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पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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पोवार(३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े
सामाजजक सांस्क
ृ जिक
रीजि-ररवाज
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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जििु जन्म
ग्रामीण अंचल में पोवार पररवारों में गांव की पेशावर दायी एवम् वयोवृद्ध
महिलाओं की हिगरािी में प्रसुहि घर में िी कराई जािी थी। जिां सुहवधायें
उपलब्ध िै, प्रसुहिगृि में जचकी कराई जािी िैं। हशशु जन्म क
े िुरंि बाद
प्रसुहि कक्ष, हशशु व मािा की साफ सफाई व खेि से टेंभरूि(िेंदु) की लकडी
काट कर लाकर फाटक क
े सामिे आडी रखी जािी िैं िाहक भूि-हपशाच आहद
का गृि प्रवेश अवरुद्ध िो जाय।
आगामी पांच हदिोंिक पररवार जि अशुद्ध (सुिुक) स्थथहि में रििे िै, अिः
आगन्तुक इस कालावहध में गृि प्रवेश कर अशुद्ध ि िोिे का संक
े ि एवम् यि
एक प्रकार से जीव-जंिु संक्रमण प्रहिकार की भी व्यवथथा माि सकिे िै।
हकसी व्यस्ि को जंगल भेज कर काकई पेड की साल या बारीक लकहडया
मंगाई जािी िै। उन्हें क
ु टकर चूणण बिाया जािा िै। अन्य व्यस्ि द्वारा क
ु म्हार
क
े घर से िई कोरी मटकी (िांडी) बुलाई जािी िै। उसमें िैयार हकया हुआ
काकई चुणण व प्रमाण से जल डाला जािा िै। उपर मटकी को पारो (झकणी) से
झांक कर लाल कपडे से बांधा जािा िै। उसे क
ुं क
ू , िल्दी, चावल क
े पांच टीक
े
लगाकर पांव पडिे िै और िेज आगी वाले चुल्हे पर चढा देिे िै। क
ु छ समय
की उबाली से काढा बि जािा िै। अच्छा काढा बििे पर उसमें महुये की राब
(मीठी जेली) छोडिे िै और आगी को चुल्हे क
े बािर कर देिे िै। काढा ठन्डा
िोिे पर उसे साफ बिणि या बाटली मेंजमा कर देिे िै। क
ु छ महिलायें हिल्ली
क
ु टकर गुड हमलाकर हिल्ली क
े लड्ड
ू बिािी िै और प्रसुहि (बारहििबाई)
महिला को दोिो समय पांच हदिों िक काढा और हिल्ली क
े गरम लड्ड
ू हदये
जािे िै िाहक शरीर में िाकि आयें। सुिक काल में पररवार जिों को पूजा-पाठ
वहजणि रििी िै।
पोवार समाज में छटी का दस्तुर
िवजाि हशशु का िार झडिे क
े बाद, खासकर छटवे हदि फाटकपर रखी
टेंभरूि की लकडी जला दी जािी िै बाद में सम्पूणण घर की साफ-सफाई,
सडा-सारवण िथा हबस्तरों क
े चादर, खोर आहद बदले जािे िै। मािा और बच्चें
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
3
को ििला धुलाकर, कमरे की साफ- सफाई की जािी िै। चौक
े की साफ-
सफाई, सडा सारवि कर चुल्हों को पोिा जािा िै। पुरािे हमट्टी क
े पकािे क
े
बिणि िोड कर िये बिणिों में भोजि बििा िै। देवघर में चवरी की पूजा व दीप
प्रज्वलि हकया जािा िै। िुलसी वृंदावि को जल चढाया जािा िै। बालक को
मािा की गोदी में हबठाया जािा िै। अन्य महिलायें दीया प्रज्वहलि कर आरिी
लेकर आिी िै।
दीया को कपडे से झांककर रखा जािा िैं िाहक जावर पुरी िरि उिारिे िक
हशशु की दीये पर िजर ि पडे। िाई हशशु क
े हसर क
े बाल हिकालिा िै (जावर)
और उि बालों को बुआ या बििे अपिे पल्लु में जमा करिी िै। बाल
झेलिेवाली महिलाओं को िये वस्त्र व दाि-दहक्षणा से पुरस्क
ृ ि हकया जािा िै।
दादी/बुआ या ििंदे हशशु यहद बालक िै िो करदोरा (कमरदोरा) बांधिी िै या
यहद बाहलका िै िो उसक
े पांव क
ु क
ू से रेखांहकि करिी िै। इस हदि बुआ,
बििे, ससुराल क
े ररस्तेदार व अपिे क
ु लीि लोगों को आमंहिि हकया जािा िै।
वे एक एक कर हशशु को टीका लगाकर उपिार भेंट करिे िैं। भोजि हदया
जािा िै। हकन्तु मामा क
े हलये यि समारोि वहजणि िोिा िैं। इस हदि क
े बाद
पररवार जि बािरी व्यावसाहयक कायण करिा प्रारम्भ करिे िैं।
बारसा समारोह
बालक क
े सवा महििे की आयु का िोिे पर बारसा समारोि आयोहजि हकया
जािा िै झुला सजा-धजा कर िरम आसि पर बालक को सुलाया जािा िै। एक
िाथ से झुले को हिलाया जािा िै और दुसरे से मीठी गेहं की हमसर (घुगरी)
छोडी जािी िै, हजन्हे बच्चें बडे चााँव से चुि-चुि कर खािे िैं। बाद में बालक का
िामकरण हवहध सम्पन्न िोिा िै। बच्चे को मेिमाि िये-िये कपडे और स्खलौिों
का उपिार देिे िै। बच्चें की मााँ िये वस्त्र पररधाि कर सामिे क
े आंगि में
आकर खडी िोिी िैं।
घर की बुजुगण महिला उस क
े हसर पर जल से भरा लोटा रखिी िै। महिलायें
उसक
े माथे पर टीका लगाकर पांव पडिी िै। उसे पाि क
े बीडे स्खलाये जािे िै
और क
ं धे पर िहसयााँ रखिी िै। बाद में मािा लोटे क
े पािी से आंगि हसंचिी िै,
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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िहसयााँ से हमट्टी खोदिी िै। यि रस्म जचकी क
े बाद वहजणि गृि कायण जैसे पािी
भरिा, खेिों में काम करिा आहद आज से प्रारम्भ करिे की ओर संक
े ि करिी
िैं। बाद में पलाश क
े १२ पत्ते पािी से साफ धोकर उि में िाजा पकाया रवािा-
पकवाि - खीर िैवेद्य क
े रूप में परोसा जािा िै।
एक परोसा हमट्टी खोदे हुये थथल पर रखा जािा िै जो संक
े ि करिा िै हक मािा
अब हियहमि रूप से खािा बिा सकिी िै बाकी 99 परोसे दाई अपिे पल्लों में
झााँककर ले जािी िै। इस अवसर पर दायी को िई साडी - चोली पििाई जािी
िै। ग्राहमणों को भोजि कराया जािा िै।
जििु खीर चटाई कार्यक्रम
प्रथम दीपावली क
े अवसर पर लक्ष्मीपूजि क
े हदि लक्ष्मीदेवी पूजि समास्ि
पश्चाि मािा द्वारा िवहशशु को अपिी गोद में पकडकर चावल की खीर देवघर
में या आंगि में बृंदावि क
े सामिे चटािे की प्रथा िै। बालक बाहलका को िये
वस्त्र पििाये जािे िैं।
दाढी जिकालिे की प्रथा
लडक
े की दाढी फ
ु टिे िी युवा या हकशोर अवथथा में पहुंचा समझा जािा िै।
प्रथम दाढी हिकालिे िेिु समारोि आयोजि की पोवारों में प्रथा चली आ रिी
िै। बििे, बुआ, भाहभयााँ आहद महिलायें लडक
े को िल्दी लगािी िै। उसे िये
वस्त्रों का अिेर हकया जािा िै। युवक चौक पर आसि ग्रिि करिा िै और िाई
उसकी दाढी उिारिा िै। बुआ या बििे बालों को अपिे पल्लु में झेलिी िै।
बाद में िाई युवक को ििलािा िै। पिििे िेिु िया पोशाक उसे बुआ या बिि
भेंट करिी िैं। हफर युवक पाट क
े पांव पड कर आसि ग्रिि करिा िै। उसे
माथे पर हिलक-क
ु मक
ू म लगाकर, पांव पडकर बुआ या बिि उसक
े ओंजुर में
पाि, िाररयल और सुपारी रखिी िैं। महिलाएं पैसे देकर पांव पडिी िैं । इसक
े
बाद चिे की दाल, गेहं की घुघरी और शक्कर हमलाकरउसकी प्रसाद सभी
उपस्थथि जिसमुदाय को हविररि की जािी िै । इस अवसर पर बाल झेलिे
वाली महिलाओं को वस्त्रों का उपिार और मेिमाि, घरजि आहद को भोजि
कराया जािा िै।
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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गुरू दीक्षा
पोवारों में यि परम्परा पीढी-दर-पीढी चली आ रिी िै। इलािाबाद या काशी
से पंहडि आिे पर िवयुवकों को हवहधवि दीक्षा दी जाि िैं। पंहडि ि आिेपर
यि हवहध थथािीय ब्राह्मण, गोसाई, बैरागी या भगि क
े द्वारा सम्पन्न कराई जािी
िै। शुभ हिहथ देखकर यि कायणक्रम हकया जािा िै। घर की साफ सफाई,
सडा-सारवि कर घर में एक थथाि पर चौक डालकर पीढा या पाट रखा जािा
िै| युवक/युविी ििा-धोकर आसि ग्रिि करिे िैं। प्रथम गुरु क
े चरण स्पशण
कर उसक
े हसर पर कोरी धोिी या दुपट्टा रखा जािा िै, उन्हे हिलक लगाकर
पांव पडे जािे िैं। गुरु प्रथम युवक/ युविी पर जल हछडककर पहविीकरण,
जल चेले/चेली क
े िथेली में भरकरपीिे का हिदेश कर आचमि िथा हशखा
(चोहट) को जल से गीला कर कच्ची गांठ बांधिे कििा िै और मंिोपचार करिा
िै। इसे हशखा वंदि कििे िै।
इस समय िीि मंि उच्चाररि हकये जािे िैं -
अ) पहविीकरण - ओम् अपहविः पहविो वा सवाणवथथां गिोऽहप वा।
ब) आचमि - ओम् अमृिोपस्तरणमहस स्वािा ।
स) हशवा वंदि - ओम् हचद्रूहपहण मिामाये हदव्य िेजः समस्ििे। हिष्ठ देहव
हशरवा मध्ये िेजोवृस्द्ध क
ु रुष्व मे।
बाद में गुरु अपिे हशष्य क
े काि में एक मंि फ
ु किा िै -“धीमहि हध” या “ओम्
भूभुणवःस्वः िस्यहविुवणरेण्यं भगोदेवस्य धीमहि हधयो योिः प्रचोदयाि या ओम्
िमो हशवायः या ओम् िमो वासुदेवाय आहद।” अंि में गुरू हशष्यों से कोई भी
एक मिपंसद वस्तू या आदि त्याग करिे का वचि लेिा िै।
****************
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
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जववाह संस्कार
पोवार पररवारों में हववाि संस्कार बडी धूमधाम से मिाये जािे िै। प्राचीि काल
में शाहदयााँ सिाि भर चलिी थी अब दो या एक हदि में िी सम्पन्न की जािी िैं।
पोवारों में दिेज या हुंडा प्रथा ििी िैं। हववाि संस्कार में ब्राह्मण आवश्यक ििीं
िोिा। लगुि "राम िवरदेव- सीिा िवरी सावधाि" क
े साथ पुरािे जमािे में
लगाई जािी थी। अब ५ या ७ मंगलाष्टक बोले जािे िैं। लगुि क
े बाद,
सिपदी(भाँवर) “धीमहिहधः” कि कर सम्पन्न िोिी िै। शादी में क
े वल मंगलसूि
प्रमुख्यिया आवश्यकगििा िोिा िै। अन्य गििे ऐस्च्छक उपिार हुआ करिे
िैं। शादी में वधू का हपिा खाि-पाि क
े बिणि, गाय-भैस, सोिा-चांदी अपिी
इच्छा से स्त्रीधि रूप में देिा िै। हववाि सम्बहधि करीबि २५-३० िेंग दस्तुर
िोिे िै। पोवार महिलाओं में हववाि समारोि का श्रीगणेशाय िोिे िी मेिंदी
लगािा मुख्य आकर्णण िोिा िैं। पोवारों में शादी समारोि की हिहथ हिधाणररि
िोिे क
े पश्चाि ब्याि की रश्में प्रारम्भ िो जािी िै।
काज (क
ु लदेव) पूजा –
पोवार समाज में हववाि पूवण दोिो पक्ष अपिे अपिे क
