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डी. एल. एड. (2017-19)- प्रथम सेमेस्टर
प्राप्तकताा प्रस्तुतकताा
श्री मती ककरन जोशी रवि कु मार
भारत में भाषाई
विविधता और संघषा
LANGUAGE CONFLICT IN
INDIA
पररचय-
बहुत ही रोचक है अपना भारत
देश , भारत के नक्शे को
ध्यान से देखिए तो अनेक
भाषाए विभभन्न हहस्सो मे
बोली बरती जाने िाली दृष्य
का अिलोकन आप कर सकते
हैं । भारत मे पााँच भाषा
पररिार की भाषा िती या बोली
जाती हैं। दुननया के ककसी भी
देश मे ऐसा नही है जहााँ इतनी
भाषा पररिार हो।
भारो. – 73%, द्रविड़-25%
आस्रीक- 1.2%,
चीनी नतब्बती- 0.7%
अण्डमानीय – 0.1%
भारत मे भाषा पररिार
भाषा परिवाि
1.भारोपीय भाषा पररिार
2.द्रविड़ भाषा पररिार
3.इन्डो- आस्ट्स्रक भाषा
पररिार
4.चीनी नतब्बती भाषा पररिार
बोलने वाले िाज्य का नाम
संस्कृ त,हहन्दी, उददा, मराठी, नेपाली, बांग्ला, गुजराती, कश्मीर, डोगरी, पं
जाबी, उडड़या, असभमया, मैथथली,भोजपुरी,
मारिाड़ी, गढ़िाली, कोंकणी ।( उत्तर प्रदेश, महाराष्र, बंगाल, गुजरात
, कश्मीर , पंजाब ,उड़ीसा , विहार, राजस्थान आहद।
कन्नड , मलयालम , तेलगु, ब्राहुई, तुलु ।(के रल, आन्रप्रदेश,तभमलनाडु,
तेलांगना, कनााटक)
मुण्डीरी, संथली, िडड़या , सािरा ।(झारिण्ड, छत्तीसगड़,
उड़ीसा, पस्ट्श्चम बंगाल)
नगा, भमजो, म्हार, मखणपुरी, तांगिुल, िासी, दफ़ला, तथा आओ
(अरूणाचल प्रदेश, आसाम , नागालैण्ड, मेघालय, मखणपुर , मेघालय ,
त्रिपुरा)
अंडमानी, ग्रेड अंडमानी, ओंगे, जारिा।(अण्डमान ननकोबार)
भाषाई विविधता
भारत दुननया के उन अनदठे देशों में से एक है जहां
भाषाओं में विविधता की विरासत है। भारत के संविधान
ने 22 आथधकाररक भाषाओं को मान्यता दी है।
बहुभाषािाद भारत में जीिन का मागा है क्योंकक देश के
विभभन्न भागों में लोग अपने जन्म से ही एक से अथधक
भाषा बोलते हैं और अपने जीिनकाल के दौरान
अनतररक्त भाषाओं को सीिते हैं।
हालाकक आथधकाररक तौर पर यहां 122 भाषाएं हैं,
भारत के लोगों के भाषाई सिेक्षण में 780 भाषाओं की
पहचान की गई है, स्ट्जनमें से 50 वपछले पांच दशकों में
विलुप्त हो चुकी हैं।
संविधान द्िारा मान्यता प्राप्त भाषाएं-
संविधान के द्िारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं में
असभमया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हहन्दी,
कश्मीरी, कन्नड़, कोंकणी, मैथथली, मलयालम, मखणपुरी,
मराठी, नेपाली, उडड़या, पंजाबी, संस्कृ त, संथाली, भसंधी,
तभमल, तेलगु और उददा को संविधान की आठिीं अनुसदची
में शाभमल ककया गया है।
भारत का बहुभावषक पररदृश्य
• भारतीय समाज स्िभाित:
बहुभाषी है। पदरे भारत में
घरेलद सामास्ट्जक और
सािाजननक जीिन की
विभभन्नता छवियों में
बहुभाषी प्रकृ नत का आसानी
से अहसास होता है। स्ट्जस
देश में पााँच भाषा पररिरों की
