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चन्द्र शेखर
की जीवनी
अगस्त 21, 1995 (उम्र 84)
शशकागो, संयुक्त राज्य
अगस्त 21, 1995 (उम्र 84)
शशकागो, संयुक्त राज्य
सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर
जीवनी डॉ॰ सुब्रह्मण्याम चंरशेखर का जन्द्म 19 अक्टूबर 1910
को लाहौर (अबपाककस्तान में) में हुआ था। उनकी प्रारंशिक शशक्षा-
दीक्षा मरास में हुई। 18 वर्ष की आयु में चंरशेखर का पहला शोध पत्र
`इंशडयन जनषल आफ कफशजक्स' में प्रकाशशत हुआ।
 मरास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाशध लेने तक उनके कई शोध पत्र
प्रकाशशत हो चुके थे। उनमें से एक `प्रोसीडडंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी' में
प्रकाशशत हुआ था, जो इतनी कम उम्र वाले व्यशक्त के शलए गौरव की बात।
 24 वर्ष की अल्पायु में सन् 1934 में ही उन्द्होंने तारे के शगरने और लुप्त होने
की अपनी वैज्ञाशनक शजज्ञासा सुलझा ली थी। कुछ ही समय बाद यानी 11
जनवरी 1935 को लंदन की रॉयल एस्रोनॉशमकल सोसाइटी की एक बैठक में
उन्द्होंने अपना मौशलक शोध पत्र िी प्रस्तुत कर कदया था कक सफे द बौने तारे
यानी व्हाइट ड्वाफष तारे एक शनशित रव्यमान यानी डेकफनेट मास प्राप्त करने
के बाद अपने िार में और वृशि नहीं कर सकते। अंतत वे ब्लैक होल बन जाते
हैं। उन्द्होंने बताया कक शजन तारों का रव्यमान आज सूयष से 1.4 गुना होगा, वे
अंतत शसकुड़ कर बहुत िारी हो जाएंगे।
• ऑक्सफोडष में उनके गुरु सर आथषर एडडंगटन ने उनके इस शोध को प्रथम दृशि में
स्वीकार नहीं ककया और उनकी शखल्ली उड़ाई। पर वे हार मानने वाले नहीं थे। वे
पुन शोध साधना में जुट गए और आशखरकार, इस कदशा में शवश्व िर में ककए जा रहे
शोधों के फलस्वरूप उनकी खोज के ठीक पचास साल बाद 1983 में उनके शसिांत
को मान्द्यता शमली। पररणामत िौशतकी के क्षेत्र में वर्ष 1983 का नोबेल पुरस्कार
उन्द्हें तथा डॉ॰ शवशलयम फाऊलर को संयुक्त रूप से प्रदान ककया गया।
• 27 वर्ष की आयु में ही चंरशेखर की खगोल िौशतकीशवद के रूप में अच्छी धाक
जम चुकी थी। उनकी खोजों से न्द्यूरॉन तारे और ब्लैक होल के अशस्तत्व की धारणा
कायम हुई शजसे समकालीन खगोल शवज्ञान की रीढ़ प्रस्थापना माना जाता है।
• खगोल िौशतकी के क्षेत्र में डॉ॰ चंरशेखर, चंरशेखर सीमा यानी चंरशेखर शलशमट
के शलए बहुत प्रशसि हैं। चंरशेखर ने पूणषत गशणतीय गणनाओं और समीकरणों के
आधार पर `चंरशेखर सीमा' का शववेचन ककया था और सिी खगोल वैज्ञाशनकों ने
पाया कक सिी श्वेत वामन तारों का रव्यमान चंरशेखर द्वारा शनधाषररत सीमा में ही
सीशमत रहता है।
• सन् 1935 के आरंि में ही उन्द्होंने ब्लैक होल के बनने पर िी अपने मत प्रकट
ककए थे, लेककन कुछ खगोल वैज्ञाशनक उनके मत स्वीकारने को तैयार नहीं थे।
• अध्ययन के शलये िारत छोड़ने के बाद वे बाहर के ही होकर रह गए और
लगनपूवषक अपने अनुसंधान कायष में जुट गए। चंरशेखर ने खगोल शवज्ञान के क्षेत्र
में तारों के वायुमंडल को समझने में िी महत्वपूणष योगदान कदया और यह िी