ु ल देविाओं की पूजा
करिे िै। पररवार क
े ज्येष्ठ सदस्य क
े घर जाकर या अपिे घर क
े देवघर में
क
ु लदेव की पूजा की जािी िै। क
ु लदेविा दुल्हादेव (हशव) िारायण देव (हवष्णू)
िथा सांकलदेव (पंवार आद्य पुरुर्) देवघर में पोिली में रखे रििे िैं, उन्हें
हवहधवि उिारा जािा िै, पूजा की जािी िै एवम्स्स्व क
ु ल जिों को भोजि
कराकर हफर इि देविाओं को पोिली में वापस हवश्राम हदया जािा िै। क
ु छ
लोगों क
े अिुसार इस अवसर पर दू ल्हा देव क
े िैवेद्य िेिु पशु-बली (काला
बकरा) की थी और इस मौक
े पर स्वक
ु लीि लोग घर क
े अंदर भोजि कर
िड्डीयां एवं उवणररि अन्न घर में िी एक गड्ढा बिाकर उसमें डालिे थे । िाथ भी
विीं धोिे थे और अंि में उस गड्डे को हमट्टी भरकर बंद कर हदया जािा था। इसे
'बधई' कििे िै। चूाँहक पोवार समाज को प्राचीि ब्रह्मक्षहिय मािा जािा िै
इसीहलए बली प्रथा को बहुसंक्ष्यक समाज सिी ििीं माििा िै इसीहलए यि प्रथा
अब धीरे- धीरे हवलोहपि चुकी िै। सभी पोवार अठई-सुक
ु डे का िैवेद्य चढािे
िैं।
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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सगाई/पार्लगिी र्ा फलदाि
पिले भावी वधू क
े पैर पडे जािे िै। वर पक्ष क
े लोग अपिे ररस्तेदार सम्बस्िि
हमिों, गांव क
े प्रहिहष्ठि लोगों की बाराि वधु पक्ष क
े घर ले जािे िै। उसे पुरािे
जमािे में 'गुरो की बाराि' कििे िै िथा सगाई को 'गुरी सुवारी को जेवि'
र्ा 'गुड़भात्या' कििे िैं। पोवारी रीहि-ररवाजों क
े अिुसार मेिमािों क
े पांव
धोकर उन्हे चांवल - क
ुं मक
ू म का टीका लगाया जािा िै। पिले क
े जमािे में
गुड-पोिा (भेली-पोिा) बाद में हगला आलु -पोिा-िलवा और आजकल क्षमिा
क
े अिुसार हवहवध व्यंजिों का िास्ता कराया जािा िै। िास्ते क
े बाद पूवण मुवी
हदशा में आटे का चौक डालकर उस पर पाट रखा जािा िै। उस पर कन्या
आसि ग्रिि करिी िै और वर हपिा, दादा या ज्येष्ठ भ्रािा द्वारा कन्या को टीका
लगाकर साडी आहद वस्त्र हदये जािे िै। कन्या पोशाक पररधाि कर आसि
ग्रिि करिी िै। हफर वर पक्ष का बुजुगण या हपिा कन्या क
े िाथों में पाि,
िाररयल, ५ प्रकार क
े फल, गििे, श्रृंगार, कपडे, हमठाई देकर बायें िाथ की
उंगली (अिाहमका) में अंगुठी (मुंदी) पििाई जािी िै। पश्चाि पिले सव्वा रुपया
या पांच रुपये िथा क
ुं क
ू से कन्या को टीका लगाकर चांवल/अक्षिा से पांव
पडिे की प्रथा थी। अब डर ाय-फ्र
ु ट, सुटक
े स और बडी क
ॅ श से पांव पडिे की
प्रथा बि गई िै। सभी बारािी कन्या को टीका, द्रव्यदाि कर पांव पडिे िै। इसे
िी पार्लगिी र्ा फलदाि कििे िै। इस अवसर पर वधू पक्ष का दामाद वर
पक्ष से सभी सामग्री ग्रिि करिा िै।
आंजुर भरिे क
े बाद बििों द्वारा आगदा (ओट-अंजुरी में पाि - पैसा रखकर
पूजा करिा) भरा जािा िै हजस में पिले कलश और बाद में वधू क
े आगदे भरे
जािे िैं। इस में चावल क
े दािे पांच बार कन्या क
े पैर से हसर की ओर से ले
जाकर हसर पर छोडे जािे िै। हफर आगदा वाली बाई पािदाि से एक पाि का
बीडा और रूमाल उठािी िै। िाई द्वारा दुल्हि क
े क
ु मक
ु म से पांव हलखे जािे
िै। बाद में भोजि (रोटी) कायणक्रम संपन्न िोिा िै। इसी िरि 'वर' की भी सगाई
सम्पन्न की जािी िै। पोवारों क
े इस कायणक्रम में मािृपक्ष का बहुि मित्व रििा
िै िथा पुरोहिि या मंि-पूजा पाठ या कोई वैहदक हवहध बंधिकारक ििी िोिी।
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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मंडपाच्छादि एवम् मािृका पूजि
मंडपाच्छादि एवम् मािृका पूजि पोवारों में १२ डेरी क
े हववाि मंडप की प्रथा
प्राचीि काल से चली आ रिी िै। आठ डेररयॉ आठ हदशाओं-का प्रहिहिहधत्व
करिी िै। इिमें अष्ट देविा हिवास करिे िै। अन्य िीि डेररयों पर ब्रह्मा हवष्णू
मिेश का हिवास िोिा िै िथा अंहिम (१२वी) डेरी पर क
ु लदेविा हिवास करिे
िै, हजसे लगूिडेर मािकर पूजा की जािी िै। लगूिडेर मोिई एवं अन्य ग्यारा
सालई की, ४ लटक
े (बस्ल्लयााँ) एवम् २४ िरे बांस िथा मंडप आच्छादि िेिू
जामुि की डगाले (फांहदया) लाई जािी िै। इस मौक
े पर बुआ क
ु म्हाररि की
भूहमका अपिािी िै। वि अपिे पास ढकिों में जीरा और धहिया भरकर धागे
से बांध देिी िै उि पर पारे रखे जािे िै। सम्मुख बैठी हुई महिलाएाँ बुआ से
ढकिे खरीदिी िै। उन्हे डेरी पूजि पूवण डेरी क
े पास रखा जािा िै। डेरी पूजि
िेिू महिलाएाँ दुल्हा / दुल्हि को मंडप ले जािी िै। िया ब्लाऊज या आंगी
(चोली) या कोरा कपडा िागर क
े फार को लपेटा जािा िै। उसे िाथ से स्पशण
कर दुल्हा / दुल्हि िथा पररवारजि एक क
े बाद एक पुरखों का िाम लेकर
स्मरण करिे िै और उन्हें इस मांगहलक कायण में उपस्थथि िोिे आमंहिि करिे
िै। डेररयों को िैवेद्य चढाया जािा िै। िल्दी क
ु मक
ु म का टीका लगाया जािा िै,
व्यंजि चढाये जािे िै, और पांव पडे जािे िै।
मंडप सुिाई
मंडप सुिाई कायणक्रम िेिू मंडप में सडा-सारवि, रंगोली आहद िोिे क
े बाद
दामाद भांजे क
े साथ कच्चे धागे से मंडप पांच से ग्यारि फ
े रे की सूिाई करिे
िै। इस मौक
े पर कोिवाल आमपिों की िोरण मंडप क
े चौफ
े र बांधिा िै। इस
िरि मंडप सुिाई का कायणक्रम सम्पन्न िोिा िै।
खिमािी दस्तुर
खिमािी दस्तुर क
े हलए महिलाएं िजहदक पास की जमीि की हमट्टी (धरिी
माय) खोदिी िै और र्ह खि मािी िई टोकिी में डालकर हसरपर कोरा
कपडा लेकर रखिी िै एवम् घर वापस आिी िै। मंडप में हमट्टी को गीला कर
लगूि डेर क
े आसपास हलपा जािा िै। लकडी क
े छोटे से पाट पर एक बेठ
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
9
बिाई जािी िै। किीं किीं चुल्हा भी साथ में बिािे की प्रथा िै। बाद में इस पाट
को बेठ क
े साथ देवघर ले जाया जािा िै।
िांदड प्रज्वलि
जो हववाहिि पररवारजि उपवास रखिा िै वि अपिे हसर हशरवा से पांव क
े
अंगुठे िक धागे क
े पांच सरे लेिा िै,उसे कपास की कांडी पर लपेटिा िै, हफर
िांदड (हमट्टी का बिणि ) देवघर में लाकर उसे िेल से पूरा भर हदया जािा िै।
धागे की लट डुबो दी जािी िै और एक हसरा बािर रख उसे प्रज्वहलि हकया
जािा िै। इस िांदड क
े दोिों बाजू में साि-साि हमट्टी क
े हदये प्रज्वहलि हकये
जािे िैं। िजहदक िी दामादों या भााँजों क
े द्वारा प्राि बड क
े पत्तों क
े ७ या १४
जोडी द्रोण रखकर उिमें सोजी रखी जािी िै और देवघर मे चौरी (पुरखों) की
पूजा की जािी िै। यि मिाकाली का दीप हववाि समारंभ संपन्न िोिे िक
प्रज्वहलि रखा जािा िै।
माहे दसाई
मािे दसाई िेिू पररवार की एक दम्पहत्त जोड-गाठ बांधकर पाट-बेठ टोकिा में
रखिे िै एवम् पड्डा से झााँक देिे िै। पुरुर् उसे अपिे हसर पर रखकर िथा पत्नी
क
े टली से अखंड जल धारा छोडिे हुये दोिों मंडप की ओर आगे बढिे िै। पाट
- बेठ को लगि डेरी क
े पास प्रथथाहपि हकया जािा िै। इन्हें श्रीगणेश गौरी का
प्रहिरूप मािा गया िै।
काकि बंधाई
काकि बंधाई का दस्तुर मित्वपूणण िोिा िै, दुल्हे / दुल्हि को बीच में हबठाकर
पांच-साि महिलाएं बािर से घेरा बिािी िै एवम् एक दुसरे से अपिे हसर
हटकािी िै उिक
े हसर क
े बािर से धागे क
े पांच घेरे हलए जािे िै। बुआ अपिी
िथेली से धाि पीसकर चांवल हिचोडिी िै और चांवल क
े पांच दािे धहिया
जीरा पांच (खािे क
े ) पािों क
े ऊपर रखिी िै। पािों को चारो िरफ से मोडकर
पांच सरी धागे में िांबे की अंगुठी डालकर उन्हें दो बार घेरा मारकर दो गाठें
बांध देिी िै। इस िरि काकि बिकर िैयार िो जािा िै। बुआ वर/वधू का
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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दाहििा िाथ लेकर मजबूिी से पांच या िौ गाठे लगाकर मिगट पर काकि
बांध देिी िै। काकि बांधिे क
े बाद वर/वधूिे घर क
े बािर जािा या खाट/
पलंग पर बैठिा वहजणि िोिा िै।
जबजोरा (वर/वधू चढावा)
प्रथम वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष क
े घर बाजे गाजे से सगे-सम्बस्ि क
े साथ
बाराि ले जािे िै। लडकी का हपिा या ज्येष्ठ सदस्य सभी बाराहियों क
े पांव
पीिल क
े कटोरे में धोकर अंगोछे से पोंछिा िै। क
ु मक
ु म चांवल से टीका
लगाकर आदरपूवणक राम-रमाई लेिा िै। वधू को क
ु ल िीि चढाव चढाये जािे
िैं।
पहला चढाव - मंडप में चौक पर पीढे पर वधू को हबठाल कर वर का हपिा या
बुजुगण िाथ में पिििे साडी िथा ब्लाऊज सौंपा जािा िै।
दुसरा चढाव - वधू द्वारा िये वस्त्र पररधाि करिे क
े बाद कायणक्रम देवघर में
िोिा िै । इस वि जेवर, आभूर्ण चढाये जािे िैं।
िीसरा चढाव - सामिे की छप्पर पर या मंडप में चार सुमी चारपाई (खहटया)
पर सम्पन्न िोिा िै। खहटया क
े चार पांव पर चार बारािी बैठिे िै और बीच में
वर का बडा भाई बैठिा िै। ऊपर से शालू का छि िािा जािा िै। वर का बडा
भाई दुल्हि को गोद में हबठािा िै और वर क
े हपिा या ज्येष्ठ समक
ु लीि व्यस्ि
द्वारा िीि या अहधक साहडया (शालु, िीरगोिी आहद) ब्लाऊज, संलग्न पोशाक,
स्वणाणभूर्ण, श्रृंगारपेटी, सुटक
े स, पादिाण आहद सामग्री भेट की जािी िै। हजसे
वधू पक्ष का दामाद वधू क
े पीछे खडा रिकर ग्रिि करिा िैं। एक साडी
दीपावली क
े अवसर पर पिििे क
े हलए भी दी जािी िै, इसे चरळ की साड़ी
कििे िै। हफर हबजोरा का माि-पाि का भोजि (हसमंि भोजि) सम्पन्न कराया
जािा िै।
डेरपूंजी का कार्यक्रम: बाद में डेरपूंजी का कार्यक्रम िोिा िै। बारािी मंडप
में आिे िै। महिलाओं द्वारा आरिी मंडप में लाई जािी िै। लगुि डेर को कोरे
