्तभब ििणसूत्र: यदद कोई व्यम्तत पट्िे पर राज्य द्वारा दी गई भूमि पर खेती नहीं करता है, तो उसे राज्य को हुए पूणण नुकसान की भरपाई करनी चादहए। • वमसटठ ििणसूत्र: िामलक द्वारा पूरी तरह त्यागी गई संपवत्त/ भूमि को राजा क े पास जानी चादहए. • गौति ििणसूत्र: खजाने या पृथ्वी क े नीचे नछपे मसतक े राजा को ददया जाना चादहए। • गौति: राजा ब्राह्िणों को छोड़कर हर चीज का िामलक है. • बंजर भूमि, खाली भूमि, देहाती भूमि, वन भूमि आदद राजा क े स्वामित्व िें िी। • ववनय वपिक: िगि राजा बबम्भबसार 80,000 गांवों क े स्वािी िे • उनकी पत्नी कोसलदेवी को अपने भाई प्रसेनजीत (कोसल) से एक गांव दहेज क े रूप िें मिला।
  • 19. िौयण काल • भूमि पर राजा क े स्वामित्व का प्रिाण। • डायोडोरस और स्रैबो : राजा भारत िें सभी संपवत्त क े िामलक हैं, व्यम्ततगत स्वामित्व िौजूद नहीं • यदद भूमि का स्वािी लंबे सिय तक अनुपम्स्ित रहता है तो वह भूमि क े अपने स्वामित्व को खो सकता है। • अिणशास्त्र : वन राज्य की संपवत्त क े रूप िें िान्य • कौदिल्य: वन, वन उत्पाद राजस्व क े स्रोतों िें शामिल। • वन से आधिणक उपज एकत्र करने क े मलए क ु प्याध्यक्ष अधिकारी की ननयुम्तत की गई िी। • अिणशास्त्र: राज्य को जंगल क े क ु छ दहस्सों को साफ करना चादहए और उन्हें कृ वि योग्य भूमि िें ववकमसत करना चादहए। • कौदिल्य: राज्य को बंजर भूमि िें खेती क े मलए ववशेि उपाय अपनाना चादहए।
  • 20. भूमि प्रकार • राजा क े ववशेिाधिकार क े तहत सात प्रकार की भूमि। a) परती भूमि, b) नवसंस्िावपत जनपद, c) खजानेयुतत भूमि , d) खानों और खनन उत्पादों, e) चरागाह भूमि f) मसंचाई पररयोम्जत भूमि और g) वन भूमि।
  • 21. िौयोत्तर काल • िनुस्िृनत: राजा सभी का स्वािी है। • िनुस्िृनत: राजा सवोच्च अधिकारी है, इसमलए, उसे भूमि का स्वािी िाना जाना चादहए। • िनुस्िृनत: राजा द्वारा भूमि और लोगों पर ननयंत्रण रखने क े मलए चतुर अिीक्षकों की ननयुम्तत करनी चादहए। • अमभलेखखय प्रिाण प्रिि शताब्दी ईसा पूवण: सातवाहनों द्वारा एक गांव की भूमि अनुदान • इस तरह क े दान करों से िुतत िे।
  • 22. गुप्त काल • बृहस्पनत स्िृती : राजा सभी का स्वािी है। • बृहस्पनत स्िृती : यदद क्षबत्रय, वैचय, शूद्र पुरुि पत्नी या भाई क े बबना िर जाते हैं, तो उनकी संपवत्त राजा द्वारा ली जानी चादहए, तयोंक्रक राजा सभी का स्वािी है। • फदहयान: राजा क े पास राज्य की पूरी भूमि है • कात्यायन: यदद िामलक भूमि करों का भुगतान क्रकए बबना राज्य छोड़ देता है, तो राजा को उसकी भूमि क े बबिी या जब्त करने का अधिकार है। • स्वामित्व क े बबना भूमि (संपवत्त) अंततः राज्य / राजा को जाती है। • ग्राििाहत्तर और व्यवहरीन: भूमि की बबिी और धगरवी रखने या पट्िे क े मलए ननयुतत अधिकारी • नारदस्िृनत: राजा का ननखात-ननधि पर एकाधिकार है और यह राज्य क े राजस्व क े िहत्वपूणण 'स्रोतों िें से एक है।