भीषाएाँ बरती जाती हों , िहां
बहुभावषक स्ट्स्थनतयों की
मौजददगी ननतान्त स्िाभाविक
है।
भारत का बहुभावषक पररदृश्य
इस मुद्दे को थोड़ी गहरायी से समझने का प्रयास करे। यह
सिाल उठना लास्ट्जमी है कक क्या भारत महज इसीभलए
बहुभाषी देश है कक भारतीय संविधान ने हहन्दी, अंग्रेजी
समेत आठिीं अनुसदची में उल्लीखित भाषाओं को िैधाननक
दजाा हदया है ? दरअसल ‘बहुभाषीक पररदृश्य’ से जुड़े
अनेक दृश्य हैं। उदाहरण के भलए स्ट्जस भाषा की अपनी कोई
भलवप न हो या स्ट्जसकी कोई बहुत लंबी – चौड़ी विरासत न
हो ति भी उस भाषा का भारत के बहुभावषक पररदृश्य बड़ा
योगदान आंका जा सकता है।
1971 की जनगणना ररपोटा के मुताविक भारत में के िल 20-
22 भाषाएाँ ही नही बस्ट्ल्क 1632 भाषे हैँ। ( 1971 की
जनगणना के बाद के िल ऑठिीं अनुसदची में उस्ट्ल्लखित
भाषाओं की जनगणना ररपोटा दजा की जाने लगी।)
बहुभाषीकता का भशक्षाशास्िीय उपयोग
हमारी भाषाई विविधता न तो कोई समस्या है और न ही
वपछड़ेपन की ननशानी। यह भाषाई समृद्ध का प्रमाण है
स्ट्जसका भशक्षा शास्िीय उपयोग सम्भि है भारतीय भाषा
विविधता को और अथधक गहराई से समझने के भलए एक
उदाहरण देखिए कक एक ही भाि की अभभव्यस्ट्क्त अनेक
भाषाओं और बोभलयों मे हो सकती है- जैसे –
मुझे रसगुल्ला अच्छा लगता है। - हहन्दी
मने रसगुल्लो हाउ लागे। - राजस्थानी
हमरा रसगुल्ला नीमन लागेला – भोजपदरी
हुाँ रसगुल्ला पसंद करू छद – गुजराती
ननगे रसगुल्ला बहाल्ला इस्ता - कन्नड़
उपसंहार(CONCLUSION)
विश्ि के तेजी से प्रगनत कर रहे सभी विकासशील देश ऐसा,
अंग्रेजी अपनाये त्रबना , ननज भाषाओं के माध्यम से कर रहे हैं, भारत मे
स्ट्स्थनत उल्टी है – यहााँ अंग्रेजी की जकड़ बढ़ रही है और भारतीय भाषायें
लुप्त होती जा रही है। इसका प्रमुि कारण है हमारी भाषाओं का आपसी
िैमनस्य इसके ननराकरण के भलए , अच्छा है, यहद सभी भारतीय भाषायें
एक भलवप अपनाये जो ितामान मे विभभन्न भलवपयों का भमला जुला रुप
हो। परन्तु सबसे महत्िपदमा कदम होगा दक्षक्षम की चार भाषाओं को उत्तर
भारत में मान्यता , साथ ही हहन्दी के पाठ्यक्रम में ददसरी उत्तर भारतीय
भाषाओं की श्रेष्ठ रचनायें जोड़ी जायें ताकक छाि इन भाषाओं की
ननकटता से पररथचत हें। िे भाषायें भी ऐसी नीनत अपनायें।
भारत को अपने व्यापक वपछड़ेपन से यहद कभी उबरना
है, विभभन्न िगों की घोर असमानता यहद कम करनी है तो जरूरी होगा
कक हम एक आम आदमी को उसी की भाषा में भशक्षा और शासन दे ---
जैसा कक हर देश मे होता है।
सन्दभीत बेिसाईट
 http://www.abhivyakti-
hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bhasha_samasya.htm
 https://hi.wikibooks.org
 http://rishi1200.blogspot.in/2017/02/blog-post_22.html
 https://educationmirror.org
http://gadyakosh.org
