1. AIHC & Arch-C-601: Ancient Indian Polity and Administration
Unit IV : Administration and Administrative Units
Un11. Administrative System under the Rashtrakuta
Sachin Kr. Tiwary
2.
3. राष्ट्रक
ू टों का प्रशासनिक विभाानि
Mandal (Group of villages)- Vishay (District)
Sometime Mandal and Rashtra are treated as one.
Sometime under Vishay there were Nadu took care of by the Nadugowda or
Nadugavunda.
साम्राज्य प्ाांत मांडल विषय भुक्तत पुर/नगर ग्राम
चालुतयों क
े पतन क
े पश्चात् ८ िी सदी ईसिी में दक्षिण भारत में राष्ट्रक
ू टों का
उदय हुआ।
राष्ट्रक
ू टों ने मान्यखेड से राज्य ककया
कालाांतर में राष्ट्रक
ू ट एक प्बल राजिांश क
े रूप में राजनीततक पटल पे स्थावपत
हुए।
दकन, दक्षिण एिां उत्तर भारत में अनेक विजयी आक्रमण क
े फलस्िरूप
राष्ट्रक
ू टों ने एक बृहद साम्राज्य की ।
4. साम्राज्य
पूणण प्देश
मंडल
ितणमान कमीशनरी जैसे ५-६ विषय
(क़्िले)
विषय
ितणमान क़्िले समान (२०००
गााँि )
भुक्तत
50 to 70 villages
under bhogapatis.
१०,१२, २० गााँि
पुर/नगर
स्ितांत्र नगर
ग्राम
Prabhu
Gavunda
प्ाांत/राष्ट्र
5. क
ें द्रीय प्रशासि
राष्ट्रक
ू टों का प्शासन राजतांत्रत्रक था
राजा क
ें द्रीय प्शासन का प्मुख था
राजा राज्य का प्धान होता था
उसका पद आनुिांशशक होता था
प्ायः जेष्ट्ठ पुत्र राजगद्दी का उत्तराधधकारी होता था
तथावप महत्िकाांशाओ क
े करण उत्तराधधकार क
े शलये युद्ध होते
थे।
राजा जीवित रहते अपना उत्तराधधकारी चुनते थे
चुने हुए उत्तराधधकारी को युिराज का पद देक
े राजधानी में रखते
थे
6. राष्ट्रक
ू टों क
े प्शासन में मांत्रत्रमांडल की जानकारी नहीां है।
मांत्रत्रमांडल क
े मांत्री का उल्लेख अशभलेखों में कम प्ाप्त हुआ है
राष्ट्रक
ू टों क
े सामांत शशलाहार राजाओां क
े अशभलेखों में ५ मांत्री की सांख्या का
वििरण शमलता है
चूाँकक शशलाहार राष्ट्रक
ू टों क
े सामांत थे, तो शायद राष्ट्रक
ू टों क
े प्शासन में भी
मांत्री रहे होंगे
इन मांत्रत्रयो क
े नाम
1. महाप्धान
2. सिाणधधकाररन
3. सिणदशशणप्धान
4. प्धान
5. पुराणमात्य/महामात्य
मंत्रिमंडल
7. राष्ट्रक
ू टों क
े क
ें द्रीय अधिकारी
महासांधधविग्रहहक
↓ क
े अधीन
सांधधविग्रहहक
1. इन्हें पांचमहाशब्द की उपाधध प्ाप्त थी
2. ये साम्राज्य क
े प्ाांतो, सामांती राज्यों क
े शलए उत्तरदायी होते थे
3. प्ाांतो कीआांतराणज्य तनततयो और तनणणय को देखते थे
4. राजा और महासांधधविग्रहहक क
े बीच पारस्पररक विस्िास
होता था
5. महासांधधविग्रहहक को राजा का दाहहना हाथ कहा गया है
8. िमााधिकाररि
प्धान न्यायाधीश
महासांधधविग्रहहक का समकि
नीचे की अदालतों की अपील सुनता
तनणणय सुनाना
राजा क
े ताम्रपत्रों क
े लेखों को तयार
करता था
9. महाप्रचण्डदंडिायक़/सेनापतत
राष्ट्रक
ू टों का साम्राज्य विस्तार देखते हुए लगता है कक सेनापतत कक सांख्या
कई होगी
सेनापततयों को दांडनायक़ तथा महादांडनायक़ की उपाधधयााँ प्ाप्त थी।
सेनापतत युद्ध में सेना का सांचालन करता था
10. पुरोहहत
पुरोहहत को धमाांक
ु श कहा गया है
यह राज्य क
े तथा राजपररिार क
े धाशमणक कायण करता था
यह राजा को धाशमणक उपदेश भी देता था
