1. बोनी से पूवर बीजोपचार से िमलती है अचछी पैदावार
बीजारूढ़ रोग कारको के उन्मूलन के दो प्रमुख उपाय हैं। बीज के साथ िमले रोगजनक अंशो को अलग करना
और फफूं द नाशक दवाओ से बीजो का उपचार। बीज से रोगजनक अंश दूर करने के िलए नमक के 20 प्रितशत घोल (20
िकलो नमक 100 िलटर पानी) मे बीज को डुबोये। रोगजनक अंश जो बीज के साथ िमले रहते हैं वे बीज से हल्के होते हैं। ये
सभी पानी मे उतर आते हैं और हल्के व खराब बीज पानी मे तैरने लगते हैं। सावधानी पूवरक पानी को िनथारकर रोग जनक
अंशो एवं हल्के खराब बीजो को अलग कर लेना चािहए। तलहटी मे बैठे स्वस्थ्य-भारी बीजो को तीन से चार बार पानी मे
धोकर सुखा ले और िफर फफूं द नाशक दवा से बीजोपचार करना चािहये।
बीजोपचार के िलए दो प्रकार की फफूं द नाशक दवाये काम मे लाई जाती हैं। अदैिहक फफूं द नाशक दवाओ के
उपचार से बीज की बाहरी (ऊपरी) सतह पर मौजूद रोग नष हो जाते हैं। प्रमुख अदैिहक फफूं द नाशक दवाओ मे थायरम,
केप्टान, डायफोलटन, पारा,युक दवाये(सेरेसान एगोलाल, जी.एन.), िजनेब(डायथेन एम-45) आिद।
दैिहक फफूं द नाशक दवाओ के उपचार से बीज के भीतर रहने वाले रोग नष िकये जाते हैं। िवटोवेक्स,
बेवेस्टीन, बेनलेट, ट्रायकोडमार व िबरड़ी आिद प्रमुख दैिहक फफूं द नाशक दवाये हैं।
बीजोपचार की िविध: बीजोपचार के िलए एक यंत , बीज सिमश्रण यंत(सीड ट्रीिटग ड्रम) का उपयोग िकया
जाता हैं। इस ड्रम मे िजतने बीज को उपचािरत करना हो, उसके िलए आवश्यक दवा की माता बीज के साथ ड्रम मे डाल दे
और उसके मुंह को अचछी तरह बंद कर दे। 10 से 15 िमनट तक ड्रम को घुमाये। इससे बीज पर दवा की हलकी परत चढ़
जायेगी और इस प्रकार उपचािरत बीज की बोनी की जा सकती है। यिद बीज सिमश्रण यंत उपलब्ध न हो तो िमट्टी के एक
घड़े मे बीज एवं उतनी माता के िलए आवश्यक दवा डाल दे। घड़े के मुंह को मोटे कागज की सहायता से बंद कर दे। िफर घड़े
को 15 िमिनट तक अचछी तरह िहलाये, िजससे बीज पर दवा की परत चढ़ जाये।
रबी की फसलो मसलन गेहूं, चना,मटर, अलसी, मसूर, सूरजमुखी, एवं अन्य सभी सागभाजी को पौध गलन
रोग से बचाने के िलए डायथेन एम-45 थायरम,डायफे लेटान,वेिवस्टन,वेनलेट ट्रायकोडमार िबरड़ी आिद मे से कोई भी दवा
प्रित िकलोग्राम बीज मे 3 ग्राम के िहसाब से प्रयुक की जानी चािहये।
शुल्क बीजोपचार के अलावा बीजोपचार के िलए पानी मे घुलनशील फफूं द नाशक दवाओ का भी उपयोग
िकया जाता है। इस िविध के िलए िकसी िमट्टी अथवा प्लािस्टक के बतरन मे आवश्यक माता मे पानी एवं दवा लेकर घोल बना
ले। इस घोल मे लगभग 10 िमिनट तक बीज डुबोकर रखे। बाद मे बीज िनकाल कर बोनी करे। यह िविध खासकर आलू एवं
गन्ने के बीजोपचार के िलए उपयोगी है।
साबधािनयाँ- बीजोपचार करते समय हाथो मे रबर के दस्ताने पहनने चािहए, साथ ही हाथो-पावो मे चोट