बताया कक एक आकाश गंगा में तारों में पदाथष और गशत का शवतरण कैसे होता
है। रोटेटटंग प्लूइड मास तथा आकाश के नीलेपन पर ककया गया उनका शोध
कायष िी प्रशसि है।
• डॉ॰ चंरा शवद्यार्थषयों के प्रशत िी समर्पषत थे। 1957 में उनके
दो शवद्यार्थषयों त्सुंग दाओ ली तथा चेन डनंग येंग को िौशतकी के
नोबेल पुरस्कार से सम्माशनत ककया गया।
• अपने अंशतम साक्षात्कार में उन्द्होंने कहा था, यद्यशप मैं नाशस्तक
डहंदू हं पर तार्कषक दृशि से जब देखता हं, तो यह पाता हं कक
मानव की सबसे बड़ी और अद्िुत खोज ईश्वर है।
•अनेक पुरस्कारों और पदकों से सम्माशनत डॉ॰ चंरा का जीवन
उपलशब्धयों से िरपूर रहा। वे लगिग 20 वर्ष तक
एस्रोकफशजकल जनषल के संपादक िी रहे। डॉ॰ चंरा नोबेल
पुरस्कार प्राप्त प्रथम िारतीय तथा एशशयाई वैज्ञाशनक सुप्रशसि
• सन् 1969 में जब उन्द्हें िारत सरकार की ओर से पद्म शविूर्ण से सम्माशनत
ककया गया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंकदरा गांधी ने उन्द्हें पुरस्कार देते
हुए कहा था, यह बड़े दुख की बात है कक हम चंरशेखर को अपने देश में नहीं रख
सके। पर मैं आज िी नहीं कह सकती कक यकद वे िारत में रहते तो इतना बड़ा
काम कर पाते।
• डॉ॰ चंरा सेवाशनवृत्त होने के बाद िी जीवन-पयंत अपने अनुसंधान कायष में जुटे
रहे। बीसवीं सदी के शवश्व-शवख्यात वैज्ञाशनक तथा महान खगोल वैज्ञाशनक डॉ॰
सुब्रह्मण्यम् चंरशेखर का 22 अगस्त 1995 को 84 वर्ष की आयु में कदल का दौरा
पड़ने से शशकागो में शनधन हो गया। इस घटना से खगोल जगत ने एक युगांतकारी
खगोल वैज्ञाशनक खो कदया। यूं तो डॉ॰ चंरशेखर ने काफी लंबा तथा पयाषप्त जीवन
शजया पर उनकी मृत्यु से िारत को अवश्य धक्का लगा है क्योंकक आज जब हमारे
देश में `जायंट मीटर वेव रेशडयो टेशलस्कोप की स्थापना हो चुकी है, तब इस क्षेत्र
में नवीनतम खोजें करने वाला वह वैज्ञाशनक चल बसा शजसका उद्देश्य था- िारत
में िी अमेररका जैसी संस्था `सेटी' (पृथ्वीतर नक्षत्र लोक में बौशिक जीवों की
खोज) का गठन। आज जब डॉ॰ चंरा हमारे बीच नहीं हैं, उनकी शवलक्षण
उपलशब्धयों की धरोहर हमारे पास है जो िावी पीकढ़यों के खगोल वैज्ञाशनकों के
शलए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।
सुब्रह्मण्यन चंरशेखर
जन्द्म
19 अक्टूबर 1910
लाहौर, पंजाब, शब्ररटश िारत
मृत्यू
अगस्त 21, 1995 (उम्र 84)
शशकागो, संयुक्त राज्य
राष्ट्रीयता
शब्ररटश िारत, (१९१०-१९४७)
िारत (१९४७-१९५३)
संयुक्त राज्य (१९५३-१९९५)
क्षेत्र खगोलशास्त्र
संस्थाएँ शशकागो शवश्वशवद्यालय
कै शम्ब्रज शवश्वशवद्यालय
मातृसंस्था ररशनटी काशलज, कै शम्ब्रज
प्रेशसडेंसी काशलज, मरास
डॉक्टरेट सलाहकार राल्फ एच फाउलर
डॉक्टरेट छात्र डोनाल्ड एड्वाडष ऑस्टरब्रॉक, यावुज़ नुतको
प्रशसि कायष चंरशेखर सीमा
पुरस्कार नोबल पुरस्कार, िौशतकी (१९८३)
कॉप्ले पदक (१९८४)
नेशनल मेडल ऑफ साइंस (१९६७)
पद्म शविूर्ण (१९६८)
मेड बइ –
आशीर् राज

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Chandra shekhar