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  • 1. डी. एल. एड. (2017-19)- प्रथम सेमेस्टर प्राप्तकताा प्रस्तुतकताा श्री मती ककरन जोशी रवि कु मार
  • 2. भारत में भाषाई विविधता और संघषा LANGUAGE CONFLICT IN INDIA
  • 3. पररचय- बहुत ही रोचक है अपना भारत देश , भारत के नक्शे को ध्यान से देखिए तो अनेक भाषाए विभभन्न हहस्सो मे बोली बरती जाने िाली दृष्य का अिलोकन आप कर सकते हैं । भारत मे पााँच भाषा पररिार की भाषा िती या बोली जाती हैं। दुननया के ककसी भी देश मे ऐसा नही है जहााँ इतनी भाषा पररिार हो। भारो. – 73%, द्रविड़-25% आस्रीक- 1.2%, चीनी नतब्बती- 0.7% अण्डमानीय – 0.1%
  • 4. भारत मे भाषा पररिार भाषा परिवाि 1.भारोपीय भाषा पररिार 2.द्रविड़ भाषा पररिार 3.इन्डो- आस्ट्स्रक भाषा पररिार 4.चीनी नतब्बती भाषा पररिार बोलने वाले िाज्य का नाम संस्कृ त,हहन्दी, उददा, मराठी, नेपाली, बांग्ला, गुजराती, कश्मीर, डोगरी, पं जाबी, उडड़या, असभमया, मैथथली,भोजपुरी, मारिाड़ी, गढ़िाली, कोंकणी ।( उत्तर प्रदेश, महाराष्र, बंगाल, गुजरात , कश्मीर , पंजाब ,उड़ीसा , विहार, राजस्थान आहद। कन्नड , मलयालम , तेलगु, ब्राहुई, तुलु ।(के रल, आन्रप्रदेश,तभमलनाडु, तेलांगना, कनााटक) मुण्डीरी, संथली, िडड़या , सािरा ।(झारिण्ड, छत्तीसगड़, उड़ीसा, पस्ट्श्चम बंगाल) नगा, भमजो, म्हार, मखणपुरी, तांगिुल, िासी, दफ़ला, तथा आओ (अरूणाचल प्रदेश, आसाम , नागालैण्ड, मेघालय, मखणपुर , मेघालय , त्रिपुरा) अंडमानी, ग्रेड अंडमानी, ओंगे, जारिा।(अण्डमान ननकोबार)
  • 5. भाषाई विविधता भारत दुननया के उन अनदठे देशों में से एक है जहां भाषाओं में विविधता की विरासत है। भारत के संविधान ने 22 आथधकाररक भाषाओं को मान्यता दी है। बहुभाषािाद भारत में जीिन का मागा है क्योंकक देश के विभभन्न भागों में लोग अपने जन्म से ही एक से अथधक भाषा बोलते हैं और अपने जीिनकाल के दौरान अनतररक्त भाषाओं को सीिते हैं। हालाकक आथधकाररक तौर पर यहां 122 भाषाएं हैं, भारत के लोगों के भाषाई सिेक्षण में 780 भाषाओं की पहचान की गई है, स्ट्जनमें से 50 वपछले पांच दशकों में विलुप्त हो चुकी हैं।
  • 6. संविधान द्िारा मान्यता प्राप्त भाषाएं- संविधान के द्िारा मान्यता प्राप्त बाईस भाषाओं में असभमया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हहन्दी, कश्मीरी, कन्नड़, कोंकणी, मैथथली, मलयालम, मखणपुरी, मराठी, नेपाली, उडड़या, पंजाबी, संस्कृ त, संथाली, भसंधी, तभमल, तेलगु और उददा को संविधान की आठिीं अनुसदची में शाभमल ककया गया है।
  • 7. भारत का बहुभावषक पररदृश्य • भारतीय समाज स्िभाित: बहुभाषी है। पदरे भारत में घरेलद सामास्ट्जक और सािाजननक जीिन की विभभन्नता छवियों में बहुभाषी प्रकृ नत का आसानी से अहसास होता है। स्ट्जस देश में पााँच भाषा पररिरों की भीषाएाँ बरती जाती हों , िहां बहुभावषक स्ट्स्थनतयों की मौजददगी ननतान्त स्िाभाविक है।