आिद न हो। उपचािरत बीज को िकसी गीली जगह पर न रखे। िजतनी आवश्यकता हो उतने ही बीज की माता उपचािरत
करे। उपचािरत बीज को घरेलू उपयोग मे न ले। दवा खरीदते समय बनने एवं समािप की ितिथ अवश्य देखे। बीजोपचार बंद
2. कमरे मे न करे व उपचािरत बीज का भण्डारण न करे। बीजोपचार के पश्चात हाथ, पैर व मुख को साबुन से दो तीन बार
अचछी तरह धो ले।
view(’zone जैिवक खाद बनाने की िविध
अब हम खेती मे इन सूक्ष्म जीवाणुओ का सहयोग लेकर खाद बनाने एवं तत्वो की पूित हेतु मदद लेगे । खेतो मे रसायनो से
ये सूक्ष्म जीव क्षतितग्रस्त हुये हैं, अत: प्रत्येक फसल मे हमे इनके कल्चर का उपयोग करना पड़ेगा, िजससे फसलो को पोषण
तत्व उपलब्ध हो सके ।
दलहनी फसलो मे प्रित एकड़ 4 से 5 पैकेट राइजोिबयम कल्चर डालना पड़ेगा । एक दलीय फसलो मे एजेक्टोबेक्टर
कल्चर इनती ही माता मे डाले । साथ ही भूिम मे जो फास्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रित एकड़
डालना होगा ।
खाद बनाने के िलये कुछ तरीके नीचे िदये जा रहे हैं, इन िविधयो से खाद बनाकर खेतो मे डाले । इस खाद से िमट्टी की
रचना मे सुधार होगा, सूक्ष्म जीवाणुओ की संख्या भी बढ़ेगी एवं हवा का संचार बढ़ेगा, पानी सोखने एवं धारण करने की
क्षतमता मे भी वृध्दिध्द होगी और फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा । फसलो एवं झाड पेड़ो के अवशेषो मे वे सभी तत्व होते हैं,
िजसकी उन्हे आवश्यकता होती है :-
नाडेप िविध
नाडेप का आकार :- लम्बाई 12 फीट चौड़ाई 5 फीट उंचाई 3 फीट आकार का गड्डा कर ले। भरने हेतु सामग्री :-
75 प्रितशत वनस्पित के सूखे अवशेष, 20 प्रितशत हरी घास, गाजर घास, पुवाल, 5 प्रितशत गोबर, 2000 िलटर पानी ।
सभी प्रकार का कचरा छोटे-छोटे टुकड़ो मे हो । गोबर को पानी से घोलकर कचरे को खूब िभगो दे । फावडे से
िमलाकर गड्ड-मड्ड कर दे ।
िविध नंबर -1 – नाडेप मे कचरा 4 अंगुल भरे । इस पर िमट्टी 2 अंगुल डाले । िमट्टी को भी पानी से िभगो दे । जब पुरा
नाडेप भर जाये तो उसे ढ़ालू बनाकर इस पर 4 अंगुल मोटी िमट्टी से ढ़ांप दे ।
िविध नंबर-2- कचरे के ऊपर 12 से 15 िकलो रॉक फास्फे ट की परत िबछाकर पानी से िभगो दे । इसके ऊपर 1 अंगुल
मोटी िमट्टी िबछाकर पानी डाले । गङ्ढा पूरा भर जाने पर 4 अंगुल मोटी िमट्टी से ढांप दे ।
िविध नंबर-3- कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर परत पर िबछाये। इस खाद नाडेप कम्पोस्ट मे
60 िदन बाद सब्बल से डेढ़-डेढ़ फु ट पर छेद कर 15 टीन पानी मे 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर को
घोलकर छेदो मे भर दे । इन छेदो को िमट्टी से बंद कर दे ।
3. केचुआ खाद
