18. 04
Noble
Truths
dukkha
Dukkha
samudaya
Dukkha
nirodha
Marg
Cattāri ariyasaccāni
आर्यसत्र् चार हैं-
•(1) दुःख : संसार में दुःख है,
•(2) समदय : दुःख के कारण हैं,
•(3) निरोध : दुःख के निवारण हैं,
•(4) मार्ग : निवारण के लिर्े अष्ांगिक मािय हैं।
प्राणी जन्म भर ववलभन्ि द:खों की शंखिा में पडा रहता है,
र्ह द:ख आयगसत्य है। संसार के ववषर्ों के प्रनत जो तषणा
है वही समदय आयगसत्य है। जो प्राणी तषणा के साथ मरता
है, वह उसकी प्रेरणा से फिर भी जन्म ग्रहण करता है।
इसलिए तषणा की समदर् आर्यसत्र् कहते हैं। तषणा का
अशेष प्रहाण कर देिा निरोध आयगसत्य है। तषणा के ि रहिे
से ि तो संसार की वस्तओं के कारण कोई द:ख होता है
और ि मरणोंपरांत उसका पिजयन्म होता है। बझ िए प्रदीप
की तरह उसका निवायण हो जाता है।
और, इस निरोध की प्राप्तत का मार्ग आयगसत्य - आष्ांगिक
मािय है। इसके आठ अंि हैं- सम्र्क् दृप्ष्, सम्र्क् संकल्प,
सम्र्क् वचि, सम्र्क् कमय, सम्र्क् आजीववका, सम्र्क्
व्र्ार्ाम, सम्र्क् स्मनत और सम्र्क् समागध। इस आर्यमािय
को लसद्ध कर वह मक्त हो जाता है।