  • 23. प्रारंमभक िध्ययुगीन काल • राजा राज्य की सभी संपवत्त का िामलक है। • भट्ि-स्वािीन: राजा जल और भूमि का िामलक है. • िानसोल्लास: राजा राज्य की सभी संपवत्त का अधिकारी है • ि ु त्य-कल्पतरू: राजा भूमि का स्वािी । • राजतरंधगणी: राजा सभी कृ वि भूमि का िामलक है • भू दान संबंधित मशलालेख : राजा को कृ वि भूमि पर ववशेि अधिकार • िेिानतिी: राजा ननखात-ननधि का सही िामलक है
  • 25. सािुदानयक स्वामित्व इस मसद्िांत का सििणन करने वाले ववद्वान 1. P.V. Kane 2. R. G. Basak 3. R. C. Majumdar
  • 26. वैददक एवं उत्तर-वैददक काल िीिांसा सूत्र: भूमि दान अपने सािूदहक स्वामित्व क े कारण प्रनतबंधित है। ववद्वान: चारागाह की भूमि, तालाब, िागण और वन भूमि पूरे गांव क े कब्जे िें िी। िहाभारत: उत्तर क ु रु जनजानत िें सािूदहक स्वामित्व की प्रिा है।
  • 27. छठी शताब्दी ईसा पूवण • दीघननकाय: उत्तर क ु रु की जनजानत ने सािुदानयक स्वामित्व की प्रिा का पालन क्रकया। जानवरों, फसलों और यहां तक क्रक िदहलाओं को भी सांप्रदानयक संपवत्त क े रूप िें िाना जाता िा. • जातक: गांवों की आस-पास की भूमि म्जसिें देहाती क्षेत्र, बंजर भूमि, जंगल शामिल हैं, पूरे ग्रािीणों द्वारा उपयोग क्रकए गए िे। • मसंहकाभि जातक: सभी ग्रािीण जौ क े खेतों की सुरक्षा कर रहे िे। • नतंदक जातक : एक फलदार पेड़ को सांप्रदानयक संपवत्त क े रूप िें िाना • मलच्छवव, शातय, िल्ल, कोमलय, आयुिजीवी : सांप्रदानयक स्वामित्व की प्रिा
  • 28. िौयण काल •भूमि क े सािुदानयक स्वामित्व की स्पटि जानकारी नही। •अिणशास्त्र: सिुदाय क े स्वामित्व का स्पटि उल्लेख नहीं करता है (ए.एन. बोस) •हालांक्रक क ु छ संदभण भूमि क े सािुदानयक स्वामित्व क े बारे िें ववचार देता है। •कौदिल्य: गांवों से 800 अंगुल की दूरी पर म्स्ित भूमि ग्रािीणों क े स्वामित्व िें िी. •ग्रीक इनतहासकार नीआरकस / स्रबो : उत्तर-पम्चचिी भारत (पंजाब) क े राज्य सािुदानयक कृ वि कर रहे िे।
  • 29. गुप्त काल • ववटणु: चारागाह भूमि = गांव की संपवत्त • याज्ञवल्क: गांवों की आसपास की भूमि का उपयोग सािूदहक संपवत्त क े रूप िें क्रकया जाता िा। • जैमिननसुत्र : यहां तक क्रक प्रभावी राजा भी पूरी पृथ्वी का दान नहीं दे सकता है, म्जसका वह शासक हो सकता है, तयोंक्रक पृथ्वी सभी क े मलए सािान्य है।
  • 30. उपसंहार • वववाददत प्रचन • राजा राज्य का स्वािी, लेक्रकन भू-स्वािी नही ? • राजा राज्य क े प्रिुख क े रूप िें भू-स्वािी ? • राजा राज्य क े स्वािी िा जो एक रक्षक क े रूप िें कायण करता िा • संभवतः वह क े वल राज्य भूमि (सीता) का िामलक िा • शेि भूमि एक राजा क े रूप िें उसक े पास है, लेक्रकन िूल अधिकार िामलक द्वारा ननदहत हैं। • क्रकसान अपने कृ वि खेतों क े स्वािी • व्यम्ततगत भू-स्वामित्व क े सवाणधिक स्पटि उल्लेख • गणतंत्र (संघ/गणराज्य) राज्यों िें सािुदानयक स्वामित्व का प्रचलन िा .