कपडे में ९ िल्दी, ९ सुपारी और ९ पैसे, ९ खािे बिाकर अलग अलग ९ थथािों
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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पर रखिे िै। दोिों पक्षों क
े सम्बिी (हबह्याई) पाटों पर आमिे सामिे बैठिे िै।
देवी-देविाओं का, खासकर गणेश िथा गौरी का स्मरण कर अन्य देविाओं क
े
भी िाम पुकारिे िै। प्रत्येक भगवाि क
े िाम क
े बाद एक पाि का बीडा एक
दुसरे को स्खलािे िै। इस श्रृंखला में यहद सभी देविाओं का स्मरण करें िो ३६०
पाि बीडे लग सकिे िै। इसे पाि जजिाई / पाि खखचाई किा जािा िै। इस
वि खुब मजा आिा िै। बाद में कपडे में रखी सामग्री को ९ खािों की दो गांठे
बिािे िै, एक में पांच और दुसरी में चार खािे की गांठे िोिी िै। इि गाठों को
दोिों पक्ष क
े मामाओं को सौंपा जािा िै हजिका काम लग्न घहटका पर आिा िै।
इन्हे लगुि गांठे कििे िै।
डेर पूंजी : पांच बारािी एवं वधू लगुि डेर क
े क
ु मक
ु म, िल्दी, चांवल से पांव
पडिे िै और उसे गड्ढे में डालकर हमट्टी से गड्ढा भरा जािा िै। इसे डेर पूंजी
कििे िै। हफर पांच बारािी जािोसा थथल जािे िै। जािोसा घरमालक को
चांवल, िल्दी, सुपारी आहद देिे िै िाहक वि गणेश (गिोबा) की पूजा करे व
पररसर मंगलमय बिें।
इसी िरि वधू पक्ष क
े लोग वर पक्ष क
े घर जबजोरे की बाराि ले जािे िै। पिले
बाराहियों का पांव धोिा, िास्ता पािी िोिा िै और चढाव की रस्म अदा की
जािी िै। दुल्हे को क
े वल दो चढाव चढाये जािे िै। पिला चढाव मंडप में चौक-
पाट पर हबठा कर टीका लगािे िै और पिििे क
े हलए पोशाक भेट की जािी
िै। दुसरा चढाव घर में िोिा िै हजसमें पगडी, साफा, कोट/शेरवािी, अन्य
कपडे, श्रृंगार सामग्री, पेटी या सुटक
े स में भरकर भेट की जािी िै। साथ में सोिे
की अंगुठी, घडी, चेि आहद चढाई जािी िै। एक जोडी पादिाण, मोजा भी हदया
जािा िै। सभी बारािी दुल्हे को हिलक लगाकर पांव पडिे िै। पांच बारािी व
दुल्हा, सुवाहसिी डेर पूंजी का कायणक्रम करिे िै। बाद में भोजि (जबजोरा
जेवि) का आयोजि हकया जािा िै ।
हल्दी-अहेर - महिलाएं बाजे-गाजे क
े साथ हमट्टी क
े कटोरे में िल्दी का गीला
लेपि लेकर घर से हिकलिी िै। साथ में भांजे, दामाद भी िोिे िै। सवणप्रथम
िल्दी मािामाय / देवी गौरी को चढाई जािी िै। बाद में मारुिी (ििुमाि) एवम्
अन्य देविाओं को िाररयल फोडकर हवहधवि पूजा की जािी िै। िर देविा को
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ृ जिक रीजि-ररवाज
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िया वस्त्र अिेर हकया जािा िै। पाट क
े पांव पडकर दुल्हा / दुल्हि को मंडप
में हबठाया जािा िै, उसे खासकर उत्तरमुखी और हपिृक
ु ल क
े पुरुर् महिलाएं
पूवणमुखी बैठिी िै। पांच महिलाएं दुल्हा/दुल्हि को िल्दी लगािी िै, बाद में
महिला – ररस्तेदार सभी को िल्दी लगािी िै। टीका लगािी िै। िल्दी हिलक
माथेपर लगाकर उपस्थथि वर/वधू पक्ष को अिेर हकया जािा िै। सवणप्रथम
वर/वधू की मामी, बुआ, मौसी, समदि आहद अिेर करिी िै। हफर अन्य
महिलाएं अिेर करिी िै।दुल्हा-दुल्हि को कायणक्रम समास्ि बाद मंडप में
ििलाया जािा िै। अंि में िल्दी अहेर का भोजि हदया जािा िै।
लगुिबाराि / दुल्हासार
पुरािे जमािे में दुल्हा की सवारी क
े हलए खाचर व बैल खुब सजाये जािे थे,
उसे 'गुडुर' किा जािा था। दुल्हे की मााँ दुल्हे को सजा-धजा कर उंगली
पकडकर मंडप ले आिी िै। दुल्हा पाट क
े चांवल से पांव पडकर उस पर खडा
िोिा िै, उसकी मां द्वारा आरिी उिारी जािी िै इसे ‘पछाड़िा' कििे िै। इस
हवहध को आगे बढािे हुये िांदड, रई (दिी घुसरिे की), मुसल, सूपा आहद एक-
एक कर िये वस्त्रों में लपेटकर दुल्हे क
े पैसे से हसर िक दायें - बायें पांच
थथािों पर स्पशण कर हसर क
े उपर से घुमाये जािे िै। इस क
े बाद दुल्हे क
े पांव
पडिे िैं। दुल्हे को चंदोडे की ओळ (छि) क
े िीचे, बीच में िुिारी से उठाकर
चार लोग मंडप से फाटक से बािर हिकालिे िै। बाल हववाि में जीजा या मामा
दुल्हे को क
ं धा या कमर पर हबठालकर बाजे-गाजे क
े साथ हिकलिे थे। इस
वि दुल्हे को मारूिी मंहदर ले जाकर पूजा कराई जािी िै। एक या पांच
िाररयल फोडे जािे िै। दुल्हा चारो हदशाओं में चांवल वर्ाणव कर देविाओं की
प्राथणिा करिा िै और वािि (गुडुर) में बैठिा िै । दुल्हे को मााँ दू ध हपलािी िै
और बिासे या गुड स्खलािी िै। इस वि बुआ, बििे, भाभी, मााँ, चाची, आहद
वािि पर आरिी रखिी िै। टीका लगाकर गुड स्खलािी िै। आरिी में दुल्हे से
ईिाम वसुल करिी िै और बाराि बाजे-गाजे क
े साथ सार की जािी िै। इस
रस्म को दुल्हा सार किा जािा िै । पिले दुल्हे क
े साथ ३,४ महिलाएं
(सुवाहसिी/ करोहलिी) दुल्हा की सिायक क
े रूप में बाराि में भेजी जािी थी
क्योहक दुल्हा बालक अवथथा में हुआ करिा था। आजकल शादी लगािे क
े
उद्देश्य से भारी संख्या में महिलाएं बाराि में सस्म्महलि िोिी िै, दुल्हे की मााँ
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े सामाजजक सांस्क
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बराि में शाहमल ििीं िोिी। बाराि क
े साथ कावड ले जाई जािी िै। कावड में
िमक, चांवल, धोि, धोिी िथा सुम (घास) भर कर वधू पक्ष द्वारा हदये जिवासा
(हवश्रामगृि) ले जाई जािी िै। सुम से रस्सी बुिी जािी िै। कावड से वापसी में
दिेज (आंदि) में हमली भेट वस्तुयें वधू से वर पक्ष क
े घर ले जाई जािी िैं ।
खासकर गुंड, गंज, थाली, कटोरे, लोटा, हगलास ले जािे िै।
बाराि अगवािी : बाराि वधुपक्ष क
े गांव की सीमा पार करिे िी कोिवाल
वधू पक्ष को इसकी सूचिा देिा िै। वधू पक्ष से दामाद लोग बाराहियों से हमलिे
गांव सीमा पर पंहुचिे िै। इसे बाराि झेलिा कििे िै। पािी एवं पाि-सुपारी से
बाराहियों का स्वागि हकया जािा िै। वे बाराि को मारूिी मंहदर या आखर की
ओर बढिे की प्राथणिा करिे िैं । दुल्हा उिारिा : बाराि मारूिी मंहदर पहुंचिे
िी दुल्हि पक्ष की महिलाएं िथा पुरुर् बाजे गाजे क
े साथ आरिी, पािी, शरबि
लेकर घर से बाराि की ओर चल पडिे िैं। समधी (हबह्याई) भेट िोिी िै।
गुलाल, शालु, हिलक से स्वागि िोिा िै। राम-रमाई िोिी िै। इसे समधी भेट
कििे िै। महिलाएं आरिी दुल्हे की गाडी सम्मुख रखिी िै । वर पक्ष से इिाम
पाकर विां से िटिी िै। हफर दुल्हे को िीचे उिारा जािा िै, करोहलि भी
उिरिी िै। उन्हें पािी व शरबि हपलाई जािी िै। दुल्हा मारूिी मंहदर जाकर
पूजा करिा िै। चारो हदशाओं में चांवलअपणण कर देवी-देविा की वंदिा करिा
िै। हफर घोडे, कार पर या पैदल आगे बढिा िै। जब पैदल चलिा िै िो उपर
चंदोडा की छि दुल्हे क
े हसर पर चार लोग पकडे रििे िै और एक बीच में
िुिारी से उसे उठाये रििा िै। बाजा, आहिशबाजी, रोशिाई, िाच-गािे
िर्ोउल्हास की समा बांधिे िै।
मंडप प्रवेि (मंडा मारिा) - घोडे या अन्य वािि से उिरकर वधू- हपिा
हिवास या मंगल भवि सम्मुख दुल्हा िीचे उिारा जािा िै। महिलाएं आरिी
उिारिी िै। इि पुष्प आहद बरसाये जािे िै। दुल्हा प्रवेश द्वार पर खडी
महिलाओं क
े गुंड क
े पािी में िाथ डुबोकर उसे झलकािा िै और क
ु छ हचल्लर
राहश छोडिा िै। उस पर चार बरािी छि हलये िोिे िै और जैसे िी दुल्हा मंडप
समीप पहुचिा िै वि मंडप क
े शगूि बास को िाथ से स्पशण करिा िै। मंडप
पर से जीजा (दुल्हि का) दुल्हे क
े उपर की छि पर रंग क
े क
ु छ हछटें छोडिा
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े सामाजजक सांस्क
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िै। हफर दुल्हा सुवाहसि िथा मेिमािों क
े साथ जिवासा वापस जािा िै। इसे
मांडो मारिा कििे िै।
जिवासा - िवरदेव िथा मेिमािों क
े अल्प हवश्राम क
े हलए जिवासे की
व्यवथथा िोिी िै। आजकल बाराि सीधे जिवासा ले जािे िै और बाद में लगीि
मंडप में । यिााँ सभी का ििािा, धोिा, िास्ता-पािी िोिा िै। वधू पक्ष से क
ु छ
महिलाए उपिार क
े रूप में खीर ले आिी िै उसे 'बिवि' कििे िै। िेल-गौडा,
िोि-गोडा की बारािे शुरू िोिी िै, िमक, चांवल आहद सभी जिवासे से भेजा
जािा िै। हफर लगुि िथ, ब्लाऊज, पोि, बाहसंग आहद सामग्री भेजी जािी िै।
दुल्हि पक्ष की ओर से भी पांच बारािी जिवासा आकर पााँव धोिे िै, टीका
लगािे िै और चढावा स्वीकार करिे िैं। लगुि क
े हलए प्रथथाि - दुल्हि पक्ष क
े
वस्त्र, आभूर्णों से सज- धज बाजे िाच-गािे, आहिशबाजी क
े साथ प्रथथाि
करिा िै । पोवारों में लगुि अक्सर गोधुली बेला पर िोिी िै।
पाजिग्रहि जवजध - जो दो लगुि गााँठे वधू क
े हबजोरा से दोिों पक्ष क
े मामा
लािे िै उसे एक दुसरे को फ
े र हदया जािा िै। पुरािे जमािे में दुल्हा-दुल्हि को
दो बााँस क
े टोकिों में देवघर में दुल्हादेव एवम् चौरी दीपक क
े सामिे बैठाया
जािा था। बीच में एक अंिरपाट (कोरी धोिी) जो कावड क
े साथ आिी िै उसे
दोिों पक्ष क
े मामा पकडिे थे। सूरज डुबिे िी घर क
े उपर आडे पर चढा हुआ
आदमी (भगि) थाली बजािा था। देवघर क
े अंदर ‘हधम हि हधः’ किकर पुष्प
बरसाये जािे थे। दुल्हा दुल्हि क
े शालू को गांठ बांधकर हफर मंडप लाया जािा
था और उपस्थथि समुदाय उिपर अक्षिा वर्ाणव कर हववाि लगािे थे। हिंदू
हववाि संस्कार में क
ु लदेवी-देविाओं को साक्षी मािकर चांवल, ज्वारी को िल्दी
लेपि कर हववाि अक्षिा गणेश गौरी हववाि का अहभन्न अंग िै। वैहदक हववाि
प्रणाहल में हबिा अक्षिा शादी का कोई मित्व ििी िोिा । आजकल मंडप मंच
पर दुल्हा-दुल्हि बैठिे या खडे रििे िै। दोिों. पक्ष क