छायादार स्थान मे 10 फीट लम्बा, 3 फीट चौड़ा, 12 इंज गहरा पक्का ईंट सीमेन्ट का ढांचा बनाये । जमीन से 12 इंच
ऊं चे चबूतरे पर यह िनमारण करे । इस ढांचे मे आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे की खाद िबछा दे । इसमे 1 न्1 न्1 फीट
मे 100 केचुऐ डाले । इसके ऊपर जूट के बोरे डालकर प्रितिदन सुबह, शाम पानी डालते रहे । इसमे 60 प्रितशत से ज्यादा
नमी ना रहे दो माह बाद यह खाद बन जायेगी । िजसका 15 से 20 िंटक्विंटल प्रित एकड़ की दर से इस खाद का उपयोग करे।
बीजोपचार
1. प्रित एकड़ बीज हेतु 3 से 5 लीटर देशी गाय का खट्टा मठ्ठा ले । इसमे प्रित लीटर 3 चने के आकार के बराबर हींग पीस
कर घोल दे । इसे बीजो पर डालकर िभगो दे तथा 2 घंटे रखा रहने दे । उसके बाद बोये । इससे उगरा िनयंितत होगा ।
2. 3 से 5 लीटर गौ मूत मे बीज िभगोकर 2 से 3 घंटे रखकर वो दे । उगरा नहीं लगेगा । दीमक से भी पौधा सुरिक्षतत रहेगा।
मटका खाद
गौ मूत 10 लीटर, गोबर 10 िकलो, गुड 500 ग्राम, बेसन 500 ग्राम- सभी को िमलाकर मटके मे भकर 10 िदन सड़ाये
िफर 200 लीटर पानी मे घोलकर गीली जमीन पर कतारो के बीच िछटक दे । 15 िदन बाद पुन: इस का िछड़काव करे।
कीट िनयंतण
1. देशी गाय का मट्ठा 5 लीटर ले । इसमे 3 िकलो नीम की पत्ती या 2 िकलो नीम खली डालकर 40 िदन तक सड़ाये िफर 5
लीटर माता को 150 से 200 िलटर पानी मे िमलाकर िछड़कने से एक एकड़ फसल पर इल्ली /रस चूसने वाले कीड़े िनयंितत
होगे ।
2. लहसुन 500 ग्राम, हरी िमचर तीखी िचटिपटी 500 ग्राम लेकर बारीक पीसकर 150 लीटर पानी मे घोलकर कीट
िनयंतण हेतु िछड़के ।
3. 10 लीटर गौ मूत मे 2 िकलो अकौआ के पत्ते डालकर 10 से 15 िदन सड़ाकर, इस मूत को आधा शेष बचने तक उबाले
िफर इसके 1 लीटर िमश्रण को 150 लीटर पानी मे िमलाकर रसचूसक कीट /इल्ली िनयंतण हेतु िछटके।
इन दवाओ का असर केवल 5 से 7 िदन तक रहता है । अत: एक बार और िछड़के िजससे कीटो की दूसरी पीढ़ी भी नष हो
सके।
बेशरम के पत्ते 3 िकलो एवं धतूरे के तीन फल फोड़कर 3 िलटर पानी मे उबाले । आधा पानी शेष बचने पर इसे छान ले ।
इस छने काढ़े मे 500 ग्राम चने डालकर उबाले। ये चने चूहो के िबलो के पास शाम के समय डाल दे। इससे चूहो से िनज
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भूिम का चयन एवं तैयारी: अधिधिक हल्की रेतीली व हल्की भूिम को छोड्कर सभी प्रकार की
भूिम मे सफलतापूवर्वक की जा सकती है परन्तु पानी के िनकास वाली िचकनी दोमट भूिम सोयाबीन के
िलए अधिधिक उपयुक्त होती है। जहां भी खेत मे पानी रूकता हो वहां सोयाबीन न उगा,
भूिम dh तैयारी :--- ग्रीष्म कालीन जुताई 3 वषर्व मे कम से कम एक बार अधवश्य करनी चािहए।
वषार्व प्रारम्भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत को तैयार कर लेना चािहए। इससे