  • 8. भारत का बहुभावषक पररदृश्य इस मुद्दे को थोड़ी गहरायी से समझने का प्रयास करे। यह सिाल उठना लास्ट्जमी है कक क्या भारत महज इसीभलए बहुभाषी देश है कक भारतीय संविधान ने हहन्दी, अंग्रेजी समेत आठिीं अनुसदची में उल्लीखित भाषाओं को िैधाननक दजाा हदया है ? दरअसल ‘बहुभाषीक पररदृश्य’ से जुड़े अनेक दृश्य हैं। उदाहरण के भलए स्ट्जस भाषा की अपनी कोई भलवप न हो या स्ट्जसकी कोई बहुत लंबी – चौड़ी विरासत न हो ति भी उस भाषा का भारत के बहुभावषक पररदृश्य बड़ा योगदान आंका जा सकता है। 1971 की जनगणना ररपोटा के मुताविक भारत में के िल 20- 22 भाषाएाँ ही नही बस्ट्ल्क 1632 भाषे हैँ। ( 1971 की जनगणना के बाद के िल ऑठिीं अनुसदची में उस्ट्ल्लखित भाषाओं की जनगणना ररपोटा दजा की जाने लगी।)
  • 9. बहुभाषीकता का भशक्षाशास्िीय उपयोग हमारी भाषाई विविधता न तो कोई समस्या है और न ही वपछड़ेपन की ननशानी। यह भाषाई समृद्ध का प्रमाण है स्ट्जसका भशक्षा शास्िीय उपयोग सम्भि है भारतीय भाषा विविधता को और अथधक गहराई से समझने के भलए एक उदाहरण देखिए कक एक ही भाि की अभभव्यस्ट्क्त अनेक भाषाओं और बोभलयों मे हो सकती है- जैसे – मुझे रसगुल्ला अच्छा लगता है। - हहन्दी मने रसगुल्लो हाउ लागे। - राजस्थानी हमरा रसगुल्ला नीमन लागेला – भोजपदरी हुाँ रसगुल्ला पसंद करू छद – गुजराती ननगे रसगुल्ला बहाल्ला इस्ता - कन्नड़
  • 10. उपसंहार(CONCLUSION) विश्ि के तेजी से प्रगनत कर रहे सभी विकासशील देश ऐसा, अंग्रेजी अपनाये त्रबना , ननज भाषाओं के माध्यम से कर रहे हैं, भारत मे स्ट्स्थनत उल्टी है – यहााँ अंग्रेजी की जकड़ बढ़ रही है और भारतीय भाषायें लुप्त होती जा रही है। इसका प्रमुि कारण है हमारी भाषाओं का आपसी िैमनस्य इसके ननराकरण के भलए , अच्छा है, यहद सभी भारतीय भाषायें एक भलवप अपनाये जो ितामान मे विभभन्न भलवपयों का भमला जुला रुप हो। परन्तु सबसे महत्िपदमा कदम होगा दक्षक्षम की चार भाषाओं को उत्तर भारत में मान्यता , साथ ही हहन्दी के पाठ्यक्रम में ददसरी उत्तर भारतीय भाषाओं की श्रेष्ठ रचनायें जोड़ी जायें ताकक छाि इन भाषाओं की ननकटता से पररथचत हें। िे भाषायें भी ऐसी नीनत अपनायें। भारत को अपने व्यापक वपछड़ेपन से यहद कभी उबरना है, विभभन्न िगों की घोर असमानता यहद कम करनी है तो जरूरी होगा कक हम एक आम आदमी को उसी की भाषा में भशक्षा और शासन दे --- जैसा कक हर देश मे होता है।
  • 11. सन्दभीत बेिसाईट  http://www.abhivyakti- hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bhasha_samasya.htm  https://hi.wikibooks.org  http://rishi1200.blogspot.in/2017/02/blog-post_22.html  https://educationmirror.org http://gadyakosh.org

Notas del editor