3. INTRODUCTION
• मदार (वानस्पततक नाम:Calotropis
gigantea) एक औषधीय पादप है।
• इसको मंदार', आक, 'अकक ' और अकौआ भी
कहते हैं।
• इसका फू ल सफे द छोटा छत्तादार होता है। फल
आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है।
• Calotripis gigantea or madar is a
medicinal plant.
• It is also called mander, aakh, ark or
akoi
• Flower white in colour and mango like
fruit shape which have fiber like cooten
4. प्रकार
• रक्तार्क : इसर्े पुष्प बाहर से श्वेत रंग र्े छोटे र्टोरीनुमा
और भीतर लाल और बैंगनी रंग र्ी चित्ती वाले होते हैं।
इसमें दूध र्म होता है।
• श्वेतार्क : इसर्ा फू ल लाल आर् से र्ु छ बडा, हल्र्ी पीली
आभा ललये श्वेत र्रबीर पुष्प सदृश होता है। इसर्ी र्े शर
भी बबल्र्ु ल सफे द होती है। इसे 'मंदार' भी र्हते हैं। यह
प्रायः मन्ददरों में लगाया जाता है। इसमें दूध अचधर् होता
है।
• राजार्क : इसमें एर् ही टहनी होती है, न्जस पर र्े वल िार
पत्ते लगते है, इसर्े फू ल िांदी र्े रंग जैसे होते हैं, यह
बहुत दुलकभ जातत है।
5. उपयोग1. आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक कर
अकक तनचोड कर कान में डालने से आधा
शिर ददक िाता रहता है। बहरापन दूर होता
है। दााँतों और कान की पीडा िााँत हो िाती
है।
2. आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में िला कर
अण्डकोि की सूिन पर बााँधने से सूिन दूर
हो िाती है।
3. कडुवे (mustard oil) तेल में पत्तों को िला
कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा
हो िाता है।
4. पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान
खाने से दमा रोग दूर हो िाता है। तथा हरा
पत्ता पीस कर लेप करने से सूिन पचक
िाती है।
6. • पत्तों के धूाँआ से बवासीर िााँत होती है। आक
का दूध बवासीर के मस्सों पर लगाने से
मस्से िाते रहते हैं।
• आक के पत्तों को गरम करके बााँधने से चोट
अच्छी हो िाती है। सूिन दूर हो िाती है।
• आक के फू ल को िीरा, काली शमचक के साथ
बालक को देने से बालक की खााँसी दूर हो
िाती है। (दूध पीते बालक को माता अपनी
दूध में दे)
• मदार के फल की रूई रूधधर बहने के स्थान
पर रखने से रूधधर बहना बन्द हो िाता है।
• आक का दूध पााँव के अाँगूठे पर लगाने से
दुखती हुई आाँख अच्छी हो िाती है।
• Uses continued
7. प्रयोग
• आक के दूध का फाहा लगाने से मुाँह
का लक्वा में आराम हो िाता है।
• आक की छाल को पीस कर घी में
भूने फफर चोट पर बााँधे तो चोट की
सूिन दूर हो िाती है।
• आक िड को दूध में औटा कर घी
तनकाले वह घी खाने से नहरूआाँ (
फोड़l) रोग िाता रहता है।
• आक की िड छाया में सुखा कर
पीस लेवे और उसमें गुड शमलाकर
खाने से िीत ज्वर िााँत हो िाता है
8. • आक की िड 2 सेर लेकर उसको चार सेर
पानी में पकावे िब आधा पानी रह िाय तब
िड तनकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूाँ छोडे
िब िल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूाँओं
का आटा पपसकर पावभर आटा की बाटी या
रोटी बनाकर उसमें गुड और घी शमलाकर
प्रततददन (21 ददन कम से कम) खाने से
पुरानी गदठया दूर हो िाती हैं l
• आक की िड के चूर्क में काली शमचक पपस कर
शमलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोशलयााँ बनाये
इन गोशलयों को खाने से खााँसी दूर होती है।
• आक की िड के छाल के चूर्क में अदरक का
अकक और काली शमचक पीसकर शमलावे और 2-
2 रत्ती भर की गोशलयााँ बनावे इन गोशलयों से
हैिा रोग दूर होता है।
9. • आक की िड के लेप से बबगडा हुआ फोडा अच्छा
हो िाता है।
• आक की िड की चूर्क 1 मािा तक ठण्डे पानी के
साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता।
• आक की िड का चूर्क दही के साथ खाने से स्री के
प्रदर रोग दूर होता है।
• आक की िड का चूर्क 1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला,
दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से
कफ की खााँसी अच्छी हो िाती है।
• आक की िड का चूर्क का धूाँआ पीकर ऊपर से बाद
में दूध गुड पीने से श्वास बहुत िल्दी अच्छा हो
िाता है।
10. • आक का दातून करने से दााँतों के
रोग दूर होते हैं।
• आक की िड का चूर्क 1 मािा तक
खाने से िरीर का िोथ (सूिन)
अच्छा हो िाता है।
• आक की िड 5 तोला, असगंध 5
तोला, बीिबंध 5 तोला, सबका चूर्क
कर गुलाब के िल में खरल कर
सुखावे इस प्रकार 3 ददन गुलाब के
अकक में घोटे बाद में इसका 1 मािा
चूर्क िहद के साथ चाट कर ऊपर से
दूध पीवे तो प्रमेह रोग िल्दी अच्छा
हो िाता है।
• आक का दूध लगाने से ऊाँ गशलयों
का सडना दूर होता है।