हािन पहुंचाने वाले कीटो की सभी अधवस्थाएं नष्ट होगे। ढेला रिहत और भूरभुरी िमटटी वाले खेत
सोयाबीन के िलए उत्तम होते हैं। खेत मे पानी भरने से सोयाबीन की फसल पर प्रितकूल प्रभाव पड़ता
है अधत: अधिधिक उत्पादन के िलए खेत मे जल िनकास की व्यवस्था करना आवश्यक होता है। जहां तक
संभव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करे िजससे अधंकुिरत खरपतवार नष्ट हो सके।
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बीजदर:
1. छोटे दाने वाली िकस्मे– 70 िकलो ग्राम प्रित हेक्टेयर
5. 2. मधि्यम दाने वाली िकस्मे– 80 िकलो ग्राम प्रित हेक्टेयर
बोने का समय: जून के अधिन्तम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त है।
बोने के समय अधच्छे अधंकुरण हेतु भूिम मे 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होनी चािहए। जुलाई के
प्रथम सप्ताह के पश्चात बोनी की बीज दर 5-10 प्रितशत बढ़देनीचािहए।
पौधि संख्या: 4–5 लाख पौधिे प्रित हेक्टेयर ‘’40 से 60 प्रित वगर्व मीटर‘’ पौधि संख्या उपयुक्त है।
जे.एस. 75–46, जे.एस. 93–05 िकस्मो मे पौधिो की संख्या 6 लाख प्रित हेक्टेयर उपयुक्त है।
अधसीिमत बढ़ने वाली जे.एस. 335 िकस्मो के िलए 4 लाख एवं सीिमत वृद्धिद वाली िकस्मो के िलए 6
लाख पौधिे प्रित हेक्टेयर होने चािहए।
बोने की िविधि: यथासंभव मेड़ और कूड़ (िरज एवं फरो बनाकर सोयाबीन बो;s।
सोयाबीन की बौनी कतारो मे करनी चािहए। कतारो की दूरी 30 सेमी. ‘’बौनी िकस्मो के िलए‘’ तथा
45 सेमी. बड़ी िकस्मो के िलए उपयुक्त है। 20 कतारो के बाद कूड़ जल िनथार तथा नमी संरक्षण के
िलए खाली छोड़ देना चािहए। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहराई तक बोये। बीज एवं खाद को अधलग-अधलग
बोना चािहए िजससे अधंकुरण क्षमता प्रभािवत न हो।
बीजोपचार: सोयाबीन के अधंकुरण को बीज तथा मृद्धदा जिनत रोग प्रभािवत करते हैं। इसकी रोकथाम
हेतु बीज को थीरम या केप्टान 2 ग्राम काबेन्डािजम या थायोफे नेट िमथाईल, 1 ग्राम िमश्रण प्रित
िकलो ग्राम बीज की दर से उपचािरत करना चािहए अधथवा ट्राइकोडरमा 4 ग्राम एवं काबेन्डािजम 2
ग्राम प्रित िकलो ग्राम बीज से उपचािरत करके बोये।
कल्चर का उपयोग: फफूँ दनाशक दवाओ से बीजोपचार के पश्चात बीज को 5 ग्राम राइजोिबयम एवं
5 ग्राम पी.एस.बी.कल्चर प्रित िकलो ग्राम बीज की दर से उपचािरत करे। उपचािरत बीज को छाया
मे रखना चािहए एवं शीघ बौनी करना चािहए। धि्यान रहे िक फफूँ दनाशक दवा एवं कल्चर को एक
साथ न िमलाऐं।
समिन्वत पोषण प्रबंधिन: अधच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद (कम्पोस्ट) 5 टन प्रित हेक्टेयर अधंितम
बखरनी के समय खेत मे अधच्छी तरह िमला दे तथा बोते समय 20 िकलो नत्रजन, 60 िकलो स्फु र, 20