े मामा अंिर पाट पकडिे
िै। पंहडि या कोई भी उपस्थथि या क
ॅ सेट ५-७ श्लोक ध्विी गूंजिी िै, “राम
सीिा लगि लागे सावधाि' क
े जयघोर् क
े साथ अक्षिा का वर्ाणव करिे िै।
आजकल दुल्हा दुल्हि एक दुसरे को पुष्पमाला पििाकर लगि बंधि (पररणय)
की रस्म हिभाई जािी िै। बाजे बजिे िै, फटाक
े फ
ु टिे िै, आहिशबाजी िोिी िै
और वर पक्ष क
े लोग मंडप में िाचिे िै।
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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पोवारों में गोधूली बेला पर लगि का बहुि महत्त्व है। सूयाणस्त क
े इदणहगदण
लगि लगिे से दुल्हा-दुल्हि का दाम्पत्य जीवि अटू ट व मंगलमय मािा गया िै।
यि योग क
ुं डली दोर् का हवच्छे द कर वर-वधू दोिों क
े हलए ज्योहिष्यमाला
अिुसार अत्यंि शुभदायी मािा गया िै। लगुि क
े बाद िवरदेव-िवरी को दुल्हि
की मााँ या दादी/चाची/ मािाल्पी (िाई) पाि बीडा स्खलािी िै। दोिों की शालु से
गांठ बांधकर मााँ दुल्हा दुल्हि को लेकर देवघर जािे िै। विां दुल्हा-दुल्हि को
पिेहलयां बुझाकर एक दुसरे का िाम बिािा िोिा िै।| िंसी-मजाक क
े बीच
दुल्हि- दुल्हा एक दुसरे को लड्ड
ू स्खलािे िै और िास्ता करिे िैं।
भााँवर (सप्तपदी) - पुरािी परम्परा अिुसार पांच बारािी पारडे (पल्लो) में धोि
रख कर, चंडोला की ओल क
े पीछे से दुल्हा-दुल्हि क
े हसर पर से साि फ
े रे
लगािे थे और 'हधम हिः हधः'(सहक्षि गायिी मंि) का जयघोर् करिे थे।
आजकल पंहडिजी से सिपदी हवहध कराई जािी िै। अहग्न क
ुं ड में यज्ञ कर
साि फ
े रे लेिे िै। दुल्हा दुल्हि एक दुसरे से वचि लेिे िै, पंहडि इस पुरी हवहध
में मंिोपचार करिे रििे िैं।
आंदि (दहेज) - पुरािे जमािे में दुल्हा-दुल्हि को गुड
ू र की जुआडी लाकर
मंडप में उस पर हबठाला जािा था। सुम की रस्सी धागे क
े साथ लेकर साि फ
े रे
दुल्हा-दुल्हि क
े गदणि क
े बािर से हलये जािे थे। पांच सरी सुम रस्सी व धागे को
बीच में कहिक क
े लड्ड
ू से हचपकाया जािा था और इसे गोि-गुाँथिा कििे िैं।
यि सूम क
े रस्सी व धागा की गोि दुल्हि का भाई दुल्हा-दुल्हि क
े गले में
डालिा िै। वधू पक्ष जि भेट वस्तुएं रसोई क
े बिणि, उपकरण, राहश, आहद
िवदम्पहत्त को भेट करिे िैं। दिेज क
े अंि में दुल्हि का भाई गोि छु डािा िै।
उसे गाय, भैस, अिाज आहद देिे का वचि देिा िोिा िै।
पाव पवारिा - दुल्हि क
े मााँ-बाप दुल्हा-दुल्हि दोिों की सेलू से गांठ बांधकर
उिक
े पांव दू ध व दुभारी से धोिे िै। इस दस्तुर को पांव परवारिा किा जािा िै
। यि गौरी गणेश का अहभर्ेक और चरण पूजि की रस्म िै जो वैहदक काल से
चली आ रिी िै ।
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
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बाल खेलिा - दुल्ह- दुल्हि को पाट पर हबठाकर बाल (सेमी क
े दािे) स्खलाये
जािे िै । इसे सारी - फासा या िार-जीि खेल भी किा जािा िै, इस खेल में
पााँच बार दुल्हा अपिे मुठ में बाल क
े दािे छ
ू पािा िै और ऐसा दुल्हि भी करिी
िै। एक दुसरे को बिािा िोिा िै हक मुंठ में दािे सम संख्या में िै या हवर्म
संख्या। इसे 'उिा का पुरा' यािे हवसम या सम ऐसा किकर बिाया जािा िै।
यि खेल क
े वल दुल्हा-दुल्हि की जोडी िी ििी िो वर िथा वधू पक्ष की दो- दो
अन्य सम वयस्क जोहडयां भी खेलिी िै। बाद में िाँसी मजाक से दुल्हा-दुल्हि
हमट्टी की करई क
े पािी से ििािे िैं।
क
ु सुम्बा : बाराि प्रथथाि िोिे पूवण पािी भरिेवाली महिलाएं , किार िाई आहद
आरिी लेकर आिे िै। गुलाल, रंग, इि गुलाबजल से बाराहियों का स्वागि व
पािदाि पेश कर इिाम मांगिे िै, जब दुल्हा मंडप मारिा िै िब दुल्हि क
े
जीजा रंग हछडकिे िै उन्हे भी इिाम िवाजा जािा िै।
दुल्हा-दुल्हि बाराि जबदाई
इसे पोवारी में 'सपटिी' कििे िै। दुल्हा-दुल्हि हबदाई क
े हलए देवघर में िैयार
िोिे पर िाई दोिों क
े पांवों को लाल रंग लगािा िैं। दुल्हे का जीजा या भांजा
फिोली क
े फ
ु ल को रंग में डुबाकर चेिरे की सजावट करिा िै । हफर दुल्हा-
दुल्हि मंडप पधारिे िै। सभी दुल्हि पक्ष क
े मेिमाि अक्षिा व राहश से दुल्हा-
दुल्हि क
े पांव पडिे िै। इसक
े बाद िांदड को गंगार क
े पािी में रख कर
दुल्हा-दुल्हि प्रदहक्षणा लेिे है और उसे बुझा जदर्ा जािा है। बाराि क
े साथ
िमक व चांवल जो वर पक्ष से कावड से आिा िै उसे सवाई गुिा बढाकर
दुल्हे क
े घर वापस भेजा जािा िै। कन्यादाि दुल्हि क
े हपिा, चाचा या भाई
उसी िरि दुल्हे का हपिा, चाचा या भाई आमिे सामिे हबछायि पर (दरीपर)
बैठिे िैं। वर पक्ष की गोद में वधु िथा वधू पक्ष की गोद में वर बैठिा िै। दोिों
समधी एक दुसरे को हमठाई या गुड स्खलािे िैं। हफर वर की गोद (कोरा) में वर
एवं वधू पक्ष की गोद में वधू बैठिी िै। इसे कन्यादाि र्ा लडकी स ंपिे की
रस्म किा जािा िै। िवदम्पहत्त का स्वागि बाराि मारूिी मंहदर समीप आकर
रुकिी िै, वर क
े घर से महिला, पुरुर् आरिी लेकर अगवािी करिे आिे िै।
आरिी गुड
ू र या वािि सम्मुख रखी जािी िै। इिाम हमलिे क
े बाद पिले दुल्हि
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
17
हफर सवाहसिी, दुल्हा, सवाहसिी िीचे उिारे जािे िै। उन्हे पािी, शरबि
हपलाकर उिका स्वागि हकया जािा िै। ििुमाि की पूजा कर दुल्हा-दुल्हि
आगे, बारािी हपछे चलिे िै और बाजा-गाजे, िाच-गािे क
े साथ घर पहुंचिे िै।
फाटक पर पािी क
े गुंड लेकर दो महिलाएं खडी रििी िै। दुल्हा-दुल्हि पाच
बार क
ु ल्ला कर पैसे गुंड में डालिे िैं। हफर मंडप दुल्हा-दुल्हि को पाट पर
खडा कर उिक
े पांव धुलायें जािे िै। दुल्हि को दुल्हे की मााँ या दादी आहद
अंगुठी या कोई गििा भेट करिी िै या राहश में देिी िैं। दुल्हि थाली में
क
ुं मक
ू म क
े लाल रंग में पांव डुबािी िै और देवघर दोिो प्रथथाि करिे िैं |
देवघर जाकर चौरी (पुरखों) की पूजा करिे िै और कावड में वापस आये चांवल
अक्षिा क
े रूप में अहपणि करिे िैं ।
राखड़ी बड़ी का दस्तुर
मंडप में दामाद लोग हबछायि का इन्तजाम करिे िैं। उस पर क
े वल वर पक्ष
क
े स्वक
ु ल (क
ु टुम्ब) की महिलाएं पंस्ि से दुल्हा-दुल्हि क
े दोिो ओर बैठिी िै।
दामाद सभी महिलाएं क
े ओंजल में दुल्हि द्वारा मायक
े से लाई हुई उडद दाल
की बिाई हुई बडी दी जािी िै। उन्हे वापस लेिे वि बदले में मूल्य राहश की
मांग की जािी िै। इच्छािुसार पैसे पाकर दामाद बडी वापस लेिे िै। संकली
(चांदी या फ
ु लों का िार या धागों की एक गााँठ) दुल्हे क
े गले में पििाई जािी
िैं।
ढेंड़ो : मंडप में चारपाई (चार सुमी खहटया) डालकर चंदोलो की ओल हबछाकर
उस पर दुल्हा-दुल्हि को खडा हकया जािा िै। सभी उिक
े पांव पडिे िै।
सवणप्रथम दुल्हा दुल्हि दोिो पंगि में बैठे लोगों क
े पाव पडिे िै। दुल्हि अपिे
मायक
े से लाई बडी की सााँग बिािी िै और परोसिी िै और हफर भोजि शुरू
िोिा िै। यि पौराहणक पद्धहि का स्वागि समारोि' िी िैं।
समदुरा की बाराि : दुल्हि पक्ष से बाराि वर पक्ष क
े घर लायी जािी िै। इस
में महिलाएं भी आिी िैं। यि बाराि दुल्हि को वापस लेिे आिी िै। स्वागि,
िास्ता, भोजि पश्चाि दुल्हि क
े साथ बाराि वापस िोिी िै। चौमास, गौिा आहद
आजकल हबदाई पूवण सम्पन्न िोिे िैं ।
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
18
दाह संस्कार
पोवारों में मृि देि पलंग/खहटया पर ििी रखिे। व्यस्ि क
े मृत्यु पश्चाि उसे
मांडी पर लेकर उसक
े मुंि में गंगाजल डाला जािा िै और जमीि पर हबछौिा
पर सुलाया जािा िै। रामायण पाठ की पुरािी परम्परा पवारों में पायी जािी िैं ।
मृि व्यस्ि को ििला-धुला कर िई पोशाक पििाकर, वंदि कर प्रेियािा
हिकाली जािी िैं। प्रेि को गोबरी, लकडी, घी, शक्कर व अलसी िेल से अग्नी दी
जािी िै।
अस्थथयां (फ
ू ल) जमा की जािी िै, दाि संस्कार (मुखाहग्न) करिेवाले पुि का िाई
मुंडि करिा िै और उसक
े बालों को जल में राख क
े साथ बिा हदया जािा िै।
घाट पर पोिा-गुड का िास्ता करिे की प्राचीि प्रथा िैं। अस्थथयां घर लाकर
पीपल / आम पेड पर पोटली में बांधकर रखिे िैं या वृंदावि िहजक गड्डा
खोदकर एक छोटे हमट्टीक
े ढकिे में रख ऊपर से हमट्टी से भर देिे िैं। दस वे
हदि अस्थथयां बािर हिकाल कर पूजा व पांव पडाई िोिी िै (दशहक्रया) और
हपन्डदाि िेिु िीथणथथल ले जाया जािा िै।
िेरावे हदि गंगापूजि कर मृत्यु भोज (िेरवी रोटी) हदया जािा िै। क
ु छ क्षेिों में
िीसरे हदि िी यि कायणक्रम हिपटा हदया जािा िैं। अहधकांश पोवारों का
हपन्डदाि िेिु रामटेक और मंडला िीथणथथल प्रमुख िै। पुरािे जमािे में पोवारों
में पिले हदि प्रेिाहग्न देिे क
े बाद मैली (अशुद्ध) िथा िेरावी ि करिे हुये िीसरे
हदि िी शुस्द्धकरि हवहध कर चोरवी (शुद्ध) रोटी सम्पन्न करािे की प्रथा थी।
श्राद्ध
पोवार लोग हपिृपक्ष (क
ुं वार) माि क
े पखवाडा या हपिृमोक्ष अमावस्या पर
मृिक की हिहथ अिुसार श्राद्ध मिािे िैं। लडका (पररवार मुस्खया) क
ु शघास की
दोरी की माला (जिेऊ) गले में एवम् दोिों िाथों की अंगुहलयों में अंगुहठयााँ धारि
कर क
ु श घास धुले पािी से दामाद, भांजेव अन्य अहिहथयों क
े पांव धोकर,
उिक
े माथे पर चंदि और चांवल से टीका लगािा िै। घर में पांच पहियां
हबछाई जािी िै, सभी प्रकार का थोडा थोडा भोजि परोसा जािा िै हजसे
श्राद्धकिाण घर की छि पर फ
ें क देिा िै। उसकी पत्नी पािी फ
ें किी िै और हपिा
पोवार (३६ क
ु ल पंवार) समाज क
े सामाजजक सांस्क
ृ जिक रीजि-ररवाज
19