  • 2. अगस्त 21, 1995 (उम्र 84) शशकागो, संयुक्त राज्य अगस्त 21, 1995 (उम्र 84) शशकागो, संयुक्त राज्य सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर
  • 3. जीवनी डॉ॰ सुब्रह्मण्याम चंरशेखर का जन्द्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर (अबपाककस्तान में) में हुआ था। उनकी प्रारंशिक शशक्षा- दीक्षा मरास में हुई। 18 वर्ष की आयु में चंरशेखर का पहला शोध पत्र `इंशडयन जनषल आफ कफशजक्स' में प्रकाशशत हुआ।  मरास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाशध लेने तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशशत हो चुके थे। उनमें से एक `प्रोसीडडंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी' में प्रकाशशत हुआ था, जो इतनी कम उम्र वाले व्यशक्त के शलए गौरव की बात।  24 वर्ष की अल्पायु में सन् 1934 में ही उन्द्होंने तारे के शगरने और लुप्त होने की अपनी वैज्ञाशनक शजज्ञासा सुलझा ली थी। कुछ ही समय बाद यानी 11 जनवरी 1935 को लंदन की रॉयल एस्रोनॉशमकल सोसाइटी की एक बैठक में उन्द्होंने अपना मौशलक शोध पत्र िी प्रस्तुत कर कदया था कक सफे द बौने तारे यानी व्हाइट ड्वाफष तारे एक शनशित रव्यमान यानी डेकफनेट मास प्राप्त करने के बाद अपने िार में और वृशि नहीं कर सकते। अंतत वे ब्लैक होल बन जाते हैं। उन्द्होंने बताया कक शजन तारों का रव्यमान आज सूयष से 1.4 गुना होगा, वे अंतत शसकुड़ कर बहुत िारी हो जाएंगे।
  • 4. • ऑक्सफोडष में उनके गुरु सर आथषर एडडंगटन ने उनके इस शोध को प्रथम दृशि में स्वीकार नहीं ककया और उनकी शखल्ली उड़ाई। पर वे हार मानने वाले नहीं थे। वे पुन शोध साधना में जुट गए और आशखरकार, इस कदशा में शवश्व िर में ककए जा रहे शोधों के फलस्वरूप उनकी खोज के ठीक पचास साल बाद 1983 में उनके शसिांत को मान्द्यता शमली। पररणामत िौशतकी के क्षेत्र में वर्ष 1983 का नोबेल पुरस्कार उन्द्हें तथा डॉ॰ शवशलयम फाऊलर को संयुक्त रूप से प्रदान ककया गया। • 27 वर्ष की आयु में ही चंरशेखर की खगोल िौशतकीशवद के रूप में अच्छी धाक जम चुकी थी। उनकी खोजों से न्द्यूरॉन तारे और ब्लैक होल के अशस्तत्व की धारणा कायम हुई शजसे समकालीन खगोल शवज्ञान की रीढ़ प्रस्थापना माना जाता है। • खगोल िौशतकी के क्षेत्र में डॉ॰ चंरशेखर, चंरशेखर सीमा यानी चंरशेखर शलशमट के शलए बहुत प्रशसि हैं। चंरशेखर ने पूणषत गशणतीय गणनाओं और समीकरणों के आधार पर `चंरशेखर सीमा' का शववेचन ककया था और सिी खगोल वैज्ञाशनकों ने पाया कक सिी श्वेत वामन तारों का रव्यमान चंरशेखर द्वारा शनधाषररत सीमा में ही सीशमत रहता है। • सन् 1935 के आरंि में ही उन्द्होंने ब्लैक होल के बनने पर िी अपने मत प्रकट ककए थे, लेककन कुछ खगोल वैज्ञाशनक उनके मत स्वीकारने को तैयार नहीं थे।