िकलो पोटाश एवं 20 िकलो गंधिक प्रित हेक्टेयर दे। यह मात्रा िमटटी परीक्षण के आधिर पर घटाई
बढ़ाई जा सकती है तथा संभव नाडेप, फास्फो कम्पोस्ट के उपयोग को प्राथिमकता दे। रासायिनक
उवर्वरको को कूड़ो मे लगभग 5 से 6 से.मी. की गहराई पर डालना चािहए। गहरी काली िमटटी मे िजक
सल्फे ट, 50 िकलो ग्राम प्रित हेक्टेयर एवं उथली िमिटटयो मे 25 िकलो ग्राम प्रित हेक्टेयर की दर से
5 से 6 फसले लेने के बाद उपयोग करना चािहए।
खरपतवार प्रबंधिन: फसल के प्रारिम्भक 30 से 40 िदनो तक खरपतवार िनयंत्रण बहुत आवश्यक
होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार िनयंत्रण करे व दूसरी िनदाई अधंकुरण होने
के 30 और 45 िदन बाद करे। 15 से 20 िदन की खड़ी फसल मे घांस कुल के खरपतवारो को नष्ट
6. करने के िलए क्यूजेलेफोप इथाइल एक लीटर प्रित हेक्टेयर अधथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती
वाले खरपतवारो के िलए इमेजेथाफायर 750 िमली. ली. प्रित हेक्टेयर की दर से िछड़काव है। बोने के
पूवर्व नींदानाशक के प्रयोग मे फलुक्लोरेलीन 2 लीटर प्रित हेक्टेयर आखरी बखरनी के पूवर्व खेतो मे
िछड़के और पेन्डीमेथलीन 3 लीटर प्रित हेक्टेयर या मेटोलाक्लोर 2 लीटर प्रित हेक्टेयर की दर से
600 लीटर पानी मे घोलकर फलैटफे न या फलेटजेट नोजल की सहायकता से पूरे खेत मे िछड़काव करे।
तरल खरपतवार नािशयो के प्रयोग के मामले मे िमटटी मे पयार्वप्त पानी व भुरभुरापन होना चािहए।।
िसचाई: खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्यत: सोयाबीन को िसचाई की आवश्यकता
नहीं होती है। फिलयो मे दाना भरते समय अधथार्वत िसतंबर माह मे यिद खेत मे नमी पयार्वप्त न हो तो
आवश्यकतानुसार एक या दो हल्की िसचाई करना सोयाबीन के िवपुल उत्पादन लेने हेतु लाभदायक
है
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पौधि संरक्षण:
कीट िनयंत्रण:: सोयाबीन की फसल पर िनम्निलिखत कीटो का प्रकोप होता है
: तना मक्खी : इसे स्टेम फ्लाई भी कहते हैं। इसकी इल्ली हल्के पीले रंग की व मक्खी काले चमकीले रंग
की होती है। इसका प्रकोप पौधिे सह नहीं पाते, मर जाते हैं या दानो की संख्यावजनकमहोजाताहै।
ब्ल्यू बीटल : दूसरा प्रमुख कीड़ा है नीला या काला भृद्धंग या ब्लू बीटल। यह पौधिो के ऊपरी भाग से
िनकलने वाली नाजुक पित्तियो और केद्रीय (बीच) भाग को खाता है। इससे पौधिे की बढ़वार रुक जाती है।
गडर्वल बीटल : फसल थोड़ी-सी बड़ी होने पर गडर्वल बीटल के प्रकोप की आशंका होती है। इसे चक भृद्धंग भी
कहा जाता है। इससे फसल का िवकास रुक पौधिा टूट जाता है। फसल कटने के बाद भी यह भाग खेत मे
पड़ा रहता है। अधगले वषर्व सोयाबीन बोने पर पुनः प्रकोप हो जाता है। इस कीट का िनयंत्रण जरूरी है।