का िाम जोरों से पुकारा जािा िैं। आंगि में चौक भर कर एक द्रोण में भोजि
रख, चंदि, क
ुं क
ू , चावल, पुष्प आहद से पांव पडिे िै और काग (काक स्पशण)
(कौआ) की खािे की राि देखी जािी िै। उसक
े भोजि ग्रिि करिे िी गोमािा
एवं ब्राह्मण वृंद को भोजि हदया जािा िै और बाद में मेिमािों क
े साथ भोजि
सम्पन्न िोिा िैं।
***************
सन्दभण : पंवारी ज्ञािदीप

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  • 1. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 1 पोवार(३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज
  • 2. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 2 जििु जन्म ग्रामीण अंचल में पोवार पररवारों में गांव की पेशावर दायी एवम् वयोवृद्ध महिलाओं की हिगरािी में प्रसुहि घर में िी कराई जािी थी। जिां सुहवधायें उपलब्ध िै, प्रसुहिगृि में जचकी कराई जािी िैं। हशशु जन्म क े िुरंि बाद प्रसुहि कक्ष, हशशु व मािा की साफ सफाई व खेि से टेंभरूि(िेंदु) की लकडी काट कर लाकर फाटक क े सामिे आडी रखी जािी िैं िाहक भूि-हपशाच आहद का गृि प्रवेश अवरुद्ध िो जाय। आगामी पांच हदिोंिक पररवार जि अशुद्ध (सुिुक) स्थथहि में रििे िै, अिः आगन्तुक इस कालावहध में गृि प्रवेश कर अशुद्ध ि िोिे का संक े ि एवम् यि एक प्रकार से जीव-जंिु संक्रमण प्रहिकार की भी व्यवथथा माि सकिे िै। हकसी व्यस्ि को जंगल भेज कर काकई पेड की साल या बारीक लकहडया मंगाई जािी िै। उन्हें क ु टकर चूणण बिाया जािा िै। अन्य व्यस्ि द्वारा क ु म्हार क े घर से िई कोरी मटकी (िांडी) बुलाई जािी िै। उसमें िैयार हकया हुआ काकई चुणण व प्रमाण से जल डाला जािा िै। उपर मटकी को पारो (झकणी) से झांक कर लाल कपडे से बांधा जािा िै। उसे क ुं क ू , िल्दी, चावल क े पांच टीक े लगाकर पांव पडिे िै और िेज आगी वाले चुल्हे पर चढा देिे िै। क ु छ समय की उबाली से काढा बि जािा िै। अच्छा काढा बििे पर उसमें महुये की राब (मीठी जेली) छोडिे िै और आगी को चुल्हे क े बािर कर देिे िै। काढा ठन्डा िोिे पर उसे साफ बिणि या बाटली मेंजमा कर देिे िै। क ु छ महिलायें हिल्ली क ु टकर गुड हमलाकर हिल्ली क े लड्ड ू बिािी िै और प्रसुहि (बारहििबाई) महिला को दोिो समय पांच हदिों िक काढा और हिल्ली क े गरम लड्ड ू हदये जािे िै िाहक शरीर में िाकि आयें। सुिक काल में पररवार जिों को पूजा-पाठ वहजणि रििी िै। पोवार समाज में छटी का दस्तुर िवजाि हशशु का िार झडिे क े बाद, खासकर छटवे हदि फाटकपर रखी टेंभरूि की लकडी जला दी जािी िै बाद में सम्पूणण घर की साफ-सफाई, सडा-सारवण िथा हबस्तरों क े चादर, खोर आहद बदले जािे िै। मािा और बच्चें
  • 3. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 3 को ििला धुलाकर, कमरे की साफ- सफाई की जािी िै। चौक े की साफ- सफाई, सडा सारवि कर चुल्हों को पोिा जािा िै। पुरािे हमट्टी क े पकािे क े बिणि िोड कर िये बिणिों में भोजि बििा िै। देवघर में चवरी की पूजा व दीप प्रज्वलि हकया जािा िै। िुलसी वृंदावि को जल चढाया जािा िै। बालक को मािा की गोदी में हबठाया जािा िै। अन्य महिलायें दीया प्रज्वहलि कर आरिी लेकर आिी िै। दीया को कपडे से झांककर रखा जािा िैं िाहक जावर पुरी िरि उिारिे िक हशशु की दीये पर िजर ि पडे। िाई हशशु क े हसर क े बाल हिकालिा िै (जावर) और उि बालों को बुआ या बििे अपिे पल्लु में जमा करिी िै। बाल झेलिेवाली महिलाओं को िये वस्त्र व दाि-दहक्षणा से पुरस्क ृ ि हकया जािा िै। दादी/बुआ या ििंदे हशशु यहद बालक िै िो करदोरा (कमरदोरा) बांधिी िै या यहद बाहलका िै िो उसक े पांव क ु क ू से रेखांहकि करिी िै। इस हदि बुआ, बििे, ससुराल क े ररस्तेदार व अपिे क ु लीि लोगों को आमंहिि हकया जािा िै। वे एक एक कर हशशु को टीका लगाकर उपिार भेंट करिे िैं। भोजि हदया जािा िै। हकन्तु मामा क े हलये यि समारोि वहजणि िोिा िैं। इस हदि क े बाद पररवार जि बािरी व्यावसाहयक कायण करिा प्रारम्भ करिे िैं। बारसा समारोह बालक क े सवा महििे की आयु का िोिे पर बारसा समारोि आयोहजि हकया जािा िै झुला सजा-धजा कर िरम आसि पर बालक को सुलाया जािा िै। एक िाथ से झुले को हिलाया जािा िै और दुसरे से मीठी गेहं की हमसर (घुगरी) छोडी जािी िै, हजन्हे बच्चें बडे चााँव से चुि-चुि कर खािे िैं। बाद में बालक का िामकरण हवहध सम्पन्न िोिा िै। बच्चे को मेिमाि िये-िये कपडे और स्खलौिों का उपिार देिे िै। बच्चें की मााँ िये वस्त्र पररधाि कर सामिे क े आंगि में आकर खडी िोिी िैं। घर की बुजुगण महिला उस क े हसर पर जल से भरा लोटा रखिी िै। महिलायें उसक े माथे पर टीका लगाकर पांव पडिी िै। उसे पाि क े बीडे स्खलाये जािे िै और क ं धे पर िहसयााँ रखिी िै। बाद में मािा लोटे क े पािी से आंगि हसंचिी िै,
  • 4. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 4 िहसयााँ से हमट्टी खोदिी िै। यि रस्म जचकी क े बाद वहजणि गृि कायण जैसे पािी भरिा, खेिों में काम करिा आहद आज से प्रारम्भ करिे की ओर संक े ि करिी िैं। बाद में पलाश क े १२ पत्ते पािी से साफ धोकर उि में िाजा पकाया रवािा- पकवाि - खीर िैवेद्य क े रूप में परोसा जािा िै। एक परोसा हमट्टी खोदे हुये थथल पर रखा जािा िै जो संक े ि करिा िै हक मािा अब हियहमि रूप से खािा बिा सकिी िै बाकी 99 परोसे दाई अपिे पल्लों में झााँककर ले जािी िै। इस अवसर पर दायी को िई साडी - चोली पििाई जािी िै। ग्राहमणों को भोजि कराया जािा िै। जििु खीर चटाई कार्यक्रम प्रथम दीपावली क े अवसर पर लक्ष्मीपूजि क े हदि लक्ष्मीदेवी पूजि समास्ि पश्चाि मािा द्वारा िवहशशु को अपिी गोद में पकडकर चावल की खीर देवघर में या आंगि में बृंदावि क े सामिे चटािे की प्रथा िै। बालक बाहलका को िये वस्त्र पििाये जािे िैं। दाढी जिकालिे की प्रथा लडक े की दाढी फ ु टिे िी युवा या हकशोर अवथथा में पहुंचा समझा जािा िै। प्रथम दाढी हिकालिे िेिु समारोि आयोजि की पोवारों में प्रथा चली आ रिी िै। बििे, बुआ, भाहभयााँ आहद महिलायें लडक े को िल्दी लगािी िै। उसे िये वस्त्रों का अिेर हकया जािा िै। युवक चौक पर आसि ग्रिि करिा िै और िाई उसकी दाढी उिारिा िै। बुआ या बििे बालों को अपिे पल्लु में झेलिी िै। बाद में िाई युवक को ििलािा िै। पिििे िेिु िया पोशाक उसे बुआ या बिि भेंट करिी िैं। हफर युवक पाट क े पांव पड कर आसि ग्रिि करिा िै। उसे माथे पर हिलक-क ु मक ू म लगाकर, पांव पडकर बुआ या बिि उसक े ओंजुर में पाि, िाररयल और सुपारी रखिी िैं। महिलाएं पैसे देकर पांव पडिी िैं । इसक े बाद चिे की दाल, गेहं की घुघरी और शक्कर हमलाकरउसकी प्रसाद सभी उपस्थथि जिसमुदाय को हविररि की जािी िै । इस अवसर पर बाल झेलिे वाली महिलाओं को वस्त्रों का उपिार और मेिमाि, घरजि आहद को भोजि कराया जािा िै।
  • 5. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 5 गुरू दीक्षा पोवारों में यि परम्परा पीढी-दर-पीढी चली आ रिी िै। इलािाबाद या काशी से पंहडि आिे पर िवयुवकों को हवहधवि दीक्षा दी जाि िैं। पंहडि ि आिेपर यि हवहध थथािीय ब्राह्मण, गोसाई, बैरागी या भगि क े द्वारा सम्पन्न कराई जािी िै। शुभ हिहथ देखकर यि कायणक्रम हकया जािा िै। घर की साफ सफाई, सडा-सारवि कर घर में एक थथाि पर चौक डालकर पीढा या पाट रखा जािा िै| युवक/युविी ििा-धोकर आसि ग्रिि करिे िैं। प्रथम गुरु क े चरण स्पशण कर उसक े हसर पर कोरी धोिी या दुपट्टा रखा जािा िै, उन्हे हिलक लगाकर पांव पडे जािे िैं। गुरु प्रथम युवक/ युविी पर जल हछडककर पहविीकरण, जल चेले/चेली क े िथेली में भरकरपीिे का हिदेश कर आचमि िथा हशखा (चोहट) को जल से गीला कर कच्ची गांठ बांधिे कििा िै और मंिोपचार करिा िै। इसे हशखा वंदि कििे िै। इस समय िीि मंि उच्चाररि हकये जािे िैं - अ) पहविीकरण - ओम् अपहविः पहविो वा सवाणवथथां गिोऽहप वा। ब) आचमि - ओम् अमृिोपस्तरणमहस स्वािा । स) हशवा वंदि - ओम् हचद्रूहपहण मिामाये हदव्य िेजः समस्ििे। हिष्ठ देहव हशरवा मध्ये िेजोवृस्द्ध क ु रुष्व मे। बाद में गुरु अपिे हशष्य क े काि में एक मंि फ ु किा िै -“धीमहि हध” या “ओम् भूभुणवःस्वः िस्यहविुवणरेण्यं भगोदेवस्य धीमहि हधयो योिः प्रचोदयाि या ओम् िमो हशवायः या ओम् िमो वासुदेवाय आहद।” अंि में गुरू हशष्यों से कोई भी एक मिपंसद वस्तू या आदि त्याग करिे का वचि लेिा िै। ****************