11. अमात्य
यह राजस्ि मांत्री था
यह राज्य का राजस्ि, भूस्िामीत्ि,
कृ वष का काम देखता था
राजस्ि, भूस्िामीत्ि, कृ वष क
े
काग़़िात इसक
े पास रहते थे
इसक
े अधीन बहुत से करतनक
(तलक
ण ) रहते थे।
12. प्रांतीय प्रशासि
राष्ट्रक
ु ट साम्राज्य विशभन्न प्ाांतो में विभतत था
प्ाांतो को राष्ट्र कहते थे
यह राष्ट्र का िेत्र ५-६ क़्िले क
े बराबर रहता होगा
राष्ट्रक
ु ट साम्राज्य में सांभितः १८-२० राष्ट्र रहे होंगे
राष्ट्र क
े प्धान को राष्ट्रपतत कहते थे
इन्हें दांडनायक़ तथा महादांडनायक़ की उपाधधयााँ प्ाप्त थी।
राष्ट्रपतत का पद राजक
ु मार, राजा क
े ररश्तेदारों, राजपररिार क
े सदस्यों को हदया
जाता था
अमोघिषण प्थम की पुत्री चांद्रिेलब्बा रायचूर दोआब की शासनधधकाररनी थी।
या युद्ध में हारे हुए सामांत भी राष्ट्रपतत पद पर रहते थे क्जन्हें आांतररक
स्ितांत्रता थी
अमोघिषण प्थम ने सेनापतत बाांक
े य को िनिासी का राष्ट्रपतत तनयुतत ककया था
क्जसमें १२००० ग्राम थे।
13. राष्ट्रपतत
यह पद बहुताांश आनिांशशक होता था
राष्ट्रपतत उपाधधयााँ लगाते थे उदा. राजपरमेश्िर
इनक
े पास अपनी सेनायें होती थी, यहद कोई सामांत विद्रोह
करता तो यह युद्ध करते
राष्ट्रपतत प्ाांतीय प्शासन क
े प्मुख होने क
े नाते राजस्ि प्मुख
भी होते थे
कर सांग्रह करना इनका महत्िपूणण कायण था
राष्ट्रपतत को प्ाांतीय प्शासन में सलाह देने क
े शलया
राष्ट्रमहत्तर लोगों की सशमतत होती थी
14. मांडल प्शासन
ये आधुतनक कमशनररस क
े जैसे काम
करते थे
५-६ क़्िले का प्मुख मांडल होता था
इसक
े बारे में कोई जानकारी नहीां है
15. विषय प्शासन
विषय आजकल क
े क़्िले क
े आकार क
े थे जो अनेक भुक्तत से
शमलकर बनते थे।
विषय क
े प्धान को विषयपती कहते थे
बहुत से सामांत भी विषयपती होते थे
ये राजस्ि प्मुख होते थे
विषयपती को प्ाांतीय प्शासन में सलाह देने क
े शलया
राष्ट्रमहत्तर लोगों की सशमतत होती थी
पुनक (पूना) विषय में १००० और कहणतक विषय में ४०००
ग्राम थे।
16. भुक्तत प्शासन
अनेक ग्रामों से बनकर भुक्तत बनती थी
हर भुक्तत में १०० से लेक
े ५०० ग्राम होते थे
भुक्तत क
े प्मुख को भोधगक या भोगपतत कहते थे
भोगपतत को प्ाांतीय प्शासन में सलाह देने क
े शलया
राष्ट्रमहत्तर लोगों की सशमतत होती थी
17. ग्राम प्रशासि
ग्राम प्मुख को ग्रामक
ू ट, ग्रामपती कहते थे
यह पद प्ायः अनुिांशशक होता था
गाि में शाांतत बनाए रखना,
राजस्ि व्यिस्था करना,
न्यातयक अधधकार इत्याहद काम ग्रामपती क
े होते थे
अशभलेखों में ग्रामपती को सहायता करनेिाले युतत,
आयुतत, तनयुतत, और ग्राममह्हतर क
े उल्लेख प्ाप्त होते
है।
18. निष्ट्कर्ा
इस प्कार हम देखते है कक राष्ट्रक
ू टो का
शासन क
े २२५ िषण तक चलने में उनकी
शासन व्यिस्था और प्णाली का
महत्िपूणण योगदान था।
राष्ट्रक
ू टों क
े बडे साम्राज्य क
े अांतगणत
आने िाले विशभन्न िेत्रों की समुधचत
देखरेख और प्शासन हेतु एक तनक्श्चत
व्यिस्था विद्यमान थी।
बृहद साम्राज्य क
े सुशासन हेतु अनेक
भागों में विभतत करना एक
बद्धधमत्तापूणण तनणणय था।
सम्भितः इसी समुधचत शासन व्यिस्था
ने राष्ट्रक
ू ट शासको को एक लम्बे
समय तक राज्य करने में मदद की
होगी।