  • 5. • अध्ययन के शलये िारत छोड़ने के बाद वे बाहर के ही होकर रह गए और लगनपूवषक अपने अनुसंधान कायष में जुट गए। चंरशेखर ने खगोल शवज्ञान के क्षेत्र में तारों के वायुमंडल को समझने में िी महत्वपूणष योगदान कदया और यह िी बताया कक एक आकाश गंगा में तारों में पदाथष और गशत का शवतरण कैसे होता है। रोटेटटंग प्लूइड मास तथा आकाश के नीलेपन पर ककया गया उनका शोध कायष िी प्रशसि है। • डॉ॰ चंरा शवद्यार्थषयों के प्रशत िी समर्पषत थे। 1957 में उनके दो शवद्यार्थषयों त्सुंग दाओ ली तथा चेन डनंग येंग को िौशतकी के नोबेल पुरस्कार से सम्माशनत ककया गया। • अपने अंशतम साक्षात्कार में उन्द्होंने कहा था, यद्यशप मैं नाशस्तक डहंदू हं पर तार्कषक दृशि से जब देखता हं, तो यह पाता हं कक मानव की सबसे बड़ी और अद्िुत खोज ईश्वर है। •अनेक पुरस्कारों और पदकों से सम्माशनत डॉ॰ चंरा का जीवन उपलशब्धयों से िरपूर रहा। वे लगिग 20 वर्ष तक एस्रोकफशजकल जनषल के संपादक िी रहे। डॉ॰ चंरा नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रथम िारतीय तथा एशशयाई वैज्ञाशनक सुप्रशसि
  • 6. • सन् 1969 में जब उन्द्हें िारत सरकार की ओर से पद्म शविूर्ण से सम्माशनत ककया गया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंकदरा गांधी ने उन्द्हें पुरस्कार देते हुए कहा था, यह बड़े दुख की बात है कक हम चंरशेखर को अपने देश में नहीं रख सके। पर मैं आज िी नहीं कह सकती कक यकद वे िारत में रहते तो इतना बड़ा काम कर पाते। • डॉ॰ चंरा सेवाशनवृत्त होने के बाद िी जीवन-पयंत अपने अनुसंधान कायष में जुटे रहे। बीसवीं सदी के शवश्व-शवख्यात वैज्ञाशनक तथा महान खगोल वैज्ञाशनक डॉ॰ सुब्रह्मण्यम् चंरशेखर का 22 अगस्त 1995 को 84 वर्ष की आयु में कदल का दौरा पड़ने से शशकागो में शनधन हो गया। इस घटना से खगोल जगत ने एक युगांतकारी खगोल वैज्ञाशनक खो कदया। यूं तो डॉ॰ चंरशेखर ने काफी लंबा तथा पयाषप्त जीवन शजया पर उनकी मृत्यु से िारत को अवश्य धक्का लगा है क्योंकक आज जब हमारे देश में `जायंट मीटर वेव रेशडयो टेशलस्कोप की स्थापना हो चुकी है, तब इस क्षेत्र में नवीनतम खोजें करने वाला वह वैज्ञाशनक चल बसा शजसका उद्देश्य था- िारत में िी अमेररका जैसी संस्था `सेटी' (पृथ्वीतर नक्षत्र लोक में बौशिक जीवों की खोज) का गठन। आज जब डॉ॰ चंरा हमारे बीच नहीं हैं, उनकी शवलक्षण उपलशब्धयों की धरोहर हमारे पास है जो िावी पीकढ़यों के खगोल वैज्ञाशनकों के शलए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।
  • 7. सुब्रह्मण्यन चंरशेखर जन्द्म 19 अक्टूबर 1910 लाहौर, पंजाब, शब्ररटश िारत मृत्यू अगस्त 21, 1995 (उम्र 84) शशकागो, संयुक्त राज्य राष्ट्रीयता शब्ररटश िारत, (१९१०-१९४७) िारत (१९४७-१९५३) संयुक्त राज्य (१९५३-१९९५) क्षेत्र खगोलशास्त्र संस्थाएँ शशकागो शवश्वशवद्यालय कै शम्ब्रज शवश्वशवद्यालय मातृसंस्था ररशनटी काशलज, कै शम्ब्रज प्रेशसडेंसी काशलज, मरास डॉक्टरेट सलाहकार राल्फ एच फाउलर डॉक्टरेट छात्र डोनाल्ड एड्वाडष ऑस्टरब्रॉक, यावुज़ नुतको प्रशसि कायष चंरशेखर सीमा पुरस्कार नोबल पुरस्कार, िौशतकी (१९८३) कॉप्ले पदक (१९८४) नेशनल मेडल ऑफ साइंस (१९६७) पद्म शविूर्ण (१९६८)