  • 6. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 6 जववाह संस्कार पोवार पररवारों में हववाि संस्कार बडी धूमधाम से मिाये जािे िै। प्राचीि काल में शाहदयााँ सिाि भर चलिी थी अब दो या एक हदि में िी सम्पन्न की जािी िैं। पोवारों में दिेज या हुंडा प्रथा ििी िैं। हववाि संस्कार में ब्राह्मण आवश्यक ििीं िोिा। लगुि "राम िवरदेव- सीिा िवरी सावधाि" क े साथ पुरािे जमािे में लगाई जािी थी। अब ५ या ७ मंगलाष्टक बोले जािे िैं। लगुि क े बाद, सिपदी(भाँवर) “धीमहिहधः” कि कर सम्पन्न िोिी िै। शादी में क े वल मंगलसूि प्रमुख्यिया आवश्यकगििा िोिा िै। अन्य गििे ऐस्च्छक उपिार हुआ करिे िैं। शादी में वधू का हपिा खाि-पाि क े बिणि, गाय-भैस, सोिा-चांदी अपिी इच्छा से स्त्रीधि रूप में देिा िै। हववाि सम्बहधि करीबि २५-३० िेंग दस्तुर िोिे िै। पोवार महिलाओं में हववाि समारोि का श्रीगणेशाय िोिे िी मेिंदी लगािा मुख्य आकर्णण िोिा िैं। पोवारों में शादी समारोि की हिहथ हिधाणररि िोिे क े पश्चाि ब्याि की रश्में प्रारम्भ िो जािी िै। काज (क ु लदेव) पूजा – पोवार समाज में हववाि पूवण दोिो पक्ष अपिे अपिे क ु ल देविाओं की पूजा करिे िै। पररवार क े ज्येष्ठ सदस्य क े घर जाकर या अपिे घर क े देवघर में क ु लदेव की पूजा की जािी िै। क ु लदेविा दुल्हादेव (हशव) िारायण देव (हवष्णू) िथा सांकलदेव (पंवार आद्य पुरुर्) देवघर में पोिली में रखे रििे िैं, उन्हें हवहधवि उिारा जािा िै, पूजा की जािी िै एवम्स्स्व क ु ल जिों को भोजि कराकर हफर इि देविाओं को पोिली में वापस हवश्राम हदया जािा िै। क ु छ लोगों क े अिुसार इस अवसर पर दू ल्हा देव क े िैवेद्य िेिु पशु-बली (काला बकरा) की थी और इस मौक े पर स्वक ु लीि लोग घर क े अंदर भोजि कर िड्डीयां एवं उवणररि अन्न घर में िी एक गड्ढा बिाकर उसमें डालिे थे । िाथ भी विीं धोिे थे और अंि में उस गड्डे को हमट्टी भरकर बंद कर हदया जािा था। इसे 'बधई' कििे िै। चूाँहक पोवार समाज को प्राचीि ब्रह्मक्षहिय मािा जािा िै इसीहलए बली प्रथा को बहुसंक्ष्यक समाज सिी ििीं माििा िै इसीहलए यि प्रथा अब धीरे- धीरे हवलोहपि चुकी िै। सभी पोवार अठई-सुक ु डे का िैवेद्य चढािे िैं।
  • 7. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 7 सगाई/पार्लगिी र्ा फलदाि पिले भावी वधू क े पैर पडे जािे िै। वर पक्ष क े लोग अपिे ररस्तेदार सम्बस्िि हमिों, गांव क े प्रहिहष्ठि लोगों की बाराि वधु पक्ष क े घर ले जािे िै। उसे पुरािे जमािे में 'गुरो की बाराि' कििे िै िथा सगाई को 'गुरी सुवारी को जेवि' र्ा 'गुड़भात्या' कििे िैं। पोवारी रीहि-ररवाजों क े अिुसार मेिमािों क े पांव धोकर उन्हे चांवल - क ुं मक ू म का टीका लगाया जािा िै। पिले क े जमािे में गुड-पोिा (भेली-पोिा) बाद में हगला आलु -पोिा-िलवा और आजकल क्षमिा क े अिुसार हवहवध व्यंजिों का िास्ता कराया जािा िै। िास्ते क े बाद पूवण मुवी हदशा में आटे का चौक डालकर उस पर पाट रखा जािा िै। उस पर कन्या आसि ग्रिि करिी िै और वर हपिा, दादा या ज्येष्ठ भ्रािा द्वारा कन्या को टीका लगाकर साडी आहद वस्त्र हदये जािे िै। कन्या पोशाक पररधाि कर आसि ग्रिि करिी िै। हफर वर पक्ष का बुजुगण या हपिा कन्या क े िाथों में पाि, िाररयल, ५ प्रकार क े फल, गििे, श्रृंगार, कपडे, हमठाई देकर बायें िाथ की उंगली (अिाहमका) में अंगुठी (मुंदी) पििाई जािी िै। पश्चाि पिले सव्वा रुपया या पांच रुपये िथा क ुं क ू से कन्या को टीका लगाकर चांवल/अक्षिा से पांव पडिे की प्रथा थी। अब डर ाय-फ्र ु ट, सुटक े स और बडी क ॅ श से पांव पडिे की प्रथा बि गई िै। सभी बारािी कन्या को टीका, द्रव्यदाि कर पांव पडिे िै। इसे िी पार्लगिी र्ा फलदाि कििे िै। इस अवसर पर वधू पक्ष का दामाद वर पक्ष से सभी सामग्री ग्रिि करिा िै। आंजुर भरिे क े बाद बििों द्वारा आगदा (ओट-अंजुरी में पाि - पैसा रखकर पूजा करिा) भरा जािा िै हजस में पिले कलश और बाद में वधू क े आगदे भरे जािे िैं। इस में चावल क े दािे पांच बार कन्या क े पैर से हसर की ओर से ले जाकर हसर पर छोडे जािे िै। हफर आगदा वाली बाई पािदाि से एक पाि का बीडा और रूमाल उठािी िै। िाई द्वारा दुल्हि क े क ु मक ु म से पांव हलखे जािे िै। बाद में भोजि (रोटी) कायणक्रम संपन्न िोिा िै। इसी िरि 'वर' की भी सगाई सम्पन्न की जािी िै। पोवारों क े इस कायणक्रम में मािृपक्ष का बहुि मित्व रििा िै िथा पुरोहिि या मंि-पूजा पाठ या कोई वैहदक हवहध बंधिकारक ििी िोिी।
  • 8. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 8 मंडपाच्छादि एवम् मािृका पूजि मंडपाच्छादि एवम् मािृका पूजि पोवारों में १२ डेरी क े हववाि मंडप की प्रथा प्राचीि काल से चली आ रिी िै। आठ डेररयॉ आठ हदशाओं-का प्रहिहिहधत्व करिी िै। इिमें अष्ट देविा हिवास करिे िै। अन्य िीि डेररयों पर ब्रह्मा हवष्णू मिेश का हिवास िोिा िै िथा अंहिम (१२वी) डेरी पर क ु लदेविा हिवास करिे िै, हजसे लगूिडेर मािकर पूजा की जािी िै। लगूिडेर मोिई एवं अन्य ग्यारा सालई की, ४ लटक े (बस्ल्लयााँ) एवम् २४ िरे बांस िथा मंडप आच्छादि िेिू जामुि की डगाले (फांहदया) लाई जािी िै। इस मौक े पर बुआ क ु म्हाररि की भूहमका अपिािी िै। वि अपिे पास ढकिों में जीरा और धहिया भरकर धागे से बांध देिी िै उि पर पारे रखे जािे िै। सम्मुख बैठी हुई महिलाएाँ बुआ से ढकिे खरीदिी िै। उन्हे डेरी पूजि पूवण डेरी क े पास रखा जािा िै। डेरी पूजि िेिू महिलाएाँ दुल्हा / दुल्हि को मंडप ले जािी िै। िया ब्लाऊज या आंगी (चोली) या कोरा कपडा िागर क े फार को लपेटा जािा िै। उसे िाथ से स्पशण कर दुल्हा / दुल्हि िथा पररवारजि एक क े बाद एक पुरखों का िाम लेकर स्मरण करिे िै और उन्हें इस मांगहलक कायण में उपस्थथि िोिे आमंहिि करिे िै। डेररयों को िैवेद्य चढाया जािा िै। िल्दी क ु मक ु म का टीका लगाया जािा िै, व्यंजि चढाये जािे िै, और पांव पडे जािे िै। मंडप सुिाई मंडप सुिाई कायणक्रम िेिू मंडप में सडा-सारवि, रंगोली आहद िोिे क े बाद दामाद भांजे क े साथ कच्चे धागे से मंडप पांच से ग्यारि फ े रे की सूिाई करिे िै। इस मौक े पर कोिवाल आमपिों की िोरण मंडप क े चौफ े र बांधिा िै। इस िरि मंडप सुिाई का कायणक्रम सम्पन्न िोिा िै। खिमािी दस्तुर खिमािी दस्तुर क े हलए महिलाएं िजहदक पास की जमीि की हमट्टी (धरिी माय) खोदिी िै और र्ह खि मािी िई टोकिी में डालकर हसरपर कोरा कपडा लेकर रखिी िै एवम् घर वापस आिी िै। मंडप में हमट्टी को गीला कर लगूि डेर क े आसपास हलपा जािा िै। लकडी क े छोटे से पाट पर एक बेठ
  • 9. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 9 बिाई जािी िै। किीं किीं चुल्हा भी साथ में बिािे की प्रथा िै। बाद में इस पाट को बेठ क े साथ देवघर ले जाया जािा िै। िांदड प्रज्वलि जो हववाहिि पररवारजि उपवास रखिा िै वि अपिे हसर हशरवा से पांव क े अंगुठे िक धागे क े पांच सरे लेिा िै,उसे कपास की कांडी पर लपेटिा िै, हफर िांदड (हमट्टी का बिणि ) देवघर में लाकर उसे िेल से पूरा भर हदया जािा िै। धागे की लट डुबो दी जािी िै और एक हसरा बािर रख उसे प्रज्वहलि हकया जािा िै। इस िांदड क े दोिों बाजू में साि-साि हमट्टी क े हदये प्रज्वहलि हकये जािे िैं। िजहदक िी दामादों या भााँजों क े द्वारा प्राि बड क े पत्तों क े ७ या १४ जोडी द्रोण रखकर उिमें सोजी रखी जािी िै और देवघर मे चौरी (पुरखों) की पूजा की जािी िै। यि मिाकाली का दीप हववाि समारंभ संपन्न िोिे िक प्रज्वहलि रखा जािा िै। माहे दसाई मािे दसाई िेिू पररवार की एक दम्पहत्त जोड-गाठ बांधकर पाट-बेठ टोकिा में रखिे िै एवम् पड्डा से झााँक देिे िै। पुरुर् उसे अपिे हसर पर रखकर िथा पत्नी क े टली से अखंड जल धारा छोडिे हुये दोिों मंडप की ओर आगे बढिे िै। पाट - बेठ को लगि डेरी क े पास प्रथथाहपि हकया जािा िै। इन्हें श्रीगणेश गौरी का प्रहिरूप मािा गया िै। काकि बंधाई काकि बंधाई का दस्तुर मित्वपूणण िोिा िै, दुल्हे / दुल्हि को बीच में हबठाकर पांच-साि महिलाएं बािर से घेरा बिािी िै एवम् एक दुसरे से अपिे हसर हटकािी िै उिक े हसर क े बािर से धागे क े पांच घेरे हलए जािे िै। बुआ अपिी िथेली से धाि पीसकर चांवल हिचोडिी िै और चांवल क े पांच दािे धहिया जीरा पांच (खािे क े ) पािों क े ऊपर रखिी िै। पािों को चारो िरफ से मोडकर पांच सरी धागे में िांबे की अंगुठी डालकर उन्हें दो बार घेरा मारकर दो गाठें बांध देिी िै। इस िरि काकि बिकर िैयार िो जािा िै। बुआ वर/वधू का
  • 10. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 10 दाहििा िाथ लेकर मजबूिी से पांच या िौ गाठे लगाकर मिगट पर काकि बांध देिी िै। काकि बांधिे क े बाद वर/वधूिे घर क े बािर जािा या खाट/ पलंग पर बैठिा वहजणि िोिा िै। जबजोरा (वर/वधू चढावा) प्रथम वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष क े घर बाजे गाजे से सगे-सम्बस्ि क े साथ बाराि ले जािे िै। लडकी का हपिा या ज्येष्ठ सदस्य सभी बाराहियों क े पांव पीिल क े कटोरे में धोकर अंगोछे से पोंछिा िै। क ु मक ु म चांवल से टीका लगाकर आदरपूवणक राम-रमाई लेिा िै। वधू को क ु ल िीि चढाव चढाये जािे िैं। पहला चढाव - मंडप में चौक पर पीढे पर वधू को हबठाल कर वर का हपिा या बुजुगण िाथ में पिििे साडी िथा ब्लाऊज सौंपा जािा िै। दुसरा चढाव - वधू द्वारा िये वस्त्र पररधाि करिे क े बाद कायणक्रम देवघर में िोिा िै । इस वि जेवर, आभूर्ण चढाये जािे िैं। िीसरा चढाव - सामिे की छप्पर पर या मंडप में चार सुमी चारपाई (खहटया) पर सम्पन्न िोिा िै। खहटया क े चार पांव पर चार बारािी बैठिे िै और बीच में वर का बडा भाई बैठिा िै। ऊपर से शालू का छि िािा जािा िै। वर का बडा भाई दुल्हि को गोद में हबठािा िै और वर क े हपिा या ज्येष्ठ समक ु लीि व्यस्ि द्वारा िीि या अहधक साहडया (शालु, िीरगोिी आहद) ब्लाऊज, संलग्न पोशाक, स्वणाणभूर्ण, श्रृंगारपेटी, सुटक े स, पादिाण आहद सामग्री भेट की जािी िै। हजसे वधू पक्ष का दामाद वधू क े पीछे खडा रिकर ग्रिि करिा िैं। एक साडी दीपावली क े अवसर पर पिििे क े हलए भी दी जािी िै, इसे चरळ की साड़ी कििे िै। हफर हबजोरा का माि-पाि का भोजि (हसमंि भोजि) सम्पन्न कराया जािा िै। डेरपूंजी का कार्यक्रम: बाद में डेरपूंजी का कार्यक्रम िोिा िै। बारािी मंडप में आिे िै। महिलाओं द्वारा आरिी मंडप में लाई जािी िै। लगुि डेर को कोरे कपडे में ९ िल्दी, ९ सुपारी और ९ पैसे, ९ खािे बिाकर अलग अलग ९ थथािों