अधधिर्व कुंडलक : हरी इल्ली की प्रजाित िजसका िसर पतला एवं िपछला भाग चौड़ा होता है, सोयाबीन
की ये इिल्लयाँ पित्तियो के हरे भाग को खुरचकर इस तरह खा जाती हैं िक पित्तियो की नसे (िशराएँ) ही
बच रहती हैं। इिल्लयाँ फूलो को अधिधिक मात्रा मे खा जाएँ तो अधफलन की िस्थित आ जाती है।
हीिलयोिथस : चने की यह इल्ली सोयाबीन पौधिे की सभी अधवस्थाओ मे नुकसान पहुँचाती है। इस कीट
के वयस्क का रंग मटमैला, पीला या हल्के धिूल के समान होता है। इसे प्रारंिभक अधवस्था मे िनयंित्रत करे।
तंबाकू की इल्ली : यह मटमैले, हरे रंग की होती है। शरीर पर पीले, हरे या नारंगी रंग की धिािरयाँ पाई
जाती हैं। पेट के दोनो तरफ काले रंग के धिब्बे पाए जाते हैं। ये पौधिे के सभी भागो को काटकर खाती हैं। ये
पौधिो का हरा भाग खा जाती हैं।
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कृ िषगत िनयंतण: खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। मानसून की वर्षार के पूवर्र बोनी नही करें।
मानसून आगमन के पश्चात बोनी शीघ्रता से पूरी करें। खेत नीदा रिहत रखें। सोयाबीन के साथ ज्वर्ार
अथवर्ा मक्का की अंतरवर्तीय खेती करें। खेतो को फसल अवर्शेषो से मुक्त रखें तथा मेढ़ो की सफाई
रखें। सोयाबीन फसल के खेत के चारो ओर कोई भी पपंची फसल (टेप कॉप) मूँग, उड़द, चौला,
िहबीसकस आिद लगाने चािहए। कीड़े आकिषत होकर इन फसलो पर आकर इकटे हए कीड़ो को दवर्ा
िछड़ककर मार िदया जाता है।
रासायिनक िनयंतण: बुआई के समय थयोिमथोक् जाम 70 डब्लू एस.3 ग्राम दवर्ा पित िकलो ग्राम
बीज की दर से उपचािरत करने से पारिम्भक कीटो का िनयंतण होता है अथवर्ा अंकुरण के पारम्भ होते
ही नीला भृंग कीट िनयंतण के िलए 700-800 ml माता 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर
िछड़कावर् करना चािहए। । कई पकार की इिल्लयां पत्ती, छोटी फिलयो और फलो को खाकर नष्ट कर
देती हैं। चूंिक फसल पर तना मक्खी, चकभृंग, माहो हरी इल्ली लगभग एक साथ आकमण करते हैं
अत: पथम िछड़कावर् 25 से 30 िदन पर एवर्ं दूसरा िछड़कावर् 40-45 िदन पर फसल पर आवर्श्य
करना चािहए।
जैिवर्क िनयंतण: कीटो के आरिम्भक अवर्स्था में जैिवर्क कट िनयंतण हेतु बी.टी एवर्ं ब्यूवर्ेरीया
बैिसयाना आधरिरत जैिवर्क कीटनाशक 1 िकलोग्राम या 1 लीटर पित हेक्टेयर की दर से बुवर्ाई के 35-
40 िदनो तथा 50-55 िदनो बाद िछड़कावर् करें। एन.पी.वर्ी. का 250 एल.ई समतुल्य का 500 लीटर
पानी में घोलकर बनाकर पित हेक्टेयर िछड़कावर् करें। रासायिनक कीटनाशको की जगह जैिवर्क
कीटनाशको को अदला-बदली कर डालना लाभदायक होता है।
1. गडरल बीटल पभािवर्त क्षेत में जे.एस. 335, जे.एस. 80–21, जे.एस 90–41 , लगायें