  • 11. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 11 पर रखिे िै। दोिों पक्षों क े सम्बिी (हबह्याई) पाटों पर आमिे सामिे बैठिे िै। देवी-देविाओं का, खासकर गणेश िथा गौरी का स्मरण कर अन्य देविाओं क े भी िाम पुकारिे िै। प्रत्येक भगवाि क े िाम क े बाद एक पाि का बीडा एक दुसरे को स्खलािे िै। इस श्रृंखला में यहद सभी देविाओं का स्मरण करें िो ३६० पाि बीडे लग सकिे िै। इसे पाि जजिाई / पाि खखचाई किा जािा िै। इस वि खुब मजा आिा िै। बाद में कपडे में रखी सामग्री को ९ खािों की दो गांठे बिािे िै, एक में पांच और दुसरी में चार खािे की गांठे िोिी िै। इि गाठों को दोिों पक्ष क े मामाओं को सौंपा जािा िै हजिका काम लग्न घहटका पर आिा िै। इन्हे लगुि गांठे कििे िै। डेर पूंजी : पांच बारािी एवं वधू लगुि डेर क े क ु मक ु म, िल्दी, चांवल से पांव पडिे िै और उसे गड्ढे में डालकर हमट्टी से गड्ढा भरा जािा िै। इसे डेर पूंजी कििे िै। हफर पांच बारािी जािोसा थथल जािे िै। जािोसा घरमालक को चांवल, िल्दी, सुपारी आहद देिे िै िाहक वि गणेश (गिोबा) की पूजा करे व पररसर मंगलमय बिें। इसी िरि वधू पक्ष क े लोग वर पक्ष क े घर जबजोरे की बाराि ले जािे िै। पिले बाराहियों का पांव धोिा, िास्ता पािी िोिा िै और चढाव की रस्म अदा की जािी िै। दुल्हे को क े वल दो चढाव चढाये जािे िै। पिला चढाव मंडप में चौक- पाट पर हबठा कर टीका लगािे िै और पिििे क े हलए पोशाक भेट की जािी िै। दुसरा चढाव घर में िोिा िै हजसमें पगडी, साफा, कोट/शेरवािी, अन्य कपडे, श्रृंगार सामग्री, पेटी या सुटक े स में भरकर भेट की जािी िै। साथ में सोिे की अंगुठी, घडी, चेि आहद चढाई जािी िै। एक जोडी पादिाण, मोजा भी हदया जािा िै। सभी बारािी दुल्हे को हिलक लगाकर पांव पडिे िै। पांच बारािी व दुल्हा, सुवाहसिी डेर पूंजी का कायणक्रम करिे िै। बाद में भोजि (जबजोरा जेवि) का आयोजि हकया जािा िै । हल्दी-अहेर - महिलाएं बाजे-गाजे क े साथ हमट्टी क े कटोरे में िल्दी का गीला लेपि लेकर घर से हिकलिी िै। साथ में भांजे, दामाद भी िोिे िै। सवणप्रथम िल्दी मािामाय / देवी गौरी को चढाई जािी िै। बाद में मारुिी (ििुमाि) एवम् अन्य देविाओं को िाररयल फोडकर हवहधवि पूजा की जािी िै। िर देविा को
  • 12. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 12 िया वस्त्र अिेर हकया जािा िै। पाट क े पांव पडकर दुल्हा / दुल्हि को मंडप में हबठाया जािा िै, उसे खासकर उत्तरमुखी और हपिृक ु ल क े पुरुर् महिलाएं पूवणमुखी बैठिी िै। पांच महिलाएं दुल्हा/दुल्हि को िल्दी लगािी िै, बाद में महिला – ररस्तेदार सभी को िल्दी लगािी िै। टीका लगािी िै। िल्दी हिलक माथेपर लगाकर उपस्थथि वर/वधू पक्ष को अिेर हकया जािा िै। सवणप्रथम वर/वधू की मामी, बुआ, मौसी, समदि आहद अिेर करिी िै। हफर अन्य महिलाएं अिेर करिी िै।दुल्हा-दुल्हि को कायणक्रम समास्ि बाद मंडप में ििलाया जािा िै। अंि में िल्दी अहेर का भोजि हदया जािा िै। लगुिबाराि / दुल्हासार पुरािे जमािे में दुल्हा की सवारी क े हलए खाचर व बैल खुब सजाये जािे थे, उसे 'गुडुर' किा जािा था। दुल्हे की मााँ दुल्हे को सजा-धजा कर उंगली पकडकर मंडप ले आिी िै। दुल्हा पाट क े चांवल से पांव पडकर उस पर खडा िोिा िै, उसकी मां द्वारा आरिी उिारी जािी िै इसे ‘पछाड़िा' कििे िै। इस हवहध को आगे बढािे हुये िांदड, रई (दिी घुसरिे की), मुसल, सूपा आहद एक- एक कर िये वस्त्रों में लपेटकर दुल्हे क े पैसे से हसर िक दायें - बायें पांच थथािों पर स्पशण कर हसर क े उपर से घुमाये जािे िै। इस क े बाद दुल्हे क े पांव पडिे िैं। दुल्हे को चंदोडे की ओळ (छि) क े िीचे, बीच में िुिारी से उठाकर चार लोग मंडप से फाटक से बािर हिकालिे िै। बाल हववाि में जीजा या मामा दुल्हे को क ं धा या कमर पर हबठालकर बाजे-गाजे क े साथ हिकलिे थे। इस वि दुल्हे को मारूिी मंहदर ले जाकर पूजा कराई जािी िै। एक या पांच िाररयल फोडे जािे िै। दुल्हा चारो हदशाओं में चांवल वर्ाणव कर देविाओं की प्राथणिा करिा िै और वािि (गुडुर) में बैठिा िै । दुल्हे को मााँ दू ध हपलािी िै और बिासे या गुड स्खलािी िै। इस वि बुआ, बििे, भाभी, मााँ, चाची, आहद वािि पर आरिी रखिी िै। टीका लगाकर गुड स्खलािी िै। आरिी में दुल्हे से ईिाम वसुल करिी िै और बाराि बाजे-गाजे क े साथ सार की जािी िै। इस रस्म को दुल्हा सार किा जािा िै । पिले दुल्हे क े साथ ३,४ महिलाएं (सुवाहसिी/ करोहलिी) दुल्हा की सिायक क े रूप में बाराि में भेजी जािी थी क्योहक दुल्हा बालक अवथथा में हुआ करिा था। आजकल शादी लगािे क े उद्देश्य से भारी संख्या में महिलाएं बाराि में सस्म्महलि िोिी िै, दुल्हे की मााँ
  • 13. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 13 बराि में शाहमल ििीं िोिी। बाराि क े साथ कावड ले जाई जािी िै। कावड में िमक, चांवल, धोि, धोिी िथा सुम (घास) भर कर वधू पक्ष द्वारा हदये जिवासा (हवश्रामगृि) ले जाई जािी िै। सुम से रस्सी बुिी जािी िै। कावड से वापसी में दिेज (आंदि) में हमली भेट वस्तुयें वधू से वर पक्ष क े घर ले जाई जािी िैं । खासकर गुंड, गंज, थाली, कटोरे, लोटा, हगलास ले जािे िै। बाराि अगवािी : बाराि वधुपक्ष क े गांव की सीमा पार करिे िी कोिवाल वधू पक्ष को इसकी सूचिा देिा िै। वधू पक्ष से दामाद लोग बाराहियों से हमलिे गांव सीमा पर पंहुचिे िै। इसे बाराि झेलिा कििे िै। पािी एवं पाि-सुपारी से बाराहियों का स्वागि हकया जािा िै। वे बाराि को मारूिी मंहदर या आखर की ओर बढिे की प्राथणिा करिे िैं । दुल्हा उिारिा : बाराि मारूिी मंहदर पहुंचिे िी दुल्हि पक्ष की महिलाएं िथा पुरुर् बाजे गाजे क े साथ आरिी, पािी, शरबि लेकर घर से बाराि की ओर चल पडिे िैं। समधी (हबह्याई) भेट िोिी िै। गुलाल, शालु, हिलक से स्वागि िोिा िै। राम-रमाई िोिी िै। इसे समधी भेट कििे िै। महिलाएं आरिी दुल्हे की गाडी सम्मुख रखिी िै । वर पक्ष से इिाम पाकर विां से िटिी िै। हफर दुल्हे को िीचे उिारा जािा िै, करोहलि भी उिरिी िै। उन्हें पािी व शरबि हपलाई जािी िै। दुल्हा मारूिी मंहदर जाकर पूजा करिा िै। चारो हदशाओं में चांवलअपणण कर देवी-देविा की वंदिा करिा िै। हफर घोडे, कार पर या पैदल आगे बढिा िै। जब पैदल चलिा िै िो उपर चंदोडा की छि दुल्हे क े हसर पर चार लोग पकडे रििे िै और एक बीच में िुिारी से उसे उठाये रििा िै। बाजा, आहिशबाजी, रोशिाई, िाच-गािे िर्ोउल्हास की समा बांधिे िै। मंडप प्रवेि (मंडा मारिा) - घोडे या अन्य वािि से उिरकर वधू- हपिा हिवास या मंगल भवि सम्मुख दुल्हा िीचे उिारा जािा िै। महिलाएं आरिी उिारिी िै। इि पुष्प आहद बरसाये जािे िै। दुल्हा प्रवेश द्वार पर खडी महिलाओं क े गुंड क े पािी में िाथ डुबोकर उसे झलकािा िै और क ु छ हचल्लर राहश छोडिा िै। उस पर चार बरािी छि हलये िोिे िै और जैसे िी दुल्हा मंडप समीप पहुचिा िै वि मंडप क े शगूि बास को िाथ से स्पशण करिा िै। मंडप पर से जीजा (दुल्हि का) दुल्हे क े उपर की छि पर रंग क े क ु छ हछटें छोडिा
  • 14. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 14 िै। हफर दुल्हा सुवाहसि िथा मेिमािों क े साथ जिवासा वापस जािा िै। इसे मांडो मारिा कििे िै। जिवासा - िवरदेव िथा मेिमािों क े अल्प हवश्राम क े हलए जिवासे की व्यवथथा िोिी िै। आजकल बाराि सीधे जिवासा ले जािे िै और बाद में लगीि मंडप में । यिााँ सभी का ििािा, धोिा, िास्ता-पािी िोिा िै। वधू पक्ष से क ु छ महिलाए उपिार क े रूप में खीर ले आिी िै उसे 'बिवि' कििे िै। िेल-गौडा, िोि-गोडा की बारािे शुरू िोिी िै, िमक, चांवल आहद सभी जिवासे से भेजा जािा िै। हफर लगुि िथ, ब्लाऊज, पोि, बाहसंग आहद सामग्री भेजी जािी िै। दुल्हि पक्ष की ओर से भी पांच बारािी जिवासा आकर पााँव धोिे िै, टीका लगािे िै और चढावा स्वीकार करिे िैं। लगुि क े हलए प्रथथाि - दुल्हि पक्ष क े वस्त्र, आभूर्णों से सज- धज बाजे िाच-गािे, आहिशबाजी क े साथ प्रथथाि करिा िै । पोवारों में लगुि अक्सर गोधुली बेला पर िोिी िै। पाजिग्रहि जवजध - जो दो लगुि गााँठे वधू क े हबजोरा से दोिों पक्ष क े मामा लािे िै उसे एक दुसरे को फ े र हदया जािा िै। पुरािे जमािे में दुल्हा-दुल्हि को दो बााँस क े टोकिों में देवघर में दुल्हादेव एवम् चौरी दीपक क े सामिे बैठाया जािा था। बीच में एक अंिरपाट (कोरी धोिी) जो कावड क े साथ आिी िै उसे दोिों पक्ष क े मामा पकडिे थे। सूरज डुबिे िी घर क े उपर आडे पर चढा हुआ आदमी (भगि) थाली बजािा था। देवघर क े अंदर ‘हधम हि हधः’ किकर पुष्प बरसाये जािे थे। दुल्हा दुल्हि क े शालू को गांठ बांधकर हफर मंडप लाया जािा था और उपस्थथि समुदाय उिपर अक्षिा वर्ाणव कर हववाि लगािे थे। हिंदू हववाि संस्कार में क ु लदेवी-देविाओं को साक्षी मािकर चांवल, ज्वारी को िल्दी लेपि कर हववाि अक्षिा गणेश गौरी हववाि का अहभन्न अंग िै। वैहदक हववाि प्रणाहल में हबिा अक्षिा शादी का कोई मित्व ििी िोिा । आजकल मंडप मंच पर दुल्हा-दुल्हि बैठिे या खडे रििे िै। दोिों. पक्ष क े मामा अंिर पाट पकडिे िै। पंहडि या कोई भी उपस्थथि या क ॅ सेट ५-७ श्लोक ध्विी गूंजिी िै, “राम सीिा लगि लागे सावधाि' क े जयघोर् क े साथ अक्षिा का वर्ाणव करिे िै। आजकल दुल्हा दुल्हि एक दुसरे को पुष्पमाला पििाकर लगि बंधि (पररणय) की रस्म हिभाई जािी िै। बाजे बजिे िै, फटाक े फ ु टिे िै, आहिशबाजी िोिी िै और वर पक्ष क े लोग मंडप में िाचिे िै।
  • 15. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 15 पोवारों में गोधूली बेला पर लगि का बहुि महत्त्व है। सूयाणस्त क े इदणहगदण लगि लगिे से दुल्हा-दुल्हि का दाम्पत्य जीवि अटू ट व मंगलमय मािा गया िै। यि योग क ुं डली दोर् का हवच्छे द कर वर-वधू दोिों क े हलए ज्योहिष्यमाला अिुसार अत्यंि शुभदायी मािा गया िै। लगुि क े बाद िवरदेव-िवरी को दुल्हि की मााँ या दादी/चाची/ मािाल्पी (िाई) पाि बीडा स्खलािी िै। दोिों की शालु से गांठ बांधकर मााँ दुल्हा दुल्हि को लेकर देवघर जािे िै। विां दुल्हा-दुल्हि को पिेहलयां बुझाकर एक दुसरे का िाम बिािा िोिा िै।| िंसी-मजाक क े बीच दुल्हि- दुल्हा एक दुसरे को लड्ड ू स्खलािे िै और िास्ता करिे िैं। भााँवर (सप्तपदी) - पुरािी परम्परा अिुसार पांच बारािी पारडे (पल्लो) में धोि रख कर, चंडोला की ओल क े पीछे से दुल्हा-दुल्हि क े हसर पर से साि फ े रे लगािे थे और 'हधम हिः हधः'(सहक्षि गायिी मंि) का जयघोर् करिे थे। आजकल पंहडिजी से सिपदी हवहध कराई जािी िै। अहग्न क ुं ड में यज्ञ कर साि फ े रे लेिे िै। दुल्हा दुल्हि एक दुसरे से वचि लेिे िै, पंहडि इस पुरी हवहध में मंिोपचार करिे रििे िैं। आंदि (दहेज) - पुरािे जमािे में दुल्हा-दुल्हि को गुड ू र की जुआडी लाकर मंडप में उस पर हबठाला जािा था। सुम की रस्सी धागे क े साथ लेकर साि फ े रे दुल्हा-दुल्हि क े गदणि क े बािर से हलये जािे थे। पांच सरी सुम रस्सी व धागे को बीच में कहिक क े लड्ड ू से हचपकाया जािा था और इसे गोि-गुाँथिा कििे िैं। यि सूम क े रस्सी व धागा की गोि दुल्हि का भाई दुल्हा-दुल्हि क े गले में डालिा िै। वधू पक्ष जि भेट वस्तुएं रसोई क े बिणि, उपकरण, राहश, आहद िवदम्पहत्त को भेट करिे िैं। दिेज क े अंि में दुल्हि का भाई गोि छु डािा िै। उसे गाय, भैस, अिाज आहद देिे का वचि देिा िोिा िै। पाव पवारिा - दुल्हि क े मााँ-बाप दुल्हा-दुल्हि दोिों की सेलू से गांठ बांधकर उिक े पांव दू ध व दुभारी से धोिे िै। इस दस्तुर को पांव परवारिा किा जािा िै । यि गौरी गणेश का अहभर्ेक और चरण पूजि की रस्म िै जो वैहदक काल से चली आ रिी िै ।
  • 16. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 16 बाल खेलिा - दुल्ह- दुल्हि को पाट पर हबठाकर बाल (सेमी क े दािे) स्खलाये जािे िै । इसे सारी - फासा या िार-जीि खेल भी किा जािा िै, इस खेल में पााँच बार दुल्हा अपिे मुठ में बाल क े दािे छ ू पािा िै और ऐसा दुल्हि भी करिी िै। एक दुसरे को बिािा िोिा िै हक मुंठ में दािे सम संख्या में िै या हवर्म संख्या। इसे 'उिा का पुरा' यािे हवसम या सम ऐसा किकर बिाया जािा िै। यि खेल क े वल दुल्हा-दुल्हि की जोडी िी ििी िो वर िथा वधू पक्ष की दो- दो अन्य सम वयस्क जोहडयां भी खेलिी िै। बाद में िाँसी मजाक से दुल्हा-दुल्हि हमट्टी की करई क े पािी से ििािे िैं। क ु सुम्बा : बाराि प्रथथाि िोिे पूवण पािी भरिेवाली महिलाएं , किार िाई आहद आरिी लेकर आिे िै। गुलाल, रंग, इि गुलाबजल से बाराहियों का स्वागि व पािदाि पेश कर इिाम मांगिे िै, जब दुल्हा मंडप मारिा िै िब दुल्हि क े जीजा रंग हछडकिे िै उन्हे भी इिाम िवाजा जािा िै। दुल्हा-दुल्हि बाराि जबदाई इसे पोवारी में 'सपटिी' कििे िै। दुल्हा-दुल्हि हबदाई क े हलए देवघर में िैयार िोिे पर िाई दोिों क े पांवों को लाल रंग लगािा िैं। दुल्हे का जीजा या भांजा फिोली क े फ ु ल को रंग में डुबाकर चेिरे की सजावट करिा िै । हफर दुल्हा- दुल्हि मंडप पधारिे िै। सभी दुल्हि पक्ष क े मेिमाि अक्षिा व राहश से दुल्हा- दुल्हि क े पांव पडिे िै। इसक े बाद िांदड को गंगार क े पािी में रख कर दुल्हा-दुल्हि प्रदहक्षणा लेिे है और उसे बुझा जदर्ा जािा है। बाराि क े साथ िमक व चांवल जो वर पक्ष से कावड से आिा िै उसे सवाई गुिा बढाकर दुल्हे क े घर वापस भेजा जािा िै। कन्यादाि दुल्हि क े हपिा, चाचा या भाई उसी िरि दुल्हे का हपिा, चाचा या भाई आमिे सामिे हबछायि पर (दरीपर) बैठिे िैं। वर पक्ष की गोद में वधु िथा वधू पक्ष की गोद में वर बैठिा िै। दोिों समधी एक दुसरे को हमठाई या गुड स्खलािे िैं। हफर वर की गोद (कोरा) में वर एवं वधू पक्ष की गोद में वधू बैठिी िै। इसे कन्यादाि र्ा लडकी स ंपिे की रस्म किा जािा िै। िवदम्पहत्त का स्वागि बाराि मारूिी मंहदर समीप आकर रुकिी िै, वर क े घर से महिला, पुरुर् आरिी लेकर अगवािी करिे आिे िै। आरिी गुड ू र या वािि सम्मुख रखी जािी िै। इिाम हमलिे क े बाद पिले दुल्हि
  • 17. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 17 हफर सवाहसिी, दुल्हा, सवाहसिी िीचे उिारे जािे िै। उन्हे पािी, शरबि हपलाकर उिका स्वागि हकया जािा िै। ििुमाि की पूजा कर दुल्हा-दुल्हि आगे, बारािी हपछे चलिे िै और बाजा-गाजे, िाच-गािे क े साथ घर पहुंचिे िै। फाटक पर पािी क े गुंड लेकर दो महिलाएं खडी रििी िै। दुल्हा-दुल्हि पाच बार क ु ल्ला कर पैसे गुंड में डालिे िैं। हफर मंडप दुल्हा-दुल्हि को पाट पर खडा कर उिक े पांव धुलायें जािे िै। दुल्हि को दुल्हे की मााँ या दादी आहद अंगुठी या कोई गििा भेट करिी िै या राहश में देिी िैं। दुल्हि थाली में क ुं मक ू म क े लाल रंग में पांव डुबािी िै और देवघर दोिो प्रथथाि करिे िैं | देवघर जाकर चौरी (पुरखों) की पूजा करिे िै और कावड में वापस आये चांवल अक्षिा क े रूप में अहपणि करिे िैं । राखड़ी बड़ी का दस्तुर मंडप में दामाद लोग हबछायि का इन्तजाम करिे िैं। उस पर क े वल वर पक्ष क े स्वक ु ल (क ु टुम्ब) की महिलाएं पंस्ि से दुल्हा-दुल्हि क े दोिो ओर बैठिी िै। दामाद सभी महिलाएं क े ओंजल में दुल्हि द्वारा मायक े से लाई हुई उडद दाल की बिाई हुई बडी दी जािी िै। उन्हे वापस लेिे वि बदले में मूल्य राहश की मांग की जािी िै। इच्छािुसार पैसे पाकर दामाद बडी वापस लेिे िै। संकली (चांदी या फ ु लों का िार या धागों की एक गााँठ) दुल्हे क े गले में पििाई जािी िैं। ढेंड़ो : मंडप में चारपाई (चार सुमी खहटया) डालकर चंदोलो की ओल हबछाकर उस पर दुल्हा-दुल्हि को खडा हकया जािा िै। सभी उिक े पांव पडिे िै। सवणप्रथम दुल्हा दुल्हि दोिो पंगि में बैठे लोगों क े पाव पडिे िै। दुल्हि अपिे मायक े से लाई बडी की सााँग बिािी िै और परोसिी िै और हफर भोजि शुरू िोिा िै। यि पौराहणक पद्धहि का स्वागि समारोि' िी िैं। समदुरा की बाराि : दुल्हि पक्ष से बाराि वर पक्ष क े घर लायी जािी िै। इस में महिलाएं भी आिी िैं। यि बाराि दुल्हि को वापस लेिे आिी िै। स्वागि, िास्ता, भोजि पश्चाि दुल्हि क े साथ बाराि वापस िोिी िै। चौमास, गौिा आहद आजकल हबदाई पूवण सम्पन्न िोिे िैं ।
  • 18. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 18 दाह संस्कार पोवारों में मृि देि पलंग/खहटया पर ििी रखिे। व्यस्ि क े मृत्यु पश्चाि उसे मांडी पर लेकर उसक े मुंि में गंगाजल डाला जािा िै और जमीि पर हबछौिा पर सुलाया जािा िै। रामायण पाठ की पुरािी परम्परा पवारों में पायी जािी िैं । मृि व्यस्ि को ििला-धुला कर िई पोशाक पििाकर, वंदि कर प्रेियािा हिकाली जािी िैं। प्रेि को गोबरी, लकडी, घी, शक्कर व अलसी िेल से अग्नी दी जािी िै। अस्थथयां (फ ू ल) जमा की जािी िै, दाि संस्कार (मुखाहग्न) करिेवाले पुि का िाई मुंडि करिा िै और उसक े बालों को जल में राख क े साथ बिा हदया जािा िै। घाट पर पोिा-गुड का िास्ता करिे की प्राचीि प्रथा िैं। अस्थथयां घर लाकर पीपल / आम पेड पर पोटली में बांधकर रखिे िैं या वृंदावि िहजक गड्डा खोदकर एक छोटे हमट्टीक े ढकिे में रख ऊपर से हमट्टी से भर देिे िैं। दस वे हदि अस्थथयां बािर हिकाल कर पूजा व पांव पडाई िोिी िै (दशहक्रया) और हपन्डदाि िेिु िीथणथथल ले जाया जािा िै। िेरावे हदि गंगापूजि कर मृत्यु भोज (िेरवी रोटी) हदया जािा िै। क ु छ क्षेिों में िीसरे हदि िी यि कायणक्रम हिपटा हदया जािा िैं। अहधकांश पोवारों का हपन्डदाि िेिु रामटेक और मंडला िीथणथथल प्रमुख िै। पुरािे जमािे में पोवारों में पिले हदि प्रेिाहग्न देिे क े बाद मैली (अशुद्ध) िथा िेरावी ि करिे हुये िीसरे हदि िी शुस्द्धकरि हवहध कर चोरवी (शुद्ध) रोटी सम्पन्न करािे की प्रथा थी। श्राद्ध पोवार लोग हपिृपक्ष (क ुं वार) माि क े पखवाडा या हपिृमोक्ष अमावस्या पर मृिक की हिहथ अिुसार श्राद्ध मिािे िैं। लडका (पररवार मुस्खया) क ु शघास की दोरी की माला (जिेऊ) गले में एवम् दोिों िाथों की अंगुहलयों में अंगुहठयााँ धारि कर क ु श घास धुले पािी से दामाद, भांजेव अन्य अहिहथयों क े पांव धोकर, उिक े माथे पर चंदि और चांवल से टीका लगािा िै। घर में पांच पहियां हबछाई जािी िै, सभी प्रकार का थोडा थोडा भोजि परोसा जािा िै हजसे श्राद्धकिाण घर की छि पर फ ें क देिा िै। उसकी पत्नी पािी फ ें किी िै और हपिा
  • 19. पोवार (३६ क ु ल पंवार) समाज क े सामाजजक सांस्क ृ जिक रीजि-ररवाज 19 का िाम जोरों से पुकारा जािा िैं। आंगि में चौक भर कर एक द्रोण में भोजि रख, चंदि, क ुं क ू , चावल, पुष्प आहद से पांव पडिे िै और काग (काक स्पशण) (कौआ) की खािे की राि देखी जािी िै। उसक े भोजि ग्रिि करिे िी गोमािा एवं ब्राह्मण वृंद को भोजि हदया जािा िै और बाद में मेिमािों क े साथ भोजि सम्पन्न िोिा िैं। *************** सन्दभण : पंवारी ज्ञािदीप