2. िनदाई के समय पभािवर्त टहिनयां तोड़कर नष्ट कर दें
3. कटाई के पश्चात बंडलो को सीधरे गहराई स्थल पर ले जावर्ें
4. तने की मक्खी के पकोप के समय एन.पी.वर्ी. का िछड़कावर् शीघ्र करें
8. (ब)रोग:
1. पत्तो पर कई तरह के धरब्बे वर्ाले फफूं द जिनत रोगो को िनयंितत करने के िलए काबेन्डािजम 50
डबलू पी या थायोफे नेट िमथाइल 70 डब्लू पी 0.05 से 0.1 पितशत से 1 ग्राम दवर्ा पित लीटर पानी
का िछड़कावर् करना चािहए। पहला िछड़कावर् 30 -35 िदन की अवर्स्था पर तथा दूसरा िछड़कावर् 40
– 45 िदनो की अवर्स्था पर करना चािहए।
2. बैक्टीिरयल पश्चयूल नामक रोग को िनयंितत करने के िलए स्टेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइिसन
की 200 पी.पी.एम. 200 िम.ग्रा; दवर्ा पित लीटर पानी के घोल के िमश्रण का िछड़कावर् करना
चािहए। इराके िलए 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्टेप्टोसाइक् लीन का िछड़कावर्करनाचािहए।
3. गेरूआ पभािवर्त क्षेतो (जैसे बैतूल, िछदवर्ाडा, िसवर्नी) में गेरूआ के िलए सहनशील जाितयां लगायें
तथा रोग के पारिम्भक लक्षण िदखते ही 1 िम.ली. पित लीटर की दर से हेक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या
पोिपकोनाजोल 25 ई.सी. या आक्सीकाबोजिजम 10 ग्राम पित लीटर की दर से टायएिडमीफान 25
डब्लू पी दवर्ा के घोल का िछड़कावर् करें।
4. िवर्षाणु जिनत पीला मोजेक वर्ायरस रोग वर् वर्ड वर््लाइट रोग पाय: एिफ्रिडस सफे द मक्खी, िथ्रिप्स
आिद द्वारा फैलते हैं अत: केवर्ल रोग रिहत स्वर्स्थ बीज का उपयोग करना चािहए एवर्ं रोग फैलाने
वर्ाले कीड़ो के िलए थायोमेथेक्जोन 70 डब्लू एवर्. से 3 ग्राम पित िकलो ग्राम की दर से उपचािरत करें
एवर्ं 30 िदनो के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधरो को खेत से िनकाल दें। इथोफे नपाक् स 10 ई.सी.
1.0 लीटर पित हेक्टेयर थायोिमथेजेम 25 डब्लूजी,1000 ग्रामपितहेक् टेयर।
5. नीम की िनम्बोली का अकर िडफोिलयेटसर के िनयंतण के िलए कारगर सािबत हआ है।
फसल कटाई एवर्ं गहाई: अिधरकांश पित्तियो के सूख कर झड़ जाने पर और 10 पितशत फिलयो के
सूख कर भूरी हो जाने पर फसल की कटाई कर लेनी चािहए। पंजाब 1 पकने के 4–5 िदन बाद, जे.एस.
335, आिद सूखने के लगभग 10 िदन बाद चटकने लगती हैं। कटाई के बाद 2–3 िदन तक सुखाना
चािहए जब कटी फसल अच्छी तरह सूख जाये तो गहराई कर दनो को अलग कर देना चािहए। फसल
गहाई थ्रिेसर, टेक्टर, बैलो तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर करना चािहए। जहां तक संभवर् हो बीज के
िलए गहाई लकड़ी से पीट कर करना चािहए, िजससे अंकुरण पभािवर्त न हो।
अन्तवर्रतीय फसल पदित: सोयाबीन के साथ अन्तवर्रतीय फसलो के रूप में िनम्नानुसार फसलो की
खेती अवर्श्य करें।